Tuesday, November 24, 2020

मिलन - Final Part

 Please read first part of this story, before reading this part, than you will get easily be connected with this final part.



     सुबह की चहल कदमी से जब सौम्य की आँख खुली, तो उसने रोहित को अपने पैरों के पास बैठा पाया। रोहित की आँखे अभी बन्द थी, और वो गहरी नींद के आगोश में था। सोते हुए रोहित के चेहरे पर जो मासूमियत का नूर छाया हुआ था, सौम्य के लिए रोहित के चेहरे से नज़रें हटा पाना थोड़ा मुश्किल हो रहा था। रोहित की अब तक कि बातों, और उसके व्यवहार से, सौम्य अब तक ये तो समझ चुका था, की रोहित एक नेक दिल इंसान है, और उसके मन में कहीं ना कहीं सौम्य के लिए जगह भी बन चुकी है। लेकिन क्या रोहित भी सौम्य की तरह, लड़कों में रुचि रखता है??? इस बात की पुष्टि अभी तक सौम्य को नही हो पाई थी। सौम्य रोहित के चेहरे को निहार ही रहा था कि ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। सामने वाली सीट पर बैठे बाबा, रोहित को धन्यवाद कहने के लिए, उसके कंधे पर हाँथ रखने ही वाले थे कि सौम्य ने उन्हें रोक दिया।


सौम्य :- "नहीं बाबा, अभी गहरी नींद में है, मत उठाइये।"


बाबा :- "ठीक है बेटा, जब ये उठ जाए तो मेरी ओर से इसे धन्यवाद कह देना। बहुत ही गुणी बच्चा है। रात में भी मेरी मदद की और तुम्हे कोई परेशानी ना हो, इसलिए तुम्हे सोते से उठाया नही, और रात भर यही तुम्हारे पैरो के पास बैठा रहा। आज कल कोई नही सोचता दूसरों के बारे में। भगवान इसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करे।"



      बाबा रोहित को ढेरों आशीर्वाद देकर ट्रैन से उतर गए। और ट्रेन आगे बढ़ दी अपने आखिरी पड़ाव, कानपुर की ओर। तभी रोहित की भी आँख उसके मोबाइल पर आते एक फ़ोन कॉल से खुल गयी।



पराग (रोहित का मौसेरा भाई) :- "हाँ भैया!! कहा तक पहुंची आपकी ट्रेन। मौसी ने तो सुबह से बवाल ही मचा रखा है, और हमें यही स्टेशन पर बिठवा दिया है।"


रोहित :- (आँखे मलते हुए) "बस आ ही गए समझो, अब ज्यादा इंतेज़ार नही करना पड़ेगा तुम्हे।"



      फ़ोन रख कर रोहित ने सौम्य की ओर देखा। और सौम्य को देख कर ही रोहित के चेहरे पर मुस्कान छा गई। बाहर खिड़की से आती सुबह की ठंडी हवा, और उगते सूरज की मद्धम किरणों में, सौम्य का चेहरा पहले से भी ज्यादा हसीन नज़र आ रहा था। दोनों बिना कुछ कहे ही बस एक दूसरे की आँखों मे डूबने की कोशिश कर रहे थे। मानो नज़रों से ही एक दूसरे के दिल का हाल जान लेना चाह रहे हो। सौम्य को तो रोहित के मन का थोड़ा बहुत अंदाज़ा हो गया था, लेकिन सौम्य के अब तक के बर्ताव से, रोहित को ज़रा सी भी भनक नही थी, की सौम्य के मन मे क्या है। दोनों ही एक दूसरे को कहना तो बहुत कुछ चाहते थे, लेकिन इस हसीन सफर के बाकी बचे कुछ पलों को खराब भी नही करना चाहते थे। दोनों ही बस एक दूसरे की नज़रों में ही खोये हुए थे। नैनों की जुगलबंदी कुछ यूं चली की, दोनों को ही समय का होश ही नही रहा। कब कानपुर स्टेशन आ गया और ट्रेन स्टेशन पर आ कर खड़ी भी हो गयी, सारी सवारियां भी उतर गई, लेकिन ना तो दोनों की पलकें भी झपकी, और ना ही उन्हें पता भी चला कि ट्रेन रुक चुकी है। दोनों का सम्मोहन तब भंग हुआ, जब पराग उनके पास पहुंचा।


पराग :- (रोहित के कंधे को हिलाते हुए) "लो हम आपको सारे स्टेशन पर ढूंढ रहे हैं, और आप यहां मौन धारण किये बैठे हो।"


रोहित :- (आश्चर्य से) "अरे इतनी जल्दी कानपुर आ गया। हमें तो पता भी नही चला।"



      पराग ने रोहित का बैग उठाया और ट्रेन से बाहर आने लगा। और रोहित ने सौम्य का बैग उठाने के लिए उसका बैग पकड़ा ही था, की सौम्य ने उसे रोक दिया।



सौम्य :- "अरे क्या कर रहे हैं रोहित जी। हम उठा लेंगे।"


