Hello friends! Here my another naration which is based on a real incident. Hope you all connect with this story too and love it like my previous ones.
मेरी ये कहानी है, ग्वालियर के रेहने वाले एक सहज और असाधारण लङके "शुभ" की। मैने शुभ को असाधारण इसलिए बताया है, क्योंकी वो एक बहुत ही अच्छा बेटा, भाई, पोता, भतीजा और मित्र भी है। इन सभी रिश्तों को प्यार की भावना से निभाने वाला इंसान तो शायद इस तरह की कहानियों मे ही हो सकता है। अपने माँ बाप की हर बात मानने वाला, अपने भाई - बहनों के साथ बहुत ही प्यार से रेहने वाला, अपने दादा - दादी की आँखों का तारा और अपने चाचा - चाची का दुलारा, एसा है हमारा "शुभ" , तो हुआ ना एक असाधारण लङका। लेकिन ये कहानी किसी और रिश्ते से ज्यादा शुभ के मित्रता के रिश्ते को बताती है।
वैसे तो ये हर साल का रिवाज़ ही हो गया था, शुभ का result आते ही सारा परिवार बङे ही हर्ष के साथ सारे मोहल्ले, सारे नाते - रिश्तेदारों में मिठाईयाँ बाटता था। लेकिन आज का जश्न तो देखने लायक ही था। गाजे बाजे के साथ, नाच गाते हुए, शुभ को कंधों पर बैठाए हुए, खूब सारी फूल मलाएँ पेहनाए हुए, स्कूल से घर लाया जा रहा था। आखिर ये जश्न का माहोल होता भी क्यों ना, हमारे शुभ ने 12वीं कक्षा मे पूरे चंबल संभाग मे top किया था। उसके घरवाले तो खुश थे ही, लेकिन उसके अच्छे व्यवहार के कारण, उसके स्कूल का कोई भी सहपाठी, उसकी इस सफलता से ईर्ष्या नहीं कर रहा था। किसी को भी शुभ की सफलता से जलन नहीं थी, बल्कि वे सभी नाच गा रहे थे। आज के इस competitive समय मे भी एसा कर दिखाया था, शुभ के अच्छे व्यवहार और सबके प्रति मित्रता के भाव ने। इसीलिए तो मैने शुभ को एक असाधारण लङका कहा था। हमारे शुभ में एक जादू था जिससे वो चन्द पलों मे किसी को भी अपना बना लेता था, और कोई भी शुभ की तरफ आकर्षित हुए बिना नही रेह सकता था। शुभ अपने स्कूल का head boy भी था, प्रत्येक बच्चे की परेशानी को दूर करना उसकी जिम्मेदारी थी, और उसने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया था। इसलिए स्कूल से grand farewell party के बाद गाजे बाजे के साथ शुभ को स्कूल से विदा किया गया था। English के शब्दों humble and down to earth शुभ के व्यक्तित्व के सटीक उदाहरण हैं। शुभ का ये अच्छा व्यवहार उसके माता पिता की अच्छी पर्वरिष का ही नतीजा है।
शुभ की इस सफलता से सभी बेहद खुश थे, सिवाय एक ईंसान के। और वो खुद शुभ ही था। एसा नहीं था कि वो अपने 12वीं के result से नाखुश हो, वो दुखी था अपने आने वाले IIT के result से, वो उदास था तो सिर्फ ये सोच कर कि IIT के result के बाद उसे अपना घर परिवार, अपने दोस्तों को छोङ किसी दूसरे शहर जाना पङेगा। शुभ के पापा की इच्छा थी कि शुभ किसी अच्छे college से engineering करे। शुभ भी एसा ही करना चाहता था, इसलिए उसने खूब मेहनत करके IIT का exam दिया था और उसे पूरा भरोसा था कि वो IIT पास कर किसी अच्छे college मे admission भी ले लेगा। वो दुखी तो केवल सबको छोङ के जाने के एहसास से था।
