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If you doesn't read the first part of ""रूपा"" than please read its first part than you get easily connected with second part.
धीरे धीरे समय यूहीं बीत रहा था। स्वरूप बहुत उदास भी रेहता था और उसकी ये उदासी ना तो उसके घरवालों से छिपी थी ना ही नारंग जी से। लेकिन कोई भी स्वरूप के लिए कुछ कर नहीं सकता था। घरवाले जहां स्वरूप के अस्तित्व से ही अंजान थे वहीं नारंग जी जमाने के डर से खामोश। फिर एक दिन वो भयानक हादसा हुआ जिसने स्वरूप के जीवन के पन्ने को काले रंग से भर दिया। स्कूल की छुट्टी के बाद स्वरूप अपने घर के लिए निकला ही था कि पीछे से उसके school के ही एक लङके ने उसे आवाज लगाई और उसके पास जाकर उसे बताया कि नारंग सर उसे physics lab में बुला रहें हैं। नारंग जी का नाम सुनते ही स्वरूप के चेहरे पर मुस्कुराहट छा गई और वो तुरंत भाग पङा physics lab की ओर। lab में जा कर स्वरूप ने नारंग जी को इधर उधर देखा, ना दिखने पर उसने नारंग जी को आवाज भी लगाई। लेकिन ना तो नारंग जी कहीं दिखे ना उन्होंने स्वरूप की आवाज का कोई उत्तर दिया। वो आवाज का उत्तर तब देते जब वे वहां होते। ये सब बस एक छलावा था। वहां नारंग जी नहीं बल्कि वो 4 लङके थे जो केहने हो तो इंसान थे, उनमें से एक स्वरूप के ही school का लङका था जिसके केहने पर स्वरूप वहां आया था। वे सभी 16 या 17 साल के नाबालिक बच्चे थे , लेकिन आज वे हैवान बन गए थे। स्वरूप को वहां धोखे से बुलाकर उन चारों ने हैवानियत का वो गंदा खेल खेला जिसे सोचने भर मात्र से किसी के भी रोंगटे खङे हो जाए। वो शैतान ये खेल करीब 3 घंटे तक खेलते रहे। स्वरूप के जिस्म को इस कदर नोचा और काटा था जैसे मानो उसे काटकर खा जाना चाहते हों। एसी हैवानियत, एसी दरिंदगी , पता नहीं कहां से वो लोग उजाले मे सभ्य परिवार के बच्चे कहलाते होंगे जो अंधेरे में हैवानियत की सारी हदें पार कर चुके थे। स्वरूप को वहीं स्कूल में physics lab में नंगा, खून से सना, बेहोश छोङ वो चारों वहां से भाग गए थे।
बहुत देर हो जाने के कारण शर्मा जी के परिवार ने स्वरूप की खोज शुरू कर दी थी। शर्मा जी ने नारंग जी को भी फोन पर स्वरूप के अब तक घर ना आने के बारे मे पूछा। नारंग जी ने तुरंत स्कूल में पता किया तो पता चला की स्वरूप छुट्टी के बाद स्कूल के अंदर दाखिल तो हुआ था लेकिन बाहर गया कि नहीं ये किसी को नहीं पता। नारंग जी शर्मा जी और सुमेर जी के साथ स्कूल पँहुचे और पूरे स्कूल में डूंडने के बाद उन्हे वो मिला जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। "एक बलात्कार का शिकार"। उन तीनों ने जब स्वरूप को उस हालत मे देखा तो उनके पैरों के तले जमीन ही खिसक गई थी। जहां कुछ देर पेहले बार बार स्वरूप का नाम गूंज रहा था उसे डूंडने के लिए वहीं जब वो मिल गया था तो चारों तरफ सन्नाटा छा गया था। नारंग जी ने तुरंत lab की खिङकियों पर लगे परदे को खींचा और स्वरूप को ढंक दिया, उधर सुमेर जी ने ambulance को फोन लगाया। लेकिन शर्मा जी, वे तो बस सन्न रह कर सब देख रहे थे, उनकी तो जान ही सूख कर गले तक आ गई थी और वे खुद को और ना संभाल पाए और स्वरूप को अपनी गोद मे भर कर फूट फूट कर रोने लगे। नारंग जी और सुमेर जी भी क्या कर सकते थे, बस शर्मा जी को डांडस ही बंधा सकते थे। अब जो हो गया था उसे बदल पाना किसी के बस मे ना था। कुछ देर बाद ambulance आ गई और स्वरूप को hospital ले आया गया।
स्वरूप का ईलाज तो तुरंत शुरू हो गया था लेकिन एक ही सवाल बार बार शर्मा जी से पूछा जा रहा था "कया हो गया इसे" "accident हो गया" "छत से गिर गया" "किसी ने मार पीट दिया।" नारंग जी ने दबी आवाज मे कहा कि शायद इसका रेप हुआ है लेकिन किसी ने उनकी बात नही सुनी और बार बार शर्मा जी से वही सवाल किए जा रहे थे। शर्मा जी चिल्ला कर बोले "बलात्कार हुआ है मेरे बेटे का!!!! बलात्कार!!!" और रोते हुए वहां से चले गए।
यह बात hospital से police और police से media तक भी पँहुच गई। लोकल अखबार से यह बात स्वरूप के स्कूल के management को भी पता चली। स्कूल की शाख को बचाए रखने की जिम्मेदारी स्कूल वालों ने नारंग जी को सोंपी, कि वे कैसे भी कर के इस बात को रफा दफा करवाएँ, और स्कूल का नाम बदनाम ना होने पाए। अपनी नौकरी को बचाने के लालच मे नारंग जी भी जुट गए इस बात को आगे बङने से रोकने के लिए। शर्मा जी और उनके परिवार को बदनामी के डर को उनके मन में बैठा कर नारंग जी बङी ही आसानी से अपने काम मे सफल भी हो गए। नारंग जी की बातों में आकर शर्मा जी ने police में कोई complaint तो नहीं की लेकिन hospital report के मुताबिक ये एक रेप केस था, तो बिना स्वररूप के बयान के इस केस को बंद कर पाना ना तो नारंग जी के हाथ में था ना police के। लेकिन स्कूल वालों की तरफ से police को मिली मोटी रिश्वत ने इस केस ढीला जरूर कर दिया था।
अपने भाई की खबर पाकर आकाश भी सुंदर नगर आ गया था। और 7 -8 दिन बाद स्वरूप को भी hospital से discharge कर दिया गया था। शरीर के घावों को भरना फिर भी आसान होता है लेकिन मन के घावों को भरना बहुत मुश्किल। ये हादसा जितना बोलने और सुनने मे छोटा लग रहा है उससे कहीं कठीन है स्वरूप का उस हादसे के दर्द के साथ जीना
