Monday, September 17, 2018

कहानी तेरी मेरी. Final part

Hello friends....
     If you not read the first part than plz first read it. Than you will easily be connected with this part. Here the final part goes.....



       अपना tour  खत्म कर अनुज कुछ दिनों बाद दिल्ली वापस लौट आता है। यूँ तो कभी कभी उसे आलोक का चेहरा याद आता है, लेकिन फिर मुस्कुरा कर वो उसे भूला भी देता है। अब तो अनुज अपनी कंपनी का Managing director बन कर office   जाना भी शुरू कर चुका था, और थोड़ा थोड़ा काम मे भी व्यस्त रहने लगा था, लेकिन उसका मन तो अभी भी वापस विदेश जाने के सपने को ही सजाये हुए था। उसे इंतेजार था तो बस अपने डैड की शर्त पूरे हो जाने का। लेकिन उसके डैड ऐसे ही इतने बड़े buisnessman नहीं बन गए थे, उन्हें अच्छे से पता था कि वो कैसे अनुज को यहां रोकेंगे, और ये शर्त भी बस महज़ एक रास्ता थी, उस लक्ष्य को पाने का। शुरुआत में वो उसे बहुत ही आसान काम करने दे रहे थे, जिसे पूरा करने में अनुज को कोई खासी मुश्किल भी नही हो रही थी, जैसे ही अनुज अपना काम पूरा करता तो उसकी खूब तारीफें की जातीं और अनुज के लिए एक छोटी सी succes party भी रखी जाती। इससे अनुज को भी अपनी काबलियत पर गर्व महसूस होता था। ऐसे ही धीरे धीरे कब 6 महीने बीत गए अनुज को पता ही नही चला, और जिस काम को वो बस एक बोझ समझता था, कब वो काम उसके मन मे घर कर गया, उसने ये बदलाव महसूस ही नही किआ ।  अब अनुज अपनी कंपनी के एहम फैसलों और कामों में भी अपना योगदान देने लगा था, अब पहले की तरह अनुज के हर काम पर कोई party तो नही होती थी, लेकिन उसके काम को अभी भी सराहा खूब जाता था। और अब तो वापस विदेश जाने का ख्याल अनुज के मन के किसी कोने में खो ही गया था। अब उसके मन मे भी अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने और अच्छे से काम करने का जज़्बा घर कर चुका था। इन 6 महीनों में अनुज कई लोगो से मिला, कई सारी gay dating sites पर भी गया, लेकिन उसे वो शोखियां ओर वो मासूमियत दोबारा देखने को नही मिली, जो वो वहां ओरछा के hotel room में सोता छोड़ आया था। अब धीरे धीरे अनुज अपनी ज़िंदगी के उस मुकाम पर पहुंच गया था, जहां अब उसमें ना तो पहले की तरह लड़कपन, और ना अपने शारीरिक भूक मिटाने की वो मानसिकता थी, जो पहले हुआ करती थी। अब वो किसी अपने का ऐसा साथ ढूढ़ रहा था, जिसके साथ वो प्यार से रह सके, अपने सुख, दुख बांट सके, और अपनी एक छोटी सी प्यार भरी दुनियां बसा सके। लेकिन उसकी ये खोज खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी।


         उसके मन मे जो उसके हमसफर की छवि बसी हुई थी, कोई उस छवि को पूरा ही नही कर पा रहा था। और वो जो छवि उसके मन मे बस चुकी थी, वो कंही न कंही आलोक की ही परछाई थी। वो एक ऐसा साथी ढूंढ रहा था, जिसमे आलोक की तरह मासूमियत हो, आलोक की तरह सादगी हो, और सबसे बड़ी बात, वो उस प्यार को ढूंढ रहा था, जो उसने एक दिन की मुलाकात में ही आलोक की आंखों में  देखा था। लेकिन अभी अनुज इस बात से बिल्कुल अनजान था, की जिस प्यार की मूरत को वो अपने मन मे बसाये बैठ है, वो महज़ कोई परिकल्पना नही बल्कि आलोक की ही शख्सियत है।   उसने कई बार ओरछा जा कर आलोक से मिलने का भी मन बनाया लेकिन काम के प्रति उमड़ी लगन ने उसे ऐसा करने का मौका ही नही दिया। और इसी तरह देखते देखते 2 साल भी गुजर गए।



