6 साल बाद......
"बेटा कब घर आऐगा? घर में निकाह है, बहुत सारे काम बाकी पङे हैं, और लङकी वाले भी तुझसे मिलना चाहते हैं।" फोन पर रेहान की अम्मी रेहान को डांटते हुए बोलीं।
रेहान की आवाज मे अब वो खनक नहीं थी, जो पहले घर पर बात करने पर होती थी। और उसी दबी हुई आवाज में रेहान ने अम्मी को जवाब दिया..... "आ जाऊँगा अम्मी!!! शादी छोटे की है मेरी नही। मेरे लिए जो भी काम है, आप उसकी चिंता मत करो, मैं आ कर निपटा दूंगा और ये लङकी वालों को मुझसे क्या बात करनी है???"
अम्मी ने जवाब दिया.... "ऐसी कोई खास बात नहीं, अब 50 लोग 50 तरह की बातें करते हैं, उन लोगों ने भी तेरे शादी ना करने के बारे में कुछ सुन रखा होगा, इसलिए शायद मिलना चाह रहे होंगे। अब अपनी लङकी भेज रहे हैं हमारे घर, तो सारी तसल्ली करना तो लाज़मी है ना।"
यह बात सुनकर रेहान थोङी बेरुखी से बोला.... "शादी छोटे से करा रहे हैं या मुझसे?? छोटे के बारे मे पता करें, मेरी जिदंगी मे क्या चल रहा है क्या नहीं , ये जान के वो क्या करेगें।"
अम्मी ने बात संभालते हुए कहा..... "कर लेने दे अपने मन की। वैसे भी बङी मुश्किलों से तो ये रिश्ता मिला है, वरना बाकी तो बङे भाई ने शादी क्यों नही की, यही पूछ कर चले जाते थे। और बेटा किन किन लोगों का मुँह बंद करेगा तू? मेरी बात मान ले और तू भी शादी कर ले अब।"
अम्मी की बात बीच मे ही काटते हुऐ रेहान बोला.... "अम्मी कितनी बार वही सब बातें करोगी आप? कितनी बार तो बोल चुका हूँ कि मुझे नही करनी है शादी। चलो अब आप फोन रखो, मुझे बाकी काम भी निपटाने हैं और पैकिंग भी करनी है। मैं अगले हफ्ते आ जाऊँगा कानपुर, अब रखता हूँ।" और रेहान फोन काट देता है।
आईए आपको इन 6 सालों की भी एक हल्की सी झलक दिखाता हूँ। शुभ के जाने के बाद रेहान पूरी तरह टूट सा गया था, लेकिन फिर भी उसने जीना नही छोङा था। Office और घर के अलावा कोई तीसरी जगह नहीं थी, जहां वो जाता हो। और तो और इन 6 सालों मे वो एक बार भी कानपुर भी नहीं गया था। अम्मी को तो रेहान की इस हालत की वजह मालूम ही थी, लेकिन बाकी घरवाले कई बार Noida आए रेहान से मिलने, लेकिन रेहान के इस अलग बर्ताव का कारण जाने बिना ही लौट गए। समय के साथ रेहान मे थोङे से शाररिक बदलाव भी आऐ थे, और उसने दाङी रखनी भी शुरू कर दी थी। देवदास तो नही बन गया था शुभ की यादों में, लेकिन काम मे उसने खुद को इतना उलझा लिया था, कि खुद पर ध्यान देना ही बंद कर दिया था। कई companies के अच्छे offers ठुकरा कर अभी भी HCL मे ही काम कर रहा था, और काम मे रूझान ने अब तक रेहान को कई promotions दिलवा दिए थे, और वो जल्द ही Noida HCL Campus का Head भी बनने वाला था। रेहान की तरक्की से घर मे सभी लोग बेहद खुश थे, लेकिन उसके शादी न करने के फैसले ने सबको परेशान भी कर रखा था। उधर रेहान के छोटे भाई का पङने मे ज्यादा मन न लगा, जैसे तैसे B.Com कर कानपुर मे ही एक Firm मे clerk का काम करने लगा था। अब रेहान ने तो शादी के लिए मना ही कर दिया था, तो मामूजान ने छोटे भाई के लिए रिश्ते डूंडने शुरू कर दिए थे। बङी मशक्कतों के बाद रेहान के छोटे भाई का रिश्ता तय भी हो गया था। इस बीच रेहान की अम्मी ने बहुत कोशिश की कि वे रेहान को भी शादी के लिए मना लें, लेकिन उनकी सारी कोशिशें नाकाम ही रहीं।
