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पुराने किस्सों को भूलकर, नीरज ने अपनी आंखों से बहते आंसुओं को पोंछा, और आगरा जाने की तैयारी करने लगा। दरअसल आगरा से उसने अपना संबंध, अपनी शादी के बाद से खत्म ही कर लिया था। उसने अपना ट्रांसफर दिल्ली के विश्वविद्यालय में करवा लिया था। और अब वह एक दिल्ली के विश्वविद्यालय के कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर कार्य करता था। आगरा से मम्मी पापा भी अब उसी के साथ आकर रहने लगे थे। तो उनका आगरा से अब संबंध पूरी तरह से खत्म ही हो चला था। पर आज मधुर की ज़िद में उसे फिर से उस शहर में जाने को विवश कर दिया था, जिसके साथ दर्द जुड़ा हुआ था। दरअसल मधुर को अंदाजा ही नहीं था, कि इतने वर्ष बीत जाने के बावजूद भी उसके सीने में चिंगारी बनकर वह यादें आज भी धधक रही होंगी।
"हाय मधुर!!!" उसे देखकर मधुर चहक पड़ा।
मधुर :- (नीरज को गले लगाते हुए) "कब से इंतजार कर रहा था तेरा!!! मुझे यकीन था कि तू मुझे निराश नहीं करेगा!"
नीरज :- (मुस्कुरा कर) "तुझे कैसे इंकार करता??"
मधुर उसका हाथ पकड़कर अंदर ले गया। अधिकतर रिश्तेदार आ चुके थे। घर में खूब गहमागहमी दिख रही थी।
मधुर :- "नीरज देखना!! तुझे बहुत अच्छा लगेगा। जितने भी फ्रेंड्स इस शहर में है, आज सब से मुलाकात हो जाएगी तेरी। आज फिर कॉलेज की यादें ताजा हो जाएगी।"
वह जोश में बोलता जा रहा था, पर नीरज का दिल आशंका से सहम गया।
नीरज :- (धड़कते दिल से प्रश्न करते हुए) "कौन-कौन आ रहा है मधुर??
मधुर :- "एकता, श्वेता, प्रियंक, प्रदीप...!"
नीरज :- "और????"
मधुर :- (अनजान बनते हुए) "और किसे बुलाना था???"
मधुर शरारत से हंस पड़ा, उत्तर में नीरज खामोश रह गया।
मधुर :- "लगता है कोई चिंगारी अभी भी दबी पड़ी है, तेरे सीने में!!"
नीरज :- "मैंने उसे जुनून की हद तक चाहा था मधुर, वो ज़ख्म आज भी नासूर बनकर टीस देता है मुझे!!"
मधुर :- "मुझे लगता था कि वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है, तू अब अपनी ज़िंदगी मे व्यस्त हो चुका है, तो वह निशान बाकी नहीं रहे होंगे। (मधुर किसी आशंका में डूब गया) ये इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजिए एक आग का दरिया है, और डूब कर जाना है।" (मधुर के चेहरे पर भी अफसोस के भाव उभर आए थे।)"
दिनभर आपाधापी में गुजर गया। शाम को सभी सहपाठी आ चुके थे। उनसे मिलकर बहुत खुशनुमा एहसास हो रहा था। रह रह कर ठहाके लग रहे थे। कितनी ही यादें ताजा हो गई थी। लगता था कि वक्त ठहरा हुआ है। 20 वर्ष का लंबा अंतराल कभी गुजरा ही नहीं था। जयमाला हो रही थी, कि तभी गहरे नीले रंग के सूट और सुर्ख टाई में अविनाश आता नजर आया। अब उसने फ्रेंच कट दाढ़ी रख ली थी। आंखों पर चश्मा भी था। आज भी वह नीरज को बहुत हैंडसम लग रहा था। नीरज की आंखों में पल भर को एक चमक सी उभरी, फिर गम के बादलों ने उसे घेर लिया। वह झट से उसकी तरफ पीठ फेर कर खड़ा हो गया। मुश्किल से संभाला हुआ दिल फिर से मचलने लगा। उसे देखकर जी चाहा कि सब कुछ भूल जाए, और दौड़ कर उसके पास चला जाए।
अविनाश की नजरें भी बेचैनी से नीरज को तलाश रही थी। आखिर हल्के पीले रंग के, पटोला प्रिंट सिल्क के कुर्ते में, उसकी ओर पीठ किए, नीरज को उसने तलाश ही लिया। नीरज के लिए ही तो वो आज बरसों बाद किसी फंक्शन में आया था। "अब कैसा दिखता होगा??" वह जानने की उत्सुकता थी, पर वह जल्दी में ना था। चुपचाप बैठ गया। कई सहपाठी उसे नजर आए पर किसी से बात करने का दिल नहीं किया। थोड़ी देर बाद नीरज पलटकर मधुर के साथ कहीं चल दिया। शरीर थोड़ा भर गया था, चेहरे पर बढ़ती वयस की परिपक्वता दिख रही थी। बालों में आई हल्की सी सफेदी, और वही सादगी भरा अंदाज, अविनाश को अपनी ओर खींच रहा था। नीरज जब तक उसे दिखाई देता रहा, वह अपनी आँखों मे गहरी चाह लिए, उसे देखता रहा।
मधुर :- (नीरज के कानों में फुसफुसाते हुए) "नीरज, अविनाश शायद तुझसे बात करना चाहता है।"
नीरज :- (व्याकुल होकर) "नहीं!!! मैं उससे नही मिलना चाहता।"
मधुर :- "क्यों??? क्या हर्ज़ है मिलने में??"
