First please read it's first part, than you get easily be connected with this part. So here's the second part of this murder mystery.
इन दिनों सुमित बहुत खुश रहता था, किसी भी बात का बुरा नही मानता था, सबसे बड़े ही प्यार से और एक बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ ही मिलता था। सभी को सुमित का ये बदला अंदाज साफ नजर आ रहा था, और सभी सुमित के साथ उसके इस नए अंदाज में खुश भी थे, सिवाय शिवांश के। शिवांश के लिए तो ये दिन बहुत ही कठिन बीत रहे थे। ना तो रातों में नींद थी, ना ही दिन में चैन। शिवांश ने सुमित से कई बार उस लड़के के बारे में जानने की कोशिश भी की, लेकिन सुमित हर बार बस यही उत्तर देता था, की अभी वो लोग सिर्फ chat ही करते है, ना तो सुमित के पास उसका कोई फ़ोटो है, ना ही उसका फ़ोन नंबर। शिवांश अपनी तरफ से हर वो कोशिश करना चाहता था, जिसके जरिये वो सुमित को इस अजनबी से दूर रख सके।
यूँ तो सुमित पहले भी कई बार अपने जीवन के लक्ष्यों से शिवांश को अवगत करा चुका था, लेकिन ये facebook friend की तरफ सुमित का झुकाव, शिवांश को बिल्कुल रास नही आ रहा था। अब तो हालात ये हो गए थे कि शिवांश सुमित को एक पल के लिए भी अकेला छोड़ने के लिए तैयार नही था। कभी तो सामने से, कभी छुप - छुप कर सुमित के ऊपर निगरानी रखने लगा था। College में भी जहां कोई लड़का 5 सेकंड से भी ज्यादा सुमित को घूरता दिखता, तो उसे कोने में ले जाकर खूब मारता पीटता और उस से पूछता, की क्या वही सुमित का facebook friend है??? ये सिलसिला यूँ ही कुछ महीने चलता रहा, फिर सुमित busy हो गया अपने exams की तैयारियों में, और शिवांश ने तो इस बार, पूरे exam भर के लिए, अपना डेरा, सुमित के घर मे ही जमा लिया था। शिवांश असल मे दो काम करना चाहता था, एक तो सुमित को facebook से दूर रखना, जो वो अपने घर पर रह कर तो नही ही कर सकता था। और दूसरा काम ये की, मौका पा कर उस लड़के की कुछ भी details पता करना, जो सुमित के दिल मे घर कर चुका था।
लेकिन अफसोस, एसा कुछ भी नही हुआ। सुमित ने खुद ही exam के चलते, facebook से दूरी बना ली थी। और उस लड़के की details, ना तो सुमित के फ़ोन में थी, और ना ही किसी notebook में। लेकिन इस खोजबीन के चक्कर मे, शिवांश ने बिल्कुल भी ध्यान अपनी पढ़ाई पर नही दिया। जिसका नतीजा ये निकला, की जहां सुमित के पडाने से, शिवांश ने, BCA के first year के exam में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था, वही अब भी उसने द्वितीय स्थान ही प्राप्त किया, लेकिन नीचे से। और इसका जरा भी अफसोस शिवांश को नही था। क्योंकि ये MBA और नोएडा तक की भाग दौड़ तो वो सिर्फ सुमित के साथ रहने के लिए ही कर रहा था।
सुमित और शिवांश के MBA के first year के result के साथ साथ दो अच्छी बातें हुईं थी। एक तो स्मिता को उसकी ट्रेनिंग के बाद वडोदरा, गुजरात की एक SBI branch में joining मिली थी, जिसके 2 साल के कठिन प्रयासों के बाद उसका transfer नोएडा के सेक्टर 44 की SBI branch में मिल गया था, तो अब स्मिता को घर से बाहर रहने की कोई जरूरत नही थी। और दूसरी बात ये, की सुमित के facebook friend की भी MBA पूरी हो चुकी थी और college campus से ही placement में उसे भी नोएडा की ही सेक्टर 126 की NIIT Technology Ltd Company में job मिल गयी थी। सुमित के लिए ये सारी ही बाते बड़ी खुशी की थी। एक तो MBA का एक साल अच्छे नंबरो से पूरा हो गया था, स्मिता पूरे 2 साल के बाद वापस घर आ गयी थी और सबसे महत्वपूर्ण, उसके facebook friend की जॉब लग गयी थी, तो अब उस से मिलने का दिन भी करीब आ गया था, और सुमित का एक डर भी खत्म हो गया था। सुमित को डर था, की job मिलने के बाद, स्मिता की तरह ही, कहीं उसके facebook friend को कहीं दूसरे शहर न जाना पडे, लेकिन उसके facebook friend को Amity नोएडा , सेक्टर 125 से 1 सेक्टर से ज्यादा दूर नही जाना पड़ा था। वहीं शिवांश को बाकी सारी बातों से कोई खास फर्क नही पड़ा था, लेकिन सुमित के facebook friend की खबर ने, उसे गुस्सा जरूर दिल दिया था। और शिवांश की बहुत सी कोशिशों के बाद भी, वो दिन आ ही गया, जब सुमित एक blind date पर अपने उसी facebook friend से पहली बार मिलने जा रहा था।
सुमित की date उसके facebook friend ने नोएडा के ही सेक्टर 62 के रेस्टोरेंट Asia Fun में तय की हुई थी। वैसे तो वो facebook friend ग़ाज़ियाबाद ही आना चाह रहा था, और सुमित उस facebook friend के घर के पास यानी दिल्ली जाना चाह रहा था। लेकिन फिर दोनों ने नोएडा में ही मिलना तय किया, और उस facebook friend ने नोएडा का सेक्टर 62 इसलिए चुना, क्योंकि वो ग़ाज़ियाबाद के पास भी था, और वो रेस्टोरेंट भी काफी अच्छा था। यहां तक कि सुमित को उस रेस्टोरेंट तक लाने के लिए एक cab भी book करवा रखी थी, सुमित के उस facebook friend ने। लेकिन शिवांश ने वहां आकर उस cab को वापस लौटा दिया, और सुमित के लाख मना करने पर भी, उसे खुद नोएडा छोड़ कर आने की जिद्द करने लगा। जिस ज़िद्द को आखिरकार सुमित को मानना ही पड़ा। और शिवांश सुमित को अपनी bike पर बैठा, निकल पड़ा नोएडा की ओर। बीच रास्ते आकर, शिवांश ने जानबूझ कर बिना कुछ सोचे समझे, अपनी bike को slip कर दिया, और दोनों बहुत दूर तक रोड पर घसीटते हुए जा गिरे। सुमित को तो कुछ मामूली चोटें और बहुत सी खरोंचे आयी थी, लेकिन शिवांश को काफी गहरी चोटें आई थी, और वो वहीं accident वाली जगह पर ही बेहोश भी हो गया था। वहां लोगों ने उन्हें घेर लिया, और तुरंत ambulance को फोन किया। चूंकि ये accident नोएडा के सेक्टर 63 के आस पास ही हुआ था, तो ambulance उन्हें वहाँ के सबसे नजदीकी हॉस्पिटल, शंकुतला देवी हॉस्पिटल, सेक्टर 62A में ले आयी। सुमित की dressing कर दी गयी, और शिवांश के हाथ और पैर में fracture आ गया था, तो उसका इलाज भी शुरू कर दिया गया। सुमित ने अपने और शिवांश के घरवालों को फ़ोन कर सारा हाल बताया। कुछ देर में सुमित के पास एक फ़ोन और आया, सुमित के उस facebook friend का, जो अभी भी सुमित का इंतेज़ार उसी रेस्टोरेंट में कर रहा था। सुमित ने पहली बार फ़ोन पर अपने उस facebook friend की आवाज सुनी, और फ़ोन पर उस मीठी आवाज से सुमित अपने सारे दुख दर्द भी भूलने लगा, लेकिन सुमित की बात ज्यादा देर तक नही हो पाई, क्योंकि तब तक सुमित और शिवांश के घरवाले हॉस्पिटल पहुंच चुके थे,और वे सभी सुमित से उसका और शिवांश का हाल पूछने लगे।