        आज अनुज थोड़ा जल्दी में था, उसे आज office जल्दी पहुंचना था। आज उसकी नई फैक्ट्री के लिए staaf की भर्ती का दिन था। अनुज office पंहुचा तो वहां काफी भीड़ थी। अखबार में निकाले गए भर्ती के विज्ञापन ने हजारों नवयुवकों को अनुज के office का रास्ता दिखाया था। उसने भीड़ को देखते हुए, कुछ resumes अपने office में मंगवा लिए, जिनका enterveiw वो खुद ही लेने वाला था, और  उसके कहे अनुसार कुछ resumes अनुज के आफिस में भी पहुंचा दिए गए। Resumes को अनुज उनकी qualification और work experience के हिसाब से arrange कर रहा था, की वो अचानक से रुक गया। उसने अपने office के बाहर बैठी अपनी secetry को फ़ोन लगाया और बोला...


अनुज :- "आलोक रावत को अंदर भेजिए!!!"


      और वो अपने office के दरवाजे पर टकटकी लगाए देखने लगा। वो देखना चाह रहा था, की क्या जो उसका मन सोच रहा है वो सही है, क्या ये आलोक रावत, वही आलोक है जो उसे ओरछा में मिला था। इन्ही कई ख्यालों के साथ अनुज बस अपनी सांसे थामे इंतेज़ार कर रहा था, उस दरवाजे के खुलने का। दरवाजा खुला ओर एक आवाज आई...


"May I come in???"
  
अनुज :- "yes!!!! Come in!!!"


        जो अनुज सोच रहा था, वही हुआ, उसका वो सपना, उसका वो ख्वाब, हकीकत में उसके सामने खड़ा था। ये आलोक ही था जो अपने चेहरे पर कई सारे mixed imotions लिए दरवाजे पर खड़ा था। उसके चेहरे पर गुस्सा भी था, कई सारे सवाल भी, हताशा भी थी, और अनुज के लिए नफरत भी। कुछ देर वही खड़े रहने के बाद, आलोक बिना कुछ बोले वहां से जाने लगता है। तभी अनुज भागता है और आलोक का हाथ पकड़ उसे रोक कर खींच कर अपने office के अंदर ले आता है। और बिना वक़्त गवांए मुस्कुरा कर आलोक को गले लगा लेता है। इतने सालों बाद , आलोक को यूं अचानक देख कर उसे बहुत खुशी होती है, और खुशी हो भी क्यों न, जिस मूरत को अनुज ने अपने मन मे बसा रखा था, जिसकी तलाश में अनुज न जाने कितने लोगों से मिल चुका था, उसी मूरत की हूबहू शक्ल लिए आलोक जो उसके सामने खड़ा था। फिर आलोक ने धक्का दे कर खुद को अनुज से दूर किआ।


आलोक :- " Behave your self!!! ये कोई hotel room या तुम्हारा घर नही है, और अब ना ही मैं वो छोटे शहर का नासमझ लड़का।"


       और आलोक एक बार फिर वहां से जाने लगता है, और एक बार फिर अनुज उसे हाथ पकड़ कर रोकता है।


अनुज :- "क्या हुआ यार???? इतने सालों के बाद तुम्हे मुझे देख कर ज़रा सी भी खुशी नही हुई???"


आलोक :- "खुशी???? किस बात की खुशी??? अगर तुम्हारा चेहरा मुझे याद न होता तो जरूर खुशी होती!!"


अनुज :- "ऐसा क्या हो गया यार??? तुम्हे याद नही, हमने कितना अच्छा समय साथ मे बिताया था, तुम्हारे गांव...... वो क्या नाम था...."


आलोक :- "ओरछा!!! काश मेरे गांव के नाम के साथ तुम मुझे भी भूल गए होते।"


अनुज :- "क्या हुआ यार आलोक??? तुम इस तरह से क्यों बात कर रहे हो??? मैने कुछ गलत बोल दिया क्या??? इतने गुस्से में क्यों हो तुम???"


आलोक :- " गलत??? मतलब जो तुमने मेरे साथ किआ वो सब सही था तुम्हारे लिए???"


अनुज :- " यार इसमे क्या गलत और क्या सही!!! हम दोनो के बीच जो कुछ भी हुआ वो हम दोनी की मर्जी से ही तो हुआ था। मैन कोई जबरदस्ती थोड़ी की थी तुम्हारे साथ। Common यार इतनी छोटी सी बात को तुम अब तक लिए बैठे हो!! This is not fair yaar!!!"
     