घरवाले सब स्वरूप के साथ हैं ताकि वो उस अनहोनी को भुलाकर वापस अपनी normal life की तरफ लौट सके लेकिन स्वरूप के लिए वो सब भुला पाना इतना आसान नहीं। सभी लोग धीरे धीरे अपनी रोज मर्रा की जिंदगी मे लौट रहेत थे, और इस घटना को भुलाने की कोशिश मे लगे थे। घर मे कोई भी उस रात के बारे मे बात ही नहीं करता था सब ये जताना चाहते हो मानो कि एसी कोई घटना हुई ही ना हो। स्वरूप तो पहले भी चुप ही रेहता था और वो अभी भी चुप था। लेकिन उसकी आँखो को देखकर साफ समझा जा सकता था कि कुछ आग सी लगी है उसके अंतर मन मे ही। अपने घर वालों का रवैया देख कर स्वरूप खुद को ही उस रात के लिए जिम्मेदार समझने लगा था। उसने सबके साथ उठना बैठना, खाना - खाना बंद कर दिया था और अकेले अपने कमरे मे चादर के अंदर सर कर के रोता रेहता और खुद को कोसता रेहता था।
लेकिन आकाश ये सब और ना देखा गया और उसने अपने मम्मी पापा से बात भी कि की वो अपने ही बेटे के साथ एसा कैसे कर सकते हैं, वो स्वरूप को उसके हाल पे कैसे छोङ सकते हैं , वो स्वरूप के गुनाहगारों को इतनी आसानी से कैसे जाने दे सकते हैं। लेकिन आकाश की किसी भी बात का असर शर्मा जी पर नही हुआ। वे स्वरूप के दुख से अंजान तो नहीं थे लेकिन स्वरूप के भविष्य की खातिर एसा कर रहे थे। शर्मा जी ने आकाश को वही सब बाते बताई जो नारंग जी ने उनके दिमाग मे भर दी थी, कि वे अगर इस बात को आगे बङाते हैं तो उनके परिवार की बदनामी तो होगी ही साथ साथ स्वरूप का जीवन कितना मुश्किलों से भर जाएगा। लेकिन आकाश शर्मा जी की एक बात नहीं सुनता और स्वरूप का हाथ पकङ उसे उसके कमरे से बाहर ले आता है और सबके सामने ही उसे याद करने को कहता है कि वो याद करे कि उस दिन कया हुया था, वो वहां कैसे पँहुचा और वो कौन लोग थे जिन्होने उसके साथ एसा किया। आकाश की बातें सुनकर स्वरूप सर झुका कर रोने लगता है, तो आकाश उसे समझाता है कि उसने कोई गलत काम नही किया है तो नीचे देखने की या रोने की उसे कोई जरूरत नही है। स्वरूप थोङी हिम्मत जुटा कर बताता है कि उसे किसी लङके ने lab मे बुलाया और जब वो वहां गया तो वहां पेहले से ही 3 लङके और थे वे लोग अंधेरे मे थे इसलिए उसने उन लोगों का चेहरा नहीं देख पाया और फिर जो लङका उसे वहां लेकर गया था उसने स्वरूप का मुँह एक कपङे से दबा दिया और वो बेहोश हो गया और उसके बाद उसे कुछ याद नहीं। आकाश कुछ और पूछता उससे पेहले ही शर्मा जी ने उसे डांट कर चुप करा दिया और स्वरूप को वापस उसके कमरे मे जाने को कहा। उसी रात आकाश को भी वापस उसके hostel भेज दिया गया। Police ने भी स्वरूप का बयान लेना जरूरी नहीं समझा और बाकी की फाईलों की तरह ये फाईल भी दबा दी गई। बाकी सभी तो पेहले से ही normal life जी रहे थे और स्वरूप को भी एसा ही करने पर मजबूर होना पङा। लेकिन स्वरूप को देखकर साफ पता चलता था कि मानो उसके अदंर का एक हिस्सा पूरी तरह खत्म हो चुका है। एक ओर बलात्कार का शिकार होने का दर्द और दूसरी ओर अपने ही घर मे अंजान होने की तकलीफ। लेकिन फिर भी जैसे तैसे खुद को संभाले एक बार फिर स्वरूप चल दिया था स्कूल की ओर। आज स्वरूप पूरे 2 महीने बाद अपने घर से बाहर निकला था। उसके लिए घर से बाहर आ कर लोगों से नजरें मिलाना बिल्कुल आसान नहीं था, लेकिन अब तक वो अपने घर में भी तो नजरे झुकाए ही रेह रहा था।
सकूल मे सब स्वरूप को एक बुरी नजर से देख रहे थे, अब से पेहले स्वरूप को एक मजाक की नजर से देखा जाता था, अब से पहले स्वरूप को देख कर हँसा जाता था, उसका मजाक उङाया जाता था, लेकिन आज की नजरों में एक घिन थी। आज सब स्वरूप को इतनी बुरी नजर से देख रहे थे, एसे तो शायद किसी वैश्या को भी नही देखा होगा किसी ने। वैश्या तो अपना जिस्म बेचती है, लेकिन स्वरूप के जिस्म को तो नोंचा और काटा गया था। फिर भी स्वरूप को एसे देखा जा रहा था कि मानो वो सारी दुनिया की गन्दगी हो और अगर किसी ने उसे छू लिया तो वो भी गंदा हो जाएगा। इसका कारण थी वो अफवाहें जो सारे स्कूल मे फैल चुकी थी। किसी को सच्चाई का तो पता नही था, इसलिए अपने मन मुताबिक सबकी अपनी एक अलग ही कहानी थी। किसी की कहानी मे स्वरूप ने बाहर से लङकों को बुला कर रंग रलियाँ मनाई थी, और किसी के मुताबिक कुछ हिजङे उसे अपने साथ ले जाने के लिए आए थे और स्वरूप के मना करने पर उसे physics lab मे मार पीट के फैंक गऐ। किसी की कहानी मे तो स्वरूप नारंग सर के साथ जबरदस्ती करना चाहता था तो उन्होंने स्वरूप को मार पीट दिया था। इस तरह की और भी ना जाने क्या क्या कई सारी कहानियाँ बङे चाव के साथ सारे स्कूल मे सुनी और सुनाई गई थी लेकिन किसी ने भी स्वरूप की तरफ एक दिलासा भरा हाथ बङाना जरूरी नही समझा था।
स्कूल और घर दोनो जगह स्वरूप के मन का हाल समझने वाला कोई नहीं था। स्वरूप स्कूल मे सबसे पीछे वाली बैंच पर अकेला बैठा करता था, और घर मे अपने कमरे मे भी अकेला ही रेहता था। "रूपा" से मिलना बिल्कुल बंद कर दिया था। छत का वो कमरा ही एक एसी जगह थी जहां स्वरूप खुल के अपने मन मुताबिक रेहता था, लेकिन अब वो कमरा एक दम खाली हो गया था। रूपा का तो मानो स्वरूप ने अस्तित्व ही खत्म कर दिया था। उसे एसा भी लगने लगा था कि उसके साथ जो कुछ भी हुआ है वो रूपा की वजह से ही हुआ है। उसे वैसे तो उस रात की घटना याद नहीं थी लेकिन होश मे आने के बाद का दर्द और घरवालों का ये बरताव उसे वो हादसा भूलने नही दे रहा था। कभी कभी तो सपने मे भी स्वरूप को वही लङका दिखाई देता था और कहता था " physics lab मे चलो" और घबरा कर उसकी आँख खुल जाती थी, और सारी रात रोते हुए जाती थी।
