Wednesday, September 26, 2018

दौर-ए-ज़िन्दगी Part -1

Hello friends....
      I am again here to present my another story before you going to start reading it, I want to say something about this story. हर कहानी आपको कोई उद्देश्य दे या फिर कोई लक्ष्य तक ले जाये, ऐसा जरूरी नही होता। ऐसी ही है मेरी ये कहानी "दौर-ए-ज़िन्दगी"। तो आप बस पढ़िए और कहानी और उसमें प्रयोग की गई कविताओं का लुत्फ उठाइये और हाँ, कहानी में बताए गए समय पर जरूर ध्यान दीजियेगा वरना आप इस कहानी के रस को कहीं खो देंगे। ये कहानी आज से शुरू हो कर ले जाती है आपको बीते समय की गहराइयों में, यहाँ ना तो मैने किरदारों के बारे में बताया है ना ही कहानी में कोई पृष्ठभूमि है, हैं तो सिर्फ वार्तालाप उन लोगो के जो इस कहानी के मुख्य किरदार है, और जिनके इर्द गिर्द ये कहानी घूमती है। आईये आपको ले चलता हूँ समय के उन बीते पन्नो में जहां दो प्यार करने वाले आपका इंतेज़ार कर रहे हैं।......



शायद, शायद मैं तुझे भूला ही देता।।
अगर मेरे दिल के किसी कोने से, वो शाम बीत जाती तो,
तेरे चेहरे की वो मायूसी, मेरी आँखों से निकल जाती तो,
तेरी मुस्कुराहट में छुपा वो दर्द, मेरे दिल तक ना पहुंच पाता तो,
तेरे झुके हुए कंधों का एहसास, मेरे ज़हन में घर ना कर जाता तो,
शायद, शायद मैं तुझे भुला ही देता।।
शायद, शायद तेरी यादों को मेरे दिल से मिटा ही देता।।
शायद, शायद मेरे जीवन मे तेरे नाम का रंग इस कदर बिखरा ना होता।।
शायद, शायद मैं तुझे भूला ही देता।।
अगर मेरे दिल के किसी कोने से, वो मंज़र बीत जाता तो,
तेरी आँखों की वो नामी, मेरी आँखों से निकल जाती तो,
तेरी आवाज़ की वो खामोशी, मेरे कानों तक ना पंहुच पाती तो,
तेरे दूर जाने की चेतना, मेरे ज़हन में घर ना कर जाती तो,
शायद, शायद मैं तुझे भुला ही देता।।
शायद, शायद तेरी यादों को मेरे दिल से मिटा ही देता।।


SEPTEMBER 2018 :


अर्जुन :- "क्या यार पापा !!!!  आपका हर बार का यही हाल होता है, हमे जब भी घर से बाहर जाना होता है, तो आपको घंटों लगते हैं तैयार होने में। मम्मी यार अब आप ही बोलो ना पापा को, की जल्दी करें। 6:30 का show है, और 6 तो हमें यहीं बज गए हैं।"


ममता जी :- "अरे अर्जुन बेटा, मैं तो खुद हार गयीं हूँ कह कह कर, लेकिन ये कोई आज की आदत थोड़ी है। जा पिंकी तू ही जा और खींच कर ले तो आ अपने दादू को।"


रूपेश जी :- "अरे भई, किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं, मैं तैयार हूं। चल भई अर्जुन अब तू तो अपनी खटारा start कर जाके, वरना फिर हर बार की तरह देर होने का कारण मुझे ही बताएगा, तेरी वो खटारा गाड़ी को नहीं। और छाया कहाँ है?? तुम लोग खुद तो तैयार हो नहीं और मेरे पीछे ऐसे पड़े हो, जैसे सारा programe मेरी वजह से ही खराब हो रहा हो।"