इन 6 सालों मे ग्वालियर से भी कई बार रेहान के पास फोन आऐ, और रेहान ने बिना किसी गिले शिकवे के शुभ के घरवालों से बात भी की। लेकिन धिरे धीरे ये सिलसिला भी कम हो गया था, और अब तो ग्वालियर से बस तीज त्योहारों पर ही फोन आया करते थे। लेकिन इन फोनो से एक बात तो अच्छी हुई थी कि रेहान को बिना पूछे शुभ की खैर खबर मिल जाया करती थी। पिछली बार जब ग्वालियर से फोन आया था तो पता चला था कि शुभ पूणे मे है लेकिन अब उसका transfer कहीं और होने वाला है, लेकिन उसके बाद से अब तक कोई फोन नहीं आया था, और शुभ की दी हुई कसम के मुताबिक रेहान शुभ के बारे मे पूछ भी नहीं सकता था। इसलिए उसे ग्वालियर से आने वाले फोन का खासा इंतजार रहता था। इन 6 सालों मे रेहान का शुभ के लिए प्यार बिल्कुल भी कम नही हुआ था, हाँ लेकिन थोङा गुस्सा जरूर था, जो अपनी जगह जायज़ भी था। शुभ के हर birthday पर रेहान सारी रात जागता था, खुद ही शुभ के नाम का cake काटता था और हर साल शुभ के लिए कुछ ना कुछ gifts जरूर लाता था, और शुभ की याद मे थोङे आँसू भी बहा लिया करता था। इसी तरह 6 सालों का लम्बा सफर रेहान ने शुभ के बिना ही तय कर लिया था। चलिए अब चलते हैं कानपुर, रेहान के छोटे भाई के निकाह में........
यहां कानपुर मे तो अभी भी वही माहौल है, छोटे भाई की शादी से ज्यादा सबको रेहान के लिए एक अच्छी लङकी खोजने मे दिलचस्पी है। अम्मी का इंतजार खत्म हुआ और रेहान 6 साल के बाद कानपुर आ ही गया। इन 6 सालों के अंतराल के बाद भी कानपुर ज्यों का त्यों ही था। बस नाना जी की तबियत अब नासाज रेहती है, गली , मोहल्ले के घरों की बनावट मे थोङे से बदलाव आ गऐ हैं, और उनमें रेहने वाले लोगों को एक नया किस्सा भी मिल गया है, रेहान की शादी का किस्सा। 6 सालों के इंतजार के बाद घरवालों ने बङे जोरों शोरों से रेहान का स्वागत किया था। और मामूजान ने तो मानो ठान ही लिया था, कि इस बार रेहान को अकेले नहीं, बल्कि जोङे मे ही वापस दिल्ली रवाना करेंगे। अपनी जान पहचान मे सभी को रेहान के बारे मे बता दिया गया था, और कानपुर का वो घर, शादी के घर से ज्यादा, परिचय सम्मेलन का ठौर ज्यादा नजर आ रहा था। रेहान की अम्मी ने भी सारी जाम्मेदारी अपने भाईजान पर ही छोङ दी थी, क्योंकि उन्हें रेहान के मन की बात तो पता ही थी, और रेहान फोन पर भी कई बार शादी के लिए मना कर चुका था। रेहान केवल 3 दिनों के लिए ही कानपुर आया था, फिर यहीं से उसे HCL के एक programme के लिए 10 दिनों के लिए बैंगलौर भी जाना था। पूरे घर में रेहान ही एक अकेला था, जो शादी के उत्साह मे पूरे मन से शामिल नही था, और ये बात सभी घरवालों और सभी मेहमानों को साफ साफ दिखाई दे रही थी। निकाह कि एक रात पेहले सभी ने नाच, गाने की मेहफिल सजा रखी थी, और मामूजान जबरदस्ती रेहान को भी वहां खींच लाऐ और उसे गाना गाने के लिए बोलने लगे। उन्होंने पेहले से ही रेहान की आवाज और उसके गाने की तारीफ सबसे कर रखी थी, ये तो बस एक नमूने के लिए की जा रहीं मिन्नतें थी। रेहान ने भी उनका मन रखते हुए गाना शुरू किया....
"नैना.... जो साँझ ख्वाब देखते थे
नैना.... बिछङ के आज रो दिए हैं यूँ
नैना.... जो मिलके रात जागते थे
नैना.... सेहर में पलकें मीचते हैं यूँ
जुदा हुए कदम, जिन्होंने ली थी ये कसम
मिलके चलेगें हरदम, अब बाँटते हैं ये गम
भीगे नैना.... जो खिङकियों से झाँकते थे
नैना.... घुटन में बन्द हो गए हैं यूँ........"