कुछ देर में शिवांश को plaster भी चढ़ा दिया गया, और उसे होश भी आ गया। शिवांश को एक private room में भी shift कर दिया गया था, जहां सभी घरवाले और सुमित उससे मिलने पहुंचे।
शिवांश वहां हॉस्पिटल के बिस्तर पर आंखे बंद करे तो लेटा था, लेकिन अब उसकी आँखों से नींद कहीं दूर जा चुकी थी। उसने ये accident जानबूझ कर इस मंशा से किआ था, की इसी बहाने सही, वो सुमित को उसके facebook friend उर्फ विवेक से दूर रख सकेगा। लेकिन अब वो अपने किये पर पछता रहा था, और वो भी इसलिए नही, की इन सब मे उसके खुद के हाँथ पैर ही टूट गए थे, बल्कि इसलिए, क्योंकि अब इस हालत में वो सुमित पर नज़र नही रख सकता था, और ना ही उसे विवेक से मिलने से रोक सकता था। और वहीं सुमित और विवेक, हॉस्पिटल की canteen में ही अपनी पहली date मना रहे थे।
अपनी ज़िंदगी की पहली date से घर आकर सुमित ने सबसे पहले फोन शिवांश को ही किआ। क्योंकि सुमित का तो बस एक वो ही ऐसा दोस्त था, जिससे सुमित अपनी सारी मन की बातें कर सकता था।
उस दिन शिवांश के हाँथ पैर ही नही टूटे थे, उसका दिल भी टूटा था, जो किसी को दिखाई भी नही दे रहा था, और जिसे किसी इलाज से ठीक भी नही किआ जा सकता था। वो सुमित से अच्छे से बात तो कर रहा था, लेकिन सुमित की तरफ से उसे बहुत गहरी चोट पहुंची थी। अब सुमित की ज़िंदगी मे कोई आ चुका है, अब सुमित पहले की तरह उसे समय नही दे पाएगा, उसके प्यार को तो सुमित पहले ही ठुकरा चुका था, लेकिन अब तो उसकी दोस्ती भी खतरे में थी, सिर्फ इस एहसास ने ही, शिवांश को अंदर तक घायल कर दिया था। कुछ दिनों बाद शिवांश हॉस्पिटल से तो घर आ गया था, लेकिन उसके चेहरे की हंसी-खुशी कहीं खो गयी थी, और अब उसका मन किसी भी चीज़ में नही लगता था। यूँ तो सुमित सारा दिन हॉस्पिटल में शिवांश के साथ ही रहता था। College न जाकर, हॉस्पिटल में दिन के समय शिवांश की देख रेख किआ करता था। दोपहर में शिवांश को हॉस्पिटल का, या कभी कभी घर से आया खाना खिला कर, खुद विवेक के साथ, कभी हॉस्पिटल की canteen में, कभी विवेक के office की canteen में, खाने के साथ कुछ समय विवेक के साथ बिताकर, रात को ही विवेक के साथ ही घर वापस आया करता था। लेकिन शिवांश के लिए अब सुमित का हॉस्पिटल आना, और उसकी देखभाल करना बस एक बहाना था, जिससे वो कुछ समय विवेक के साथ बिता सके। घर आकर शिवांश ने एक बार तो ये भी सोचा, की वो सुमित के घरवालों को सुमित के GAY होने और विवेक के बारे में भी बता देगा, शायद इस तरह वो सुमित को विवेक से दूर कर सके। लेकिन फिर इस आग की लपटें उसके घर भी ना पहुंच जाए, इस बात के ज़ेहन में आते ही, उसने इस बात को अपने दिमाग से निकाल दिया। लेकिन वो इसी उधेड़बुन में लगा रहता कि, कैसे सुमित को विवेक से दूर किया जाए।
उधर विवेक को भी शिवांश का खुद के लिए ये रूखा व्यवहार साफ नजर आता था, और उसने कई बार सुमित को भी इस बारे में बताया। लेकिन सुमित ने हर बार, शिवांश के बीमार होने की वजह बता कर इस बात को टाल दिया। शिवांश अब घर चुका था, और पहले से काफी बेहतर था, लेकिन अभी भी उसके प्लास्टर कटने में 1 महीना बाकी था। पहले तो सुमित का college जाना शिवांश की bike से ही होता था, लेकिन अब उसने बस से college जाने का इरादा बनाया, लेकिन विवेक ने उसे लाने लेजाने का उपाय सुझाया। लेकिन सुमित को अपनी बहन स्मिता का विचार पसंद आया। स्मिता और उसके 2 दोस्तों, प्रीति और रुमित, जो कि ग़ाज़ियाबाद के ही थे, और स्मिता की बैंक में ही काम किया करते थे, उन्होंने एक cab hire की हुई थी। जो कि उन्हें नोएडा तक लाने लेजाने का काम करती थी। स्मिता ने सुमित को अपने साथ नोएडा चलने का प्रस्ताव दिया, और ये सुझाव सुमित को बेहद पसंद आया। स्मिता के बैंक, सेक्टर 44 और सुमित के college, Amity सेक्टर 125 में सिर्फ एक रोड का फसला था। इसलिए सुमित को अपने साथ ले जाने से स्मिता या उसके दोस्तों को कोई एतराज भी नही हुआ।
अब सुमित सुबह अपने college जाता तो स्मिता और उसके दोस्तों के साथ ही था, लेकिन शाम को विवेक ही उसे वापस घर छोड़ने आता था। धीरे धीरे समय के साथ सभी को इस नई दिनचर्या की आदत भी हो गयी। सुमित हर sunday शिवांश के घर जाकर उसे पढ़ाया भी करता था, और विवेक की कई सारी बातें सांझा भी किआ करता था। शिवांश मुहँ पर तो हंसी रखता था, लेकिन विवेक का नाम सुनते ही उसका दिल सुलग जाया करता था। plaster कटने के बाद ही शिवांश ने सुमित और अपने घरवालों को, आगे पढ़ाई न करने का अपना निर्णय सुना दिया। जिसे सुनकर सबसे ज्यादा आश्चर्य सुमित को हुआ। उसने शिवांश को समझाने की कोशिश भी की, लेकिन शिवांश ने अपने ही तर्क देकर, सुमित को चुप करा दिया। उसने कहा कि उसे MBA करने का अब जरा भी चाव बाकी नही रहा, और जब उसे अपने पापा की मदद ही करनी है, तो क्यों फिर एक साल और बर्बाद करे। वैसे तो शिवांश के दिये तर्क वाजिब थे, लेकिन इसकी वजह था, सुमित और विवेक का साथ। अभी जब सुमित अपने और विवेक के किस्से भर ही सुनता था, तो शिवांश को जलन हुआ करती थी,और college जाकर जब वो दोनों को साथ देखता तो उस पर क्या बीतती। इसलिए खुद को उस दर्द से बचाने के लिए, उसने ये फैसला लिया था।
धीरे धीरे समय यूँही बीतता गया, लेकिन हर sunday शिवांश के घर जाना सुमित ने बंद नही किआ। अब शिवांश का वो गुस्सा, विवेक के लिए वो जलन, पहले से कुछ कम हो चुकी थी। उधर सुमित और विवेक का रिश्ता भी काफी गहरा हो चुका था। विवेक तो अपने परिवार से सुमित को मिलवा भी चुका था, और अपने और सुमित के रिश्ते से भी सभी को अवगत करा चुका था। विवेक के बारे में जान कर उसके घर मे थोड़ा गमगीन माहौल था, जिसे ठीक होने में अभी कुछ समय और लगने वाला था। वहीं सुमित की स्मिता के दोस्तो, प्रीति और रुमित से भी काफी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी, और वो लोग सुमित को किसी चैतन्य का नाम लेकर छेड़ते थे। स्मिता से पूछने पर वो उन लोगों का मज़ाक बोल कर टाल जाया करती थी।
