Monday, August 27, 2018

""मित्र"" Final Part

6 साल बाद......

   "बेटा कब घर आऐगा? घर में निकाह है, बहुत सारे काम बाकी पङे हैं, और लङकी वाले भी तुझसे मिलना चाहते हैं।"  फोन पर रेहान की अम्मी रेहान को डांटते हुए बोलीं।

     रेहान की आवाज मे अब वो खनक नहीं थी, जो पहले घर पर बात करने पर होती थी। और उसी दबी हुई आवाज में रेहान ने अम्मी को जवाब दिया..... "आ जाऊँगा अम्मी!!! शादी छोटे की है मेरी नही। मेरे लिए जो भी काम है, आप उसकी चिंता मत करो, मैं आ कर निपटा दूंगा और ये लङकी वालों को मुझसे क्या बात करनी है???"

    अम्मी ने जवाब दिया.... "ऐसी कोई खास बात नहीं, अब 50  लोग 50  तरह की बातें करते हैं, उन लोगों ने भी तेरे शादी ना करने के बारे में कुछ सुन रखा होगा, इसलिए शायद मिलना चाह रहे होंगे। अब अपनी लङकी भेज रहे हैं हमारे घर, तो सारी तसल्ली करना तो लाज़मी है ना।"

    यह बात सुनकर रेहान थोङी बेरुखी से बोला.... "शादी छोटे से करा रहे हैं या मुझसे?? छोटे के बारे मे पता करें, मेरी जिदंगी मे क्या चल रहा है क्या नहीं , ये जान के वो क्या करेगें।"

    अम्मी ने बात संभालते हुए कहा..... "कर लेने दे अपने मन की। वैसे भी बङी मुश्किलों से तो ये रिश्ता मिला है, वरना बाकी तो बङे भाई ने शादी क्यों नही की, यही पूछ कर चले जाते थे। और बेटा किन किन लोगों का मुँह बंद करेगा तू? मेरी बात मान ले और तू भी शादी कर ले अब।"

    अम्मी की बात बीच मे ही काटते हुऐ रेहान बोला.... "अम्मी कितनी बार वही सब बातें करोगी आप? कितनी बार तो बोल चुका हूँ कि मुझे नही करनी है शादी। चलो अब आप फोन रखो, मुझे बाकी काम भी निपटाने हैं और पैकिंग भी करनी है। मैं अगले हफ्ते आ जाऊँगा कानपुर, अब रखता हूँ।"     और रेहान फोन काट देता है।

      आईए आपको इन 6 सालों की भी एक हल्की सी झलक दिखाता हूँ। शुभ के जाने के बाद रेहान पूरी तरह टूट सा गया था, लेकिन फिर भी उसने जीना नही छोङा था। Office और घर के अलावा कोई तीसरी जगह नहीं थी, जहां वो जाता हो। और तो और इन 6 सालों मे वो एक बार भी कानपुर भी नहीं गया था। अम्मी को तो रेहान की इस हालत की वजह मालूम ही थी, लेकिन बाकी घरवाले कई बार Noida आए रेहान से मिलने, लेकिन रेहान के इस अलग बर्ताव का कारण जाने बिना ही लौट गए। समय के साथ रेहान मे थोङे से शाररिक बदलाव भी आऐ थे, और उसने दाङी रखनी भी शुरू कर दी थी। देवदास तो नही बन गया था शुभ की यादों में, लेकिन काम मे उसने खुद को इतना उलझा लिया था, कि खुद पर ध्यान देना ही बंद कर दिया था। कई companies के अच्छे offers ठुकरा कर अभी भी HCL मे ही काम कर रहा था, और काम मे रूझान ने अब तक रेहान को कई promotions दिलवा दिए थे, और वो जल्द ही Noida HCL Campus का Head भी बनने वाला था। रेहान की तरक्की से घर मे सभी लोग बेहद खुश थे, लेकिन उसके शादी न करने के फैसले ने सबको परेशान भी कर रखा था। उधर रेहान के छोटे भाई का पङने मे ज्यादा मन न लगा, जैसे तैसे B.Com कर कानपुर मे ही एक Firm मे clerk का काम करने लगा था। अब रेहान ने तो शादी के लिए मना ही कर दिया था, तो मामूजान ने छोटे भाई के लिए रिश्ते डूंडने शुरू कर दिए थे। बङी मशक्कतों के बाद रेहान के छोटे भाई का रिश्ता तय भी हो गया था। इस बीच रेहान की अम्मी ने बहुत कोशिश की कि वे रेहान को भी शादी के लिए मना लें, लेकिन उनकी सारी कोशिशें नाकाम ही रहीं।

      इन 6 सालों मे ग्वालियर से भी कई बार रेहान के पास फोन आऐ, और रेहान ने बिना किसी गिले शिकवे के शुभ के घरवालों से बात भी की। लेकिन धिरे धीरे ये सिलसिला भी कम हो गया था, और अब तो ग्वालियर से बस तीज त्योहारों पर ही फोन आया करते थे। लेकिन इन फोनो से एक बात तो अच्छी हुई थी कि रेहान को बिना पूछे शुभ की खैर खबर मिल जाया करती थी। पिछली बार जब ग्वालियर से फोन आया था तो पता चला था कि शुभ पूणे मे है लेकिन अब उसका transfer कहीं और होने वाला है, लेकिन उसके बाद से अब तक कोई फोन नहीं आया था, और शुभ की दी हुई कसम के मुताबिक रेहान शुभ के बारे मे पूछ भी नहीं सकता था। इसलिए उसे ग्वालियर से आने वाले फोन का खासा इंतजार रहता था। इन 6 सालों मे रेहान का शुभ के लिए प्यार बिल्कुल भी कम नही हुआ था, हाँ लेकिन थोङा गुस्सा जरूर था, जो अपनी जगह जायज़ भी था। शुभ के हर birthday पर रेहान सारी रात जागता था, खुद ही शुभ के नाम का cake काटता था और हर साल शुभ के लिए कुछ ना कुछ gifts जरूर लाता था, और शुभ की याद मे थोङे आँसू भी बहा लिया करता था। इसी तरह 6 सालों का लम्बा सफर रेहान ने शुभ के बिना ही तय कर लिया था। चलिए अब चलते हैं कानपुर, रेहान के छोटे भाई के निकाह में........

     यहां कानपुर मे तो अभी भी वही माहौल है, छोटे भाई की शादी से ज्यादा सबको रेहान के लिए एक अच्छी लङकी खोजने मे दिलचस्पी है। अम्मी का इंतजार खत्म हुआ और रेहान 6 साल के बाद कानपुर आ ही गया। इन 6 सालों के अंतराल के बाद भी कानपुर ज्यों का त्यों ही था। बस नाना जी की तबियत अब नासाज रेहती है, गली , मोहल्ले के घरों की बनावट मे थोङे से बदलाव आ गऐ हैं, और उनमें रेहने वाले लोगों को एक नया किस्सा भी मिल गया है, रेहान की शादी का किस्सा। 6 सालों के इंतजार के बाद घरवालों ने बङे जोरों शोरों से रेहान का स्वागत किया था। और मामूजान ने तो मानो ठान ही लिया था, कि इस बार रेहान को अकेले नहीं, बल्कि जोङे मे ही वापस दिल्ली रवाना करेंगे। अपनी जान पहचान मे सभी को रेहान के बारे मे बता दिया गया था, और कानपुर का वो घर, शादी के घर से ज्यादा, परिचय सम्मेलन का ठौर ज्यादा नजर आ रहा था। रेहान की अम्मी ने भी सारी जाम्मेदारी अपने भाईजान पर ही छोङ दी थी, क्योंकि उन्हें रेहान के मन की बात तो पता ही थी, और रेहान फोन पर भी कई बार शादी के लिए मना कर चुका था। रेहान केवल 3 दिनों के लिए ही कानपुर आया था, फिर यहीं से उसे HCL के एक programme के लिए 10 दिनों के लिए बैंगलौर भी जाना था। पूरे घर में रेहान ही एक अकेला था, जो शादी के उत्साह मे पूरे मन से शामिल नही था, और ये बात सभी घरवालों और सभी मेहमानों को साफ साफ दिखाई दे रही थी। निकाह कि एक रात पेहले सभी ने नाच, गाने की मेहफिल सजा रखी थी, और मामूजान जबरदस्ती रेहान को भी वहां खींच लाऐ और उसे गाना गाने के लिए बोलने लगे। उन्होंने पेहले से ही रेहान की आवाज और उसके गाने की तारीफ सबसे कर रखी थी, ये तो बस एक नमूने के लिए की जा रहीं मिन्नतें थी। रेहान ने भी उनका मन रखते हुए गाना शुरू किया....


"नैना.... जो साँझ ख्वाब देखते थे
 नैना.... बिछङ के आज रो दिए हैं यूँ
 नैना.... जो मिलके रात जागते थे
 नैना.... सेहर में पलकें मीचते हैं यूँ


 जुदा हुए कदम, जिन्होंने ली थी ये कसम
 मिलके चलेगें हरदम, अब बाँटते हैं ये गम
 भीगे नैना.... जो खिङकियों से झाँकते थे
 नैना.... घुटन में बन्द हो गए हैं यूँ........"

      गाना गाते वक्त रेहान के  जहन मे सिर्फ शुभ के साथ बिताये हसीन सफर की यादे ही थी, और वो नम आँखे लिए वहां से चला गया। बाकी सभी लोग रेहान का गाना सुन तालियाँ ही बजाते रहे। अंदर के किसी कमरे में रेहान की अम्मी भी उसका ये गाना सुनती हैं, और रेहान की आवाज मे छुपे दर्द को वो अच्छे से भाँप जाती हैं, और अपने बेटे की तकलीफ को समझ, उनकी भी आँखे नम हो जाती हैं। लेकिन वो भी क्या करें, वे भी तो समाज के दायरों में बंधी हैं, वे जानती हैं कि उनके बेटे की खुशी किसमे हैं, लेकिन वे अभी तक अपनी ममता की आँखों को बंद किये हुऐ थीं। लेकिन हैं तो आखिर माँ ही, कब तक रोक पाती खुद को, आखिर उनकी ममता उनको अपने बेटे के पास ले ही आई।

      रेहान सोया तो नहीं था अभी, लेकिन आँखे बंद कर लेटा था, और शायद शुभ के बारे मे ही सोच रहा था। अम्मी ने रेहान के सर पर हाँथ फेरते हुऐ कहा.... "आखिर कब तक उसके लिऐ अपनी जिन्दगी खराब करता रहेगा??"

     अम्मी के हाँथों का स्पर्श और उनकी आवाज, रेहान को उसके खयालो से बाहर ले आते हैं, और वो उठ कर बैठ जाता है, और अम्मी से नजरे चुराते हुऐ कहता है.... "आप किस बारे मे बात कर रही हैं अम्मी??"   रेहान का चेहरे अपने हाँथों से अपनी तरफ मोङ कर उसकी आँखों मे देखकर अम्मी  कहती हैं.... "मैं शुभ की बात कर रही हूँ। मैं तुम दोनों के रिश्ते के बारे मे भी सब जानती हूँ।"

    रेहान अपनी अम्मी की बात सुनकर हैरान तो हो जाता है, लेकिन कुछ कह नहीं पाता और सर नीचे किये ही बैठा रहता है। अम्मी फिर बोलती हैं...... "देख बेटा! ये सब बिल्कुल ठीक नही है। हम समाज मे रहते हैं और हमे समाज के हिसाब से ही चलना होता है। शुभ ने तो इस बात को समझ लिया , और वो अपनी जिंदगी मे आगे भी बङ गया होगा। अब तू भी कब तक उसके लिऐ आँसू बहाता रहेगा, तू भी आगे बङ, अपना परिवार बसा। तुझे भी तो खुश रहने का पूरा हक है मेरे बच्चे।"

     अम्मी की बातें सुन रेहान नजरे झुकाए ही बोलता है.... "अम्मी जब आप सब जानती ही हैं तो मुझे शादी करने को कैसे कह सकती हैं। शादी करके मैं तो खुश नहीं ही रह पाऊँगा, और  एक लङकी की जिदंगी और खराब कर दूगां। मैं एसे ही ठीक हूँ अम्मी!!! और शुभ की यादे ही अब मेरे लिए सब कुछ हैं। और मैं ये बात भी अच्छे से जानता हूँ, कि मुझसे दूर जाने का फैसला भी उसने, इन्हीं तरीके की बातों के बारे मे सोच के लिया है। लेकिन अम्मी मै शुभ को अच्छे से जानता हूँ, वो भी मुझसे अलग होकर कहीं एसे ही घुट घुट के जी रहा होगा। और हाँ, उसने मुझसे अलग होने कखा फैसला जरूर लिया है, लेकिन वो आगे नही बङा है, और ना कभी बङेगा। पता है अम्मी!!! वो तो मुझसे इतना प्यार करता है, कि मुझसे अलग होने पर तो वो मुझसे भी ज्यादा दुखी होगा, क्योंकि ये अलग होने का उसने जो फैसला लिया है, ये उसे कभी खुश रहने ही नहीं देता होगा।"    ये कहते वक्त, रेहान की आँखों से आँसुओं की धार लग चुकी थी।

     रेहान की अम्मी रेहान  की आँखों में वही प्यार देख सकती थी, जो उन्होंने शुभ की आँखों में देखा था। प्यार के लिऐ रेहान की इतनी शिद्दत, की उसने शुभ की यादों में ही अपने 6 साल बिता दिऐ और आगे की जिदंगी भी उन्ही यादों के सहारे बिताने को तैयार है, लेकिन शुभ की जगह किसी को नहीं दे सकता, ये देख कर रेहान की अम्मी रेहान के कंधे पर सर रख कर रोने लगी और बोली.... "उसने कहा था, रेहान के दिल से उसके लिऐ प्यार कभी नही निकलेगा, उसने कहा था, रेहान उसके बिना कभी खुश नही रेह पाऐगा, उसने कहा था, रेहान अकेला ही रेह लेगा लेकिन उसकी जगह किसी को नही देगा, लेकिन मैने उससे वही चीज मांग ली, जिसके लिऐ वो इतना रोया, इतना गिङगिङाया।"

     अम्मी  की कही बात रेहान समझने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे कुछ समझ नही आया। और उसने अम्मी को खुद से दूर किया और उनके आँसू पोंछते हुऐ पूछा.... "आप क्या कह रही हो अम्मी??"