एक रोज स्कूल जाने के लिए स्वरूप जब घर से निकला, तो उसे लगा की कोई उसका पीछा कर रहा है, उसने जब पीछे मुङ कर देखा तो वहां कोई नहीं था। उसका वहम होगा शायद। स्कूल पहुँचा तो वही हाल था लोगो का जो अक्सर रहता था। अपने आस पास की छोटी मानसिकता के लोगों की वजह से ही शायद स्वरूप मायूस रहा करता था। उसकी इस हालत को नारंग जी अच्छे से समझ सकते थे, लेकिन अपनी लाचारी की वजह से वे भी स्वरूप के लिए कुछ कर पाने मे असमर्थ थे। लेकिन नारंग जी से आखिर कब तक स्वरूप की मायूसी देखी जाती, तो एक दिन lunch मे जब सभी अपने lunch box और खेल मे व्यस्त थे, नारंग जी स्वरूप को सहानूभूती और उसका मन हल्का करने के इरादे से उसे अपने साथ physics lab मे ले आए। पेहले तो स्वरूप उनके साथ आने मे झिझक रहा था, लेकिन फिर नारंग जी के जोर देने पर आ गया। नारंग जी स्वरूप को अपने साथ लाए तो उसका मन हल्का करने के लिए ही थे लेकिन वे उस हादसे के बारे में बात कर के स्वरूप का मन दुखा ही कर रहे थे। लेकिन स्वरूप उनकी बात काट अपनी ही बात करने लगा। वो नारंग जी से पूछने लगा कि उन्होंने उसके साथ एसा क्यों किया, उन्होंने स्वरूप का साथ क्यों छोङ दिया। नारंग जी को उसने ये भी बताया कि वो मन ही मन उन्हें चाहने लगा है और बाकी सब लोगों से ज्यादा उसे नारंग जी की बेरुखी ही दुख पहँचा रही है। स्वरूप ने ये भी बताया कि उस दिन वो उनको ही डूंडता हुआ यहां lab में आया था। यह सब सुन नारंग जी से रहा नही गया और उन्होंने स्वरूप को गले लगा लिया। स्वरूप को गले लगाते ही नारंग जी के मन मे दबी भावनाओं ने सैलाब का रूप ले लिया और अपनी भावनाओं में बेहते हुए वे सब भूल गए कि वे कहां हैं और क्या कर रहे हैं और वे और जोर से स्वरूप को अपनी बाहों मे कसने लगे। मानों वे खुद को स्वरूप मे और स्वरूप को खुद मे समा लेना चाहते हों। तभी वहां किसी के होने की आहट हुई और नारंग जी ने तुरंत स्वरूप को खुद से दूर झटक दिया और स्वरूप को लताङते हुए कहा कि उसके दिमाग मे जो भी ये सब भावनाएँ चल रही हैं ये सब गलत है और उसके मन की गंदगी है। उस दिन जो कुछ भी स्वरूप के साथ हुआ वो इन्हीं सब भावनाओं का परिणाम है। नारंग जी ने स्वरूप को खूब जली कटी बातें सुनाई , वे ये सब इस मंशा से कर रहे थे ताकि ये सब सुनने के बाद स्वरूप को उनसे नफरत हो जाए और वो जो कुछ भी नारंग जी के लिए महसूस कर रहा है वो एसा महसूस ना करे। शायद एसा करना नारंग जी के घर परिवार को उनकी स्वरूप के लिए बङती हुई भावनाओं की आग से बचा सकता था। ये सब करके वे स्वरूप का तो पता नही लेकिन अपनी भलाई के बारे मे तो जरूर सोच रहे थे। स्वरूप भी अपनी आँखो मे आँसू भरे, ये सब सुन वहां से लौट आया और उसने फिर कभी नारंग जी की ओर आँख उठा कर नहीं देखा। स्वरूप का जीवन ठीक उस फूल की तरह हो गया था जिसे कोई अपने मन होने पर सूंघ लेता हो और मन होने पर उसकी पंखुङियों को एक एक कर तोङ देता हो।
समय बीतने के साथ बङे दिनों के इंतजार के बाद शर्मा परिवार में खुशीयों ने दस्तक दी थी। सुलेखा जी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया था और इस बार निर्मला जी ने किसी की सुने बिना नए मेहमान का नाम विकास रख ही दिया था। सारे घर में खुशियां ही खुशियां छा गई थीं। लेकिन कल का दिन क्या लेकर आएगा ये कहा किसी को पता होता है। अपने घर मे इतने दुखों के बाद आई इस खुशी को किसी की नज़र ना लगे, इसलिए शांती देवी जी ने मंदिर मे पाठ रख वाया था तो आज सारा दिन वे मंदिर मे ही बिताने वाली थी। शर्मा जी दुकान के लिए निकल रहे थे, आज जल्दी मे थे क्योंकी दुकान से पेहले hospital मे विकास से मिलने भी तो जाना था। सुमेर जी hospital मे ही निर्मला जी का इतजार कर रहे थे, आखिर चाय नाश्ता जो लाने वाली थी उनकी भाभी। वहीं घर पर निमर्ला जी स्वरूप के लिए खाना बना, सुलेखा जी के लिए दलिया और सुमेर जी के लिए नाश्ता डब्बे मे लेकर hospital जा रहीं थी। अभी सुलेखा जी की छुट्टी होने मे 3 दिन बाकी थे। आकाश भी बङा खुश था ये खबर सुन और आना भी चाहता था सुंदर नगर लेकिन अपने भाई के लिए कुछ भी ना कर पाने के एहसास ने उसे आने नही दिया। स्वरूप घर पर अकेला रह गया था। आज उसे हल्कि सी हरारत लग रही थी तो वो आज घर पर ही आराम कर रहा था। कुछ समय बाद बाहर के कमरे की खिङकी से कुछ आवाज आई, स्वरूप अपने चादर से निकल कर जब बाहर देखने आया तो बाहर का नजारा देख उसके होश उङ गए।
घर के अंदर खिङकी पर वही लङका खङा था जो उसे उस दिन physics lab मे ले गया था और खिङकी से 2 और लङकों को अंदर खींच रहा था। स्वरूप को तो जैसे समझ ही नहीं आ रहा था की ये क्या हो रहा है। तभी वो लङका स्वरूप की ओर मुङा और स्वरूप को देख कर मुस्कुरा कर पूछा, कि वो स्वरूप को याद तो है ना और बाकी दोनो लङकों को देख कर आँख मारी और तीनो हँसने लगे। स्वरूप उन्हे देखकर घबरा गया और उनहे घर से जाने को बोला। तभी दूसरा लङका बोला की वो यहां से जाने नहीं, यहां हमेशा के लिए घर बसाने आए हैं और वे तीनो फिर से हँसने लगे। पहले वाले लङके ने फिर बाकी दोनो लङको के बारे मे स्वरूप को बताया कि स्वरूप उन्हे देख कर घबराए नहीं, ये दोनों भी उस रात स्वरूप के साथ मजे कर चुके हैं। उसने चोथे लङके के बारे मे भी बताया कि वो आज नही आ पाया लेकिन कल आएगा और अपने साथ कुछ और नए दोस्त लाएगा। स्वरूप ये सब सुनकर और ज्यादा डर गया और वो फोन की तरफ भागा, कि वो अपने पापा को फोन कर सके लेकिन उन लङको ने स्वरूप को एसा नही करने दिया और स्वरूप को वही जमीन पर पटक दिया। तीसरे लङके ने स्वरूप के बाल पकङ कर उसके सर को उठाया और उसके कानों मे फुसफुसाया, कि कई दिनों से उनकी नजर स्वरूप के ऊपर है, वे लोग स्वरूप के ऊपर नजर रखे हुए हैं, घर मे भी और स्कूल मे भी और उन्हे