कुछ समय बाद ही सुमित के MBA के final year के exam भी आ गए और उसने बहुत ही अच्छे अंको से MBA भी complete कर ली। और उसने बाकी सारे अच्छे options को दरकिनार कर विवेक की ही NIIT Technology Ltd Company में job भी लेली। अब कंपनी की cab ही सुमित को लेने आया करती थी, तो स्मिता, प्रीति और रुमित का साथ अब छूट गया था। लेकिन विवेक का साथ अब हर समय सुमित के साथ ही रहता था, जिस बात की सुमित को बेहद खुशी थी। कुछ एक महीने बाद, प्रीति और रुमित ने सुमित से मिलने का प्लान बनाया और उसे स्मिता के साथ एक रेस्टोरेंट में बुलाया। वहां रेस्टोरेंट में उनका एक दोस्त और साथ था, जिसका नाम चैतन्य था। उस gettogether में चैतन्य का स्मिता के प्रति extra caring nature, और स्मिता की असहजता ने सुमित को सब समझा दिया था, की क्यों प्रीति और रुमित उसे चैतन्य का नाम लेकर चिढ़ाते थे। वो रात तो बीत गयी, लेकिन उस रात की असहजता को अभी भी स्मिता के चेहरे पर देखा जा सकता था। स्मिता अभी भी अपनी नज़रें अपने ही छोटे भाई से चुरा रही थी। और इसे भांपते हुए सुमित ने छुट्टी के दिन स्मिता से बात करना तय किया।
उस दिन सुमित गया तो था स्मिता को हिम्मत देने, लेकिन फिर खुद हिम्मत दिखा कर, अपना सच स्मिता को बता आया। उसने स्मिता को फिर अपनी और विवेक की इस प्यारी सी प्रेम कहानी से भी अवगत कराया। दोनो भाई बहन, बेहद खुश थे, एक दूसरे के जीवन के अहम लोगों के बारे में जान कर, लेकिन मन में एक अजब सी भावना भी थी, की अब ये बातें अपने माँ - पापा को कब और कैसे बतायी जाएं।
इसी उधेड़बुन में, आंख झपकते ही 2 साल भी बीत गए, और वो ऐतिहासिक दिन भी हमे देखने को मिला, जब 6 सितंबर 2018 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने section 377 को ख़ारिज करते हुए, समलैंगिक रिश्तों को जायज़ ठहराया।
शिवांश इन 3 सालों में सुमित के प्यार को दबाकर आगे तो बड़ गया था, लेकिन उसने अभी भी सुमित के लिए अपने प्यार को भुलाया नही था। बाहर से तो वो यही जताता था, की सुमित और विवेक के रिश्ते से उसे कोई फर्क नही पड़ता, लेकिन भीतर मन में वो विवेक से अभी भी बहुत जलता था। ये जलन विवेक को साफ समझ भी आती थी, जिसका इन 3 सालों में ना जाने कितनी बार विवेक ने सुमित से ज़िक्र भी किआ, लेकिन सुमित को भी इस बात का अंदाज़ा था, की शिवांश विवेक को कुछ खास पसंद नही करता है, लेकिन वो विवेक से जलता है, उस से नफरत करता है, ये बात सुमित मानने को ही तैयार नही था। और इस बात को लेकर सुमित और विवेक में कई बार मनमुटाव भी हो जाय करता था। जिसके फलस्वरूप एक या दो दिन दोनो आपस मे बात नही करते थे, और मुहँ फुलाये इधर उधर घूमते रहते थे, फिर कभी सुमित तो कभी विवेक एक दूसरे को मना कर, बात को रफ़ा दफ़ा कर दिया करते थे।
वहीं विवेक के घरवाले भी, अब तक विवेक का GAY होना स्वीकार कर चुके थे, अब बिना किसी असहजता के, हंसी खुशी रहते थे, लेकिन समाज के डर से, विवेक और सुमित के रिश्ते पर चुप्पी साधे हुए थे।
उधर ये ऐतिहासिक फैसले की खबर चारों तरफ जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी, और स्मिता का बैंक भी इस खबर से अछूता नही था।
इस तरह प्रीति सभी को गोआ जाने के लिए तैयार कर लेती है, और स्मिता के वो 2 फ्रेंड्स कोई और नही, सुमित और विवेक ही थे। इस प्लान के बारे में स्मिता घर आकर सुमित को बताती है, तो वो तो बेहद ही खुश हो जाता है, क्योंकि उसकी तो ये पहली trip होने वाली थी विवेक के साथ। College के बाद सीधे office, तो ऐसे कहीं घूमने फिरने का मौका ही नही मिला था सुमित को। तो वो विवेक को भी मना लेता है, इस trip के लिए। और सुमित के साथ ऐसे बाहर समय बिताने के बारे में सोच कर, विवेक भी खुशी खुशी मान जाता है। रात को जब शिवांश सुमित के घर आता है, तो सुमित बहुत ना नुकुर के बाद शिवांश को भी राजी कर लेता है, साथ चलने के लिए। शिवांश जाना तो नही चाहता था, क्योंकि ना चाहते हुए भी सुमित और विवेक को साथ देखना पड़ता, लेकिन सुमित को मना करने का कोई ठोस कारण भी तो नही था उसके पास। सुमित बेहद खुश था इस trip को लेकर, अब उसे कहाँ पता था, की उसकी जिंदगी की दोस्तों के साथ कि ये पहली trip ही, उसकी आखिरी trip बन जाएगी, और गोआ से वापस वो नही, उसकी लाश आएगी।
आगे की कहानी जानने के लिए आप भी चलिये Goa, सुमित के साथ.......
इन दिनों सुमित बहुत खुश रहता था, किसी भी बात का बुरा नही मानता था, सबसे बड़े ही प्यार से और एक बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ ही मिलता था। सभी को सुमित का ये बदला अंदाज साफ नजर आ रहा था, और सभी सुमित के साथ उसके इस नए अंदाज में खुश भी थे, सिवाय शिवांश के। शिवांश के लिए तो ये दिन बहुत ही कठिन बीत रहे थे। ना तो रातों में नींद थी, ना ही दिन में चैन। शिवांश ने सुमित से कई बार उस लड़के के बारे में जानने की कोशिश भी की, लेकिन सुमित हर बार बस यही उत्तर देता था, की अभी वो लोग सिर्फ chat ही करते है, ना तो सुमित के पास उसका कोई फ़ोटो है, ना ही उसका फ़ोन नंबर। शिवांश अपनी तरफ से हर वो कोशिश करना चाहता था, जिसके जरिये वो सुमित को इस अजनबी से दूर रख सके।
शिवांश :- "कहीं कोई चक्कर तो नही??? इतने दिन हो गए और उसने अपनी फोटो तक नही दिखाई तुझे!! जरूर बहुत ही बुरा दिखता होगा। और कही उसने तुझसे झूठ तो नही बोल दिया?? कही वो हमारा senior ही न हो! और college का माली या watchman हो?? या हो सकता है, की हमारे college का हो ही ना, सच मे कोई बुड्ढा हो!! और बस तेरे मज़े ले रहा हो?? कुछ बता तो तू उसके बारे में?? उसका नाम ही बता दे!! अगर इस college में हुआ, तो में उसे ढूंढ निकालूंगा!!"
सुमित :- "तू भी ना!!! पीछे ही पड़ गया है उसके!!! मैं कह रहा हूँ ना, मुझे नही कोई फर्क पड़ता, वो जैसा भी दिखता है, कौन है, हमारे college का है भी या नही, लेकिन मुझे उससे बातें करना अच्छा लगता है! और मैंने तो उसे अपना फ़ोटो और मोबाइल नंबर दे दिया है। उसे जब सही लगेगा तो वो भी दे देगा।"
शिवांश :- "वाह!!! ये बहुत अच्छा किआ तूने!!! मतलब अगर वो इस college का ही हुआ, तो वो तुझे देख सकता है, लेकिन तुझे पता भी नही चलेगा , की तू जिससे chat करता है, वो तेरे सामने खड़ा है। वाह मेरे शेर!! क्या बेवकूफों वाली हरकत की है तूने!!"
सुमित :- "यार तू कुछ ज्यादा ही serious हो रहा है। उसने मुझे कहा है कि वो मुझे उसके placement के बाद मिलेगा। और वो भी मेरी तरह ही है। वो भी अपने घर मे अपने बारे में सब बताने वाला है, उसके जॉब मिलने के बाद, और उसने तो ये भी बोल है कि , अगर वो मुझे पसंद आ गया, और मेरी तरफ से भी हाँ हो तो, वो मुझे अपने घरवालों से भी मिलवाएगा।"
शिवांश :- "हाँ??? घरवाले??? वो तुझसे शादी करेगा क्या???"
