Monday, January 11, 2021

क़सम

Hello friends,

                      I am again here to present my new story "कसम".  Hope you like my this creation as well. 




प्यार!!! एक ऐसा शब्द जिसे ना तो किसी तरीके से नापा जा सकता है, और ना ही तौला। एक ऐसा एहसास जो हर रिश्ते के साथ अपनी अलग अलग भूमिका निभाता है। माँ के साथ ममता बन जाता है, दोस्त के साथ दोस्ती और प्रेमिका के साथ प्रेम। दिल से दिल तक का एक अनदेखा और अनोखा रिश्ता, प्यार!!! इस रिश्ते से ही सृष्टि की शुरुआत भी हुई, और आज के आधुनिक युग तक आते आते, इस रिश्ते की कई अनेकों रूप हम सब को देखने और सुनने को भी मिले। सभी ने अपनी सहूलियत, अपने रहन सहन, अपने आस पड़ोस के माहौल के हिसाब से, इस प्राकृतिक रिश्ते को कई पाबंदियों में भी कैद किया। इस रिश्ते के इर्द गिर्द घूमते, कई कहानी - किस्से भी सुनने को मिले। अधूरे और मुकम्मल प्यार की दुहाइयाँ भी सुनने को मिली। लेकिन क्या आपको लगता है, की इस सुंदर से रिश्ते को किसी भी तरीके की दीवारों में कैद करना सही होगा?? और कैद करने के बाद भी, क्या यह प्राकृतिक रिश्ता, उस कैद से बाहर आने का अपना अलग रास्ता नहीं खोज पायेगा??? चलिए मानते हैं कि इस विषय पर हर किसी के अपने अपने अलग मत हो सकते हैं। लेकिन क्या कोई मुझे अधूरे और मुकम्मल प्यार की परिभाषा बता सकता है। क्या कोई बता सकता है, की दो इंसानों के बीच पनपा यह खूबसूरत रिश्ता कब अधूरा रह जाता है? उनके अलग हो जाने पर, उनके बिछड़ जाने पर?? क्या प्यार की कोई सीमा होती है?? अगर प्यार की कोई सीमा ही नही है, तो दो लोगों के अलग होने पर भी उनके बीच का प्यार अधूरा कैसे? और अगर प्यार की सीमा होती है, तो वो आखिरी सीमा क्या है? ये कई ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर देने के लिए जरूरी नही की आपको भी प्यार के रिश्ते में बंधना जरूरी हो। प्यार ही तो एक ऐसा एहसास है, जो हर किसी को अपने हिसाब से उसे परखने की अनुमति देता है। इसी प्यार और ऐसे ही कई सवालों को उठाती मेरी ये कहानी " कसम " आपके सामने प्रस्तुत है। मैं आशा करता हूँ, की आपको मेरी यह कोशिश भी पसंद आएगी।