पता था कि आज स्वरूप घर पर अकेला है। घर ही नही उन्होंने स्कूल मे भी एक जगह का जुगाङ कर लिया है जहां वे जब चाहे स्वरूप के साथ मजे कर सकते हैं। और वे तीनों लङके फिर से हँसने लगे। वे लोग इतने सहज थे मानो स्वरूप पे उनका हक हो। स्वरूप को उन लोगों ने खरीद लिया हो, मानो स्वरूप उनके लिए बस एक खिलौना हो। स्वरूप ने हिम्मत कर अपने घर वालो को और police को सब बताने की धमकी दी। स्वरूप की ये बात सुनकर वे तीनो बङी जोर जोर से हँसने लगे और बोले कि अगर police उनका कुछ बिगाङ पाती तो आज वो जेल मे होते और रही बात घरवालो की तो वो लोग आज भी वही करेगे जो पेहले किया था। तभी पेहले वाले लङके ने स्वरूप को जमीन से उठाते हुए कहा " डरो नही इस बार हम आराम से करेगे और तुम्हे बिल्कुल भी परेशानी नही होगी।" और एक बार फिर स्वरूप के साथ दरिंदगी का वही खेल खेला गया लेकिन इस बार स्वरूप अपने पूरे होश मे था। उसके शरीर को बारी बारो से तीनों ने नोचा काटा और बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को बङे मजे के साथ अंजाम दिया । स्वरूप चिल्लाता रहा, छटपटाता रहा, खुद को छुङाने की कोशिश करता रहा, लेकिन उन लङको की जकङ से ना तो वो खुद को छुङा पाया और उनके द्वारा मुँह बंद किए जाने से ना उसकी चीखे किसी के कानो तक पहुँच पायी। पेहले की तरह स्वरूप के शरीर पर इतनी चोटे तो नही आई थी, लेकिन उसके मन की चोट पेहले से गेहरी थी। उसकी जांघों पर खून भी बह रहा था, उसके होटों को भी काटा गया था और उसके बदन को इतनी बुरी तरह से पकङा और जकङा गया था की कई जगह नीले निशान आसानी से देखे जा सकते थे। बदन दर्द के कारण स्वरूप हिल भी नहीं पा रहा था। तीनों लङको ने कपङे पेहने और स्वरूप को बोला की कल और भी लङके आएगे तो वो तैयार रहे, और अगर वो आराम से बिना छटपाए ये सब कराएगा तो उसे एक खरोंच भी नही आएगी और उसे भी मजा आएगा और धीरे धीरे उसे इस सब की आदत पङ जाएगी। इतना कह कर वे लोग स्वरूप को उसी हाल मे छोङ वहां से चले गए।
दर्द वो ज्यादा भयानक नहीं होता जो शरीर में होता है, चोट वो ज्यादा दर्दनाक नही होती जो जिस्म पर लगती है। लेकिन मन पर लगी चोट का दर्द कितना असहनीय और भयावह हो सकता है, ये उस व्यक्ति के अलावा कोई और महसूस नही कर सकता, जिसके मन पर एक गेहरी चोट लगी हो। स्वरूप अभी अपने पेहले हादसे से ही नही उभर पाया था कि एक और हादसे ने उसे घेर लिया था। वो धीरे धीरे जमीन पर ही खिसक खिसक कर फोन के पास जाता है और अपने पापा का नम्बर भी dail करता है, वो अपने पापा को बताना चाहता था किउसके साथ क्या हुआ है और किन लोगों ने उसके साथ ये घिनौना काम किया है, लेकिन तभी वो रुक जाता है और उन लङकों की बातें उसके दिमाग मे घूमने लगती कि ना तो police कुछ कर पाएगी और ना ही उसके घरवाले और उसे अपने घरवालो का बर्ताव भी याद आता है कि उसके घरवालो ने पेहले उसके साथ क्या किया था। उसे उन लङको की बातें सही लगने लगती हैं। कल भी उसके साथ यही होना है और शायद आगे भी उसके साथ एसा ही होता रहेगा, यही सोच कर स्वरूप को खुद से ही घिन आने लगती है और वो हताश, निराश हो कर लङखङाता हुआ किचिन मे जाता है और वहां रखे चाकू से अपने दोनों हाथों की नसे काट लेता है। वो अपने आखिरी समय मे अपने घरवालो को याद करता है और याद करता है "रूपा" को और सोचता है की अगर वो लङकी होता तो भी क्या उसके साथ एसा ही होता या रूपा के कारण ही उसके साथ एसा हुआ है और धीरे धीरे कभी ना जागने वाली नींद के आगोश में स्वरूप हमेशा के लिए सो जाता है।
आज स्वरूप के नाम से इंसानियत को हारते देखा था मैंने। क्या गलती थी स्वरूप की, क्यों हुआ उसके साथ एसा, क्यों उन लङकों ने स्वरूप को अपना हक समझा, क्या वो इंसान नहीं था, क्या उसे अपने मन मुताबिक जीने का हक नही था, क्या वो अपने पंसद के व्यक्ति से प्यार नही कर सकता था, क्या रूपा बनना ही इन सब का कारण था। एसे ना जाने कितने सवाल है जिनके जवाब शायद हैं तो सबके पास लेकिन पता नही वो कौन सी पट्टी है जो लोगों ने अपनी आँखो पर चङा रखी है, और असलियत देखना ही नही चाहते। अगर शर्मा जी और उनके परिवार ने स्वरूप को समझा होता तो शायद उसे रूपा बनने की जरूरत नही पङती। जो सुकून उसे छत के उस कमरे मे मिलता था शायद वो ही सुकून उसे अपने सारे घर मे और घरवालो के साथ भी मिलता। अगर स्वरूप के घरवाले उसका साथ देते तो शायद स्कूल management के दबाव के चलते स्वरूप को इंसाफ मिलने मे थोङी कठिनाई होती लेकिन उन लङकों की हिम्मत ना होती फिरसे वही हरकत करने की।
Gay, transgender होना कोई हमारा निर्णय नहीं है, एसा होना हमने नहीं चुना, अगर हमे चुनने का हक होता तो हम भी अपने लिए एक सुकून भरी जिन्दगी चुनते, यूं घुट घुट के जीना किसे पंसद है। लेकिन हम एसे ही हैं, हम एसे ही पैदा होते हैं, ये कोई बीमारी नही है जिसका ईलाज डूंडा जा सके। आज भी हमे और sex worker को एक ही नजर से देखा जाता है और यही मानसिकता थी उन लङकों की जो स्वरूप को एक sex doll से ज्यादा कुछ नहीं समझ रहे थे। इसी छोटी सोच की शिकार ना जाने कितनी रूपा हो चुकी हैं और शायद आगे भी होती ही रहेंगी।इस मानसिकता को बदलने का, समाज मे सुधार लाने का और रूपा को इस खुले आसमान के नीचे एक सुंदर जीवन जीता देखने का कोई तरीका अगर आप के पास हो तो मुझे जरूर बताईएगा।
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If you doesn't read the first part of ""रूपा"" than please read its first part than you get easily connected with second part.