सुमित :- "हाँ"
शिवांश :- "और तू क्या चाहता है???"
सुमित :- "अभी मुझे कुछ नही पता यार!!! सबसे पहले तो मेरी job ही मेरे लिए important है, फिर माँ पापा का क्या reaction होता है, मेरे बारे में जानने के बाद, तब कहीं जाकर ये शादी की बात आती है। तो इतना दूर का सोचने से पहले, पढ़ाई पर ध्यान देले, exam आने वाले हैं।"
यूँ तो सुमित पहले भी कई बार अपने जीवन के लक्ष्यों से शिवांश को अवगत करा चुका था, लेकिन ये facebook friend की तरफ सुमित का झुकाव, शिवांश को बिल्कुल रास नही आ रहा था। अब तो हालात ये हो गए थे कि शिवांश सुमित को एक पल के लिए भी अकेला छोड़ने के लिए तैयार नही था। कभी तो सामने से, कभी छुप - छुप कर सुमित के ऊपर निगरानी रखने लगा था। College में भी जहां कोई लड़का 5 सेकंड से भी ज्यादा सुमित को घूरता दिखता, तो उसे कोने में ले जाकर खूब मारता पीटता और उस से पूछता, की क्या वही सुमित का facebook friend है??? ये सिलसिला यूँ ही कुछ महीने चलता रहा, फिर सुमित busy हो गया अपने exams की तैयारियों में, और शिवांश ने तो इस बार, पूरे exam भर के लिए, अपना डेरा, सुमित के घर मे ही जमा लिया था। शिवांश असल मे दो काम करना चाहता था, एक तो सुमित को facebook से दूर रखना, जो वो अपने घर पर रह कर तो नही ही कर सकता था। और दूसरा काम ये की, मौका पा कर उस लड़के की कुछ भी details पता करना, जो सुमित के दिल मे घर कर चुका था।
लेकिन अफसोस, एसा कुछ भी नही हुआ। सुमित ने खुद ही exam के चलते, facebook से दूरी बना ली थी। और उस लड़के की details, ना तो सुमित के फ़ोन में थी, और ना ही किसी notebook में। लेकिन इस खोजबीन के चक्कर मे, शिवांश ने बिल्कुल भी ध्यान अपनी पढ़ाई पर नही दिया। जिसका नतीजा ये निकला, की जहां सुमित के पडाने से, शिवांश ने, BCA के first year के exam में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था, वही अब भी उसने द्वितीय स्थान ही प्राप्त किया, लेकिन नीचे से। और इसका जरा भी अफसोस शिवांश को नही था। क्योंकि ये MBA और नोएडा तक की भाग दौड़ तो वो सिर्फ सुमित के साथ रहने के लिए ही कर रहा था।
सुमित और शिवांश के MBA के first year के result के साथ साथ दो अच्छी बातें हुईं थी। एक तो स्मिता को उसकी ट्रेनिंग के बाद वडोदरा, गुजरात की एक SBI branch में joining मिली थी, जिसके 2 साल के कठिन प्रयासों के बाद उसका transfer नोएडा के सेक्टर 44 की SBI branch में मिल गया था, तो अब स्मिता को घर से बाहर रहने की कोई जरूरत नही थी। और दूसरी बात ये, की सुमित के facebook friend की भी MBA पूरी हो चुकी थी और college campus से ही placement में उसे भी नोएडा की ही सेक्टर 126 की NIIT Technology Ltd Company में job मिल गयी थी। सुमित के लिए ये सारी ही बाते बड़ी खुशी की थी। एक तो MBA का एक साल अच्छे नंबरो से पूरा हो गया था, स्मिता पूरे 2 साल के बाद वापस घर आ गयी थी और सबसे महत्वपूर्ण, उसके facebook friend की जॉब लग गयी थी, तो अब उस से मिलने का दिन भी करीब आ गया था, और सुमित का एक डर भी खत्म हो गया था। सुमित को डर था, की job मिलने के बाद, स्मिता की तरह ही, कहीं उसके facebook friend को कहीं दूसरे शहर न जाना पडे, लेकिन उसके facebook friend को Amity नोएडा , सेक्टर 125 से 1 सेक्टर से ज्यादा दूर नही जाना पड़ा था। वहीं शिवांश को बाकी सारी बातों से कोई खास फर्क नही पड़ा था, लेकिन सुमित के facebook friend की खबर ने, उसे गुस्सा जरूर दिल दिया था। और शिवांश की बहुत सी कोशिशों के बाद भी, वो दिन आ ही गया, जब सुमित एक blind date पर अपने उसी facebook friend से पहली बार मिलने जा रहा था।
सुमित की date उसके facebook friend ने नोएडा के ही सेक्टर 62 के रेस्टोरेंट Asia Fun में तय की हुई थी। वैसे तो वो facebook friend ग़ाज़ियाबाद ही आना चाह रहा था, और सुमित उस facebook friend के घर के पास यानी दिल्ली जाना चाह रहा था। लेकिन फिर दोनों ने नोएडा में ही मिलना तय किया, और उस facebook friend ने नोएडा का सेक्टर 62 इसलिए चुना, क्योंकि वो ग़ाज़ियाबाद के पास भी था, और वो रेस्टोरेंट भी काफी अच्छा था। यहां तक कि सुमित को उस रेस्टोरेंट तक लाने के लिए एक cab भी book करवा रखी थी, सुमित के उस facebook friend ने। लेकिन शिवांश ने वहां आकर उस cab को वापस लौटा दिया, और सुमित के लाख मना करने पर भी, उसे खुद नोएडा छोड़ कर आने की जिद्द करने लगा। जिस ज़िद्द को आखिरकार सुमित को मानना ही पड़ा। और शिवांश सुमित को अपनी bike पर बैठा, निकल पड़ा नोएडा की ओर। बीच रास्ते आकर, शिवांश ने जानबूझ कर बिना कुछ सोचे समझे, अपनी bike को slip कर दिया, और दोनों बहुत दूर तक रोड पर घसीटते हुए जा गिरे। सुमित को तो कुछ मामूली चोटें और बहुत सी खरोंचे आयी थी, लेकिन शिवांश को काफी गहरी चोटें आई थी, और वो वहीं accident वाली जगह पर ही बेहोश भी हो गया था। वहां लोगों ने उन्हें घेर लिया, और तुरंत ambulance को फोन किया। चूंकि ये accident नोएडा के सेक्टर 63 के आस पास ही हुआ था, तो ambulance उन्हें वहाँ के सबसे नजदीकी हॉस्पिटल, शंकुतला देवी हॉस्पिटल, सेक्टर 62A में ले आयी। सुमित की dressing कर दी गयी, और शिवांश के हाथ और पैर में fracture आ गया था, तो उसका इलाज भी शुरू कर दिया गया। सुमित ने अपने और शिवांश के घरवालों को फ़ोन कर सारा हाल बताया। कुछ देर में सुमित के पास एक फ़ोन और आया, सुमित के उस facebook friend का, जो अभी भी सुमित का इंतेज़ार उसी रेस्टोरेंट में कर रहा था। सुमित ने पहली बार फ़ोन पर अपने उस facebook friend की आवाज सुनी, और फ़ोन पर उस मीठी आवाज से सुमित अपने सारे दुख दर्द भी भूलने लगा, लेकिन सुमित की बात ज्यादा देर तक नही हो पाई, क्योंकि तब तक सुमित और शिवांश के घरवाले हॉस्पिटल पहुंच चुके थे,और वे सभी सुमित से उसका और शिवांश का हाल पूछने लगे।
कुछ देर में शिवांश को plaster भी चढ़ा दिया गया, और उसे होश भी आ गया। शिवांश को एक private room में भी shift कर दिया गया था, जहां सभी घरवाले और सुमित उससे मिलने पहुंचे।
शिवांश के पापा :- "कितनी बार कहा है इस लड़के को की धीरे गाड़ी चलाया कर, लेकिन सुनता ही नही है।"
शिवांश :- (सबको अनदेखा कर) "सुमित कैसा है तू??? ज्यादा चोट तो नही आई तुझे??? Sorry यार मेरी वजह से तेरा सारा प्लान खराब हो गया।"
स्मिता :- "कौनसा प्लान???"