शुभ के इस अच्छे व्यक्तित्व के अलावा उसका एक और पेहलू भी है, जो किसी को भी नही पता। शुभ gay है, और उसे ये बात 4 साल पेहले ही पता चली, जब वो 13 साल का था। हुआ यूँ, कि शुभ अपने परिवार के साथ एक रिश्तेदार के यहाँ शादी मे गया था। एक तो शादी का घर, ऊपर से सभी रिश्तेदार बङे अरसे के बाद आपस मे मिले थे, तो चारों तरफ बस ढेर सारी बातों, हँसी - ठिठोली और खुशी का माहौल था। सभी बच्चों ने भी अपनी अलग ही टोली बना रखी थी, जिसमे वे सभी नए नए खेल इज़ाद कर रहे थे। शुभ भी खोया हुआ था खेल में। वरना ग्वालियर मे उसे ये मौका कम ही मिल पाता था, क्योंकी पापाजी को तो बस engineering का ही भूत सवार था, तो शुभ को अपना सारा समय अपनी किताबों के साथ ही बिताना पङता था। रात को भी सारे बच्चों ने अपने बिस्तर अलग कमरे में ही लगाए थे। बीना वाली बुआ का लङका बन्टी, होगा यही 15 - 16 साल का, वो शुभ के पास ही लेट गया। अब उसने पेहले से ये सब सोच रखा था या अचानक एसा हुआ, ये तो मुझे भी नहीं पता, लेकिन जब रात को सब सो गए, तो उसने शुभ के ऊपर हाँथ रखा और शुभ के शरीर को सहलेने लगा, शुभ के हर एक अंग को छूने लगा, दबाने लगा। शुभ के साथ आज तक एसा नहीं हुआ था और वो भी मदहोश होने लगा। बन्टी के हाथों की ये छुअन शुभ को आनन्द की अनुभूती करा रही थी। फिर अचानक बन्टी के हाथ थम गए और वो करवट लेके सो गया। शुभ ने सोचा कि बन्टी नींद मे एसा कर रहा होगा, और शुभ भी अपने मन की बङती तरंगो को थाम सो गया। लेकिन इस नए एहसास ने शुभ के मन में घर कर लिया था। वापस ग्वालियर आकर शुभ ने internet पर वो सब खोजा जो आज से पेहले उसने सोचा भी नहीं था। और वहीं से उसे अपने और अपनी भावनाओं के बारे मे पता चला। कभी कभी रात में, कभी नहाते वक्त, बन्टी के बारे में सोच कर शुभ हस्थमैथून भी कर लिया करता था।
आखिर वो दिन आ ही गया। सारा घर बेहद खुश था, सारे मोहल्ले मे फिर से मिठाईयाँ बांटी जा रही थीं। सारे रिश्तेदारों को फोन पर खुशखबरी सुनाई जा रही थी। आखिर IIT का result जो आया था और शुभ को IIT Delhi में Computer Science ब्रांच जो मिल गई थी।शुभ भी बेहद खुश था, सिर्फ इसलिए नहीं की भारत के सबसे अच्छे colleges में से एक college मे उसे admission मिल गया था, बल्कि इसलिए कि पापा ने अपने पसंद की ब्रांच Mechanical के वजाय शुभ को उसके पसंद की Computer Science लेने दी थी। शुभ सभी को छोङ कर जाने के खयाल से दुखी तो था ही, लेकिन नया college, नया शहर और नई life की anxiety ने इस दुख को ज्यादा देर रेहने नहीं दिया। पापा और चाचा के साथ शुभ दिल्ली आ गया। College की सारी formalities पूरी करने के बाद शुभ पापा और चाचा का आर्शिवाद लेकर hostel की ओर चल दिया और पापा और चाचा जी ने वापसी की अपने घर की ओर। अपना भारी बैग और बैडिंग लिए भीङ को चीरता हुआ शुभ पहुँचा notice board पर और अपने hostel और room के बारे मे पता कर चल दिया अपने room की ओर। तभी पीछे से किसी ने उसे आवाज़ लगाई......