धीरे धीरे समय यूहीं बीत रहा था। स्वरूप बहुत उदास भी रेहता था और उसकी ये उदासी ना तो उसके घरवालों से छिपी थी ना ही नारंग जी से। लेकिन कोई भी स्वरूप के लिए कुछ कर नहीं सकता था। घरवाले जहां स्वरूप के अस्तित्व से ही अंजान थे वहीं नारंग जी जमाने के डर से खामोश। फिर एक दिन वो भयानक हादसा हुआ जिसने स्वरूप के जीवन के पन्ने को काले रंग से भर दिया। स्कूल की छुट्टी के बाद स्वरूप अपने घर के लिए निकला ही था कि पीछे से उसके school के ही एक लङके ने उसे आवाज लगाई और उसके पास जाकर उसे बताया कि नारंग सर उसे physics lab में बुला रहें हैं। नारंग जी का नाम सुनते ही स्वरूप के चेहरे पर मुस्कुराहट छा गई और वो तुरंत भाग पङा physics lab की ओर। lab में जा कर स्वरूप ने नारंग जी को इधर उधर देखा, ना दिखने पर उसने नारंग जी को आवाज भी लगाई। लेकिन ना तो नारंग जी कहीं दिखे ना उन्होंने स्वरूप की आवाज का कोई उत्तर दिया। वो आवाज का उत्तर तब देते जब वे वहां होते। ये सब बस एक छलावा था। वहां नारंग जी नहीं बल्कि वो 4 लङके थे जो केहने हो तो इंसान थे, उनमें से एक स्वरूप के ही school का लङका था जिसके केहने पर स्वरूप वहां आया था। वे सभी 16 या 17 साल के नाबालिक बच्चे थे , लेकिन आज वे हैवान बन गए थे। स्वरूप को वहां धोखे से बुलाकर उन चारों ने हैवानियत का वो गंदा खेल खेला जिसे सोचने भर मात्र से किसी के भी रोंगटे खङे हो जाए। वो शैतान ये खेल करीब 3 घंटे तक खेलते रहे। स्वरूप के जिस्म को इस कदर नोचा और काटा था जैसे मानो उसे काटकर खा जाना चाहते हों। एसी हैवानियत, एसी दरिंदगी , पता नहीं कहां से वो लोग उजाले मे सभ्य परिवार के बच्चे कहलाते होंगे जो अंधेरे में हैवानियत की सारी हदें पार कर चुके थे। स्वरूप को वहीं स्कूल में physics lab में नंगा, खून से सना, बेहोश छोङ वो चारों वहां से भाग गए थे।
बहुत देर हो जाने के कारण शर्मा जी के परिवार ने स्वरूप की खोज शुरू कर दी थी। शर्मा जी ने नारंग जी को भी फोन पर स्वरूप के अब तक घर ना आने के बारे मे पूछा। नारंग जी ने तुरंत स्कूल में पता किया तो पता चला की स्वरूप छुट्टी के बाद स्कूल के अंदर दाखिल तो हुआ था लेकिन बाहर गया कि नहीं ये किसी को नहीं पता। नारंग जी शर्मा जी और सुमेर जी के साथ स्कूल पँहुचे और पूरे स्कूल में डूंडने के बाद उन्हे वो मिला जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। "एक बलात्कार का शिकार"। उन तीनों ने जब स्वरूप को उस हालत मे देखा तो उनके पैरों के तले जमीन ही खिसक गई थी। जहां कुछ देर पेहले बार बार स्वरूप का नाम गूंज रहा था उसे डूंडने के लिए वहीं जब वो मिल गया था तो चारों तरफ सन्नाटा छा गया था। नारंग जी ने तुरंत lab की खिङकियों पर लगे परदे को खींचा और स्वरूप को ढंक दिया, उधर सुमेर जी ने ambulance को फोन लगाया। लेकिन शर्मा जी, वे तो बस सन्न रह कर सब देख रहे थे, उनकी तो जान ही सूख कर गले तक आ गई थी और वे खुद को और ना संभाल पाए और स्वरूप को अपनी गोद मे भर कर फूट फूट कर रोने लगे। नारंग जी और सुमेर जी भी क्या कर सकते थे, बस शर्मा जी को डांडस ही बंधा सकते थे। अब जो हो गया था उसे बदल पाना किसी के बस मे ना था। कुछ देर बाद ambulance आ गई और स्वरूप को hospital ले आया गया।
स्वरूप का ईलाज तो तुरंत शुरू हो गया था लेकिन एक ही सवाल बार बार शर्मा जी से पूछा जा रहा था "कया हो गया इसे" "accident हो गया" "छत से गिर गया" "किसी ने मार पीट दिया।" नारंग जी ने दबी आवाज मे कहा कि शायद इसका रेप हुआ है लेकिन किसी ने उनकी बात नही सुनी और बार बार शर्मा जी से वही सवाल किए जा रहे थे। शर्मा जी चिल्ला कर बोले "बलात्कार हुआ है मेरे बेटे का!!!! बलात्कार!!!" और रोते हुए वहां से चले गए।
यह बात hospital से police और police से media तक भी पँहुच गई। लोकल अखबार से यह बात स्वरूप के स्कूल के management को भी पता चली। स्कूल की शाख को बचाए रखने की जिम्मेदारी स्कूल वालों ने नारंग जी को सोंपी, कि वे कैसे भी कर के इस बात को रफा दफा करवाएँ, और स्कूल का नाम बदनाम ना होने पाए। अपनी नौकरी को बचाने के लालच मे नारंग जी भी जुट गए इस बात को आगे बङने से रोकने के लिए। शर्मा जी और उनके परिवार को बदनामी के डर को उनके मन में बैठा कर नारंग जी बङी ही आसानी से अपने काम मे सफल भी हो गए। नारंग जी की बातों में आकर शर्मा जी ने police में कोई complaint तो नहीं की लेकिन hospital report के मुताबिक ये एक रेप केस था, तो बिना स्वररूप के बयान के इस केस को बंद कर पाना ना तो नारंग जी के हाथ में था ना police के। लेकिन स्कूल वालों की तरफ से police को मिली मोटी रिश्वत ने इस केस ढीला जरूर कर दिया था।
अपने भाई की खबर पाकर आकाश भी सुंदर नगर आ गया था। और 7 -8 दिन बाद स्वरूप को भी hospital से discharge कर दिया गया था। शरीर के घावों को भरना फिर भी आसान होता है लेकिन मन के घावों को भरना बहुत मुश्किल। ये हादसा जितना बोलने और सुनने मे छोटा लग रहा है उससे कहीं कठीन है स्वरूप का उस हादसे के दर्द के साथ जीना