       मुंबई जितना अपनी तेज रफ्तार से भागती जिंदगी के लिए प्रसिद्ध है, उतना ही शांत और खामोशी के साथ, भीड़ में खो जाने के लिए भी मशहूर है। अगर कोई अपनी पिछली जिंदगी को भुला कर, नई जिंदगी को शुरू करने के लिए, सारे रिश्ते नातों को पीछे छोड़, नए रिश्तो की तलाश में, मुंबई शहर में खो जाना चाहता है, तो यह शहर भी उसका अपनी खुली बाहों से स्वागत करता है। ऐसा ही स्वागत इस शहर ने किया था, रोहन का। रोहन कुछ सालों पहले ही मुंबई के G M C कॉलेज में अपनी MBBS की पढ़ाई के लिए आया था। MBBS पूरी करने के बाद, GMC से ही अब अपनी 1 साल की इंटर्नशिप भी पूरी करने वाला था। ये उसके इस शहर में 6 साल खत्म होने को थे, और शायद उसकी किस्मत का एक नया अध्याय शुरू होने को। रोहन को कुछ हफ्तों में ही प्लेसमेंट में बैठना था, और इसी घबराहट में वो कैंपस से बाहर निकल कर कुछ देर के लिए टहलने चला आया था। जब उसने वापस अपने होस्टल की और जाने का सोचा, तो बहुत देर हो चुकी थी। देर रात होस्टल से बाहर रहने के लिए अगर वार्डन ने पकड़ लिया, तो आज तो रोहन की खैर नही थी। होस्टल की ओर वापसी के लिए रोहन ने अभी कुछ कदम ही लिए थे कि, उसे एक तेज़ रफ़्तार से आती हुई कार की आवाज़ सुनाई दी। उसने सर उठा कर चारों तरफ देखा, तो एक कार बड़ी ही तेजी से, उसके सामने वाली रोड से चली आ रही थी। कार की आवाज़ और उसकी स्पीड को देख कर साफ समझ आ रहा है कि इसके ड्राइवर ने कार पर से कंट्रोल खो दिया है, और कार का एक्सीडेंट होना तय है। रोहन के देखते देखते ही वो कार रोहन को पार करके कुछ ही दूरी पर बने रोड डिवाइडर से, बुरी तरह जा टकराई। टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि, कार डिवाइडर से टकराते ही 2 - 3 फुट ऊपर उछल कर रोड के दूसरी ओर उल्टी जा गिरी। कार की हालत को देखते हुए, उसे चलाने वाले कि हालत का अंदाजा लगा पाना ही मुश्किल था। देर रात की वज़ह से कम ही लोग उस समय रोड पर मजूद थे, वरना इस घटना में जख्मियों की संख्या भी बढ़ सकती थी। रोहन ने अपनी सूझ बूझ से तुरंत एम्बुलेंस को फ़ोन कर, घटनाक्रम और इमएजेंसी का व्यख्यान किआ। और अपनी प्राथमिक चिकित्सा की योग्यता का सही उपयोग किया।


     रोहन भाग कर उस कार तक पहुंचा, और कार के अंदर बैठी सवारियों की हालत का जायज़ा लिया। उसे ड्राइवर सीट के अलावा कोई और व्यक्ति उस कार में नज़र नही आया। वो तुरंत ड्राइवर सीट की तरफ भागा, और कार का उस तरफ का गेट खोलने की कोशिश की। इतनी बुरी टक्कर के बाद वो दरवाज़ा जाम हो चुका था, लेकिन वहाँ मौजूद लोगों की मदद से, रोहन वो दरवाजा खोलने में सफल हुआ। दरवाजा खुलते ही ड्राइवर का हाल सबके सामने था। ड्राइवर ने सीट बेल्ट लगाया हुआ था, जिससे उसके बाकी के शरीर मे तो कोई बाहरी चोट रोहन को नही दिखाई दी, लेकिन शायद स्टेरिंग व्हील से सर टकराने की वजह से, उसके सर में गहरी चोट साफ नजर आ रही थी, उसके माथे से खून भी बह रहा था, और वो बेसुध सी हालात में कार की ड्राइविंग सीट पर उल्टा लटका हुआ था। रोहन ने उस ड्राइवर की बॉडी का जल्दी से चेकअप किआ, उसके हाथ की कलाई को पकड़ कर, उसकी धड़कनों का जायज़ा लिया। और लोगो की मदद से उसे कार से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा। जब रोहन ने उसके सीट बेल्ट को खोलकर, ड्राइवर को बाहर निकलने की कोशिश की, तब रोहन के नज़र उस ड्राइवर के चेहरे पर पड़ी। रोहन के मुँह से, भरभराई सी आवाज़ निकली..... "वेद!!!!!"। कुछ पल को उसके हाँथ काँपने लगे। उसकी आँखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा। अभी तक वो जो महज़ डॉक्टर बन कर अपना काम बड़ी ही निपूर्णता से कर रहा था, लेकिन अब इस शख्स को पहचानने के बाद, उसके हांथों ने काम करना ही बंद कर दिया था। उसकी आँखों से आँसुओ की धार बह चली थी। उस शख़्स की नाज़ुक हालत को समझते हुए भी, अगर उसे जल्द जल्द नीचे ना उतारा गया, तो उसके दिमाग मे खून का प्रेशर बढ़ने से उसकी जान बचाने में आने वाली मुश्किलों को भी अच्छे से जानते हुए भी, रोहन का दिमाग एक दम सुन्न हो चुका था। गनीमत हुई कि, एम्बुलेंस वहाँ पहुंच गई, और ड्राइवर को कार से बाहर निकाल लिया गया। रोहन को रोते हुए देख, एम्बुलेंस अटेंडर ने उसे भी साथ हॉस्पिटल चलने को कहा, और रोहन भी रोते हुए बेहवास सा उसी एम्बुलेंस में जा बैठा, जिससे उस ड्राइवर को स्ट्रेचर पर लिटा कर ऑक्सिजन दी जा रही थी। एम्बुलेंस अपनी फुल स्पीड से हॉस्पिटल की ओर दौड़ पड़ी। एम्बुलेंस अटेंडर रोहन से, मरीज के बारे में सवाल पर सवाल किए जा रहा था, लेकिन रोहन बुत बना बस वेद को देखे जा रहा था, और रोये जा रहा था। एम्बुलेंस अटेंडर ने इसे PTSD समझते हुए, जब रोहन की आँखों मे टोर्च की रोशनी से देखा, तो रोहन को एक पुराना किस्सा याद आया।


