Monday, July 30, 2018

""रूपा"" part - II

Hello friends...
   If you doesn't read the first part of ""रूपा"" than please read its first part than you get easily connected with second part.


     धीरे धीरे समय यूहीं बीत रहा था। स्वरूप बहुत उदास भी रेहता था और उसकी ये उदासी ना तो उसके घरवालों से छिपी थी ना ही नारंग जी से। लेकिन कोई भी स्वरूप के लिए कुछ कर नहीं सकता था। घरवाले जहां स्वरूप के अस्तित्व से ही अंजान थे वहीं नारंग जी जमाने के डर से खामोश। फिर एक दिन वो भयानक हादसा हुआ जिसने स्वरूप के जीवन के पन्ने को काले रंग से भर दिया। स्कूल की छुट्टी के बाद स्वरूप अपने घर के लिए निकला ही था कि पीछे से उसके school के ही एक लङके ने उसे आवाज लगाई और उसके पास जाकर उसे बताया कि नारंग सर उसे physics lab में बुला रहें हैं। नारंग जी का नाम सुनते ही स्वरूप के चेहरे पर मुस्कुराहट छा गई और वो तुरंत भाग पङा physics lab की ओर। lab में जा कर स्वरूप ने नारंग जी को इधर उधर देखा, ना दिखने पर उसने नारंग जी को आवाज भी लगाई। लेकिन ना तो नारंग जी कहीं दिखे ना उन्होंने स्वरूप की आवाज का कोई उत्तर दिया। वो आवाज का उत्तर तब देते जब वे वहां होते। ये सब बस एक छलावा था। वहां नारंग जी नहीं बल्कि वो 4 लङके थे जो केहने हो तो इंसान थे, उनमें से एक स्वरूप के ही school का लङका था जिसके केहने पर स्वरूप वहां आया था। वे सभी 16 या 17 साल के नाबालिक बच्चे थे , लेकिन आज वे हैवान बन गए थे। स्वरूप को वहां धोखे से बुलाकर उन चारों ने हैवानियत का वो गंदा खेल खेला जिसे सोचने भर मात्र से किसी के भी रोंगटे खङे हो जाए। वो शैतान ये खेल करीब 3 घंटे तक खेलते रहे। स्वरूप के जिस्म को इस कदर नोचा और काटा था जैसे मानो उसे काटकर खा जाना चाहते हों। एसी हैवानियत, एसी दरिंदगी , पता नहीं कहां से वो लोग उजाले मे सभ्य परिवार के बच्चे कहलाते होंगे जो अंधेरे में हैवानियत की सारी हदें पार कर चुके थे। स्वरूप को वहीं स्कूल में physics lab में नंगा, खून से सना, बेहोश छोङ वो चारों वहां से भाग गए थे।

     बहुत देर हो जाने के कारण शर्मा जी के परिवार ने स्वरूप की खोज शुरू कर दी थी। शर्मा जी ने नारंग जी को भी फोन पर स्वरूप के अब तक घर ना आने के बारे मे पूछा। नारंग जी ने तुरंत स्कूल में पता किया तो पता चला की स्वरूप छुट्टी के बाद स्कूल के अंदर दाखिल तो हुआ था लेकिन बाहर गया कि नहीं ये किसी को नहीं पता। नारंग जी शर्मा जी और सुमेर जी के साथ स्कूल पँहुचे और पूरे स्कूल में डूंडने के बाद उन्हे वो मिला जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। "एक बलात्कार का शिकार"। उन तीनों ने जब स्वरूप को उस हालत मे देखा तो उनके पैरों के तले जमीन ही खिसक गई थी। जहां कुछ देर पेहले बार बार स्वरूप का नाम गूंज रहा था उसे डूंडने के लिए वहीं जब वो मिल गया था तो चारों तरफ सन्नाटा छा गया था। नारंग जी ने तुरंत lab की खिङकियों पर लगे परदे को खींचा और स्वरूप को ढंक दिया, उधर सुमेर जी ने ambulance को फोन लगाया। लेकिन शर्मा जी, वे तो बस सन्न रह कर सब देख रहे थे, उनकी तो जान ही सूख कर गले तक आ गई थी और वे खुद को और ना संभाल पाए और स्वरूप को अपनी गोद मे भर कर फूट फूट कर रोने लगे। नारंग जी और सुमेर जी भी क्या कर सकते थे, बस शर्मा जी को डांडस ही बंधा सकते थे। अब जो हो गया था उसे बदल पाना किसी के बस मे ना था। कुछ देर बाद ambulance आ गई और स्वरूप को hospital ले आया गया।

     स्वरूप का ईलाज तो तुरंत शुरू हो गया था लेकिन एक ही सवाल बार बार शर्मा जी से पूछा जा रहा था "कया हो गया इसे" "accident हो गया" "छत से गिर गया" "किसी ने मार पीट दिया।" नारंग जी ने दबी आवाज मे कहा कि शायद इसका रेप हुआ है लेकिन किसी ने उनकी बात नही सुनी और बार बार शर्मा जी से वही सवाल किए जा रहे थे। शर्मा जी चिल्ला कर बोले "बलात्कार हुआ है मेरे बेटे का!!!! बलात्कार!!!" और रोते हुए वहां से चले गए।

     यह बात hospital से police और police से media तक भी पँहुच गई। लोकल अखबार से यह बात स्वरूप के स्कूल के management को भी पता चली। स्कूल की शाख को बचाए रखने की जिम्मेदारी स्कूल वालों ने नारंग जी को सोंपी, कि वे कैसे भी कर के इस बात को रफा दफा करवाएँ, और स्कूल का नाम बदनाम ना होने पाए। अपनी नौकरी को बचाने के लालच मे नारंग जी भी जुट गए इस बात को आगे बङने से रोकने के लिए। शर्मा जी और उनके परिवार को बदनामी के डर को उनके मन में बैठा कर नारंग जी बङी ही आसानी से अपने काम मे सफल भी हो गए। नारंग जी की बातों में आकर शर्मा जी ने police में कोई complaint तो नहीं की लेकिन hospital report के मुताबिक ये एक रेप केस था, तो बिना स्वररूप के बयान के इस केस को बंद कर पाना ना तो नारंग जी के हाथ में था ना police के। लेकिन स्कूल वालों की तरफ से police को मिली मोटी रिश्वत ने इस केस ढीला जरूर कर दिया था।

      अपने भाई की खबर पाकर आकाश भी सुंदर नगर आ गया था। और 7 -8 दिन बाद स्वरूप को भी hospital से discharge कर दिया गया था। शरीर के घावों को भरना फिर भी आसान होता है लेकिन मन के घावों को भरना बहुत मुश्किल। ये हादसा जितना बोलने और सुनने मे छोटा लग रहा है उससे कहीं कठीन है स्वरूप का उस हादसे के दर्द के साथ जीना
 घरवाले सब स्वरूप के साथ हैं ताकि वो उस अनहोनी को भुलाकर वापस अपनी normal life की तरफ लौट सके लेकिन स्वरूप के लिए वो सब भुला पाना इतना आसान नहीं। सभी लोग धीरे धीरे अपनी रोज मर्रा की जिंदगी मे लौट रहेत थे, और इस घटना को भुलाने की कोशिश मे लगे थे। घर मे कोई भी उस रात के बारे मे बात ही नहीं करता था सब ये जताना चाहते हो मानो कि एसी कोई घटना हुई ही ना हो। स्वरूप तो पहले भी चुप ही रेहता था और वो अभी भी चुप था। लेकिन उसकी आँखो को देखकर साफ समझा जा सकता था कि कुछ आग सी लगी है उसके अंतर मन मे ही। अपने घर वालों का रवैया देख कर स्वरूप खुद को ही उस रात के लिए जिम्मेदार समझने लगा था। उसने सबके साथ उठना बैठना, खाना - खाना बंद कर दिया था और अकेले अपने कमरे मे चादर के अंदर सर कर के रोता रेहता और खुद को कोसता रेहता था।