घरवाले सब स्वरूप के साथ हैं ताकि वो उस अनहोनी को भुलाकर वापस अपनी normal life की तरफ लौट सके लेकिन स्वरूप के लिए वो सब भुला पाना इतना आसान नहीं। सभी लोग धीरे धीरे अपनी रोज मर्रा की जिंदगी मे लौट रहेत थे, और इस घटना को भुलाने की कोशिश मे लगे थे। घर मे कोई भी उस रात के बारे मे बात ही नहीं करता था सब ये जताना चाहते हो मानो कि एसी कोई घटना हुई ही ना हो। स्वरूप तो पहले भी चुप ही रेहता था और वो अभी भी चुप था। लेकिन उसकी आँखो को देखकर साफ समझा जा सकता था कि कुछ आग सी लगी है उसके अंतर मन मे ही। अपने घर वालों का रवैया देख कर स्वरूप खुद को ही उस रात के लिए जिम्मेदार समझने लगा था। उसने सबके साथ उठना बैठना, खाना - खाना बंद कर दिया था और अकेले अपने कमरे मे चादर के अंदर सर कर के रोता रेहता और खुद को कोसता रेहता था।
लेकिन आकाश ये सब और ना देखा गया और उसने अपने मम्मी पापा से बात भी कि की वो अपने ही बेटे के साथ एसा कैसे कर सकते हैं, वो स्वरूप को उसके हाल पे कैसे छोङ सकते हैं , वो स्वरूप के गुनाहगारों को इतनी आसानी से कैसे जाने दे सकते हैं। लेकिन आकाश की किसी भी बात का असर शर्मा जी पर नही हुआ। वे स्वरूप के दुख से अंजान तो नहीं थे लेकिन स्वरूप के भविष्य की खातिर एसा कर रहे थे। शर्मा जी ने आकाश को वही सब बाते बताई जो नारंग जी ने उनके दिमाग मे भर दी थी, कि वे अगर इस बात को आगे बङाते हैं तो उनके परिवार की बदनामी तो होगी ही साथ साथ स्वरूप का जीवन कितना मुश्किलों से भर जाएगा। लेकिन आकाश शर्मा जी की एक बात नहीं सुनता और स्वरूप का हाथ पकङ उसे उसके कमरे से बाहर ले आता है और सबके सामने ही उसे याद करने को कहता है कि वो याद करे कि उस दिन कया हुया था, वो वहां कैसे पँहुचा और वो कौन लोग थे जिन्होने उसके साथ एसा किया। आकाश की बातें सुनकर स्वरूप सर झुका कर रोने लगता है, तो आकाश उसे समझाता है कि उसने कोई गलत काम नही किया है तो नीचे देखने की या रोने की उसे कोई जरूरत नही है। स्वरूप थोङी हिम्मत जुटा कर बताता है कि उसे किसी लङके ने lab मे बुलाया और जब वो वहां गया तो वहां पेहले से ही 3 लङके और थे वे लोग अंधेरे मे थे इसलिए उसने उन लोगों का चेहरा नहीं देख पाया और फिर जो लङका उसे वहां लेकर गया था उसने स्वरूप का मुँह एक कपङे से दबा दिया और वो बेहोश हो गया और उसके बाद उसे कुछ याद नहीं। आकाश कुछ और पूछता उससे पेहले ही शर्मा जी ने उसे डांट कर चुप करा दिया और स्वरूप को वापस उसके कमरे मे जाने को कहा। उसी रात आकाश को भी वापस उसके hostel भेज दिया गया। Police ने भी स्वरूप का बयान लेना जरूरी नहीं समझा और बाकी की फाईलों की तरह ये फाईल भी दबा दी गई। बाकी सभी तो पेहले से ही normal life जी रहे थे और स्वरूप को भी एसा ही करने पर मजबूर होना पङा। लेकिन स्वरूप को देखकर साफ पता चलता था कि मानो उसके अदंर का एक हिस्सा पूरी तरह खत्म हो चुका है। एक ओर बलात्कार का शिकार होने का दर्द और दूसरी ओर अपने ही घर मे अंजान होने की तकलीफ। लेकिन फिर भी जैसे तैसे खुद को संभाले एक बार फिर स्वरूप चल दिया था स्कूल की ओर। आज स्वरूप पूरे 2 महीने बाद अपने घर से बाहर निकला था। उसके लिए घर से बाहर आ कर लोगों से नजरें मिलाना बिल्कुल आसान नहीं था, लेकिन अब तक वो अपने घर में भी तो नजरे झुकाए ही रेह रहा था।
सकूल मे सब स्वरूप को एक बुरी नजर से देख रहे थे, अब से पेहले स्वरूप को एक मजाक की नजर से देखा जाता था, अब से पहले स्वरूप को देख कर हँसा जाता था, उसका मजाक उङाया जाता था, लेकिन आज की नजरों में एक घिन थी। आज सब स्वरूप को इतनी बुरी नजर से देख रहे थे, एसे तो शायद किसी वैश्या को भी नही देखा होगा किसी ने। वैश्या तो अपना जिस्म बेचती है, लेकिन स्वरूप के जिस्म को तो नोंचा और काटा गया था। फिर भी स्वरूप को एसे देखा जा रहा था कि मानो वो सारी दुनिया की गन्दगी हो और अगर किसी ने उसे छू लिया तो वो भी गंदा हो जाएगा। इसका कारण थी वो अफवाहें जो सारे स्कूल मे फैल चुकी थी। किसी को सच्चाई का तो पता नही था, इसलिए अपने मन मुताबिक सबकी अपनी एक अलग ही कहानी थी। किसी की कहानी मे स्वरूप ने बाहर से लङकों को बुला कर रंग रलियाँ मनाई थी, और किसी के मुताबिक कुछ हिजङे उसे अपने साथ ले जाने के लिए आए थे और स्वरूप के मना करने पर उसे physics lab मे मार पीट के फैंक गऐ। किसी की कहानी मे तो स्वरूप नारंग सर के साथ जबरदस्ती करना चाहता था तो उन्होंने स्वरूप को मार पीट दिया था। इस तरह की और भी ना जाने क्या क्या कई सारी कहानियाँ बङे चाव के साथ सारे स्कूल मे सुनी और सुनाई गई थी लेकिन किसी ने भी स्वरूप की तरफ एक दिलासा भरा हाथ बङाना जरूरी नही समझा था।
स्कूल और घर दोनो जगह स्वरूप के मन का हाल समझने वाला कोई नहीं था। स्वरूप स्कूल मे सबसे पीछे वाली बैंच पर अकेला बैठा करता था, और घर मे अपने कमरे मे भी अकेला ही रेहता था। "रूपा" से मिलना बिल्कुल बंद कर दिया था। छत का वो कमरा ही एक एसी जगह थी जहां स्वरूप खुल के अपने मन मुताबिक रेहता था, लेकिन अब वो कमरा एक दम खाली हो गया था। रूपा का तो मानो स्वरूप ने अस्तित्व ही खत्म कर दिया था। उसे एसा भी लगने लगा था कि उसके साथ जो कुछ भी हुआ है वो रूपा की वजह से ही हुआ है। उसे वैसे तो उस रात की घटना याद नहीं थी लेकिन होश मे आने के बाद का दर्द और घरवालों का ये बरताव उसे वो हादसा भूलने नही दे रहा था। कभी कभी तो सपने मे भी स्वरूप को वही लङका दिखाई देता था और कहता था " physics lab मे चलो" और घबरा कर उसकी आँख खुल जाती थी, और सारी रात रोते हुए जाती थी।
