Monday, October 29, 2018

हत्यारा : एक इंसान या एक सोच Part - II

First please read it's first part, than you get easily be connected with this part. So here's the second part of this murder mystery.


            इन दिनों सुमित बहुत खुश रहता था, किसी भी बात का बुरा नही मानता था, सबसे बड़े ही प्यार से और एक बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ ही मिलता था। सभी को सुमित का ये बदला अंदाज साफ नजर आ रहा था, और सभी सुमित के साथ उसके इस नए अंदाज में खुश भी थे, सिवाय शिवांश के। शिवांश के लिए तो ये दिन बहुत ही कठिन बीत रहे थे। ना तो रातों में नींद थी, ना ही दिन में चैन। शिवांश ने सुमित से कई बार उस लड़के के बारे में जानने की कोशिश भी की, लेकिन सुमित हर बार बस यही उत्तर देता था, की अभी वो लोग सिर्फ chat ही करते है, ना तो सुमित के पास उसका कोई फ़ोटो है, ना ही उसका फ़ोन नंबर। शिवांश अपनी तरफ से हर वो कोशिश करना चाहता था, जिसके जरिये वो सुमित को इस अजनबी से दूर रख सके।



शिवांश :- "कहीं कोई चक्कर तो नही??? इतने दिन हो गए और उसने अपनी फोटो तक नही दिखाई तुझे!! जरूर बहुत ही बुरा दिखता होगा। और कही उसने तुझसे झूठ तो नही बोल दिया?? कही वो हमारा senior ही न हो! और college का माली या watchman हो?? या हो सकता है, की हमारे college का हो ही ना, सच मे कोई बुड्ढा हो!! और बस तेरे मज़े ले रहा हो?? कुछ बता तो तू उसके बारे में?? उसका नाम ही बता दे!! अगर इस college में हुआ, तो में उसे ढूंढ निकालूंगा!!"

सुमित :- "तू भी ना!!! पीछे ही पड़ गया है उसके!!! मैं कह रहा हूँ ना, मुझे नही कोई फर्क पड़ता, वो जैसा भी दिखता है, कौन है, हमारे college का है भी या नही, लेकिन मुझे उससे बातें करना अच्छा लगता है! और मैंने तो उसे अपना फ़ोटो और मोबाइल नंबर दे दिया है। उसे जब सही लगेगा तो वो भी दे देगा।"

शिवांश :- "वाह!!! ये बहुत अच्छा किआ तूने!!! मतलब अगर वो इस college का ही हुआ, तो वो तुझे देख सकता है, लेकिन तुझे पता भी नही चलेगा , की तू जिससे chat करता है, वो तेरे सामने खड़ा है। वाह मेरे शेर!! क्या बेवकूफों वाली हरकत की है तूने!!"

सुमित :- "यार तू कुछ ज्यादा ही serious हो रहा है। उसने मुझे कहा है कि वो मुझे उसके placement के बाद मिलेगा। और वो भी मेरी तरह ही है। वो भी अपने घर मे अपने बारे में सब बताने वाला है, उसके जॉब मिलने के बाद, और उसने तो ये भी बोल है कि , अगर वो मुझे पसंद आ गया, और मेरी तरफ से भी हाँ हो तो, वो मुझे अपने घरवालों से भी मिलवाएगा।"

शिवांश :- "हाँ??? घरवाले??? वो तुझसे शादी करेगा क्या???"

सुमित :- "हाँ"

शिवांश :- "और तू क्या चाहता है???"

सुमित :- "अभी मुझे कुछ नही पता यार!!! सबसे पहले तो मेरी job ही मेरे लिए important है, फिर माँ पापा का क्या reaction होता है, मेरे बारे में जानने के बाद, तब कहीं जाकर ये शादी की बात आती है। तो इतना दूर का सोचने से पहले, पढ़ाई पर ध्यान देले, exam आने वाले हैं।"


                 यूँ तो सुमित पहले भी कई बार अपने जीवन के लक्ष्यों से शिवांश को अवगत करा चुका था, लेकिन ये facebook friend की तरफ सुमित का झुकाव, शिवांश को बिल्कुल रास नही आ रहा था। अब तो हालात ये हो गए थे कि शिवांश सुमित को एक पल के लिए भी अकेला छोड़ने के लिए तैयार नही था। कभी तो सामने से, कभी छुप - छुप कर सुमित के ऊपर निगरानी रखने लगा था। College में भी जहां कोई लड़का 5 सेकंड से भी ज्यादा सुमित को घूरता दिखता, तो उसे कोने में ले जाकर खूब मारता पीटता और उस से पूछता, की क्या वही सुमित का facebook friend है??? ये सिलसिला यूँ ही कुछ महीने चलता रहा, फिर सुमित busy हो गया अपने exams की तैयारियों में, और शिवांश ने तो इस बार, पूरे exam भर के लिए, अपना डेरा, सुमित के घर मे ही जमा लिया था। शिवांश असल मे दो काम करना चाहता था, एक तो सुमित को facebook से दूर रखना, जो वो अपने घर पर रह कर तो नही ही कर सकता था। और दूसरा काम ये की, मौका पा कर उस लड़के की कुछ भी details पता करना, जो सुमित के दिल मे घर कर चुका था।



                     लेकिन अफसोस, एसा कुछ भी नही हुआ। सुमित ने खुद ही exam के चलते, facebook से दूरी बना ली थी। और उस लड़के की details, ना तो सुमित के फ़ोन में थी, और ना ही किसी notebook में। लेकिन इस खोजबीन के चक्कर मे, शिवांश ने बिल्कुल भी ध्यान अपनी पढ़ाई पर नही दिया। जिसका नतीजा ये निकला, की जहां सुमित के पडाने से, शिवांश ने, BCA के first year के exam में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था, वही अब भी उसने द्वितीय स्थान ही प्राप्त किया, लेकिन नीचे से। और इसका जरा भी अफसोस शिवांश को नही था। क्योंकि ये MBA और नोएडा तक की भाग दौड़ तो वो सिर्फ सुमित के साथ रहने के लिए ही कर रहा था।



                सुमित और शिवांश के MBA के first year के result के साथ साथ दो अच्छी बातें हुईं थी। एक तो स्मिता को उसकी ट्रेनिंग के बाद वडोदरा, गुजरात की एक SBI branch में joining मिली थी, जिसके 2 साल के कठिन प्रयासों के बाद उसका transfer नोएडा के सेक्टर 44 की SBI branch में मिल गया था, तो अब स्मिता को घर से बाहर रहने की कोई जरूरत नही थी। और दूसरी बात ये, की सुमित के facebook friend की भी MBA पूरी हो चुकी थी और college campus से ही placement में उसे भी नोएडा की ही सेक्टर 126 की NIIT Technology Ltd Company में job मिल गयी थी। सुमित के लिए ये सारी ही बाते बड़ी खुशी की थी। एक तो MBA का एक साल अच्छे नंबरो से पूरा हो गया था, स्मिता पूरे 2 साल के बाद वापस घर आ गयी थी और सबसे महत्वपूर्ण, उसके facebook friend की जॉब लग गयी थी, तो अब उस से मिलने का दिन भी करीब आ गया था, और सुमित का एक डर भी खत्म हो गया था। सुमित को डर था, की job मिलने के बाद, स्मिता की तरह ही, कहीं उसके facebook friend को कहीं दूसरे शहर न जाना पडे, लेकिन उसके facebook friend को Amity नोएडा , सेक्टर 125 से 1 सेक्टर से ज्यादा दूर नही जाना पड़ा था। वहीं शिवांश को बाकी सारी बातों से कोई खास फर्क नही पड़ा था, लेकिन सुमित के facebook friend की खबर ने, उसे गुस्सा जरूर दिल दिया था। और शिवांश की बहुत सी कोशिशों के बाद भी, वो दिन आ ही गया, जब सुमित एक blind date पर अपने उसी facebook friend से पहली बार मिलने जा रहा था।



                      सुमित की date उसके facebook friend ने नोएडा के ही सेक्टर 62 के रेस्टोरेंट Asia Fun में तय की हुई थी। वैसे तो वो facebook friend ग़ाज़ियाबाद ही आना चाह रहा था, और सुमित उस facebook friend के घर के पास यानी दिल्ली जाना चाह रहा था। लेकिन फिर दोनों ने नोएडा में ही मिलना तय किया, और उस facebook friend ने नोएडा का सेक्टर 62 इसलिए चुना, क्योंकि वो ग़ाज़ियाबाद के पास भी था, और वो रेस्टोरेंट भी काफी अच्छा था। यहां तक कि सुमित को उस रेस्टोरेंट तक लाने के लिए एक cab भी book करवा रखी थी, सुमित के उस facebook friend ने। लेकिन शिवांश ने वहां आकर उस cab को वापस लौटा दिया, और सुमित के लाख मना करने पर भी, उसे खुद नोएडा छोड़ कर आने की जिद्द करने लगा। जिस ज़िद्द को आखिरकार सुमित को मानना ही पड़ा। और शिवांश सुमित को अपनी bike पर बैठा, निकल पड़ा नोएडा की ओर। बीच रास्ते आकर, शिवांश ने जानबूझ कर बिना कुछ सोचे समझे, अपनी bike को slip कर दिया, और दोनों बहुत दूर तक रोड पर घसीटते हुए जा गिरे। सुमित को तो कुछ मामूली चोटें और बहुत सी खरोंचे आयी थी, लेकिन शिवांश को काफी गहरी चोटें आई थी, और वो वहीं accident वाली जगह पर ही बेहोश भी हो गया था। वहां लोगों ने उन्हें घेर लिया, और तुरंत ambulance को फोन किया। चूंकि ये accident नोएडा के सेक्टर 63 के आस पास ही हुआ था, तो ambulance उन्हें वहाँ के सबसे नजदीकी हॉस्पिटल, शंकुतला देवी हॉस्पिटल, सेक्टर 62A में ले आयी। सुमित की dressing कर दी गयी, और शिवांश के हाथ और पैर में fracture आ गया था, तो उसका इलाज भी शुरू कर दिया गया। सुमित ने अपने और शिवांश के घरवालों को फ़ोन कर सारा हाल बताया। कुछ देर में सुमित के पास एक फ़ोन और आया, सुमित के उस facebook friend का, जो अभी भी सुमित का इंतेज़ार उसी रेस्टोरेंट में कर रहा था। सुमित ने पहली बार फ़ोन पर अपने उस facebook friend की आवाज सुनी, और फ़ोन पर उस मीठी आवाज से सुमित अपने सारे दुख दर्द भी भूलने लगा, लेकिन सुमित की बात ज्यादा देर तक नही हो पाई, क्योंकि तब तक सुमित और शिवांश के घरवाले हॉस्पिटल पहुंच चुके थे,और वे सभी सुमित से उसका और शिवांश का हाल पूछने लगे।



                कुछ देर में शिवांश को plaster भी चढ़ा दिया गया, और उसे होश भी आ गया। शिवांश को एक private room में भी shift कर दिया गया था, जहां सभी घरवाले और सुमित उससे मिलने पहुंचे।


शिवांश के पापा :- "कितनी बार कहा है इस लड़के को की धीरे गाड़ी चलाया कर, लेकिन सुनता ही नही है।"

शिवांश :- (सबको अनदेखा कर) "सुमित कैसा है तू??? ज्यादा चोट तो नही आई तुझे??? Sorry यार मेरी वजह से तेरा सारा प्लान खराब हो गया।"

स्मिता :- "कौनसा प्लान???"

सुमित :- (हड़बड़ाते हुए) "college का प्लान.... और कैसा प्लान!! तू बिल्कुल भी परेशान मत हो शिवांश, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। और देख तुझसे, मिलने कोन आया है??"

शिवांश :- (सुमित और बाकी घरवालों के बीच एक अजनबी को देखकर) "ये कौन है???"

सुमित :- (शिवांश को आंखों से इशारे करने के साथ साथ) "विवेक!!! अपने senior!!! यहीं पास में ही थे। अपने accident की खबर सुनी, तो यहां आ गए।"

विवेक :- "Hello शिवांश!! I hope की fracture minor हों और तुम जल्दी से ठीक हो जाओ।"

शिवांश :- (सुमित का इशारा समझते हुए) "अब आप आ गए हो, तो ठीक तो होना ही पड़ेगा।....... चलिये अब आप लोग जाईये और मुझे थोड़ा आराम करने दीजिए।"

शिवांश की मम्मी :- "हाँ स्मिता बेटा, बहनजी आप लोग भी घर जाईये, और सुमित का ख्याल रखियेगा। यहां हम लोग है।" 

करुणा जी :- "हाँ बहनजी आप भी ख्याल रखियेगा शिवांश का। हम लोग घर जाते है, अभी स्मिता के पापा को भी नही बताया है बच्चों के accident के बारे में, उनको थोड़ा BP का problem रहता है। और बहनजी, भाईसाहब कोई भी चीज़ की जरूरत हो तो बेझिझक बोल दीजियेगा, शिवांश भी हमारे बच्चे जैसा ही है। अब हम चलते है, कल फिर आएंगे।"

सुमित :- (स्मिता और माँ को जाता देख) "दीदी आप माँ को लेकर जाओ, मैं विवेक जी के साथ आ जाऊंगा।"

करुणा जी :- "अरे नही! साथ चल हमारे घर चल के आराम कर। देख कितनी चोट आई है।"

सुमित :- "नही माँ, मैं ठीक हूँ, और आप चलिये तो, मैं भी बस कुछ ही देर में घर पहुंचता हुँ।"

करुणा जी :- "ठीक है, लेकिन ध्यान से आना बच्चों, आज कल तो रोड पे चलना ही मुश्किल हो गया है।"


               
                    शिवांश वहां हॉस्पिटल के बिस्तर पर आंखे बंद करे तो लेटा था, लेकिन अब उसकी आँखों से नींद कहीं दूर जा चुकी थी। उसने ये accident जानबूझ कर इस मंशा से किआ था, की इसी बहाने सही, वो सुमित को उसके facebook friend उर्फ विवेक से दूर रख सकेगा। लेकिन अब वो अपने किये पर पछता रहा था, और वो भी इसलिए नही, की इन सब मे उसके खुद के हाँथ पैर ही टूट गए थे, बल्कि इसलिए, क्योंकि अब इस हालत में वो सुमित पर नज़र नही रख सकता था, और ना ही उसे विवेक से मिलने से रोक सकता था। और वहीं सुमित और विवेक, हॉस्पिटल की canteen में ही अपनी पहली date मना रहे थे।


सुमित :- "I am really sorry! मेरी वजह से आपकी सारी arrangement खराब हो गयी।"

विवेक :- "Dont be sorry!! अब इस accident में तुम्हारी क्या गलती, और please मैने chat पर भी कितनी बार बोला है, मुझे आप मत बोलो, थोड़ी बुजर्गों वाली feeling आने लगती है।"

सुमित :- "Ok!! मैं आपको आप नही बोलूंगा!! Sorry..... तुमको!! अब ठीक है? और सच मे यार, मेरी ही गलती है, अगर मैं शिवांश की जिद्द नही मानता, तो अभी वो भी ठीक ठाक अपने घर होता और मैं भी आपके...... तुम्हारे साथ!!"