      तब अम्मी रोते हुऐ बोली.... "मैने ही उसे तेरी जिदंगी से दूर हो जाने की कसम दी थी रेहान। मैंने ही तेरी खुशियाँ छीन ली। मैं समाज के बारे मे सोच के डर गई थी बेटा! उसने तो मुझे बहुत समझाने की कोशिशें की, लेकिन मैंने ही उसे इतना मजबूर कर दिया की उसे तुझसे दूर होना ही पङा। वो तो तुझसे बहुत प्यार करता था बेटा, मैं ही तेरे इस अधूरेपन का कारण हूँ। मुझे माफ कर दे बेटा! मुझे माफ कर दे।"   

     ये सब सुन कर रेहान को बहुत बङा धक्का लगा। वो सारा वाक्या उसकी आँखों के सामने घूमने लगा, की क्यों शुभ उन दिनों परेशान रेहता था, क्यों अम्मी का बरताव शुभ के लिऐ इतना बेरुखा था, अब वो सारे सवालों के जवाब रेहान को मिल चुके थे, जो ना जाने कितनी बार रेहान ने इन 6 सालों मे बार बार खुद से पूछे थे। और वो बिना कुछ बोले, रोते हुऐ वहाँ से चला गया। निकाह के दिन भी अम्मी ने बहुत कोशिशें की कि वे रेहान से बात कर सकें, लेकिन रेहान ने कोई भी बात नहीं की। अगले दिन भी रेहान बिना किसी से कुछ बोले बैंगलौर के लिऐ रवाना हो गया और अम्मी अपना मन मार कर रह गईं। वो जानती थी कि उन्होंने अपने बेटे को बहुत बङा दुख दिया है, जिसका उन्हें अफसोस भी था, लेकिन अब जो चुका था, उसे बदल पाना किसी के हाँथ में भी नहीं था। रेहान कानपुर से निकल तो आया था, लेकिन शुभ के जाने का कारण जान कर उसके अंतरमन में एक तूफान सा चल रहा था। और ये तुफान, अम्मी के प्यार को, उनके किऐ हुए जतनों को धुंधलाता जा रहा था, शुभ के लिऐ इन 6 सालों मे उसके मन मे जितना भी गुस्सा था, अब वो सब निरर्थक लग रहा था। जिसका दोषी वो अभी तक शुभ को माने बैठा था, वो गुनाह तो खुद उसकी अम्मी ने ही किया था। अब वो अपनी अम्मी को तो बुरा भला नही केह सकता था, ना ही उन्हें कोस सकता था, इसलिऐ उसने अपनी अम्मी से दूरी बना ली थी, क्योंकि अब अम्मी को देख कर उसे खुद के और शुभ के ऊपर हुऐ अन्याय की याद आ रही थी। लेकिन इस सच्चाई के सामने आने से एक अच्छी बात भी ये हुई थी कि, अब तक रेहान के मन मे शुभ के लिऐ जो गुस्सा था, वो खत्म हो गया था।

    रेहान ने निश्चय किया कि, बैंगलौर से लौट कर पेहले ग्वालियर जाऐगा और शुभ की दी हुई कसम को तोङे बिना, कोशिश करेगा कि, वो शुभ के बारे मे पता कर सके। वो अपनी अम्मी की की हुई हरकत से दुखी तो था, लेकिन शुभ को वापस पाने के एहसास भर ने उसे एक खुशी भी दे दी थी। बैंगलौर तक के सफर मे तो ना जाने उसने कितने सपने सजा लिऐ थे। कई सारी बातें तैयार कर ली थी कि, गवालियर जाकर क्या क्या बोलेगा, कैसे शुभ के बारे मे पता लगाऐगा। शुभ से मिलेगा, तो क्या बोलेगा उसे, कैसे उसे वापस अपनी जिदंगी मे लाऐगा। उसने ऐसे सपने भी सजा लिऐ थे, जिनकी अभी कोई ज़मीन भी नहीं थी।

     रेहान जब बैंगलौर पहुँचा तो HCL की गाङी ने उसे recieve किया और programme के venue तक पहुँचा दिया।  रेहान थोङा देरी से पहुँचा था तो, वो जल्दी से अपने room में गया और तुरंत तैयार होकर उसी hotel के meeting hall में पहुँचा जहां programme हो रहा था। वो hall में प्रवेश करने ही वाला था, कि उसके कदम रुक गऐ, और उसकी आँखे भी नम हो गईं, क्योंकि उसे एक जानी पेहचानी आवाज सुनाई दे रही थी, और ये किसी और की नहीं शुभ की ही आवाज थी, जिसे रेहान सोते में भी पेहचान सकता था। रेहान जब hall मे अंदर गया तो उसने देखा कि hall के एक कोने मे stage के pordium से शुभ ही उस meeting को सम्बोधित कर रहा था। रेहान को उस पूरे hall में ना कुछ और दिखाई दे रहा था, ना सुनाई और वो धीरे धीरे अपने आप उस stage की तरफ खिंचा चला जा रहा था, तभी एक volunteer ने उसे रोका और उसका नाम पूछ कर, रेहान की reserved seat पर उसे पहुँचा दिया। बेहरहाल, hall काफी बङा था, और India के सभी HCL Centers से लोग वहां इकठ्ठे हुऐ थे, तो भीङ भी बहुत थी। उस भीङ के बीच शुभ ने अभी तक रेहान को नही देखा था। लेकिन रेहान आँसू छलकाता हुआ, मंत्रमुग्ध होकर बस शुभ को ही देखे जा रहा था। रेहान को तो अपना सारा संसार, अपनी सारी दुनियाँ, जो दिखाई दे रही थी, ऐसे मे वो कहाँ है, वहां और कौन मौजूद है, वहां क्या हो रहा है, इन सब बातों पर ध्यान न दे, ये तो लाजमी था। 1, 2 घंटे बस यही सिलसिला चलता रहा, और रेहान की आँखों के सामने, उसके शुभ के साथ बिताऐ हँसी पलों का कारवान भी चलता रहा। Meeting खत्म हो चुकी थी और सभी लोग lunch buquet की तरफ जा चुके थे, लेकिन रेहान अभी भी अपनी ही seat पर बैठा हुआ, उन पुराने पलों को ही याद कर रहा था। तभी एक volunteer ने आकर रेहान को उसके खयालों से बाहर निकाला, और उसे lunch buquet का रास्ता दिखाया। रेहान भी भागते हुऐ वहां गया, जहां शुभ बांहे फैलाऐ उसका इंतजार कर रहा था। रेहान buquet मे पहुँचा और अपने आँसू पोंछ इधर उधर शुभ को डूंडने लगा। और फिर उसकी नजर पङी उस हँसीन चेहरे पर, जिसके लिऐ उसने 6 साल इंतजार किया था। ये सब कुछ उसे एक सपने जैसा ही लग रहा था। रेहान वो सारी बातें याद करने लगा, जो उसने बैंगलौर आते समय शुभ को बोलने के लिऐ  सोची थीं, और वो धीरे धीरे शुभ की ओर बङने लगा।

     शुभ से अभी वो कुछ 20 - 25 कदम ही दूर था, कि एक 3.5 , 4 साल की बच्ची ने दोङ कर शुभ को पकङ लिया और बोली..... " पापा! चलो ना पापा!! अब मुझे यहां बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। अब घर चलो ना पापा!!!"

     उस बच्ची की बातें तो रेहान को सही से नही सुनाई दी थीं, लेकिन वो शुभ को पापा कह रही है, ये रेहान के कानों मे अच्छे से जा चुका था। और ये सुनकर रेहान ने, शुभ की ओर बङते अपने कदमों को रोक लिया, और वो वहां फिर 1 मिनट भी नहीं रूका और वापस अपने hotel room मे आ गया। कमरे मे आकर भी रेहान परेशेन सा इधर - उधर घूमने लगा, और सोचने - समझने लगा कि वो क्या देख और सुन कर आ रहा है। उसे अपने कानो पर सुनी बात पर तो भरोसा था, कि उसने सही सुना है, लेकिन उसका दिमाग ये मानने को ही तैयार नही था कि, जो उसने सुना, जो उसने देखा, वो सब सच है। उसने वापस शुभ की ओर जाने के लिऐ कदम भी बङाऐ, क्योंकि इतने सालों बाद तो उसे शुभ दिखा ही था, रेहान कस कर उसे गले लगाना चाहता था, उसे वापस अपने साथ ले जाना चाहता था, और उसने आगे बङते हुऐ अपने कमरे के दरवाजे को खोलने के लिऐ हाँथ भी बङा दिऐ लेकिन तभी उसे अपने मन की आवाज सुनाई दी....... "रुक जा रेहान!! ये क्या करने जा रहा है?? तूने जो देखा, जो सुना वो एक दम सच है। शुभ अपनी जिदंगी मे आगे बङ चुका है। अगर तू अब उसके सामने जाता है, तो ना तो वो तेरे पास लौट कर आऐगा, और अगर आ भी गया, तो उसके परिवार का क्या?? उसकी इस नई दुनियाँ का क्या?? तू शुभ को भी वही दुख क्यों देने जा रहा है, जिस दुख मे खुद तू जी रहा है। मत कर ऐसा, जीने दे उसे, खुश रहने दे उसे। तूने देखा ना, वो कितना खुश था अपनी बच्ची के साथ, तो मत तोङ उसकी ये खुशी। कारण चाहे जो रहा हो इस अलगाव का, लेकिन आज की सच्चाई वही है जो तूने देखी। स्वीकार कर इसे और जीने दे उसे उसकी खुशियों भरी जिदंगी।"


    रेहान रुक तो जाता है, लेकिन बिखर भी जाता है। वो इतना फूट फूट कर रोता है, जितना वो कभी इन 6 सालों मे नही रोया था। क्योंकि अभी तक उसके दिल के किसी कोने मे ये उम्मीद बाकी थी कि, शुभ कभी ना कभी तो वापस आऐगा, लेकिन आज वो उम्मीद की आखिरी किरण भी बुझ चुकी थी, और उसके साथ ही रेहान की जिदंगी मे भी अंधेरा हो गया था। रात भर रोने के बाद, रेहान नई सुबह के साथ कुछ नऐ फैसले भी लेता है। वो शुभ को अब हमेशा के लिऐ भूल जाने का फैसला लेता है। लेकिन अभी तो ये programme कुछ दिन और चलने वाला था, और कही अबकी बार शुभ की नजर भी रेहान पर पङ गई तो??? इस बात का खयाल रख, रेहान delhi फोन कर, अपनी जगह किसी और representative को बुला लेते है, और खुद वापस delhi आ जाता है। वापस आकर शुभ को भुलाने की बहुत कोशिश भी करता है, लेकिन नाकाम भी रहता है। अब उसे ये कौन समझाऐ कि, पहला प्यार, इतनी आसानी से नहीं भुलाया जा सकता।

     बैंगलौर से वापस आने के बाद से रेहान ने office मे बीमारी का बहाना बना दिया था, और 5 दिन से खुद को घर मे बंद भी किऐ हुए था। इन दिनों अम्मी ने भी बहुत फोन किऐ, लेकिन रेहान ने एक फोन का भी जवाब नही दिया। और अगले ही दिन दोपहर मे उसके flat की door bell बजी। रेहान ने सोचा कि शायद अम्मी या मामूजान ही होंगे और उसने जाकर दरवाजा खोल दिया। लेकिन दरवाजे पर तो शुभ था। थोङी देर के लिऐ वहां सन्नाटा छा गया, बस दोनों एक दुसरे की आँखों मे देखे जा रहे थे, दोनों के आँसू भी बहे जा रहे थे। मानों दोनों आँखों से ही अपने मन की बात कर रहे हों। तभी एक प्यारी सी आवाज ने वहां की चुप्पी को खत्म किया.... "हम कहां आऐ हैं पापा! और ये अंकल कौन हैं??"