ममता जी :- "बस आपको तो मौका चाहिए, अपनी गलती ढाँकने का। छाया आ रही है, पिंकी का पानी लेने गयी है किचेन में। अर्जुन ने भी गाड़ी start करके देख ली है, बस आपकी साज सज्जा खत्म होने का इंतज़ार कर रहे थे सभी।"


अर्जुन :- "क्या यार मम्मी पापा, अब आप लोग बातें करने बैठ गए, चलो भी अब, वहां दीदी और जीजू कबसे हमारा इंतेज़ार कर रहे हैं। छाया...... छाया...... चलो यार, पानी तो वहां भी मिल जाएगा। हम लोगों को वेसे ही बहुत देरी हो रही है।"



समय एक वो पहलू जो, हमारे हाथों की लकीरों में ना था।।
तूने मेरा समय ऐसा फेरा की, जैसा मैं खुद के ज़हन और नसीबों में ना था।
याद है मुझे वो समय तेरा मेरा जो, ना किसी किताबों ना ही किसी के खयालों में था।
याद जब भी आता है वो दौर-ए-ज़िन्दगी, मेरे चेहरे की चमक मेरी आँखों का नूर मेरी खुशियों का वो समय कुछ और ही था।
आज जब पाता हूँ ये साथ-ए-तन्हाई, किसे पता था कि ये समय देखना भी हमारी तकदीरों में था।
समय एक वो पहलू जो, हमारे हाथों की लकीरों में ना था।। 


DECEMBER 2015 : (३ साल पहले )



अंजली :- "बधाई हो मम्मी, आपके घर तो लक्ष्मी आ गयी और finally इतने इंतेज़ार के बाद अब आप दादी भी बन गयी। तुझे भी बधाई हो मेरे भाई। अब तुझे भी पता चलेगा, बाप बनने की खुशी और दर्द, जब रातों में तेरी बच्ची रोयेगी ओर तुझे सोने नहीं देगी। मुझे बड़ा छेड़ता था ना, अब सही हिसाब लेगी मेरी भतीजी।"


अर्जुन :- "अरे दीदी आप भी ना, और यहां तो धीरे बोलो यार, ये हॉस्पिटल है। और जीजू कहाँ रह गए।"


अंजली :- "पागल है क्या?? मैं बुआ बानी हूँ, इतनी खुशी तो होगी ही ना। और क्या बताऊँ अर्जुन, कल बिट्टू का exam है, और उसने अपनी notebook ही खो दी है। तो तेरे जीजू गए हैं लेके उसे,उसके दोस्त के यहां copy करने। वहां से सीधे यहीं आएंगे। और तू ये सब छोड़,बिटिया रानी कहाँ है??? और छाया!!!! वो कैसी है????"


अर्जुन :- "अभी तो अंदर ही OT में ही हैं दोनो, समय तो काफी हो गया, बस आने ही वाले होंगे बाहर। वो तो जैसे ही नर्स ने हमें बताया, तो सबसे पहले आपको ही फोन किया। अभी तक तो हमने भी नही देखा उसे।"


अंजली :- "हाँ, मैं बस हॉस्पिटल के पास ही थी जब तेरा फ़ोन आया। और मम्मी, ये पापा कहां हैं???? कुछ सामान लेने भेज दिया क्या?????"


ममता जी :- "अरे तू जानती तो है, अपने पापा को, दुनिया इधर की उधर हो जाये, लेकिन हर महीने की 15 तारीख को सिनेमा हॉल का 6:30 वाला show नही छोड़ सकते। अभी आये तो थे साथ मे हॉस्पिटल। फिर उनका समय हो गया तो चले गए। और कह के गए हैं, की लड़का हो तो पिंकू और लड़की हो तो पिंकी नाम से ही बुलाना उसे।"


अंजली :- "अरे वाह मम्मी पापा ने तो नाम पहले से ही सोच रखा था।"


अर्जुन :- "अरे दीदी, तू बैठ तो जा, जबसे आयी है खड़ी है। पापा को भी फ़ोन कर के बात दिया था मैंने। बस आते ही होंगे।"