विवेक :- "Dont worry! शिवांश जल्दी ठीक हो जाएगा!! और देखो, तुम मेरे साथ ही तो हो, और हमारी first date के लिए ये जगह भी कोई बुरी नही।"


                    अपनी ज़िंदगी की पहली date से घर आकर सुमित ने सबसे पहले फोन शिवांश को ही किआ। क्योंकि सुमित का तो बस एक वो ही ऐसा दोस्त था, जिससे सुमित अपनी सारी मन की बातें कर सकता था।


सुमित :- "Hello!!! सो रहा था क्या? इतनी देर लगादी फ़ोन उठाने में??"

शिवांश :- "सोच रहा था, फ़ोन उठाऊ या नही!!"

सुमित :- "एक हाँथ टूटा है बस, तो दूसरे हाँथ से उठा सकता है। ये सब छोड़, और ये बात, विवेक कैसा लगा तुझे??"

शिवांश :- "दिखने में तो ठीक ठाक ही है, लेकिन तू पहले उसे अच्छे से जान ले, समझ ले, फिर कोई फैसला लेना।"

सुमित :- "यार हमें बात करते हुए, चाहे chat ही सही, काफी समय हो गया है। तो अब हम एक दूसरे को काफी अच्छे से जानते समझते है। बस मिलना ही बाकी रह गया था, वो भी आज हो गया।"

शिवांश :- (आंखों में आंसू भरे) "हाँ चल बढ़िया है, अब तुझे तेरा प्यार मिल गया है, अब तू मेरा पीछा तो छोड़ेगा।"

सुमित :- "नही यार ऐसा बिल्कुल नही है, उसकी जगह अलग है, और तेरी अलग। तू तो मेरा इकलौता bestest friend है, जो हर समय मेरे साथ रहता है, और ज्यादा खुश मत हो, विवेक आ गया है तो इसका ये मतलब थोड़ी है कि मैं तुझे छोड़ दूंगा।"

शिवांश :- "हाँ हाँ ठीक है, चल अब फ़ोन रख और मुझे सोने दे।"


                 उस दिन शिवांश के हाँथ पैर ही नही टूटे थे, उसका दिल भी टूटा था, जो किसी को दिखाई भी नही दे रहा था, और जिसे किसी इलाज से ठीक भी नही किआ जा सकता था। वो सुमित से अच्छे से बात तो कर रहा था, लेकिन सुमित की तरफ से उसे बहुत गहरी चोट पहुंची थी। अब सुमित की ज़िंदगी मे कोई आ चुका है, अब सुमित पहले की तरह उसे समय नही दे पाएगा, उसके प्यार को तो सुमित पहले ही ठुकरा चुका था, लेकिन अब तो उसकी दोस्ती भी खतरे में थी, सिर्फ इस एहसास ने ही, शिवांश को अंदर तक घायल कर दिया था। कुछ दिनों बाद शिवांश हॉस्पिटल से तो घर आ गया था, लेकिन उसके चेहरे की हंसी-खुशी कहीं खो गयी थी, और अब उसका मन किसी भी चीज़ में नही लगता था। यूँ तो सुमित सारा दिन हॉस्पिटल में शिवांश के साथ ही रहता था। College न जाकर, हॉस्पिटल में दिन के समय शिवांश की देख रेख किआ करता था। दोपहर में शिवांश को हॉस्पिटल का, या कभी कभी घर से आया खाना खिला कर, खुद विवेक के साथ, कभी हॉस्पिटल की canteen में, कभी विवेक के office की canteen में, खाने के साथ कुछ समय विवेक के साथ बिताकर, रात को ही विवेक के साथ ही घर वापस आया करता था। लेकिन शिवांश के लिए अब सुमित का हॉस्पिटल आना, और उसकी देखभाल करना बस एक बहाना था, जिससे वो कुछ समय विवेक के साथ बिता सके। घर आकर शिवांश ने एक बार तो ये भी सोचा, की वो सुमित के घरवालों को सुमित के GAY होने और विवेक के बारे में भी बता देगा, शायद इस तरह वो सुमित को विवेक से दूर कर सके। लेकिन फिर इस आग की लपटें उसके घर भी ना पहुंच जाए, इस बात के ज़ेहन में आते ही, उसने इस बात को अपने दिमाग से निकाल दिया। लेकिन वो इसी उधेड़बुन में लगा रहता कि, कैसे सुमित को विवेक से दूर किया जाए।



                 उधर विवेक को भी शिवांश का खुद के लिए ये रूखा व्यवहार साफ नजर आता था, और उसने कई बार सुमित को भी इस बारे में बताया। लेकिन सुमित ने हर बार, शिवांश के बीमार होने की वजह बता कर इस बात को टाल दिया। शिवांश अब घर चुका था, और पहले से काफी बेहतर था, लेकिन अभी भी उसके प्लास्टर कटने में 1 महीना बाकी था। पहले तो सुमित का college जाना शिवांश की bike से ही होता था, लेकिन अब उसने बस से college जाने का इरादा बनाया, लेकिन विवेक ने उसे लाने लेजाने का उपाय सुझाया। लेकिन सुमित को अपनी बहन स्मिता का विचार पसंद आया। स्मिता और उसके 2 दोस्तों, प्रीति और रुमित, जो कि ग़ाज़ियाबाद के ही थे, और स्मिता की बैंक में ही काम किया करते थे, उन्होंने एक cab hire की हुई थी। जो कि उन्हें नोएडा तक लाने लेजाने का काम करती थी। स्मिता ने सुमित को अपने साथ नोएडा चलने का प्रस्ताव दिया, और ये सुझाव सुमित को बेहद पसंद आया। स्मिता के बैंक, सेक्टर 44 और सुमित के college, Amity सेक्टर 125 में सिर्फ एक रोड का फसला था। इसलिए सुमित को अपने साथ ले जाने से स्मिता या उसके दोस्तों को कोई एतराज भी नही हुआ।



              अब सुमित सुबह अपने college जाता तो स्मिता और उसके दोस्तों के साथ ही था, लेकिन शाम को विवेक ही उसे वापस घर छोड़ने आता था। धीरे धीरे समय के साथ सभी को इस नई दिनचर्या की आदत भी हो गयी। सुमित हर sunday शिवांश के घर जाकर उसे पढ़ाया भी करता था, और विवेक की कई सारी बातें सांझा भी किआ करता था। शिवांश मुहँ पर तो हंसी रखता था, लेकिन विवेक का नाम सुनते ही उसका दिल सुलग जाया करता था। plaster कटने के बाद ही शिवांश ने सुमित और अपने घरवालों को, आगे पढ़ाई न करने का अपना निर्णय सुना दिया। जिसे सुनकर सबसे ज्यादा आश्चर्य सुमित को हुआ। उसने शिवांश को समझाने की कोशिश भी की, लेकिन शिवांश ने अपने ही तर्क देकर, सुमित को चुप करा दिया। उसने कहा कि उसे MBA करने का अब जरा भी चाव बाकी नही रहा, और जब उसे अपने पापा की मदद ही करनी है, तो क्यों फिर एक साल और बर्बाद करे। वैसे तो शिवांश के दिये तर्क वाजिब थे, लेकिन इसकी वजह था, सुमित और विवेक का साथ। अभी जब सुमित अपने और विवेक के किस्से भर ही सुनता था, तो शिवांश को जलन हुआ करती थी,और college जाकर जब वो दोनों को साथ देखता तो उस पर क्या बीतती। इसलिए खुद को उस दर्द से बचाने के लिए, उसने ये फैसला लिया था।



              धीरे धीरे समय यूँही बीतता गया, लेकिन हर sunday शिवांश के घर जाना सुमित ने बंद नही किआ। अब शिवांश का वो गुस्सा, विवेक के लिए वो जलन, पहले से कुछ कम हो चुकी थी। उधर सुमित और विवेक का रिश्ता भी काफी गहरा हो चुका था। विवेक तो अपने परिवार से सुमित को मिलवा भी चुका था, और अपने और सुमित के रिश्ते से भी सभी को अवगत करा चुका था। विवेक के बारे में जान कर उसके घर मे थोड़ा गमगीन माहौल था, जिसे ठीक होने में अभी कुछ समय और लगने वाला था। वहीं सुमित की स्मिता के दोस्तो, प्रीति और रुमित से भी काफी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी, और वो लोग सुमित को किसी चैतन्य का नाम लेकर छेड़ते थे। स्मिता से पूछने पर वो उन लोगों का मज़ाक बोल कर टाल जाया करती थी।



                 कुछ समय बाद ही सुमित के MBA के final year के exam भी आ गए और उसने बहुत ही अच्छे अंको से MBA भी complete कर ली। और उसने बाकी सारे अच्छे options को दरकिनार कर विवेक की ही NIIT Technology Ltd Company में job भी लेली। अब कंपनी की cab ही सुमित को लेने आया करती थी, तो स्मिता, प्रीति और रुमित का साथ अब छूट गया था। लेकिन विवेक का साथ अब हर समय सुमित के साथ ही रहता था, जिस बात की सुमित को बेहद खुशी थी। कुछ एक महीने बाद, प्रीति और रुमित ने सुमित से मिलने का प्लान बनाया और उसे स्मिता के साथ एक रेस्टोरेंट में बुलाया। वहां रेस्टोरेंट में उनका एक दोस्त और साथ था, जिसका नाम चैतन्य था। उस gettogether में चैतन्य का स्मिता के प्रति extra caring nature, और स्मिता की असहजता ने सुमित को सब समझा दिया था, की क्यों प्रीति और रुमित उसे चैतन्य का नाम लेकर चिढ़ाते थे। वो रात तो बीत गयी, लेकिन उस रात की असहजता को अभी भी स्मिता के चेहरे पर देखा जा सकता था। स्मिता अभी भी अपनी नज़रें अपने ही छोटे भाई से चुरा रही थी। और इसे भांपते हुए सुमित ने छुट्टी के दिन स्मिता से बात करना तय किया।



सुमित :- "चल दीदी मेरे कमरे में चल, मुझे तुझसे कुछ बात करनी है।"

स्मिता :- (नज़रे चुराते हुए) "बाद में आती हूँ, सुमित! अभी थोड़ा काम है।"

सुमित :- (स्मिता का हाँथ पकड़, अपने कमरे में ले जाते हुए) "काम बाद में भी हो जाएंगे, लेकिन मेरा तुझसे बात करना ज्यादा जरूरी है। आ यहां बैठ और बात क्या हुआ है? क्यों तू मुझसे नज़ारे चुरा रही है इतने दिनों से??"

स्मिता :- (इधर-उधर देखते हुए) "कहाँ कुछ हुआ है?? कुछ भी तो नही हुआ!!"

सुमित :- (स्मिता का हाँथ पकड़ कर) "ठीक है ना दीदी, तूने कोई गलत काम नही किआ है। प्यार करना कोई गलती तो नही है ना, तो तू क्यों ऐसे behave कर रही है, जैसे तूने कोई गलती कर दी हो।"

स्मिता :- (सिर झुका कर) "I know यार!! लेकिन मैं नही चाहती थी कि चैतन्य इस तरह से तेरे सामने आए। और मुझे नही पता था कि प्रीति और रुमित ने उसे भी बुलाया है। वरना....."

सुमित :- (स्मिता को बीच मे ही टोकते हुए, और उसका सिर अपने हांथो से ऊपर उठाते हुए) "तो क्या हो गया?? इसमे इतना तो कुछ बुरा नही हुआ न कि तू मुझसे नज़रें चुराए, और यूँ सिर झुका कर बैठे। अब चल छोड़ ये सब और बता जीजाजी के बारे में, कहाँ से है, क्या करते हैं, तू कहाँ मिली और कबसे चल रहा ये सब???"

स्मिता :- (मुस्कुराते हुए) "बस-बस और कितने सवाल करेगा। सब बताती हूँ... चैतन्य मेरी ही बैंक में मैनेजर है, बैंक में ही मिली मैं उस से, पहले तो बस normal friendship थी, लेकिन फिर ये कब प्यार में बदल गयी मुझे पता ही नही चला। हमारी friendship तो तब ही हो गयी थी जब मैने बैंक join किआ, लेकिन पिछले साल ही उसने मुझे prupose किआ, और मैने भी हाँ बोल दी। तब तो नही सोचा, लेकिन बाद में लगा कि एक बार माँ पापा और तुझे इस बारे में बता देना चाहिए, लेकिन हिम्मत ही नही हुई कभी। और फिर वो अचानक से तेरे सामने ही आ गया, तो समझ ही नही आ रहा था, की पहले तुझे बताऊ, या माँ - पापा को बताऊ या क्या करूँ।"

सुमित :- (स्मिता के कंधों पर हाथ रखते हुए) "अरे chill दीदी! इतनी भी कोई tension की बात नही है। अभी बता दे माँ - पापा को और मैं तो कहता हूं, साथ ही साथ रात के खाने पर भी बुला ले चैतन्य को।"

स्मिता :- "नहीं!!! पहले माँ - पापा को तो बता दूं, फिर आगे वो लोग जैसा बोलें।"

सुमित :- (स्मिता का हाँथ वापस से पकड़ते हुए) "दीदी!! मुझे भी तुझे कुछ बताना है।"

स्मिता :- "हाँ बता ना, क्या बात है।"

सुमित :- "मैं भी पिछले साल किसी से मिला online, हमने बातें की फिर हम मिले और वो online वाली friendship धीरे धीरे प्यार में बदल गयी। और मैं पिछले साल भर से उसके साथ commited relationship में हूँ।"

स्मिता :- "अरे तो ये तो खुशी की बात है ना, तो तू इतने seriuosly क्यों बता रहा है। और मुझे भी तो दिखा मेरी भाभी का फोटो..... मैं भी तो देखूं कौन है ये online girlfriend?"

सुमित :- "दीदी girlfriend नही.... boyfriend!!"

स्मिता :- "क्या मतलब???"

सुमित :- "दीदी I am in a relationship with a boy!! I am GAY!!!"

स्मिता :- (थोड़ी देर चुप रहने के बाद) "कबसे है ऐसा??? और कैसे???"

सुमित :- "क्या कबसे और कैसे दीदी? कोई बीमारी थोड़ी है, I am born GAY!!!"

स्मिता :- "अरे मेरा मतलब, तू कबसे जनता है अपनी इन feelings के बारे में?"

सुमित :- "नही याद दीदी!!! लेकिन ये तो मुझे स्कूल में ही समझ आ गया था कि मैं लड़कों की तरफ ही attract होता हूँ लड़कियों की तरफ नही।" 

स्मिता :- (अपने भाई को समझते हुए) "तो तूने अब तक क्यों छुपा के रखी ये बात?? माँ - पापा को पता है इस बारे में??"

