Wednesday, July 25, 2018

""रूपा"" part - 1

Hello friends...
   Here i am posting my another narration  ""रूपा"" this story has different kind of writing. Its called persuasive writing in this type you doesn't find any dialogue, some time it's mine perspective or characters perspective. Hope you like this story as much as my previous one.


     साङी, लेहंगा, चुनरी, जेवर और लाली का बहुत शौक था हमारी रूपा को। दोपहर में जब स्कूल  से  लौटकर  आने  का  समय  होता  तो अमूमन  घर  में  कोई  नहीं होता  था और जो होता  भी  था  वो  अपनी  दोपहर  की नींद  ले रहा  होता  था। रूपा  स्कूल  से आकर  अपना स्कूल  बैग  एक कोने मे फेंक , एक थाली  मेें  खाना  परोस ले आती थी  छत के कोने में  बने एक कमरे में। कमरे का दरवाजा  बंद  कर खो जाती थी  अपनी सपनों  की दुनियाँ  मेें । जहां  बस वो है और उसकी मन की दुनिया  के  किरदार, उनके साथ ही रूपा खाना खाती और जी भर कर खेलती और अपना दोपहर  का सारा  समय उनके साथ ही बिताती । रूपा खाना खा कर झूठे बरतन कमरे के एक कोने मे रख अलमारी से निकालती थी अपने खेल का सामान। इस सामान मे होता था, माँ  की पुरानी  साङी, मेले  से लाए हुए हार और मालाएँ और माँ के श्रंगार  का पुराना सामान। साङी पहन,  लाली लगा और जेवर पहन सज संवर कर हर दिन रूपा तैयार  हो जाती थी और हर रोज उसके मन के अनुसार नए नए  किरदार भी आ जाते थे उसके सामने और वो जो चाहती वो खेला करती थी उनके साथ हर दोपहर। ये खेल शाम को माँ की आवाज के साथ ही खत्म होता था।

      माँ - "चल बेटा आजा नीचे, मैंने  चाय रख दी है बनने  और आते हुए कल वाले बरतन भी नीचे ले आना। कितनी बार कहा है तुझे की खाना नीचे ही खा कर जाया कर लेकिन  सुननी  ही नही है  किसी  की भी।"

     ये रूपा और उसकी माँ  की रोज की दिनचर्या  का हिस्सा  था। आइए  मैं  आपको मिलता  हूँ  इस कहानी के किरदारों  से। ये कहानी है हिमाचल प्रदेश के  मंडी  जिले के एक छोटे से कस्बे "सुंदर नगर" की। ये कस्बा अपने नाम की ही तरह बहुत  सुंदर  और शांत  है। यहां  का एक प्रतिष्ठित  परिवार है शर्मा परिवार। इस परिवार  के मुखिया  हैं  पं. केशव दयाल शर्मा जी। शर्मा  जी की सुंदर नगर के चंगर कॉलोनी  में  चश्मे  की दुकान  है और न्यू कॉलोनी  मे अभी 2 साल पहले ही नया घर बनवाया है। शर्मा  जी की एक joint family है। उनके परिवार मे उनकी माँ शांती देवी, उनकी पत्नी  निर्मला, उनके दो बेटे आकाश और स्वरूप, उनका छोटा भाई  सुमेर दयाल और छोटे भाई  की 3 माह गर्भवती पत्नी  सुलेखा है। सभी लोग एक साथ ही नए घर मे रहते हैं  जो की सुमेर जी की शादी के वक्त  बनवाया गया था। शर्मा  जी के पिताजी  की मृत्यु  आज से 16 साल पहले ही हो गई  थी और उसी साल शर्मा  जी के छोटे बेटे का जन्म  हुआ था, इसलिए  निर्मला जी के मन का नाम "विकास" ना रख कर छोटे बेटे को शर्मा  जी के पिता का नाम स्वरूप दयाल शर्मा  दिया  गया । आकाश  अभी 18 साल का है और मंडी के एक प्रतिष्ठित  काॅलेज  से B. Sc. कर रहा है और काॅलेज के hostel में  ही रेहता है। स्वरूप ने अभी अभी 11वीं कक्षा पास की है और 12वीं कक्षा मे दाखिला लिया  है। दोनो भाईयों  की पङाई में  जमीन आसमान का अंतर है, जहाँ  आकाश एक होनहार विद्यार्थी  है और 12वीं में  अच्छे अंक लाकर मंडी के काॅलेज मे scholarship ले रहा है वहीं  स्वरूप जैसे तैसे पास हो ही जाता है।