आलोक :- " छोटी बात तुम्हारे लिए होगी, मेरे लिए नही। और fair ओर unfair की बात तुम तो ना ही करो। सही कहा तुमने कोई जबरदस्ती नही थी, मेरी ही गलती थी, जो मैंने तुम पर भरोसा किआ। मेरी ही गलती थी, जो मैंने तुम्हें मौका दिया कि तुम मुझे धोका दे सको।"


अनुज :- " अरे हद्द है यार!! में इतने politly बात कर रहा हूँ और तुम तो चढे ही जा रहे हो। और क्या ये भरोसा, धोका??? कहा से आ गया ये सब। हम मिले, हमने साथ मे वक़्त बिताया, thats it, इतना क्या serious हो रहे हो इस बात के लिए???"


आलोक :- " मुझसे प्यारी प्यारी, मीठी मीठी बातें करना, सिर्फ अपने बिस्तर तक ले जाने के लिए, और अपना मतलब पूरा हो जाने के बाद , पैसे फेक कर मुझे वही अकेला छोड़ जाना, क्या इसे धोका देना नही कहते, क्या इसे भरोसा तोड़ना  नही कहते??? हम छोटे शहरों के लोग बिकाऊ और बाज़ारू नही होते , हम अपना काम कर के पैसा कमाना जानते हैं, इसके लिए हमे अपना जिस्म बेचने की जरूरत नही होती।"


अनुज :- "यार तुम मुझे गलत समझ रहे हो, वो पैसे तो तुम्हारी guiding job के लिए थे, और मेरा आगे का प्लान भी तो था, और तुम बहुत गहरी नींद में थे, इसलिए मैंने तुम्हें disturb करना ठीक नही समझा। और दिल्ली वापस आकर मेने तुम्हे  contact भी करना चाहा, लेकिन मेरे पास कोई phone no या कोई mail id कुछ भी नही था।"
    
आलोक :- "बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे, तुम आज भी बिल्कुल वेसे के वेसे ही हो। और मेरी contact list तो तुम्हारे पास तब होती न , जब तुम मुझसे कोई contact रखना चाहते। तुम्हे तो सिर्फ इस्तेमाल करना ही तो आता है। I am sorry, मैं भी न जाने कहा अपना सिर फोड़ रहा हु। You have many other works to do. I am sorry for waisting your time." 


       ये बोलकर आलोक तो दरवाजा अनुज के मुंह पर बंद करके चला जाता है, लेकिन कई सवाल छोड़ जाता है अनुज के दिल और दिमाग में, जिनके जवाब अनुज को उसके अंतर्मन में ही मिल सकते थे। आलोक के मुताबिक अनुज में कोई भी बदलाव नही आया था, लेकिन ऐसा नही था, कुछ बदलाव तो जरूर आये थे, और एक ये की अनुज अब proffessional हो चुका था, अपने काम की जिम्मेदारी समझने लगा था। तो अपने मन के ये कई अनसुलझे सवालों को दरकिनार कर, लग गया वापस अपने काम मे। बाहर इतने सारे लोग जो इंतेज़ार कर रहे थे।


      रात को जब अनुज अपने बिस्तर पर लेटा तो सुबह हुई घटना को याद करने लगा। आलोक के सवाल और उसका चेहरा, अनुज के दिल और दिमाग को घेरे हुए थे, और वो सोचने लगा कि उसने ऐसा किआ क्या है, जो आलोक के मन मे उसके लिए, इतनी नफरत भारी हुई है। और वो इन्ही सब सवालो के जवाब ढूंढने के लिए आंखे बंद कर उस समय के बारे में सोचने लगा जब वो ओरछा में अनुज से मिला था। उस बीते समय को याद करके अनुज के चेहरे पे एक मुस्कुराहट भी थी, और आपनी की हुई गलतियों का एहसास भी। जब अनुज ने वो समय याद किया, तब उसे समझ आया कि उसने जो आलोक के साथ किआ है, जिसे वो महज़ एक इत्तेफाक समझे बैठा था, आलोक के लिए क्यों वो इतना चुभन का कारण बन हुआ था। आज जो भी अनुज अपनी की हुई गलतियों को महसूस कर पा रहा था, ये सब उसकी बदली शख्सियत की बदौलत ही था, वरना कुछ सालों पहले के अपने उस व्यवहार को अनुज बस बेफिक्री और मनमौजी होने का नाम ही देता।