     लेकिन आकाश ये सब और ना देखा गया और उसने अपने मम्मी पापा से बात भी कि की वो अपने ही बेटे के साथ एसा कैसे कर सकते हैं, वो स्वरूप को उसके हाल पे कैसे छोङ सकते हैं , वो स्वरूप के गुनाहगारों को इतनी आसानी से कैसे जाने दे सकते हैं। लेकिन आकाश की किसी भी बात का असर शर्मा जी पर नही हुआ। वे स्वरूप के दुख से अंजान तो नहीं थे लेकिन स्वरूप के भविष्य की खातिर एसा कर रहे थे। शर्मा जी ने आकाश को वही सब बाते बताई जो नारंग जी ने उनके दिमाग मे भर दी थी, कि वे अगर इस बात को आगे बङाते हैं तो उनके परिवार की बदनामी तो होगी ही साथ साथ स्वरूप का जीवन कितना मुश्किलों से भर जाएगा। लेकिन आकाश शर्मा जी की एक बात नहीं सुनता और स्वरूप का हाथ पकङ उसे उसके कमरे से बाहर ले आता है और सबके सामने ही उसे याद करने को कहता है कि वो याद करे कि उस दिन कया हुया था, वो वहां कैसे पँहुचा और वो कौन लोग थे जिन्होने उसके साथ एसा किया। आकाश की बातें सुनकर स्वरूप सर झुका कर रोने लगता है, तो आकाश उसे समझाता है कि उसने कोई गलत काम नही किया है तो नीचे देखने की या रोने की उसे कोई जरूरत नही है। स्वरूप थोङी हिम्मत जुटा कर बताता है कि उसे किसी लङके ने  lab मे बुलाया और जब वो वहां गया तो वहां पेहले से ही 3 लङके और थे वे लोग अंधेरे मे थे इसलिए उसने उन लोगों का चेहरा नहीं देख पाया और फिर जो लङका उसे वहां लेकर गया था उसने स्वरूप का मुँह एक कपङे से दबा दिया और वो बेहोश हो गया और उसके बाद उसे कुछ याद नहीं। आकाश कुछ और पूछता उससे पेहले ही शर्मा जी ने उसे डांट कर चुप करा दिया और स्वरूप को वापस उसके कमरे मे जाने को कहा। उसी रात आकाश को भी वापस उसके hostel भेज दिया गया। Police ने भी स्वरूप का बयान लेना जरूरी नहीं समझा और बाकी की फाईलों की तरह ये फाईल भी दबा दी गई। बाकी सभी तो पेहले से ही normal life जी रहे थे और स्वरूप को भी एसा ही करने पर मजबूर होना पङा। लेकिन स्वरूप को देखकर साफ पता चलता था कि मानो उसके अदंर का एक हिस्सा पूरी तरह खत्म हो चुका है। एक ओर बलात्कार का शिकार होने का दर्द और दूसरी ओर अपने ही घर मे अंजान होने की तकलीफ। लेकिन फिर भी जैसे तैसे खुद को संभाले एक बार फिर स्वरूप चल दिया था स्कूल की ओर। आज स्वरूप पूरे 2 महीने बाद अपने घर से बाहर निकला था। उसके लिए घर से बाहर आ कर लोगों से नजरें मिलाना बिल्कुल आसान नहीं था, लेकिन अब तक वो अपने घर में भी तो नजरे झुकाए ही रेह रहा था।

      सकूल मे सब स्वरूप को एक बुरी नजर से देख रहे थे, अब से पेहले स्वरूप को एक मजाक की नजर से देखा जाता था, अब से पहले स्वरूप को देख कर हँसा जाता था, उसका मजाक उङाया जाता था, लेकिन आज की नजरों में एक घिन थी। आज सब स्वरूप को इतनी बुरी नजर से देख रहे थे, एसे तो शायद किसी वैश्या को भी नही देखा होगा किसी ने। वैश्या तो अपना जिस्म बेचती है, लेकिन स्वरूप के जिस्म को तो नोंचा और काटा गया था। फिर भी स्वरूप को एसे देखा जा रहा था कि मानो वो सारी दुनिया की गन्दगी हो और अगर किसी ने उसे छू लिया तो वो भी गंदा हो जाएगा। इसका कारण थी वो अफवाहें जो सारे स्कूल मे फैल चुकी थी। किसी को सच्चाई का तो पता नही था, इसलिए अपने मन मुताबिक सबकी अपनी एक अलग ही कहानी थी। किसी की कहानी मे स्वरूप ने बाहर से लङकों को बुला कर रंग रलियाँ मनाई थी, और किसी के मुताबिक कुछ हिजङे उसे अपने साथ ले जाने के लिए आए थे और स्वरूप के मना करने पर उसे physics lab मे मार पीट के फैंक गऐ। किसी की कहानी मे तो स्वरूप नारंग सर के साथ जबरदस्ती करना चाहता था तो उन्होंने स्वरूप को मार पीट दिया था। इस तरह की और भी ना जाने क्या क्या कई सारी कहानियाँ बङे चाव के साथ सारे स्कूल मे सुनी और सुनाई गई थी लेकिन किसी ने भी स्वरूप की तरफ एक दिलासा भरा हाथ बङाना जरूरी नही समझा था।

     स्कूल और घर दोनो जगह स्वरूप के मन का हाल समझने वाला कोई नहीं था। स्वरूप स्कूल मे सबसे पीछे वाली बैंच पर अकेला बैठा करता था, और घर मे अपने कमरे मे भी अकेला ही रेहता था। "रूपा" से मिलना बिल्कुल बंद कर दिया था। छत का वो कमरा ही एक एसी जगह थी जहां स्वरूप खुल के अपने मन मुताबिक रेहता था, लेकिन अब वो कमरा एक दम खाली हो गया था। रूपा का तो मानो स्वरूप ने अस्तित्व ही खत्म कर दिया था। उसे एसा भी लगने लगा था  कि उसके साथ जो कुछ भी हुआ है वो रूपा की वजह से ही हुआ है। उसे वैसे तो उस रात की घटना याद नहीं थी लेकिन होश मे आने के बाद का दर्द और घरवालों का ये बरताव उसे वो हादसा भूलने नही दे रहा था। कभी कभी तो सपने मे भी स्वरूप को वही लङका दिखाई देता था और कहता था " physics lab मे चलो" और घबरा कर उसकी आँख खुल जाती थी, और सारी रात रोते हुए जाती थी।

       एक रोज स्कूल जाने के लिए स्वरूप जब घर से निकला, तो उसे लगा की कोई उसका पीछा कर रहा है, उसने जब पीछे मुङ कर देखा तो वहां कोई नहीं था। उसका वहम होगा शायद। स्कूल पहुँचा तो वही हाल था लोगो का जो अक्सर रहता था। अपने आस पास की छोटी मानसिकता के लोगों की वजह से ही शायद स्वरूप मायूस रहा करता था। उसकी इस हालत को नारंग जी अच्छे से समझ सकते थे, लेकिन अपनी लाचारी की वजह से वे भी स्वरूप के लिए कुछ कर पाने मे असमर्थ थे। लेकिन नारंग जी से आखिर कब तक स्वरूप की मायूसी देखी जाती, तो एक दिन lunch मे जब सभी अपने lunch box और खेल मे व्यस्त थे, नारंग जी स्वरूप को सहानूभूती और उसका मन हल्का करने के इरादे से उसे अपने साथ physics lab मे ले आए। पेहले तो स्वरूप उनके साथ आने मे झिझक रहा था, लेकिन फिर नारंग जी के जोर देने पर आ गया। नारंग जी स्वरूप को अपने साथ लाए तो उसका मन हल्का करने के लिए ही थे लेकिन वे उस हादसे के बारे में बात कर के स्वरूप का मन दुखा ही कर रहे थे। लेकिन स्वरूप उनकी बात काट अपनी ही बात करने लगा। वो नारंग जी से पूछने लगा कि उन्होंने उसके साथ एसा क्यों किया, उन्होंने स्वरूप का साथ क्यों छोङ दिया। नारंग जी को उसने ये भी बताया कि वो मन ही मन उन्हें चाहने लगा है और बाकी सब लोगों से ज्यादा उसे नारंग जी की बेरुखी ही दुख पहँचा रही है। स्वरूप ने ये भी बताया कि उस दिन वो उनको ही डूंडता हुआ यहां lab में आया था। यह सब सुन नारंग जी से रहा नही गया और उन्होंने स्वरूप को गले लगा लिया। स्वरूप को गले लगाते ही नारंग जी के मन मे दबी भावनाओं ने सैलाब का रूप ले लिया और अपनी भावनाओं में बेहते हुए वे सब भूल गए कि वे कहां हैं और क्या कर रहे हैं और वे और जोर से स्वरूप को अपनी बाहों मे कसने लगे। मानों वे खुद को स्वरूप मे और स्वरूप को खुद मे समा लेना चाहते हों। तभी वहां किसी के होने की आहट हुई और नारंग जी ने तुरंत स्वरूप को खुद से दूर झटक दिया और स्वरूप को लताङते हुए कहा कि उसके दिमाग मे जो भी ये सब भावनाएँ चल रही हैं ये सब गलत है और उसके मन की गंदगी है। उस दिन जो कुछ भी स्वरूप के साथ हुआ वो इन्हीं सब भावनाओं का परिणाम है। नारंग जी ने स्वरूप को खूब जली कटी बातें सुनाई , वे ये सब इस मंशा से कर रहे थे ताकि ये सब सुनने के बाद स्वरूप को उनसे नफरत हो जाए और वो जो कुछ भी नारंग जी के लिए महसूस कर रहा है वो एसा महसूस ना करे। शायद एसा करना नारंग जी के घर परिवार को उनकी स्वरूप के लिए बङती हुई भावनाओं की आग से बचा सकता था। ये सब करके वे स्वरूप का तो पता नही लेकिन अपनी भलाई के बारे मे तो जरूर सोच रहे थे। स्वरूप भी अपनी आँखो मे आँसू भरे, ये सब सुन वहां से लौट आया और उसने फिर कभी नारंग जी की ओर आँख उठा कर नहीं देखा। स्वरूप का जीवन ठीक उस फूल की तरह हो गया था जिसे कोई अपने मन होने पर सूंघ लेता हो और मन होने पर उसकी पंखुङियों को एक एक कर तोङ देता हो।