एक रोज स्कूल जाने के लिए स्वरूप जब घर से निकला, तो उसे लगा की कोई उसका पीछा कर रहा है, उसने जब पीछे मुङ कर देखा तो वहां कोई नहीं था। उसका वहम होगा शायद। स्कूल पहुँचा तो वही हाल था लोगो का जो अक्सर रहता था। अपने आस पास की छोटी मानसिकता के लोगों की वजह से ही शायद स्वरूप मायूस रहा करता था। उसकी इस हालत को नारंग जी अच्छे से समझ सकते थे, लेकिन अपनी लाचारी की वजह से वे भी स्वरूप के लिए कुछ कर पाने मे असमर्थ थे। लेकिन नारंग जी से आखिर कब तक स्वरूप की मायूसी देखी जाती, तो एक दिन lunch मे जब सभी अपने lunch box और खेल मे व्यस्त थे, नारंग जी स्वरूप को सहानूभूती और उसका मन हल्का करने के इरादे से उसे अपने साथ physics lab मे ले आए। पेहले तो स्वरूप उनके साथ आने मे झिझक रहा था, लेकिन फिर नारंग जी के जोर देने पर आ गया। नारंग जी स्वरूप को अपने साथ लाए तो उसका मन हल्का करने के लिए ही थे लेकिन वे उस हादसे के बारे में बात कर के स्वरूप का मन दुखा ही कर रहे थे। लेकिन स्वरूप उनकी बात काट अपनी ही बात करने लगा। वो नारंग जी से पूछने लगा कि उन्होंने उसके साथ एसा क्यों किया, उन्होंने स्वरूप का साथ क्यों छोङ दिया। नारंग जी को उसने ये भी बताया कि वो मन ही मन उन्हें चाहने लगा है और बाकी सब लोगों से ज्यादा उसे नारंग जी की बेरुखी ही दुख पहँचा रही है। स्वरूप ने ये भी बताया कि उस दिन वो उनको ही डूंडता हुआ यहां lab में आया था। यह सब सुन नारंग जी से रहा नही गया और उन्होंने स्वरूप को गले लगा लिया। स्वरूप को गले लगाते ही नारंग जी के मन मे दबी भावनाओं ने सैलाब का रूप ले लिया और अपनी भावनाओं में बेहते हुए वे सब भूल गए कि वे कहां हैं और क्या कर रहे हैं और वे और जोर से स्वरूप को अपनी बाहों मे कसने लगे। मानों वे खुद को स्वरूप मे और स्वरूप को खुद मे समा लेना चाहते हों। तभी वहां किसी के होने की आहट हुई और नारंग जी ने तुरंत स्वरूप को खुद से दूर झटक दिया और स्वरूप को लताङते हुए कहा कि उसके दिमाग मे जो भी ये सब भावनाएँ चल रही हैं ये सब गलत है और उसके मन की गंदगी है। उस दिन जो कुछ भी स्वरूप के साथ हुआ वो इन्हीं सब भावनाओं का परिणाम है। नारंग जी ने स्वरूप को खूब जली कटी बातें सुनाई , वे ये सब इस मंशा से कर रहे थे ताकि ये सब सुनने के बाद स्वरूप को उनसे नफरत हो जाए और वो जो कुछ भी नारंग जी के लिए महसूस कर रहा है वो एसा महसूस ना करे। शायद एसा करना नारंग जी के घर परिवार को उनकी स्वरूप के लिए बङती हुई भावनाओं की आग से बचा सकता था। ये सब करके वे स्वरूप का तो पता नही लेकिन अपनी भलाई के बारे मे तो जरूर सोच रहे थे। स्वरूप भी अपनी आँखो मे आँसू भरे, ये सब सुन वहां से लौट आया और उसने फिर कभी नारंग जी की ओर आँख उठा कर नहीं देखा। स्वरूप का जीवन ठीक उस फूल की तरह हो गया था जिसे कोई अपने मन होने पर सूंघ लेता हो और मन होने पर उसकी पंखुङियों को एक एक कर तोङ देता हो।
समय बीतने के साथ बङे दिनों के इंतजार के बाद शर्मा परिवार में खुशीयों ने दस्तक दी थी। सुलेखा जी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया था और इस बार निर्मला जी ने किसी की सुने बिना नए मेहमान का नाम विकास रख ही दिया था। सारे घर में खुशियां ही खुशियां छा गई थीं। लेकिन कल का दिन क्या लेकर आएगा ये कहा किसी को पता होता है। अपने घर मे इतने दुखों के बाद आई इस खुशी को किसी की नज़र ना लगे, इसलिए शांती देवी जी ने मंदिर मे पाठ रख वाया था तो आज सारा दिन वे मंदिर मे ही बिताने वाली थी। शर्मा जी दुकान के लिए निकल रहे थे, आज जल्दी मे थे क्योंकी दुकान से पेहले hospital मे विकास से मिलने भी तो जाना था। सुमेर जी hospital मे ही निर्मला जी का इतजार कर रहे थे, आखिर चाय नाश्ता जो लाने वाली थी उनकी भाभी। वहीं घर पर निमर्ला जी स्वरूप के लिए खाना बना, सुलेखा जी के लिए दलिया और सुमेर जी के लिए नाश्ता डब्बे मे लेकर hospital जा रहीं थी। अभी सुलेखा जी की छुट्टी होने मे 3 दिन बाकी थे। आकाश भी बङा खुश था ये खबर सुन और आना भी चाहता था सुंदर नगर लेकिन अपने भाई के लिए कुछ भी ना कर पाने के एहसास ने उसे आने नही दिया। स्वरूप घर पर अकेला रह गया था। आज उसे हल्कि सी हरारत लग रही थी तो वो आज घर पर ही आराम कर रहा था। कुछ समय बाद बाहर के कमरे की खिङकी से कुछ आवाज आई, स्वरूप अपने चादर से निकल कर जब बाहर देखने आया तो बाहर का नजारा देख उसके होश उङ गए।
घर के अंदर खिङकी पर वही लङका खङा था जो उसे उस दिन physics lab मे ले गया था और खिङकी से 2 और लङकों को अंदर खींच रहा था। स्वरूप को तो जैसे समझ ही नहीं आ रहा था की ये क्या हो रहा है। तभी वो लङका स्वरूप की ओर मुङा और स्वरूप को देख कर मुस्कुरा कर पूछा, कि वो स्वरूप को याद तो है ना और बाकी दोनो लङकों को देख कर आँख मारी और तीनो हँसने लगे। स्वरूप उन्हे देखकर घबरा गया और उनहे घर से जाने को बोला। तभी दूसरा लङका बोला की वो यहां से जाने नहीं, यहां हमेशा के लिए घर बसाने आए हैं और वे तीनो फिर से हँसने लगे। पहले वाले लङके ने फिर बाकी दोनो लङको के बारे मे स्वरूप को बताया कि स्वरूप उन्हे देख कर घबराए नहीं, ये दोनों भी उस रात स्वरूप के साथ मजे कर चुके हैं। उसने चोथे लङके के बारे मे भी बताया कि वो आज नही आ पाया लेकिन कल आएगा और अपने साथ कुछ और नए दोस्त लाएगा। स्वरूप ये सब सुनकर और ज्यादा डर गया और वो फोन की तरफ भागा, कि वो अपने पापा को फोन कर सके लेकिन उन लङको ने स्वरूप को एसा नही करने दिया और स्वरूप को वही जमीन पर पटक दिया। तीसरे लङके ने स्वरूप के बाल पकङ कर उसके सर को उठाया और उसके कानों मे फुसफुसाया, कि कई दिनों से उनकी नजर स्वरूप के ऊपर है, वे लोग स्वरूप के ऊपर नजर रखे हुए हैं, घर मे भी और स्कूल मे भी और उन्हे पता