सुमित :- (हड़बड़ाते हुए) "college का प्लान.... और कैसा प्लान!! तू बिल्कुल भी परेशान मत हो शिवांश, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। और देख तुझसे, मिलने कोन आया है??"
शिवांश :- (सुमित और बाकी घरवालों के बीच एक अजनबी को देखकर) "ये कौन है???"
सुमित :- (शिवांश को आंखों से इशारे करने के साथ साथ) "विवेक!!! अपने senior!!! यहीं पास में ही थे। अपने accident की खबर सुनी, तो यहां आ गए।"
विवेक :- "Hello शिवांश!! I hope की fracture minor हों और तुम जल्दी से ठीक हो जाओ।"
शिवांश :- (सुमित का इशारा समझते हुए) "अब आप आ गए हो, तो ठीक तो होना ही पड़ेगा।....... चलिये अब आप लोग जाईये और मुझे थोड़ा आराम करने दीजिए।"
शिवांश की मम्मी :- "हाँ स्मिता बेटा, बहनजी आप लोग भी घर जाईये, और सुमित का ख्याल रखियेगा। यहां हम लोग है।"
करुणा जी :- "हाँ बहनजी आप भी ख्याल रखियेगा शिवांश का। हम लोग घर जाते है, अभी स्मिता के पापा को भी नही बताया है बच्चों के accident के बारे में, उनको थोड़ा BP का problem रहता है। और बहनजी, भाईसाहब कोई भी चीज़ की जरूरत हो तो बेझिझक बोल दीजियेगा, शिवांश भी हमारे बच्चे जैसा ही है। अब हम चलते है, कल फिर आएंगे।"
सुमित :- (स्मिता और माँ को जाता देख) "दीदी आप माँ को लेकर जाओ, मैं विवेक जी के साथ आ जाऊंगा।"
करुणा जी :- "अरे नही! साथ चल हमारे घर चल के आराम कर। देख कितनी चोट आई है।"
सुमित :- "नही माँ, मैं ठीक हूँ, और आप चलिये तो, मैं भी बस कुछ ही देर में घर पहुंचता हुँ।"
करुणा जी :- "ठीक है, लेकिन ध्यान से आना बच्चों, आज कल तो रोड पे चलना ही मुश्किल हो गया है।"
शिवांश वहां हॉस्पिटल के बिस्तर पर आंखे बंद करे तो लेटा था, लेकिन अब उसकी आँखों से नींद कहीं दूर जा चुकी थी। उसने ये accident जानबूझ कर इस मंशा से किआ था, की इसी बहाने सही, वो सुमित को उसके facebook friend उर्फ विवेक से दूर रख सकेगा। लेकिन अब वो अपने किये पर पछता रहा था, और वो भी इसलिए नही, की इन सब मे उसके खुद के हाँथ पैर ही टूट गए थे, बल्कि इसलिए, क्योंकि अब इस हालत में वो सुमित पर नज़र नही रख सकता था, और ना ही उसे विवेक से मिलने से रोक सकता था। और वहीं सुमित और विवेक, हॉस्पिटल की canteen में ही अपनी पहली date मना रहे थे।
सुमित :- "I am really sorry! मेरी वजह से आपकी सारी arrangement खराब हो गयी।"
विवेक :- "Dont be sorry!! अब इस accident में तुम्हारी क्या गलती, और please मैने chat पर भी कितनी बार बोला है, मुझे आप मत बोलो, थोड़ी बुजर्गों वाली feeling आने लगती है।"
सुमित :- "Ok!! मैं आपको आप नही बोलूंगा!! Sorry..... तुमको!! अब ठीक है? और सच मे यार, मेरी ही गलती है, अगर मैं शिवांश की जिद्द नही मानता, तो अभी वो भी ठीक ठाक अपने घर होता और मैं भी आपके...... तुम्हारे साथ!!"
विवेक :- "Dont worry! शिवांश जल्दी ठीक हो जाएगा!! और देखो, तुम मेरे साथ ही तो हो, और हमारी first date के लिए ये जगह भी कोई बुरी नही।"
अपनी ज़िंदगी की पहली date से घर आकर सुमित ने सबसे पहले फोन शिवांश को ही किआ। क्योंकि सुमित का तो बस एक वो ही ऐसा दोस्त था, जिससे सुमित अपनी सारी मन की बातें कर सकता था।
सुमित :- "Hello!!! सो रहा था क्या? इतनी देर लगादी फ़ोन उठाने में??"
शिवांश :- "सोच रहा था, फ़ोन उठाऊ या नही!!"
सुमित :- "एक हाँथ टूटा है बस, तो दूसरे हाँथ से उठा सकता है। ये सब छोड़, और ये बात, विवेक कैसा लगा तुझे??"
शिवांश :- "दिखने में तो ठीक ठाक ही है, लेकिन तू पहले उसे अच्छे से जान ले, समझ ले, फिर कोई फैसला लेना।"
सुमित :- "यार हमें बात करते हुए, चाहे chat ही सही, काफी समय हो गया है। तो अब हम एक दूसरे को काफी अच्छे से जानते समझते है। बस मिलना ही बाकी रह गया था, वो भी आज हो गया।"
शिवांश :- (आंखों में आंसू भरे) "हाँ चल बढ़िया है, अब तुझे तेरा प्यार मिल गया है, अब तू मेरा पीछा तो छोड़ेगा।"
सुमित :- "नही यार ऐसा बिल्कुल नही है, उसकी जगह अलग है, और तेरी अलग। तू तो मेरा इकलौता bestest friend है, जो हर समय मेरे साथ रहता है, और ज्यादा खुश मत हो, विवेक आ गया है तो इसका ये मतलब थोड़ी है कि मैं तुझे छोड़ दूंगा।"
शिवांश :- "हाँ हाँ ठीक है, चल अब फ़ोन रख और मुझे सोने दे।"
उस दिन शिवांश के हाँथ पैर ही नही टूटे थे, उसका दिल भी टूटा था, जो किसी को दिखाई भी नही दे रहा था, और जिसे किसी इलाज से ठीक भी नही किआ जा सकता था। वो सुमित से अच्छे से बात तो कर रहा था, लेकिन सुमित की तरफ से उसे बहुत गहरी चोट पहुंची थी। अब सुमित की ज़िंदगी मे कोई आ चुका है, अब सुमित पहले की तरह उसे समय नही दे पाएगा, उसके प्यार को तो सुमित पहले ही ठुकरा चुका था, लेकिन अब तो उसकी दोस्ती भी खतरे में थी, सिर्फ इस एहसास ने ही, शिवांश को अंदर तक घायल कर दिया था। कुछ दिनों बाद शिवांश हॉस्पिटल से तो घर आ गया था, लेकिन उसके चेहरे की हंसी-खुशी कहीं खो गयी थी, और अब उसका मन किसी भी चीज़ में नही लगता था। यूँ तो सुमित सारा दिन हॉस्पिटल में शिवांश के साथ ही रहता था। College न जाकर, हॉस्पिटल में दिन के समय शिवांश की देख रेख किआ करता था। दोपहर में शिवांश को हॉस्पिटल का, या कभी कभी घर से आया खाना खिला कर, खुद विवेक के साथ, कभी हॉस्पिटल की canteen में, कभी विवेक के office की canteen में, खाने के साथ कुछ समय विवेक के साथ बिताकर, रात को ही विवेक के साथ ही घर वापस आया करता था। लेकिन शिवांश के लिए अब सुमित का हॉस्पिटल आना, और उसकी देखभाल करना बस एक बहाना था, जिससे वो कुछ समय विवेक के साथ बिता सके। घर आकर शिवांश ने एक बार तो ये भी सोचा, की वो सुमित के घरवालों को सुमित के GAY होने और विवेक के बारे में भी बता देगा, शायद इस तरह वो सुमित को विवेक से दूर कर सके। लेकिन फिर इस आग की लपटें उसके घर भी ना पहुंच जाए, इस बात के ज़ेहन में आते ही, उसने इस बात को अपने दिमाग से निकाल दिया। लेकिन वो इसी उधेड़बुन में लगा रहता कि, कैसे सुमित को विवेक से दूर किया जाए।