    शुभ ने अपनी नजरें रेहान से हटा कर उस बच्ची की ओर देख कर जवाब दिया.... "ये बहुत अच्छे अंकल हैं ईशा!! और आपको पता है, पेहले आपके पापा यंही रेहते थे, इन अंकल के साथ में। अंदर के  left side वाले room की अलमारी में कई सारे softtoys रखे हैं, जो इन्हीं अंकल ने मुझे दिऐ थे, आप अंदर जाओ और उनके साथ खेलो। फिर थोङी देर मे हम आपकी नानी के घर भी चलेगें। ok बेटा!!"   ये कहकर शुभ ने बच्ची को अंदर भेज दिया, लेकिन खुद दरवाजे पर ही खङा, रेहान के कुछ कहने का इंतजार करता रहा। रेहान भी दरवाजे पर खङा, केवल शुभ को देखे जा रहा था। वो चाहता तो था कि शुभ को गले लगा ले, लेकिन अब ऐसा करने का हक उसने खो दिया था। फिर शुभ ने ही बोला.... "अंदर आने को नही कहोगे??"

    इस पर रेहान ने अपने आँसू पोंछते हुऐ कहा.... "आओ ना, ये तो आज भी तुम्हारा ही घर है, यहां से जाने का फैसला भी तुम्हारा था, तो अंदर आने का भी तुम्हारा ही होना चाहिऐ।"

    शुभ, रेहान के धीमे स्वर मे कही गई बात के पीछे के गुस्से को अच्छे से समझ रहा था, और वो अंदर आ कर बोला.... "अब तक गुस्सा हो मुझसे??"

   शुभ के सवाल पर मुस्कुराते हुऐ रेहान बोला.... "कम से कम मेरी feelings पर तो मेरा हक है, वरना कुछ फैसले तो तुम अकेले ही ले लेते हो।"

       रेहान के ईशारे को समझते हुऐ शुभ ने बात बदलते हुऐ, घर को चारों तरफ देखते हुऐ कहा.... "तुमने तो कुछ भी नही बदला यहां, यहां तो सब पहले जैसा ही है।"

          शुभ की बात पर रेहान फिर हँसते हुऐ बोला.... "ये घर भी पहले जैसा है, और मे भी, बदल तो तुम गऐ हो। और शादी की बहुत बहुत मुबारकबाद और तुम्हारी बेटी भी बहुत प्यारी है। लेकिन अपने घरवालों से क्यों झूट बुलवाया?? अगर वो मुझे तुम्हारी शादी और तुम्हारी बच्ची के बारे मे बता देते तो मैं पहले ही बधाई दे देता।"

     इस पर शुभ ने बङे आश्चर्य से पूछा.... "मेरे घरवालों से बात होती है तुम्हारी???"

      शुभ को देख कर वैसे भी रेहान का गुस्सा बङता जा रहा था, जिसे वो दबाने की कोशिश भी कर रहा था। और खुद को एक दम normal दिखाते हुऐ  बोला.... "वो सब छोङो, और ये बताओ, इतने सालों बाद यहां की याद कैसे आ गई??"

    शुभ ने रेहान की तरफ बङकर उसकी आँखों में देख कर कहा.... "अम्मी का फोन आया था, उन्होंने ने ही बताया कि शादी मे भी अच्छे से शामिल नही हुऐ, और उनसे रूठ कर भी आ गऐ हो, और अब उनके फोन भी नहीं उठा रहे।"

    रेहान ने भी शुभ की आँखो मे देखकर पूछा.... "कयों?? अबकी बार क्या कसम दे कर भेजा है अम्मी ने??"

    शुभ थोङा मुस्कुराया और बोला... "नहीं! इस बार कोई कसम तो नही दी, लेकिन बोला है, कि वो गलत थीं और मैं सही। संभाल लूँ उनके बेटे को जाकर, जिसका गुस्सा अभी सातवे आसमान पर है। तो अम्मी की बात कैसे टाल सकता था मैं, इसलिऐ आ गया हूँ, तुम्हें संभालने।"

      रेहान गुस्से मे बोला.... "Ohhh Please!! बंद करो महान बनना तुम। पहले अम्मी के कहने पर चले गऐ और अब अम्मी के कहने पर वापस आ गऐ। तमाशा बना रखा है मेरी जिदगी का। और अब मैं इतना important नहीं, लेकिन क्या इस बच्ची की माँ को पता है कि तुम कहां आऐ हो, या उसे भी कोई कहानी सुना दी है। इसकी माँ को बताया है, कि क्या रिश्ता था मेरा तुम्हारा। बंद करो जिदंगियों से खेलना शुभ! मेरे कारण अपना घर बर्बाद मत करो। अब आगे बङ चुके हो तो पीछे मुङ कर मत देखो।"   ये कहता हुआ रेहान मुँह मोङ कर शुभ की तरफ पीठ कर खङा हो गया।

     शुभ ने रेहान के कंधे पर हाँथ रख कहा..... "दोस्ती का रिश्ता तो है, कम से कम उसी नाते मेरी पूरी बात तो सुन लो। मैं......"

     रेहान ने शुभ को बीच मे ही टोका, और उसका हाँथ झटकते हुऐ बोला...... "दोस्ती का रिश्ता?? किस रिश्ते की बात कर रहे हो तुम? इस तरह से रिश्तों मे मिलावट से क्या हाँसिल होगा?? क्या इस छोटी सी बच्ची को समझा पाओगे हमारा रिश्ता?? क्या इसकी माँ को समझा पाओगे हमारा रिश्ता?? क्यों अपनी शादीशुदा जिदंगी खराब कर रहे हो??"

     शुभ ने रेहान को अपनी तरफ मोङा और उसके गालों पर हाँथ रखते हुऐ बोला.... "मैंने शादी नहीं की, वो मेरी बेटी जरूर है लेकिन मैं उसका पिता नही। ये मेरे दोस्त की बेटी है। इसके माँ बाप ने घर से भाग कर शादी की थी, और जब ये महज 8 महीने की थी तब उन दोनो की road accident मे मौत हो गई। मैनै इसके दादा - दादी और नाना -नानी, सभी से बात की लेकिन किसी ने भी इसे नही अपनाया और वो लोग तो इसे अनाथ आश्रम मे दे देना चाहते थे। लेकिन मैने उसे नही जाने दिया, तभी से मैं उसका पापा हूँ। रही बात मेरी तुम्हारी, तो मैं तो हमेशा से बस तुमसे ही प्यार करता हूँ, मैं तुम्हे पीछे छोङ कर अपना घर कैसे बसा सकता था। मैं अम्मी के कहने पर तुमसे अलग जरूर हुआ था, लेकिन मैने कभी भी तुम्हें भुलाया नही था। Office के दोस्तों से, अम्मी से मुझे तुम्हारे हाल चाल मिल जाया करते थे। और ईशा के नाना नानी यहीं delhi मे ही रेहते हैं, ईशा को साल मे एक बार जरूर उनसे मिलाने लाता हूँ, और तभी मैं तुमको भी चोरी छुपे देख जाया करता था। तुम्हारी तरह मुझे भी पूरी उम्मीद थी कि हम एक दिन जरूर मिलेगें, लेकिन मे वो पहल नहीं कर सकता था, मैं मजबूर था। मैं अम्मी के दुखों का कारण नही बनना चाहता था रेहान!! लेकिन जब उनका फोन आया और उन्होंने मुझे सारी बात बताई, और उन्होंने खुद मुझे तुम्हारी जिदंगी मे हमेशा के लिऐ वापस आने को कहा, तो मैने एक पल का भी इंतजार नही किया और फौरन यहां आ गया।"

      शुभ की ये सारी बाते सुन, रेहान के आँसू थमने का नाम नही ले रहे थे। उसने तुरंत शुभ को गले लगा लिया और अपने मन को हल्का हो जाने दिया। 6 साल का इंतजार जरूर किया था दोनो ने, लेकिन अब परिवार वालों से अपने रिश्ते को छुपाने का डर नही था। तभी रेहान थोङा उदास होकर बोला.... "अब और 6 साल अलग होने को तैयार हो जाओ। लेकिन इस बार नाटक ही करेगे बस। ग्वालियर भी तो अपनी दोस्ती का सच बताना है।"

   
       इस पर शुभ हँसते हुऐ बोला.... "उसकी कोई जरूरत नहीं। अपने बारे मे मैने बहुत पहले ही घर मे सब बता दिया था। सभी लोग कुछ समय नाराज भी रहे लेकिन फिर धीरे धीरे नाराजगी भी दूर हो गई। और वो लोग तुम्हे फोन करते हैं, तुमसे बात करते हैं, ये सुन कर मुझे आश्चर्य हुआ था क्योंकि मुझे किसी ने भी इस बारे मे नही बताया था।"     शुभ ने गले लगे हुऐ ही रेहान से फिर से बोला.... "लेकिन एक बात कहूँ.... मेरे एक birthday पर तुम जो yellow colour की Tshirt लाऐ थे ना, वो colour मुझ पर बिल्कुल अच्छा नही लगता।"

     ये सुनकर रेहान ने शुभ को खुद से अलग किया और आश्चर्यचकित होकर पूछा.... "तुझे कैसे पता चला???"

     शुभ ने मुस्कुरा कर कहा.... "अब अच्छा लग रहा है ना, अभी तक तुम - तुम कर के बात कर रहे थे, उससे ये अच्छा है। और तुम भूल रहे हो, घर की एक चाभी अभी भी मेरे पास है। जब तुम office मे होते थे, तो मैं घर आकर तुम्हारी याद साथ ले जाता था।"   और हँसते हुऐ दोनो ने एक दूसरे को kiss किया।


     दोनों के परिवार भी इनके  रिश्ते से खुश थे। लेकिन बाकी लोगों के लिऐ अभी भी इनके रिश्ते का नाम "दोस्ती" ही था। समाज को इस रिश्ते को स्वीकारने मे ना जाने और कितना समय लगेगा। लेकिन दो सुखी परिवारों के दो बच्चे, जो आपस मे प्यार के बन्धन मे बंधे हैं, और उनकी एक प्यारी सी बच्ची है, जिसे सारा घर बेहद प्यार करता है, इसे ही तो सुखी परिवार कहते हैं। अब इस बात से क्या फर्क पङता है, कि उस परिवार में पति पत्नि हों या फिर "मित्र"!!!!
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         Lots of Love 
Yuvraaj ❤ 
 
 
 
  

      

Friday, August 17, 2018

""मित्र"" Part - II

If you didn't read first part than please go and read the first part than you easily be connected its second part.