रोहित :- "सौम्य जी अब आप कानपुर के ही नही, हमाए भी मेहमान है, तो थोड़ी मेहमान नवाज़ी करने दीजिए।"


      रोहित सौम्य का बैग लेकर ट्रैन से बाहर आ गया। स्टेशन पर रोहित ने सौम्य को उसका बैग पकड़ाया, और उस से बात करने ही वाला था कि, पराग ने उसे टोक दिया।


पराग :- "अब चलो भी भैया!!! मौसी अब तक पचासों फ़ोन कर चुकी हैं। आपको तो कुछ नही कहेंगी, लेकिन हमाई तो खटिया खड़ी हो जाएगी।"


      रोहित ने पराग से 2 सेकण्ड्स का इशारा किया, और सौम्य का मोबाइल नंबर मांगने के लिए उसकी ओर मुड़ा ही थी, की तभी वहां, सौम्य को लेने, उसकी बुआ का लड़का शेखर आ गया।


पराग :- "अरे शेखर जी। आप भी किसी को लेने आये है क्या??"


शेखर :- (सौम्य की ओर इशारा करते हुए) "हाँ!!! इन्हें ही लेने आये हैं। ये सौम्य हैं!!! हमारे मामा के लड़के।"


पराग :- "अच्छा!!! हम भी रोहित भैया को लेने ही आये थे।"


      रोहित और सौम्य वहां खड़े, उन दोनों को आश्चर्य से ही देखे जा रहे थे, की ये दोनों एक दूसरे को कैसे जानते हैं।


शेखर :- (रोहित की ओर अपना हाँथ बढ़ाते हुए) "अच्छा तो आप हैं रोहित जी!!! जीजाजी से बड़ी तारीफ सुने हैं आपकी।"


      रोहित ने शेखर से हाँथ तो मिला लिया, लेकिन अभी उसके चेहरे पर कई प्रश्नवाचक चिन्ह बने हुए थे। जिनका उत्तर पाने के लिए उसने पराग की ओर, बड़ी आस भारी निगाहों से देखा।


पराग :- "अरे ज्यादा कंफ्यूजाइये नहीं। हम बताते हैं। ये हैं शेखर जी!!! अपनी होने वाली मामी के भाई।"



      पराग के मुँह से ये बात सुन कर तो, जैसे रोहित के कानों में मिश्री सी घुल गयी थी। अब ना तो सौम्य के साथ का ये सफर आख़िरी था, और ना ही ये मुलाकात। अब  सौम्य से भी रिश्तेदारी जो हो गयी थी। इस बात के बारे में सोचने से ही, रोहित के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान छा गयी थी। यूं तो रोहित का सौम्य से दूर जाने का मन तो नही हो रहा था, लेकिन अपने मन को मार कर, और दिल को फिर से मुलाकात की तसल्ली देकर, वो पराग के साथ, सौम्य को अलविदा कह कर, अपने घर आ गया था। 


      यूं तो शादी वाले घर मे पहले से ही कई मेहमान थे, ढोलक के थाप थे, महकते फूलों की सजावट के साथ, टिमटिमाती लइटों की जगमगाहट थी, शोर शराबा था, रौनक थी। लेकिन फिर भी रोहित के घर आते ही, सारे माहौल में ऐसा जोश भरा, मानो किसी मोहल्ले की गई लाइट कुछ देर बाद वापस आ गयी हो। अलका जी सारे काम छोड़, भागकर आईं और रोहित को अपने गले से लगा लिया।


अलका जी :- "कितने दुबला गए हो, खाना वाना टाइम से खाया करो।"


रोहित :- "अरे मम्मी आपको तो हम हर बार दुबले ही लगते हैं। अब आप अपना लाड़ प्यार दिखाओ, और कुछ खिलाओ हमे, बहुत तेज भूख लगी है।"


अलका जी :- (अपनी छोटी बहन को आवाज़ लगाते हुए) "अरे सरोज!!! बन गए क्या आलू के पराठे??? देखो रोहित आ गए हैं।"(अपनी दूर की मौसी को रोहित के बारे में बताते हुए) "देखो मौसी, ये हैं रोहित, इंदौर के बहुत बड़े कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं, अगले साल तक बोहोते अच्छी नौकरी भी पा लेंगें। बस फिर उसके बाद इनकी शादी में बुलाएंगे आपको, और कोई बहाना नही सुनेंगे, आना ही पड़ेगा....."


रोहित :- (अलका जी के कान में फुसफुसाते हुए) "क्या मम्मी आप फिर से शुरू हो गईं। कितनी बार मना किये हैं आपको, ऐसा करने से।"


अलका जी :- "अरे इसमे शर्माने की क्या बात है??? जब सबको पता होगा, की तुम क्या कर रहे हो क्या नहीं, तभी तो कोई अच्छा शादी का रिश्ता बताएगा तुम्हाए लिए।"



    ये अलका जी का हर बार का किस्सा हुआ करता था। जब भी उन्हें मौका मिलता था, वे अपने बेटे की तारीफों के पुल बांधना शुरू कर दिया करती थीं। और अलका जी की ये आदत, रोहित और उसके पापा, दोनों को ही बिल्कुल पसंद नहीं थी। लेकिन दोनों की ही अलका जी के आगे एक ना चलती थी। होता वही था, जो अलका जी चाहती थीं। इसलिये रोहित अपनी मम्मी की बातों को नजरअंदाज कर, पराग के साथ, अपने मामा से मिलने चला जाता है। 