उधर विवेक को भी शिवांश का खुद के लिए ये रूखा व्यवहार साफ नजर आता था, और उसने कई बार सुमित को भी इस बारे में बताया। लेकिन सुमित ने हर बार, शिवांश के बीमार होने की वजह बता कर इस बात को टाल दिया। शिवांश अब घर चुका था, और पहले से काफी बेहतर था, लेकिन अभी भी उसके प्लास्टर कटने में 1 महीना बाकी था। पहले तो सुमित का college जाना शिवांश की bike से ही होता था, लेकिन अब उसने बस से college जाने का इरादा बनाया, लेकिन विवेक ने उसे लाने लेजाने का उपाय सुझाया। लेकिन सुमित को अपनी बहन स्मिता का विचार पसंद आया। स्मिता और उसके 2 दोस्तों, प्रीति और रुमित, जो कि ग़ाज़ियाबाद के ही थे, और स्मिता की बैंक में ही काम किया करते थे, उन्होंने एक cab hire की हुई थी। जो कि उन्हें नोएडा तक लाने लेजाने का काम करती थी। स्मिता ने सुमित को अपने साथ नोएडा चलने का प्रस्ताव दिया, और ये सुझाव सुमित को बेहद पसंद आया। स्मिता के बैंक, सेक्टर 44 और सुमित के college, Amity सेक्टर 125 में सिर्फ एक रोड का फसला था। इसलिए सुमित को अपने साथ ले जाने से स्मिता या उसके दोस्तों को कोई एतराज भी नही हुआ।
अब सुमित सुबह अपने college जाता तो स्मिता और उसके दोस्तों के साथ ही था, लेकिन शाम को विवेक ही उसे वापस घर छोड़ने आता था। धीरे धीरे समय के साथ सभी को इस नई दिनचर्या की आदत भी हो गयी। सुमित हर sunday शिवांश के घर जाकर उसे पढ़ाया भी करता था, और विवेक की कई सारी बातें सांझा भी किआ करता था। शिवांश मुहँ पर तो हंसी रखता था, लेकिन विवेक का नाम सुनते ही उसका दिल सुलग जाया करता था। plaster कटने के बाद ही शिवांश ने सुमित और अपने घरवालों को, आगे पढ़ाई न करने का अपना निर्णय सुना दिया। जिसे सुनकर सबसे ज्यादा आश्चर्य सुमित को हुआ। उसने शिवांश को समझाने की कोशिश भी की, लेकिन शिवांश ने अपने ही तर्क देकर, सुमित को चुप करा दिया। उसने कहा कि उसे MBA करने का अब जरा भी चाव बाकी नही रहा, और जब उसे अपने पापा की मदद ही करनी है, तो क्यों फिर एक साल और बर्बाद करे। वैसे तो शिवांश के दिये तर्क वाजिब थे, लेकिन इसकी वजह था, सुमित और विवेक का साथ। अभी जब सुमित अपने और विवेक के किस्से भर ही सुनता था, तो शिवांश को जलन हुआ करती थी,और college जाकर जब वो दोनों को साथ देखता तो उस पर क्या बीतती। इसलिए खुद को उस दर्द से बचाने के लिए, उसने ये फैसला लिया था।
धीरे धीरे समय यूँही बीतता गया, लेकिन हर sunday शिवांश के घर जाना सुमित ने बंद नही किआ। अब शिवांश का वो गुस्सा, विवेक के लिए वो जलन, पहले से कुछ कम हो चुकी थी। उधर सुमित और विवेक का रिश्ता भी काफी गहरा हो चुका था। विवेक तो अपने परिवार से सुमित को मिलवा भी चुका था, और अपने और सुमित के रिश्ते से भी सभी को अवगत करा चुका था। विवेक के बारे में जान कर उसके घर मे थोड़ा गमगीन माहौल था, जिसे ठीक होने में अभी कुछ समय और लगने वाला था। वहीं सुमित की स्मिता के दोस्तो, प्रीति और रुमित से भी काफी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी, और वो लोग सुमित को किसी चैतन्य का नाम लेकर छेड़ते थे। स्मिता से पूछने पर वो उन लोगों का मज़ाक बोल कर टाल जाया करती थी।
कुछ समय बाद ही सुमित के MBA के final year के exam भी आ गए और उसने बहुत ही अच्छे अंको से MBA भी complete कर ली। और उसने बाकी सारे अच्छे options को दरकिनार कर विवेक की ही NIIT Technology Ltd Company में job भी लेली। अब कंपनी की cab ही सुमित को लेने आया करती थी, तो स्मिता, प्रीति और रुमित का साथ अब छूट गया था। लेकिन विवेक का साथ अब हर समय सुमित के साथ ही रहता था, जिस बात की सुमित को बेहद खुशी थी। कुछ एक महीने बाद, प्रीति और रुमित ने सुमित से मिलने का प्लान बनाया और उसे स्मिता के साथ एक रेस्टोरेंट में बुलाया। वहां रेस्टोरेंट में उनका एक दोस्त और साथ था, जिसका नाम चैतन्य था। उस gettogether में चैतन्य का स्मिता के प्रति extra caring nature, और स्मिता की असहजता ने सुमित को सब समझा दिया था, की क्यों प्रीति और रुमित उसे चैतन्य का नाम लेकर चिढ़ाते थे। वो रात तो बीत गयी, लेकिन उस रात की असहजता को अभी भी स्मिता के चेहरे पर देखा जा सकता था। स्मिता अभी भी अपनी नज़रें अपने ही छोटे भाई से चुरा रही थी। और इसे भांपते हुए सुमित ने छुट्टी के दिन स्मिता से बात करना तय किया।
सुमित :- "चल दीदी मेरे कमरे में चल, मुझे तुझसे कुछ बात करनी है।"
स्मिता :- (नज़रे चुराते हुए) "बाद में आती हूँ, सुमित! अभी थोड़ा काम है।"
सुमित :- (स्मिता का हाँथ पकड़, अपने कमरे में ले जाते हुए) "काम बाद में भी हो जाएंगे, लेकिन मेरा तुझसे बात करना ज्यादा जरूरी है। आ यहां बैठ और बात क्या हुआ है? क्यों तू मुझसे नज़ारे चुरा रही है इतने दिनों से??"
स्मिता :- (इधर-उधर देखते हुए) "कहाँ कुछ हुआ है?? कुछ भी तो नही हुआ!!"
सुमित :- (स्मिता का हाँथ पकड़ कर) "ठीक है ना दीदी, तूने कोई गलत काम नही किआ है। प्यार करना कोई गलती तो नही है ना, तो तू क्यों ऐसे behave कर रही है, जैसे तूने कोई गलती कर दी हो।"
स्मिता :- (सिर झुका कर) "I know यार!! लेकिन मैं नही चाहती थी कि चैतन्य इस तरह से तेरे सामने आए। और मुझे नही पता था कि प्रीति और रुमित ने उसे भी बुलाया है। वरना....."
सुमित :- (स्मिता को बीच मे ही टोकते हुए, और उसका सिर अपने हांथो से ऊपर उठाते हुए) "तो क्या हो गया?? इसमे इतना तो कुछ बुरा नही हुआ न कि तू मुझसे नज़रें चुराए, और यूँ सिर झुका कर बैठे। अब चल छोड़ ये सब और बता जीजाजी के बारे में, कहाँ से है, क्या करते हैं, तू कहाँ मिली और कबसे चल रहा ये सब???"