नर्स :- "Excuseme!!!! छाया जी के साथ आप लोग हैं क्या?? हम उन्हें 32 रूम न. में ले जा रहे है, आप लोग भी वही इंतेज़ार कीजिये।"



हंसी खुशी मेरी ज़िंदगी की, सब तेरे चेहरे में ही नज़र आती थी, 
तू जब भी मुस्कुराता था, तो वो हर शाम रंगीन नज़र आती थी।
तेरे मुंह से निकले हर वो शब्द, तेरी वो मीठी सी बोली,
खुले आंगन में चहचहाती चिड़ियों सी नज़र आती थी।
शर्माकर तेरा वो पलकें झुकना, तेरी वो शोख़ी,
मेरे बेरंग जीवन मे रंग भरती नज़र आती थी।
कभी कभी तेरा बस यूँही रूठ जाना भी,
मेरे आसमान में छाई काली घटा सी नज़र आती थी। 
अब ना वो नज़ारे, ना वो मुस्कुराहट, ना वो तेरा चेहरा है,
अब वो दौर-ए-ज़िन्दगी सागर में कहीं डूबी नज़र आती थी।
हंसी खुशी मेरी ज़िंदगी की, सब तेरे चेहरे में नज़र आती थी,
तू जब भी मुस्कुराता था, तो वो हर शाम रंगीन नज़र आती थी।




JUNE  2012 : (6 साल पहले )




रूपेश जी :- "अरे चलो भई ममता जी!!! वहां पीयूष अकेला घबरा रहा होगा। आधा घंटा हो चला है उसका फ़ोन आये, और तबसे आपकी और छाया की पैकिंग नहीं हो पाई।"


ममता जी :- "आ रहीं हूँ, रुको 2 मिनिट। अगर कुछ रह गया तो इतनी दूर से वापस लेने तो आप आओगे नहीं, वो बेचारे पीयूष को ही भागना पड़ेगा।"


रूपेश जी :- "अरे भई तो ये भी कोई कहने की बात है, अब बाप बनने वाला है, थोड़ी परेशानी तो उठानी ही पड़ेगी ना। अब आप चलिये बस। एक तो हॉस्पिटल भी इतनी दूर है, पहुंचने में ही आधा घंटा लग जायेगा। पहले ही बोला था कि यहीं घर के आस पास कोई हॉस्पिटल देख लो, लेकिन ये आज कल के बच्चे सुनते ही कहाँ है।"


ममता जी :- "बस अब आपका चिल्लाना ही बाकी रह गया था। चलिये अब मैं तैयार हूं, वहां वो बच्चे भी जाने कैसे संभाले होंगे खुद को। चलिये, चलिये अब आप देर मत कीजिये।"


रूपेश जी :- "हाँ चलो भई, मैं तो कबसे तैयार हूं। चल भई अर्जुन तू घर पर ही रहना, निकल मत जाना कहीं दोस्तों के साथ। हम तुझे फ़ोन करेंगे, ठीक है!!"


अर्जुन :- "हाँ पापा, dontworry!!! मैं नही जा रहा कहीं। आप लोग निकलो तो लेकिन घर से अब। और हाँ, सबसे पहले मुझे ही फ़ोन करना कि मैं भांजे का मामा बना हूँ या भांजी का।"


रूपेश जी :- "हाँ भई, हमे जैसे ही पता चलेगा हम बताएंगे। अब पहले हमें वहां पहुंचने तो दे। और ये तेरी माँ अब फिर से क्या लेने चली गयी??? लगता है हम यही रह जाएंगे और पीयूष का दोबारा फ़ोन आएगा हमे खुशखबरी देने के लिए।"


छाया :- "अरे पापाजी, मम्मीजी थोड़ी परेशान हो रहीं हैं। और आप जो बार बार आवाज़ लगा रहे हो, तो वो और घबरा रहीं हैं।"