"Hey! Hello! शुभ........"
शुभ ने पीछे पलट कर देखा तो एक गोरा - चिट्टा लङका उसे हाथ दिखा कर उसी की ओर आ रहा था। उसके पास भी एक बङा सा बैग और बैडिंग और guitar था। घुघंराले से बाल, पतला लम्बा चेहरा, तीखे नैन नख्श, और लम्बाई में शुभ से 2, 3 इंच लम्बा होगा। शुभ के पास आकर उसने शुभ की ओर हाँथ बङाया और खुद का परिचय दिया।
"Hey! I am Rehan, your room mate."
शुभ ने भी अपना हाँथ आगे बङा कर उससे हाँथ मिलाया। लेकिन वो नहीं समझ पा रहा था कि इस लङके ने उसे कैसे पेहचाना, और उसका नाम उसे कैसे पता चला। तमाम प्रश्नवाचक चिन्ह अपने चेहरे पर बनाए, शुभ ने उससे पूछा.....
"Hi! लेकिन तुम्हे कैसे पता चला कि मेरा ही नाम शुभ है और मे तुम्हारा room mate हूँ? किसी दूसरे notice board पर नाम के साथ photo भी लगा है क्या?"
शुभ के इस प्रश्न को सुनकर रेहान हँसने लगा और बोला..... "नहीं यार! कहीं कोई फोटो नही लगा। वो तो जब तुम room list check कर रहे थे, मैं भी वहीं था, और जब तुम 21C! 21C! बङ बङा कर वहां से निकले तो मैने सुन लिया, और तुम्हारा नाम तो list में था ही। simple!"
ये सुनकर शुभ भी मुस्कुरा दिया और बोला... "Ok! और में बङ बङ नहीं रहा था, मैं बस याद रखने के लिए बोल रहा था।" फिर शुभ ने रेहान के guitar की तरफ देख कर बोला.... "Nice! Are you a singer??"
शुभ का सवाल सुनकर रेहान मुस्कुराया और बोला...... "Hmmmm! Quit one!!! बस थोङा बहुत शौक है।"
फिर शुभ ने थोङे मज़ाकिया अंदाज़ में कहा....... "चलो अच्छा है, bore तो नहीं होना पङेगा यहां hostel में।" और दोनों हँसते हुए अपने hostel 21C की ओर चले जाते हैं।
आईए आपको मिलाता हूँ, हमारी कहानी के दूसरे किरदार "रेहान" से। रेहान कानपुर शहर का रेहने वाला है, और पङने में बहुत ही होशियार है, तभी तो IIT Delhi में है। उसके परिवार में उसकी अम्मी और एक छोटा भाई है। रेहान 14 साल का था जब उसके अब्बू का इंतकाल एक road accident में हो गया। अब्बू की मौत के बाद उनके परिवार वालों ने भी इन लोगों से मुँह मोङ लिया। जब सर पर बाप का साया ना हो और साथ देने वाला भी कोई ना हो तो बच्चे कम उम्र में ही बङे हो जाते हैं। अब्बू के इंतकाल से पहले रेहान और उसका परिवार अपने अब्बू के परिवार के साथ कानपुर में उनके पुश्तैनी मकान मे रहते थे। सराफे मे उनके परिवार की काफी नामदार सुनार की दुकान थी, और सारे परिवार का खर्चा पानी उसी दुकान से चलता था। लेकिन अब्बू की मौत के बाद रेहान के चाचा ने सारी दुकान अपने नाम करा ली और अपने बङे भाई की बेवा और उसके बच्चों की जिम्मेदारी से भी पल्ला झाङ लिया। कहीं कोई आस ना देख रेहान की अम्मी अपने दोनो बच्चों को लेकर अपने वालिद के घर कानपुर आ गई। कानपुर में भी अपने अब्बू और भाईजान के ऊपर बोझ ना बनें, इसलिए उन्होंने घर से ही सिलाई का काम शुरू कर दिया। हाँथ में सफाई की वजह से उन्हें काम भी अच्छा मिलने लगा। धीरे - धीरे रेहान और उसके भाई की