स्मिता :- (मुस्कुराते हुए) "बस-बस और कितने सवाल करेगा। सब बताती हूँ... चैतन्य मेरी ही बैंक में मैनेजर है, बैंक में ही मिली मैं उस से, पहले तो बस normal friendship थी, लेकिन फिर ये कब प्यार में बदल गयी मुझे पता ही नही चला। हमारी friendship तो तब ही हो गयी थी जब मैने बैंक join किआ, लेकिन पिछले साल ही उसने मुझे prupose किआ, और मैने भी हाँ बोल दी। तब तो नही सोचा, लेकिन बाद में लगा कि एक बार माँ पापा और तुझे इस बारे में बता देना चाहिए, लेकिन हिम्मत ही नही हुई कभी। और फिर वो अचानक से तेरे सामने ही आ गया, तो समझ ही नही आ रहा था, की पहले तुझे बताऊ, या माँ - पापा को बताऊ या क्या करूँ।"
सुमित :- (स्मिता के कंधों पर हाथ रखते हुए) "अरे chill दीदी! इतनी भी कोई tension की बात नही है। अभी बता दे माँ - पापा को और मैं तो कहता हूं, साथ ही साथ रात के खाने पर भी बुला ले चैतन्य को।"
स्मिता :- "नहीं!!! पहले माँ - पापा को तो बता दूं, फिर आगे वो लोग जैसा बोलें।"
सुमित :- (स्मिता का हाँथ वापस से पकड़ते हुए) "दीदी!! मुझे भी तुझे कुछ बताना है।"
स्मिता :- "हाँ बता ना, क्या बात है।"
सुमित :- "मैं भी पिछले साल किसी से मिला online, हमने बातें की फिर हम मिले और वो online वाली friendship धीरे धीरे प्यार में बदल गयी। और मैं पिछले साल भर से उसके साथ commited relationship में हूँ।"
स्मिता :- "अरे तो ये तो खुशी की बात है ना, तो तू इतने seriuosly क्यों बता रहा है। और मुझे भी तो दिखा मेरी भाभी का फोटो..... मैं भी तो देखूं कौन है ये online girlfriend?"
सुमित :- "दीदी girlfriend नही.... boyfriend!!"
स्मिता :- "क्या मतलब???"
सुमित :- "दीदी I am in a relationship with a boy!! I am GAY!!!"
स्मिता :- (थोड़ी देर चुप रहने के बाद) "कबसे है ऐसा??? और कैसे???"
सुमित :- "क्या कबसे और कैसे दीदी? कोई बीमारी थोड़ी है, I am born GAY!!!"
स्मिता :- "अरे मेरा मतलब, तू कबसे जनता है अपनी इन feelings के बारे में?"
सुमित :- "नही याद दीदी!!! लेकिन ये तो मुझे स्कूल में ही समझ आ गया था कि मैं लड़कों की तरफ ही attract होता हूँ लड़कियों की तरफ नही।"
स्मिता :- (अपने भाई को समझते हुए) "तो तूने अब तक क्यों छुपा के रखी ये बात?? माँ - पापा को पता है इस बारे में??"
सुमित :- "नही दीदी!! मुझे नही समझ आ रहा था कि आप लोग कैसे react करोगे, तो मैंने नही बताया किसी को।"
स्मिता :- (कुछ देर सोचने के बाद मुस्कुरा कर) "चल कोई बात नही की तूने पहले क्यों नही बताया, अगर पहले बता देता तो ये सारा बोझ तुझे इतने सालों अपने अंदर ही छुपाने की जरूरत नही पड़ती, तू GAY हो या Straight, तू पहले मेरा भाई है, और हमेशा रहेगा। चल अब वो लड़का ही बता दे, कौन है वो?? एक मिनट, कहीं वो शिवांश तो नही???"
सुमित :- "नही दीदी!!! वो तो मेरा दोस्त है। लेकिन हां वो मेरे बारे में सब जनता है। और मेरा boyfriend तो विवेक है, वो जिससे आप लोगों को हॉस्पिटल में मिलवाया था।"
उस दिन सुमित गया तो था स्मिता को हिम्मत देने, लेकिन फिर खुद हिम्मत दिखा कर, अपना सच स्मिता को बता आया। उसने स्मिता को फिर अपनी और विवेक की इस प्यारी सी प्रेम कहानी से भी अवगत कराया। दोनो भाई बहन, बेहद खुश थे, एक दूसरे के जीवन के अहम लोगों के बारे में जान कर, लेकिन मन में एक अजब सी भावना भी थी, की अब ये बातें अपने माँ - पापा को कब और कैसे बतायी जाएं।
इसी उधेड़बुन में, आंख झपकते ही 2 साल भी बीत गए, और वो ऐतिहासिक दिन भी हमे देखने को मिला, जब 6 सितंबर 2018 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने section 377 को ख़ारिज करते हुए, समलैंगिक रिश्तों को जायज़ ठहराया।
सुमित :- (TV देखते हुए) "दीदी देख न्यूज़ पर क्या चल रहा है, section 377 को हटा दिया गया है, अब LGBT समुदाय के लोग भी भारत मे legal शादी करके रह सकते हैं।"
स्मिता :- (बैंक के लिए निकलते हुए) "अरे वाह भाई!!! ये तो अच्छी खबर है। अब कम से कम भारत के लोगों का नज़रिया तो बदलेगा। चल मैं निकलती हूँ, शाम को मिलती हूँ तुझे, आराम कर अब तू।"
सुमित :- (स्मिता के जाने के बाद, शिवांश को फोन लगाते हुए) "hello!!! कहाँ है???? News देखी??? Section 377 को हटा दिया है आज सुप्रीम कोर्ट ने।"
शिवांश :- (फ़ोन पर) "हाँ तो क्या हो गया??? कहलायेग तो GAY ही ना, GAY का ठप्पा हटा के तुझे इंसान तो नही बना दिया ना!!"
सुमित :- "अरे तो क्या हो गया, जैसे अभी ये समझ आया है कि हम लोग मुजरिम नही है, आगे ये भी समझ आ जायेगा कि हम भी normal इंसान हैं।और तू ये सब छोड़, अगर free है तो घर आजा मेरे!! आज office नही जा रहा हूँ, तबियत ठीक नही थोड़ी, और तुझसे मिले भी काफी समय हो गया।"
शिवांश :- "नही यार, काम है तो busy हूँ अभी तो, पापा भी बाहर गए थे हफ्ते भर को कुछ काम से, आज आजायेंगे तो फिर में free हु हफ्ते भर के लिए, तो अभी तो नही आ सकता। तू अपने वो facebook friend को बुला ले ना।"
सुमित :- "उसका नाम भी है, पता नही क्यों तू उसे facebook friend ही बोलता रहता है। और मुझे उसके नही, अपने दोस्त के साथ समय बिताना है, तू बता कब तक आ जायेगा??"
शिवांश :- "अभी तो नही यार, रात को आता हूँ free होकर, और आज आंटी को बोल देना पकोड़ी की कड़ी बनाने को, सालों से नही खाई आंटी के हाँथ की कड़ी।"
सुमित :- "हाँ तू आ तो जा, मैं तो हमेशा बोलता हूं आने को, लेकिन अब तेरे पास time ही कहाँ!!"
शिवांश इन 3 सालों में सुमित के प्यार को दबाकर आगे तो बड़ गया था, लेकिन उसने अभी भी सुमित के लिए अपने प्यार को भुलाया नही था। बाहर से तो वो यही जताता था, की सुमित और विवेक के रिश्ते से उसे कोई फर्क नही पड़ता, लेकिन भीतर मन में वो विवेक से अभी भी बहुत जलता था। ये जलन विवेक को साफ समझ भी आती थी, जिसका इन 3 सालों में ना जाने कितनी बार विवेक ने सुमित से ज़िक्र भी किआ, लेकिन सुमित को भी इस बात का अंदाज़ा था, की शिवांश विवेक को कुछ खास पसंद नही करता है, लेकिन वो विवेक से जलता है, उस से नफरत करता है, ये बात सुमित मानने को ही तैयार नही था। और इस बात को लेकर सुमित और विवेक में कई बार मनमुटाव भी हो जाय करता था। जिसके फलस्वरूप एक या दो दिन दोनो आपस मे बात नही करते थे, और मुहँ फुलाये इधर उधर घूमते रहते थे, फिर कभी सुमित तो कभी विवेक एक दूसरे को मना कर, बात को रफ़ा दफ़ा कर दिया करते थे।
वहीं विवेक के घरवाले भी, अब तक विवेक का GAY होना स्वीकार कर चुके थे, अब बिना किसी असहजता के, हंसी खुशी रहते थे, लेकिन समाज के डर से, विवेक और सुमित के रिश्ते पर चुप्पी साधे हुए थे।
उधर ये ऐतिहासिक फैसले की खबर चारों तरफ जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी, और स्मिता का बैंक भी इस खबर से अछूता नही था।
प्रीति :- "यार तुम लोगों को SC के verdict के बारे में पता चला??"