गाना गाते वक्त रेहान के जहन मे सिर्फ शुभ के साथ बिताये हसीन सफर की यादे ही थी, और वो नम आँखे लिए वहां से चला गया। बाकी सभी लोग रेहान का गाना सुन तालियाँ ही बजाते रहे। अंदर के किसी कमरे में रेहान की अम्मी भी उसका ये गाना सुनती हैं, और रेहान की आवाज मे छुपे दर्द को वो अच्छे से भाँप जाती हैं, और अपने बेटे की तकलीफ को समझ, उनकी भी आँखे नम हो जाती हैं। लेकिन वो भी क्या करें, वे भी तो समाज के दायरों में बंधी हैं, वे जानती हैं कि उनके बेटे की खुशी किसमे हैं, लेकिन वे अभी तक अपनी ममता की आँखों को बंद किये हुऐ थीं। लेकिन हैं तो आखिर माँ ही, कब तक रोक पाती खुद को, आखिर उनकी ममता उनको अपने बेटे के पास ले ही आई।
रेहान सोया तो नहीं था अभी, लेकिन आँखे बंद कर लेटा था, और शायद शुभ के बारे मे ही सोच रहा था। अम्मी ने रेहान के सर पर हाँथ फेरते हुऐ कहा.... "आखिर कब तक उसके लिऐ अपनी जिन्दगी खराब करता रहेगा??"
अम्मी के हाँथों का स्पर्श और उनकी आवाज, रेहान को उसके खयालो से बाहर ले आते हैं, और वो उठ कर बैठ जाता है, और अम्मी से नजरे चुराते हुऐ कहता है.... "आप किस बारे मे बात कर रही हैं अम्मी??" रेहान का चेहरे अपने हाँथों से अपनी तरफ मोङ कर उसकी आँखों मे देखकर अम्मी कहती हैं.... "मैं शुभ की बात कर रही हूँ। मैं तुम दोनों के रिश्ते के बारे मे भी सब जानती हूँ।"
रेहान अपनी अम्मी की बात सुनकर हैरान तो हो जाता है, लेकिन कुछ कह नहीं पाता और सर नीचे किये ही बैठा रहता है। अम्मी फिर बोलती हैं...... "देख बेटा! ये सब बिल्कुल ठीक नही है। हम समाज मे रहते हैं और हमे समाज के हिसाब से ही चलना होता है। शुभ ने तो इस बात को समझ लिया , और वो अपनी जिंदगी मे आगे भी बङ गया होगा। अब तू भी कब तक उसके लिऐ आँसू बहाता रहेगा, तू भी आगे बङ, अपना परिवार बसा। तुझे भी तो खुश रहने का पूरा हक है मेरे बच्चे।"
अम्मी की बातें सुन रेहान नजरे झुकाए ही बोलता है.... "अम्मी जब आप सब जानती ही हैं तो मुझे शादी करने को कैसे कह सकती हैं। शादी करके मैं तो खुश नहीं ही रह पाऊँगा, और एक लङकी की जिदंगी और खराब कर दूगां। मैं एसे ही ठीक हूँ अम्मी!!! और शुभ की यादे ही अब मेरे लिए सब कुछ हैं। और मैं ये बात भी अच्छे से जानता हूँ, कि मुझसे दूर जाने का फैसला भी उसने, इन्हीं तरीके की बातों के बारे मे सोच के लिया है। लेकिन अम्मी मै शुभ को अच्छे से जानता हूँ, वो भी मुझसे अलग होकर कहीं एसे ही घुट घुट के जी रहा होगा। और हाँ, उसने मुझसे अलग होने कखा फैसला जरूर लिया है, लेकिन वो आगे नही बङा है, और ना कभी बङेगा। पता है अम्मी!!! वो तो मुझसे इतना प्यार करता है, कि मुझसे अलग होने पर तो वो मुझसे भी ज्यादा दुखी होगा, क्योंकि ये अलग होने का उसने जो फैसला लिया है, ये उसे कभी खुश रहने ही नहीं देता होगा।" ये कहते वक्त, रेहान की आँखों से आँसुओं की धार लग चुकी थी।
रेहान की अम्मी रेहान की आँखों में वही प्यार देख सकती थी, जो उन्होंने शुभ की आँखों में देखा था। प्यार के लिऐ रेहान की इतनी शिद्दत, की उसने शुभ की यादों में ही अपने 6 साल बिता दिऐ और आगे की जिदंगी भी उन्ही यादों के सहारे बिताने को तैयार है, लेकिन शुभ की जगह किसी को नहीं दे सकता, ये देख कर रेहान की अम्मी रेहान के कंधे पर सर रख कर रोने लगी और बोली.... "उसने कहा था, रेहान के दिल से उसके लिऐ प्यार कभी नही निकलेगा, उसने कहा था, रेहान उसके बिना कभी खुश नही रेह पाऐगा, उसने कहा था, रेहान अकेला ही रेह लेगा लेकिन उसकी जगह किसी को नही देगा, लेकिन मैने उससे वही चीज मांग ली, जिसके लिऐ वो इतना रोया, इतना गिङगिङाया।"
अम्मी की कही बात रेहान समझने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे कुछ समझ नही आया। और उसने अम्मी को खुद से दूर किया और उनके आँसू पोंछते हुऐ पूछा.... "आप क्या कह रही हो अम्मी??"