जिम्मेदारी उसकी अम्मी ने बखूबी उठा ली। बाप का साया ना होने के बावजूद, दोनों बच्चों को अच्छे से अच्छी तालीम मिले, इस बात का खास खयाल रखा। और देखते ही देखते उन्होंने अपना बुटीक भी शुरू कर दिया। रेहान भी स्कूल के बाद अपनी अम्मी का हाँथ बटाने आ जाता था, लेकिन उसकी अम्मी को ये बिल्कुल मंजूर नही था। दोनों बच्चों के सर पर बाप का साया नही है, एसा उन्होंने कभी मेहसूस नहीं होने दिया, और इस सफर मे रेहान की अम्मी के अब्बू, उनके भाईजान और उनके परिवार ने उन लोगों का पूरा साथ निभाया। लखनऊ में तो रेहान को बस खेलने - कूदने और गाने का शौक था, पङाई तो जैसे तैसे हो ही जाती थी। लेकिन बदले हालातों ने रेहान के मन पर गेहरा असर किया था, और उसने ठान ली थी की वो बङा होकर खूब सारे पैसे कमाएगा और अपनी अम्मी को बिल्कुल भी काम नही करने देगा और अपने चाचा को भी सबक सिखाऐगा।ये जुनून ही था जो उसे IIT, Delhi ले आया था, लेकिन इस सब मे उसके गाने के शौक ने उसका साथ नहीं छोङा था।
रेहान के मामू, उसकी अम्मी को बार - बार उनके हक के लिए लङने के लिए कहते थे, लेकिन वो हमेशा बस एक ही बात कह कर उन्हें चुप करा देतीं थी..... "अल्लाह सब देख रहा है भाईजान, वो किसी के साथ बुरा नहीं करता, और बुरा करने वालों को कभी माफ नहीं करता।" उन्होंने सब ऊपरवाले के हाथों में छोङ दिया था और अपने बच्चों की परवरिश मे मशगूल हो गई थीं। उनके भाई ने दोबारा घर बसाने का भी कई बार जिक्र किया, पर रेहान की अम्मी ने ये बात कभी नही मानी, और उन्होंने अपनी मेहनत से ये साबित भी कर दिया कि वे अकेले ही काफी हैं अपने बच्चों को पालने पोसने के लिए।
रेहान थोङे गुस्से वाला लङका था। अगर आप प्यार से पेश आएं तो वो अपनी जान भी हाज़िर कर दे, लेकिन अगर आप उसे अपनी अकङ दिखाए तो वो आपको आपके घुटनों पर ही ला कर छोङे। लेकिन अब्बू के इंतकाल के बाद रेहान बहुत ही समझदार और परिपक्व हो गया था। अपने गुस्से पर काबू करना भी सीख गया था। दिखने मे तो माशहअल्ला बहुत ही खूबसूरत था, इसलिए कई लङकियां मरती थी उस पर। लेकिन उसने अपने दोस्तों को लङकियों के पीछे भागते, उन पर पैसा खर्च करते देखा था, और अपनी अम्मी के हालातों को समझते हुए उसने ऐसी कोई भी भावना अपने मन में आने ही नही दी, और किसी भी लङकी की तरफ उसने आँख उठा कर नहीं देखा। हालांकी उसके दोस्तों ने उसे उकसाने की बहुत कोशिशें की, रेहान को blue films भी दिखाई, जिससे उसकी मर्दानगी को जगाया जा सके। लेकिन रेहान के ईरादे तो मजबूत थे, उसे पता था उसे अपने जीवन में क्या करना है। IIT पास करना, अच्छे college में admission लेना, ये सब तो बस उस लक्ष्य तक पहुँचने का रास्ता था।
आईए वापस चलते हैं अपनी कहानी की ओर। College का पेहला दिन था! Auditorium में college के Director सभी नए विद्यार्थियों को उनके शिक्षकों से परिचित करवा रहे थे। Director sir "V. Ramgopal Rao" ने आज की assembly को अपनी speech से खत्म किया......