        आस पङोस वाले, स्कूल के शिक्षक  और यहां  तक की घरवाले भी स्वरूप को आकाश के जैसे पङने के लिए कई बातें  सुनाते हैँ  जो की स्वरूप को बिल्कुल  भी पसंद नहीं  आतीं  लेकिन  बावजूद  इसके दोनों  भाइयों  मे कोई मनमुटाव  नहीं  है। दोनों  भाई आपस में  बेहद  घुले मिले हैं । सुमेर जी शर्मा  जी के साथ दुकान में  हाथ बटाते हैं । इन दोनों  भाइयों  के बीच भी अब तक तो कोई मनमुटाव  नहीं  है लेकिन सुलेखा  जी के घर आगमन के बाद घनिष्ठता  भी उतनी नही  है जितनी पहले हुआ करती थी। शांती देवी जी का सारा समय भगवान को याद करते ही बीतता है और अब तो वो बस स्वर्गवास  सिधारने की ही कामना किया  करती हैं । निर्मला जी कहने को तो घर की अन्नपूर्णा  और लक्ष्मी  हैं लेकिन उनकी हालत एक नौकर जैसी ही है। उनकी सुबह 4 बजे ही हो जाती है। घर के सारे काम, सासू माँ की सेवा, पति, देवर और स्वरूप के लिए नाश्ता और दोपहर के खाने का डिब्बा  तैयार करना, फिर गर्भवती  देवरानी के नाज़ नखरे उठाकर दोपहर की झपकी, शाम का चाय और नाश्ता,  फिर रात के खाने की तैयारी करना, सबको खाना खिलाना फिर रात को 10 बजे बाहर दरवाजे का ताला लगाकर ही उनका दिन खत्म होता है।


        आप भी  सोच रहे होंगे  की कहानी के सभी किरदारों  से आपका परिचय करवा दिया  लेकिन  इन सभी मे "रूपा" हमारी कहानी की मुख्य  किरदार, वो तो नजर ही नही आई। जी हाँ  आप एक दम ठीक सोच रहे हैं, रूपा कोई किरदार नही बल्कि  एक परिकल्पना  है हमारे स्वरूप  की। स्वरूप  ही वो छत के कोने वाले कमरे मे रूपा है और बाहर की दुनियाँ  मे स्वरूप दयाल शर्मा। स्वरूप  को लडकियों  की तरह सज सवर के खेलने का बङा शौक है। अब वो अपना ये खेल किसी को बता भी तो नहीं  सकता था, वरना उसका मजाक उङाया जाता और कही इसकी भनक भी शर्मा  जी को लग जाती तो वो उसे मारते पीटते। इसलिए वो अकेले ही ये खेल खेला करता था। अकेले रहने के कारण, आस पङोस मे हम उम्र  बच्चे होने के बावजूद भी स्वरूप का कोई दोस्त  नही था। उसकी चाल ढाल भी लडकियों  जैसी थी तो सब बच्चे उसका मजाक उङाते थे और उसे साथ मे नही खिलाते थे। एसा ही कुछ हाल था स्कूल मे भी। वो जैसे ही स्कूल  मे घुसता तो सभी उसकी चाल और हाव भाव का मजाक उङाते, काना फूंसी करते। लङकों के साथ साथ लङकियाँ भी स्वरूप  को अपने पास बैठाना भी पसंद नहीं  करतीं  थीं । इसलिए स्कूल  मे भी उसका कोई दोस्त नही था। पहले तो वो आकाश के साथ ही स्कूल  आता जाता था लेकिन  पिछले  साल से वो एक दम अकेला पङ गया  था। स्कूल  मे भी वो सबसे पीछे वाली बैंच पर अकेला बैठता था और सारे समय बस यही सोचता रहता था की कहीं  कोई उसके बारे मे तो नही बात कर रहा, कही कोई उसे देख कर तो नही हँस रहा। इन्ही सब बातो मे उलझ कर वो पङाई पर ध्यान  नहीं  दे पाता था। स्कूल  के सारे शिक्षक स्वरूप  से परेशान  थे और हर PTM मे बस एक ही complaint होती थी की स्वरूप  कक्षा मे ध्यान  ही नही देता है। इस बात से  परेशान होकर और आकाश के कहने पर शर्मा  जी ने एक tution teacher लगवा दिया । पहले तो ये काम आकाश का ही था, उसकी ही मेहनत थी की स्वरूप  11वीं कक्षा पास कर पाया था।