    धीरे धीरे समय बीतता गया और शुभ और रेहान भी करीब आते गए और अच्छे दोस्त बन गए। रेहान का caring nature सिर्फ शुभ के लिए था या फिर रेहान था ही एसा, इन सब से शुभ बहुत confuse रेहता था। College, canteen और hostel बस इसी के बीच उनका समय बीत रहा था। Weakends पर hostel के बाहर जाने की भी permission थी, तो weakends पर रेहान और शुभ बाकी के classmates के साथ delhi भी घूम आया करते थे। 
     Ist semester के exam भी खत्म हो चुके थे और IInd semester शुरू होने मे अभी 15 से 20 दिन बाकी थे। सभी students अपने अपने घरों को जा रहे थे, लेकिन शुभ का मन रेहान को छोङ कर जाने का कर ही नहीं रहा था। फिर भी वो मन मार के ग्वालियर आ ही गया। इतने दिनों बाद घर आने के बाद भी वो ज्यादा खुश नहीं था, हर वक्त बस रेहान के बारे में ही सोचा करता था। जब ज्यादा ही रेहान की याद आती थी तो, रेहान को फोन करके इधर - उधर की बातें कर लेता था। रेहान की आवाज ही सुनकर, कुछ वक्त के लिए ही सही, उसे तस्सल्ली मिल जाया करती थी। जैसे तैसे अपना break खत्म कर शुभ तो वापस hostel आ गया, लेकिन रेहान को आने मे अभी एक दिन बाकी था। वो एक दिन उसे एक साल के जैसा लग रहा था। हर 5 मिनट के बाद घङी देखता, फिर अपने फोन मे समय देखता कि कहीं घङी गलत वक्त तो नहीं बता रही। कितनी मुश्किलों से उसने वो समय बिताया, और आखिर रेहान के आने का समय हो ही गया। शुभ तो मानो पागल सा हो रहा था, रेहान के इंतज़ार में, बार बार कमरे की खिङकी से झांक कर देखता, बार बार अपने फोन में रेहान की train का status check करता, और जब रेहान आया, तो शुभ ने अपने सारे होश-ओ-हवास खो कर, भाग कर रेहान को गले से लगा लिया, और बङबङाने लगा..... "पता है कितना miss किया मैने तुम्हे, कितना इंतज़ार कराया है आज तुमने मुझे। अब आगे से कभी मुझे ऐसे छोङ के मत जाना।"

     शुभ की बातें सुन कर रेहान थोङा हैरान तो था, उसने शुभ का ऐसा रूप पेहले कभी नहीं देखा था, और ऐसा अपनापन रेहान ने अपनी अम्मी के अलावा किसी और के लिए मेहसूस भी नहीं किया था। फिर भी शुभ की बातों को नज़रअंदाज करते हुए, रेहान ने शुभ को अपने सीने से अलग किया और कहा..... "हाँ! हाँ! ठीक है, अब अंदर तो आने दे, यहीं दरवाजे पर खङा रखेगा क्या?"

      IInd semester शुरू हो गया था और Ist semester का result भी आ चुका था। रेहान  Ist और शुभ  IInd स्थान पर रहे थे अपनी ब्राँच में। धीरे धीरे सभी अपने अगले exam की तैयारियों में जुट गये। लेकिन एक चीज बिल्कुल बदल चुकी थी, वो था शुभ का रेहान के लिए व्यवहार। शुभ के मन मे रेहान के नाम की चिंगारी अब आग का रूप ले चुकी थी और इसकी गरमाहट रेहान भी मेहसूस कर सकता था। रेहान ने अभी तक अपनी sexuality की तरफ ध्यान तो नही दिया था, लेकिन शुभ का बदला व्यवहार और अपने ऊपर ध्यान दिऐ जाने का एहसास, रेहान को काफी पसंद आ रहा था। Exam से पेहले ही शुभ ने तय किया कि वो अपने मन की बात रेहान को बता देगा। रेहान की तरफ से आने वाले अन्जान जवाब से वो घबराया तो था, लेकिन अपने मन मे रेहान के लिए प्यार को अब दबाए रखने से वो परेशान भी था। Hostel फिर से खाली होने लगा था, होली जो आ रही थी। लेकिन केवल 2 दिन की ही छुट्टी थीं, तो दूर दराज के students ने ना जाने का निर्णय लिया था और रेहान के घर में भी होली खेलते तो थे, लेकिन इतना भी कोई खास उल्लास ना था। रेहान को न जाता देख, शुभ ने भी अपने घर में पङाई का बहाना बना दिया। शुभ ने होली के ठीक पेहली वाली रात को अपने मन की बात रेहान से कह ही दी..... "रेहान! मुझे नही पता कि तुम ये सब सुन कर कैसे react करोगे, लेकिन मैं अब और इस एहसास को अपने मन मे दबा के नहीं रह सकता। I am gay! And I love you! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मुझे नही पता कि तुम भी gay हो या नहीं, मुझे नही पता कि तुम भी मुझसे प्यार करते हो या नहीं। लेकिन तुम्हारे साथ ने ही मुझे हिम्मत दी कि मैं अपने मन कि बात तुम से कह सकूं। शुभ की बात सुन कर रेहान एक दम चुप हो गया, उसे समझ ही नही आया कि शुभ ये सब क्या कह रहा है। रेहान की चुप्पी देख कर शुभ बोला..... "मुझे पता है ये सब सुन कर तुम्हें थोङा अजीब लग रहा होगा, लेकिन यही मेरी सच्चाई है और तुम्हारे लिए मेरी feelings भी एक दम सच्ची हैं। मैं अपनी भावनाएँ तुम पर थोपना नहीं चाहता, लेकिन जिस तरह से तुम मेरे साथ रेहते हो, जिस तरह से मेरी care करते हो, जिस तरह से मेरी आँखों मे देखते हो, मुझे लगा कि तुम भी मुझसे प्यार करते हो। लेकिन please इस बात को अपने दिल पर लेने की कोई जरूरत नही है। अगर तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है, तो कोई जबरदस्ती नहीं है, मैं अपने दिल को समझा लूंगा और तुम भी इस रात को भूल जाओ। मैं तुम्हारे जैसा एक अच्छा दोस्त पाकर ही बहुत खुश हूँ। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता, i am sorry."  यह कह कर शुभ अपने पलंग पर लेट गया। रेहान तो बस वहां खङा सोचता ही रहा कि ये सब क्या हुआ। उस रात दोनों को ही नींद नही आई। रेहान सोचता रहा कि क्या जो सब शुभ ने कहा वो सच है? क्या उसे शुभ से प्यार है? क्या वो gay है? और वहीं शुभ ये सोचता रहा कि कहीं वो रेहान की दोस्ती भी ना गवां बैठे। 

    रात में देर से सोने की वजह से शुभ की सुबह आँख ही नही खुली। शुभ की आँख खुली रेहान की अवाज से..... "Happy holi शुभ!!!" शुभ ने आँखे खोली तो रेहान अपने दोनों हांथो से शुभ के गालों पर गुलाल लगा रहा था। शुभ ने उठने की कोशिश की तो रेहान ने उसे उठने नही दिया और बोला..... "मुझे नही पता कि मैं gay हूँ या नहीं। मुझे ये भी नही पता कि जो मैं तेरे लिए मेहसूस करता हूँ वो किसी और के लिए क्यों नहीं। लेकिन अगर ये प्यार है, तो मैं अपनी जिंदगी के पहले प्यार को इतनी आसानी से नही जाने दूँगा। मुझे कोई फर्क नहीं पङता कि मै gay हूँ या नहीं, मुझे इससे भी कोई फर्क नही पङता कि लोग मेरे बारे मे क्या सोचेगें, लेकिन मुझे इस बात से बहुत फर्क पङा है कि तू मेरे बारे मे क्या सोचता है। और आज मे सबको बता देना चाहता हूँ कि Rehan loves Shubh। I love you too." रेहान की ये बात सुन शुभ उसका चेहरा अपने हाथों मे पकङता है और रेहान को kiss करता है। दोनों एक दूसरे कि आँखों मे देख मुस्कुराते हैं और शुभ कहता है.... "किसी को कुछ बताने की कोई जरूरत नही है। लोगो को हमारा प्यार समझ नही आएगा, और मुझे तो बस इस बात कीही बहुत खुशी है कि तुम भी मुझसे प्यार करते हो।"

    समय बीतता गया और 4 साल कैसे गुज़र गए पता ही नहीं चला। समय के साथ शुभ और रेहान का प्यार भी बहुत गहरा होता गया। 4साल! 4 साल  बहुत लम्बा समय होता है एक दूसरे को समझने, जानने पेहचानने के लिए। अब तक रेहान और शुभ एक दूसरे को अच्छे से जान चुके थे, और केवल एक दूसरे को ही क्यों, रेहान शुभ को अपनी अम्मी और बाकी परिवार से भी मिलवा चुका था, और रेहान भी ग्वालियर अच्छे से घूम चुका था और शुभ के घरवालों के साथ familiar भी हो चुका था। दोनों ने बहुत ही अच्छे accademics के साथ B.Tech पास कर लिया था और Noida के ही HCL Campus में दोनों को बहुत ही अच्छे package पे नौकरी भी मिल गई थी। HCL को चुनने का भी एक कारण यही था कि दोनो को एक साथ अच्छे package मे नौकरी मिल रही थी। रेहान और शुभ का तो Capus Placement में selection हो गया था लेकिन दोनो को joining अलग अलग शहरों मे मिल रही थी, इस लिए दोनों ने HCL को चुना। दोनों ने Noida मे ही एक flat किराए पर ले लिया था और दोनो हँसी खुशी साथ मे रह रहे थे। इन सब के बीच रेहान अपने जरूरी काम को बिल्कुल नहीं भूला था और उसने अपनी पहली salary से एक वकील hire किया और अपने चाचा के ऊपर घर और दुकान के आधे हिस्से के बराबर हक का case चलवाया। रेहान की अम्मी ने उसे ऐसा करने से रोकने की कोशिश की, लेकिन अपने भाई और अब्बू के दबाव मे वो एसा कर नही पाईं। सब कुछ एक सुन्दर कहानी की तरह हो रहा था। लेकिन कहानी मे भी तो twist और drama होता है, तो ये तो शुभ और रेहान की असल जिन्दगी थी। वे दोनों इससे कैसे बच सकते थे।

     हम सब जिस समाज में रेहते हैं वहां के कुछ नियम कायदे होते हैं। जिनका पालन हम सभी को करना होता है। ऐसा ही कुछ रेहान और शुभ के घरवाले कर रहे थे। वे लोग अपने बच्चों की शादी के लिए रिश्ते खोजने लगे थे। पहले के कुछ शुरूआती दिनों मे रेहान और शुभ इन बातों को टालते रहे। वे दोनों जानते थे कि उनके परिवार, उन दोनों के रिश्ते को कभी नहीं अपनाएँगे। लेकिन सभी अपनी हद के दायरों में अपने अपने प्रयास कर रहे थे।दोनों परिवार अपने बच्चों से नाराज भी होने लगे थे क्योंकी उन लोगों के अथक प्रयासों का हर बार एक ही जवाब होता था। 

        एक रात रेहान को बहुत तेज़ बुखार आ गया और वो ठण्ड से कांपने भी लगा। रात को तो शुभ ने उसे बुखार की दवा दे दी, जिससे उसे आराम भी मिल गया था। लेकिन अगली सुबह , रेहान के बहुत मना करने बाद भी शुभ उसे जबरदस्ती hospital लेके गया। डाॅक्टर ने भी Viral की दवा दे दी और blood testing के लिए भेज दिया। उस दवाई से रेहान को कोई भी आराम नही मिला। अगले दिन शुभ रेहान की blood report लेके डाॅक्टर के पास गया और डाॅक्टर ने मलेरिया बता कर दवाईयाँ बदल दी। शुभ ने घर आ कर दोनों की leave application office मे mail कर दी। ये बात रेहान की अम्मी को भी पता चली, और वे रेहान की देखभाल के लिए Noida भी आ गई। वो आईं तो रेहान की देखभाल करने थी, लेकिन उन्हें कुछ करने की कोई जरूरत ही नही पङी। शुभ ने सारी जिम्मेदारी बङी बखूबी उठा रखी थी। रेहान का खाना पीना, दवाईयाँ, नहाना धोना, शुभ को रेहान के लिए ये सब करते देख, रेहान की अम्मी के मन मे ये खयाल भी आया और उन्होंने शुभ से कह भी दिया.... "बेटा जिस तरह से तू रेहान का खयाल रख रहा है ना, अगर तू लङकी होता तो मे धर्म का अंतर भुला कर भी तेरी शादी अपने रेहान से करा देती। बेटा बुरा मत मानना, लेकिन तेरी कोई बहन है क्या??"