तब अम्मी रोते हुऐ बोली.... "मैने ही उसे तेरी जिदंगी से दूर हो जाने की कसम दी थी रेहान। मैंने ही तेरी खुशियाँ छीन ली। मैं समाज के बारे मे सोच के डर गई थी बेटा! उसने तो मुझे बहुत समझाने की कोशिशें की, लेकिन मैंने ही उसे इतना मजबूर कर दिया की उसे तुझसे दूर होना ही पङा। वो तो तुझसे बहुत प्यार करता था बेटा, मैं ही तेरे इस अधूरेपन का कारण हूँ। मुझे माफ कर दे बेटा! मुझे माफ कर दे।"
ये सब सुन कर रेहान को बहुत बङा धक्का लगा। वो सारा वाक्या उसकी आँखों के सामने घूमने लगा, की क्यों शुभ उन दिनों परेशान रेहता था, क्यों अम्मी का बरताव शुभ के लिऐ इतना बेरुखा था, अब वो सारे सवालों के जवाब रेहान को मिल चुके थे, जो ना जाने कितनी बार रेहान ने इन 6 सालों मे बार बार खुद से पूछे थे। और वो बिना कुछ बोले, रोते हुऐ वहाँ से चला गया। निकाह के दिन भी अम्मी ने बहुत कोशिशें की कि वे रेहान से बात कर सकें, लेकिन रेहान ने कोई भी बात नहीं की। अगले दिन भी रेहान बिना किसी से कुछ बोले बैंगलौर के लिऐ रवाना हो गया और अम्मी अपना मन मार कर रह गईं। वो जानती थी कि उन्होंने अपने बेटे को बहुत बङा दुख दिया है, जिसका उन्हें अफसोस भी था, लेकिन अब जो चुका था, उसे बदल पाना किसी के हाँथ में भी नहीं था। रेहान कानपुर से निकल तो आया था, लेकिन शुभ के जाने का कारण जान कर उसके अंतरमन में एक तूफान सा चल रहा था। और ये तुफान, अम्मी के प्यार को, उनके किऐ हुए जतनों को धुंधलाता जा रहा था, शुभ के लिऐ इन 6 सालों मे उसके मन मे जितना भी गुस्सा था, अब वो सब निरर्थक लग रहा था। जिसका दोषी वो अभी तक शुभ को माने बैठा था, वो गुनाह तो खुद उसकी अम्मी ने ही किया था। अब वो अपनी अम्मी को तो बुरा भला नही केह सकता था, ना ही उन्हें कोस सकता था, इसलिऐ उसने अपनी अम्मी से दूरी बना ली थी, क्योंकि अब अम्मी को देख कर उसे खुद के और शुभ के ऊपर हुऐ अन्याय की याद आ रही थी। लेकिन इस सच्चाई के सामने आने से एक अच्छी बात भी ये हुई थी कि, अब तक रेहान के मन मे शुभ के लिऐ जो गुस्सा था, वो खत्म हो गया था।
रेहान ने निश्चय किया कि, बैंगलौर से लौट कर पेहले ग्वालियर जाऐगा और शुभ की दी हुई कसम को तोङे बिना, कोशिश करेगा कि, वो शुभ के बारे मे पता कर सके। वो अपनी अम्मी की की हुई हरकत से दुखी तो था, लेकिन शुभ को वापस पाने के एहसास भर ने उसे एक खुशी भी दे दी थी। बैंगलौर तक के सफर मे तो ना जाने उसने कितने सपने सजा लिऐ थे। कई सारी बातें तैयार कर ली थी कि, गवालियर जाकर क्या क्या बोलेगा, कैसे शुभ के बारे मे पता लगाऐगा। शुभ से मिलेगा, तो क्या बोलेगा उसे, कैसे उसे वापस अपनी जिदंगी मे लाऐगा। उसने ऐसे सपने भी सजा लिऐ थे, जिनकी अभी कोई ज़मीन भी नहीं थी।