       अशोक नारंग जी को ये जिम्मेदारी सोंपी गई थी कि वे कैसे भी कर के स्वरूप को 12वीं पास करा दें। नारंग जी एक कश्मीरी पंडित थे, जिनके बाप दादा कश्मीर से पलायन के बाद हिमाचल मे बस गए थे। नारंग जी 32 साल के थे जो अपनी बीवी और 2 बच्चों के साथ सुंदर नगर मे रेहते थे और स्वरूप के ही स्कूल मे physics के शिक्षक थे। शर्मा जी नारंग जी को जानते थे, नारंग जी ने ही आकाश को भी पङाया था। इसलिए उन्हें चुना गया था स्वरूप की नैया पार लगाने के लिए। वहीं स्वरूप को ये tution class बिल्कुल भी पसंद नही आ रही थी। एक तो  ये science side भी उसके पापा ने बङे भाई की देखा देखी जबरन दिलवा दी थी, जबकी स्वरूप को science मे बिल्कुल भी दिलचस्पी नही थी।

       अब स्वरूप की दिनचर्या मे थोङी सी तब्दीली आ गई थी। जहाँ वो अपनी शामें TV के सामने बिताता था तो अब TV की जगह ले ली थी नारंग जी ने। नारंग जी हर शाम 6 बजे घर आ जाते थे,एक कप चाय और बिस्कुट के साथ स्वरूप को पङाने की कोशिश की जाती थी। इस tution की वजह से स्वरूप के ऊपर पङाई का बोझ बङने लगा था। पेहले तो वो अपना स्कूल का home work रात को खाना खाने के बाद कर लिया करता था लेकिन अब वो जगह tution के home work ने ले ली थी, और स्कूल का home work उसे स्कूल से आने के बाद ही करना पङता था। जिस वजह से स्वरूप की मुलाकात "रूपा" से धीरे धीरे कम हो गई थी। अपने मन का काम ना कर पाने के कारण स्वरूप चिङचिङा सा रेहने लगा था। किसी से सही से बात भी नही करता था। सबको लगा की पङाई के बोझ की वजह से उसमे ये बदलाव आ रहे हैं। लेकिन इसकी असल वजह तो कुछ और ही थी जो सबकी सोच के परे थी। इस बदलाव का कारण था स्वरूप की शख्सियत। अगर आप किसी को दिखावा करने को कहे, तो वो कब तक दिखावा कर पाएगा। आखिर कभी ना कभी तो वो अपनी असलियत दिखाएगा ही ना। दोपहर के समय, छत के उस कमरे मे जब स्वरूप रूपा का रूप लेता था, वो थी उसकी असलियत। लङको की तरह कपङे पेहनना, लङको की तरह चलने और बोलने की कोशिश करना ये सब तो महज एक दिखावा था। अब जब स्वरूप को अपनी असलियत मे रहने का मौका कम मिल पा रहा था, तो स्वरूप झुंझलाने लगा था। मानो उसे कैद करके रखा जा रहा हो।