Rao - "You all are here, because you all are good in your academics. But this institute is excellent in India. So from now it doesn't matter, how good you are. My faculty will make you excellent in your fields. All organisations has their own rules, so we also have some, which you all know by your concern faculty. But one main rule, which is related to me, I wanna expalin that to all of you, so please listen very carefuly, this rule is going to make your future in this institute. If any one will presented to me thrice, in his or her entire four years, for his or her bad behaviour or breaking some rules or for any bad reason, that day is the last day of his or her in this institute. And i think you all are aware of, what happen to his or her life when after rusticated from some institute. So enjoy your first day in college and get ready for your four years."
First day के लिए सभी खुश तो थे, लेकिन Director sir के ऐसे खतरनाक भाषण ने सबको serious जरूर कर दिये था। आज कोई class नही थी, लेकिन सभी को उनके concern department में report करना था, अपना sylabus और academic plan लेना था। बाकी के जरूरी काम जैसे - identity card, library card, mess card ये सब तैयार करवाने थे। सभी अपने classmates से परिचय कर रहे थे। रेहान और शुभ दोनों एक दूसरे को थोङा बहुत जान ही गए थे। रेहान के खर्राटों ने शुभ को सही से सोने भी नहीं दिया था। रेहान और शुभ साथ में ही अपने सारे काम निपटा रहे थे। दोपहर तक सारा काम खत्म हो गया, तो दोनों चल दिये canteen की ओर, खाना खाने के लिए। Canteen के अंदर के नज़ारे ने दोनों की मुस्कुराहट को उङन छू कर दिया था। अंदर सभी first year के students एक line में हाँथ में कटोरा लेकर खङे थे, और बारी बारी से canteen के counter पर बैठे कुछ लङके लङकियों के सामने जा रहे थे। तभी एक लङके ने शुभ से पूछा......
" First year????"
शुभ को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है, और वो कुछ बोल ही नही पाया। उस लङके ने एक बार फिर से लेकिन थोङा चिल्ला के पूछा.....
"First year???"
शुभ इस बार भी चुप ही खङा रहा, उसका दिमाग ही काम नही कर रहा था, उसे समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या जवाब दे। तभी रेहान शुभ को पीछे कर खुद आगे आया और उस लङके को जवाब दिया.....
"हाँ! हाँ! First year."
रेहान की बात सुनकर वो लङका मुस्कुराया और बोला...... "तो यहां खङे होकर क्या तमाशा देख रहे हो, तुम दोनों भी लग जाओ line में"
उसकी बात मानने के अलावा दोनों के पास कोई चारा भी नहीं था। दोनों ने अपने bag एक table पर रखे, कटोरा हाँथ में लिया और बाकी students के साथ line में लग गए। रेहान ने line में लगे अपने आगे वाले लङके से पूछा.... "कौन हैं ये लोग, हो क्या रहा है यहाँ???"
उस लङके ने जवाब दिया.... "Ragging!!!"
रेहान ने फिर पूछा.... "और ये कटोरे का क्या मसला है????"