     चादर को सर तक ढके, गोलू मामा तो ऐसे लेटे थे, जैसे ये किसी और कि शादी में आये दूर के रिश्तेदार हों। रोहित ने जाकर जब उनके ऊपर से चादर खींचा, तब जाकर सारा मामला साफ हुआ। गोलू मामा सो नही रहे थे, बल्कि होने वाली मामी से फ़ोन पर बतिया रहे थे।


रोहित :- "वाह हमाए प्यारे मामा, हम वहाँ इतनी दूर से सिर्फ आपके लिए यहाँ तक आये, और आप हमें लिवाने स्टेशन तो छोड़ो, घर के बाहर भी नही आ सके???"


गोलू मामा :- (फ़ोन को कान और कंधे के बीच मे दबाये) "अरे क्या बताए भांजे!! घर की महिलाओं ने हमारा घर से निकलना ही बंद करवा दिया है। और हम नीचे आ ही रहे थे कि तब तक तुमाई होने वाले मामी का फ़ोन आ गया।"


रोहित :- "बोहोत सही मामा!!!! अभी शादी हुई नही, और हम से ज्यादा मामी प्यारी हो गयी आपको!!!"


गोलू मामा :- "अरे नही भांजे, ऐसी कोई बात नहीं। वो तुमाई मामी ने तुम्हें थैंक्यू कहने के लिए ही फ़ोन किआ है। तुमने उनके भाई, सौम्य का रास्ते भर जो ख्याल रखा उसके लिए।"


रोहित :- "लाईये जरा हमाई बात कराइये।" (गोलू मामा के हाथ से फ़ोन लेते हुए) "नमश्कार मामी जी! कैसी हैं आप??"


लतिका (रोहित की होने वाली मामी) :- "हम बहुत अच्छे हैं रोहित जी, आप कैसे हैं? सुने हैं कि आप रात भर ठीक से सो भी नही पाए!!!"


रोहित :- "बिल्कुल ठीक सुना है आपने मामी जी, वैसे खातिरदारी करवाना तो लड़के वालों के जिम्मे होता है, लेकिन चलिए कोई बात नही।"


लतिका :- "अरे आप शाम को आएंगे, तो अच्छे से खातिरदारी होगी आपकी। लेकिन सच कहें रोहित जी, पहले दीदी मतलब आपकी मम्मी और आपके मामा, दोनों से आपकी बहुत तारीफ सुनी थी, तो लगा कि ये लोग कुछ बड़ा चढ़ा कर बोल रहे होंगे। लेकिन आज जब सौम्य ने भी आपकी तारीफ की, तो लगा कि आप शायद सच मे ही तारीफ के लायक होंगे।"


रोहित :- "अब ये तो आप हमसे मिलकर बताना मामी जी। वैसे हैं कहाँ आपके भाई साहब????"


लतिका :- "रात को ही मिल लीजियेगा।"



      कुछ और यहां वहां की बातें कर रोहित ने फोन रख दिया और अपने मामा और पराग से बतियाने लगा। इतने दिनों तक जो वह इन सब लोगों से दूर था, तो उन लोगों को अपने हॉस्टल के, इंदौर के कई कहानी किस्से सुनाने लगा। और रह रह कर उसका ध्यान हाँथ में बंधी घड़ी की ओर जाता रहा। अब रोहित के लिए शाम तक का इंतज़ार करना बहुत भारी होता जा रहा था। रोहित ने मामा को डांस के स्टेप भी सीखा दिए, उनके रात को पहनने वाले कपड़ों को भी व्यवस्थित लगा दिया, अपने कपड़ों को भी तैयार कर लिया। मम्मी के साथ बाकी रिश्तेदारों से भी मिल लिया। फ़्री होने के बाद जब घड़ी की ओर देखा, तो अभी तो बस दोपहर के 1 ही बजे थे। अभी तो पूरे 7 घण्टे बाकी थे, बारात निकलने में, और सौम्य से मिलने में। दोपहर का खाना खा कर, रोहित कुछ देर के लिए गोलू मामा के कमरे में ही, थोड़ा आराम करने के लिए लेट गया। और रात भर ठीक से ना सो पाने के कारण उसे तुरंत नींद भी आ गई। और ये नींद का झोंका साथ ले कर आया एक खास सपना, जिस सपने में था सौम्य, उसका भोलापन, उसका नकली गुस्सा और उसकी सादगी। रोहित का ये साधारण सा सपना, सौम्य की वजह से बहुत खास हो गया था। रोहित अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर, अपने स्कूल के अंतिम वर्षो में ही सजग हो चुका था, लेकिन अपने घरवालों, और समाज मे मज़ाक का पात्र ना बनने के उद्देश्य से, उसने अपनी इस सच्चाई को बस अपने तक ही छुपा कर रखा हुआ था। यूं तो कानपुर के कॉलेज, और फिर इंदौर के कॉलेज में उसे काफ़ी लड़के पसंद भी आये, लेकिन उसने कभी उन लोगों के बारे में ज्यादा गंभीरता से विचार नही किआ। लेकिन सौम्य के साथ का ये कुछ घंटों का सफर मात्र, उसके दिल और दिमाग पर इतनी गहरी छाप छोड़ चुका था, की अब सौम्य ने उसके सपनों में भी अपनी जगह बना ली थी। शाम 5 बजे मामा ने रोहित को उठाया, और रात की तैयारियों का एक मुआयना करने को कहा। रोहित ने भी सभी इन्तेज़ामो का निरीक्षण किया। इन सब मे 7 बज चुके थे। और सभी लोग बारात के लिए तैयार भी होने लगे थे। गोलू मामा को तैयार कर, रोहित भी झट से तैयार हो गया। जितनी खुशी उसे मामा की बारात की थी, उससे कहीं ज्यादा सौम्य से मिलने की।