स्मिता :- "हाँ, सुमित बता रहा था सुबह, चलो देर से ही सही, SC ने ये तो माना कि GAYS कोई मुजरिम नही, उन्हें भी समान अधिकार मिलना चाहिए, अपने हिसाब से रहने का ।"
चैतन्य :- "और क्या.... they are not criminals, they are just sick!!"
स्मिता :- "what sick?? ये कोई बीमारी नही है। They are as normal like us. They just attracted toward same sex, thats it!! इतनी साधारण सी बात है बस।"
चैतन्य :- (हंसते हुए) "तुम तो ऐसे बात कर रही हो, जैसे तुम्हारे रिश्तेदार ही GAY हों।"
स्मिता :- "GAY हो भी तो क्या??? वो भी हमारी तरह normal इंसान है।"
चैतन्य :- "Oh please स्मिता! अब देखना इस फैसले से कितना गंदा हो जाएगा हमारा समाज, जो लोग अभी तक कहीं छुपे बैठे थे, इस फैसले से वो लोग भी बाहर आ जाएंगे, और इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा हम सभी पर।"
स्मिता :- "What do you mean by की बुरा असर पड़ेगा?? अब किसी के GAY होने पर, तुम पर क्या बुरा असर पड़ेगा।"
चैतन्य :- (हंसते हुए) "अरे तुम जानती नही हो इन लोगों को, ये अपने जैसा ही बना लेते हैं सभी को।"
स्मिता :- (गुस्से में) "क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हो?? मेरा भाई GAY है, कुछ बुरा असर पड़ा उसका मुझ पर?? वो तो प्रीति और रुमित के साथ भी बहुत रहा है, क्या इन लोगों को भी उसने GAY बना लिया??"
चैतन्य :- (आश्चर्य से) "सुमित???? तुम्हारा भाई सुमित??? हम उसे किसी doctor के पास ले चलते है, शायद वो ठीक हो जाये।"
स्मिता :- (ग़ुस्से में वहां से जाते हुए) "Doctor की जरूरत उसे नही, तुम्हारी छोटी सोच को है।"
चैतन्य :- (हंसते हुए स्मिता को रोकने की कोशिश करते हुए) "अरे मेरा वो मतलब नही था यार, तुम तो गुस्सा ही हो गयी, सुनो तो..... रुको...... "
चैतन्य :- (स्मिता के जाने के बाद रुमित और प्रीति से) "कहा था ना, ये फैसला हम सब पर बुरा असर डालेगा, देखो शुरुआत यही से हो गयी।"
रुमित :- (चैतन्य को समझाते हुए) "यार तो तुझे भी सही से बात करनी चाहिए थी ना, अब उसका भाई है तो उसे तो बुरा लगेगा ही ना। हम दोनों भी तो है यहां, और सुमित के बारे में सुनकर हमे भी झटका लगा, लेकिन हम लोगों ने कुछ भी कहा?? तो तुझे भी बात आगे नही बढ़ानी चाहिए थी ना यार!"
चैतन्य :- "अरे तो मैंने क्या गलत कह दिया, मैं स्मिता को बहुत प्यार करता हूँ, उसकी family भी मेरी faimly जैसी ही है।"
प्रीति :- "हम सब जानते है चैतन्य की तुम कितना प्यार करते हो स्मिता से, और वो भी उतना ही प्यार करती है तुम्हे, लेकिन तुम भी तो समझो ना, उसके भाई की बात है, तो उसे बुरा तो लगेगा ना।"
चैतन्य :- "यार तो में भी तो उसके भाई को ठीक करने की ही तो बात कर रहा था, हो सकता है मेरे कहने का तरीका थोड़ा सा गलत हो।"
रुमित :- "हाँ तो जा अब मना ले उसे।"
चैतन्य :- "नही मानेगी यार ऐसे वो, बहुत ज़िद्दी है।"
रुमित :- "तो कहीं बाहर ले जा उसे, lunch या dinner पे, एक अच्छा सा गिफ्ट दे और sorry बोल दे, फिर मान जाएगी।"
प्रीति :- "मेरे पास एक idea है, हम सब कहीं बाहर holiday पर चलते है, घूमना फिरना भी हो जाएगा, माहौल भी बदल जायेगा, तुम उसे मना भी लेना।"
चैतन्य :- "यार वो बहुत गुस्से में है, वो नही मानेगी, और कहीं बाहर जाने को तो बिल्कुल नही।"
प्रीति :- "अरे ये सब मुझ पर छोड़ दो, हम लोग कल ही छुट्टियों के लिए गोआ जाने के बारे में सोच रहे थे। मैं अभी उसे मना कर आती हूँ, तुम लोग बस जाने की तैयारी करो।"
प्रीति :- (स्मिता को मनाते हुए) "अरे स्मिता, जाने दे ना अब उस बात को, थोड़ा time दे उसे, वो समझ जाएगा अपनी गलती।"
स्मिता :- "यार प्रीति मुझे गुस्सा चैतन्य पर नही, उसकी सोच पर आ रहा है। मैं यहां उसे अपने घरवालों से मिलवाने के बारे में सोच रही हूं, और वो मेरे घरवालों के लिए ही ऐसी सोच रखे है।"
प्रीति :- "यार तू जानती तो है उसे, मूफट है थोड़ा, लेकिन तुझसे प्यार भी तो कितना करता है।"
स्मिता :- "हाँ दिख रहा मुझे की कितना प्यार करता है, अभी तक अपनी गलती के लिए एक sorry तक बोलने नही आया।"
प्रीति :- "बस sorry?? वो तो वहां तुझे मनाने के लिए एक special गोआ की trip प्लान कर रहा है।"
स्मिता :- "क्या???? गोआ????"
प्रीति :- "हाँ बोल रहा था, की बहुत प्यार करता है तुझसे, अब ऐसे गुस्सा नही रहने देगा तुझे, गोआ ले जा कर ही मनाएगा। तू बता, चलेगी???? Outing भी हो जाएगी, और तुम दोनों sort भी कर लेना सारी बातें, की अपने अपने घरों में कैसे मिलाना है एक दूसरे को, कैसे बात आगे बढ़ानी है।"
स्मिता :- "हाँ यार, थोड़े break की तो मुझे भी जरूरत है, मैं कल भी तो कह रही थी तुझे, कहीं ये idea तुने ही तो नही दिया उसे??? और हाँ यार बात तो उस से करनी ही है, बेहतर यही रहेगा कि मैं चालू तुम लोगों के साथ। लेकिन मेरी एक शर्त है, मेरी भी 2 friends आएंगे साथ। तो तू पूछ लें चैतन्य को, अगर उसे कोई problem ना हो तो।"
प्रीति :- "Ok done!! चैतन्य को तो मैं बोल दूंगी, तू तो चलने की तैयारी कर बस।"
इस तरह प्रीति सभी को गोआ जाने के लिए तैयार कर लेती है, और स्मिता के वो 2 फ्रेंड्स कोई और नही, सुमित और विवेक ही थे। इस प्लान के बारे में स्मिता घर आकर सुमित को बताती है, तो वो तो बेहद ही खुश हो जाता है, क्योंकि उसकी तो ये पहली trip होने वाली थी विवेक के साथ। College के बाद सीधे office, तो ऐसे कहीं घूमने फिरने का मौका ही नही मिला था सुमित को। तो वो विवेक को भी मना लेता है, इस trip के लिए। और सुमित के साथ ऐसे बाहर समय बिताने के बारे में सोच कर, विवेक भी खुशी खुशी मान जाता है। रात को जब शिवांश सुमित के घर आता है, तो सुमित बहुत ना नुकुर के बाद शिवांश को भी राजी कर लेता है, साथ चलने के लिए। शिवांश जाना तो नही चाहता था, क्योंकि ना चाहते हुए भी सुमित और विवेक को साथ देखना पड़ता, लेकिन सुमित को मना करने का कोई ठोस कारण भी तो नही था उसके पास। सुमित बेहद खुश था इस trip को लेकर, अब उसे कहाँ पता था, की उसकी जिंदगी की दोस्तों के साथ कि ये पहली trip ही, उसकी आखिरी trip बन जाएगी, और गोआ से वापस वो नही, उसकी लाश आएगी।
आगे की कहानी जानने के लिए आप भी चलिये Goa, सुमित के साथ.......
Lots ऑफ Love
Yuvraaj ❤️