Flash Back :- 8 साल पहले, आधी रात को, ग्वालियर में रोहन के घर की छत पर।


रोहन :- "यार ये मोबाइल की टॉर्च सीधे मेरी आँखों पर मत डालो, मुझे वैसे ही कुछ नही दिखाई दे रहा है।"


वेद :- "shhhhhhhhhh..... सभी को उठाना है क्या??" (फुसफुसाते हुए)


रोहन :- (धीमी आवाज़ में) "तो किसने बोला था तुम्हे इस वक़्त यहाँ रोमियो जूलिएट खेलने को?? कल से मैं तुम्हारे स्कूल में ही तो आने वाला हूँ, वहीं मिल लेते।"


वेद :- (रोहन के गालों पर अपने हांथ रखते हुए) "मेरा बस चले तो मैं कभी तुमको खुद से दूर ना जाने दूं।"


रोहन :- (हँस कर वेद के हाँथो को झटकते हुए) "सबके सामने मेरा हाँथ तो पकड़ने में डर लगता है, और बाते सुनो बड़ी बड़ी।"


वेद :- "यार मूड मत खराब करो, तुम जानते हो, सब मज़ाक उड़ाएंगे हमारा। चलो अब मुझे एक किस दो जल्दी से।"



      रोहन अपने ख्यालों से तब बाहर आता है, जब उस घायल व्यक्ति को एम्बुलेंस से बाहर निकाला जा रहा होता है। GMC के एमरजेंसी वार्ड के लिए ये कोई नई घटना नहीं थी। यहाँ तो ना जाने कितने ऐसे एक्सीडेंट के मरीज रोज़ लाये जाते हैं। कुछ की हालत गम्भीर और कुछ की बहुत ज्यादा नाज़ुक भी होती है। अब इस घटना ने कितना बुरा असर डाला है मरीज के ऊपर उसी की जांच तुरंत हॉस्पिटल में जाते ही शुरू कर दी जाती है। उधर एमरजेंसी वार्ड के नाईट शिफ्ट का कुछ स्टाफ रोहन को पहचान लेता है। और उससे पूछताछ करने लगता है। "ये कैसे हुआ??" "आपको तो कहीं चोट नही आई है??" "क्या आप मरीज को जानते हो??" इस तरह के कुछ और भी सवाल, बार बार रोहन से पूछे जाते हैं। लेकिन रोहन अपनी आँखों में बस अतीत के आँसू लिये वहाँ चुप चाप खड़ा रहा। तभी वहाँ एक नर्स, उस मरीज के कपड़ों से निकले कुछ सामान को लेकर वहाँ आयी। जिसमे था उसका पर्स, एक रुमाल, एक डाइमंड की रिंग, एक लाइटर और एक सिगरेट की डिब्बी, और एक मोबाइल। रोहन के लिए वो समान देख पाना भर ही बहुत मुश्किल होता जा रहा था। क्योंकि इन सामानों में से कुछ को वो बहुत ही अच्छे से जनता था, और कुछ को उसने खुद खरीदा और खरीदवाने में मदद भी की थी। वो पर्स जिसपे बड़े से अच्छर में V बना हुआ था, उसके उड़ते हुए रंग और उसके निकलते धागों से काफी पुराना सा नज़र आता था। पुराना नज़र आये भी क्यों ना, क्योंकि सच में यह पर्स 7 साल पुराना था। जो कि रोहन ने ही वेद को उसके जन्मदिन पर गिफ्ट दिया था। जैसे ही रोहन ने वो पर्स को अपने हाँथ में लिया उसे वो ग्वालियर के किले की रात याद आ गयी, जब रोहन ने ये पर्स वेद को दिया था।