उस लङके ने जवाब दिया.... "वहाँ आगे जाके कुछ भी करके इन लोगों को entertain करना है, अगर ये लोग खुश हुए तो खाना खाने देगें, वरना आज का खाना गया।"
उसकी बात सुनकर रेहान ने अपने पीछे खङे शुभ की ओर मुँह किया और बोला..... "चलो देखते हैं क्या करवाते हैं, खाना तो खाकर ही जाऐंगे।" और वो शुभ को देख कर मुस्कुरा दिया। शुभ के चेहरे पर tension साफ देखी जा सकती थी। उसने एसा माहौल पेहले कभी देखा ही नहीं था और उस लङके की बात सुनकर तो शुभ ने अपना मन बना लिया था कि आज तो उसे भूखा ही रेहना पङेगा क्योंकि उसे तो ऐसा कुछ खास नहीं आता जिससे वो seniors को entertain कर सके। लेकिन रेहान को मुस्कुराता देख उसने भी रेहान को smile pass कर दी। धीरे धीरे line आगे बङने लगी। कोई नाच रहा था, कोई गा रहा था, कोई acting कर रहा था और कोई किसी की नकल उतार रहा था। Seniors को जिसका कारनामा भा जाता वे उसे खाना खाने भेज देते, और जिसका नहीं पंसद आता उसका मज़ाक उङा कर canteen से भगा देते। कुछ ही देर मे रेहान और शुभ का नम्बर भी आ गया।
रेहान ने आगे आकर अपना कटोरा पास की table पर रखा और सबको hello बोला और अपना गाना शुरू ही करने वाला था कि एक senior ने उसे रोक दिया और बोली.... " रूको यार! इतनी भी क्या जल्दी है। ये सब देख कर तो अब हम bore हो गए हैं, अब तुम कुछ अलग करो"
रेहान ने बङी ही सहजता से उस senior से ही पूछ लिया.... "तो mam आप ही बता दिजिए मैं क्या करूं।"
इस पर वो senior बोली.... "Couple Dance!!!!" और उसने शुभ की तरफ देख कर उसे हाथ से इशारा करते हुए बोली..... "Hey तुम!!! आगे आओ।"
शुभ हिचकिचाता हुआ आगे आया और रेहान के पास जा कर खङा हो गया। उस senior ने शुभ के हाँथों से कटोरा लिया और रेहान कि तरफ देख कर बोली..... "ये है तुम्हारा partner!!! इसके साथ तुम गाना गा कर couple dance करो।" और हँसते हुए अपनी जगह पर जा कर बैठते हुए बोली.... "गाना भी romantic होना चाहिए।" उसकी ये हरकत देख वहाँ मौजूद सभी seniors हँसने लगे।
रेहान और शुभ एक दूसरे देखने लगे और सोचने लगे कि अब क्या करें। तभी एक senior ने आवाज दी..... "चलो, चलो शुरू करो। और लोग भी है line में" रेहान ने आगे बङ कर शुभ का right hand अपने left hand मे पकङा और उसका left hand अपने right shoulder पर रख, अपना right hand शुभ की कमर पर रख उसे थोङा अपनी ओर खींचा। शुभ तो रेहान की इस हरकत पर अचंभित सा रह गया। पेहले तो उसने अपनी आँखे फाङ कर अपने और रेहान के हाँथों को देखा और फिर रेहान के चेहरे की तरफ देखा। रेहान ने भी शुभ को देख कर आँख मारी और smile pass की और बोला.... "चलो इनको entertain करे और खाना खाएँ, बहुत तेज भूख लग रही है" और रेहान शुभ के साथ थोङा बहुत dance करने लगा और अपना गाना शुरू किया.....