      रेहान की अम्मी की बात सुनकर शुभ बहुत जोर से हँसने लगा और बोला..... "नहीं आँटी मेरी कोई बहन नही है। और आप रेहान की बिल्कुल भी फिक्र मत करो, मैं हूँ रेहान के साथ  और उसका पूरा खयाल रखूंगा।"

    इस पर रेहान की अम्मी बोलीं..... "हाँ बेटा! वो तो मैं देख ही रही हूँ । इतना तो मैं भी नही कर पाती जितना तू कर रहा है। लेकिन तू भी वो साथ, वो अपनापन तो नही दे सकता ना जो एक बीवी दे सकती है।"  इतने मे ही रेहान के खाँसने की आवाज आती है और शुभ उसे देखने उसके कमरे मे चला जाता है। वहीं रेहान की अम्मी शुभ के कमरे मे अकेली रेह जाती हैं , तो वो कमरे कि दीवारों पर लगी तस्वीरें देखने लगती हैं। 

     मैं आपको रेहान और शुभ के लिए flat के बारे मे बताना तो भूल ही गया। ये लोग 2BHK flat मे रेहते हैं, और घर को अपने मन मुताबिक रंगों से सजा रखा है। वैसे तो दोनों साथ मे ही एक ही कमरे में सोते हैं, लेकिन जब भी दोनों के परिवारों से कोई आता है, तो अलग अलग कमरे मे रेहते हैं। जैसा अभी रेहान की अम्मी के आने पर कर रहे थे। Romantic पलों की यादों के कई फोटो उनके घर की दीवारों और मेजों पर देखे जा सकते थे, लेकिन रेहान की अम्मी के आने कि खबर से ही, ऐसी सारी फोटो को शुभ के कमरे की अलमारी मे छुपा दिया गया था और अंजाने मे वे सारी तस्वीरें रेहान की अम्मी के हाँथ लग गईं।शुभ जब वापस अपने कमरे में आया और अम्मी के हाँथों मे वो सभी तस्वीरें देख के सकपका गया। उसने तुरंत रेहान की अम्मी के हाँथों से वो तस्वीरें छीनी और बोला..... "अरे आँटी ये सब तो बस बेकार चीजे हैं, फेकने के लिए यहा रखी हुई हैं।"  शुभ सारे फोटो समेट कर अलमारी बंद कर देता है और दूसरा काम करने का नाटक करने लगता है, वो ये जताना चाह रहा था कि ये सब एक मामूली सी बात है। लेकिन रेहान की अम्मी अभी भी अलमारी के पास खङी होकर सब समझने की कोशिश कर रहीं थीं। शादी के इतने सारे रिश्ते रेहान क्यों ठुकरा रहा था, अब वो समझ चुकी थीं। 

     वो धीरे से बिस्तर के एक कोने मे बैठ गईं और रेहान और शुभ के रिश्ते को समझने की कोशिश करने लगीं। शुभ चोरी छुपे अम्मी को बार बार देख भी लेता था और किसी काम मे मशरूफ होने का नाटक भी कर रहा था। "मुझे रेहान के लिए दूध गर्म करना है, मैं 2 मिनट मे आता हूँ आँटी"  ये बोल कर शुभ वहां से जाना चाह रहा था और जाकर रेहान को सब बताना चाहता था। लेकिन रेहान की अम्मी ने उसे रोक दिया और वे बोलीं..... "क्या जो मैं सोच रही हूँ वो सच है???" अम्मी की बात का उत्तर शुभ ने एक झूठी हँसी के साथ दिया......"क्या?? क्या आँटी??? आप किस बारे मे बात कर रहीं हैं???"

       रेहान की अम्मी ने गुस्से से शुभ की ओर देखा और बोला..... "मैं तुम्हारे और रेहान के रिश्ते के बारे मे पूछ रही हूँ। आखिर क्या रिश्ता है तुम्हारा मेरे बेटे के साथ?? ये एसी तस्वीरें क्यों हैं यहां??  जो एक माँ, एक बीवी से भी बङकर तुम रेहान का खयाल रखे हुए हो??"  रेहान की अम्मी कुछ और बोले इससे पेहले शुभ बोला.... "आँटी आप कुछ ज्यादा ही सोच रहीं हैं इस बारे में। मैं और रेहान बहुत अच्छे दोस्त हैं।"   शुभ की बात सुन कर रेहान की अम्मी बोली....  "दोस्ती और प्यार के रिश्ते मे अंतर करना जानती हैं मेरी आँखें। मैने जब तुम्हें रेहान का खयाल रखते देखा, उसकी छोटी से छोटी जरूरतों का खयाल रखते देखा, मैं तभी समझ गई थी कि तुम रेहान को दोस्त से बङकर मानते हो। लेकिन अब ये तस्वीरे देख कर तो मैं रेहान का भी मन पङ सकती हूँ।"    अम्मी की बात सुनकर शुभ बस सर झुकाए खङा था। रेहान की अम्मी भी खङी हुईं और शुभ के सामने अपना आंचल फैला कर बोली.... "मुझे मेरा बेटा लोटा दे बेटा!! मुझे मेरा रेहान लौटा दे!!" और वो रोने लगीं। शुभ ने उनका हाँथ पकङा और बोला.... "आप ऐसा क्यों बोल रही हो आंटी?? रेहान आपका ही बेटा है और मैं उसे आपसे दूर नहीं कर रहा हूँ।" शुभ ने अम्मी के आँसू पोंछते हुए कहा।

      "तू उसे मुझसे नहीं उसकी खुशियों से दूर कर रहा है। वो तेरे कारण ही शादी नहीं कर रहा। अगर तू उसे नहीं छोङेगा तो वो अपना घर परिवार कैसे बसा पाऐगा।"  रेहान की अम्मी ने वापस बिस्तर पर बैठते हुए कहा।

      शुभ वहीं उनके पास जमीन पर बैठ गया और हाँथों पर हाँथ रख कर बोला.... "आँटी हम दोनो एक दूसरे के साथ बहुत खुश हैं। रेहान केवल मेरी वजह से शादी करने से मना नहीं कर रहा है आँटी, हम दोनों gay हैं। अगर आप उसकी शादी किसी लङकी से करा भी दोगे, तब भी वो खुश नहीं रेह पाऐगा। रेहान की सारी खुशी मुझमें और मेरी सारी खुशी रेहान मे है आँटी।" 

    शुभ का हाथ झटकते हुए रेहान की अम्मी ने बोला.... "खुशी!!!!? इसे खुशी नहीं हवस कहते हैं बस! आदमी को असली खुशी बस उसकी पत्नी ही दे सकती है, उसके बच्चे दे सकते हैं, उसका परिवार दे सकता है। तू देगा उसे वो खुशी???? तू देगा उसे बच्चे???? और समाज???? क्या कहेंगे लोग???"

    शुभ रोंआंसा सा होकर बोला..... "आँटी शादी करना, बच्चे पैदा करना ही तो बस खुशी ही नही होती ना? भले ही हमारे बच्चे नहीं होंगे, लेकिन हम दोनों एक दूसरे के साथ हमेशा खुश तो रहेंगे। आँटी हमें इस बात से भी कोई फर्क नहीं पङता की लोग हमारे रिश्ते को अपनाऐंगे या नहीं। हम एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और वही हमारे लिए  काफी है। हम दोनों एक दूसरे के बिना नहीं जी सकते।"

       गुस्से  में रेहान की अम्मी खङे होकर बोली.... "तुम्हे क्यों फर्क पङेगा की कोई क्या सोचता है, क्योंकी अभी तो तुम्हारी आँखों पर इस झूठे प्यार की पट्टी बंधी है, अभी तो जवान खून की गर्मी है, हवस में डूबे हुए हो। लेकिन आगे चल कर क्या भविष्य है तुम्हारा?? रेहान का एक छोटा भाई भी है, उसके ऊपर क्या असर पङेगा। लोग तो उसे जीने नहीं देंगे, और तुम्हारे कारण उसका भी घर नहीं बस पाऐगा। मेरे दोनों बेटों का जीवन बर्बाद हो जाऐगा सिर्फ तुम्हारे कारण।"

      शुभ बस वहां खङा रोता रेहता है, उसके पास ऐसे कोई शब्द नहीं है जिनसे वो रेहान की अम्मी का गुस्सा ठण्डा कर सके। रेहान की अम्मी शुभ की ओर मुङती हैं और बहुत प्यार से उसके आँसू पोंछकर, उसका हाँथ अपने  सर के ऊपर रख कर कहती हैं...... "मेरे बेटे को छोङ दे शुभ। चले जा उसकी जिन्दगी से। जीने दे मेरे बेटे को। मैं अकेली माँ हूँ बेटा, मैने अकेले पाला है उसे। अगर वो तेरे साथ रेह गया तो लोग मेरी परवरिश को गाली देंगे। हमारी छोटी सी दुनियां तबाह हो जाऐगी। मैं तेरे हाथ जोङती हूँ बेटा। तुझे मेरी कसम, निकल जा उसकी जिन्दगी से, छोङ दे मेरे बेटे को शुभ! छोङ दे उसे!!"

     शुभ ये सुनकर हङबङाकर रेहान की अम्मी के सर से अपना हाँथ खींच लेता है। अपनी आँखों मे सैलाब लिऐ, फिर भी खुद को संभाले, रेहान की अम्मी को  बिस्तर पर बैठाते हुए कहते है.... "मैं आपकी सारी बातें समझता हूँ आँटी और आपकी सारी बातें मानने को भी तैयार हूँ। लेकिन मैं रेहान को कैसे छोङ सकता हूँ। मैं रेहान से बहुत प्यार करता हूँ आँटी और रेहान भी मुझसे उतना ही प्यार करता है। हम दोनों मर जाएँगे आँटी एक दूसरे के बिना।Please हमें अलग होने को मत कहिऐ, बाकि आप जो भी कहेंगी मैं बिल्कुल वैसा ही करूँगा।" ये केहते हुए, रो कर शुभ अपना सर रेहान की अम्मी की गोद में रख देता है।

     रेहान की अम्मी शुभ का सर अपने हाँथों मे उठाकर, उसकी आँखों मे देखकर बोलती हैं..... "अगर तू रेहान को नहीं छोङेगा, तो मैं अपनी जान दे दूंगी। अपने दोनों बेटों का जीवन बर्बाद होते हुए तो नहीं देखा जाएगा मुझसे। अब तू सोचले कि तू रेहान को छोङेगा या मेरी मौत का कारण बनेगा।"  और वो वहां से उठ कर जाने लगती हैं। 

     शुभ खङा होता है और उनहें रोक कर बोलता है..... "आँटी हम दोनों एक दूसरे को सच्चा प्यार करते हैं, ये कोई हवस नहीं है। हम एक दूसरे के साथ बेहद खुश हैं। लेकिन मैं इतना भी खुदगर्ज नहीं कि अपने प्यार के लिए किसी की कुर्बानी सेह लूँ। मैं आपकी बात मानने को तैयार हूँ, मैं छोङ दूगां रेहान को, चला जाउंगा उसकी जिंदगी से। लेकिन मुझे थोङा समय चाहिए एसा करने के लिए।"  ये शब्द तो शुभ के मुँह से निकल रहे थे, लेकिन उसकी आँखों से निकलते आँसू इस बात की गवाही दे रहे थे कि उसका दिल कितना दुख रहा है, ये सब कहते हुए। लेकिन शुभ की परवरिश उसे किसी को दुखी करने की इजाजत नहीं देती है, इसलिए उसने अपने दिल की आवाज को अनसुना कर दिया था। 

      शुभ की बात सुनकर रेहान की अम्मी खुश होकर मुस्कुराते हुए उसके पास आकर उसे गले लगा लेती हैं और कहती हैं...... "शुक्रिया बेटा!! शुक्रिया!! तुझे जितना समय लेना है लेले, लेकिन मेरे बेटे को छोङ दे। तू नहीं जानता, तूने ये कह कर ही मुझे कितनी खुशी दी है। मैं तेरा ये एहसान कभी नहीं भूलूंगी।"

     शुभ रेहान की अम्मी को खुद से दूर करके कहता है..... "मैं आपसे वादा करता हूँ कि मैं खुद को रेहान से दूर कर दूँगा, मेरे होने, ना होने की खबर तक रेहान को नही होने दूँगा। आप मुझे तो रेहान से दूर कर देंगी लेकिन उसके दिल से मुझे कैसे निकाल पाएँगी। उसकी यादों से कैसे मुझे निकाल पाएँगी। मुझे अपने साथ ना पाके जब उसका दिल टूटेगा, तो आप उसे कैसे संभाल पाएँगी। आप चाहे भले ही रेहान की शादी ही क्यों ना करा दें, लेकिन वो मेरे बिना खुश नहीं रेह पाऐगा। मुझे रेहान से दूर करके, उसके मन के मौत की जिम्मेदार आप होंगी। आप हमें एक दूसरे से चाहे जितना अलग करने कि कोशिश करलें,  मुझे अपने प्यार पर पूरा भरोसा है, रेहान का दिल सिर्फ मेरे लिए ही धङकेगा, और मेरा रेहान के लिए। और हमारे दिल से आप हमे कभी नही निकाल पाऐंगी।" ये कह कर शुभ वहां से रोते हुए चला जाता है।शुभ की आँखों मे रेहान के लिए इतना गहरा प्यार देख कर रेहान की अम्मी स्तब्ध खङी रह जाती हैं और शुभ को जाते हौए देखती रेहती हैं।