      बारात बड़ी धूम धाम, नाच गाने के साथ, अपने गंतव्य तक जा पहुँची। बारात आगमन की सभी रस्मों के बाद, दूल्हे को प्रांगण में बने स्टेज पर ले जाया गया, जहाँ जय माला का प्रोग्राम किआ जाना था। स्टेज पर गोलू मामा के साथ, उनके कुछ दोस्त, उनके सभी भांजे भंजियाँ, उनका उत्साह बढ़ाने के लिए मौजूद थे। और तभी, प्रांगण के एक कोने से आगमन हुआ, दुल्हन का। एक चमकीली चादर को, चारो कोनो से पकड़े उनके भाई, और उसके नीचे दुल्हन, उसकी सहेलियों और बहनों के साथ स्टेज तक जा पहुँची। यूं तो किसी भी शादी में, जब दुल्हन का आगमन होता है, तो वहाँ मौजूद सभी लोगों की नजरें उसी दृश्य में अटक सी जाती हैं। लेकिन इस शादी में, बस वो 2 नज़रें कुछ अलग सी थीं, जो सभी को नजरअंदाज कर, आपस मे बंधी हुई थीं। वो दोनों नज़रें दूल्हे, दुल्हन की ना होकर, रोहित और सौम्य की थीं। रोहित को सुबह से ही जिस पल का इंतज़ार था, अब वो पल आ चुका था। नीले रंग की चमकीली सी शेरवानी उस पर काले रंग का दुपट्टा लिए, सौम्य बेहद ही मनमोहक लग रहा था। उसने अपने सम्मोहन में रोहित को कुछ यूं बांध रखा था, की गोलू मामा की शादी की एक बहुत खास रस्म, जयमाला, सम्पन्न हो चुकी थी, और रोहित को उसकी कोई सुध भी नही थी। अब सभी लोग स्टेज से नीचे उतर रहे थे, और दूल्हा - दुल्हन के साथ, सभी के फोटो खिंचवाने का सिलसिला शुरू होना था। पराग ने धक्के के साथ, रोहित का सम्मोहन भंग करवाया, और उसे स्टेज से निचे लेकर आया।


पराग :- "क्या हुआ है भैया आपको??? हम सुबह से ही देख रहे हैं, आप कहीं खोये खोये से हो। क्या कोई मामी की सहेली या बहन पसंद तो नहीं आ गयी आपको???"


रोहित :- "हाँ भाई, कुछ ऐसा ही समझ लो!!!'


पराग :- "क्या बात कर रहे हो भैया??? हम अभी मौसी को बताते हैं, वो तो बहुत ही खुश हो जाएंगी। बेचारी कितनी परेशान है आज कल, अपनी बहू की खोज में।"


    

     ये कहते हुए, पराग, रोहित को छेड़ने के बहाने से, अलकायदा जी की और दौड़ पड़ता है। और रोहित भी उसे रोकने के लिए, उसके पीछे भागता है। और जा टकराता है, सौम्य से।



सौम्य :- "अरे अरे रोहित जी, संभाल कर। कहाँ भागे जा रहे हैं?"


रोहित :- "सॉरी सौम्य जी!!! वो बस..... वैसे आज आप बहुत ही अच्छे लग रहे हैं। ये रंग बहुत जच रहा है आप पर!"


सौम्य :- "शुक्रिया!! आप का भी ये मेहरून कुर्ता अच्छा लग रहा है, लेकिन इस पर जो आपने ये सफेद जैकेट डाला हुआ है, वो इसके रंग को दबा दे रहा है। आपको इसके ऊपर काले रंग की जैकेट पहननी चाहिए थी।"


रोहित :- "अरे सौम्य जी, अब आपके यहाँ होते हुए, हमाए ऊपर कोन इतना ध्यान देगा।"


सौम्य :- (अपने एक कज़न भाई से मिठाइयों से भरी थाली मंगवा कर) "हम हैं ना आपको देखने के लिए, ये लीजिये, अब से आपकी ख़ातिरदरी शुरू होती है। हमें आपकी पसंद नापसंद का ज्यादा अंदाजा नही था, इसलिए यहाँ  जो कुछ भी मौजूद था, वो सब आपके सामने हाज़िर है।"