       उन भीनी यादों में कब अनुज की आंख लगी, और कैसे एक हसीन सपना और उस सपने में एक हसीन चेहरा , कैसे उसे प्यारी थपकियाँ देकर सुलाए रखा, उसे पता ही नही चला। अनुज की आंख खुली उसके सुबह के अलार्म से। रात के सपने ने अनुज के मन मे बसी तस्वीर, जिसकी तलाश में वो अब तक कई चेहरों से मिल चुका था, उसे साफ कर दी थी। अब उसे पता लग चुका था, की वो जिस हमसफ़र की तलाश में है, वो कोई और नही बल्कि आलोक ही है। अनुज तुरंत अपने बिस्तर से उठा और फ़ौरन तैयार हो कर office भी आ गया। इस नए एहसास ने तो उसकी भूख प्यास ही मिटा दी थी, और office आना भी मानो बस मजबूरी हो, क्योंकि आलोक का phone no उसका address, वो तो उसी resume में था, जो अनुज के office की टेबल पर पड़ा था। अनुज, आलोक से मिलना चाहता था, अपने गलत व्यवहार के लिए आलोक से माफी मांगना चाहता था, और आलोक को अपनी ज़िंदगी मे, एक नए रिश्ते के नाम से लाना चाहता था। और अपनी ये सारी चाहते लिए, अनुज पहुंच गया था, आलोक की चौखट पर, हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए। अनुज ने बहुत आस भारी निगाहों के साथ, आलोक के घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खोला, अनुज से कुछ 15, 16 वर्ष अधिक आयु के एक आदमी ने।


अनुज :- " आलोक..... आलोक रावत.... यही रहता है क्या??" 


      दरवाजे पे खड़ा आदमी कोई भी जवाब देता, उस से पहले ही पीछे से आलोक वहां आ गया।


आलोक :- " कौन है दरवाजे पर???"


      अनुज को दरवाजे पर पाकर आलोक का तो गुस्सा फिरसे सातवे आसमान पर था, और ये उसके चेहरे के बदले रंग से साफ महसूस किया जा सकता था।


आलोक :- " तुम!!!! तुम यहाँ क्या कर रहे हो??? अब और क्या बाकी रह गया है, जो मेरे घर तक चले आये???"


     अनुज कहना तो बहुत कुछ चाहता था, माफी भी मांगना चाहता था, लेकिन वो झिझक रहा था, वो झिझक आलोक के लिए नही, बल्कि उस अनजान व्यक्ति के लिए थी। अनुज को लगा कि शायद वो आलोक का land lourd हो, और भला उसके सामने वो अपने मन की बाते कैसे कर सकता था। फिर भी अब वहां चुप तो नही खड़ा हो सकता था, वो दोनों घर के अंदर से अनुज के ही कुछ बोलने का इंतज़ार कर रहे थे। अनुज ने भी थोड़ी कोशिश की।


अनुज :- " मैं अपनी गलतियों के लिए ही तुमसे माफी मांगने आया हूँ। और ये फूल भी तुम्हारे लिए लाया हूं। क्या मैं अंदर आकर , अकेले में तुमसे कुछ बात कर सकता हूँ???"


     अनुज ने अपनी बात के आखिरी शब्द उस अनजान व्यक्ति की तरफ देख कर कहे, जो अभी भी वंही खड़े होकर उन दोनों की बातें सुन रहा था। और अनुज का इशारा समझ, वहां से जाने भी लगा, तभी आलोक ने उसे रोक।


आलोक :- " अकेले में क्या बात करनी है??? तुम्हे मुझसे जो भी बात करनी है यहीं करो!!!"


      अनुज ने आगे बढ़कर, फूलों का गुलदस्ता आलोक को देने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए, और धीरे से बोला...


अनुज :- " I am really sorry for our past!!! लेकिन यूँ अजनबी के  सामने तो तमाशा मत बनाओ। मुझे तुमसे माफी मांगने का एक मौका तो दो। मैं आज यहां हमारे बारे में कुछ बात करने आया हूँ।"