"सुलगी सुलगी साँसे, बेहकी बेहकी धङकन
मेहके मेहके शाम के साये, पिघले पिघले तनमन
और इस पल में कोई नहीं है
बस एक मैं हूँ
बस एक तुम हो
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो
क्या केहना है, क्या सुनना है
मुझको पता है, तुमको पता है
समय का ये पल, थम सा गया है
और इस पल में, कोई नहीं हैं
बस एक मैं हूँ, बस एक तुम हो"
जब रेहान ने गाना - गाना बंद किया तो एक दम शांती छा गई और सब लोग बस उन दोनों को ही घूरे जा रहे थे। शुभ तो सारे समय बस रेहान की आँखों मे ही देखे जा रहा था, और रेहान का गाना सुगकर तो वो खो ही गया था। वो भूल गया था कि वहाँ और भी लोग हैं जो उन्हे देख रहे हैं। वो तो बस मंत्र मुग्ध हो कर बस रेहान को ही देखे जा रहा था। फिर अचानक तालियों की आवाज से शुभ का ध्यान टूटा और उसने खुद को रेहान से दूर किया और बाकी लोगों के साथ मिलकर वो भी ताली बजाने लगा, लेकिन उसका सारा ध्यान सिर्फ रेहान के ऊपर ही था। वहीं रेहान झुक झुक कर सबका धन्यवाद करने लगा। Seniors भी जो अब तक वहाँ ragging ले रहे थे सब भूल कर रेहान के पास आ कर उससे हाँथ मिलाने लगे और उसे घेर कर उसकी तारीफ करने लगे। इस सब शोर शराबे मे शुभ कहीं पीछे छूटता जा रहा था, उसने अपना bag उठाया और वहाँ से भाग कर सीधे अपने hostel के room मे आ गया।
शुभ अपने room में तो आ गया था लेकिन वो अपना मन वहीं canteen में छोङ आया था। शुभ की आँखों मे अभी भी रेहान का गाता हुआ चेहरा और कानों में रेहान का गाना ही घूम रहा था। वो रेहान के लिए अभी जो मेहसूस कर रहा था, ये एक नया एहसास था, कुछ खास था। शुभ अपने पलंग पर लेटा छत की तरफ देख कर वही सब सोचे जा रहा था जो canteen में हुआ। उसने पेहली बार रेहान को इतने करीब से देखा था, उसे पेहली बार एसे छुआ था। वो इसी उधेङ बुन मे उलझा था कि कब वहाँ रेहान आ गया, उसे पता ही नही चला। रेहान ने शुभ को आवाज भी लगाई, लेकिन शुभ तो अपने खयालो मे एसा खोया हुआ था मानो किसी दूसरी दुनिया की सैर पर ही निकल गया हो। फिर रेहान ने उसके पास जाकर उसे हिलाया, तब कहीं जाकर वो अपनी दुनियाँ मे वापस आया। शुभ को हिलाते हुए रेहान बोला.... "कहाँ खोया हुआ है???? मैं कबसे आवाज भी दे रहा हूँ लेकिन सुन ही नहीं रहा।"
पलंग से उठते हुए शुभ बोला..... "नहीं कुछ नहीं!!! बस लेटा हुआ था तो कुछ सोचने लग गया।" रेहान ने फिर शुभ से सवाल किया..... "और कहाँ चला गया था canteen से?? मैने बहुत डूँडा लेकिन कहीं मिला ही नहीं?? और खाना भी खाया या नहीं???" अपनी study table की ओर जाते हुए शुभ बोला..... "नहीं भूख नहीं थी और थक भी गया था तो मैं room में ही आ गया।" अपने bag से choclate निकाल कर शुभ की तरफ बङा कर रेहान बोला..... "ok! लेकिन बता कर तो आता मैं वहाँ डूँड रहा था। चल ये choclate खा ले तुझे अच्छा लगेगा।"
रेहान की तरफ देख कर शुभ बोला...." Thanq!!! लेकिन इसकी कोई जरूरत नहीं, मुझे सच में भूख नहीं।" शुभ का हाथ पकङ कर उसके हाथ मे choclate रख कर रेहान बोला.... "हाँ ठीक है, जब मन हो तब खा लेना। एक senior ने दे दी थी मेरा गाना सुन कर और मुझे choclate बिल्कुल भी पसंद नही, इसलिए तुझे ही खानी पङेगी। और मेरा गाना कैसा लगा????"
Choclate को table पर रखते हुए शुभ बोला..... "hmmmmm!! बहुत अच्छा। मुझे लगा नहीं था कि तुम्हारी इतनी अच्छी आवाज होगी।" इस पर थोङा मजाक करते हुए रेहान बोला..... "अभी तुझे मेरे बारे मे कुछ पता ही कहाँ है, धीरे धीरे मैं भी तुझे अच्छा लगने लगूगा।"
क्या रेहान भी gay होगा, या शुभ का दिल टूटेगा। आगे की कहानी जानने के लिए please stay connected with my blog. Next part will be out in 7 or 8 days.
Lots of Love
Yuvraaj ❤
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