सुमित :- "नही दीदी!! मुझे नही समझ आ रहा था कि आप लोग कैसे react करोगे, तो मैंने नही बताया किसी को।"

स्मिता :- (कुछ देर सोचने के बाद मुस्कुरा कर) "चल कोई बात नही की तूने पहले क्यों नही बताया, अगर पहले बता देता तो ये सारा बोझ तुझे इतने सालों अपने अंदर ही छुपाने की जरूरत नही पड़ती, तू GAY हो या Straight, तू पहले मेरा भाई है, और हमेशा रहेगा। चल अब वो लड़का ही बता दे, कौन है वो?? एक मिनट, कहीं वो शिवांश तो नही???"

सुमित :- "नही दीदी!!! वो तो मेरा दोस्त है। लेकिन हां वो मेरे बारे में सब जनता है। और मेरा boyfriend तो विवेक है, वो जिससे आप लोगों को हॉस्पिटल में मिलवाया था।"



                   उस दिन सुमित गया तो था स्मिता को हिम्मत देने, लेकिन फिर खुद हिम्मत दिखा कर, अपना सच स्मिता को बता आया। उसने स्मिता को फिर अपनी और विवेक की इस प्यारी सी प्रेम कहानी से भी अवगत कराया। दोनो भाई बहन, बेहद खुश थे, एक दूसरे के जीवन के अहम लोगों के बारे में जान कर, लेकिन मन में एक अजब सी भावना भी थी, की अब ये बातें अपने माँ - पापा को कब और कैसे बतायी जाएं।



                  इसी उधेड़बुन में, आंख झपकते ही 2 साल भी बीत गए, और वो ऐतिहासिक दिन भी हमे देखने को मिला, जब 6 सितंबर 2018 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने section 377 को ख़ारिज करते हुए, समलैंगिक रिश्तों को जायज़ ठहराया।



सुमित :- (TV देखते हुए) "दीदी देख न्यूज़ पर क्या चल रहा है, section 377 को हटा दिया गया है, अब LGBT समुदाय के लोग भी भारत मे legal शादी करके रह सकते हैं।"

स्मिता :- (बैंक के लिए निकलते हुए) "अरे वाह भाई!!! ये तो अच्छी खबर है। अब कम से कम भारत के लोगों का नज़रिया तो बदलेगा। चल मैं निकलती हूँ, शाम को मिलती हूँ तुझे, आराम कर अब तू।"

सुमित :- (स्मिता के जाने के बाद, शिवांश को फोन लगाते हुए) "hello!!! कहाँ है???? News देखी??? Section 377 को हटा दिया है आज सुप्रीम कोर्ट ने।"

शिवांश :- (फ़ोन पर) "हाँ तो क्या हो गया??? कहलायेग तो GAY ही ना, GAY का ठप्पा हटा के तुझे इंसान तो नही बना दिया ना!!"

सुमित :- "अरे तो क्या हो गया, जैसे अभी ये समझ आया है कि हम लोग मुजरिम नही है, आगे ये भी समझ आ जायेगा कि हम भी normal इंसान हैं।और तू ये सब छोड़, अगर free है तो घर आजा मेरे!! आज office नही जा रहा हूँ, तबियत ठीक नही थोड़ी, और तुझसे मिले भी काफी समय हो गया।"

 शिवांश :- "नही यार, काम है तो busy हूँ अभी तो, पापा भी बाहर गए थे हफ्ते भर को कुछ काम से, आज आजायेंगे तो फिर में free हु हफ्ते भर के लिए, तो अभी तो नही आ सकता। तू अपने वो facebook friend को बुला ले ना।"

सुमित :- "उसका नाम भी है, पता नही क्यों तू उसे facebook friend ही बोलता रहता है। और मुझे उसके नही, अपने दोस्त के साथ समय बिताना है, तू बता कब तक आ जायेगा??"

शिवांश :- "अभी तो नही यार, रात को आता हूँ free होकर, और आज आंटी को बोल देना पकोड़ी की कड़ी बनाने को, सालों से नही खाई आंटी के हाँथ की कड़ी।"

सुमित :- "हाँ तू आ तो जा, मैं तो हमेशा बोलता हूं आने को, लेकिन अब तेरे पास time ही कहाँ!!"


                    शिवांश इन 3 सालों में सुमित के प्यार को दबाकर आगे तो बड़ गया था, लेकिन उसने अभी भी सुमित के लिए अपने प्यार को भुलाया नही था। बाहर से तो वो यही जताता था, की सुमित और विवेक के रिश्ते से उसे कोई फर्क नही पड़ता, लेकिन भीतर मन में वो विवेक से अभी भी बहुत जलता था। ये जलन विवेक को साफ समझ भी आती थी, जिसका इन 3 सालों में ना जाने कितनी बार विवेक ने सुमित से ज़िक्र भी किआ, लेकिन सुमित को भी इस बात का अंदाज़ा था, की शिवांश विवेक को कुछ खास पसंद नही करता है, लेकिन वो विवेक से जलता है, उस से नफरत करता है, ये बात सुमित मानने को ही तैयार नही था। और इस बात को लेकर सुमित और विवेक में कई बार मनमुटाव भी हो जाय करता था। जिसके फलस्वरूप एक या दो दिन दोनो आपस मे बात नही करते थे, और मुहँ फुलाये इधर उधर घूमते रहते थे, फिर कभी सुमित तो कभी विवेक एक दूसरे को मना कर, बात को रफ़ा दफ़ा कर दिया करते थे।



                  वहीं विवेक के घरवाले भी, अब तक विवेक का GAY होना स्वीकार कर चुके थे, अब बिना किसी असहजता के, हंसी खुशी रहते थे, लेकिन समाज के डर से, विवेक और सुमित के रिश्ते पर चुप्पी साधे हुए थे।



                  उधर ये ऐतिहासिक फैसले की खबर चारों तरफ जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी, और स्मिता का बैंक भी इस खबर से अछूता नही था।


प्रीति :- "यार तुम लोगों को SC के verdict के बारे में पता चला??"

स्मिता :- "हाँ, सुमित बता रहा था सुबह, चलो देर से ही सही, SC ने ये तो माना कि GAYS कोई मुजरिम नही, उन्हें भी समान अधिकार मिलना चाहिए, अपने हिसाब से रहने का ।"

चैतन्य :- "और क्या.... they are not criminals, they are just sick!!"

स्मिता :- "what sick?? ये कोई बीमारी नही है। They are as normal like us. They just attracted toward same sex, thats it!! इतनी साधारण सी बात है बस।"

चैतन्य :- (हंसते हुए) "तुम तो ऐसे बात कर रही हो, जैसे तुम्हारे रिश्तेदार ही GAY हों।" 

स्मिता :- "GAY हो भी तो क्या??? वो भी हमारी तरह normal इंसान है।"

चैतन्य :- "Oh please स्मिता! अब देखना इस फैसले से कितना गंदा हो जाएगा हमारा समाज, जो लोग अभी तक कहीं छुपे बैठे थे, इस फैसले से वो लोग भी बाहर आ जाएंगे, और इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा हम सभी पर।"

स्मिता :- "What do you mean by की बुरा असर पड़ेगा?? अब किसी के GAY होने पर, तुम पर क्या बुरा असर पड़ेगा।"

चैतन्य :- (हंसते हुए) "अरे तुम जानती नही हो इन लोगों को, ये अपने जैसा ही बना लेते हैं सभी को।"

स्मिता :- (गुस्से में) "क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हो?? मेरा भाई GAY है, कुछ बुरा असर पड़ा उसका मुझ पर?? वो तो प्रीति और रुमित के साथ भी बहुत रहा है, क्या इन लोगों को भी उसने GAY बना लिया??"

चैतन्य :- (आश्चर्य से) "सुमित???? तुम्हारा भाई सुमित??? हम उसे किसी doctor के पास ले चलते है, शायद वो ठीक हो जाये।"

स्मिता :- (ग़ुस्से में वहां से जाते हुए) "Doctor की जरूरत उसे नही, तुम्हारी छोटी सोच को है।"

चैतन्य :- (हंसते हुए स्मिता को रोकने की कोशिश करते हुए) "अरे मेरा वो मतलब नही था यार, तुम तो गुस्सा ही हो गयी, सुनो तो..... रुको...... "

चैतन्य :- (स्मिता के जाने के बाद रुमित और प्रीति से) "कहा था ना, ये फैसला हम सब पर बुरा असर डालेगा, देखो शुरुआत यही से हो गयी।"

रुमित :- (चैतन्य को समझाते हुए)  "यार तो तुझे भी सही से बात करनी चाहिए थी ना, अब उसका भाई है तो उसे तो बुरा लगेगा ही ना। हम दोनों भी तो है यहां, और सुमित के बारे में सुनकर हमे भी झटका लगा, लेकिन हम लोगों ने कुछ भी कहा?? तो तुझे भी बात आगे नही बढ़ानी चाहिए थी ना यार!"

चैतन्य :- "अरे तो मैंने क्या गलत कह दिया, मैं स्मिता को बहुत प्यार करता हूँ, उसकी family भी मेरी faimly जैसी ही है।"

 प्रीति :- "हम सब जानते है चैतन्य की तुम कितना प्यार करते हो स्मिता से, और वो भी उतना ही प्यार करती है तुम्हे, लेकिन तुम भी तो समझो ना, उसके भाई की बात है, तो उसे बुरा तो लगेगा ना।"

चैतन्य :- "यार तो में भी तो उसके भाई को ठीक करने की ही तो बात कर रहा था, हो सकता है मेरे कहने का तरीका थोड़ा सा गलत हो।"

रुमित :- "हाँ तो जा अब मना ले उसे।"

चैतन्य :- "नही मानेगी यार ऐसे वो, बहुत ज़िद्दी है।"

रुमित :- "तो कहीं बाहर ले जा उसे, lunch या dinner पे, एक अच्छा सा गिफ्ट दे और sorry बोल दे, फिर मान जाएगी।"

प्रीति :- "मेरे पास एक idea है, हम सब कहीं बाहर holiday पर चलते है, घूमना फिरना भी हो जाएगा, माहौल भी बदल जायेगा, तुम उसे मना भी लेना।"

चैतन्य :- "यार वो बहुत गुस्से में है, वो नही मानेगी, और कहीं बाहर जाने को तो बिल्कुल नही।"

प्रीति :- "अरे ये सब मुझ पर छोड़ दो, हम लोग कल ही छुट्टियों के लिए गोआ जाने के बारे में सोच रहे थे। मैं अभी उसे मना कर आती हूँ, तुम लोग बस जाने की तैयारी करो।" 

प्रीति :- (स्मिता को मनाते हुए) "अरे स्मिता, जाने दे ना अब उस बात को, थोड़ा time दे उसे, वो समझ जाएगा अपनी गलती।"

स्मिता :- "यार प्रीति मुझे गुस्सा चैतन्य पर नही, उसकी सोच पर आ रहा है। मैं यहां उसे अपने घरवालों से मिलवाने के बारे में सोच रही हूं, और वो मेरे घरवालों के लिए ही ऐसी सोच रखे है।"

प्रीति :- "यार तू जानती तो है उसे, मूफट है थोड़ा, लेकिन तुझसे प्यार भी तो कितना करता है।"

स्मिता :- "हाँ दिख रहा मुझे की कितना प्यार करता है, अभी तक अपनी गलती के लिए एक sorry तक बोलने नही आया।"

प्रीति :- "बस sorry?? वो तो वहां तुझे मनाने के लिए एक special गोआ की trip प्लान कर रहा है।"

स्मिता :- "क्या???? गोआ????"

प्रीति :- "हाँ बोल रहा था, की बहुत प्यार करता है तुझसे, अब ऐसे गुस्सा नही रहने देगा तुझे, गोआ ले जा कर ही मनाएगा। तू बता, चलेगी???? Outing भी हो जाएगी, और तुम दोनों sort भी कर लेना सारी बातें, की अपने अपने घरों में कैसे मिलाना है एक दूसरे को, कैसे बात आगे बढ़ानी है।"

स्मिता :- "हाँ यार, थोड़े break की तो मुझे भी जरूरत है, मैं कल भी तो कह रही थी तुझे, कहीं ये idea तुने ही तो नही दिया उसे??? और हाँ यार बात तो उस से करनी ही है, बेहतर यही रहेगा कि मैं चालू तुम लोगों के साथ। लेकिन मेरी एक शर्त है, मेरी भी 2 friends आएंगे साथ। तो तू पूछ लें चैतन्य को, अगर उसे कोई problem ना हो तो।"

प्रीति :- "Ok done!! चैतन्य को तो मैं बोल दूंगी, तू तो चलने की तैयारी कर बस।"


                     इस तरह प्रीति सभी को गोआ जाने के लिए तैयार कर लेती है, और स्मिता के वो 2 फ्रेंड्स कोई और नही, सुमित और विवेक ही थे। इस प्लान के बारे में स्मिता घर आकर सुमित को बताती है, तो वो तो बेहद ही खुश हो जाता है,  क्योंकि उसकी तो ये पहली trip होने वाली थी विवेक के साथ। College के बाद सीधे office, तो ऐसे कहीं घूमने फिरने का मौका ही नही मिला था सुमित को। तो वो विवेक को भी मना लेता है, इस trip के लिए। और सुमित के साथ ऐसे बाहर समय बिताने के बारे में सोच कर, विवेक भी खुशी खुशी मान जाता है। रात को जब शिवांश सुमित के घर आता है, तो सुमित बहुत ना नुकुर के बाद शिवांश को भी राजी कर लेता है, साथ चलने के लिए। शिवांश जाना तो नही चाहता था, क्योंकि ना चाहते हुए भी सुमित और विवेक को साथ देखना पड़ता, लेकिन सुमित को मना करने का कोई ठोस कारण भी तो नही था उसके पास। सुमित बेहद खुश था इस trip को लेकर, अब उसे कहाँ पता था, की उसकी जिंदगी की दोस्तों के साथ कि ये पहली trip ही, उसकी आखिरी trip बन जाएगी, और गोआ से वापस वो नही, उसकी लाश आएगी।





   आगे की कहानी जानने के लिए आप भी चलिये Goa, सुमित के साथ.......

Lots ऑफ Love
Yuvraaj ❤️
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 





























Saturday, October 27, 2018

हत्यारा : एक इंसान या एक सोच Part - I

Hello friends here I'm going to try something new, some different kind of story. But definitely it also has some love, emotion, heartbreaks, mystery and lots of drama. Hope you all like and appreciate my this different work as previous once.


CALANGUTE POLICE STATION, SALIGAO, GOA (15 / SEP / 2018 / 7:30 PM) :-


प्रीति :- (गुस्से में) "सर, हम सब आपको कितनी बार बता चुके हैं, फिर भी आप एक ही सवाल बार - बार करे जा रहे हैं। हम थक चुके हैं सर!!"