रेहान जब बैंगलौर पहुँचा तो HCL की गाङी ने उसे recieve किया और programme के venue तक पहुँचा दिया। रेहान थोङा देरी से पहुँचा था तो, वो जल्दी से अपने room में गया और तुरंत तैयार होकर उसी hotel के meeting hall में पहुँचा जहां programme हो रहा था। वो hall में प्रवेश करने ही वाला था, कि उसके कदम रुक गऐ, और उसकी आँखे भी नम हो गईं, क्योंकि उसे एक जानी पेहचानी आवाज सुनाई दे रही थी, और ये किसी और की नहीं शुभ की ही आवाज थी, जिसे रेहान सोते में भी पेहचान सकता था। रेहान जब hall मे अंदर गया तो उसने देखा कि hall के एक कोने मे stage के pordium से शुभ ही उस meeting को सम्बोधित कर रहा था। रेहान को उस पूरे hall में ना कुछ और दिखाई दे रहा था, ना सुनाई और वो धीरे धीरे अपने आप उस stage की तरफ खिंचा चला जा रहा था, तभी एक volunteer ने उसे रोका और उसका नाम पूछ कर, रेहान की reserved seat पर उसे पहुँचा दिया। बेहरहाल, hall काफी बङा था, और India के सभी HCL Centers से लोग वहां इकठ्ठे हुऐ थे, तो भीङ भी बहुत थी। उस भीङ के बीच शुभ ने अभी तक रेहान को नही देखा था। लेकिन रेहान आँसू छलकाता हुआ, मंत्रमुग्ध होकर बस शुभ को ही देखे जा रहा था। रेहान को तो अपना सारा संसार, अपनी सारी दुनियाँ, जो दिखाई दे रही थी, ऐसे मे वो कहाँ है, वहां और कौन मौजूद है, वहां क्या हो रहा है, इन सब बातों पर ध्यान न दे, ये तो लाजमी था। 1, 2 घंटे बस यही सिलसिला चलता रहा, और रेहान की आँखों के सामने, उसके शुभ के साथ बिताऐ हँसी पलों का कारवान भी चलता रहा। Meeting खत्म हो चुकी थी और सभी लोग lunch buquet की तरफ जा चुके थे, लेकिन रेहान अभी भी अपनी ही seat पर बैठा हुआ, उन पुराने पलों को ही याद कर रहा था। तभी एक volunteer ने आकर रेहान को उसके खयालों से बाहर निकाला, और उसे lunch buquet का रास्ता दिखाया। रेहान भी भागते हुऐ वहां गया, जहां शुभ बांहे फैलाऐ उसका इंतजार कर रहा था। रेहान buquet मे पहुँचा और अपने आँसू पोंछ इधर उधर शुभ को डूंडने लगा। और फिर उसकी नजर पङी उस हँसीन चेहरे पर, जिसके लिऐ उसने 6 साल इंतजार किया था। ये सब कुछ उसे एक सपने जैसा ही लग रहा था। रेहान वो सारी बातें याद करने लगा, जो उसने बैंगलौर आते समय शुभ को बोलने के लिऐ सोची थीं, और वो धीरे धीरे शुभ की ओर बङने लगा।
शुभ से अभी वो कुछ 20 - 25 कदम ही दूर था, कि एक 3.5 , 4 साल की बच्ची ने दोङ कर शुभ को पकङ लिया और बोली..... " पापा! चलो ना पापा!! अब मुझे यहां बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। अब घर चलो ना पापा!!!"