ममता जी :- "आ गयी भई!!! अब इतना समय हो चुका है इन सब को, कुछ समझ ही नही आ रहा कि क्या रख लूं और क्या नहीं। अब वहां नन्हे से बच्चे को किस चीज़ की जरूरत पड़ जाए, मेरा तो दिमाग ही नही काम कर रहा भई। और आप क्या तबसे चिल्ला रहे, आज अगर 15 तारीख होती तो सब छोड़ छाड़ के भाग जाते अपने सिनेमाहॉल, तब नही होती इतनी जल्दी जाने की। लेकिन जरा सी देर मेरी वजह से क्या हो गयी, तो पूरा घर सर पर उठा लिया है।"


रूपेश जी :- "हाँ, हाँ अब चलो। रास्ते मे लड़ लेना। वेसे ही बहुत देर हो गयी है। चल भई अर्जुन, संभालना हाँ घर को, हम पहुंच कर फोन करेंगे।"






तेरे साथ होने का एहसास, अभी भी मेरे ख्यालों में जिंदा है।।
तू जब साथ होता था, तो वक़्त ना जाने कहाँ खो जाया करता था,
तू जब पास होता था, तो हर वक़्त बस मेरा हो जाया करता था,
लेकिन अब तू, तेरा साथ और वो वक़्त, अब भी मुझे याद आता है,
तेरे साथ होने का एहसास, अभी भी मेरे ख्यालों में जिंदा है।।
तेरे चेहरे के वो हसीन रंग, जो तू मेरे जीवन मे भरा करता था,
तेरे व्यक्तित्व की वो सुंगंध, जिससे मेरा हर दिन फूलों सा महका करता था,
लेकिन अब तू, तेरे रंग और वो महक, अब भी मुझे याद आता है,
तेरे साथ होने का एहसास, अब भी मेरे ख्यालों में जिंदा है।।
तू जब मज़ाक में भी मुझसे दूर जाने की बात किया करता था,
तो मेरा दिल ही बैठ जाया करता था,
तू जब मज़ाक में भी साथ ना निभाने की बात किया करता था,
तो मायूसी का आलम मेरे मन मे घर कर जय करता था, 
लेकिन अब तू, और तेरा वो मज़ाक, मुझे अब भी याद आता है,
तेरे साथ होने का एहसास, अब भी मेरे ख्यालों में जिंदा है।।





NOVEMBER 2011 : ( 7 साल  पहले )



रूपेश जी :- "चलिए ममता जी, ये काम और निपट जाये तो हम अपनी जिम्मेदारियों से आज़ाद हो जाएंगे।"


ममता जी :- "क्या आप भी, अर्जुन की शादी है, कोई काम थोड़ी। और आप कहाँ अभी से आज़ाद होने की बात कर रहे?? अभी तो अंजलि के बच्चे फिर अर्जुन के बच्चे, अभी तो आपकी दादा और नाना की सारी ज़िम्मेदारियाँ बाक़ी है।"


रूपेश जी :- "अरे ये सब तो जीवन चक्र है ममता जी, ये सब तो ऐसे ही चलता रहेगा। हमारे बच्चे अच्छे से अपने अपने जीवन मे आगे बढ़ रहे हैं, बस यही सबसे अच्छी बात है। और आप तो कितना नाराज़ थी अंजलि की शादी के वक़्त, वो तो मैं था, जो सब अच्छे से निपट गया, और देखो क्या पीयूष से ज्यादा खुश कोई और रख पाता हमारी अंजलि को??"