जिव्बा जी डाल्वी :- "आवाज नीचे!! ये पुलिस स्टेशन है, कोई आपका घर या कोई pub नही। और हम अपना काम कर रहे हैं, एक ही सवाल 100 बार भी पूछे तो जवाब देना पड़ेगा। मर्डर हुआ है, और तुम सब उसके suspects हो। तो बेहतर यही होगा कि co-operate करो, आवाज ऊंची करने का यहां कोई फायदा नही।"


रुमित :- (प्रीति के कंधे पर हाँथ रख उसे शांत करते हुए) "Really sorry from her side sir!! हम लोग बहुत थक गए हैं, please understand, एक तो कल रात भर सुमित के कारण सो नही पाए और सुबह से आज सारा दिन यही हो गया है, तो थोड़ी frustration तो हो ही जाती है ना"



जिव्बा जी डाल्वी :- "ये बातें ना अपने वकील के लिए बचा कर रखो, मुझे बस सच सुनना है। जब रात भर से तुम्हारा दोस्त गायब था, तो तुम मेसे किसी एक नए भी police को बताना जरूरी नही समझा?? और मैडम आप!! आपका तो वो भाई था, फिर भी आपने भी किसी को inform नही किआ!! क्यों???"



स्मिता :- (आंसू पोंछते हुए, दबी आवाज़ में) "सर उसका झगड़ा हुआ था, उसके boyfriend के साथ, तो हम बस उन्हें अकेले में थोड़ा समय देना चाहते थे, ताकि वो लोग आपस मे सब सुलझा लें, लेकिन जब विवेक अकेला ही resort में आया, और जब हम लोगों ने उसे सुमित के बारे में पूछा, तब हमे पता चला कि वो तो सारे दिन से अकेला था, सुमित तो उसके पास आया ही नही। तब हमने सुमित को यहां वहां ढूंढा भी, लेकिन हमें लगा कि वो कहीं गुस्से में अकेले time spend कर रहा होगा, हमे इसमे कोई serious बात लगी ही नही सर। सुमित पहले भी ऐसा कर चुका था, तो हमे लगा कि वो कुछ देर बाद खुद ही वापस आ जायेगा। मुझे क्या पता था सर की मेरा भाई किसी मुसीबत में है, मुझे भनक भी होती तो मैं उसे कहीं नही जाने देती। अब क्या बोलूंगी मैं माँ पापा को!!"

             इतना कहते ही स्मिता की आंखे आंसुओं से भर गई, वहां सभी लोग थे स्मिता के आंसू पोंछने के लिए, उसे सहारा देने के लिए, बस नही था तो वो एक इंसान, जिसके लिए ये आंसू बह निकले थे। स्मिता का इकलौता छोटा भाई,  सुमित।   जो अब कभी न जागने वाली गहरी नींद में हमेशा के लिए सो चुका था, या यूं कहूँ सुला दिया गया था। किसी ने बड़ी बेरहमी के साथ सुमित के ऊपर चाकू या किसी नुकीले हथियार से कई बार हमला किया था, और उसे अधमरा calangute beach की झाड़ियों में मरने के लिए फेंक दिया था। जिसका पता लगा था इंस्पेक्टर जिव्बा जी डाल्वी को, जब सुबह मछुआरों ने खून से लतपत एक मृत शरीर को झाड़ियों में पाया। खबर लगते ही डाल्वी जी अपनी पूरी team के साथ मौका-ए-वारदात पर पहुंचे। लाश के पहने कपड़ों से वो एक सैलानी प्रतीत होता था, डाल्वी जी ने अंधेरे में तीर चलते हुए, उस मृत व्यक्ति की फ़ोटो निकाली, और आस पास के सभी होटलों और resorts में पहुंचा दी, और उनका तीर भी निशाने पर जा लगा। 1 घंटे के भीतर ही, Casa de Goa, Resort, Calangute से खबर आई कि ये शख्स, पिछले 4 दिनों से अपने बाकी दोस्तों के साथ इस resort में रुक हुआ है। डाल्वी जी ने भी बिना समय गंवाए, अपनी एक team को उस रिसोर्ट में तहक़ीक़ात के लिए तो भेजा ही, साथ ही साथ, उस मृतक के सभी दोस्तों को भी साथ लाने को कहा।

             घंटे भर के अंदर ही मृतक के 6 दोस्तों, 2 लड़कियों, प्रीति और स्मिता और 4 लड़कों, रुमित, विवेक, शिवांश और चैतन्य, सभी को Calangute Police Station ले आया गया। वहां दी गयी जानकारी से डाल्वी जी को पता चला कि, मृतक का नाम सुमित है, और 23 वर्ष उसकी उम्र है। स्मिता, मृतक की बड़ी बहन है और उम्र में अपने भाई से 3 साल बड़ी है यानी 26 वर्ष की है। विवेक उम्र 24 वर्ष, मृतक का कथित boyfriend है और चैतन्य उम्र 28 वर्ष, मृतक की बहन यानी स्मिता का बॉयफ्रेंड है। प्रीति उम्र 25 वर्ष और रुमित उम्र 26 वर्ष, दोनो couple है, और स्मिता और चैतन्य के दोस्त है। शिवांश उम्र 22 वर्ष, मृतक और विवेक का दोस्त है। ये सभी 9 सितंबर की रात से गोआ घूमने के इरादे से Casa De Goa Resort में ठहरे हुए थे। पिछले दिन यानी 14 सितंबर की सुबह को, सुमित और विवेक में कुछ कहा सुनी हो गयी थी, और विवेक गुस्से में अकेले ही resort से बाहर चला गया था, स्मिता और बाकी दोस्तो के समझाने पर सुमित भी विवेक को मनाने के लिए अकेले ही उसके पीछे रिसोर्ट से निकल गया था। लेकिन जब शाम को विवेक अकेले ही रिसोर्ट में वापस आया, तो सभी दोस्तों ने beach पर, बाजार में, और आस पास के इलाके में सुमित को ढूंढना शुरू किया। सुमित का मोबाइल भी switch off आ रहा था, तो उस से भी कोई मदद नही मिल सकी। सभी जगह खोज बीन कर सभी दोस्त खाली हाथ ही, थक हार कर रात को वापस रिसोर्ट में ही आ गए। बाकी सभी दोस्त तो अपने अपने कमरों में सोने चले गए, लेकिन स्मिता और विवेक वहीं reception पर ही इंतेज़ार करने लगे सुबह होने का, और उम्मीद का दिया भी जलाए रखे, सुमित के वापस लौट आने का। लेकिन वो दिया तब बुझ गया, जब सुबह के समय रिसोर्ट के staaf ने वहीं reception के सोफे पर बैठे- बैठे ही सोते हुए स्मिता और विवेक को उठाकर बताया कि police उनके दोस्त की फ़ोटो लेकर आई है। स्मिता और विवेक ने सुमित की जब वो फ़ोटो देखी, तो दोनों के मुंह से अकस्मात ही एक ही सवाल निकला "सुमित ठीक तो है ना???"  और हवलदार के उस जवाब ने दोनों के पैरों तले जमीन ही खिसक दी, जब उसने बड़ी ही बेरुखी के साथ कहा "मर्डर हुआ है इसका, और आप सब को थाने चलना होगा हमारे साथ।"



चलिये अब मैं आपको यही कहानी एक अलग पृष्ठभूमि से बताता हूँ.......

6 साल पहले : ( 07 / जून / 2012 ) :-

           आज का दिन बहुत ही खास है, हमारे सुमित के लिए, क्योंकि आज CBSE अपना 12 का result जो बताने वाला है। यूँ तो सुमित को अपना carrier और future goals साफ साफ पता हैं, की उसे BCA और फिर MBA कर किसी MNC में job करना है, तो 12 का result उसके सपनों के बीच कोई रुकावट तो नही लाने वाला था, लेकिन अच्छे नम्बरों से पास होना, और अपने स्कूल में अच्छा स्थान पाने की भावना ने थोड़ी उत्सुकता को बड़ा तो दिया ही था। अब स्कूल में भी अच्छे स्थान की कामना के पीछे भी सुमित का कोई खास स्वर्थ नही था, था तो डर!!! डर अपनी माँ की शाख का, क्योंकि सुमित कमला नगर, ग़ाज़ियाबाद के जिस केंद्रीय विद्यालय का एक होनहार विद्यार्थी था, उसे होनहार बनाने में सबसे बड़ा हाँथ था, गड़ित की शिक्षिका, श्रीमती करुणा व्यास का, जो कि एक बहुत ही सख्त मिज़ाज शिक्षिका भी थीं, और हमारे सुमित की करुणामयी माँ भी। तो 12 में अच्छे अंक लाना सुमित के लिए बेहद जरूरी, अपनी माँ की शाख को बरकरार रखने के लिए भी था। अब ये काम सुमित के लिए दोगुना जटिल बन गया था, दोगुना इसलिए, क्योंकि यही काम 2 साल पहले सुमित की बड़ी बहन और करुणा जी की एक और विद्यार्थी, स्मिता ने बड़े ही शान के साथ कर दिखाया था। तो सुमित के 12 के result का असर जितना उस विद्यालय में पड़ने वाला था, उतना ही बराबर का असर कमला नगर, ग़ाज़ियाबाद के ही उस घर मे भी पड़ने वाला था, जिस घर के आगे बड़े शान से श्री धर्मेंद्र व्यास (PWD) और श्रीमती करुणा व्यास (M. Sc.) के नाम की तख्ती लटक रही थी।


           अब result तो आया, और मिठाई भी बांटी गई, स्कूल में तो करुणा जी की शाख को बचा लिया गया था, लेकिन घर मे हर्षो-उल्लास का वो माहौल नही था, क्योंकि स्मिता ने जहां 82% के साथ 12 पास किआ था, वहीं सुमित केवल 74% ही ला पाया था। स्मिता जहां गड़ित में 89 नंबर लायी थी, वहीं सुमित को मात्र 70 अंक ही मीले थे। तो स्मिता के खुशी का कारण, छोटे भाई के कम अंक तो नही, बल्कि अपनी माँ की डांट थी, जो इस समय सुमित को पड़ रही थी, और इसके लिए स्मिता ने तो मन ही मन सुमित को धन्यवाद भी दे दिया था, क्योंकि अगर सुमित के ज्यादा नंबर आ जाते तो स्मिता को डांट तो नही लेकिन माँ की 4 बातें जरूर सुनने को मिलती। इस गंभीर माहौल को थोड़ा हल्का करने की कोशिश की धर्मेंद्र जी ने।


धर्मेंद्र जी :- "लो जी करुणा अपना मुंह मीठा करो, अपने गुप्ता जी के यहां से special order दे कर बनवाई है ये काजू कतली। ले स्मिता तू भी खा। सुमित.....!! सुमित......!! कहाँ है..... देख तेरे पास होने की खुशी में मिठाई लाया हूँ मैं, बाहर आ...। कहाँ गया ये लड़का????"


स्मिता :- (धीरे से फुसफुसाते हुए) "अंदर ही है, अभी माँ की डांट चालू है ना।"


धर्मेंद्र जी :- "डाँट?? पास तो हो गया वो और वो भी first class!!! फिर क्यों डाँट रही हो तुम उसे करुणा??"


करुणा जी :- (धर्मेंद्र जी के लिए चाय लाते हुए) "क्योंकि आप तो मिठाई लाये हो उसके लिए,तो मुझे ही तो डांटना पड़ेगा। और इतने भी कोइ अच्छे नंबर  नही आये हैं, की special काजू कतली बनवा कर ले आये।"


धर्मेंद्र जी :- "अरे तो क्या हो गया?? पास तो हो गया है ना, तुम तो बेवजह गुस्सा कर रही हो। और अभी कहाँ पढ़ाई खत्म हो गयी है,अब तो मुख्य पढ़ाई शुरू होगी, तब खूब डाँट लेना उसे, लेकिन आज तो enjoy करने दो उसे।"


करुणा जी :- "बस आपके लाड़ प्यार ने ही तो बिगाड़ रखा है दोनो को। तो फिर मुझे तो डांटना ही पड़ेगा ना, वरना ये जो 74% आये है, ये भी ना आते।"


धर्मेंद्र जी :- "अरे अच्छे नंबर तो है!! मेरे तो 62% आये थे 12वीं में, फिर भी देखो अच्छी खासी सरकारी नौकरी कर रहा हूँ।"


करुणा जी :- "तब की बात और थी, और अब कितना संघर्ष है ये आप भी अच्छे से जानते हो। अब पता नही इतने कम नंबर में किसी अच्छे engineering college में admission मिलेगा भी या नही।"


सुमित :- (अंदर कमरे के पर्दे से झांकते हुए) "मुझे engineering नही करनी माँ। मैं MBA करना चाहता हूँ।"


धर्मेंद्र जी :- "अरे तू पहले बाहर तो आजा, फिर जो मन आये वो करना, देख ये काजू कतली कब से तेरा इंतेज़ार कर रही है। और अपनी marksheet तो दिखा, किसी ने दिखाई ही नही मुझे अब तक।"


           सभी हंसी खुशी रात का खाना भी खाते है, तब तक करुणा जी का गुस्सा भी कम हो जाता है। सुमित का future plans जानकर ना तो धर्मेंद्र जी और ना ही करुणा जी, किसी को भी बुरा नही लगता, लेकिन सुमित से कई दिनों तक इस बारे में बात जरूर की जाती है, और उसके course और job करने की इक्छा को समझा, और उसे कुछ समझाया भी जाता है। करुणा जी जितनी पढ़ाई लिखाई के मामले में सख्त है, उतनी ही आज़ादी उन्होंने अपने बच्चों को, उनके carrier option चुनने की भी दे रखी है। स्मिता ने भी B. Sc. और साथ ही साथ प्रशासनिक परीक्षाओं की तैयारी करने का फैसला भी स्वयं ही लिया था, लेकिन सही मार्गदर्शन जरूर धर्मेंद्र जी ने ही किआ। ग़ाज़ियाबाद के काशीराम राजकीय महाविद्यालय में स्मिता का ये द्वितीय वर्ष था, और इसी कॉलेज में ही सुमित ने भी BCA के course में admission ले लिया, और साथ ही साथ MBA के लिए CAT की exam की तैयारियां भी शुरू कर दी। यहां तक तो आपने सुमित और उसके परिवार के बारे में अधिकांश बाते जान ही ली हैं, अब थोड़ा और जानना बाकी है, सुमित को।