        आलोक ने अनुज के हाथ से वो गुलदस्ता छीन कर वहीं जमीन पर फेंक दिया।


आलोक :- " अजनबी??? कौन अजनबी??? For your kind information, he is my husband.  अग्नि के सात फेरे लेकर हमने शादी की है। इन्हें मेने हमारे so called past के बारे में भी सब बताया हुआ है। किसी को अंधेरे में रख कर या अपने मन की बात छुपा कर, बिल्कुल तुम्हारी तरह, मुझे कोई काम करना नही आता। ये वो इंसान हैं, जिन्होंने मेरा तब साथ दिया, जब मुझे किसी अपने के साथ कि सबसे ज्यादा जरूरत थी। ये वो इंसान हैं, जिन्होंने मुझे तब अपनाया, जब मेरे पास इन्हें देने के लिए कुछ भी नही था। ये वो इंसान हैं, जिन्होंने मुझे तब प्यार करना सिखाया, जब मेरा प्यार पर से भरोसा ही उठ चुका था। और तुम बात कर रहे हो तमाशे की, तमाशा तो वो था, जब मेरे ही शहर में लोग मुझे ही गलत नजरों से देखने लगे थे, वो भी उस गलती के लिए जो मैंने कभी की ही नही थी। तमाशा तो वो था, जब  मेरी माँ ने सबके ताने सुन सुन कर अपना दम तोड़ दिया था। तमाशा तो वो था, जब मेरी माँ के अंतिम संस्कार में कोई भी आने को तैयार नही था, और जानते हो क्यों? क्योंकि वो, पैसो के लिए होटलों में रात गुजारने वाले गंदे इंसान की माँ थी। तुम तमाशे की बात करते हो, तुम्हारे उस फैसले ने तो, मेरी ज़िंदगी को ही तमाशा बना दिया था। मैं तुम्हे कभी माफ नही कर सकता, कभी नही।


       ये कहकर आलोक ने अनुज के मुंह पर ही दरवाजा बंद कर दिया, और दरवाजे पर खड़ा अनुज बस अभी भी उस बन्द दरवाजे को ही देखे जा रहा था। और सदमे में सोचे जा रहा था कि उसकी एक छोटी सी भूल का कितना गहरा असर पड़ा है आलोक की ज़िंदगी पर। वो आलोक की माँ के देहांत और आलोक की आप बीती से तो हैरान था ही , और आलोक की शादी की बात सोच कर परेशान भी था। वो वंहा से मुड़ता है, और वहां से जाने लगता है। तभी वो बंद दरवाजा फिरसे खुलता है, और एक अजनबी आवाज में अनुज अपना नाम सुनकर रुक जाता है, और मुड़ कर देखता है। दरवाजे पर वही इंसान खड़ा था, जिसे अभी - अभी आलोक ने अपना पति बताया था। वो आदमी आगे बढ़ता है, अनुज के कंधे पर हाँथ रख अपना नाम राजीव बताता है और कहता है..... 


राजीव :- " I don't know, what to say here, but don't worry.   आलोक अभी बहुत गुस्से में हैं, इसलिए वो ऐसा behave कर रहा है। उसे थोड़ा time दो वो normal हो जाएगा। I know him very well, and i think he is still loves you alot, आखिर तुम उसकी life का पहला प्यार हो। और पहला प्यार इतनी आसानी से नही भुलाया जाता, और हम उसी से नाराज होते हैं, जिस से हम प्यार करते हैं। So give him some time!!!"


 अनुज :- " What??? What are you saying?? He clearly said that you both are couple!!!! Isn't it true???"


राजीव :- " It's true!!!  We are married. लेकिन अगर आलोक के मन मे अभी भी तुम्हारे लिए  कुछ बाकी है, तो वो कभी भी इस रिश्ते को अपने मन से नही निभा पायेगा। और मैं, नही चाहता कि वो किसी भी बोझ या मजबूरी में इस रिश्ते को निभाये। जब मैं उस से मिला तब वो पूरी तरह टूटा हुआ था। मैंने उसे सहारा, उस से कुछ पाने के मकसद से नही दिया था। लेकिन मैं धीरे धीरे खुद को उस से दूर नही रख पाया, और उसके ही कहने पर हमने अभी कुछ 5 महीने पहले ही शादी की है। मैं आलोक से प्यार तो बहुत ज्यादा करता हूँ, लेकिन मैं उसे किसी भी तरह की कैद में नही रखना चाहता। मैं अगर सीधे ही तुम्हारे पास उसे भेजता, तो वो न तो आने को तैयार होता और वो मुझे भी गलत समझने लगता। इसलिए मैंने उसे ITI का diploma करवाया, ताकि मैं उसे तुम्हारे office का रास्ता दिखा सकू। मैं आलोक  से शादी तो करना चाहता था, लेकिन बिना तुम्हारे और उसके रिश्ते के बीच मे आये बिना। लेकिन मैं ज्यादा समय इस शादी को टाल न सका। तुम मुझे गलत मत समझना, मैं ये सब इस लिए नही कर रहा कि मैं तुम दोनों के बीच गलतफहमियां बडा दूँ, बल्कि ये सब तो मैंने इस लिए किआ, ताकि तुम दोनों का आमना सामना करा सकू, और शायद आलोक के मन मे तुम्हारे प्यार के लिए जो धूल जम गयी है, मैं उसे साफ कर सकूं। लेकिन शायद मैंने सब और ज्यादा खराब कर दिया है।"