      समय बीतने के साथ बङे दिनों के इंतजार के बाद शर्मा परिवार में खुशीयों ने दस्तक दी थी। सुलेखा जी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया था और इस बार निर्मला जी ने किसी की सुने बिना नए मेहमान का नाम विकास रख ही दिया था। सारे घर में खुशियां ही खुशियां छा गई थीं। लेकिन कल का दिन क्या लेकर आएगा ये कहा किसी को पता होता है। अपने घर मे इतने दुखों के बाद आई इस खुशी को किसी की नज़र ना लगे, इसलिए शांती देवी जी ने मंदिर मे पाठ रख वाया था तो आज सारा दिन वे मंदिर मे ही बिताने वाली थी। शर्मा जी दुकान के लिए निकल रहे थे, आज जल्दी मे थे क्योंकी दुकान से पेहले hospital मे विकास से मिलने भी तो जाना था। सुमेर जी  hospital मे ही निर्मला जी का इतजार कर रहे थे, आखिर चाय नाश्ता जो लाने वाली थी उनकी भाभी। वहीं घर पर निमर्ला जी स्वरूप के लिए खाना बना, सुलेखा जी के लिए दलिया और सुमेर जी के लिए नाश्ता डब्बे मे लेकर hospital जा रहीं थी। अभी सुलेखा जी की छुट्टी होने मे 3 दिन बाकी थे। आकाश भी बङा खुश था ये खबर सुन और आना भी चाहता था सुंदर नगर लेकिन अपने भाई के लिए कुछ भी ना कर पाने के एहसास ने उसे आने नही दिया। स्वरूप घर पर अकेला रह गया था। आज उसे हल्कि सी हरारत लग रही थी तो वो आज घर पर ही आराम कर रहा था। कुछ समय बाद बाहर के कमरे की खिङकी से कुछ आवाज आई, स्वरूप अपने चादर से निकल कर जब बाहर देखने आया तो बाहर का नजारा देख उसके होश उङ गए।

        घर के अंदर खिङकी पर वही लङका खङा था जो उसे उस दिन physics lab मे ले गया था और खिङकी से 2 और लङकों को अंदर खींच रहा था। स्वरूप को तो जैसे समझ ही नहीं आ रहा था की ये क्या हो रहा है। तभी वो लङका स्वरूप की ओर मुङा और स्वरूप को देख कर मुस्कुरा कर पूछा, कि वो स्वरूप को याद तो है ना और बाकी दोनो लङकों को देख कर आँख मारी और तीनो हँसने लगे। स्वरूप उन्हे देखकर घबरा गया और उनहे घर से जाने को बोला। तभी दूसरा लङका बोला की वो यहां से जाने नहीं, यहां हमेशा के लिए घर बसाने आए हैं और वे तीनो फिर से हँसने लगे। पहले वाले लङके ने फिर बाकी दोनो लङको के बारे मे स्वरूप को बताया कि स्वरूप उन्हे देख कर घबराए नहीं, ये दोनों भी उस रात स्वरूप के साथ मजे कर चुके हैं। उसने चोथे लङके के बारे मे भी बताया कि वो आज नही आ पाया लेकिन कल आएगा और अपने साथ कुछ और नए दोस्त लाएगा। स्वरूप ये सब सुनकर और ज्यादा डर गया और वो फोन की तरफ भागा, कि वो अपने पापा को फोन कर सके लेकिन उन लङको ने स्वरूप को एसा नही करने दिया और स्वरूप को वही जमीन पर पटक दिया। तीसरे लङके ने स्वरूप के बाल पकङ कर उसके सर को उठाया और उसके कानों मे फुसफुसाया, कि कई दिनों से उनकी नजर स्वरूप के ऊपर है, वे लोग स्वरूप के ऊपर नजर रखे हुए हैं, घर मे भी और स्कूल मे भी और उन्हे पता था कि आज स्वरूप घर पर अकेला है। घर ही नही उन्होंने स्कूल मे भी एक जगह का जुगाङ कर लिया है जहां वे जब चाहे स्वरूप के साथ मजे कर सकते हैं। और वे तीनों लङके फिर से हँसने लगे। वे लोग इतने सहज थे मानो स्वरूप पे उनका हक हो। स्वरूप को उन लोगों ने खरीद लिया हो, मानो स्वरूप उनके लिए बस एक खिलौना हो। स्वरूप ने हिम्मत कर अपने घर वालो को और police को सब बताने की धमकी दी। स्वरूप की ये बात सुनकर वे तीनो बङी जोर जोर से हँसने लगे और बोले कि अगर police उनका कुछ बिगाङ पाती तो आज वो जेल मे होते और रही बात घरवालो की तो वो लोग आज भी वही करेगे जो पेहले किया था। तभी पेहले वाले लङके ने स्वरूप को जमीन से उठाते हुए कहा " डरो नही इस बार हम आराम से करेगे और तुम्हे बिल्कुल भी परेशानी नही होगी।" और एक बार फिर स्वरूप के साथ दरिंदगी का वही खेल खेला गया लेकिन इस बार स्वरूप अपने पूरे होश मे था। उसके शरीर को बारी बारो से तीनों ने नोचा काटा और बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को बङे मजे के साथ अंजाम दिया । स्वरूप चिल्लाता रहा, छटपटाता रहा, खुद को छुङाने की कोशिश करता रहा, लेकिन उन लङको की जकङ से ना तो वो खुद को छुङा पाया और उनके द्वारा मुँह बंद किए जाने से ना उसकी चीखे किसी के कानो तक पहुँच पायी। पेहले की तरह स्वरूप के शरीर पर इतनी चोटे तो नही आई थी, लेकिन उसके मन की चोट पेहले से गेहरी थी। उसकी जांघों पर खून भी बह रहा था, उसके होटों को भी काटा गया था और उसके बदन को इतनी बुरी तरह से पकङा और जकङा गया था की कई जगह नीले निशान आसानी से देखे जा सकते थे। बदन दर्द के कारण स्वरूप हिल भी नहीं पा रहा था। तीनों लङको ने कपङे पेहने और स्वरूप को बोला की कल और भी लङके आएगे तो वो तैयार रहे, और अगर वो आराम से बिना छटपाए ये सब कराएगा तो उसे एक खरोंच भी नही आएगी और उसे भी मजा आएगा और धीरे धीरे उसे इस सब की आदत पङ जाएगी। इतना कह कर वे लोग स्वरूप को उसी हाल मे छोङ वहां से चले गए।

      दर्द वो ज्यादा भयानक नहीं होता जो शरीर में होता है, चोट वो ज्यादा दर्दनाक नही होती जो जिस्म पर लगती है। लेकिन मन पर लगी चोट का दर्द कितना असहनीय और भयावह हो सकता है, ये उस व्यक्ति के अलावा कोई और महसूस नही कर सकता, जिसके मन पर एक गेहरी चोट लगी हो। स्वरूप अभी अपने पेहले हादसे से ही नही उभर पाया था कि एक और हादसे ने उसे घेर लिया था। वो धीरे धीरे जमीन पर ही खिसक खिसक कर फोन के पास जाता है और अपने पापा का नम्बर भी dail करता है, वो अपने पापा को बताना चाहता था किउसके साथ क्या हुआ है और किन लोगों ने उसके साथ ये घिनौना काम किया है, लेकिन तभी वो रुक जाता है और उन लङकों की बातें उसके दिमाग मे घूमने लगती कि ना तो police कुछ कर पाएगी और ना ही उसके घरवाले और उसे अपने घरवालो का बर्ताव भी याद आता है कि उसके घरवालो ने पेहले उसके साथ क्या किया था। उसे उन लङको की बातें सही लगने लगती हैं। कल भी उसके साथ यही होना है और शायद आगे भी उसके साथ एसा ही होता रहेगा, यही सोच कर स्वरूप को खुद से ही घिन आने लगती है और वो हताश, निराश हो कर लङखङाता हुआ किचिन मे जाता है और वहां रखे चाकू से अपने दोनों हाथों की नसे काट लेता है। वो अपने आखिरी समय मे अपने घरवालो को याद करता है और याद करता है "रूपा" को और सोचता है की अगर वो लङकी होता तो भी क्या उसके साथ एसा ही होता या रूपा के कारण ही उसके साथ एसा हुआ है और धीरे धीरे कभी ना जागने वाली नींद के आगोश में स्वरूप हमेशा के लिए सो जाता है।


      आज स्वरूप के नाम से इंसानियत को हारते देखा था मैंने। क्या गलती थी स्वरूप की, क्यों हुआ उसके साथ एसा, क्यों उन लङकों ने स्वरूप को अपना हक समझा, क्या वो इंसान नहीं था, क्या उसे अपने मन मुताबिक जीने का हक नही था, क्या वो अपने पंसद के व्यक्ति से प्यार नही कर सकता था, क्या रूपा बनना ही इन सब का कारण था। एसे ना जाने कितने सवाल है जिनके जवाब शायद हैं तो सबके पास लेकिन पता नही वो कौन सी पट्टी है जो लोगों ने अपनी आँखो पर चङा रखी है, और असलियत देखना ही नही चाहते। अगर शर्मा जी और उनके परिवार ने स्वरूप को समझा होता तो शायद उसे रूपा बनने की जरूरत नही पङती। जो सुकून उसे छत के उस कमरे मे मिलता था शायद वो ही सुकून उसे अपने सारे घर मे और घरवालो के साथ भी मिलता। अगर स्वरूप के घरवाले उसका साथ देते तो शायद स्कूल management के दबाव के चलते स्वरूप को इंसाफ मिलने मे थोङी कठिनाई होती लेकिन उन लङकों की हिम्मत ना होती फिरसे वही हरकत करने की।

      Gay, transgender होना कोई हमारा निर्णय नहीं है, एसा होना हमने नहीं चुना, अगर हमे चुनने का हक होता तो हम भी अपने लिए एक सुकून भरी जिन्दगी चुनते, यूं घुट घुट के जीना किसे पंसद है। लेकिन हम एसे ही हैं, हम एसे ही पैदा होते हैं, ये कोई बीमारी नही है जिसका ईलाज डूंडा जा सके। आज भी हमे और sex worker को एक ही नजर से देखा जाता है और यही मानसिकता थी उन लङकों की जो स्वरूप को एक sex doll से ज्यादा कुछ नहीं समझ रहे थे। इसी छोटी सोच की शिकार ना जाने कितनी रूपा हो चुकी हैं और शायद आगे भी होती ही रहेंगी।इस मानसिकता को बदलने का, समाज मे सुधार लाने का और रूपा को इस खुले आसमान के नीचे एक सुंदर जीवन जीता देखने का कोई तरीका अगर आप के पास हो तो मुझे जरूर बताईएगा।
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Lots of Love
Yuvraaj❤
     

Wednesday, July 25, 2018

""रूपा"" part - 1

Hello friends...
   Here i am posting my another narration  ""रूपा"" this story has different kind of writing. Its called persuasive writing in this type you doesn't find any dialogue, some time it's mine perspective or characters perspective. Hope you like this story as much as my previous one.