था कि आज स्वरूप घर पर अकेला है। घर ही नही उन्होंने स्कूल मे भी एक जगह का जुगाङ कर लिया है जहां वे जब चाहे स्वरूप के साथ मजे कर सकते हैं। और वे तीनों लङके फिर से हँसने लगे। वे लोग इतने सहज थे मानो स्वरूप पे उनका हक हो। स्वरूप को उन लोगों ने खरीद लिया हो, मानो स्वरूप उनके लिए बस एक खिलौना हो। स्वरूप ने हिम्मत कर अपने घर वालो को और police को सब बताने की धमकी दी। स्वरूप की ये बात सुनकर वे तीनो बङी जोर जोर से हँसने लगे और बोले कि अगर police उनका कुछ बिगाङ पाती तो आज वो जेल मे होते और रही बात घरवालो की तो वो लोग आज भी वही करेगे जो पेहले किया था। तभी पेहले वाले लङके ने स्वरूप को जमीन से उठाते हुए कहा " डरो नही इस बार हम आराम से करेगे और तुम्हे बिल्कुल भी परेशानी नही होगी।" और एक बार फिर स्वरूप के साथ दरिंदगी का वही खेल खेला गया लेकिन इस बार स्वरूप अपने पूरे होश मे था। उसके शरीर को बारी बारो से तीनों ने नोचा काटा और बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को बङे मजे के साथ अंजाम दिया । स्वरूप चिल्लाता रहा, छटपटाता रहा, खुद को छुङाने की कोशिश करता रहा, लेकिन उन लङको की जकङ से ना तो वो खुद को छुङा पाया और उनके द्वारा मुँह बंद किए जाने से ना उसकी चीखे किसी के कानो तक पहुँच पायी। पेहले की तरह स्वरूप के शरीर पर इतनी चोटे तो नही आई थी, लेकिन उसके मन की चोट पेहले से गेहरी थी। उसकी जांघों पर खून भी बह रहा था, उसके होटों को भी काटा गया था और उसके बदन को इतनी बुरी तरह से पकङा और जकङा गया था की कई जगह नीले निशान आसानी से देखे जा सकते थे। बदन दर्द के कारण स्वरूप हिल भी नहीं पा रहा था। तीनों लङको ने कपङे पेहने और स्वरूप को बोला की कल और भी लङके आएगे तो वो तैयार रहे, और अगर वो आराम से बिना छटपाए ये सब कराएगा तो उसे एक खरोंच भी नही आएगी और उसे भी मजा आएगा और धीरे धीरे उसे इस सब की आदत पङ जाएगी। इतना कह कर वे लोग स्वरूप को उसी हाल मे छोङ वहां से चले गए।
दर्द वो ज्यादा भयानक नहीं होता जो शरीर में होता है, चोट वो ज्यादा दर्दनाक नही होती जो जिस्म पर लगती है। लेकिन मन पर लगी चोट का दर्द कितना असहनीय और भयावह हो सकता है, ये उस व्यक्ति के अलावा कोई और महसूस नही कर सकता, जिसके मन पर एक गेहरी चोट लगी हो। स्वरूप अभी अपने पेहले हादसे से ही नही उभर पाया था कि एक और हादसे ने उसे घेर लिया था। वो धीरे धीरे जमीन पर ही खिसक खिसक कर फोन के पास जाता है और अपने पापा का नम्बर भी dail करता है, वो अपने पापा को बताना चाहता था किउसके साथ क्या हुआ है और किन लोगों ने उसके साथ ये घिनौना काम किया है, लेकिन तभी वो रुक जाता है और उन लङकों की बातें उसके दिमाग मे घूमने लगती कि ना तो police कुछ कर पाएगी और ना ही उसके घरवाले और उसे अपने घरवालो का बर्ताव भी याद आता है कि उसके घरवालो ने पेहले उसके साथ क्या किया था। उसे उन लङको की बातें सही लगने लगती हैं। कल भी उसके साथ यही होना है और शायद आगे भी उसके साथ एसा ही होता रहेगा, यही सोच कर स्वरूप को खुद से ही घिन आने लगती है और वो हताश, निराश हो कर लङखङाता हुआ किचिन मे जाता है और वहां रखे चाकू से अपने दोनों हाथों की नसे काट लेता है। वो अपने आखिरी समय मे अपने घरवालो को याद करता है और याद करता है "रूपा" को और सोचता है की अगर वो लङकी होता तो भी क्या उसके साथ एसा ही होता या रूपा के कारण ही उसके साथ एसा हुआ है और धीरे धीरे कभी ना जागने वाली नींद के आगोश में स्वरूप हमेशा के लिए सो जाता है।
आज स्वरूप के नाम से इंसानियत को हारते देखा था मैंने। क्या गलती थी स्वरूप की, क्यों हुआ उसके साथ एसा, क्यों उन लङकों ने स्वरूप को अपना हक समझा, क्या वो इंसान नहीं था, क्या उसे अपने मन मुताबिक जीने का हक नही था, क्या वो अपने पंसद के व्यक्ति से प्यार नही कर सकता था, क्या रूपा बनना ही इन सब का कारण था। एसे ना जाने कितने सवाल है जिनके जवाब शायद हैं तो सबके पास लेकिन पता नही वो कौन सी पट्टी है जो लोगों ने अपनी आँखो पर चङा रखी है, और असलियत देखना ही नही चाहते। अगर शर्मा जी और उनके परिवार ने स्वरूप को समझा होता तो शायद उसे रूपा बनने की जरूरत नही पङती। जो सुकून उसे छत के उस कमरे मे मिलता था शायद वो ही सुकून उसे अपने सारे घर मे और घरवालो के साथ भी मिलता। अगर स्वरूप के घरवाले उसका साथ देते तो शायद स्कूल management के दबाव के चलते स्वरूप को इंसाफ मिलने मे थोङी कठिनाई होती लेकिन उन लङकों की हिम्मत ना होती फिरसे वही हरकत करने की।
Gay, transgender होना कोई हमारा निर्णय नहीं है, एसा होना हमने नहीं चुना, अगर हमे चुनने का हक होता तो हम भी अपने लिए एक सुकून भरी जिन्दगी चुनते, यूं घुट घुट के जीना किसे पंसद है। लेकिन हम एसे ही हैं, हम एसे ही पैदा होते हैं, ये कोई बीमारी नही है जिसका ईलाज डूंडा जा सके। आज भी हमे और sex worker को एक ही नजर से देखा जाता है और यही मानसिकता थी उन लङकों की जो स्वरूप को एक sex doll से ज्यादा कुछ नहीं समझ रहे थे। इसी छोटी सोच की शिकार ना जाने कितनी रूपा हो चुकी हैं और शायद आगे भी होती ही रहेंगी।इस मानसिकता को बदलने का, समाज मे सुधार लाने का और रूपा को इस खुले आसमान के नीचे एक सुंदर जीवन जीता देखने का कोई तरीका अगर आप के पास हो तो मुझे जरूर बताईएगा।
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Lots of Love
Yuvraaj❤
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