उस बच्ची की बातें तो रेहान को सही से नही सुनाई दी थीं, लेकिन वो शुभ को पापा कह रही है, ये रेहान के कानों मे अच्छे से जा चुका था। और ये सुनकर रेहान ने, शुभ की ओर बङते अपने कदमों को रोक लिया, और वो वहां फिर 1 मिनट भी नहीं रूका और वापस अपने hotel room मे आ गया। कमरे मे आकर भी रेहान परेशेन सा इधर - उधर घूमने लगा, और सोचने - समझने लगा कि वो क्या देख और सुन कर आ रहा है। उसे अपने कानो पर सुनी बात पर तो भरोसा था, कि उसने सही सुना है, लेकिन उसका दिमाग ये मानने को ही तैयार नही था कि, जो उसने सुना, जो उसने देखा, वो सब सच है। उसने वापस शुभ की ओर जाने के लिऐ कदम भी बङाऐ, क्योंकि इतने सालों बाद तो उसे शुभ दिखा ही था, रेहान कस कर उसे गले लगाना चाहता था, उसे वापस अपने साथ ले जाना चाहता था, और उसने आगे बङते हुऐ अपने कमरे के दरवाजे को खोलने के लिऐ हाँथ भी बङा दिऐ लेकिन तभी उसे अपने मन की आवाज सुनाई दी....... "रुक जा रेहान!! ये क्या करने जा रहा है?? तूने जो देखा, जो सुना वो एक दम सच है। शुभ अपनी जिदंगी मे आगे बङ चुका है। अगर तू अब उसके सामने जाता है, तो ना तो वो तेरे पास लौट कर आऐगा, और अगर आ भी गया, तो उसके परिवार का क्या?? उसकी इस नई दुनियाँ का क्या?? तू शुभ को भी वही दुख क्यों देने जा रहा है, जिस दुख मे खुद तू जी रहा है। मत कर ऐसा, जीने दे उसे, खुश रहने दे उसे। तूने देखा ना, वो कितना खुश था अपनी बच्ची के साथ, तो मत तोङ उसकी ये खुशी। कारण चाहे जो रहा हो इस अलगाव का, लेकिन आज की सच्चाई वही है जो तूने देखी। स्वीकार कर इसे और जीने दे उसे उसकी खुशियों भरी जिदंगी।"
रेहान रुक तो जाता है, लेकिन बिखर भी जाता है। वो इतना फूट फूट कर रोता है, जितना वो कभी इन 6 सालों मे नही रोया था। क्योंकि अभी तक उसके दिल के किसी कोने मे ये उम्मीद बाकी थी कि, शुभ कभी ना कभी तो वापस आऐगा, लेकिन आज वो उम्मीद की आखिरी किरण भी बुझ चुकी थी, और उसके साथ ही रेहान की जिदंगी मे भी अंधेरा हो गया था। रात भर रोने के बाद, रेहान नई सुबह के साथ कुछ नऐ फैसले भी लेता है। वो शुभ को अब हमेशा के लिऐ भूल जाने का फैसला लेता है। लेकिन अभी तो ये programme कुछ दिन और चलने वाला था, और कही अबकी बार शुभ की नजर भी रेहान पर पङ गई तो??? इस बात का खयाल रख, रेहान delhi फोन कर, अपनी जगह किसी और representative को बुला लेते है, और खुद वापस delhi आ जाता है। वापस आकर शुभ को भुलाने की बहुत कोशिश भी करता है, लेकिन नाकाम भी रहता है। अब उसे ये कौन समझाऐ कि, पहला प्यार, इतनी आसानी से नहीं भुलाया जा सकता।
बैंगलौर से वापस आने के बाद से रेहान ने office मे बीमारी का बहाना बना दिया था, और 5 दिन से खुद को घर मे बंद भी किऐ हुए था। इन दिनों अम्मी ने भी बहुत फोन किऐ, लेकिन रेहान ने एक फोन का भी जवाब नही दिया। और अगले ही दिन दोपहर मे उसके flat की door bell बजी। रेहान ने सोचा कि शायद अम्मी या मामूजान ही होंगे और उसने जाकर दरवाजा खोल दिया। लेकिन दरवाजे पर तो शुभ था। थोङी देर के लिऐ वहां सन्नाटा छा गया, बस दोनों एक दुसरे की आँखों मे देखे जा रहे थे, दोनों के आँसू भी बहे जा रहे थे। मानों दोनों आँखों से ही अपने मन की बात कर रहे हों। तभी एक प्यारी सी आवाज ने वहां की चुप्पी को खत्म किया.... "हम कहां आऐ हैं पापा! और ये अंकल कौन हैं??"
शुभ ने अपनी नजरें रेहान से हटा कर उस बच्ची की ओर देख कर जवाब दिया.... "ये बहुत अच्छे अंकल हैं ईशा!! और आपको पता है, पेहले आपके पापा यंही रेहते थे, इन अंकल के साथ में। अंदर के left side वाले room की अलमारी में कई सारे softtoys रखे हैं, जो इन्हीं अंकल ने मुझे दिऐ थे, आप अंदर जाओ और उनके साथ खेलो। फिर थोङी देर मे हम आपकी नानी के घर भी चलेगें। ok बेटा!!" ये कहकर शुभ ने बच्ची को अंदर भेज दिया, लेकिन खुद दरवाजे पर ही खङा, रेहान के कुछ कहने का इंतजार करता रहा। रेहान भी दरवाजे पर खङा, केवल शुभ को देखे जा रहा था। वो चाहता तो था कि शुभ को गले लगा ले, लेकिन अब ऐसा करने का हक उसने खो दिया था। फिर शुभ ने ही बोला.... "अंदर आने को नही कहोगे??"