नीरज :- "तू समझ सकता है यार।"
मधुर :- "इतना बड़ा फ़ैसला लेने वाला, अब इतने सालों बाद इतना कमज़ोर क्यों पड़ रहा है??"
नीरज :- "मैं सचमुच कमज़ोर पड़ जाऊंगा उसके सामने मधुर, प्लीज उसे रोक दे।"
मधुर :- (जोर देते हुए) "कैसे रोक दूं यार??? कोई वाज़िब वज़ह भी तो हो!! देख, तेरे कसम देने पर, मैंने उसे आज तक तेरे बारे में कुछ नही बताया। तू एक बार उससे मिल तो ले। उससे बात करके तुझे भी अच्छा लगेगा और उसे भी।"
नीरज :- "उससे मुलाकात के डर से ही मैं आगरा नहीं आना चाहता था।"
मधुर :- "यार मुझे लगा कि इतने सालों के बाद तुम दोनों एक दूसरे को देख कर, मिल कर बहुत खुश होगे। इसीलिए मैंने उसे भी इन्वाइट किआ था, और देख, वो बस एक फ़ोन कॉल पर ही यहां आ भी गया।"
कुछ देर और नीरज को समझाने के बाद, मधुर उसका हाँथ पकड़ कर उसे एक टेबल तक ले आया, जहां अविनाश पहले से ही बैठा हुआ था।
मधुर :- "थैंक्यू अविनाश, तुम मेरे एक फ़ोन करने पर ही यहाँ आ गए।"
अविनाश :- (नीरज को देखते हुए) "मुझे तो आना ही था मधुर।"
मधुर :- (नीरज को वहां पड़ी कुर्सी पर बैठा कर) "चलो तुम दोनों बातें करो, मैं थोड़ा काम निपटा कर आता हूँ।"
अविनाश :- (भारी मन से) "कैसे हो??"
नीरज :- (आँखे चुराते हुए) "अच्छा हूँ। तुम कैसे हो?"
अविनाश :- (मुस्कुरा कर) "जैसा छोड़ कर गए थे, वैसा ही हूँ। और बताओ, घर मे सब कैसे है। मैंने सुना, अंकल आंटी भी अब दिल्ली ही शिफ्ट हो गए हैं।"
नीरज :- "हाँ, मेरे जाने के बाद वो लोग काफी अकेले पड़ गए थे, तो फिर मैंने उन्हें भी वहीं बुला लिया!!! तुम बताओ, घर मे सब कैसे हैं???"
अविनाश :- "हाँ सब ठीक हैं। बड़े भैया को मथुरा में नौकरी मिल गयी थी, तो मम्मी पापा उनके साथ ही चले गए थे।"
नीरज :- "आंटी अभी भी नाराज़ हैं क्या??"
अविनाश :- "नहीं अब नहीं!!! अब सब पहले जैसा ही है।"
नीरज :- "सुनकर अच्छा लगा। और तुम्हारा बिज़नेस कैसा चल रहा??"
अविनाश :- "हाँ, सब अच्छा चल रहा है।"
नीरज :- (हिचकिचाते हुए) "और शादी????"
अविनाश :- "हाँ, वो भी अच्छी चल रही है। बहुत अच्छा और समझदार है मेरा लाइफ पार्टनर।"
नीरज :- (छनाक से टूटे दिल को संभालते हुए) "साथ ले कर क्यों नही आये, हम सब से भी मिल लेती वो।"
अविनाश :- "मैं सबकी नजर से बचा कर रखता हूँ उसे। तुम भी तो अकेले ही आये हो??"