     साङी, लेहंगा, चुनरी, जेवर और लाली का बहुत शौक था हमारी रूपा को। दोपहर में जब स्कूल  से  लौटकर  आने  का  समय  होता  तो अमूमन  घर  में  कोई  नहीं होता  था और जो होता  भी  था  वो  अपनी  दोपहर  की नींद  ले रहा  होता  था। रूपा  स्कूल  से आकर  अपना स्कूल  बैग  एक कोने मे फेंक , एक थाली  मेें  खाना  परोस ले आती थी  छत के कोने में  बने एक कमरे में। कमरे का दरवाजा  बंद  कर खो जाती थी  अपनी सपनों  की दुनियाँ  मेें । जहां  बस वो है और उसकी मन की दुनिया  के  किरदार, उनके साथ ही रूपा खाना खाती और जी भर कर खेलती और अपना दोपहर  का सारा  समय उनके साथ ही बिताती । रूपा खाना खा कर झूठे बरतन कमरे के एक कोने मे रख अलमारी से निकालती थी अपने खेल का सामान। इस सामान मे होता था, माँ  की पुरानी  साङी, मेले  से लाए हुए हार और मालाएँ और माँ के श्रंगार  का पुराना सामान। साङी पहन,  लाली लगा और जेवर पहन सज संवर कर हर दिन रूपा तैयार  हो जाती थी और हर रोज उसके मन के अनुसार नए नए  किरदार भी आ जाते थे उसके सामने और वो जो चाहती वो खेला करती थी उनके साथ हर दोपहर। ये खेल शाम को माँ की आवाज के साथ ही खत्म होता था।

      माँ - "चल बेटा आजा नीचे, मैंने  चाय रख दी है बनने  और आते हुए कल वाले बरतन भी नीचे ले आना। कितनी बार कहा है तुझे की खाना नीचे ही खा कर जाया कर लेकिन  सुननी  ही नही है  किसी  की भी।"

     ये रूपा और उसकी माँ  की रोज की दिनचर्या  का हिस्सा  था। आइए  मैं  आपको मिलता  हूँ  इस कहानी के किरदारों  से। ये कहानी है हिमाचल प्रदेश के  मंडी  जिले के एक छोटे से कस्बे "सुंदर नगर" की। ये कस्बा अपने नाम की ही तरह बहुत  सुंदर  और शांत  है। यहां  का एक प्रतिष्ठित  परिवार है शर्मा परिवार। इस परिवार  के मुखिया  हैं  पं. केशव दयाल शर्मा जी। शर्मा  जी की सुंदर नगर के चंगर कॉलोनी  में  चश्मे  की दुकान  है और न्यू कॉलोनी  मे अभी 2 साल पहले ही नया घर बनवाया है। शर्मा  जी की एक joint family है। उनके परिवार मे उनकी माँ शांती देवी, उनकी पत्नी  निर्मला, उनके दो बेटे आकाश और स्वरूप, उनका छोटा भाई  सुमेर दयाल और छोटे भाई  की 3 माह गर्भवती पत्नी  सुलेखा है। सभी लोग एक साथ ही नए घर मे रहते हैं  जो की सुमेर जी की शादी के वक्त  बनवाया गया था। शर्मा  जी के पिताजी  की मृत्यु  आज से 16 साल पहले ही हो गई  थी और उसी साल शर्मा  जी के छोटे बेटे का जन्म  हुआ था, इसलिए  निर्मला जी के मन का नाम "विकास" ना रख कर छोटे बेटे को शर्मा  जी के पिता का नाम स्वरूप दयाल शर्मा  दिया  गया । आकाश  अभी 18 साल का है और मंडी के एक प्रतिष्ठित  काॅलेज  से B. Sc. कर रहा है और काॅलेज के hostel में  ही रेहता है। स्वरूप ने अभी अभी 11वीं कक्षा पास की है और 12वीं कक्षा मे दाखिला लिया  है। दोनो भाईयों  की पङाई में  जमीन आसमान का अंतर है, जहाँ  आकाश एक होनहार विद्यार्थी  है और 12वीं में  अच्छे अंक लाकर मंडी के काॅलेज मे scholarship ले रहा है वहीं  स्वरूप जैसे तैसे पास हो ही जाता है।

        आस पङोस वाले, स्कूल के शिक्षक  और यहां  तक की घरवाले भी स्वरूप को आकाश के जैसे पङने के लिए कई बातें  सुनाते हैँ  जो की स्वरूप को बिल्कुल  भी पसंद नहीं  आतीं  लेकिन  बावजूद  इसके दोनों  भाइयों  मे कोई मनमुटाव  नहीं  है। दोनों  भाई आपस में  बेहद  घुले मिले हैं । सुमेर जी शर्मा  जी के साथ दुकान में  हाथ बटाते हैं । इन दोनों  भाइयों  के बीच भी अब तक तो कोई मनमुटाव  नहीं  है लेकिन सुलेखा  जी के घर आगमन के बाद घनिष्ठता  भी उतनी नही  है जितनी पहले हुआ करती थी। शांती देवी जी का सारा समय भगवान को याद करते ही बीतता है और अब तो वो बस स्वर्गवास  सिधारने की ही कामना किया  करती हैं । निर्मला जी कहने को तो घर की अन्नपूर्णा  और लक्ष्मी  हैं लेकिन उनकी हालत एक नौकर जैसी ही है। उनकी सुबह 4 बजे ही हो जाती है। घर के सारे काम, सासू माँ की सेवा, पति, देवर और स्वरूप के लिए नाश्ता और दोपहर के खाने का डिब्बा  तैयार करना, फिर गर्भवती  देवरानी के नाज़ नखरे उठाकर दोपहर की झपकी, शाम का चाय और नाश्ता,  फिर रात के खाने की तैयारी करना, सबको खाना खिलाना फिर रात को 10 बजे बाहर दरवाजे का ताला लगाकर ही उनका दिन खत्म होता है।


        आप भी  सोच रहे होंगे  की कहानी के सभी किरदारों  से आपका परिचय करवा दिया  लेकिन  इन सभी मे "रूपा" हमारी कहानी की मुख्य  किरदार, वो तो नजर ही नही आई। जी हाँ  आप एक दम ठीक सोच रहे हैं, रूपा कोई किरदार नही बल्कि  एक परिकल्पना  है हमारे स्वरूप  की। स्वरूप  ही वो छत के कोने वाले कमरे मे रूपा है और बाहर की दुनियाँ  मे स्वरूप दयाल शर्मा। स्वरूप  को लडकियों  की तरह सज सवर के खेलने का बङा शौक है। अब वो अपना ये खेल किसी को बता भी तो नहीं  सकता था, वरना उसका मजाक उङाया जाता और कही इसकी भनक भी शर्मा  जी को लग जाती तो वो उसे मारते पीटते। इसलिए वो अकेले ही ये खेल खेला करता था। अकेले रहने के कारण, आस पङोस मे हम उम्र  बच्चे होने के बावजूद भी स्वरूप का कोई दोस्त  नही था। उसकी चाल ढाल भी लडकियों  जैसी थी तो सब बच्चे उसका मजाक उङाते थे और उसे साथ मे नही खिलाते थे। एसा ही कुछ हाल था स्कूल मे भी। वो जैसे ही स्कूल  मे घुसता तो सभी उसकी चाल और हाव भाव का मजाक उङाते, काना फूंसी करते। लङकों के साथ साथ लङकियाँ भी स्वरूप  को अपने पास बैठाना भी पसंद नहीं  करतीं  थीं । इसलिए स्कूल  मे भी उसका कोई दोस्त नही था। पहले तो वो आकाश के साथ ही स्कूल  आता जाता था लेकिन  पिछले  साल से वो एक दम अकेला पङ गया  था। स्कूल  मे भी वो सबसे पीछे वाली बैंच पर अकेला बैठता था और सारे समय बस यही सोचता रहता था की कहीं  कोई उसके बारे मे तो नही बात कर रहा, कही कोई उसे देख कर तो नही हँस रहा। इन्ही सब बातो मे उलझ कर वो पङाई पर ध्यान  नहीं  दे पाता था। स्कूल  के सारे शिक्षक स्वरूप  से परेशान  थे और हर PTM मे बस एक ही complaint होती थी की स्वरूप  कक्षा मे ध्यान  ही नही देता है। इस बात से  परेशान होकर और आकाश के कहने पर शर्मा  जी ने एक tution teacher लगवा दिया । पहले तो ये काम आकाश का ही था, उसकी ही मेहनत थी की स्वरूप  11वीं कक्षा पास कर पाया था।