 

Flash Back :- 7 साल पहले, फरवरी की रात 8 बजे, ग्वालियर किले पर।


वेद :- (आँखे बंद किये हुए) "अरे बाबा!! अब खोलू क्या में अपनी आँखें???"


रोहन :- (हांथों में एक छोटा सा केक और उर पर लगी एक जलती हुई कैंडल लिए) "हैप्पी बर्थडे टू यू, हैप्पी बर्थडे डिअर वेद, हैप्पी बर्थडे टू यू..... "


वेद :- (मुस्कुराकर कैंडल को फूँक मारकर बुझाते हुए) "थैंक्यू मेरी जान!!!! (केक काट कर रोहन को खिलाते हुए) और मेरा बर्थडे गिफ्ट???"


रोहन :- (वेद को केक खिलाते हुए) "सब्र करो, वो भी है, पहले ये केक तो खालो......... हाँ तो ये है आपका Customize Gucci Wallet"


वेद :- (पर्स को घुमा फिरा कर देखकर) "इतने रुपये खर्च करने की क्या जरूरत थी रोहू???? मैं तो अपने बाड़े वाले पर्स से भी खुश हो जाता।"


रोहन :- (हँसते हुए) "बात पैसों, ब्रांड और लोकल वाली नही है वेद, तुम्हारे लिए ये एक छोटी सी चीज लाने में मैंने जितनी मेहनत की है, तुम तो बस उससे मेरे प्यार का अंदाज़ा लगाओ।"


वेद :- "कैसी मेहनत रोहू??"


रोहन :- "तुम्हें याद है मैं अभी कुछ दिनों पहले एग्जाम के लिए दिल्ली गया था??"


वेद :- "हाँ!!!! अच्छे से याद है, और मेरा इतना कहने के बाद भी मुझे साथ नही ले गए थे।"


रोहन :- "अरे मैं ये वॉलेट लेने ही तो गया था। यहाँ भी मिल रहा था, लेकिन मैंने स्पेशली तुम्हारे लिए ये V शब्द वाला वॉलेट बनवाना था, तो मुझे दिल्ली ही जाना पड़ा इसे लेने।"


वेद :- (रोहन को गले लगाते हुए) "थैंक्यू सो मच रोहू। मुझे तुम्हारा ये गिफ्ट बहुत ज्यादा पसंद आया। मैं इसे हमेशा अपने साथ ही रखूंगा।"



      रोहन का ख्याल उसके हाँथो से वो पर्स लिए जाने पर टूटा। एक नर्स उस पर्स के अंदर कोई ऐसा कागज़ ढूंढना चाहती थी, जिससे इस लाये गए मरीज की पहचान के बारे में, उसके घर परिवार के बारे में पता लगाया जा सके। क्योंकि उस घायल मरीज को बेहोशी छाई हुई थी, और उसके साथ मे आये रोहन ने भी अब तक कुछ नही बोला था। तभी रोहन की नज़र पड़ी उस डाइमंड रिंग पर, जो उसे अच्छे से अभी तक याद थी।