              एक आम भारतीय लड़के की छाप से सजता था हमारे सुमित का चेहरा। गेंहुआ रंग, काले बाल, तीखे नैन नक्श और एक बहुत ही मनमोहक मुस्कुराहट, सोने पर सुहागे का काम करती थी। पतला दुबला शरीर और एक मध्यम कद काठी। सुमित में सबसे खास थी उसकी प्यारी, मीठी सी बोली। पढ़ाई लिखाई के साथ साथ उसे गायन में भी रुचि थी। स्कूल के हर function पर एक गायन प्रस्तुति सुमित की ओर से जरूर होती थी। संगीत को अच्छे से सीखने की कोशिश भी की, लेकिन महज़ 3 महीनों में ही समझ आ गया कि ये कोई आसान काम भी नही, और इसे बस शौक बनाये रखने में ही भलाई है। सुमित एक शांत स्वभाव वाला लड़का था, आज तक बस स्मिता को छोड़ कर किसी से लड़ाई भी नही हुई थी, ऐसा भी नही था कि सुमित डरपोक हो, अगर कहीं कोई परिस्थिति बिगड़ती भी थी तो वो उसे अपनी सूझ बूझ से हल कर लेता था, लड़ने झगड़ने तक कोई बात पहुंचने ही नही देता था। अब स्मिता से तो लड़ाई, स्मिता की जिद्द की वजह से होती थी, क्योंकि सुमित उसका छोटा भाई था, और छोटे भाई की बात मानना, स्मिता की शान के खिलाफ। खैर, अब ये तो हर भाई बहन के बीच की बात है। लेकिन सुमित कम उम्र से ही अपनी समझदारी का परिचय देता आया था। मेहनती भी था, और कुछ करने की लगन जब भी जगती थी, तो वो काम करने में कोई देरी भी नही करता था, लेकिन वहीं, अगर उसे लगे कि उसकी मेहनत किसी मंजिल तक नही पंहुच सकती, तो उस कार्य को छोड़, दूसरे काम को हाँथ में लेने से जरा नही हिचकता था। लोगों का डर उसके मन मे बिल्कुल नही था, बस अपने हर काम को मंजिल देना ही उसका लक्ष्य होता था। डर था, तो सिर्फ अपनी माँ का। क्योंकि, करुणा जी सुमित के कई कामो को बीच मे ही छोड़ देने की आदत से परेशान थीं, और अपनी इस आदत की वजह से सुमित अपनी माँ से कई बार डाँट और मार भी खा चुका था। इसलिए अब वो अपने मन की हर बात को, बस अपने तक ही रखता था, और उसके पूरा हो जाने के बाद ही अपने घरवालों को बताया करता था।


             मन में दबी कई बातों में से एक थी उसके GAY होने की बात। जो उसने अब तक किसी को नही बतायी थी। और ऐसा कब से था, कैसे हुआ, इस बात का कोई सटीक समय और कोई उदाहरण नही था, जब से होश संभाला, सुमित इस बात से परिचित था कि वो एक GAY है। सुमित के व्यक्तित्व की ये खासियत थी, की अगर वो स्वयं किसी को अपने GAY होने के बारे में नही बताता, तो शायद ही किसी को अंदाज़ा हो पाता इस बात का। सुमित अपने स्कूल का इकलौता लड़का था जिसने BCA में admission लिया था, सुमित के सारे दोस्त engineering करने किसी private college या फिर IIT की तैयारी में लगे थे। और अपने लिए इस फैसले पर सुमित को कोई दुख, कोई अफसोस नही था, क्योंकि उसे अपना लक्ष्य साफ नजर आ रहा था।


            College में कहने को तो सुमित की कक्षा में 45 विद्यार्थी थे, लेकिन रोज़ college आने वाला केवल सुमित ही था। college शुरू हुए 1 महीना हो चुका था, लेकिन अभी तक सुमित ने अपनी ही कक्षा के सभी विद्यार्थियों की शक्ल भी नही देखी थी। जिससे वो पहले दिन मिला था, वो सहपाठी भी, 30 दिनों के बाद दोबारा नजर आया था। विधार्थीयों की इस अनियमितता का फायदा वहां के शिक्षक उठाते थे, और आये दिन कोई न कोई बहाना दे कर कक्षा में पडाने भी नही आते थे। सुमित कभी कंप्यूटर लैब, कभी लिब्रेरी, तो कभी college की garden में ही अपनी BCA और CAT की पढ़ाई करता रहता रहता था। कॉलेज खुलने के 2 महीने बाद, सुमित की मुलाकात हुई शिवांश से। और बातों ही बातों में पता चला कि शिवांश भी BCA first year का विद्यार्थी है, और सुमित का सहपाठी। शिवांश एक हसमुख और मिलनसार लड़का था, तो उसे सुमित से दोस्ती करने में ज़रा भी वक़्त नही लगा, और उसने अपने बारे में बताते हुए बताया कि, वो चिरंजीव विहार, ग़ाज़ियाबाद के D ब्लॉक में रहता है, और उसके पापा का एक cyber cafe और tour and travels का buisness है। वो भी वही सब संभालता है, ये BCA तो बस graduation करने के लिए कर रहा है।


शिवांश :- "यार ये पड़ने लिखने का मेरा कोई खास मन तो नही, जब मुझे पता ही है, की मुझे अपने पापा का बिज़नेस ही संभालना है, ये तो बस इसलिए कर रहा हुँ, ताकि कल को कोई पूछे तो बात तो सकूँ की graduation की हुई है।"


सुमित :- "बात तो आपकी ठीक है, लेकिन अब जब कर ही रहे हो, तो अच्छे से मन लगा के कर  लो। ताकि कल को कोई graduation के marks पूछे, तो गर्व से बता तो सको। वरना distance learning से कोई भी course कर लो।"


शिवांश :- "यार कबसे बोल रहा हूँ, आप-आप करके मत बात कर, we are friends now, और बात तो तेरी सही है, लेकिन हालत देख तो रहा है college की, यहां कोई पडाने को ही तैयार नही है, तो college आकर भी क्या करें।"


सुमित :- "नही ऐसा नही है, तुम आओ तो teachers को भी आना पड़ेगा। और ये तो अच्छा है कि तुमने BCA में admission लिया है, ये course तुम्हारे बिज़नेस में भी तुम्हारी मदद ही करेगा।"


शिवांश :- "हाँ यार,  तेरी बात में दम तो है, चल मैं कोशिश करूंगा college आने की, और अगर कोई teacher नही आया तो तू ही पड़ा देना।"


               अपना कॉलेज का सारा समय उस दिन दोनो साथ मे ही बिताते हैं, और इतनी सी देर में हीं, एक दूसरे की schooling और families की बातें भी हो ही जाती है। और घर जाते वक्त शिवांश, सुमित का मोबाइल नंबर भी ले लेता है। शिवांश घर आकर सबसे पहला काम सुमित को facebook पर search करके उसे friend request भेजने का ही करता है। यूँ तो शिवांश bisexual है, लेकिन दिखता खुद को strieght ही है, और लड़कों के साथ समय बिताना, उनके साथ शारीरिक संबंध बनाना उसे पसंद तो बहुत है, लेकिन इन सभी भावनाओ को मात्र enjoyment का नाम देकर वो बस LGBT समुदाय के tag से बचना चाहता है। खुद को bisexual बोल कर, खुद की मर्दानगी कम होने की भावना से बचना चाहता है। पड़ोस की एक लड़की के साथ भी friendship है, और उसके साथ भी शारीरिक संबंध है। घंटों घरवालों से छुपकर, फ़ोन पर बातें भी होती है, और तोहफों का आदान प्रदान भी किआ जाता है। लेकिन इस रिश्ते को भी प्यार का नाम देने से डरता है। असल में अपने मन की सभी सच्ची भावनाओ को दबाकर cool dude बनने की कोशिशों में लगा रहता है।


         घर आकर सुमित ने facebook खोला तो, लेकिन सुमित व्यास के नाम वाला नही, सैमी शर्मा के नाम का फेक एकाउंट। ये सुमित का ही एक दूसरा facebook account था, जो वो अपनी GAY fantasies पूरी करने के लिए चलता था। इस एकाउंट पर सुमित के कई सारे GAY friends थे, जिनसे वो कई सारी बातें भी किआ करता था, लेकिन वो अभी तक मिला किसी से भी नही था। कई friends तो ग़ाज़ियाबाद के भी थे, जो मिलने की ज़िद भी किआ करते थे, लेकिन सुमित बड़े ही अच्छे तरीके से, कुछ न कुछ बहाना देकर उन्हें टाल दिया करता था। सुमित वेसे तो facebook कम ही चलाता था, क्योंकि माँ की इजाज़त के बिना, आज भी दोनो बच्चों का laptop लेना वर्जित था। लेकिन जब भी समय मिलता था, सुमित बड़ी ही सावधानी से अपना ये एकाउंट जरूर देखा करता था। ये एकाउंट जरूर नकली था, लेकिन यहां सुमित की भावनाएं, उसकी इक्छाये, उसके जज्बात, सब असली थे। और एक वो असली एकाउंट भी था, जहां हर वक़्त एक बनावटी सुमित रहता था। laptop रखने से पहले,सुमित ने अपना असली अककॉउंट भी open किआ, जहां उसे शिवांश की friend request मिली, जिसे उसने accept कर लिया।


               समय के साथ शिवांश और सुमित की दोस्ती भी बढ़ती गयी, और अब जब भी स्मिता कॉलेज नही आती या उसे देर से घर जाना होता, तो सुमित शिवांश के साथ ही राज नगर एक्सटेंशन तक उसके साथ, उसकी bike पर ही आता था। और देखते देखते ही first year के exam भी आ गए। और इन दिनों शिवांश पहली बार सुमित के घर भी आया, उससे पड़ने के लिए, और फिर ये सिलसिला भी आम हो गया। अब तो शिवांश कभी भी सुमित के घर आ जाता था, सुमित के घरवाले भी शिवांश से परिचित हो चुके थे, और कभी कभी सुमित भी शिवांश के घर चले जाया करता था। बाकी सारे exam तो अच्छे से बीत गए, और सुमित के पडाने के कारण ही शायद, शिवांश भी बेहद खुश था, क्योंकि उसके exam भी काफी अच्छे गए थे। बस एक ही exam बाकी रह गया था, math का। और करुणा जी ने दोनों बच्चों को math में मदद का वादा भी दिया हुआ था। math के exam में अभी 2 दिन बाकी थे, शिवांश एक दिन पहले ही, रात के समय पहुंचा सुमित के घर, और करुणा जी भी दोनो को पढ़ाने लगी। लेकिन पढ़ाई खत्म होने तक रात के 11:30 हो गए थे।


करुणा जी :- (जमाई लेते हुए) "चलो बच्चो अब बाकी के chepters कल कर लेंगे, मुझे तो अब बहुत नींद आ रही है। और शिवांश बेटा, तुम भी घर निकलो, ज्यादा रात करना भी सही नही है।"


शिवांश :- "जी आंटी!! वो आज पापा थोड़े busy थे, तो cyber मुझे ही संभालना पड़ा, इसलिए आज थोड़ी देर हो गयी। काल मैं जल्दी आ जाऊंगा।"

              बाहर आकर देखा तो शिवांश की bike ही पंचर हो गयी थी, और इतनी रात में पंचर बनाने वाला भी कोई नही मिलता।


करुणा जी :- "अब पहले तो शिवांश तुम अपने घर फ़ोन करके उन्हें बात दो की आज रात यहीं रुकोगे, रात बहुत हो गयी है, वो लोग भी तुम्हारी राह देख रहे होंगे। तुम फ़ोन करो, तब तक मे तुम्हारा बिस्तर सुमित के कमरे में ही लगा देती हूँ।"


               रात को जब सुमित अपने laptop पर अपना नकली facebook account चला रहा था, तो शिवांश ने चोरी छुपे देख लिया। और उस एकाउंट से शिवांश को कुछ समझ तो आ गया, लेकिन तब तो वो चुप रहा, लेकिन उसके दिमाग मे कई सवालों - जवाबों का सिलसिला चलने लगा। वो सुमित के बारे में खुद से ही सवाल भी करने लगा, और खुद को ही जवाब भी देने लगा। इन सवालों जवाबों का निष्कर्ष यह निकला कि, शिवांश को सुमित की असलियत तो पता चल गई थी, लेकिन वो अभी भी confuse था, की सुमित gay है, bisexual है, या बस युही time paas के लिए इस तरह का एकाउंट चला रहा है। अब वो सुमित से इस बारे में पूछना तो चाह रहा था, लेकिन पूछे कैसे, ये उसे नही समझ आ रहा था। और वेसे तो सुमित भी अपना नकली facebook account चलाते समय एहतियात रखता था, और उसने आज भी facebook खोलने से पहले शिवांश की तरफ देखा था, लेकिन तब शिवांश आंखे बंद किये कानों में headphone लगाए तेज़ आवाज़ में गाने सुन रहा था। आज सुमित की ज़रा सी लापरवाही ने शिवांश के मन मे कई सवाल खड़े कर दिए थे। अब exam के दिनों में शिवांश की दोस्ती सुमित से पहले से भी ज्यादा गहरी हो चुकी थी, और उसी दोस्ती के सहारे, शिवांश ने सुमित से अपने मन के कई सवालों को जवाब देने के लिए, सुमित से एक सवाल कर ही दिया।

शिवांश :- (कानों से headphone हटाते हुए) "तू GAY है????"


सुमित :- (हड़बड़ा कर laptop बंद करते हुए) "क्या????? क्या बोल रहा है?????"


शिवांश :- "मैंने देखा तेरा फेसबुक!!!"


सुमित :- "अरे नही!!!! क्या बोल रहा है तू भी....."


शिवांश :- (सुमित की बात को काटते हुए) "देख यार अगर तू GAY है भी, तो उससे मुझे कोई दिक्कत नही। तू पहले मेरा दोस्त है। तू मुझे सब सच सच बता सकता है।" 


            शिवांश ये सब बस, सुमित का सच जानने के लिए कह रहा था। वरना शिवांश LGBT समुदाय के लोगों को देख कर अपना रास्ता ही बदल लेने वाले इंसानो मेसे है। क्योंकि LGBT समुदाय के लोगों को देख कर, उसे खुद की शख्शियत पर ही शक होने लगता था, क्योंकि एक आईना जो आ जाता था सामने। वहीं सुमित के लिए शिवांश के ये शब्द बहुत ही गहरे थे। उसे ऐसा support, अपनी असलियत के लिए, कहीं देखने और सुनने को नही मिला था। और ये उसके मन का डर भी था, की अगर उसकी असलियत सबके सामने आ गयी, तो कहीं सब उससे नफरत ना करने लगें। लेकिन शिवांश के मात्र इन कुछ शब्दों ने ही, सुमित के मन के डर को मिटा दिया था, और उसने अपने GAY होने का सच, शिवांश को बिना हिचके बात भी दिया।


            शिवांश तो मानो बस यही सुनने के इंतेज़ार में ही था। सुमित की सच्चाई जानते ही, बिस्तर से उठा, और सुमित को गालियां देकर, और फिर कभी उसकी तरफ देखने को भी मना कर, आधी रात में ही सुमित के घर से अपनी पंचर bike घसीट के ले गया। सुबह सभी ने शिवांश के जाने का कारण जब सुमित से पूछा, तो सुमित ने कोई जरूरी काम आ जाने का बहाना बना दिया। उस दिन शिवांश पड़ने भी नही आया और अगले दिन math का exam भी हो गया, और कुछ दिनों बाद first year का result भी आ गया। सुमित ने अपनी कक्षा में प्रथम और शिवांश ने द्वितीय स्थान भी प्राप्त किया। आखिर सुमित के पढ़ाने का अच्छा असर पड़ा था शिवांश पर। लेकिन सुमित को अनदेखा कर अभी तक कोई बात नही की थी शिवांश ने, और college आना भी बिल्कुल बंद ही कर दिया था। उधर स्मिता ने भी अपनी graduation अच्छे marks से complete कर ली थी, और पूरी तरह जुट गई थी अपने public sector के exam की तैयारियों में। अब सुमित college में पूरी तरह अकेला रह जाता था, पहले तो स्मिता के साथ ही आता जाता था, लेकिन अब ये काम भी उसे अकेले ही करना पड़ता था। एक दिन जब वो college से घर जा रहा था, तभी शिवांश ने अपनी bike से उसका रास्ता रोका और सुमित को साथ चलने को कहा। सुमित पहले तो हिचकिचाया, लेकिन फिर शिवांश की bike पर जाकर बैठ गया।


शिवांश :- (bike start कर आगे बढ़ाते हुए) "यार सुमित!! उस रात के लिए i am really very sorry!!! वो सब अचानक से हो गया बस, मुझे बाद में realize हुआ कि मैने गलत किआ तेरे साथ, लेकिन यार...... I am sorry यार!!! अब तू भी भूल जा उन बातों को, और मुझे माफ़ करदे।"


सुमित :- "It's ok शिवांश!!!! मेरा सच जिस तरह से तेरे सामने आया, तो मैं समझ सकता हूँ तेरे reaction को।"


शिवांश :- "और तेरे घर मे पता है सबको, की तू GAY है??"