       अशोक नारंग जी को ये जिम्मेदारी सोंपी गई थी कि वे कैसे भी कर के स्वरूप को 12वीं पास करा दें। नारंग जी एक कश्मीरी पंडित थे, जिनके बाप दादा कश्मीर से पलायन के बाद हिमाचल मे बस गए थे। नारंग जी 32 साल के थे जो अपनी बीवी और 2 बच्चों के साथ सुंदर नगर मे रेहते थे और स्वरूप के ही स्कूल मे physics के शिक्षक थे। शर्मा जी नारंग जी को जानते थे, नारंग जी ने ही आकाश को भी पङाया था। इसलिए उन्हें चुना गया था स्वरूप की नैया पार लगाने के लिए। वहीं स्वरूप को ये tution class बिल्कुल भी पसंद नही आ रही थी। एक तो  ये science side भी उसके पापा ने बङे भाई की देखा देखी जबरन दिलवा दी थी, जबकी स्वरूप को science मे बिल्कुल भी दिलचस्पी नही थी।

       अब स्वरूप की दिनचर्या मे थोङी सी तब्दीली आ गई थी। जहाँ वो अपनी शामें TV के सामने बिताता था तो अब TV की जगह ले ली थी नारंग जी ने। नारंग जी हर शाम 6 बजे घर आ जाते थे,एक कप चाय और बिस्कुट के साथ स्वरूप को पङाने की कोशिश की जाती थी। इस tution की वजह से स्वरूप के ऊपर पङाई का बोझ बङने लगा था। पेहले तो वो अपना स्कूल का home work रात को खाना खाने के बाद कर लिया करता था लेकिन अब वो जगह tution के home work ने ले ली थी, और स्कूल का home work उसे स्कूल से आने के बाद ही करना पङता था। जिस वजह से स्वरूप की मुलाकात "रूपा" से धीरे धीरे कम हो गई थी। अपने मन का काम ना कर पाने के कारण स्वरूप चिङचिङा सा रेहने लगा था। किसी से सही से बात भी नही करता था। सबको लगा की पङाई के बोझ की वजह से उसमे ये बदलाव आ रहे हैं। लेकिन इसकी असल वजह तो कुछ और ही थी जो सबकी सोच के परे थी। इस बदलाव का कारण था स्वरूप की शख्सियत। अगर आप किसी को दिखावा करने को कहे, तो वो कब तक दिखावा कर पाएगा। आखिर कभी ना कभी तो वो अपनी असलियत दिखाएगा ही ना। दोपहर के समय, छत के उस कमरे मे जब स्वरूप रूपा का रूप लेता था, वो थी उसकी असलियत। लङको की तरह कपङे पेहनना, लङको की तरह चलने और बोलने की कोशिश करना ये सब तो महज एक दिखावा था। अब जब स्वरूप को अपनी असलियत मे रहने का मौका कम मिल पा रहा था, तो स्वरूप झुंझलाने लगा था। मानो उसे कैद करके रखा जा रहा हो।

       ज्यादातर अकेला रहने के कारण अभी स्वरूप को दुनियादारी की समझ नही थी। अभी तक तो उसने खुद से ये सवाल तक नही किया था कि ये लङकियों की तरह रेहना, सजना सवंरना उसे क्यों इतना पसंद है।उस बंद कमरे मे एसा क्या है जो वहाँ जैसा सुकून उसे कहीं और नहीं मिलता। अभी तो वो इस सब को बस एक खेल ही समझ रहा था, लेकिन ये खेल धीरे धीरे उसके दिल और दिमाग पर हावी होता जा रहा था। लेकिन स्वरूप इस बात से बिल्कुल अंजान था कि जिसे वो महज एक खेल समझ रहा है असल  में वही उसकी सच्चाई है, वही उसकी असलियत है। वो लङके के शरीर मे फंसी एक लङकी है, उसकी आत्मा एक लङकी की ही है और इस सच से अभी तो वो अंजान है लेकिन जब स्वरूप का सामना इस सच से होगा तो वो मंजर शायद बहुत दर्दनाक होगा। और कोई है भी तो नहीं स्वरूप के पास उसके साथ जो उसको समझ सके और सूझ बूझ के साथ उसका सामना उसीकी सच्चाई से करा सके।

       बस यूहीं कुछ दिन और कुछ महीने बीतते गए और इस दौङ भाग की भी अब स्वरूप को आदत सी हो गई थी। अब स्वरूप रूपा से भी कभी कभार ही मिलता था लेकिन इस बात का अब उसे बुरा भी नहीं लगता था। इसका भी कुछ अलग ही कारण था। इसका कारण था नारंग जी का साथ। नारंग जी भी अब तक स्वरूप को अच्छे से समझ चुके थे, और वे उसके अंतर मन को भी काफी हद तक पङने मे कामयाब हो चुके थे। वे स्वरूप के उस पेहलू को भी समझ रहे थे, जो की सबसे छुपा हुआ था। नारंग जी अभी तो बस अनुमान ही लगा रहे थे कि स्वरूप के बदले हाव भाव ने उनके अनुमान को सही साबित कर दिआ। वो समझ चुके थे कि स्वरूप उनकी तरफ आकर्षित हो रहा है। नारंग जी स्वरूप की असलियत से रूबरू इस लिए हो पाए थे क्योंकी वे स्वरूप मे अपने बचपन को देख सकते थे।

        आज से 20 साल पहले जब नारंग जी महज 12 वर्ष के थे, उन्होंने ये बात जान ली थी कि वे एक समलैंगिक हैं। वे अपने बचपन मे वो सब सह चुके थे जो आज स्वरूप सह रहा था। समलैंगिकता को कल भी एक बुरी नजर से देखा जाता था और आज भी। नारंग जी कम उम्र मे ही समझ गए थे की समलैंगिकता एक अभिषाप है और उन्होंने अपनी भावनाओं को अपने मन मे ही छुपा लिया। और आज वो शादीशुदा और दो बच्चों के पिता हैं। लेकिन स्वरूप को जानने के बाद उनका बरताव भी स्वरूप के लिए बदल गया था। वे स्वरूप से पहले से ज्यादा प्यार से पेश आने लगे थे और एक दोस्त की तरह व्यवहार करने लगे थे। इस तरिके का अपनापन स्वरूप ने अपने घरवालों के अलावा किसी से मेहसूस नहीं किया था। यही एक कारण था कि स्वरूप नारंग जी की ओर आकर्षित होता जा रहा था।

       अब तो स्वरूप स्कूल के बाद अपने सारे काम निपटा कर शाम होने का इंतजा करता था। नहा धोकर, पाउडर लगा कर, अच्छे से बाल बना कर नारंग जी के सामने जाया करता था। tution मे भी पङाई से ज्यादा उसका ध्यान नारंग जी के ऊपर ही होता था। वहीं नारंग जी को ये खुद पर ध्यान दिए जाने का एहसास एक अलग ही स्फूर्ती दिए जा रहा था। उनकी बरसों से दबी भावनाओं ने फिर से अंगङाईयाँ लेना शुरू कर दी थी। स्वरूप अभी छोटा है, नासमझ है और उनका विद्यार्थी है, इन सभी बातों के परे वे भी स्वरूप की ओर बहे चले जा रहे थे और वे चाह कर भी खुद को नही रोक पा रहे थे। धीरे धीरे उनके अंदर दबी ये भावनाएँ हवस का रूप लेती जा रही थी। अब तो वे हर रात स्वरूप के बारे मे सोच कर हस्थमैथून करने लगे थे। और वहीं स्वरूप भी अपने इस नए एहसास के भाव में खोता जा रहा था।

      लेकिन नारंग जी को इस एहसास के साथ समाज का खयाल भी था। इसलिए नारंग जी का स्वरूप के साथ व्यवहार घर मे कुछ और, और स्कूल मे कुछ और होता था। जब नारंग जी घर पर होते थे, तो बहुत ही खुशमिज़ाज रेहते थे, स्वरूप से हँसी मजाक भी किया करते थे। लेकिन स्कूल मे तो वे स्वरूप की तरफ देखते भी नहीं थे। कुछ समय बाद स्वरूप को भी ये अंतर समझ आने लगा था और वो स्कूल में कई तरह की कोशिशें करने लगा जिस से वो स्कूल मे भी नारंग जी का ध्यान अपनी ओर खींच सके। और इन सभी कोशिशों का परिणाम ये निकला कि जहाँ स्कूल के बच्चे अभी तक स्वरूप को उसकी चाल ढाल और उसके हाव भाव के लिए चिङाते थे वहीं अब नारंग जी के नाम से भी उसका मजाक बनाया जाने लगा था। मजाक के नाम पर स्वरूप का नाम नारंग जी के साथ जोङा जाने लगा था। पर ये उङाया मजाक स्वरूप को बिल्कुल भी बुरा नही लग रहा था बल्कि नारंग जी के साथ नाम जोङे जाने से उसे एक अलग सी अनुभूती हो रही थी जो दुख के वजाए उसे खुशी का अनुभव करा रही थी। धीरे धीरे ये मजाक सारे स्कूल मे जंगल की आग की तरह फैलने लगा और इसकी खबर नारंग जी को भी लग गई। अपना नाम खराब होता देख उन्होंने अपनी बङती भावनाओं को काबू में किया और स्वरूप से दूरी बनाए रखने के लिए उन्होंने tution देना भी बंद कर दिया। ये समय तो स्वरूप के ऊपर मानों पहाङ बन कर टूटने लगा था, स्कूल में ताने और मजाक और घर मे अकेला पन। इन सब से स्वरूप बहुत परेशान रेहने लगा, और उसे कहीं अपनापन दिखा तो बस "रूपा" के पास। स्वरूप फिर से अपना समय रूपा बनकर बिताने लगा, और इस बार एक और नया किरदार जुङ गया था उसके खेल में, वो थे नारंग जी। रुपा बनकर वो नारंग जी से अपने मन की हर वो बात कह सकता था जो असल दुनियाँ मे वो कभी ना कह पाए। रूपा ने तो नारंग जी को अपना जीवनसाथी तक मान लिया था। छत के उस कोने वाले कमरे में स्वरूप रूपा बनकर अपने मन के किरदार नारंग जी के साथ ठीक वैसे ही रेहता था जैसे उसने अपने मम्मी पापा और चाचा चाची को देखा था।