       ज्यादातर अकेला रहने के कारण अभी स्वरूप को दुनियादारी की समझ नही थी। अभी तक तो उसने खुद से ये सवाल तक नही किया था कि ये लङकियों की तरह रेहना, सजना सवंरना उसे क्यों इतना पसंद है।उस बंद कमरे मे एसा क्या है जो वहाँ जैसा सुकून उसे कहीं और नहीं मिलता। अभी तो वो इस सब को बस एक खेल ही समझ रहा था, लेकिन ये खेल धीरे धीरे उसके दिल और दिमाग पर हावी होता जा रहा था। लेकिन स्वरूप इस बात से बिल्कुल अंजान था कि जिसे वो महज एक खेल समझ रहा है असल  में वही उसकी सच्चाई है, वही उसकी असलियत है। वो लङके के शरीर मे फंसी एक लङकी है, उसकी आत्मा एक लङकी की ही है और इस सच से अभी तो वो अंजान है लेकिन जब स्वरूप का सामना इस सच से होगा तो वो मंजर शायद बहुत दर्दनाक होगा। और कोई है भी तो नहीं स्वरूप के पास उसके साथ जो उसको समझ सके और सूझ बूझ के साथ उसका सामना उसीकी सच्चाई से करा सके।

       बस यूहीं कुछ दिन और कुछ महीने बीतते गए और इस दौङ भाग की भी अब स्वरूप को आदत सी हो गई थी। अब स्वरूप रूपा से भी कभी कभार ही मिलता था लेकिन इस बात का अब उसे बुरा भी नहीं लगता था। इसका भी कुछ अलग ही कारण था। इसका कारण था नारंग जी का साथ। नारंग जी भी अब तक स्वरूप को अच्छे से समझ चुके थे, और वे उसके अंतर मन को भी काफी हद तक पङने मे कामयाब हो चुके थे। वे स्वरूप के उस पेहलू को भी समझ रहे थे, जो की सबसे छुपा हुआ था। नारंग जी अभी तो बस अनुमान ही लगा रहे थे कि स्वरूप के बदले हाव भाव ने उनके अनुमान को सही साबित कर दिआ। वो समझ चुके थे कि स्वरूप उनकी तरफ आकर्षित हो रहा है। नारंग जी स्वरूप की असलियत से रूबरू इस लिए हो पाए थे क्योंकी वे स्वरूप मे अपने बचपन को देख सकते थे।

        आज से 20 साल पहले जब नारंग जी महज 12 वर्ष के थे, उन्होंने ये बात जान ली थी कि वे एक समलैंगिक हैं। वे अपने बचपन मे वो सब सह चुके थे जो आज स्वरूप सह रहा था। समलैंगिकता को कल भी एक बुरी नजर से देखा जाता था और आज भी। नारंग जी कम उम्र मे ही समझ गए थे की समलैंगिकता एक अभिषाप है और उन्होंने अपनी भावनाओं को अपने मन मे ही छुपा लिया। और आज वो शादीशुदा और दो बच्चों के पिता हैं। लेकिन स्वरूप को जानने के बाद उनका बरताव भी स्वरूप के लिए बदल गया था। वे स्वरूप से पहले से ज्यादा प्यार से पेश आने लगे थे और एक दोस्त की तरह व्यवहार करने लगे थे। इस तरिके का अपनापन स्वरूप ने अपने घरवालों के अलावा किसी से मेहसूस नहीं किया था। यही एक कारण था कि स्वरूप नारंग जी की ओर आकर्षित होता जा रहा था।