     कुछ दिनों बाद रेहान की तबियत बिल्कुल ठीक हो जाती है और रेहान और शुभ office जाना भी शुरू कर देते हैं। रेहान की अम्मी भी कानपुर वापस जाने  की तैयारी करने लगती है। रेहान भी कई सारे तोहफे अपने छोटे भाई और बाकी घरवालों के लिए ले आता है और अपनी अम्मी की पैकिंग मे मदद करने लगता है। रेहान की अम्मी रेहान से बोलती हैं..... "चल बेटा मेरी तो सारी तैयारी हो गई, अब तू भी जल्दी से कानपुर आजा और भाईजान ने जो दो तीन रिश्ते देख रखे हैं, उनमे से लङकी पसंद करके तू भी शादी के बंधन में बंध जा।"

    इस पर रेहान बोला..... "अम्मी कितनी बार आपको बोला है कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है। आप और मामूजान बिल्कुल भी परेशान ना हो, मुझे जब शादी करनी होगी तब मे बता दूंगा। वैसे भी आज कल काम का बहुत बोझ  है। अब शुभ को ही देख लो अम्मी, काम की वजह से इतना परेशान है, कि किसी से सही से बात भी नहीं कर पा रहा है। उसके घरवालों का भी बार बार मेरे पास ही फोन आ रहा है।"

     शुभ का नाम सुनते ही रेहान की अम्मी झुंझलाते हुए बोली...... "अरे शुभ से हमे क्या लेना देना। मुझे तो बस अपने बेटे से मतलब है।  मैं तो अपने बेटे की खुशी के बारे मे सोचूगी, ना कि किसी और की परेशानी के बारे में।"

    अपनी अम्मी की बात सुनकर रेहान थोङा दंग रह गया। उसने आज तक अम्मी को किसी के भी बारे में इस तरह बोलते नहीं सुना था। रेहान ने उनसे बोला.... "आप कैसे बात कर रही हो अम्मी, शुभ कोई भी नहीं है, मेरा दोस्त है, मेरी जान है।"

    अम्मी ने बात पलटते हुए कहा.... "हाँ!! हाँ!! ठीक है, शाम को ट्रेन है मेरी और अभी खाने के लिए भी कुछ बनाना है।"

    इस पर रेहान मुस्कुराते हुए बोला.... "इसकी चिंता मत करो, शुभ ने आपके पसंदीदा आलू के पराठे बना दिए हैं, बस पैक करना बाकि है। और taxy को भी book कर दिया है जो शाम को समय पर आ जाऐगी। देखा अम्मी इतना तो आपकी बहू भी नही करेगी। Office के बाद सारा घर शुभ अकेले ही संभालता है।"

    रेहान की बात सुन अम्मी खिसियानी हँसी लिऐ बोली.... "कितनी भी औरत बनने की कोशिश कर ले वो, लेकिन कभी औरत नहीं बन सकता।"

    आज तो रेहान अपनी अम्मी का ये रूप देखकर काफी हैरान था "अम्मी आपको हो क्या गया है, आप इस तरह से क्यों बात कर रही हैं??"

    इस बार फिर अम्मी ने बात टाल दी और अपने बाकी के कामों में लग गईं। शाम को ट्रेन का समय भी हो चला था, और शुभ ने जो cab book  की थी वो भी नीचे आ गई थी। रेहान भी अम्मी के साथ जाने वाला था, अम्मी को स्टेशन छोङने और उसने शुभ को भी साथ चलने को कहा, लेकिन शुभ ने थके होने का कारण दिया, और रेहान भी कई दिनों से शुभ को परेशान भी देख रहा था, तो उसने साथ चलने कि जिद भी नहीं की। अम्मी के जाते वक्त शुभ ने पैर छुए और अम्मी ने भी शुभ को गले लगा लिया और धीरे से उसके कान मे बोलीं..... "मेरे बेटे का अब तक खयाल रखने के लिए शुक्रिया। मुझे उम्मीद है कि तुम्हें अपना वादा याद होगा और तुम जल्द ही उस पर अमल करोगे।"

   शुभ ने भी बिना कुछ बोले हाँ में सर हिला दिया। लेकिन रेहान जिसे कुछ सुनाई नहीं दिया था, बोला.... "ये क्या काना फूसी हो रही है?? अम्मी!! कहीं मेरी बुराई तो नहीं कर रहीं शुभ से?"

     इस पर अम्मी मुसकुरा कर बोली.... "बुराई करे तेरे दुश्मन!!! मैं तो शुभ को कह रही थी कि वो तेरी खुशियों का खयाल रखे।"

    और वो दोनो flat से निकल गए और शुभ अकेला रह गया। शुभ दरवाजा बंद करके पलटा ही था कि, रेहान ने दरवाजा खोला और शुभ को पीछे से पकङ कर अपनी बाहों मे भर कर बोला..... "I love you jaan! इतने दिनों से तुम्हें गले लगा कर i love you बोलने का मौका ही नहीं मिल पाया। और बहुत बहुत thanks मेरी अम्मी का इतना खयाल रखने के लिए। अब तो अम्मी भी तुमसे बहुत खुश हैं, इस बार जब मै कानपुर जाऊँगा, तो अम्मी को हमारे रिश्ते के बारे मे जरूर सब बता दूंगा। अब और दिन इंतजार करना ठीक नही रहेगा, वरना पता नही अम्मी और कितनी लङकियों की तस्वीरें इक्खट्टी करती रहेंगी। मैं यूं गया और यूं आया अम्मी को ट्रेन मे बैठा कर। ok!i love you!"

    रेहान बस शुभ को गले लगाने और i love you केहने के लिए ही वापस आया था, और कह कर चला भी गया। लेकिन उसने शुभ के आँसुओं को नही देखा, जो बिना रुके बहे चले जा रहे थे। अगर वो शुभ को अपनी तरफ पलट देता, तो शायद वो ना होता जो होने जा रहा था। रेहान ने शुभ की उस मायूसी को नहीं समझा, जो उसे छोङकर जाने के खयाल से ही शुभ के चेहरे पर कई दिनों से घर किए हुई थी। रेहान ये नहीं जानता था कि उस दिन एक नहीं दो सवारियां स्टेशन गईं थी। पैकिंग सिर्फ अम्मी की नहीं , शुभ की भी हो चुकी थी। और ये उसकी आखिरी मुलाकात थी जो वो शुभ से करके गया था। इन सब से अन्जान जब रेहान अम्मी को रवाना कर वापस घर आया तो उसने hall की मेज़ पर एक खत रखा हुआ पाया। खत को हाँथ मे लेकर उसने शुभ को आवाज भी लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। और उसने खत पङना शुरू किया। 



"Dear Rehan,
     अगर तुम ये खत पङ रहे हो, तो इसका मतलब है कि मैं इस घर से, इस शहर से और तुम्हारी जिन्दगी से जा चुका हूँ। Please मुझे गलत मत समझना और मुझसे नफरत मत करना, मैं ये हमारे परिवारों की खुशी के लिए कर रहा हूँ। तुम अच्छे से जानते हो कि हमारे रिश्ते को हमारे घरवाले कभी भी नही अपनाऐंगे। अगर हम उन्हें बता भी दें, और वो लोग हमें हमारे तरीके से रहने की अनुमति भी दे दें, लेकिन फिर भी हम उन्हें वो खुशी कभी नही दे पाऐंगे, जिसकी उन्हें हमसे उम्मीद है। अपने परिवारों को दुखी रख कर हम कैसे अपनी दुनियाँ सजा सकते हैं। इसलिए बेहतर यही होगा कि हम अपने रास्ते अलग कर लें, और अब वक्त आ गया है कि अब हम अपने बारे मे ना सोच कर अपने परिवार वालों की खुशी के लिए कुछ करें। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, और अगर ये सब बात मे तुम्हारे सामने करता तो शायद तुम मुझे कुछ समझाते और मैं वो समझ भी जाता, और तुमसे दूर कभी भी ना जा पाता। इसलिए मैने यही रास्ता सही समझा। मैं जानता हूँ, तुम्हें बहुत दुख होगा, मुझ पर बहुत गुस्सा भी आऐगा, लेकिन ठण्डे दिमाग से सोचना, तो तुम्हें मेरा ये फैसला सही लगेगा। Please मुझपे ज्यादा गुस्सा मत करना, मैं नहीं चाहता कि तुम मुझे अपनी कङवी यादों में सहेज कर रखो। हमने जो वक्त साथ बिताया, वो मेरी जिन्दगी का सबसे प्यारा समय था, और मै जानता हूँ कि तुम भी यही मेहसूस करते हो, तो इस वक्त को बस एक हसीन सपना ही समझो, और मुझे भी इन हसीन यादों का हिस्सा बने रेहने देना। मैने तुम्हारी अलमारी सही से लगा दी है, तो दो या तीन हफ्ते तुम्हे कोई परेशानी नही आऐगी। हाँ, लेकिन अब तुम्हें सुबह जल्दी उठने की आदत डालनी पङेगी। मैने अलार्म घङी भी तुम्हारी तरफ वाली मेज़ पर रख दी है। खाना तुम्हें खुद बनाना पङेगा, मैं नही चाहता कि बाहर का खाना खा कर तुम बीमार पङ जाओ। इस लिए जो जो तुम्हें पसंद है उन सबकी recipe book  मैने किचिन मे ही रख दी है। और हाँ, मेरे चक्कर मे देवदास बनने के बारे मे बिल्कुल मत सोचना, क्योंकी beard look तुम पर बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। अम्मी बता रही थी कि उन्होंने एक दो लङकियाँ देख रखी हैं, कोई भी पसंद करके शादी कर लेना, और अपनी पत्नि को बहुत सारा प्यार देना। हमारे रिश्ते का असर अपनी आगे की जिन्दगी पर मत पङने देना। मैं ग्वालियर नही जाउगा, मैने एक company मे apply कर दिया था, और उन्होने मुझे  job offer भी कर दी है, तो मैं सीधे वहीं जाऊंगा। please मुझे डूंडने की बिल्कुल कोशिश मत करना, तुम्हें मेरी कसम। हो सकता है मेरे घरवाले तुम्हें कभी कभी फोन करे, तुमसे बात करने का मन करें, तो उन लोगो को इस बारे मे कुछ मत बताना और उनसे मेरे बारे मे जानने की कोशिश भी मत करना। मैं जानता हूँ कि ये सब कर के मैने तुम्हें बहुत बङा दुख दिया है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे समझोगे और मुझे माफ भी कर दोगे। और हाँ एक बात हमेशा याद रखना कि मै तुमसे बेहद प्यार करता हूँ, और हमेशा करता रहूँगा। I Love you"





आगे कि कहानी क्या मोङ लेकर आऐगी, जानने के लिए जुङे रहे रेहान और शुभ के साथ।

Lots of love
Yuvraaj ❤ 
         
  




Thursday, August 9, 2018

""मित्र"" Part - I

Hello friends! Here my another naration which is based on a real incident. Hope you all connect with this story too and love it like my previous ones.

       मेरी ये कहानी है, ग्वालियर के रेहने वाले एक सहज और असाधारण लङके "शुभ" की। मैने शुभ को असाधारण इसलिए बताया है, क्योंकी वो एक बहुत ही अच्छा बेटा, भाई, पोता, भतीजा और मित्र भी है। इन सभी रिश्तों को प्यार की भावना से निभाने वाला इंसान तो शायद इस तरह की कहानियों मे ही हो सकता है। अपने माँ बाप की हर बात मानने वाला, अपने भाई - बहनों के साथ बहुत ही प्यार से रेहने वाला, अपने दादा - दादी की आँखों का तारा और अपने चाचा - चाची का दुलारा, एसा है हमारा "शुभ" , तो हुआ ना एक असाधारण लङका। लेकिन ये कहानी किसी और रिश्ते से ज्यादा शुभ के मित्रता के रिश्ते को बताती है।

       वैसे तो ये हर साल का रिवाज़ ही हो गया था, शुभ का  result आते ही सारा परिवार बङे ही हर्ष के साथ सारे मोहल्ले, सारे नाते - रिश्तेदारों में मिठाईयाँ बाटता था। लेकिन आज का जश्न तो देखने लायक ही था। गाजे बाजे के साथ, नाच गाते हुए, शुभ को कंधों पर बैठाए हुए, खूब सारी फूल मलाएँ पेहनाए हुए, स्कूल से घर लाया जा रहा था। आखिर ये जश्न का माहोल होता भी क्यों ना, हमारे शुभ ने 12वीं कक्षा मे पूरे चंबल संभाग मे top किया था। उसके घरवाले तो खुश थे ही, लेकिन उसके अच्छे व्यवहार के कारण, उसके स्कूल का कोई भी सहपाठी, उसकी इस सफलता से ईर्ष्या नहीं कर रहा था। किसी को भी शुभ की सफलता से जलन नहीं थी, बल्कि वे सभी नाच गा रहे थे। आज के इस competitive समय मे भी एसा कर दिखाया था, शुभ के अच्छे व्यवहार और सबके प्रति मित्रता के भाव ने। इसीलिए तो मैने शुभ को एक असाधारण लङका कहा था। हमारे शुभ में एक जादू था जिससे वो चन्द पलों मे किसी को भी अपना बना लेता था, और कोई भी शुभ की तरफ आकर्षित हुए बिना नही रेह सकता था। शुभ अपने स्कूल का head boy भी था, प्रत्येक बच्चे की परेशानी को दूर करना उसकी जिम्मेदारी थी, और उसने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया था। इसलिए स्कूल से grand farewell party के बाद गाजे बाजे के साथ शुभ को स्कूल से विदा किया गया था। English के शब्दों humble and down to earth शुभ के व्यक्तित्व के सटीक उदाहरण हैं। शुभ का ये अच्छा व्यवहार उसके माता पिता की अच्छी पर्वरिष का ही नतीजा है। 