    फिर एक दिन शर्मा जी ने नारंग जी को घर बुलाया स्वरूप का tution बंद करने का कारण पूछने के लिए, और नारंग जी ने अपने घर की बङती जिम्मेदारियों का बहाना बना दिया। चाय नाश्ते के बाद नारंग जी जाने लगे तो निर्मला जी ने उन्हें रोका और स्वरूप से मिलने छत वाले कमरे मे भेज दिया इस आस के साथ की शायद स्वरूप की उदासी थोङी कम हो जाए। निर्मला जी ने नारंग जी को बताया कि जबसे उन्होंने tution देना बंद किया है तब से स्वरूप बहुत उदास रेहता है और स्कूल से आने के बाद रात तक छत वाले कमरे मे ही बंद रेहता है। नारंग जी भी निर्मला जी की बात टाल ना सके और छत पर जाकर उस कमरे का दरवाजा खटखटा दिया। दरवाजे की आहट से स्वरूप बहुत घबरा गया और  तुरंत अपनी साङी और जेवर उतारने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कौन हो सकता है, घरवाले तो नीचे से ही आवाज लगा दिया करते थे, फिर ये आज ऊपर कौन आ गया। उसने खुद के कपङे सही किए और दरवाजा खोला। दरवाजे पर नारंग जी को देख स्वरूप पागल सा हो गया, वो उन्हे देख के खुश तो था लेकिन आँखों से आँसू भी आने लगे थे। स्वरूप ने नारंग जी को गले से लगा लिया और उन्हे बताने लगा कि उनके साथ रेहना उसे कितना अच्छा लगता है, और जब से उन्होंने tution आना बंद किया है उसका बिल्कुल मन नही लगता। स्वरूप और भी बातें बता कर नारंग जी को मनाने की कोशिश करने लगा कि वे उसे tution देने वापस आने लग जाए। स्वरूप ये तक कह गया कि वो नारंग जी को अपना सब कुछ मानने लगा है और उनके बिना नहीं जी सकता। नारंग जी स्वरूप की बातें सुन कर अचम्भे में थे और उन्होंने स्वरूप को बताया कि उसकी इन्हीं सब हरकतों की वजह से उन्होंने स्वरूप को पङाना बंद किया है। स्वरूप की इन्हीं हरकतों के कारण  उनका नाम खराब हो रहा है, आखिर उनका भी एक परिवार है और स्वरूप की  इन सब हरकतों का असर उनके परिवार पर भी पङ सकता है। नारंग जी ने स्वरूप से कहा कि ये जगह इन सब बातों के लिए ठीक नहीं है वे बाद में कहीं और स्वरूप से इस बारे में बात करेंगे और वहाँ से चले गए।

     नारंग जी के इस बर्ताव ने स्वरूप को बहुत आघात पहुँचाया था, वो अंदर से मानो टूट सा गया था। स्कूल में वो किसी को सर उठा कर भी नहीं देखता था और घर आकर अपने बिस्तर पर ही लेटा रेहता था। रूपा से मिलना भी बंद कर दिया था उसने। एसे जी रहा था मानों किसी ने उसके सारे सपने ही छीन लिए हों। निर्मला जी ने भी काफी कोशिश की स्वरूप के मन का हाल जानने की लेकिन वे भी नाकाम रहीं।







आगे क्या होता है स्वरूप की life में, एक शादीशुदा आदमी की तरफ स्वरूप का ये खिचाव महज आकर्षण है या प्यार। आखिर नारंग जी भी अपनी बरसों से दबी भावनाओं की चिंगारी को, जिसे स्वरूप ने थोङी सी हवा तो दे ही दी है, कब तक भङकने से रोक पाएंगे। क्या होगा जब शर्मा जी को अपने बेटे की सच्चाई का पता लगेगा। कई सवाल हैं आपके और मेरे मन में, सभी का उत्तर पाने के लिए जुङे रहें स्वरूप के या के कहूँ "रूपा" के साथ।

Lots of Love
Yuvraaj ❤

       

Saturday, July 14, 2018

सपनों का जहां Final Part

Next day morning : 09/06/2017 : 06:00 AM :-

   जब आप किसी अपने के साथ होते हो और एक शांत जगह पर बैठ कर अपने मन की बात कर रहे होते हो तो न तो समय का पता चलता है और ना ही वहा से उठ कर जाने का मन करता है। यही कुछ हुआ शब्द और श्लोक के साथ। पिछली रात शब्द के लिए जितने अनसुलझे सवालो के जवाब लेकर आई थी उससे कही ज्यादा अपने पन का सैलाब लेकर आई थी। जिसकी उसे इस समय सबसे ज्यादा जरूरत थी। इसलिए बेफिक्र होकर छत पर ही चैन की नीद सो रहा था श्लोक की बाहों मे। दोनो कल रात बात करते करते कब सो गए उन्हे पता ही नही चला। सुबह जब सूरज की धीमी धीमी किरणे शब्द के चेहरे पर पङी तब उसकी आँख खुली। आँख खुलते ही उसने खुद को श्लोक की बाहो मे पाया। श्लोक अभी भी नीद मे ही था। शब्द ने श्लोक का चेहरा देखा और उसकी मासूमियत देख कर शब्द के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई और वो श्लोक को देखता ही रह गया। इतने मे श्लोक की भी आँख खुलती है और वो शब्द को खुद को यू बेसुद देखते हुए देखता है और कहता है "क्या देख रहे हो जनाब??"

     श्लोक की बात सुन शब्द श्लोक के माथे पर kiss करता है और कहता है " why didnt i notice you before?"

    यह सुनकर श्लोक हसता है और कहता है "तुम अपनी खयालो की दुनिया से बाहर निकलो तब तो ध्यान दो की यहा और भी लोग है"

    श्लोक की बात सुन कर शब्द को याद आता है कि आज तो उसकी एक बहुत ही important meeting है। शब्द तुरंत ही उठ कर बैठ जाता है और कहता है "चलो मै तुम्हे शाम को मिलता हूँ  आज मुझे एक बहुत जरूरी काम है" और वहा से उठने की कोशिश करता है तो श्लोक उसका हाथ पकङ के उसे रोकता है और कहता है "please dont go anywhere today. मै आज का सारा दिन तुम्हारे साथ रेहना चाहता हूँ, तुम्हारे बारे मे जान ना चाहता हूँ, तुम्हे समझना चाहता हूँ।"

    शब्द श्लोक के हाथ पर हाथ रख कर कहता है " हम कल पक्का सारा दिन साथ रहेगे पर आज मेरा जाना बहुत जरूरी है, मैने आज की meeting के लिए बहुत दिनो तक इंतजार किआ है और अगर आज मै इस opportunity को जाने देता हूँ तो फिर पता नही मुझे ये मौका दोबारा मिलेगा या नही"

       श्लोक शब्द की बात मान लेता है और कहता है "ok चलो ठीक है आज तुम अपना काम करलो लेकिन कल मै कोई बात नही सुनुगा और हा कल मै तुम्हे मुम्बई घुमाने ले चलूगा।"

    श्लोक की ये बात सुनकर शब्द हसा और बोला " तुम घुमाओगे?? तुम्हे अपने college के अलावा कुछ पता भी है यहा।"  शब्द को हंसता देख श्लोक बोला " तुम्हे घुमा दू इतना तो पता ही है और घूमना तो बस एक बहाना है मुझे तो तुम्हारे साथ time spend करना है।and why the way तुम हंसते हुए ज्यादा अच्छे लगते हो तो हंसा करो।" ये कहते हुए शब्द श्लोक की आँखो मे खुद के लिए प्यार महसूस कर सकता है और वो उसे kiss करता है और कहता है " चलो अब यहा से मुझे ready भी होना है।"

Next day morning : 10/06/2018 : 08:00 AM :-

     शब्द के flat की door bell बजती है। शब्द तो अभी तक सो कर भी नही उठा था, उसकी तो आँख ही door bell की आवाज से खुली थी और अपनी आँख मलते हुए उसने दरवाजा खोला "तुम!!! इतनी सबह सुबह?"

     सामने श्लोक खङा था शब्द को एसे देख रहा था मानो बहुत ज्यादा गुस्सा हो "not again!!! तुम फिर से अपनी खयालो की दुनिया मे सो रहे थे क्या? भूल गए क्या हमे आज घूमने जाना था and please open the door first let me in."