Flash back :- 7 साल 6 महीने पहले, रात के 9 बजे, बैजाताल ग्वालियर।


वेद :- "देखो मैं ये तुम्हारे लिए लाया हूँ।"


रोहन :- (दुखी मन से) "किसे बहलाने की कोशिश कर रहे हो, मुझे पता है ये किसके लिए है।"


वेद :- "अच्छा लाओ अपना हाँथ तो दो, पहना कर तो देखू कैसी लगती है ये रिंग तुम्हारी उंगलियों में।"


रोहन :- "मत परेशान करो यार वेद, मुझे नही अच्छा लग रहा अब ये मज़ाक।"


वेद :- (मायूस होकर) "मज़ाक तो मेरा बना रहे हैं। वहाँ मेरे घरवाले और यहाँ तुम।"


रोहन :- "मैं मज़ाक बना रहा हूँ तुम्हारा??? वहाँ तो चुप चाप सबकी हाँ में हाँ मिलाते रहते हो। इतनी बड़ी स्माइल के साथ सारी शॉपिंग, और ये अपनी सगाई की अँगूठी खरीद रहे हो, और बोल रहे हो मैं मज़ाक बना रहा हूँ। मज़ाक तो तुमने हमारे रिश्ते का बना दिया है वेद!!"


वेद :- "तो क्या करूँ मैं?? आत्महत्या करलूँ या भाग जाऊं घर से?? बोलो क्या करूँ मैं??"


रोहन :- (वेद के चेहरे को अपने हाँथों में पकड़ते हुए) "उन्हें सब सच बता दो वेद, थोड़ा गुस्सा करेंगे, हो सकता है कुछ दिन हम दोनों से नाराज़ भी रहें, लेकिन फिर सब ठीक हो जाएगा।"



     रोहन का ख्याल उस नीचे गिरी सिगरेट की डिब्बी और लाइटर की आवाज़ से टूटा। जो कि एक नर्स के हाँथ से छूट कर नीचे गिर गई थी। रोहन ने उसे ज़मीन से उठाया।



Flash back :- 7 साल पहले, जनवरी की दोपहर के 2 बजे, ग्वालियर मेले में।


रोहन :- (वेद के जेब पर हाँथ लगाते हुए) "ये सिगरेट और लाइटर क्यों रखते हो साथ, सिगरेट तो नही पीते तुम?"


वेद :- "अरे कॉलेज में थोड़ा दिखावा करना पड़ता है।"


रोहन :- "सिगरेट का दिखावा, सबके सामने मुझसे दूर रहने का दिखावा और क्या क्या करोगे दिखावे के लिए?"


वेद :- "यार तुम हमेशा यही सब बातें क्यों करने लगते हो?"


रोहन :- "क्योंकि तुम मुझे कभी सही जवाब ही नही देते हो। कहीं तुम्हे मेरे साथ शर्म तो नही आती??"


वेद :- "फिर बकवास शुरू करदी। यार समझो बात को, आज कल सभी नोटिस करते हैं, तुम्हे अच्छा लगेगा क्या, की लोग हमारा मज़ाक उड़ाए?"


रोहन :- "यार इतनी लोगो की परवाह करोगे, तो मेरी परवाह कब करोगे?"



   रोहन का ख्याल एक बार फिर टूटा, जब एक नर्स ने उस पर्स में से निकली एक फोटो को रोहन को दिखा कर बोला,


नर्स 1 :- "रोहन सर!! ये आप ही हैं ना इस फ़ोटो में??"