सुमित :- "नहीं!!! जैसे तूने react किआ,  हो सकता है, वो लोग भी ऐसे ही react करें। इसलिए मैंने अभी तक किसी को इस बारे में बताया नही।"


शिवांश :- "तो तेरा कोई boyfriend भी है???"


सुमित :- "नहीं!!! अभी तक तो नही मिला कोई ऐसा। और मैं बस facebook ही चलता हूं, अभी तक तो मैं मिला भी नही किसी से।"


शिवांश :- "Ok!!! तो कोई girlfriend??? तू pure GAY है, या मेरी तरह bisexual??"



सुमित :- "नहीं यार मेरी कोई girlfriend भी नहीं, मैं pure GAY हूँ........ एक मिनट!!!! मेरी तरह मतलब???"



शिवांश :- (अपनी bike रोड के एक तरफ रोकते हुए) "हाँ यार!! मैं भी bisexual हूँ। मुझे भी तेरी तरह लड़कों में interest है, लेकिन उतना interest मुझे लड़कियों में भी है। मैने अब तक GAYS के बारे में एक अलग ही सोच बना रखी थी, इसलिए मैं खुद को कभी bisexual भी नही मानता था। इसलिए जब तूने उस रात मुझे अपना सच बताया तो मैं डर गया था, की कहीं मेरा सच भी सामने ना आ जाये। इसलिए मैं गुस्से और डर में तुझे भला बुरा बोलकर वहां से निकल आया। लेकिन फिर जब बाद में मैने तेरे बारे में सोचा, तब मुझे समझ आया कि गलत तू नही, गलत मेरी वो सोच है, जो मैंने GAY'S को लेकर बना रखी है। और मुझे एक अच्छा दोस्त मान के तूने इतनी आसानी से मेरे सामने अपनी feelings को accept कर लिया, और मैने फिर क्या किया तेरे साथ, I am really sorry यार, माफ कर दे मुझे!!" (सुमित को गले लगाते हुए)


सुमित :- "अरे! अरे! It's ok यार! होता है ऐसा, चल कोई बात नही!!"


शिवांश :- (सुमित से अलग होते हुए) "एक बात बता?? तू अपने घरवालों को कभी भी नही बताएंग क्या?? और उन्होंने तुझे शादी करने को कहा तो??"



सुमित :- "अरे तू भी कहाँ इतनी जल्दी मेरी शादी तक पहुंच गया, और हां कभी न कभी तो बताना ही पड़ेगा घरवालों को, फिर चाहे वो मुझे accept करें या नहीं, लेकिन मुझे अपने closet से बाहर तो आना ही पड़ेगा कभी।"


शिवांश :- "हाँ सही है यार! लेकिन मेरे घर मे तो कभी भी इस बारे में नही पता चलना चाहिए। वरना मेरे पापा तो लात मार के मुझे घर से भगा ही देंगे। और वेसे भी, मैं तो शादी करूँगा ही, एक सुंदर सी लड़की के साथ।"


               दोनों हंसते मुस्कुराते वहां से निकल जाते है। शिवांश इसलिए खुश था, क्योंकि आज खुद के बारे में accept करके वो बहुत ही हल्का महसूस कर रहा था। और वहीं सुमित इसलिए कि अब कम से कम कोई तो था, जिसके सामने एक नकली मुखौटा पहनने की जरूरत नही थी। दोनों ही एक दूसरे का सच सुन कर, और एक दूसरे को accept कर के खुश थे, और ये खुशी आगे भी ऐसे ही बरकरार रही। अब तो शिवांश सुबह ही सुमित के घर पहुंच जाता था, नाश्ता भी वहीं कर, सुमित को bike पर बैठा, कॉलेज ले आता था। सारा दिन दोनो कॉलेज में साथ बिताते, पड़ते लिखते, हंसी मजाक करते। और कभी कभी college ना जाकर, किसी सिनेमाहॉल में film भी देख आते। शाम को इधर उधर घूम फिर कर, सुमित को घर छोड़ने के बाद ही शिवांश और सुमित का दिन खत्म होता था। ये सिलसिला अगले पूरे साल, ऐसे ही चलता रहा। उधर साल भर की कड़ी मेहनत के बाद, स्मिता का selection SBI Bank PO में हो गया था, और 8 महीने की ट्रेनिंग के लिए उसे noida का ही एक ट्रेनिंग सेंटर भी मिल गया था। घर मे एक खुशी का माहौल था, स्मिता जो करना चाहती थी, उसने वो पा लिया था। और वहीं सुमित के second year के exam भी नज़दीक आ गए थे। इस बार भी, शिवांश को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी सुमित के सर ही थी, लेकिन Math के लिए तो दोनों ही करुणा जी पर निर्भर थे।


          इस बार फिर math पड़ने के लिए शिवांश, सुमित के घर आया, इस बार तो bike पंचर न होने पर भी, उसने रात वहीं रुकने को कहा। जिसको बिना किसी विरोध के मान भी लिया गया। रात को सोने से पहले, शिवांश और सुमित साथ मे, सुमित का वो नकली facebook एकाउंट, देखने लगे, और कई लोगों से chat भी करने लगे। मस्ती मजाक में शिवांश, कई लोगों से उनकी nude photo भी मांगने लगा, और कई लोग तो उसे अपनी फोटो भी दिखने लगे। लेकिन सुमित ने इस बात के लिए, शिवांश की डाँट भी लगाई, और laptop बंद कर उसे सोने को भी कहा। शिवांश ने बड़े ही प्यारे अंदाज़ में sorry बोलते हुए सुमित को गले से लगा लिया, और सुमित भी इस बात को हंसी में टाल गया। लेकिन शिवांश का इस बार सुमित को गले लगाना थोड़ा अलग था, थोड़ा अजीब सा था। इस बार शिवांश के गले लगने पर, एक अलग सी अनुभूति सुमित को भी हुई, और उसने खुद को शिवांश से अलग किआ। और अलग होते हुए, शिवांश ने सुमित को kiss करने की कोशिश की। जिसे सुमित ने शिवांश को खुद से ज़ोर से अलग करते हुए रोका।


सुमित :- "क्या कर रहा है???"


शिवांश :- "जैसे तुझे नही पता!!!"


सुमित :- "हाँ तो ये क्यों कर रहा है???"


शिवांश :- "मतलब???"


सुमित :- "क्या मतलब???? हम सिर्फ दोस्त है, इसके आगे कुछ नही।"


शिवांश :- "हाँ तो मैं कब तुझसे शादी करने को कह रहा हूँ???"


सुमित :- "सो जा चुपचाप, तेरा कुछ नही हो सकता।"


                 उस रात शिवांश ने जो भी कुछ करने की कोशिश की, वो उसकी सोच की गंदगी थी। और सुमित के व्यवहार ने एक बात तो उसे साफ कर दी थी, की शिवांश जो भी सोच सुमित के लिए बनाए बैठा है, सुमित बिल्कुल वैसा नही है। सुमित के लिए हर रिश्ते की एक मर्यादा और एक अलग ही नज़रिया था। जो धीरे धीरे शिवांश को भी समझ आ गया। और सुमित को इतने करीब से जानने के बाद, शिवांश सुमित की ओर खींचता ही चला गया, और एक अलग ही आकर्षण भी महसूस करने लग गया, जो उसने आज तक किसी के लिए भी महसूस नही किआ था। समय के साथ साथ दोनो की दोस्ती और गहरी होती चली गयी। सुमित के लिए तो बस ये एक दोस्ती ही थी, लेकिन शिवांश के दिल और दिमाग मे सुमित, दोस्त के ओदे से कहीं ऊपर उठ चुका था।


              धीरे धीरे दोनो ने अपनी graduation भी complete करली थी, और सुमित ने CAT में अच्छे marks लाकर, Amity University, Noida में scholarship पे MBA में admission ले लिया। यूँ तो CAT की पढ़ाई सुमित ने शिवांश को भी बराबर की कराई थी, लेकिन अब शिवांश के दिमाग मे, सुमित के चेहरे के अलावा कोई और बात अंदर जाने की जगह ही नही थी। तो इसका नतीजा ये निकल की शिवांश, CAT के exam में जरा भी अच्छे marks न ला पाया। लेकिन वो सुमित को छोड़ने को भी राजी नही था, तो उसने भी अपने पापा से ज़िद्द करके, Amity University में donation दे कर MBA में admission ले लिया। अब तो दोनों का साथ और भी ज्यादा गहरा हो गया था। सुबह सुबह ग़ाज़ियाबाद से नोएडा जाना, सारा दिन college में साथ बिताना, और वापस घर आते आते शाम हो जाय करती थी। यूँ तो Amity में सुमित और शिवांश के कई दोस्त बन गए थे, लेकिन सुमित का और लोगों से ज्यादा बात करना या किसी और के साथ समय बिताना, शिवांश को बिल्कुल भी पसंद नही आता था। शिवांश इतनी दूर पड़ने नही, बल्कि सुमित के साथ वक़्त बिताने ही तो आता था, और वो हर वो कोशिश करता था, जिससे वो हर समय सुमित के आस पास रह सके। उसके मन मे अब सुमित का नाम और गहरा हो चला था और पहली बार उसने बिना कुछ सोचे, खुद के और सुमित के रिश्ते को प्यार का नाम दे दिया था। चाहे भले ही केवल अपने मन मे ही, लेकिन उसने ये स्वीकार कर लिया था, की वो सुमित से बेहद प्यार करने लगा है। और उसने अपने प्यार का इज़हार करने की भी कोशिश की, लेकिन बहुत ही एहतियात के साथ, की कही BCA second year की उस रात की तरह कोई गलती न कर बैठे।


शिवांश :- (Amity से वापस ग़ाज़ियाबाद आते समय bike पर) "यार सुमित!! हम लोगों को साथ मे काफी समय हो गया ना?"


सुमित :- "हाँ!!! 3 साल हो गए।  क्यों??  आज तुझे कैसे याद आ गया??"


शिवांश :- "बस ऐसे ही। और तेरे बारे में जो मैं जानता हूँ, वो कोई और भी नही जानता!!"


सुमित :- "हाँ!! लेकिन हुआ क्या??"


शिवांश :- "देख तू भी GAY है, और मैं भी। तो क्यों न हम अपनी इस दोस्ती को आगे बढ़ाएं??"


सुमित :- "Hello!!! तू कबसे GAY हो गया?? तू bisexual है, याद है ना?? और यार मैं पहले भी बोल चुका हूं, की हम बस दोस्त है, अब तू इस दोस्ती में कोई और angle मत डाल please!!"


शिवांश :- "यार मैं वो नही बोल रहा!! मैं जानता हूं कि मैं पहले कई गलतियां कर चुका हूं, लेकिन तब मैं नासमझ था, लेकिन अब मैं समझता हूं, तुझे भी और खुद को भी। और क्या bisexual GAY नही होते, क्या हमारा दिल नही होता, क्या हम प्यार नही कर सकते?? मैं तुझसे seriously पूछ रहा हूँ एक relationship के बारे मे। You Wanna be my Chammakchallo forever??"


सुमित :- (थोड़ी देर चुप रहने के बाद) "शिवांश यार तू बहुत अच्छा इंसान है, लेकिन तू मेरा दोस्त है यार! देख मेरी बात ध्यान से सुन.... तू bisexual है, और I know की तुझे आगे चल कर शादी भी करनी है, अपना परिवार भी बनाना है, लेकिन यार ये सब मेरे लिए नही है। आज नही तो कल मैं अपने घर मे भी अपने GAY होने की बात बता दूंगा। मैं GAY हूँ और GAY ही रहूंगा। तो यार तू ये सब करके मुझसे मेरा इकलौता अच्छा दोस्त मत छीन।"


शिवांश :- (झूंठी हंसी के साथ) "अरे chill यार!! ज्यादा serious मत हो, वो तो मैं बस यूँही try मार रहा था। वो क्या है ना, मेरी पड़ोसन की शादी हो गयी है, तो आज कल मैं बहुत अकेला feel कर रहा था, तो सोचा तुझपे try कर लूं।"


सुमित :- "तू नही सुधरेगा। लेकिन यार सच मे तू ही मेरा एक ऐसा दोस्त है, जो मेरे बारे में सब जनता है, और जिसके आगे मुझे कोई बनावट या झूठ नही बोलना पड़ता। please यार आगे से ऐसा कुछ मत करना। अभी तो बस 3 साल ही हुए हैं, मैं चाहता हूं कि हमारी दोस्ती तो पूरी ज़िंदगी युही बरकरार रहे।"


             चेहरे पर तो हंसी लेकिन दिल मे आंसू लिए, आज शिवांश पहली बार, आशिकों के उस दर्द को महसूस कर सकता था, जो आज से पहले उसने कहीं पड़े, देखे या सुने थे। आज सुमित ने केवल शिवांश का pruposal ही नही ठुकराया था, उसका दिल भी तोड़ दिया था। शिवांश ने फिर खुद को तो ये समझा लिया कि सुमित प्यार न सही, लेकिन एक अच्छा दोस्त बन के तो उसके साथ रह ही सकता है, लेकिन वो अपने टूटे दिल को ये कैसे समझता कि , ये दिल जो सिर्फ सुमित के चेहरे पर हंसी देखना चाहता है, उसका साथ पाना चाहता है, उसके दिल मे बस जाना चाहता है, ये सब हो तो सकता है, लेकिन सिर्फ दोस्ती के दायरे में। फिर कुछ समय तो शिवांश को अपने टूटे दिल को संभालने में ही निकल गया, और अभी तो वो सही से अपने गम से उबर भी नही पाया था कि उसके सामने एक पहाड़ सा टूट पड़ा।


सुमित :- (ग़ाज़ियाबाद से Amity जाते वक्त रास्ते मे bike पर) "यार पता है, कल मैं एक बंदे से facebook पर चैट कर रहा था। यार बडा ही sensible लगा मुझे तो वो। हम पता है, सुबह के 4 बजे तक chat ही करते रहे। यार बात करना तो दूर, उसके chat करने का तरीका ही इतना अच्छा है, की मैं खुद को रोक ही नही पाया, उसकी तरफ attract होने से।"


शिवांश :- (आश्चर्य में bike एक तरफ अचानक रोक कर) "क्या??? तुझे उससे प्यार हो गया??? उस दिन तो मुझे बड़ी बड़ी बातें दे रहा था, लेकिन अब बिना मिले, बिना जाने पहचाने ही उसके प्यार में पड़ गया??"