       अब तो स्वरूप स्कूल के बाद अपने सारे काम निपटा कर शाम होने का इंतजा करता था। नहा धोकर, पाउडर लगा कर, अच्छे से बाल बना कर नारंग जी के सामने जाया करता था। tution मे भी पङाई से ज्यादा उसका ध्यान नारंग जी के ऊपर ही होता था। वहीं नारंग जी को ये खुद पर ध्यान दिए जाने का एहसास एक अलग ही स्फूर्ती दिए जा रहा था। उनकी बरसों से दबी भावनाओं ने फिर से अंगङाईयाँ लेना शुरू कर दी थी। स्वरूप अभी छोटा है, नासमझ है और उनका विद्यार्थी है, इन सभी बातों के परे वे भी स्वरूप की ओर बहे चले जा रहे थे और वे चाह कर भी खुद को नही रोक पा रहे थे। धीरे धीरे उनके अंदर दबी ये भावनाएँ हवस का रूप लेती जा रही थी। अब तो वे हर रात स्वरूप के बारे मे सोच कर हस्थमैथून करने लगे थे। और वहीं स्वरूप भी अपने इस नए एहसास के भाव में खोता जा रहा था।

      लेकिन नारंग जी को इस एहसास के साथ समाज का खयाल भी था। इसलिए नारंग जी का स्वरूप के साथ व्यवहार घर मे कुछ और, और स्कूल मे कुछ और होता था। जब नारंग जी घर पर होते थे, तो बहुत ही खुशमिज़ाज रेहते थे, स्वरूप से हँसी मजाक भी किया करते थे। लेकिन स्कूल मे तो वे स्वरूप की तरफ देखते भी नहीं थे। कुछ समय बाद स्वरूप को भी ये अंतर समझ आने लगा था और वो स्कूल में कई तरह की कोशिशें करने लगा जिस से वो स्कूल मे भी नारंग जी का ध्यान अपनी ओर खींच सके। और इन सभी कोशिशों का परिणाम ये निकला कि जहाँ स्कूल के बच्चे अभी तक स्वरूप को उसकी चाल ढाल और उसके हाव भाव के लिए चिङाते थे वहीं अब नारंग जी के नाम से भी उसका मजाक बनाया जाने लगा था। मजाक के नाम पर स्वरूप का नाम नारंग जी के साथ जोङा जाने लगा था। पर ये उङाया मजाक स्वरूप को बिल्कुल भी बुरा नही लग रहा था बल्कि नारंग जी के साथ नाम जोङे जाने से उसे एक अलग सी अनुभूती हो रही थी जो दुख के वजाए उसे खुशी का अनुभव करा रही थी। धीरे धीरे ये मजाक सारे स्कूल मे जंगल की आग की तरह फैलने लगा और इसकी खबर नारंग जी को भी लग गई। अपना नाम खराब होता देख उन्होंने अपनी बङती भावनाओं को काबू में किया और स्वरूप से दूरी बनाए रखने के लिए उन्होंने tution देना भी बंद कर दिया। ये समय तो स्वरूप के ऊपर मानों पहाङ बन कर टूटने लगा था, स्कूल में ताने और मजाक और घर मे अकेला पन। इन सब से स्वरूप बहुत परेशान रेहने लगा, और उसे कहीं अपनापन दिखा तो बस "रूपा" के पास। स्वरूप फिर से अपना समय रूपा बनकर बिताने लगा, और इस बार एक और नया किरदार जुङ गया था उसके खेल में, वो थे नारंग जी। रुपा बनकर वो नारंग जी से अपने मन की हर वो बात कह सकता था जो असल दुनियाँ मे वो कभी ना कह पाए। रूपा ने तो नारंग जी को अपना जीवनसाथी तक मान लिया था। छत के उस कोने वाले कमरे में स्वरूप रूपा बनकर अपने मन के किरदार नारंग जी के साथ ठीक वैसे ही रेहता था जैसे उसने अपने मम्मी पापा और चाचा चाची को देखा था।