     जो फ़ोटो उस पर्स में से निकली थी, उसमे 4 लोग थे। रोहन, वेद, दिव्यांश और वेदिका। रोहन को वो फ़ोटो देख कर, वो सभी पुराने किस्से, वो बातें याद आने लगे, की कैसे ये चारों दोस्त हुआ करते थे। और कैसे सारे दिन स्कूल और एक दूसरे के घरों में मस्ती किआ करते थे। लेकिन आज की हक़ीक़त भी ज्यादा देर रोहन से दूर न रह सकी। जब एक नर्स ने आकर उन सभी को घायल मरीज की हालत के बारे में अवगत कराया।


नर्स 2 :- "आप लोगो को मरीज के बारे में कोई जानकारी मिली??? आप लोग जल्दी पता कीजिये, उसकी हालत बहुत नाजुक है। डॉ मजूमदार का कहना है कि, उसे अंदरूनी गहरी चोट है। अगर खून का बहना नही रोका तो वो कोमा में भी जा सकता है। डॉ ने मुझे आपको सूचना देने के लिए ही भेजा है। हम उसे आपरेशन के लिए तैयार कर रहे हैं। आप लोग पुलिस को सूचना दीजिये, और जल्द से जल्द उसके घरवालों को ढूंढने की कोशिश कीजिये।"



      नर्स की ये बातें, रोहन को भीतर तक आघात पहुंचा चुकी थीं। रोहन का दिमाग फिरसे सुन्न हो चुका था, उसे कुछ समझ ही नही आ रहा था कि उसने जो कुछ भी अभी नर्स के मुँह से सुना, वो एक बुरा सपना है या हक़ीक़त। रोहन बेसुध होकर गिरने ही वाला था, की वहां उपस्थित स्टाफ ने उसे संभाला और उसे सुरक्षित स्थान पर ले जाकर बैठाया। उसे पीने के लिए पानी से भरा ग्लास भी दिया। पानी पीने के बाद रोहन ने थोड़ा अपना होश संभाला। उसने तुरंत अपने हाँथो को जोड़, आँखें बंद कर, मन ही मन भगवान को याद किया, और भगवान से मांगा की वो कैसे भी वेद को बिल्कुल ठीक कर दें। उसने अपनी आँखे खोली और वेद के घरवालों को इस घटना की सूचना पहुंचाने के बारे में सोचने लगा। उसने वेद के सामान में से उसका फ़ोन निकाला। उस मोबाइल को खोलने के लिए एक पासवर्ड की जरूरत थी। रोहन ने थोड़ी देर सोचा, फिर वेद की जन्मतिथि उस मोबाइल में अंकित की, लेकिन वो गलत पासवर्ड निकला। फिर रोहन ने वेद की सगाई की तारीख अंकित की, लेकिन यह भी गलत पासवर्ड निकला। रोहन ने थोड़ी देर सोचा, वेद सबसे ज्यादा अपनी मम्मी को चाहता है, तो उसने वेद की मम्मी की जन्मतिथि उस मोबाइल में अंकित की, लेकिन यह भी एक गलत पासवर्ड निकला। कुछ देर और सोचने के बाद, रोहन एक और तारीख उस मोबाइल में अंकित की, और इस बार वो मोबाइल खुल चुका था। यह एक सही पासवर्ड था, जिससे रोहन की आँखों मे आँसू भर आते हैं, क्योंकि उसने जो तारीख़ मोबाइल में डाली, वो वही तारीख़ थी, जब वेद ने उसके सामने अपने प्यार का इज़हार पहली बार किआ था। 