सुमित :- (हंसते हुए) "पागल है क्या??? मैने कब बोला प्यार??? मैं तो कह रहा हूँ कि उसके chat करने का तरीका ही बहुत पसंद आया मुझे। और तुझे क्या हो गया?? Bike रोक के क्यों खड़ा है???"


शिवांश :- (Bike start करते हुए) "हाँ तो ऐसे बोल न!! मुझे लगा कि तुझे उससे प्यार हो गया। और क्या क्या बाते की तूने?? फ़ोटो देखा उसका?? फ़ोन नंबर लिया??"


सुमित :- "सच मे ही पगला गया है क्या??? पहली ही chat में कोई ये सब मांगता है क्या??? तू भी ना!!"


शिवांश :- "फ़ोटो ली नही, नंबर लिया नही, तो 4 बजे तक क्या बात कर रहा था तू उस से??"


सुमित :- "यही तो उसका जादू था यार। बातें तो ऐसी कोई खास नही हुई, लेकिन फिर भी वो मुझे बंधे रखा इतनी देर। और पता है, वो हमारे ही college में है MBA final year में।"


शिवांश :- (फिर से bike रोक कर) "क्या?? Senior??? तुझे बुड्ढे लोग पसंद आते हैं क्या??? तो पहले बताना था न, मैं final year में admission ले लेता।"


सुमित :- "तू सच मे ही पागल हो गया है। क्या बकवास करे जा रहा है। और 1 या 2 साल बडा, बुड्ढा नही होता। और तू ये बार बार bike क्यों रोक रहा है??? College पहुंचने में देर हो जाएगी।"


              उस दिन सुमित ने साफ लफ्जों में तो नही कहा था कि उसके मन मे क्या चल रहा है, लेकिन उसके बात करने का अंदाज, उसके बिना किसी बात के मुस्कुराना, उसका वो खुश मिज़ाज व्यवहार, शिवांश को समझने के लिए काफी था, की जिस लड़के के बारे में सुमित बात कर रहा है, वो सुमित के दिल मे एक खास जगह बना चुका है। अब ये जानकर शिवांश को बुरा तो बहुत लग रहा था, लेकिन वो उसके लिए कुछ कर भी नही सकता था। शिवांश ने तो एक पल को ये भी सोच की वो मार पीट कर उस लड़के को सुमित की ज़िंदगी मे आने ही नही देगा, लेकिन शिवांश ने ना तो उस लड़के को देखा था, ना ही उसके बारे में कुछ जानता था। लेकिन एक बात तो साफ थी, शिवांश सुमित को खुश तो देखना चाहता था, लेकिन किसी और के साथ बिल्कुल नही।




        आगे की कहानी क्या मोड़ लेगी, और ऐसा क्या हो जाएगा कि कोई हंसते खेलते सुमित की जान का ही दुश्मन बन जायेगा, जानने के लिए बने रहे सुमित के साथ.......



Lots of Love
Yuvraaj ❤️ 


Tuesday, October 2, 2018

दौर-ए-ज़िन्दगी Final Part

Please read it's first part than you easily be connected with final part of this story. And please concentrate on timings and the flow of story.


APRIL 1993 : ( 25 साल पहले )



रूपेश जी :- "ममता जी! अब मैं बिल्कुल अनाथ हो गया हूँ। माँ की छवि तो मुझे वेसे भी सही से याद नहीं है, बाबूजी ही थे जिन्होंने मुझे माँ और बाप दोनों का प्यार देकर पाल पोस कर बड़ा किआ था। खुद अपना मन मार कर मेरे सपनों को पूरा करने में कोई कसर न छोड़ी। ममता जी! अब मैं पूरी तरह से अकेला हो गया।"


ममता जी :- "संभालिये खुद को, आप ही ऐसे टूट जाएंगे तो बच्चों को कौन संभालेगा। अब होनी को कौन टाल सकता है। आपको याद है, बाबूजी हमेशा क्या कहते रहते थे!!! उन्हें गर्व था आप पर और आपके फैसलों पर, वो मुझसे हमेशा ही कहते थे ,की आपने खुद से ज्यादा हमेशा इस परिवार को एहमियत दी है, आपने खुद से ज्यादा इस परिवार की भलाई के लिए फैसले लिए है। और आपके जैसा बेटा पा कर वो बहुत ही खुश थे, और अभी शायद 2, 3 हफ्ते पहले ही मजाक में ही कह रहे थे, की मैं तुम्हारा नाती या पोता बन कर वापस इसी घर मे आऊंगा, तुम लोगों को छोड़ कर कहीं नही जाऊंगा, इसलिए मेरे मर जाने पर दुखी नहीं, मेरे वापस आने का इंतेज़ार बहुत ही खुशी के साथ करना। चलिये अब आप उठिए और बच्चों के साथ थोड़ा बाहर घूम आईये। आपको भी अच्छा लगेगा और बच्चों को भी। और देखिए मैं आपके लिए क्या लायी हूँ??? आप की सिनेमा के tickets। चलिये तैयार होइए और बच्चों को भी साथ ले जाइए।"


रूपेश जी :- "नहीं ममता जी!! मेरे कहीं भी जाने का मन नही है, और अभी बाबूजी की तेरवीं को  हफ्ता भर ही हुआ है, और मैं ऐसे में सिनेमाहॉल चले जाऊं???"


ममता जी :- "जानती हूँ, लेकिन अभी यही सही है, आपके और बच्चों के लिए। जानती हूँ कि बाबूजी के जाने का दुख है, दुख मुझे भी है, लेकिन यही जीवन की सच्चाई है और इसे नही बदला जा सकता। और अगर बाबूजी होते तो वो भी मेरी बात से सहमत होते। चलिये उठिए, मैं बच्चों को भी तैयार कर देती हूँ, उनका भी मन बदल जायेगा और आपका भी।"



            मैं तेरे उन अनकहे लफ्जों को,
                    दिल की गहराइयों में सुनता चला गया।
           मैं तेरी उन झुकी पलकों को,
                    मन की आंखों से पड़ता चला गया।
           मैं तेरी उन दबी आहों को,
                   रोम-रोम में महसूस करता चला गया।
           तू जो बस कह देता की,
                   मेरा साथ ही अब तेरे आंसुओं की वजह है बन गया।
           मैं फिर भी तेरे हाल-ए-दिल को,
                   इशारे में समझता चला गया। 


OCTOBER 1986 : ( 32 साल पहले )



बाबूजी :- "ले अंजलि मिल ले अपने भाई से, रात भर ठीक से ना तो खुद सोई, ना मुझे ही सोने दिया। बार- बार बस एक ही सवाल, सुबह हो गयी क्या दादू??? कब चलेंगे हस्पताल?? और सुबह से नाक में दम किये हुए है, हलवाई की दुकान खुलने तक का इंतेज़ार नही करने दिया। ले बेटा अब तू ही जाके मिठाई ले आ, और हाँ थोड़ी ज्यादा सी लाना, पूरे हस्पताल में बांटूंगा मै।"


रूपेश जी :- "अरे बाबूजी पैसे रखिये, मैं ला दूंगा अभी, अभी बाजार तो खुलने दीजिये, और मुझे अच्छे से पता है, अंजलि तो बस बहाना है, मन तो आपका भी नही लग रहा होगा घर पर। लीजिये अपनी बेसब्री खत्म कीजिये और अब ले ही लीजिए अपने पोते को अपनी गोद में।"


बाबूजी :- "हाँ लाओ लाओ, इसके इंतेज़ार में ही तो भागते हुए आये है, इसके दादू और दीदी।"


रूपेश जी :- "लीजिये बाबूजी, आप खिलाईये अपने पोते को, तब तक मे कुछ दवाएं और आपकी मिठाई भी देख कर आता हूँ, की मिलने लगी या नही।"


बाबूजी :- "सुन इधर ध्यान से, जैसा अंजलि के वक़्त किया था ना वैसा मत करना, हमें यहाँ दवाई का बोल के खुद वहां सिनेमा देखने बैठ जाये। सुधर जा अब और छोड़ ये सिनेमा जाने की आदत, दो बच्चों का बाप हो गया है अब तू।"



ममता जी :- "अरे आप निश्चिन्त रहिये बाबूजी, आज वेसे भी 3 तारीख है और ये तो 15 तारीख को शाम को जाते है, शायद मेरे बेटे को भी पता था उसके पापा की आदत के बारे में, इसलिए सही समय देख कर आया है वो इस दुनियां में।"


बाबूजी :- "हाँ ये तो तू सही कह रही है बहु, और तू रुक जा मैं जाता हूँ दवाई और मिठाई लेने। अभी बहु को यहाँ किसी की जरूरत पड़ गयी तो, तो तू रुक यहां। ले बहु अब तू संभाल मेरे अर्जुन को, मैं आता हूं बाजार से।"


रूपेश जी :- "अरे वाह बाबूजी आपने तो नाम भी रख दिया, अर्जुन!! बड़ा ही प्यारा नाम है, क्यों ममता जी।"


बाबूजी :- "हाँ और क्या, मुझे तो तेरी आदतें पता हैं ना, बहु की तू चलने नही देगा, और खुद कुछ अब्बू, डब्बू, राजू, पिंकी जैसे कुछ नाम रख देगा मेरे पोते का। इसलिए ये काम तो मुझे ही करना पड़ेगा ना। चलो में आता हूँ, अब तक तो बाजार भी खुल गया होगा शायद। चल अंजलि तू भी चल मेरे साथ, वरना यहां रहेगी तो या तो अपनी माँ को परेशान करेगी या अपनी भाई को।"



क्या यही वो तेरा प्यार था, क्या यही वो तेरा साथ था।।
एक हवा के झोंके से बिखरा हो ताशों का घर जैसे।
एक छोटी सी हलचल से ज़मी में आई हो गहरी दरार जैसे।
एक हल्की से ठोकर से टूट कर बिखरा हो कांच का सपना जैसे।
एक पल के अंधेरे से खाली हुआ हो सपनों का पूरा शहर जैसे।
एक जलते दिए को बुझाया हो खुद हांथो से तूने जैसे।
क्या यही वो तेरा प्यार था, क्या यही वो तेरा साथ था।।



MARCH 1976 : ( 42 साल पहले )



बाबूजी :- "अरे अब क्या स्वर्ग से अपनी माँ के हाँ बोलने का इंतेज़ार कर रहा है??? जब ममता छोटी सी बच्ची थी ना, तबसे जनता हूँ मैं उसे। वो बहुत ही सुशील और समझदार लड़की है , बेटा। वो इस घर को और तुझे अच्छे से संभाल लेगी।"



रूपेश जी :- "बात ममता की नही है बाबूजी, बात मेरी है। मैं अभी शादी के लिए तैयार नही हुँ, मुझे थोड़ा वक्त और चाहिए।"



बाबूजी :- "अरे 24 साल का हो गया है, अच्छी खासी नौकरी कर रहा है, अब और कितना तैयार होना है शादी के लिए तुझे??? देख अगर किसी और लड़की का चक्कर है तो अभी ही साफ साफ बात दे मुझे।"


रूपेश जी :- "नहीं बाबूजी ऐसी कोई बात नही है। मैं तो बस......"



बाबूजी :- "जब ऐसी कोई बात नही वेसी कोई बात नही, तो फिर दिक्कत क्या है?? देख बेटा ममता भी अब 21 बरस की हो चली है, कॉलेज भी पूरा कर लेगी इस साल। उसके घरवाले भी तो बस हमारा जवाब सुनने के इंतज़ार में है। मैं पिछले साल भर से बात रोके हुए हूँ, लेकिन अब तो हमे उन्हें कोई ना कोई जवाब तो देना ही होगा ना।"



रूपेश जी :- "वही तो मैं कह रहा हूँ ना बाबूजी, आप मुझे 1,2 साल का समय दे दीजिए, फिर आप जिससे कहेंगे, मैं उससे शादी कर लूंगा।"



बाबूजी :- "क्यो 1, 2 साल में तू प्रधानमंत्री बन जायेगा क्या, और बन भी गया तो क्या ममता तेरे पैर पकड़कर तुझे प्रधानमंत्री नही बनने देगी क्या??? क्या बच्चो जैसी बातें कर रहा है। मैं जा रहा हूँ कल उनके घर और तेरी शादी की बात पक्की करके आता हूँ। ये मेरा आखिरी फैसला है।"



रूपेश जी :- "लेकिन बाबूजी........."



बाबूजी :- "क्या लेकिन वेकिन??? जो काम तुझे 1, 2 साल में करना ही है, वो इसी साल क्यों नही??? अगर कोई ठोस कारण है तो बाता, नही तो इस बात को यहीं खत्म कर।"



रूपेश जी :- "बाबूजी वो मैं..... मैं...... वो....... वो....... मैं......."


बाबूजी :- "क्या मिमिया रहा है, कोई और लड़की का चक्कर है नही, बेरोजगार तू है नही, छोटा बच्चा तू है नही, फिर क्या???? अरे !!!!!!!!........ कहीं तू कोई हकीम बैरागी की दवाइयों के चक्कर मे तो नही पड गया??? तेरे जाननांग में तो कोई दिक्कत तो नही हो गयी???? चल मै तुझे अभी दवाखाने ले चलता हूँ।"



रूपेश जी :- "नहीं बाबूजी ऐसी कोई बात नहीं है। बस मुझे थोड़ा सा वक़्त चाहिए।"



बाबूजी :- "ये बात नही है, वो बात नही है, तो वक़्त का क्या करेगा तू??? अचार डालना सीखेगा क्या??? हट चल अब यहाँ से, मैं कल तेरा और ममता का रिश्ता पक्का करने जाऊंगा और जो दो दिनों में नौदुर्गा आने वाली है, उसमे गोदभराई और बरिकछा कर लेंगे, और फिर इसी साल पंडित जी से कोई अच्छा सा मुहूर्त निकलवा लेंगे।"



रूपेश जी :- "बाबूजी.........."