रोहित :- "अरे सौम्य जी, हम तो मामी जी से बस मज़ाक़ किये थे, आप तो सीरियस ही हो गए।"


सौम्य :- "आप लड़के वाले हैं, आपकी खातिरदारी हम सीरियसली ही करना चाहते हैं।"



       सौम्य ने अपने सभी भाई बहनों के साथ मिलकर, सभी बारातियों की खूब खातिरदारी की। सभी बारातियों का बहुत ख़्याल भी रखा। सौम्य का ये रूप देख कर, रोहित थोड़ा आश्चर्यचकित भी था। कल रात में गुस्से को अपने चेहरे पर पहने हुए वाले सौम्य, और आज रात के, चेहरे पर मुस्कान लिए, सबकी पसंद नापसंद का ख्याल रखने वाले सौम्य में, ज़मीन आसमान का अंतर था। जो सिर्फ रोहित को ही समझ आ रहा था, क्योंकि उसके अलावा, किसी ने भी कल वाले सौम्य को जो नही देखा था। लेकिन सौम्य के इस रूप ने भी, रोहित के दिल को और ज्यादा उसके करीब ही ला दिया था। और कल सौम्य बनावटी गुस्सा दिखा रहा था, सौम्य का आज का रवैया इस बात का गवाह था। उधर पराग ने भी मज़ाक मस्ती में, अलका जी और बाकी सभी लोगो को, रोहित भैया को पसंद आई लड़की की खबर को, सब तक पहुंचा दिया था। तो सभी लोग, वहाँ मजूद सभी लड़कियों की तरफ इशारा कर कर के, रोहित से उसकी स्वीकृति माँगने में, और रोहित को छेड़ने में लगे थे। जो कि फेरो का समय आते आते, रोहित के लिए सिर दर्द बन चुका था।



   फेरों से पहले, दूल्हा - दुल्हन के लिए, खाने की एक मेज सजाई गई। जहां दूल्हे ओर उनके कुछ रिश्तेदारों को बड़े ही सम्मान के साथ, लड़कीवालों ने खाना खिलाया। अब लड़कीवालों की तरफ से जो भी लड़की, रोहित को खाना परोसने आती, तो वहाँ बैठे रोहित के सभी रिश्तेदार, कुछ ना कुछ आवाजें निकालते, तालियां बजाते, और रोहित को छेड़ते। इन सब से तंग आकर, कुछ देर बाद, रोहित गोलू मामा को, फेरों के लिए कपड़े बदलवाने के लिए वहाँ से लेकर आ गया। और गोलू मामा को फेरों के लिए तैयार करवा कर, जब उसने खुद को आईने में देखा, तो उसे सौम्य की कही बात भी याद आ गयी, की मेहरून कुर्ते के साथ काले रंग की जैकेट ज्यादा अच्छी लगती।



       कुछ देर बाद, सभी लोग मण्डप के नीचे फेरों के लिए एकत्रित हुए। रोहित सबसे नज़रें बचा कर, सौम्य के पास जा बैठा। और जब सौम्य की नज़र रोहित पर पड़ी, तो सौम्य के चेहरे पर अनायास ही एक मुस्कान छा गयी।



सौम्य :- "अरे वाह रोहित जी। ये ब्लैक जैकेट तो सच मे ही बहुत खिल रही है आपके ऊपर।"


रोहित :- "अब आपकी सलाह को कैसे टाल सकते थे?"



       बस युही सारी रात, रोहित और सौम्य की आँख मिचोली चलती रही। रोहित के अथक प्रयासों के बाद भी, वो सौम्य के मन की बात को समझने में नाकामयाब ही रहा। उसने कोशिशें तो बहुत की, लेकिन इतने सारे रिश्तेदारों के बीच, और पराग की उस मस्ती के बाद तो सबका खास ध्यान रोहित के ऊपर ही होने की वजह से, वो जिस बात को अपने मन मे लेकर यहाँ आया था, की सौम्य के मन को टटोलेगा, उसके मन की बात को जानने की कोशिश करेगा। वो ऐसा करने में नाकामयाब ही रहा। और धीरे धीरे, सुबह भी होने आए थी और सभी विदाई की तैयारियों में भी लग चुके थे। बातों बातों में रोहित को मालूम लग चुका था, की सौम्य शाम की ट्रेन से वापस इंदौर भी जा रहा है। तो अब रोहित के पास समय भी कम ही था, सौम्य को अपने मन की बात बताने ओर उसके मन की बात को जानने का। इसलिए उसने हिम्मत करके, सौम्य को कुछ देर के लिए अपने साथ, उस प्रांगण से बाहर चलने को मना लिया। और दोनों प्रांगण की पार्किंग में जा पहुँचे।



सौम्य :- "क्या बात हो गयी रोहित जी??"