       शुभ की  इस सफलता से सभी बेहद खुश थे, सिवाय एक ईंसान के। और वो खुद शुभ ही था। एसा नहीं था कि वो अपने 12वीं के result से नाखुश हो, वो दुखी था अपने आने वाले IIT के result से, वो उदास था तो सिर्फ ये सोच कर कि IIT के result के बाद उसे अपना घर परिवार, अपने दोस्तों को छोङ किसी दूसरे शहर जाना पङेगा। शुभ के पापा की इच्छा थी कि शुभ किसी अच्छे college से engineering करे। शुभ भी एसा ही करना चाहता था, इसलिए उसने खूब मेहनत करके IIT का exam दिया था और उसे पूरा भरोसा था कि वो IIT पास कर किसी अच्छे college मे admission भी ले लेगा। वो दुखी तो केवल सबको छोङ के जाने के एहसास से था।

       शुभ के इस अच्छे व्यक्तित्व के अलावा उसका एक और पेहलू भी है, जो किसी को भी नही पता। शुभ gay है, और उसे ये बात 4 साल पेहले ही पता चली, जब वो 13 साल का था। हुआ यूँ, कि शुभ अपने परिवार के साथ एक रिश्तेदार के यहाँ शादी मे गया था। एक तो शादी का घर, ऊपर से सभी रिश्तेदार बङे अरसे के बाद आपस मे मिले थे, तो चारों तरफ बस ढेर सारी बातों, हँसी - ठिठोली और खुशी का माहौल था। सभी बच्चों ने भी अपनी अलग ही टोली बना रखी थी, जिसमे वे सभी नए नए खेल इज़ाद कर रहे थे। शुभ भी खोया हुआ था खेल में। वरना ग्वालियर मे उसे ये मौका कम ही मिल पाता था, क्योंकी पापाजी को तो बस engineering का ही भूत सवार था, तो शुभ को अपना सारा समय अपनी किताबों के साथ ही बिताना पङता था। रात को भी सारे बच्चों ने अपने बिस्तर अलग कमरे में ही लगाए थे। बीना वाली बुआ का लङका बन्टी, होगा यही 15 - 16 साल का, वो शुभ के पास ही लेट गया। अब उसने पेहले से ये सब सोच रखा था या अचानक एसा हुआ, ये तो मुझे भी नहीं पता, लेकिन जब रात को सब सो गए, तो उसने शुभ के ऊपर हाँथ रखा और शुभ के शरीर को सहलेने लगा, शुभ के हर एक अंग को छूने लगा, दबाने लगा। शुभ के साथ आज तक एसा नहीं हुआ था और वो भी मदहोश होने लगा। बन्टी के हाथों की ये छुअन शुभ को आनन्द की अनुभूती करा रही थी। फिर अचानक बन्टी के हाथ थम गए और वो करवट लेके सो गया। शुभ ने सोचा कि बन्टी नींद मे एसा कर रहा होगा, और शुभ भी अपने मन की बङती तरंगो को थाम सो गया। लेकिन इस नए एहसास ने शुभ के मन में घर कर लिया था। वापस ग्वालियर आकर शुभ ने internet पर वो सब खोजा जो आज से पेहले उसने सोचा भी नहीं था। और वहीं से उसे अपने और अपनी भावनाओं के बारे मे पता चला। कभी कभी रात में, कभी नहाते वक्त, बन्टी के बारे में सोच कर शुभ हस्थमैथून भी कर लिया करता था।

     आखिर वो दिन आ ही गया। सारा घर बेहद खुश था, सारे मोहल्ले मे फिर से मिठाईयाँ बांटी जा रही थीं। सारे रिश्तेदारों को फोन पर खुशखबरी सुनाई जा रही थी। आखिर IIT का result जो आया था और शुभ को IIT Delhi में Computer Science ब्रांच जो मिल गई  थी।शुभ भी बेहद खुश था, सिर्फ इसलिए नहीं की भारत के सबसे अच्छे colleges में से एक college मे उसे admission मिल गया था, बल्कि इसलिए कि पापा ने अपने पसंद की ब्रांच Mechanical के वजाय शुभ को उसके पसंद की Computer Science लेने दी थी। शुभ सभी को छोङ कर जाने के खयाल से दुखी तो था ही, लेकिन नया college, नया शहर और नई life की anxiety ने इस दुख को ज्यादा देर रेहने नहीं दिया। पापा और चाचा के साथ शुभ दिल्ली आ गया। College की सारी formalities पूरी करने के बाद शुभ पापा और चाचा का आर्शिवाद लेकर hostel की ओर चल दिया और पापा और चाचा जी ने वापसी की अपने घर की ओर। अपना भारी बैग और बैडिंग लिए भीङ को चीरता हुआ शुभ पहुँचा notice board पर और अपने hostel और room के बारे मे पता कर चल दिया अपने room की ओर। तभी पीछे से किसी ने उसे आवाज़ लगाई......

        "Hey! Hello! शुभ........"

            शुभ ने पीछे पलट कर देखा तो एक गोरा - चिट्टा लङका उसे हाथ दिखा कर उसी की ओर आ रहा था। उसके पास भी एक बङा सा बैग और बैडिंग और guitar था। घुघंराले से बाल, पतला लम्बा चेहरा, तीखे नैन नख्श, और लम्बाई में शुभ से 2, 3 इंच लम्बा होगा। शुभ के पास आकर उसने शुभ की ओर हाँथ बङाया और खुद का परिचय दिया।

       
       "Hey! I am Rehan, your room mate."

        शुभ ने भी अपना हाँथ आगे बङा कर उससे हाँथ मिलाया। लेकिन वो नहीं समझ पा रहा था कि इस लङके ने उसे कैसे पेहचाना, और उसका नाम उसे कैसे पता चला। तमाम प्रश्नवाचक चिन्ह अपने चेहरे पर बनाए, शुभ ने उससे पूछा.....

          "Hi! लेकिन तुम्हे कैसे पता चला कि मेरा ही           नाम शुभ है और मे तुम्हारा room mate हूँ?             किसी दूसरे notice board पर नाम के साथ           photo भी लगा है क्या?"

      शुभ के इस प्रश्न को सुनकर रेहान हँसने लगा और बोला..... "नहीं यार! कहीं कोई फोटो नही लगा। वो तो जब तुम room list check कर रहे थे, मैं भी वहीं था, और जब तुम 21C! 21C! बङ बङा कर वहां से निकले तो मैने सुन लिया, और तुम्हारा नाम तो list में था ही। simple!"

       ये सुनकर शुभ भी मुस्कुरा दिया और बोला... "Ok! और में बङ बङ नहीं रहा था, मैं बस याद रखने के लिए बोल रहा था।" फिर शुभ ने रेहान के guitar की तरफ देख कर बोला.... "Nice! Are you a singer??"

     शुभ का सवाल सुनकर रेहान मुस्कुराया और बोला......  "Hmmmm! Quit one!!! बस थोङा बहुत शौक है।"

     फिर शुभ ने थोङे मज़ाकिया अंदाज़ में कहा....... "चलो अच्छा है, bore तो नहीं होना पङेगा यहां hostel में।" और दोनों हँसते हुए अपने hostel 21C की ओर चले जाते हैं।

    आईए आपको मिलाता हूँ, हमारी कहानी के दूसरे किरदार "रेहान" से। रेहान कानपुर शहर का रेहने वाला है, और पङने में बहुत ही होशियार है, तभी तो IIT Delhi में है। उसके परिवार में उसकी अम्मी और एक छोटा भाई है। रेहान 14 साल का था जब उसके अब्बू का इंतकाल एक road accident में हो गया। अब्बू की मौत के बाद उनके परिवार वालों ने भी इन लोगों से मुँह मोङ लिया। जब सर पर बाप का साया ना हो और साथ देने वाला भी कोई ना हो तो बच्चे कम उम्र में ही बङे हो जाते हैं। अब्बू के इंतकाल से पहले रेहान और उसका परिवार अपने अब्बू के परिवार के साथ कानपुर में उनके पुश्तैनी मकान मे रहते थे। सराफे मे उनके परिवार की काफी नामदार सुनार की दुकान थी, और सारे परिवार का खर्चा पानी उसी दुकान से चलता था। लेकिन अब्बू की मौत के बाद रेहान के चाचा ने सारी दुकान अपने नाम करा ली और अपने बङे भाई की बेवा और उसके बच्चों की जिम्मेदारी से भी पल्ला झाङ लिया। कहीं कोई आस ना देख रेहान की अम्मी अपने दोनो बच्चों को लेकर अपने वालिद के घर कानपुर आ गई। कानपुर में भी अपने अब्बू और भाईजान के ऊपर बोझ ना बनें, इसलिए उन्होंने घर से ही सिलाई का काम शुरू कर दिया। हाँथ में सफाई की वजह से उन्हें काम भी अच्छा मिलने लगा। धीरे - धीरे रेहान और उसके भाई की जिम्मेदारी उसकी अम्मी ने बखूबी उठा ली। बाप का साया ना होने के बावजूद, दोनों बच्चों को अच्छे से अच्छी तालीम मिले, इस बात का खास खयाल रखा। और देखते ही देखते उन्होंने अपना बुटीक भी शुरू कर दिया। रेहान भी स्कूल के बाद अपनी अम्मी का हाँथ बटाने आ जाता था, लेकिन उसकी अम्मी को ये बिल्कुल मंजूर नही था। दोनों बच्चों के सर पर बाप का साया नही है, एसा उन्होंने कभी मेहसूस नहीं होने दिया, और इस सफर मे रेहान की अम्मी के अब्बू, उनके भाईजान और उनके परिवार ने उन लोगों का पूरा साथ निभाया। लखनऊ में तो रेहान को बस खेलने - कूदने और गाने का शौक था, पङाई तो जैसे तैसे हो ही जाती थी। लेकिन बदले हालातों ने रेहान के मन पर गेहरा असर किया था, और उसने ठान ली थी की वो बङा होकर खूब सारे पैसे कमाएगा और अपनी अम्मी को बिल्कुल भी काम नही करने देगा और अपने चाचा को भी सबक सिखाऐगा।ये जुनून ही था जो उसे IIT, Delhi ले आया था, लेकिन इस सब मे उसके गाने के शौक ने उसका साथ नहीं छोङा था। 

     रेहान के मामू, उसकी अम्मी को बार - बार उनके हक के लिए लङने के लिए कहते थे, लेकिन वो हमेशा बस एक ही बात कह कर उन्हें चुप करा देतीं थी..... "अल्लाह सब देख रहा है भाईजान, वो किसी के साथ बुरा नहीं करता, और बुरा करने वालों को कभी माफ नहीं करता।"  उन्होंने सब ऊपरवाले के हाथों में छोङ दिया था और अपने बच्चों की परवरिश मे मशगूल हो गई थीं। उनके भाई ने दोबारा घर बसाने का भी कई बार जिक्र किया, पर रेहान की अम्मी ने ये बात कभी नही मानी, और उन्होंने अपनी मेहनत से ये साबित भी कर दिया कि वे अकेले ही काफी हैं अपने बच्चों को पालने पोसने के लिए।

       रेहान थोङे गुस्से वाला लङका था। अगर आप प्यार से पेश आएं तो वो अपनी जान भी हाज़िर कर दे, लेकिन अगर आप उसे अपनी अकङ दिखाए तो वो आपको आपके घुटनों पर ही ला कर छोङे। लेकिन अब्बू के इंतकाल के बाद रेहान बहुत ही समझदार और परिपक्व हो गया था। अपने गुस्से पर काबू करना भी सीख गया था। दिखने मे तो माशहअल्ला बहुत ही खूबसूरत था, इसलिए कई लङकियां मरती थी उस पर। लेकिन उसने अपने दोस्तों को लङकियों के पीछे भागते, उन पर पैसा खर्च करते देखा था, और अपनी अम्मी के हालातों को समझते हुए उसने ऐसी कोई भी भावना अपने मन में आने ही नही दी, और किसी भी लङकी की तरफ उसने आँख उठा कर नहीं देखा। हालांकी उसके दोस्तों ने उसे उकसाने की बहुत कोशिशें की, रेहान को blue films भी दिखाई, जिससे उसकी मर्दानगी को जगाया जा सके। लेकिन रेहान के ईरादे तो मजबूत थे, उसे पता था उसे अपने जीवन में क्या करना है। IIT पास करना, अच्छे college में admission लेना, ये सब तो बस उस लक्ष्य तक पहुँचने का रास्ता था।

     आईए वापस चलते हैं अपनी कहानी की ओर। College का पेहला दिन था! Auditorium में college के Director सभी नए विद्यार्थियों को उनके शिक्षकों से परिचित करवा रहे थे। Director sir "V. Ramgopal Rao" ने आज की assembly को अपनी speech से खत्म किया......
      Rao - "You all are here, because you all are good in your academics. But this institute is excellent in India. So from now it doesn't matter, how good you are. My faculty will make you excellent in your fields. All organisations has their own rules, so we also have some, which you all know by your concern faculty. But one main rule, which is related to me, I wanna expalin that to all of you, so please listen very carefuly, this rule is going to make your future in this institute. If any one will presented to me thrice, in his or her entire four years, for his or her bad behaviour or breaking some rules or for any bad reason, that day is the last day of his or her in this institute. And i think you all are aware of, what happen to his or her life when after rusticated from some institute. So enjoy your first day in college and get ready for your four years."