    मोबाइल खुलते ही, मोबाइल के वॉलपेपर पर अपनी ही एक हंसती हुई फ़ोटो को देख कर, रोहन के चेहरे पर भी एक हल्की सी मुस्कान छा गयी थी। उसने तुरंत ही कांटेक्ट लिस्ट खोली, और रोहन के घरवालों के नंबर खोजने लगा। लेकिन रोहन को उस मोबाइल की कांटेक्ट लिस्ट देख कर बड़ा ही आश्चर्य हुआ, उसमे ना तो वेद की मम्मी, ना ही उसके पापा और ना ही उसके किसी और रिश्तेदार का नंबर उस लिस्ट में नही था। रोहन ने एक बार फिर, वेदिका का नंबर ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उसे बड़ा ही ताज़्जुब हुआ, क्योंकि उस लिस्ट में ना ही वेदिका का नंबर था, और ना ही उसमें दिव्यांश का नंबर था। और उस कांटेक्ट लिस्ट में जितने भी नंबर थे, वो सभी डॉ के नाम से ही संजोए हुए थे। और उनमें से कोई भी नंबर ऐसा नही था, जो रोहन पहचानता हो। अब वेद के घरवालों को खबर पहुंचाने का रोहन को बस एक ही रास्ता नज़र आ रहा था। कि वो ग्वालियर में अपने घर फ़ोन करके, वेद के घर तक इस हादसे की खबर पहुंचाए। लेकिन उसे वो वक़्या भी याद आता है, की उसके मुम्बई आने से पहले कैसे वेद के घरवालों ने सारे मोहल्ले के सामने, रोहन के घरवालों को ज़लील किआ था, और उन्हें अपना खुद का पुश्तैनी घर छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया था। इसी उधेड़बुन में 2 घंटे बीत चुके थे। और वेद का आपरेशन भी सफलतापूर्वक खत्म हो चुका था, और ज्यादा गंभीर चोट ना होने की वजह से अब वेद खतरे से भी बाहर आ चुका था। इस बात की जानकारी उसी नर्स ने रोहन और बाकी के स्टाफ को आकर दे दी थी। रोहन ने भी अब चैन की सांस ली थी, की वेद सही सलामत है, और किसी भी खतरे में नही है, की तभी उसके दिमाग मे दिव्यांश का एक पुराना मोबाइल नंबर याद आया। उसने वो फ़ोन नंबर तुरंत अपने मोबाइल से डायल किआ और 2 सेकंड बाद ही उस नंबर पर फोन लगने की घंटी भी सुनाई देने लगी। रोहन मन ही मन भगवान से मिन्नत करने लगा कि, दिव्यांश अभी भी यही नंबर इस्तेमाल करता हो, तो उसे उसके घरवालों को इन सब मे नही खींचना पड़ेगा। और जब उसे दूसरी तरफ से एक जानी पहचानी आवाज सुनाई दी, तब उसे थोड़ी तसल्ली हुई। फिर भी उसने धीमी सी आवाज में पूछा "क्या ये दिव्यांश अग्निहोत्री जी का नंबर है?" और जब उसने सामने से हाँ का प्रतिउत्तर सुना, तो उसने फ़ोन काट दिया।


     इन सभी बातों के बाद रोहन के चेहरे से मायूसी खत्म होकर हल्की सी मुस्कान आयी ही थी, की उसने पुलिस को हॉस्पिटल में आते देखा, और उसकी वो हँसी तुरंत ही गायब भी हो गयी। उसने दिव्यांश का मोबाइल नंबर स्टाफ को दिया, और उस नंबर पर वेद के बारे में सारी जानकारी देने को बोला। उसने वहां उपस्थित सभी स्टाफ को पुलिस को इस केस में अपनी भागीदारी के बारे में कुछ भी ना बोलने के लिए मना लिया। और वेद के पर्स से निकली उस तस्वीर को अपने साथ लेकर वहां से अपने होस्टल की तरफ निकल आया। उधर ग्वालियर में दिव्यांश को हॉस्पिटल की तरफ से वेद के बारे में सारी जानकारी दे दी गयी, और वेद के परिवारजनों को जल्द से जल्द मुम्बई आने के लोए भी बोल दिया गया।



      दिव्यांश जहाँ वेद के हुए एक्सीडेंट और उसके आपरेशन के बारे में जानकर दुखी तो था ही, लेकिन 2 सालों के बाद वेद के बारे में मिली ये पहली जानकारी के बारे में जानकर, बेहद खुश भी था। ये खबर मिलते ही उसने ग्वालियर में 2 फ़ोन किये, एक तो वेद के मम्मी पापा को, और उन्हें तुरंत मुंबई चलने को तैयार होने के लिए भी कहा। और दूसरा फ़ोन उसने किआ वेदिका को।


दिव्यांश :- (फ़ोन पर ख़ुशी और दुख के मिलेजुले एहसाह के साथ) "बहन!!! वेद मिल गया!!! मिल गया मेरा दोस्त!!"