रोहित :- "वो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ.. लेकिन मुझे समझ नही आ रहा कि मैं कहाँ से शुरू करू।"


सौम्य :- (रोहित के मन की बात को भांपते हुए) "एक काम करते हैं रोहित जी, कल दोपहर में आपकी उधार चाय के लिए मिलते हैं, फिर बात करेंगे। अभी दीदी की विदाई भी होनी है, और आपके घरवाले भी आपको खोज ही रहे होंगे। (वहाँ से जाते हुए) रोहित जी आपसे एक बात कहें, आप जो भी हमसे कहना चाहते हैं ना, वो कहने से पहले अपने परिवार के बारे में अच्छे से सोच लीजियेगा। क्योंकि हमें रिश्तों में मिलावट बिल्कुल पसंद नहीं है।"



   अपनी बात कह कर, सौम्य वहाँ से चला जाता है। और रोहित वहां खड़ा खड़ा, सौम्य की कही बात के बारे में ही सोचता रहता है। कि वो यहाँ सौम्य के मन की बात जानने के लिए उसे बुलाकर लाया था, और सौम्य तो उसे और ज्यादा उलझा कर ही चला गया। इतने में पराग रोहित को ढूँढता हुआ वहाँ आ जाता है, और रोहित को वहां से लेकर चला जाता है। कुछ देर में ही, दुल्हन को विदा करा कर, सारा परिवार हँसी खुशी घर वापस आ जाता है, और नई दुल्हन के गृह प्रवेश की रस्म भी शुरू हो जाती है। फिर कुछ लोग रात भर की नींद पूरी करने में लग जाते हैं, और कुछ यहां वहां के काम निपटाने लगते हैं। और रोहित, वो तो अभी भी सौम्य की कही बात का अर्थ ही ढूंढने में खोया रहता है।



       दोपहर होते ही, रोहित सौम्य को फ़ोन करता है, और उसे एक रेस्टोरेंट का पता बताता है, और वहाँ पहुंच कर, सौम्य का इंतज़ार करने लगता है। सौम्य भी रोहित के बताए पते पर पहुंच जाता है, और रोहित से मुलाकात करता है। रोहित कुछ कहे उससे पहले ही सौम्य रोहित से कहता है।



सौम्य :- "रोहित जी मैं गे हूँ, और मुझे ये बात बोलने में कोई संकोच भी नही है। मेरे घरवाले, और मेरे खास दोस्त भी इस बात से अवगत हैं। मैं आपको एक बात और बताना चाहता हूँ। नागपुर में मेरा एक बॉयफ्रेंड भी था, हम साथ मे ही कॉलेज में थे, और हमारा रिलेशन 4 सालों तक चला। हम दोनों ही एक दूसरे से बहुत प्यार भी करते थे। काफी अच्छा समय हमने साथ बिताया है। हम हमेशा शाम की चाय के लिए साथ ही जाते थे, इसलिए अब जब भी चाय पिता हूँ तो उसकी याद आती है।......."


रोहित :- (सौम्य को बीच मे ही रोकते हुए) "क्या आप अभी भी उससे प्यार करते हैं???"


सौम्य :- "नहीं वो बात नहीं है, लेकिन मैं अभी आपसे कुछ और बात करना चाहता हूँ।"


रोहित :- "सॉरी!!!!"


सौम्य :- "कोई बात नही!!! मैं आपकी भावनाओं को अच्छे से समझ सकता हूँ। मैं ये भी जनता हूँ कि आप मेरी तरफ आकर्षित है। और मैं भी कुछ हद तक आपको पसंद करने लगा हूँ। लेकिन मैं जो आपसे कहना चाहता हूं, वो बात थोड़ी अलग है, मैं आशा करता हूँ कि आप उसे समझेंगे।"


     सौम्य अपनी बात बीच मे ही रोक कर, अपना मोबाइल निकलता है, और उसमें एक छोटे से परिवार की फ़ोटो रोहित को दिखाता है। जिसमे एक पति एक पत्नी और उनकी गोद मे एक छोटा सा बच्चा होता है।



सौम्य :- "ये किशोर है, मेरा पहला प्यार। और मेरे मन मे उसके लिए कोई कड़वाहट भी नही है। ये उसका फैसला था, और वो इस फैसले के साथ खुश है। मुझे इस बात का भी कोई मलाल नही, की उसने मुझे छोड़ कर अपने परिवार वालों के कहने पर किसी लड़की से शादी की। लेकिन हाँ, मुझे अफसोस है, की उसने शादी करने के बाद भी, मुझसे रिश्ता जोड़े रखने की बहुत कोशिशें की। और उसी के चलते, मैंने स्वेछा से अपने घर को छोड़ कर, इतनी दूर ट्रांसफ़र ले लिया। ये मेरा फैसला था, और शायद इसके चलते ही, वो अपने जीवन मे खुश रह सके, और मैं अपने।"


रोहित :- "माफ़ी चाहूंगा सौम्य जी, लेकिन हमाई कुछ समझ नहीं आ पा रहा है, की आप मुझसे क्या चाह रहे हैं??"