      "Oh i am sorry. Please come in" कहते हुए शब्द दरवाजा खोलता है और श्लोक अंदर आता है और शब्द का प्यारा सा चेहरा देख उसका सारा गुस्सा उङन छू हो जाता है और वो आगे बङ कर शब्द को kiss करता है। शब्द श्लोक को अपने से अलग करता है और कहता है "अरे ! अरे ! मैने तो अभी तक brush भी नही किआ। बस मुझे 5 मिनट दो मै ready हो कर आता हूँ।"


Same day evening : 10/06/2018 : 06:15 PM :-

सारा दिन घूम फिर कर और एक दूसरे के Family, friends और बचपन से लेकर अब तक के मजेदार और दिलचस्प किस्से सुनकर दोनो थक जाते है और मरीन ड्राइव पर आकर रुक जाते है। sunset देखने के लिए दोनो वही बैठ जाते है। तभी श्लोक पूछता है " ये सब तो ठीक है लेकिन मुम्बई आने के बाद तुमने कभी अपने पापा से बात क्यो नही की।" इस पर शब्द कहता है "पापा कभी भी मेरे इस फैसले से खुश नही थे और मैने तो कई बार कोशिश की पापा से बात करने की लेकिन वो कभी फोन पर आए ही नही।"

       श्लोक शब्द की उदासी समझ जाता है और माहोल को थोङा हल्का करने के लिए कहता है "चलो कोई बात नही माँ से तो बात होती ही है ना और पापा भी कब तक नाराज रहेगे। आज नही तो कल वो भी मान जाऐगे। और अपने इकलौते बेटे से कोन ज्यादा देर तक नाराज रह सकता है और जब बेटा इतना प्यारा हो तो।" ये कहते हुए श्लोक ने शब्द के दोनो गाल खीच दिए। श्लोक ने फिर शब्द से पूछा " चलो ये बात जाने दो, कल की तुम्हारी meeting का क्या हुआ।" श्लोक की ये बात सुन कर तो शब्द और भी मायूस हो गया और बोला "कुछ नही फिर से rejection!" शब्द को मायूस देख श्लोक ने उसका होसला बङाने के लिए कहा "कोई बात नही आगे और भी मोके मिलेगे। and anyways मै सुबह से तुम्हारा music , music सुन रहा हूँ  लेकिन तुमने अभी तक मुझे कुछ सुनाया नही है।"

      "Hmmmmm... जरूर सुनाउगा" यह कहते हुए शब्द की आँखे नम हो गई।

       "Hey ! Hey ! Hey ! What happen? मैने कुछ गलत कह दिआ क्या?" शब्द की आँखो की नमी को भांपते हुए श्लोक ने उसका हाथ पकङ कर पूछा।

       "नही आज इतने दिनो के बाद किसी ने मुझे मेरा गाना सुन ने के लिए बोला तो अच्छा लगा।" यह कहते हुए शब्द थोङा मुस्कुरा दिआ।

       "Aaawww  my cutie. और देखना मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन ये पूरा मुम्बई, ये पूरा देश और ये पूरी दुनिया तुम्हारी आवाज और तुम्हारा गाना सुनेगी।" शब्द को होसला देते हुए श्लोक ने कहा और शब्द को गले लगा लिआ। शब्द ने भी श्लोक को थोङी कसकर अपनी बाहो मे जकङ लिआ। मानो वो ये जता रहा हो कि श्लोक के अलावा यहा सब झूठ और फरेब है। श्लोक ने शब्द को गले लगाए हुए ही फिर से पूछा "लेकिन मै अभी तक समझ नही पा रहा हू कि एसा क्या हो गया जो तुम इतने उदास और खोए खोए रेहते हो। rejections भी तो success का हिस्सा है। आज reject हुए हो तो कल select भी हो जाओगे। और रही बात माँ पापा की तो वो भी एक ना एक दिन मान जाएगे और...."

       श्लोक की बात को बीच मे ही काटते हुए शब्द खुद को श्लोक की बाहो से दूर करता हुआ बोला "जाने दो हम फिर कभी बात करेगे इस बारे मे। मै तुम्हारा आज का दिन खराब नही करना चाहता।"

     
      श्लोक भी कहा मानने वाला था। छोटे बच्चो की तरह जिद करते हुए बोला "नही मुझे तो आज ही जानना है कि एसा क्या हुआ है जो तुम एक अलग ही दुनिया मे खोए रेहते हो और तुम भूल रहे हो शायद हम एक दूसरे को समझने, एक दूसरे के बारे मे जानने ही तो बाहर आए थे। तो मुझे तो आज ही बात करनी है इस बारे मे।"

     "Ok! बताता हूँ! मै केवल singing ही नही करता मै अपने गाने लिखता भी हूँ। मुझे लिखना उतना ही पसंद है जितना गाना गाना। मै जब मुम्बई आया तो जैसा मैने बताया, माँ और पापा बिल्कुल भी मेरे इस फैसले के साथ नही थे लेकिन मै फिर भी उनसे लङ झगङ के यहा आ गया। क्योकी मुझे खुद पर भरोसा था की मै अपने सपने सच कर सकता हूँ और एक बार मै सही साबित हो गया तो माँ पापा भी मुझे समझ जाऐगे और मुझे माफ कर देगे। लेकिन पापा सही कहते थे कि बाहर दुनिया मे बहुत खराब लोग बैठे है जो सिफॆ इसी इंतजार मे है कि कब हम उनके चंगुल मे फसे और वो हमारा फायदा उठा सके। एसा ही मेरे साथ हुआ। मै एक music director से मिला। 2 महीने के बाद मुझे उसकी appointment मिली थी। जब मैने उसे अपने गाने सुनाए तो वो बहुत खुश हुआ। उसे मेरी writing and singing दोनो ही बेहद पसंद आई थी। उसने मुझसे वादा किआ की वो मुझसे मेरे सारे songs का copyright खरीदेगा और मुझे singing का मौका भी देगा। composition ready करने के लिए उसने मुझसे मेरी dairy जिसमे सारे songs लिखे हुए थे वही office मे छोङने को कहा। मै भी उस पर भरोसा कर वैसा ही किया जैसा उसने बोला। उसने मुझे 2 महीने बाद की date दी recording के लिए और मैने 2 महीने इंतजार भी किया उसके फोन का। लेकिन इसी बीच एक फिल्म आई जिसकी कहानी ज्यादा अच्छी नही थी लेकिन फिल्म के music ने उसमे जान डाल दी थी और वो फिल्म एक बहुत बङी hit साबित हुई सिफॆ उसके music की वजह से। अगर मै उस फिल्म का नाम तुम्हे बताउ तो तुम विश्वास नही करोगे की वो सारे गाने मेरे लिखे हुए है। मुझे ये सब जान कर एक धक्का लगा और बहुत गुस्सा भी आया उस director पर। मैने उस director से मिलने की बहुत कोशिश की लेकिन मै नही मिल पाया। और मेरे पास कोई रास्ता भी नही था खुद को साबित करने का। वो बहुत बङा आदमी है उसके आगे मेरी कौन सुनेगा।मै इस industry के लिए नया था मुझे ना इस industry के बारे मे कुछ मालूम था ना इसके तौर तरीके। मैने एक दिन गुस्से मे उस director के office मे तोङ फोङ कर दी इस उम्मीद से की शायद वो मुझे बस एक बार मिल सके , ताकी मै उससे पूछ सकू की उसने मेरे साथ एसा क्यो किया। लेकिन इसका उल्टा ही हुआ उस director ने मुझे इस industry से ही black list करवा दिया और मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिआ। लैकिन मैने फिर भी हार नही मानी और तब से आज तक मै सिफॆ music directors and music companies के चक्कर ही काट रहा हूँ और हर जगह से मुझे एक ही जवाब मिलता है। एक pvt company मे accountant की जोब भी इसी लिए कर रहा हूँ ताकी कुछ और समय यहा मुम्बई मे बिता सकू और अपने सपनों का जहां पा सकू" यह कह कर शब्द चुप हो जाता है और वहा एक दम शांती फैल जाती है। श्लोक को भी समझ नही आ रहा है कि वो शब्द को क्या बोले, क्या बोल कर शब्द का होसला बङाए। कुछ देर सोचने के बाद श्लोक बोलता है "मेरे पास एक idea है। मै आज ही dad से बात करता हूँ इस बारे मे। वो मुम्बई मे काफी लोगो को जानते है, शायद वो हमारी कोई help कर पाए।"

         श्लोक की यह बात सुन शब्द थोङी ऊँची आवाज मे बोलता है "नही मै किसी की help नही लेना चाहता, मुम्बई आना भी मेरा फैसला था और उस music director के पास जाना भी, तो अब जो भी concequencess है उनका सामना भी मुझे ही करना होगा। मै इस मामले मे किसी की help नही लेना चाहता। मै अपने सपनों का जहां किसी की दी हुई भीख पर नही बसाना चाहता। i am realy sorry! मै तुम्हारी बहुत respect करता हूँ  लेकिन मै ये बात नही मान सकता।"

      शब्द की हताशा को समझते हुए श्लोक बोलता है "Ok! Ok! Big no to dady! लेकिन हम कुछ और तो कर ही सकते है ना"

       "कुछ और मतलब" श्लोक की तरफ देखते हुए शब्द कहता है।

     "मैने TV पर देखा है Indian idol के audition शुरू हो गए है। So why dont you try this way to enter in this industry? यहा ना तो तुम्हे किसी की help की जरूरत पङेगी और ना कोई music director तुम्हे यहा रोक सकता है।"

      शब्द श्लोक की बात सुन कर चुप हो जाता है। उसे समझ नही आता की क्या वो ये कर सकता है। एक बंद कमरे मे गाने लिखना और music directors के सामने गाना एक अलग बात है और इस तरह TV पर लाखो लोगो के सामने गाना अलग।तभी श्लोक बोलता है "अब इतना भी मत सोचो इस बारे मे। ये एक public platform है यहा से आगे तुम सिफॆ अपने tallent के सहारे ही बङ सकते हो। एक बात हमेशा याद रखना, कोई तुम्हारे हाथ से छीन सकता है लेकिन तुम्हारी किस्मत से नही।"

     "माँ! माँ भी यही कहा करती थी।" शब्द एक दम स्तब्ध हो कर कहता है।

     "हा तो उठो फिर, यहा क्या बैठे हो Mr. बहुत सारी तैयारी करनी है।" श्लोक खङे होकर शब्द का हाथ पकङ कर उसे उठाते हुए कहता है। "उठो मेरे next Idian idol। मै सारी details पता करता हूँ और तुम जम कर practice करो। अब तुम्हे तुम्हारा सपनों का जहां पाने से कोई नही रोक सकता।"

      "हाँ लेकिन उससे पेहले मै तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ जो मै आज सुबह से कहना चाह रहा हूँ लेकिन नही कह पाया था। I LOVE YOU SHLOK" झिझकते हुए आखिर शब्द ने अपने प्यार का इजहार कर ही दिआ था।

       "I LOVE YOU TOO my next Indian idol." ये बोल कर श्लोक ने शब्द को kiss किआ। "lets go now मुझे बहुत सारी तैयारियाँ करनी है, तुम्हारी costume, तुम्हारी hair style ohh my god i am so much excited now."