नीरज :- (आँखों मे आयी नमी को छुपाते हुए) "हाँ वो, मम्मी पापा को अकेला नही छोड़ सकता था ना।"
कुछ देर और यूँही दोनों इधर उधर की बातें करते रहे। और दोनों ही एक दूसरे का मन टटोलते रहे। लेकिन अब तक नीरज ने अपनी नज़रे झुकाए रखीं थीं, या वह इधर उधर देख कर ही अविनाश से बातें कर रहा था। उसने अब तक अविनाश की आँखों मे देख कर एक बार भी बात नही की थी।
अविनाश :- "चलो नीरज अब मैं चलता हूँ। मैं तो बस यहां तुम्हें देखने चला आया था। लेकिन शायद मैं इस लायक भी नही, की तुम नज़रें उठा कर मुझसे बात कर सको।"
अविनाश ये कह कर, बिना नीरज को कुछ और कहे, वहां से उठकर चला गया। उसके वहां से जाने के बाद, नीरज अविनाश जाते ही देखता रहा, जब तक वह उसकी नज़रों से ओझल ना हो गया। इस वक़्त तक नीरज की आँखों से आँसुओ की धारा बह चुकी थी। अविनाश से बात करते समय उसने एक बार को तो सोचा कि वह अपने बारे में अविनाश को सब सच बता दे, लेकिन अविनाश के लाइफ पार्टनर के बारे में जानने के बाद, उसने कुछ भी कहना उचित नही समझा था। कुछ देर बाद मधुर नीरज के पास आया।
मधुर :- "अविनाश कहाँ गया नीरज???'
नीरज :- (अपने आँसू पोंछते हुए) "वो चला गया।"
मधुर :- "तूने उसे सब बता दिया या नहीं???"
नीरज :- "मुझे जरूरी नही लगा उसे बताना, इसलिए नही बताया!!"
मधुर :- "लेकिन क्यों यार!! मैंने तुम दोनों को इसीलिए तो बुलाया था यार, की कम से कम अब तो तुम दोनों एक दूसरे को सब सच बताओगे, और शायद इसके बाद सब ठीक हो जाएगा!!"
नीरज :- "अब हमारे बीच कुछ ठीक नही हो सकता मधुर!!"
मधुर :- "लेकिन क्यों यार??? तूने मुझे कसम दी, इसलिए आज तक ना ही मैने उसे तेरे बारे में कुछ बताया, और ना ही तूने मुझे उसके बारे में कुछ बताने दिया। लेकिन यार आज तो सही मौका था, तुझे सब सच बता देना चाहिए था। मैंने ऐसा करने की कितनी बार कोशिशें की, लेकिन तूने एक नही सुनी। लेकिन मुझे यकीन था कि जब तुम लोग आज मिलोगे तो सब सही हो जाएगा। फिर तूने उसे क्यों नही कुछ बताया यार नीरज??"
नीरज :- "कैसे बताता यार, मैने पूछा उसके बारे में, वो खुश है अपनी ज़िंदगी मे, अपने लाइफ पार्टनर के साथ!!"
मधुर :- "कौनसा लाइफ पार्टनर???"
नीरज :- "मतलब???'
मधुर :- " उसने शादी नहीं कि है नीरज, और अंकल आंटी के जाने के बाद तो वो बिल्कुल अकेला सा पड़ गया है। तूने मुझे कभी बताने भी तो नही दिया उसके बारे में। इसीलिए तो मैं तुझे हर बार यहां आने के लिए कहता था। ताकि तू खुद देख ले आकर। और तूने भी ना जाने किस उलझन में, यहां वापस आने में 20 साल लगा दिए।"
नीरज :- "ये तू क्या कह रहा है मधुर?? अवि ने खुद मुझसे कहा है, की वो खुश है अपने लाइफ पार्टनर के साथ।"
मधुर :- "अब मुझे नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों कहा तुझसे, लेकिन जहाँ तक मुझे पता है, उसने अपने बारे में तेरी शादी के वक़्त ही अपने घर मे बता दिया था। बहुत लड़ाई झगड़ा भी हुआ उसके घर मे इस बात को लेकर। और बदनामी के डर से, उसके मम्मी पापा और भाई, ये शहर भी छोड़ कर चले गए। और तब से वो अकेला ही रहता है।"
नीरज :- "तो उसने मुझसे जो कहा वो सच था या झूंठ!!"
इसी उधेड़बुन को अपने दिल मे लिए, मधुर के कहने पर, नीरज निकल पड़ा अविनाश के घर की ओर। आखिर इस बात का सही जवाब तो उसे अविनाश से ही मिल सकता था, की वो सच बोल रहा था, या मधुर। और फिर नीरज को भी तो उसे अपना सच बताना था। इसी कश्मकश में नीरज जा पहुंचा अविनाश के घर। और बहुत ही असहजता से अविनाश के घर का दरवाज़ा भी खटखटा भी दिया।
अविनाश :- (दरवाजा पर नीरज को खड़ा देखकर) "मैंने इस दिन की कभी उम्मीद भी नही की थी।"
नीरज :- "अंदर आने को नही कहोगे??"