अनुज :- " I am really surprised now!!! You are really a great person, and you only you truely deserve the aalok. उसे तुम्हारे जैसे प्यार करने वाले इंसान की ही जरूरत है। मैं जानता हूँ, मैने उसके साथ बहुत गलत किया है, और मुझे पता भी नही था, की उसे मेरी वजह से क्या क्या सहना पड़ा है। और  वो क्या, मैं खुद कभी अपने आप को इसके लिए  माफ नही कर पाऊंगा। मैं कभी आलोक को तो नही भूल पाऊंगा, और शायद यही मेरी सजा है, यही सही है, मेरे लिए की आलोक हमेशा मुझसे नफरत करता रहे। अब तुम ही उसकी जिंदगी हो, और हमेशा उसका ख्याल रखना, उसे बेहद प्यार देना।"


      और अनुज रोते हुए वहां से और हमेशा के लिए आलोक की ज़िंदगी से चला जाता है।






      ये कहानी तेरी मेरी अधूरी जरूर है, लेकिन ये हमे पूरा करने की प्रेरना देती है। पूरा करने की वो उम्मीद, वो भरोसा, जो कोई हम पर करता है। अगर आलोक और अनुज की विचारधाराओ में इतना अंतर ना होता तो शायद आज इस कहानी का अंत कुछ और ही होता। अगर अनुज की विचारधारा कुछ अलग होती, तो जो वो आज आलोक के लिए महसूस कर रहा था, जो एहसास उसने पहली बार आलोक को देख कर महसूस किए थे, लेकिन अपनी विचारधारा के चलते उन्हें नजरअंदाज कर दिया था, वो दोनों एहसास एक ही थे। आज अंतर था, तो बस उसकी विचारधारा का। और अगर उस समय आलोक की विचारधारा भी इतनी संकीर्ण ना होती तो वो ना तो अनुज की बातों में आता और ना उसे वो सब सहना पड़ता, जिस दर्द के साथ वो जी रहा था। राजीव जी के बारे में ज्यादा जानने को तो नही मिला, लेकिन उनकी सोच और विचारधारा से वो समझदार, खुले विचारों के और एक सरल स्वभाव के व्यक्ति नजर आते हैं। उनकी बातों से ये भी पता चलता है, की वे आलोक से बिना किसी शर्त के प्यार करते हैं, शायद प्यार को इस तरह ही होना चाहिए। हाँ, उनकी उम्र आलोक से बहुत ज्यादा तो है, लेकिन जहां सच्चा प्यार होता है, वहां उम्र, रंग रूप, कद काठी और लिंग कोई मायने नही रखते। आज लड़का हो या लड़की, व्रद्ध हो या जवान, अगर सबकी विचारधारा पर राजीव जी की छाप पड़े तो, हमारे आज के समाज मे, प्यार के मायने कुछ अलग होगे, कुछ अच्छे होगे। जहां आज अधिकतर मुलाकातें सिर्फ शारीरिक संबंध बनाने के मकसद से ही होती हैं, चाहे वो हम किसी से social networking site पर मीले या किसी club में, शायद इस विचारधारा की वजह से हमारा, लोगों से मिलने और बात करने का नजरिया बदल जाये। ये कहानी चाहे भले ही अधूरी या छोटी हो, लेकिन आपको एक सरल और सही विचारधारा की ओर जरूर ले जाती है। अब ये आप पर निर्भर है, की आलोक, अनुज और राजीव जी की विचारधाराओं के द्वंद में आप किसकी विचारधारा को सही मानेंगे।
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Lots of Love
Yuvraaj ❤️ 
  

5 comments:

  1. Superb is se Jada acha end nahi ho sakta tha

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  2. That's was a great story dil ji.
    Aapki sabhi stories awesome h.

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  3. Meri bhi yahi haalat hui akhiri me. Anuj k jesi. Jab wo sath tha, tab pehchana nahi, jab door chala gaya to aj bhi uske alawa or koi pasand hi nahi ata. We were about to get married. My bad luck. But I know I still love him.

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