        First day के लिए सभी खुश तो थे, लेकिन Director sir के ऐसे खतरनाक भाषण ने सबको serious जरूर कर दिये था। आज कोई class नही थी, लेकिन सभी को उनके concern department में report करना था, अपना sylabus और academic plan लेना था। बाकी के जरूरी काम जैसे - identity card, library card, mess card ये सब तैयार करवाने थे। सभी अपने classmates से परिचय कर रहे थे। रेहान और शुभ दोनों एक दूसरे को थोङा बहुत जान ही गए थे। रेहान के खर्राटों ने शुभ को सही से सोने भी नहीं दिया था। रेहान और शुभ साथ में ही अपने सारे काम निपटा रहे थे। दोपहर तक सारा काम खत्म हो गया, तो दोनों चल दिये canteen की ओर, खाना खाने के लिए। Canteen के अंदर के नज़ारे ने दोनों की मुस्कुराहट को उङन छू कर दिया था। अंदर सभी first year के students एक line में हाँथ में कटोरा लेकर खङे थे, और बारी बारी से canteen के counter पर बैठे कुछ लङके लङकियों के सामने जा रहे थे। तभी एक लङके ने शुभ से पूछा...... 

    " First year????"

      शुभ को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है, और वो कुछ बोल ही नही पाया। उस लङके ने एक बार फिर से लेकिन थोङा चिल्ला के पूछा.....

           "First year???"

   शुभ इस बार भी चुप ही खङा रहा, उसका दिमाग ही काम नही कर रहा था, उसे समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या जवाब दे। तभी रेहान शुभ को पीछे कर खुद आगे आया और उस लङके को जवाब दिया.....

      "हाँ! हाँ! First year."

     रेहान की बात सुनकर वो लङका मुस्कुराया और बोला...... "तो यहां खङे होकर क्या तमाशा देख रहे हो, तुम दोनों भी लग जाओ line में"

   उसकी बात मानने के अलावा दोनों के पास कोई चारा भी नहीं था। दोनों ने अपने bag एक table पर रखे, कटोरा हाँथ में लिया और बाकी students के साथ line में लग गए। रेहान ने line में लगे अपने आगे वाले लङके से पूछा.... "कौन हैं ये लोग, हो क्या रहा है यहाँ???"

      उस लङके ने जवाब दिया.... "Ragging!!!"

   रेहान ने फिर पूछा.... "और ये कटोरे का क्या मसला है????"

    उस लङके ने जवाब दिया.... "वहाँ आगे जाके कुछ भी करके इन लोगों को entertain करना है, अगर ये लोग खुश हुए तो खाना खाने देगें, वरना आज का खाना गया।"

   उसकी बात सुनकर रेहान ने अपने पीछे खङे शुभ की ओर मुँह किया और बोला..... "चलो देखते हैं क्या करवाते हैं, खाना तो खाकर ही जाऐंगे।" और वो शुभ को देख कर मुस्कुरा दिया। शुभ के चेहरे पर tension साफ देखी जा सकती थी। उसने एसा माहौल पेहले कभी देखा ही नहीं था और उस लङके की बात सुनकर तो शुभ ने अपना मन बना लिया था कि आज तो उसे भूखा ही रेहना पङेगा क्योंकि उसे तो ऐसा कुछ खास नहीं आता जिससे वो seniors को entertain कर सके। लेकिन रेहान को मुस्कुराता देख उसने भी रेहान को smile pass कर दी। धीरे धीरे line आगे बङने लगी। कोई नाच रहा था, कोई गा रहा था, कोई acting कर रहा था और कोई किसी की नकल उतार रहा था। Seniors को जिसका कारनामा भा जाता वे उसे खाना खाने भेज देते, और जिसका नहीं पंसद आता उसका मज़ाक उङा कर canteen से भगा देते। कुछ ही देर मे रेहान और शुभ का नम्बर भी आ गया। 

   रेहान ने आगे आकर अपना कटोरा पास की table पर रखा और सबको  hello बोला और अपना गाना शुरू ही करने वाला था कि एक senior ने उसे रोक दिया और बोली.... " रूको यार!  इतनी भी क्या जल्दी है। ये सब देख कर तो अब हम bore हो गए हैं, अब तुम कुछ अलग करो"

   रेहान ने बङी ही सहजता से उस senior से ही पूछ लिया.... "तो mam आप ही बता दिजिए मैं क्या करूं।"

 इस पर वो senior बोली.... "Couple Dance!!!!" और उसने शुभ की तरफ देख कर उसे हाथ से इशारा करते हुए बोली..... "Hey तुम!!! आगे आओ।"   

   शुभ हिचकिचाता हुआ आगे आया और रेहान के पास जा कर खङा हो गया। उस senior ने शुभ के हाँथों से कटोरा लिया और रेहान कि तरफ देख कर बोली..... "ये है तुम्हारा partner!!! इसके साथ तुम गाना गा कर couple dance करो।" और हँसते हुए अपनी जगह पर जा कर बैठते हुए बोली.... "गाना भी romantic होना चाहिए।"  उसकी ये हरकत देख वहाँ मौजूद सभी seniors हँसने लगे।

   रेहान और शुभ एक दूसरे देखने लगे और सोचने लगे कि अब क्या करें। तभी एक senior ने आवाज दी..... "चलो, चलो शुरू करो। और लोग भी है line में" रेहान ने आगे बङ कर शुभ का right hand अपने left hand मे पकङा और उसका left hand अपने right shoulder पर रख, अपना right hand शुभ की कमर पर रख उसे थोङा अपनी ओर खींचा। शुभ तो रेहान की इस हरकत पर अचंभित सा रह गया। पेहले तो उसने अपनी आँखे फाङ कर अपने और रेहान के हाँथों को देखा और फिर रेहान के चेहरे की तरफ देखा। रेहान ने भी शुभ को देख कर आँख मारी और smile pass की और बोला.... "चलो इनको entertain करे और खाना खाएँ, बहुत तेज भूख लग रही है" और रेहान शुभ के साथ थोङा बहुत dance करने लगा और अपना गाना शुरू किया.....

"सुलगी सुलगी साँसे, बेहकी बेहकी धङकन
मेहके मेहके शाम के साये, पिघले पिघले तनमन
और इस पल में कोई नहीं है
बस एक मैं हूँ
बस एक तुम हो
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो
क्या केहना है, क्या सुनना है
मुझको पता है, तुमको पता है 
समय का ये पल, थम सा गया है
और इस पल में, कोई नहीं हैं
बस एक मैं हूँ, बस एक तुम हो"

       जब रेहान ने गाना - गाना बंद किया तो एक दम शांती छा गई और सब लोग बस उन दोनों को ही घूरे जा रहे थे। शुभ तो सारे समय बस रेहान की आँखों मे ही देखे जा रहा था, और रेहान का गाना सुगकर तो वो खो ही गया था। वो भूल गया था कि वहाँ और भी लोग हैं जो उन्हे देख रहे हैं। वो तो बस मंत्र मुग्ध हो कर बस रेहान को ही देखे जा रहा था। फिर अचानक तालियों की आवाज से शुभ का ध्यान टूटा और उसने खुद को रेहान से दूर किया और बाकी लोगों के साथ मिलकर वो भी ताली बजाने लगा, लेकिन उसका सारा ध्यान सिर्फ रेहान के ऊपर ही था। वहीं रेहान झुक झुक कर सबका धन्यवाद करने लगा। Seniors भी जो अब तक वहाँ ragging ले रहे थे सब भूल कर रेहान के पास आ कर उससे हाँथ मिलाने लगे और उसे घेर कर उसकी तारीफ करने लगे। इस सब शोर शराबे मे शुभ कहीं पीछे छूटता जा रहा था, उसने अपना bag उठाया और वहाँ से भाग कर सीधे अपने hostel के room मे आ गया। 

    शुभ अपने room में तो आ गया था लेकिन वो अपना मन वहीं canteen में  छोङ आया था। शुभ की आँखों मे अभी भी रेहान का गाता हुआ चेहरा और कानों में रेहान का गाना ही घूम रहा था। वो रेहान के लिए अभी जो मेहसूस कर रहा था, ये एक नया एहसास था, कुछ खास था। शुभ अपने पलंग पर लेटा छत की तरफ देख कर वही सब सोचे जा रहा था जो canteen में हुआ। उसने पेहली बार रेहान को इतने करीब से देखा था, उसे पेहली बार एसे छुआ था। वो इसी उधेङ बुन मे उलझा था कि कब वहाँ रेहान आ गया, उसे पता ही नही चला। रेहान ने शुभ को  आवाज भी लगाई, लेकिन शुभ तो अपने खयालो मे एसा खोया हुआ था मानो किसी दूसरी दुनिया की सैर पर ही निकल गया हो। फिर रेहान ने उसके पास जाकर उसे हिलाया, तब कहीं जाकर वो अपनी दुनियाँ मे वापस आया। शुभ को हिलाते हुए रेहान बोला.... "कहाँ खोया हुआ है???? मैं कबसे आवाज भी दे रहा हूँ लेकिन सुन ही नहीं रहा।" 

   पलंग से उठते हुए शुभ बोला..... "नहीं कुछ नहीं!!! बस लेटा हुआ था तो कुछ सोचने लग गया।" रेहान ने फिर शुभ से सवाल किया..... "और कहाँ चला गया था canteen से?? मैने बहुत डूँडा लेकिन कहीं मिला ही नहीं?? और खाना भी खाया या नहीं???"  अपनी  study table की ओर जाते हुए शुभ बोला..... "नहीं भूख नहीं थी और थक भी गया था तो मैं room में ही आ गया।"     अपने bag से choclate निकाल कर शुभ की तरफ  बङा कर रेहान बोला..... "ok! लेकिन बता कर तो आता मैं वहाँ डूँड रहा था। चल ये choclate खा ले तुझे अच्छा लगेगा।"


   रेहान की तरफ देख कर शुभ बोला...." Thanq!!! लेकिन इसकी कोई जरूरत नहीं, मुझे सच में भूख नहीं।"      शुभ का हाथ पकङ कर उसके हाथ मे choclate रख कर रेहान बोला.... "हाँ ठीक है, जब मन हो तब खा लेना। एक senior ने दे दी थी मेरा गाना सुन कर और मुझे choclate बिल्कुल भी पसंद नही, इसलिए तुझे ही खानी पङेगी। और मेरा गाना कैसा लगा????"

  Choclate को table पर रखते हुए शुभ बोला..... "hmmmmm!! बहुत अच्छा। मुझे लगा नहीं था कि तुम्हारी इतनी अच्छी आवाज होगी।"     इस पर थोङा मजाक करते हुए रेहान बोला..... "अभी तुझे मेरे बारे मे कुछ पता ही कहाँ है, धीरे धीरे मैं भी तुझे अच्छा लगने लगूगा।"



 क्या रेहान भी gay होगा, या शुभ का दिल टूटेगा। आगे की कहानी जानने के लिए please stay connected with my blog. Next part will be out in 7 or 8 days.


Lots of Love
Yuvraaj ❤
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

   

Shadi.Com Part - III

Hello friends,                      If you directly landed on this page than I must tell you, please read it's first two parts, than you...