सौम्य :- "मैं आपसे सिर्फ ये कहना चाहता हूँ रोहित जी, की अगर मुझे एक और टूटे रिश्ते का दर्द सहना है, तो उससे बेहतर मैं अकेला रहना ही पसंद करूँगा। कल मैंने आपके घरवालो की तरफ से जो भी महसूस किया, और जितना भी आपकी मम्मी जी से बात की, वे सभी आपकी शादी को लेकर बड़े उत्साहित हैं। और मैं सिर्फ अपनी खुशी के लिए, इतने सारे लोगो के सपने नही तोड़ना चाहता। क्योंकि सपनों के टूटने का दर्द में अच्छे से महसूस कर सकता हूँ। और जैसा मैंने आपसे कल कहा, की मुझे रिश्तों में मिलावट बिल्कुल पसंद नही है। तो मैं, एक ही समय पर दो रिश्तों को साथ मे जीने के भी पक्ष में नही हूँ। तो हमारे लिए यही बेहतर होगा, की हम अपनी भावनाओं को बस यहीं तक सीमित रखें। और अपनी अपनी ज़िंदगी मे आगे बड़ें।"



     सौम्य अपनी बात कह कर चुप हो जाता है। और कुछ देर के लिए वहां एक दम सन्नाटा छा जाता है। सौम्य रोहित के कुछ कहने का इंतज़ार करता है, और वहीं रोहित, सौम्य द्वारा कही गयी सारी बातों को अपने ज़ेहन में बैठाने की कोशिश करता है। और रोहित की खामोशी का मतलब समझ कर, सौम्य रोहित से अलविदा लेता है।



सौम्य :- "चलिए रोहित जी, अब हम चलते हैं। शाम को हमारी ट्रेन भी है। आपसे मिलकर सच मे बहुत अच्छा लगा, आप एक सच्चे और नेक दिल इंसान हैं। फिर कभी मौका मिला, तो वापस आएंगे आपके शहर कानपुर। वाक़ई बहुत अच्छा शहर है आपका।"



     सौम्य वहाँ से चला जाता है। दरअसल वो आया तो था रोहित के मन की बात जानने के लिए। और उसे उम्मीद भी थी, की रोहित उसकी बात को समझेगा, और इस रिश्ते को एक मौका देने पर थोड़ा तो जोर देगा। लेकिन रोहित की ख़ामोशी ने सौम्य को, असल जिंदगी का आईना ही दिखा दिया था। यहाँ सब प्यार तो करना चाहते हैं, संभोग भी करना चाहते हैं, लेकिन प्यार के रिश्ते को प्यार से निभाना नही चाहते। सौम्य रोहित की खामोशी से थोड़ा आहात तो था, लेकिन जो दर्द उसे इस रिश्ते में आगे चल कर मिलता, वो रिश्ता शुरू ही ना होने से थोड़ा सहज भी था। अपने पिछले रिश्ते के अनुभवों से, रोहित की खामोशी का भी, सौम्य को ज्यादा बुरा नही लग रहा था। वो इस बात से भली भांति अवगत था, की आज कल समलैंगिक प्यार तो बड़ी आसानी से मिल जाता है, लेकिन उस प्यार को स्वीकार कर, अपने घरवालों की रजामंदी लेना हर किसी के बस की बात नही होती। इसलिए आज के दौर में भी, कई समलैंगिक लोग, अपने मन मे तो किसी और को प्यार करते रह जाते हैं, और समाज के या अपने घरवालों के दबाव में, अपनी सारी इकच्छाओ, भावनाओ को दबा कर, किसी और से शादी कर, अपने जीवन मे आगे बढ़ने की झूठी कोशिशें करते रहते है। जिनमे कुछ लोग तो सफल भी हो जाते है, और सारी जिंदगी उस घुटन भारी ज़िन्दगी में निकाल देते हैं, और कुछ उस झूठी शादी के रिश्ते को ज्यादा दिन नही संभाल पाते, और 2 ज़िन्दगियों को बर्बाद कर देते हैं। 



     थोड़े भारी मन से सौम्य अपनी बुआ जी के घर से, सब से विदा लेकर, कानपुर रेल्वे स्टेशन आ गया था। शेखर, सौम्य की बुआ का लड़का, सौम्य को उसकी ट्रैन में बैठा कर अलविदा कह कर वहां से जा चुका था। और ट्रेन भी धीरे धीरे प्लेटफॉर्म से निकल चुकी थी। चूंकि ट्रैन कानपुर से ही बनकर चल रही थी, तो ज्यादा सवारी भी नही थी। और सौम्य के कूपे में तो बस वो अकेला ही था। सौम्य अपनी सीट पर बैठा, खिड़की से टेक लिए, आँखे बंद कर के रोहित के, और उसके साथ बिताए समय के बारे में ही सोच रहा था। कि एक जानी पहचानी आवाज़ उसके कानों में गूंजी।



"एक्सक्यूज़ मी!!!!! क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ??"


     सौम्य ने पलट कर देखा, तो ये कोई और नही, रोहित ही था। अपने प्यारे से चेहरे पर सुंदर सी मुस्कान और आँखों मे हल्की सी नमी के साथ, प्यार की चमक लिए, सौम्य के सामने खड़ा था।


सौम्य :- "रोहित जी आप??"