बाबूजी :- "क्या बाबूजी बाबूजी!!!! देख ये शादी से पहले वाली घबराहट सबको होती है, लेकिन फिर धीरे धीरे सब ठीक हो जाता है। और ममता एक बहुत ही सीधी और सुलझे विचारों की लड़की है। उससे अच्छी बहु मैं शायद तेरे लिए ना खोज पाऊँ। अब तेरी माँ होती तो वो ये काम अच्छे से करती, लेकिन मै जानता हुँ ममता उसे भी बहुत पसंद आती। चल अब तू खाना खा ले, मैं कल तेरा ब्याह पक्का कर आऊंगा।"



बंध चले हैं किसी और के दमन में इस तरह,
टूटे दिल को सजा पाएंगे न जाने किस तरह।
लिए जो छोटे कदमो के सात फेरे जिस तरह,
बिसरी यादों के साये में आगे बढ़ पाएंगे ना जाने किस तरह।
आज मांग में सजाया है ये सिंदूर जिस तरह,
बेरंग ज़िन्दगी से रंग किसी और ज़िन्दगी में भर पाएंगे ना जाने किस तरह।
गले मे पहनाया है जो ये हार जिस तरह,
हारे हुए इस जीवन से निकल पाएंगे ना जाने किस तरह। 
बंध तो चले हैं किसी और के दमन से इस तरह,
टूटे दिल को सजा पाएंगे ना जाने किस तरह।




        चलिये अब आपको मिला ही देता हूँ, रूपेश से। रूपेश  मिश्रा अपने बाबूजी आलोक नाथ मिश्रा के इकलौते सुपुत्र। मिश्रा जी की धर्मपत्नी वसुंधरा जी का निधन सारे गांव में फैले प्लेग में हो गया था और साथ ही चल बसे थे मिश्रा जी के माता पिता और पीछे छोड़ गए थे 1 बरस के रोते बिलखते रूपेश को। मिश्रा जी ग्वालियर में शिक्षक थे और बाकी सारा परिवार भिंड जिले के प्रतापपुर, जिसे आम बोलचाल की भाषा मे पत्तापूरा भी कहते हैं, गांव के अपने खुद के मकान में रहता था। मिश्रा जी को जैसे ही खबर लगी कि सारे इलाके में प्लेग फैल गया है, वे निकल पड़े अपने गांव की ओर अपने परिवार को बचाने। लेकिन वे नाकामयाब रहे। वे फौरन ही सभी को भिंड जिले के सरकारी हस्पताल में ले तो आये, लेकिन बचा पाए केवल अपने बेटे रूपेश को।


        तबसे बस वे दोनों पिता पुत्र ही एक दूसरे का परिवार थे। पत्तापुरा का घर, खेती-बाड़ी सब बेच कर मिश्रा जी ने ग्वालियर में ही अपना एक नया घर बनवा लिया था, और रिश्तेदारों और जान परिचित के लोगों के खूब ज़ोर देने पर भी दूसरी शादी नही की। वे रूपेश को सौतेली माँ के हवाले नही करना चाहते थे। जैसे तैसे सुख में - दुख में उन्होंने अकेले ही रूपेश को पाल पोस कर बड़ा किआ।


       जिस तरह सूरज का उगकर डूबना, चंद का घटना - बढ़ना, और तारों का टूटना किसी के हाँथ में नही होता, ठीक वैसे ही एक बालक का वयस्क होना, एक प्राकृतिक नियम है। मिश्रा जी के लिए तो रूपेश अभी भी वही छोटा सा बच्चा था, लेकिन अब रूपेश के दिल को काबू में कर पाना उनके बस में ना था। ठीक उसी तरह इस दिल का किसी और दिल पर आ जाना भी महज़ एक प्राकृतिक घटना है। अब वो दिल किसी जानवर का हो, किसी स्त्री का या फिर किसी पुरुष का। प्रकृति इस निस्वार्थ प्रेम के भाव मे कोई भेदभाव नही करती। अब ये अंतर और बंदिशें हम इंसानो की ही बनाई हुई हैं।


       लेकिन इन बंदिशों को तोड़ रूपेश का दिल आया, उसके साथ पड़ने वाले राजेश तंवर पर। रूपेश ने बचपन से ही,  परिवार के नाम पर सिर्फ अपने बाबूजी को देखा था, तो नए रिश्ते, नया प्यार, ये सब पाने की भूख उसमे और लोगों से कहीं ज्यादा थी। प्यार और अपनेपन का खिंचाव वो जो राजेश के लिए महसूस करता था, वेसा कोई दूसरा रिश्ता अभी तक उसके जीवन मे नही आया था। अपने इस रिश्ते के अभाव के जीवन मे, इस नए रिश्ते को वो खुद से दूर नही जाने देना चाहता था, और बस यही चाहत उसे बांधे हुई थी राजेश से एक बहुत ही नाज़ुक डोर से। दोनों ही इस बात से भली भांति परिचित थे, की वो जो इस रिश्ते को निभाना चाहते है, वो इस समाज के लिए और शायद इस वक़्त के लिए, पूर्णतः एक गलत मेल, एक मानसिक रोग और शायद किसी बुरी बला का साया है।


        किसी और कि तो छोड़िए, उन दोनों ने ही इस रिश्ते को बस एक दूसरे के दिल के किसी कोने में ही दबा के रखा था, और बाहर की दुनिया मे वे दोनों ही एक दूसरे को अपना अच्छा मित्र ही बताया करते थे। अब आप चेहरे पर तो बनावटी भावों का नकाब पेहेन सकते हो, लेकिन भीतर मन में कोई नकाब काम नही आता। चेहरे पर तो दोनों के दोस्ती के नाम की हंसी बिखरी होती थी, लेकिन दोनों के दिल बराबर एक दूसरे के नाम से ही धड़कते थे। ये धड़कन तो उम्र भर की थी, लेकिन बाबूजी के रूपेश की शादी पर ज़ोर दिए जाने से, उनका साथ जरूर कमजोर हो चला था।


       उन दिनों जहां दो लड़कों का पार्कों में एक दूसरे का हाँथ पकड़ कर घूमना जितना आम बात थी, वहीं आज की तरह अपने दिल की बात अपने घरवालों और बाकी लोगों को बता पाना कठिन। दोनो ने ही अपने इस रिश्ते के बारे में किसी को भी न बताना ही सही समझा हुआ था।

       उन दिनों जहां चंद पलों के साथ को, प्यार के हल्के से एहसास को ही, सच्चा प्यार बना कर, पूरी उम्र उस सच्चे प्यार के लिए बिता देना आम बात थी, वहीं आज की तरह अपने प्यार का सबके सामने इज़हार करना बहुत ही कठिन। दोनो ने ही अपने इस प्यार के एहसास को ताउम्र अपने मन मे ही बसाये रखने का अटूट फैसला लिया हुआ था। 


       उन दिनों जहां अपने प्यार का नाम भी याद आने पर मुस्कुराना और उन यादों में ही अपना सारा जीवन बिताना आम बात थी, वहीं आज की तरह कई सालों के प्यार को भुलाकर, एक नए साथी की तलाश में निकल जाना कठिन। दोनो ने ही बस एक दूसरे को हमेशा के लिए अपनी यादों में ही संजोये रखने का फैसला लिया हुआ था।

        उन दिनों जहां अपने परिवार के लिए अपने प्यार को झुकाकर आगे बढ़ जाना, फिर कभी भी एक दूसरे का चेहरा न देखने का वादा कर, जीवन भर अपने प्यार को न भुलाने की कसम खा पाना आम बात थी, वहीं आज की तरह ठीक यही सब एक अलग मंशा के साथ कर पाना कठिन। दोनो ने ही अपने जीवन मे आगे बढ़ना, लेकिन महीने में केवल एक बार ही सही किसी सिनेमाहॉल में बैठकर अपने प्यार और इस हसीन साथ के पल को याद करना तय किया हुआ था। 


        और इन्ही वादों के साथ दोनो हमेशा के लिए अलग भी हो गए। प्यार सिर्फ वो ही तो नही होता, जो मुक्कमल हो जाये। प्यार सिर्फ वो ही तो नही होता जो मशहूर हो जाये। प्यार सिर्फ वो ही तो नही होता, जो बस लड़का और लड़की के बीच हो जाये। रूपेश और राजेश का प्यार भी सच्चा प्यार था, क्या हुआ जो उन्होंने किसी और को अपने प्यार के बारे में बताना सही न समझा। क्या हुआ जो उनका प्यार किसी मंजिल तक ना पहुंच पाया। क्या हुआ जो वो दोनों समलैंगिक थे। लेकिन प्यार का तो कोई लिंग नही होता। प्यार तो प्यार होता है। और वही सच्चा प्यार किआ था राजेश और रूपेश ने। क्या हुआ जो दोनो ने साथ जीने मरने की कसमें नही खाई। क्या हुआ जो दोनो ने अपने अलग अलग घर बसाये। क्या हुआ जो दोनो ने अपने अपने परिवारों को जायज़ प्यार देने में अपना पूरा जीवन खपा दिया। क्या हुआ जो दिन में एक बार आंखे बंद करके अपना पुराना जीवन याद कर लेते है। क्या हुआ जो हर महीने अपने प्यार की याद में कुछ समय उस सिनेमाहॉल में बिता आते है।


गलत, गलत उनका रिश्ता नही,
गलत, गलत उनका प्यार भी नही,
गलत, गलत उनका घर बसाना भी नही,
गलत, गलत उनका एक दूसरे को न भूला पाना भी नही,
गलत तो वो होता जब वो एक रिश्ते में रह कर दूसरे रिश्ते को निभाने की कोशिश करते,
गलत तो वो होता जब वो रोज़ एक दूसरे से मिलते और आज को भूल जाने का प्रयास करते, 
गलत तो वो होता जब वो अपने प्यार के नाम पर किन्ही औरों की ज़िंदगी बर्बाद करने की बात करते।



          राजेश का पता अब रूपेश को पता भी नही था। राजेश के अब इस दुनियां में होने या न होने का कोई भी अंदाज़ अब रूपेश को नही था। राजेश की दी कसमों और वादों से रूपेश अपनी ज़िंदगी मे आगे बढ़ चुका था।  अब रूपेश 67 वर्ष का हो चुका था। उसकी एक पत्नी ममता, उनके दो बच्चे अंजलि और अर्जुन और उन बच्चो के जीवनसाथि पीयूष और छाया और उनकी पोती पिंकी और नाती बिट्टू, ये हसता खेलता परिवार ही अब रूपेश की ज़िंदगी बन चुका था। और ऐसा भी नही था कि रूपेश के लिए तुरंत राजेश को भुला कर आगे बढ़ जाना आसान था, उसे ममता को अपनाने और बच्चों को वजूद में लाने में 8 सालों के समय लग गया था। लेकिन फिर भी दिल के किसी कोने में अब भी एक खास जगह राजेश की बाकी थी। और उस जगह ने कभी भी रूपेश कि आज की ज़िंदगी मे कोई भी ख़लल नही डाली थी। लेकिन हर महीने सिनेमाहॉल जाने की आदत जो उसे राजेश के साथ पड़ गयी थी, बस वही एक निशानी आज भी राजेश के नाम पर याद की जाती थी।


           आज हमें प्यार में हारे, लाचार, निराश और अपने जीवन को ही खत्म कर देने वाले लाखों आशिक मिलते हैं। आज का प्यार उनके लिए एक कमजोरी साबित होता है, जबकि प्यार में तो वो ताकत होती है, जिसके सहारे आप सातों समन्दर और आग का दरिया भी पार कर सकते हैं। फिर ये तो बस रूपेश की मामूली सी ज़िन्दगी थी, जो वो अपने प्यार को दी कसम के सहारे जिये जा रहा था।


       आप मेरी इस कहानी में कई कमियां, कई ख़ामियां ढूंढ सकते है, लेकिन वो प्यार जो रूपेश ने राजेश से किआ, और वो प्यार जो रूपेश ने अपने घरवालों को दिया, इनके पहलू जरूर अलग हो सकते है, लेकिन वो प्यार एक दम सच्चा है, और उसमें कमिया निकलने का हक हमे नही। उस समय के न जाने कितने राजेश और रूपेश होंगे जो मेरी इस कहानी की तरह अपना समय बिता रहे होंगे। और आज भी न जाने कितने राजेश और रूपेश होंगे जो इस कहानी की तरह ही कसमे वादे ले कर अपना आगे का जीवन बिताएंगे। गलती किसी की नही, गलत इंसान नही, हालात होते है, और उन हालातों में लिए गए फैसले। अगर रूपेश हिम्मत कर अपने बाबूजी को सब सच बता देता, तो शायद ये कहानी आज कुछ और मोड़ ले रही होती।



एक दौर-ए-ज़िन्दगी ये भी था, एक दौर-ए-ज़िन्दगी वो भी थी।
एक हसीन पल ये भी था, एक रूहानी ज़िन्दगी वो भी थी।।


जब तू मेरे पास होता था, तो ये दुनिया ओझल हो जाया करती थी,
अब जब तू मेरे पास नही, तो भीड़ में भी खुद को अकेला पाता हूँ,
तेरे दिए हर कसमो-वादों के खातिर ही, इस जिस्म में सांस खींच ले आता हूँ,
एक पल ना ऐसा खाली गया, जब याद ना तेरी आती थी,
एक दौर-ए-ज़िन्दगी ये भी था, एक दौर-के-ज़िन्दगी वो भी थी।


जब तू मेरे साथ होता था, तो ये कायनात भी फ़ीकी लगती थी,
अब जब तू साथ यूँ छोड़ गया, मन मार जीवन को आगे बढ़ाता हूँ,
तेरे वादों को निभाने के कारण ही, घर अपना संजोया करता हूँ,
अकेले रहने में कोई हर्ज ना था, तेरी कसमे भारी पड़ जाया करती थीं,
एक दौर-ए-ज़िन्दगी ये भी था, एक दौर-ए-ज़िन्दगी वो भी थी।


जब तेरा चेहरा मेरी आँखों में होता था, मेरी ज़िंदगी बस यूँही थम जाया करती थी,
अब जब तू बस यादों में ही रह गया, शीशे में खुद को यूं संवार लेता हुँ,
तुझे याद करने के बहाने ही सही, तुझे दिए वादों में तुझको निहार लेता हूँ,
यूँ आईने के सामने अच्छा तो न लगता था, बस वो घड़ी कमी तेरी पूरी कर जाया करती थी,
एक दौर-ए-ज़िन्दगी ये भी था, एक दौर-ए-ज़िन्दगी वो भी थी।


जब तेरी बाहों का हार गले मे सजता था, ये धरती फूलों सी सुंदर नज़र आती थी,
अब जब तू ही मेरा हाँथ यूँ छोड़ गया, फिर भी हर बार उस सिनेमाहॉल को जाता हूँ,
तेरे वादों को पूरा करने को, हंसी-खुशी अपना वक़्त मैं बिताता हूँ,
यूँ तो फिल्मे देखने का कोई शौक न था, लेकिन उस अंधेरे में तेरी यादें साफ नजर आती थीं,
एक दौर-ए-ज़िन्दगी ये भी था, एक दौर-ए-ज़िन्दगी वो भी थी।


यूँ तो आज बाजार में कोड़ियों के भाव प्यार मिला करता था,
लेकिन ढूंढने से भी उस सौदे में प्यार की भावना नहीं मिलती थी,
यूँ तो आज भी कई कश्तियाँ दोराहे के समन्दर से गुज़रा करती थीं,
लेकिन इन कश्तियों की पतवार अब हमेशा बदल जाया करती थी,
एक दौर-ए-ज़िन्दगी ये भी था, एक दौर-ए-ज़िन्दगी वो भी थी।
एक हसीन पल ये भी था, एक रूहानी ज़िन्दगी वो भी थी।। 
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Lots Of Love
Yuvraaj ❤️ 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

















Shadi.Com Part - III

Hello friends,                      If you directly landed on this page than I must tell you, please read it's first two parts, than you...