वेदिका :- (खुशी से रोते हुए) "भाई प्लीज कह दो की ये मज़ाक नहीं है। मुझे मेरे कानों पर भरोसा नही हो रहा है भाई!!"


दिव्यांश :- "हाँ बहन!! यही सच है, वो मिल गया है, लेकिन एक बुरी खबर भी है, उसका एक्सीडेंट हो गया है, उसका आपरेशन हुआ है...."


वेदिका :- (बीच मे ही दिव्यांश को रोकते हुए) "क्या एक्सीडेंट??? ऑपरेशन??? भाई वो ठीक तो है ना??"


दिव्यांश :- "हाँ वेदु वो ठीक है, तू तैयारी कर ले, मैंने अंकल-आंटी को भी खबर दे दी है, सुबह यहाँ से डायरेक्ट फ्लाइट है मुम्बई के लिए, हम सुबह ही निकल जाएंगे।"


वेदिका :- "मुम्बई!!! वेद मुम्बई में क्या कर रहा होगा भाई?? वहाँ क्यों गया होगा वो??"


दिव्यांश :- "अब ये तो वहाँ जाके, और उससे बात करके ही पता चलेगा ना, की आखिर उसने ऐसा क्यों किआ!! चल अब तू तैयारी कर, मैं सुबह आजाऊँगा तुझे लेने।"


    

   वेदिका खुशी खुशी फ़ोन रख देती है, और पास ही मेज़ पर रखी एक तस्वीर उठाती है। ये वही तस्वीर होती है जो मुम्बई में वेद के पर्स से मिली होती है। उस तस्वीर को वेदिका अपने गले से लगती है।


वेदिका :- "आख़िरकार तुम मिल ही गए वेद, अब देखना अब मैं तुम्हे कभी खुद से दूर नही जाने दूंगी। ये 2 साल मैंने कैसे बिताए हैं तुम्हारे बिना, ये बस मैं ही जानती हूँ। अब मैं तुम्हे इतना प्यार दूंगी, की तुम उसे हमेशा के लिए भूल जाओगे, और बस मेरे ही बन कर रहने पर मजबूर हो जाओगे।"



     उधर मुम्बई के GMC कैंपस के होस्टल के अपने कमरे की खिड़की पर खड़े होकर, रोहन भी उस फ़ोटो को अपने गले से लगा कर रो रहा होता है। अपने घरवालों, ग्वालियर, अपने दोस्तों, और अपने पहले प्यार के साथ बिताए हंसी पलों को याद कर रहा होता है। और उस कसम को याद कर रहा होता है, जिस कसम ने सब कुछ बदल दिया होता है।



      

  क्या थी वो कसम जो वेद और रोहन के बीच की दूरियां बन गयी थी। दिव्यांश और वेदिका का इस कसम से क्या संबंध था। आगे की कहानी या यूं कहें, की बीती ज़िंदगी की कहानी को जानने के लिए बने रहिये रोहन के साथ। 


      






      









6 comments:

  1. Sir, I have read all your stories and they all were so good. And about this one, it was also awesome like the others.

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  2. Sir, I want you to read his blog as well and help him. Please sir🙏https://gaylovestoryhindi2021.blogspot.com/?m=1

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  3. Hi,
    Bahut hi achha likhte ho aap. Rohan aur Ved ka relation/dosti/love bahut achhi tarahse apne utara hai. Rohan ka Ved ko accedentpe dekhke old memories ko jaagna aur uske man me utha tufan... lajawab.
    Next part padhneki utsukta badh gyi hai. Suspenc un charomeka, .......

    Keep it up.

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    1. Thanq so much 😊🙏. Next part will be out soon.

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