इस पर रेहान ने अपने आँसू पोंछते हुऐ कहा.... "आओ ना, ये तो आज भी तुम्हारा ही घर है, यहां से जाने का फैसला भी तुम्हारा था, तो अंदर आने का भी तुम्हारा ही होना चाहिऐ।"
शुभ, रेहान के धीमे स्वर मे कही गई बात के पीछे के गुस्से को अच्छे से समझ रहा था, और वो अंदर आ कर बोला.... "अब तक गुस्सा हो मुझसे??"
शुभ के सवाल पर मुस्कुराते हुऐ रेहान बोला.... "कम से कम मेरी feelings पर तो मेरा हक है, वरना कुछ फैसले तो तुम अकेले ही ले लेते हो।"
रेहान के ईशारे को समझते हुऐ शुभ ने बात बदलते हुऐ, घर को चारों तरफ देखते हुऐ कहा.... "तुमने तो कुछ भी नही बदला यहां, यहां तो सब पहले जैसा ही है।"
शुभ की बात पर रेहान फिर हँसते हुऐ बोला.... "ये घर भी पहले जैसा है, और मे भी, बदल तो तुम गऐ हो। और शादी की बहुत बहुत मुबारकबाद और तुम्हारी बेटी भी बहुत प्यारी है। लेकिन अपने घरवालों से क्यों झूट बुलवाया?? अगर वो मुझे तुम्हारी शादी और तुम्हारी बच्ची के बारे मे बता देते तो मैं पहले ही बधाई दे देता।"
इस पर शुभ ने बङे आश्चर्य से पूछा.... "मेरे घरवालों से बात होती है तुम्हारी???"
शुभ को देख कर वैसे भी रेहान का गुस्सा बङता जा रहा था, जिसे वो दबाने की कोशिश भी कर रहा था। और खुद को एक दम normal दिखाते हुऐ बोला.... "वो सब छोङो, और ये बताओ, इतने सालों बाद यहां की याद कैसे आ गई??"
शुभ ने रेहान की तरफ बङकर उसकी आँखों में देख कर कहा.... "अम्मी का फोन आया था, उन्होंने ने ही बताया कि शादी मे भी अच्छे से शामिल नही हुऐ, और उनसे रूठ कर भी आ गऐ हो, और अब उनके फोन भी नहीं उठा रहे।"
रेहान ने भी शुभ की आँखो मे देखकर पूछा.... "कयों?? अबकी बार क्या कसम दे कर भेजा है अम्मी ने??"
शुभ थोङा मुस्कुराया और बोला... "नहीं! इस बार कोई कसम तो नही दी, लेकिन बोला है, कि वो गलत थीं और मैं सही। संभाल लूँ उनके बेटे को जाकर, जिसका गुस्सा अभी सातवे आसमान पर है। तो अम्मी की बात कैसे टाल सकता था मैं, इसलिऐ आ गया हूँ, तुम्हें संभालने।"
रेहान गुस्से मे बोला.... "Ohhh Please!! बंद करो महान बनना तुम। पहले अम्मी के कहने पर चले गऐ और अब अम्मी के कहने पर वापस आ गऐ। तमाशा बना रखा है मेरी जिदगी का। और अब मैं इतना important नहीं, लेकिन क्या इस बच्ची की माँ को पता है कि तुम कहां आऐ हो, या उसे भी कोई कहानी सुना दी है। इसकी माँ को बताया है, कि क्या रिश्ता था मेरा तुम्हारा। बंद करो जिदंगियों से खेलना शुभ! मेरे कारण अपना घर बर्बाद मत करो। अब आगे बङ चुके हो तो पीछे मुङ कर मत देखो।" ये कहता हुआ रेहान मुँह मोङ कर शुभ की तरफ पीठ कर खङा हो गया।
शुभ ने रेहान के कंधे पर हाँथ रख कहा..... "दोस्ती का रिश्ता तो है, कम से कम उसी नाते मेरी पूरी बात तो सुन लो। मैं......"
रेहान ने शुभ को बीच मे ही टोका, और उसका हाँथ झटकते हुऐ बोला...... "दोस्ती का रिश्ता?? किस रिश्ते की बात कर रहे हो तुम? इस तरह से रिश्तों मे मिलावट से क्या हाँसिल होगा?? क्या इस छोटी सी बच्ची को समझा पाओगे हमारा रिश्ता?? क्या इसकी माँ को समझा पाओगे हमारा रिश्ता?? क्यों अपनी शादीशुदा जिदंगी खराब कर रहे हो??"