    फिर एक दिन शर्मा जी ने नारंग जी को घर बुलाया स्वरूप का tution बंद करने का कारण पूछने के लिए, और नारंग जी ने अपने घर की बङती जिम्मेदारियों का बहाना बना दिया। चाय नाश्ते के बाद नारंग जी जाने लगे तो निर्मला जी ने उन्हें रोका और स्वरूप से मिलने छत वाले कमरे मे भेज दिया इस आस के साथ की शायद स्वरूप की उदासी थोङी कम हो जाए। निर्मला जी ने नारंग जी को बताया कि जबसे उन्होंने tution देना बंद किया है तब से स्वरूप बहुत उदास रेहता है और स्कूल से आने के बाद रात तक छत वाले कमरे मे ही बंद रेहता है। नारंग जी भी निर्मला जी की बात टाल ना सके और छत पर जाकर उस कमरे का दरवाजा खटखटा दिया। दरवाजे की आहट से स्वरूप बहुत घबरा गया और  तुरंत अपनी साङी और जेवर उतारने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कौन हो सकता है, घरवाले तो नीचे से ही आवाज लगा दिया करते थे, फिर ये आज ऊपर कौन आ गया। उसने खुद के कपङे सही किए और दरवाजा खोला। दरवाजे पर नारंग जी को देख स्वरूप पागल सा हो गया, वो उन्हे देख के खुश तो था लेकिन आँखों से आँसू भी आने लगे थे। स्वरूप ने नारंग जी को गले से लगा लिया और उन्हे बताने लगा कि उनके साथ रेहना उसे कितना अच्छा लगता है, और जब से उन्होंने tution आना बंद किया है उसका बिल्कुल मन नही लगता। स्वरूप और भी बातें बता कर नारंग जी को मनाने की कोशिश करने लगा कि वे उसे tution देने वापस आने लग जाए। स्वरूप ये तक कह गया कि वो नारंग जी को अपना सब कुछ मानने लगा है और उनके बिना नहीं जी सकता। नारंग जी स्वरूप की बातें सुन कर अचम्भे में थे और उन्होंने स्वरूप को बताया कि उसकी इन्हीं सब हरकतों की वजह से उन्होंने स्वरूप को पङाना बंद किया है। स्वरूप की इन्हीं हरकतों के कारण  उनका नाम खराब हो रहा है, आखिर उनका भी एक परिवार है और स्वरूप की  इन सब हरकतों का असर उनके परिवार पर भी पङ सकता है। नारंग जी ने स्वरूप से कहा कि ये जगह इन सब बातों के लिए ठीक नहीं है वे बाद में कहीं और स्वरूप से इस बारे में बात करेंगे और वहाँ से चले गए।

     नारंग जी के इस बर्ताव ने स्वरूप को बहुत आघात पहुँचाया था, वो अंदर से मानो टूट सा गया था। स्कूल में वो किसी को सर उठा कर भी नहीं देखता था और घर आकर अपने बिस्तर पर ही लेटा रेहता था। रूपा से मिलना भी बंद कर दिया था उसने। एसे जी रहा था मानों किसी ने उसके सारे सपने ही छीन लिए हों। निर्मला जी ने भी काफी कोशिश की स्वरूप के मन का हाल जानने की लेकिन वे भी नाकाम रहीं।







आगे क्या होता है स्वरूप की life में, एक शादीशुदा आदमी की तरफ स्वरूप का ये खिचाव महज आकर्षण है या प्यार। आखिर नारंग जी भी अपनी बरसों से दबी भावनाओं की चिंगारी को, जिसे स्वरूप ने थोङी सी हवा तो दे ही दी है, कब तक भङकने से रोक पाएंगे। क्या होगा जब शर्मा जी को अपने बेटे की सच्चाई का पता लगेगा। कई सवाल हैं आपके और मेरे मन में, सभी का उत्तर पाने के लिए जुङे रहें स्वरूप के या के कहूँ "रूपा" के साथ।

Lots of Love
Yuvraaj ❤

       

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