रोहित :- "वो क्या है ना सौम्य जी, कनपुरिया हूँ, ये प्यार मोहब्बत की बात समझने में थोड़ा समय जरूर लेता हूँ, लेकिन एक बार जो समझ लूँ, तो फिर अपने प्यार को खुद से दूर जाने भी नही देता।"


     सौम्य ने कुछ बोलने के लिए अपना मुँह खोला ही था की, रोहित ने उसे ये बोल कर चुप करवा दिया, की "वहाँ आपने बोला और मैंने सुना, अब आप मेरी पूरी बात सुन लेने के बाद ही बोलियेगा।"



रोहित :- "सौम्य जी मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ, की अगर मैं आपके साथ रिश्ता निभाता हूँ, तो मैं अपने घरवालों के सपने तोड़ दूंगा। लेकिन जब मेरे घरवालों को इस बात का पता चलेगा कि उनके सपनों की वजह से मेरा सारा जीवन एक घुटन में बीतेगा, तो मैं ये दावे से कह सकता हूँ कि वो अपने सपनो के टूटने से कहीं ज्यादा, मेरा जीवन बर्बाद करने से दुखी होंगे। इसलिए मैं अपने और अपने परिवार वालों की तरफ से आपको निश्चिंत कर देना चाहता हूँ, की हमारी तरफ से आपको एक और टूटे रिश्ते का दर्द बिल्कुल नही सहना होगा। और मैं आपकी रिश्तों में मिलावट की बात से भी पूरी तरह सहमत हूँ। मैं ये आपको यकीन दिलाता हूँ, की आपके रहते मेरे जीवन में मैं, किसी दूसरे चाय पार्टनर को भी नही आने दूंगा, बाकी किसी और पार्टनर का तो सवाल ही नही उठता। और एक आख़िरी बात, मुझे ये अफसोस हमेशा रहेगा कि मैं आपका पहला प्यार नहीं हूं, लेकिन आप मेरे पहले प्यार हैं। और मुझे उसी पहले प्यार की कसम, अगर मैंने आपको आपका पहला प्यार, पूरी तरह से ना भूला दिया तो मैं सच्चा कनपुरिया नहीं।"



      रोहित की बात खत्म होते होते, सौम्य की आँखे आँसुओ से तर हो चुकी थीं। रोहित के चेहरे का तेज और उसकी आँखों की चमक को देखकर, ये कहना बिल्कुल भी गलत नही होगा, की रोहित ने अभी जो कुछ भी कहा है, वो सच्चे दिल से और अपने प्यार पर पूर्ण विश्वास के साथ कहा है। सौम्य ने बिना कुछ कहे, आगे आकर रोहित को अपनी बाहों में भर लिया, और उसके होंठों पर अपने प्यार की छाप छोड़, उसे जोर से अपने गले से लगा लिया।



सौम्य :- (अपने आँसुओ को पोंछते हुए) "आपकी बातों से ऐसा लग रहा, की आप अपने घर मे हमारे रिश्ते की आग लगा आये हैं??"


रोहित :- (सौम्य को अपने गले से लगा कर) "नहीं अभी तो बस चिंगारी छोड़ी है, पराग, गोलू मामा और आपकी दीदी, यानी मेरी मामी को बता आया हूँ। अब मम्मी पापा और बाकी सभी को कैसे बताना है, वो लोग संभाल लेंगे। और अगर उनसे नही संभला, तो कुछ टाइम बाद आपको फिर आना पड़ेगा हमारे शहर कानपुर, लेकिन इस बार मेरा सहारा बनकर।"


सौम्य :- (रोहित को मुस्कुराकर किस करते हुए) "I Love KANPUR ❤️"


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Lots of Love

Yuvraj ❤️


 

       







      


 



 














5 comments:

  1. Bahut hi jazbaati Milan ki kahaani likhi hai aapne. Bhaavnaon ko gehrayee se samjha aur pesh kiya hai. Kaash yeh kahani sab ko aise rishton mein bandhne waalon ko yeh sahi marg dikhayi gi. Shukriya.

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    1. Thanq for reading and such a beautiful comment. 😊🙏

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  2. hi Yuvrajji,
    Wowwww bahut hi sundar likkhe ho. Do samlaingik ladkonke jeewan jwar-bhata aur unke feelings ko apne bahut sahi dhangse utara hai. Rohit-somya ki wicharshaily khas hai.यहाँ सब प्यार तो करना चाहते हैं, संभोग भी करना चाहते हैं, लेकिन प्यार के रिश्ते को प्यार से निभाना नही चाहते। ye to bahut badi trajedy hai apne samaj ki.
    Bakike chhupe Rohit-Somya ko inke jaisehi Rohit-Somya mile, aisi asha karte hai.
    ABhinandan, aapne bahut hi achhe sawal pe kahani likkhi hai.

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  3. Apne kahani kahani me gay life ka ek kadwa sach bata diya aa.. log samaj me dar se shadi kar lete aa , ladki ki zindagi to khraba karte hi hain par bahar kisi ladke se bhi rishta banane ke lalach me rehte aa.. dogle log...

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