शुभ ने रेहान को अपनी तरफ मोङा और उसके गालों पर हाँथ रखते हुऐ बोला.... "मैंने शादी नहीं की, वो मेरी बेटी जरूर है लेकिन मैं उसका पिता नही। ये मेरे दोस्त की बेटी है। इसके माँ बाप ने घर से भाग कर शादी की थी, और जब ये महज 8 महीने की थी तब उन दोनो की road accident मे मौत हो गई। मैनै इसके दादा - दादी और नाना -नानी, सभी से बात की लेकिन किसी ने भी इसे नही अपनाया और वो लोग तो इसे अनाथ आश्रम मे दे देना चाहते थे। लेकिन मैने उसे नही जाने दिया, तभी से मैं उसका पापा हूँ। रही बात मेरी तुम्हारी, तो मैं तो हमेशा से बस तुमसे ही प्यार करता हूँ, मैं तुम्हे पीछे छोङ कर अपना घर कैसे बसा सकता था। मैं अम्मी के कहने पर तुमसे अलग जरूर हुआ था, लेकिन मैने कभी भी तुम्हें भुलाया नही था। Office के दोस्तों से, अम्मी से मुझे तुम्हारे हाल चाल मिल जाया करते थे। और ईशा के नाना नानी यहीं delhi मे ही रेहते हैं, ईशा को साल मे एक बार जरूर उनसे मिलाने लाता हूँ, और तभी मैं तुमको भी चोरी छुपे देख जाया करता था। तुम्हारी तरह मुझे भी पूरी उम्मीद थी कि हम एक दिन जरूर मिलेगें, लेकिन मे वो पहल नहीं कर सकता था, मैं मजबूर था। मैं अम्मी के दुखों का कारण नही बनना चाहता था रेहान!! लेकिन जब उनका फोन आया और उन्होंने मुझे सारी बात बताई, और उन्होंने खुद मुझे तुम्हारी जिदंगी मे हमेशा के लिऐ वापस आने को कहा, तो मैने एक पल का भी इंतजार नही किया और फौरन यहां आ गया।"
शुभ की ये सारी बाते सुन, रेहान के आँसू थमने का नाम नही ले रहे थे। उसने तुरंत शुभ को गले लगा लिया और अपने मन को हल्का हो जाने दिया। 6 साल का इंतजार जरूर किया था दोनो ने, लेकिन अब परिवार वालों से अपने रिश्ते को छुपाने का डर नही था। तभी रेहान थोङा उदास होकर बोला.... "अब और 6 साल अलग होने को तैयार हो जाओ। लेकिन इस बार नाटक ही करेगे बस। ग्वालियर भी तो अपनी दोस्ती का सच बताना है।"
इस पर शुभ हँसते हुऐ बोला.... "उसकी कोई जरूरत नहीं। अपने बारे मे मैने बहुत पहले ही घर मे सब बता दिया था। सभी लोग कुछ समय नाराज भी रहे लेकिन फिर धीरे धीरे नाराजगी भी दूर हो गई। और वो लोग तुम्हे फोन करते हैं, तुमसे बात करते हैं, ये सुन कर मुझे आश्चर्य हुआ था क्योंकि मुझे किसी ने भी इस बारे मे नही बताया था।" शुभ ने गले लगे हुऐ ही रेहान से फिर से बोला.... "लेकिन एक बात कहूँ.... मेरे एक birthday पर तुम जो yellow colour की Tshirt लाऐ थे ना, वो colour मुझ पर बिल्कुल अच्छा नही लगता।"
ये सुनकर रेहान ने शुभ को खुद से अलग किया और आश्चर्यचकित होकर पूछा.... "तुझे कैसे पता चला???"
शुभ ने मुस्कुरा कर कहा.... "अब अच्छा लग रहा है ना, अभी तक तुम - तुम कर के बात कर रहे थे, उससे ये अच्छा है। और तुम भूल रहे हो, घर की एक चाभी अभी भी मेरे पास है। जब तुम office मे होते थे, तो मैं घर आकर तुम्हारी याद साथ ले जाता था।" और हँसते हुऐ दोनो ने एक दूसरे को kiss किया।
दोनों के परिवार भी इनके रिश्ते से खुश थे। लेकिन बाकी लोगों के लिऐ अभी भी इनके रिश्ते का नाम "दोस्ती" ही था। समाज को इस रिश्ते को स्वीकारने मे ना जाने और कितना समय लगेगा। लेकिन दो सुखी परिवारों के दो बच्चे, जो आपस मे प्यार के बन्धन मे बंधे हैं, और उनकी एक प्यारी सी बच्ची है, जिसे सारा घर बेहद प्यार करता है, इसे ही तो सुखी परिवार कहते हैं। अब इस बात से क्या फर्क पङता है, कि उस परिवार में पति पत्नि हों या फिर "मित्र"!!!!
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Lots of Love
Yuvraaj ❤