Present day :14/07/2018 :-

     आज मुम्बई मे Indian Idol का audition है और शब्द अपनी performance के लिए अंदर judges के सामने है और श्लोक बाहर हाथ जोङे भगवान को प्राथना कर रहा है। वो लङका जिसने केवल त्योहारो के दिन ही भगवान को याद किआ हो वो आज बिना किसी त्योहार के भगवान को याद कर रहा था। आखिर क्यो ना हो आज उसके प्यार के सपनों के जहां की ओर एक नई शुरूआत जो होने जा रही थी।

   मुझे और श्लोक दोनो को पूरा यकीन है कि शब्द ये audition को जरूर पास कर लेगा और Indian idol भी बन जाएगा और शब्द अपने सपनों का जहां भी पा लेगा श्लोक के साथ।
 
         लेकिन आगे क्या होगा शब्द और श्लोक के रिश्ते का। शब्द एक सफल गायक और संगीतकार बन भी जाए और उसके माँ पापा सारे गिले शिकवे भुला कर उसे अपना भी ले। लेकिन क्या शब्द और श्लोक के माता पिता अपने दोनो बच्चो का ये रिश्ता अपना पाएगे? शायद कुछ बाते समय पर ही छोङ देनी चाहिए।आगे क्या होगा वो तो वक्त ही तय करेगा लेकिन अभी इस बात खुशी है कि शब्द को श्लोक का साथ मिल गया। और बिना श्लोक के साथ के शब्द शायद अपने सपनों के जहां के इतने नजदीक ना पहुँच पाता।
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       Indian Idol अभी आ रहा है TV पर आप भी देखिए शायद आपकी मुलाकात भी हमारे शब्द से हो जाए।

Lots of Love
Yuvraaj ❤




      

Monday, July 2, 2018

सपनों का जहां part - VI

Next day morning - 08/06/2018 :-

      रात भर ना सो पाने के कारण शब्द की आँखे लाल थी और झुकी हुई थी। शब्द भागता हुआ lift का button दबाता है, और जो वो नही चाहता वही होता है। श्लोक भी वही आ जाता है अपना college bag लिए। श्लोक शब्द की ओर देखता है और बोलने की कोशिश ही करता है कि lift आ जाती है और दोनो lift के अंदर आ जाते है। lift मे श्लोक बोलता है "hey listel dude! Its normal, so please dont think so much about it". शब्द की आँखे देख कर श्लोक समझ जाता है कि शब्द रात भर सोया नही है। इतने मे ground floor आ जाता है और शब्द बिना कुछ बोले अपने रास्ते चला जाता है। फिर श्लोक भी अपने college को चल देता है।

      College मे श्लोक का बिल्कुल भी मन नही लगता वो पूरे समय शब्द के बारे मे ही सोचता रेहता है। शाम को फिर से दोनो की मुलाकात lift मे होती है। लेकिन और भी लोगो के कारण श्लोक शब्द से कोई बात नही कर पाता। वही शब्द आँखो मे नींद लिए हुए, थका हुआ और हमेशा की तरह अपने खयालो मे खोया हुआ श्लोक की तरफ ध्यान भी नही देता।

Same day night - 9:30 PM :-

      छत पर लेटा हुआ तारों को देखता हुआ शब्द कुछ सोच मे डूबा हुआ है। पहले तो बस माँ पापा और अपने music के खयालो मे डूबा रेहता था लेकिन अब तो श्लोक भी उसके खयालो का हिस्सा था। इतने मे श्लोक सिगरेट जलाए हुए शब्द के पास आता है और वही उसके पास बैठ जाता है
               "मुझे पता था तुम यही होगे ।"

        शब्द अपनी आँखे बंद कर के ही बोलता है।
               "Please go from here and leave me alone."

                "तूम्हारी problem क्या है हाँ! क्यों तुम बस एक ही बात के बारे मे सोचे जा रहे हो। और ये किस दुनिया मे खोए रेहते हो तुम। look at yourself क्या हाल बना लिया है तुमने अपना।" सिगरेट फेंक कर थोङी ऊँची आवाज़ मे श्लोक ने बोला।

        श्लोक का चिल्लाना सुन शब्द उठ के बैठ गया और उसी लेहजे मे श्लोक से बोला "Its my life, non of your buisness. So stay away from me."

         "मुझे भी कोई शौक नही है तुम्हारी life मे घुसने का लेकिन पता नही क्यों जबसे मेने तुम्हे देखा है मै खुद को रोक ही नही पा रहा हूँ और तुम्हारी तरफ attract होता जा रहा हूँ।" ये कहते हुए श्लोक की आवाज़ धीमी पङ गई। और एक बार फिर से सन्नाटा छा गया और दोनो के बीच फिर से ना टूटने वाले eye contact बन गया। और इस बार श्लोक आगे भङा और शब्द को kiss करने के लिए उसकी ओर झुकने लगा। शब्द eye contact तोङ पीछे हटा और वहाँ से उठ के जाने लगा।

          "Please accept yourself" श्लोक ने वही बैठे हुए कहा। और शब्द रुक गया और पलट कर बोला "What???"


       श्लोक भी उठा और शब्द की आँखों मे देख कर बोला "accept yourself! Accept what you are! Who you are! शायद तुम्हारा stress कम हो जाऐ।"


       "What do you mean?? I know about myself." इतना कह कर शब्द ने कुछ कदम श्लोक की ओर बङाए।

       "No you dont! या तो तुम कुछ नही जानते या जान कर भी जानना नही चाहते" श्लोक भी शब्द की ओर बङा।


        और एक बार फिर दोनो का eye contact हो जाता है लेकिन इस बार कुछ अलग एहसास है दोनो की आँखों में। और दोनो आगे बङ कर फिर एक दूसरे को kiss करने लगते हैं। लेकिन ये kiss पहले वाले kiss से अलग है कुछ खास है।


Next day early morning - 09/06/2018 - 3:00 AM :-

      "मुझे तुमसे एक बात कहनी है, actually मै तुम्हे कई दिनो से follow कर रहा हूँ। infact जिस दिन मै मुम्बई आया था तुम मुझे उसी दिन lift मे दिखे थे और तब से ही मै एक अजीब सा खिचाव मेहसूस कर रहा हूँ। और उस दिन भी किसी gaurd ने मुझे वो letters नही दिए थे। वो तो मुझे कोई और बहाना नही मिल रहा था तुमसे बात करने का।" वही छत पर बैठे हुए शब्द के कंधे पे सर रखे हुए श्लोक ने शब्द से कहा। और फिर सर उठा कर के थोङे से गुस्से मे बोला " बहुत ही अच्छी मुलाकात थी ना वो।"

         "I am realy sorry! मुझे कुछ भी याद नही है। even मुझे भी तुम्हारे लिए एक अलग सी feeling तब से होने लगी थी जब मे पहली बार तुमसे उस restorent मे मिला था।" शब्द ने श्लोक की ओर देखते हुए कहा।

          "पहली बार????? Hello और उस से पहले???? तुम्हे कुछ याद भी नही??" श्लोक अपना सर पकङ कर वही लेट गया।

          "उस से पहले का तो मुझे कुछ भी याद नही, लेकिन जबसे मै तुमसे टकराया हूँ मुझे बार बार तुम्हारे ही खयाल आते रेहते हैं, पता नही मुझे क्या हो गया है मैने एसा पहले कभी भी किसी के लिए नही feel किया। क्या मै normal तो हूँ।" ये कह कर शब्द भी श्लोक के पास लेट गया।

       "Normal!!!" श्लोक ने शब्द का हाथ पकङा और कहा "yes my dear shabd you are absolutely normal and most charming human being. ये तो बस एक एहसास है प्यार का एहसास जो किसी को भी किसी के लिए भी हो सकता है। इसमे cast, religon or gender कोई मायने नही रखते। ये तो बस लोगो मे हिम्मत नही होती की वो अपनी feelings किसी को बता पाए और अंदर ही अपनी feelings छुपाए रेहते हैं। और वो तो मै था साहब जो तुमसे तुम्हारी feelings को मिलवा दिआ वरना तुम भी अपनी feelings अपने अंदर ही छुपाए रेहते।" ये कहकर श्लोक ने शब्द के सीने पर अपना सर रख दिआ।और फिर शब्द की ओर देखते हुए बोला "एक बात बोलू"

    "हाँ बोलो ना" शब्द श्लोक के बालो को सेहलाते हुए बोला।

"तुम kiss अच्छे से कर लेते हो।" श्लोक ने कहा और दोनो हँसने लगे और फिर दोनो kiss करने लगे।


Stay connected with Shabd and Shlok to know more about their life. It didnt clear yet, what happend with shabd?? Why he is so broken? What goes in his life? To know more please stay with us.


Lots of love 
Yuvraaj ❤

Shadi.Com Part - III

Hello friends,                      If you directly landed on this page than I must tell you, please read it's first two parts, than you...