अविनाश :- "अपने ही घर मे आने के लिए इजाजत की जरूरत नही होती। ये तुम्हारा ही घर है।"
नीरज :- (घर मे अंदर आकर, यहाँ वहाँ देखते हुए) "तो कहाँ छुपा रखा है, अपने लाइफ पार्टनर को??"
अविनाश :- (मुस्कुरा कर) "वो तो हमेशा से मेरे दिल मे ही है। उसे कहीं छुपाने की जरूरत ही नहीं।"
नीरज :- (अविनाश की ओर मुड़ते हुए) "अविनाश क्या तुम मुझे एक बात सच सच बताओगे??"
अविनाश :- (नीरज से नज़रे चुराते हुए) "मुझे पता है नीरज तुम क्या जानने आये हो यहाँ। लेकिन जिस रास्ते जाना नही, उसका पता पूछ कर क्या करना। तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि हम इस बारे में कभी बात ही ना करें।"
नीरज :- (मुस्कुरा कर) "चलो ठीक है, तुम ना बताना चाहो, लेकिन मैं कुछ बताना चाहता हूं। (थोड़ी देर की खामोशी के बाद) मैंने जो तुमसे फंक्शन में कहा, वो सब झूठ था। मैं अब शादी शुदा नहीं हूँ। मेरा तलाक शादी के 2 महीने बाद ही हो गया था। क्योंकि मैं अपनी बीवी को पति का कोई भी सुख नही दे पाया था। और फिर तलाक के कुछ समय बाद, मम्मी पापा ने दूसरी शादी के लिए कहा। तो मैं खुद को नही रोक पाया, और मैंने उन्हें मेरे बारे में सब सच बता दिया। तबसे मैं अकेले ही अपना जीवन जी रहा हूँ।"
अविनाश :- (आँखों मे आँसू लिए) "तो तुम्हे इतने साल क्यों लग गए मेरे घर के दरवाजे तक आने में?? तुम्हे खुद पर भरोसा नही था, या मुझ पर?"
नीरज :- "किस मुँह से आता अविनाश। मेरे एक गलत फैसले की वजह से, मैं एक ज़िन्दगी तो खराब कर ही चुका था। मैं तुम्हारे लिए भी बेबसी का सबब नही बनना चाहता था।"
अविनाश :- "मैंने तुमसे प्यार किआ था नीरज, और आज भी उतना ही करता हूँ। तुम मेरे लिए कभी भी अफसोस का कारण नही बन सकते।"
नीरज :- "मैं तुमसे एक सवाल पूंछना चाहता हूँ जो कभी तुमने मुझसे पूछा था। क्या तुम मेरे साथ रहोगे? मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ अविनाश।"
अविनाश ने आगे बढ़ कर नीरज को अपने गले से लगा लिया। और दोनों ही एक दूसरे को गले लगा कर, जी भर कर रोये, और दोनों के बीच में आयी 20 साल की दूरी को, उन आँसुओं ने दूर किया।
खैर, इस किस्से में तो 20 साल के बाद भी, किसी का प्यार मुक्कमल हो गया। लेकिन ये किस्से कहानियां, जरूरी नही की असल जिंदगी में भी अपना असर दिखा पाए। तो इस किस्से से आप सभी को एक सीख लेने की बेहद जरूरत है। कभी भी जल्द बाजी में, या फिर किसी के भी दबाव में, ऐसा कोई फैसला ना लें, जिससे आप के साथ साथ किसी और का भी जीवन प्रभावित हो। हमेशा वही करने की कोशिश करें, जिसमे आपका दिल और दिमाग साथ हो। हो सकता है, ऐसे फैसले, आपके अपनो को कुछ समय के लिए नाराज भी कर जाए, लेकिन कुछ समय की नाराजगी, जीवन भर की यातनाओं से कई गुना आसान होगी। और शायद उससे आपको अपने जीवन को प्यार से भरने में, 20 सालो का समय भी ना लगे।
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Lots of Love
Yuvraj ❤️
Pehla part kaha milega please batao
ReplyDeleteIt's there in blog dear.
DeleteHi Yuvi,
ReplyDeleteKitna achha likhte ho yarr. Niraj ne 2 mahineke bad Avinash ko dhundhke usse mafi mangnke firse apna life/jeevan ghar basana chahiye tha dear. Bina wajah 20 saal apni aur Avinashke jawanike bekar me barbaad kar diye.
hmmmmmmmmmm, chalo achha hua, der aye durust aye.
Naye kahanika intjaar hai Yuvi.
Bhot acha... But reality me to asa ni ho pata.. wtsoever..
ReplyDeleteHeart Touching Story..❤️😭