ममता जी :- "तो मैंने कब बोला की आपने कुछ गलत किआ, मैं तो बस समाज वालो की, नाते रिश्तेदारों की बातों से परेशान थी। लेकिन जब आज सोचती हूँ तो लगता है कि आप ही सही थे। चाहे भले ही पीयूष हमारी बिरादरी का नही, लेकिन बड़े अच्छे से रखता है भई, हमारी अंजलि को।"


रूपेश जी :- "हाँ तो, हमारी अंजलि की पसंद है, गलत कैसे हो सकती है। अब बस कुछ समय बाद एक प्यारा सा नाती भी शामिल हो जाएगा हमारे परिवार में"


ममता जी :- "अच्छा!!! आपको कैसे पता कि लड़का ही होगा??? मैं तो कहती हूँ, जो भी हो बस सब अच्छे से हो जाये।"


रूपेश जी :- "अरे लड़की होने से भी मुझे कोई दिक्कत नही भई, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि अंजलि के तो बिट्टू ही होगा।"


ममता जी :- "वाह भई!!! आपने तो नाम भी रख लिया?? और लड़की हो गयी तो??"


रूपेश जी :- "तो क्या उसका नाम बिट्टी रख देंगे। लेकिन मुझे लगता नही की लड़की होगी।"



ममता जी :- "आप और आपकी बातें, चलिये अब ये सब छोड़िये और उठिए,  बहुत सारा काम है, कल ही सगाई है और 10 दिनों में ही शादी। ये पंडित जी को भी कोई और मुहूर्त नही मिला, अब सब जल्दी जल्दी में करना पड़ेगा। एक तो एक ही बेटा है मेरा, और उसकी भी शादी इतनी भड़बड़ी में। कहीं कुछ रह गया तो लड़कीवाले क्या सोचेंगे??"


रूपेश जी :- "आप भी बेवजह चिंता करती हैं, ममता जी! बहुत समय है, सब आराम से हो जाएगा। और कुछ रह भी गया तो भार्गव जी संभाल लेंगे, बहुत ही सुलझे हुए लोग हैं, और छाया भी बड़ी ही प्यारी बच्ची है।"


ममता जी :- "हाँ वो तो है, लेकिन इस बार भी तैयार हो जाइए, वही सब बातें सुनने के लिए, लोगों को तो एक बार फिर मौका मिल गया हमे सुनाने का।"



रूपेश जी :- "अरे भई फिर से वही सब बात!!! जो अंजलि की शादी के वक़्त समझाया था, मैं फिर से वही सब समझता हूं, बच्चो की खुशी से बड़ कर कुछ नहीं होता ममता जी!!! और लोगों का क्या है, आज बोलेंगे कल को भूल जाएंगे, लेकिन वो रिश्ता तो हमारे बच्चों को निभाना है ना। और अर्जुन की पसंद है, गलत कैसे हो सकती है। चलिये अब आप ये सब बातें निकालिये अपने दिमाग से, और तैयार हो जाइए। बाजार नही चलना खरीददारी के लिए??"



ममता जी :- "ना भई!!! आपके साथ नही जाना मुझे!!! मेने अर्जुन को बोल दिया है, साथ चलने को। बोलोगे एक जगह का और लेके जाओगे दूसरी जगह। और वेसे भी आज 15 तारीख है, आपको तो सिनेमाहॉल जाना होगा शाम को। अब वो काम तो नही रुक सकता चाहे भले ही इकलौते बेटे की शादी में ही कुछ रह जाये। आप अपना काम देखो, मैं तो अर्जुन के साथ चली जाउंगी।"




तू जो हर दम सांसो सा मेरे साथ होता।
             तेरा हर दम दिल से धड़कन सा साथ होता।
चलने न पति मेरी नब्ज एक पल भी।
             तू यादों में ही सही, गर मेरे ख्यालों में मेरे साथ न होता।
तूने मुझसे ही जो मेरा मेल ना कराया होता।
             मेरे बिखरे सपनो को नया जहां ना दिखाया होता।
उलझी ही रहती मेरी दुनियां तेरे साथ के बिना।
             तू यादों में ही सही, गर मेरे ख्यालों में मेरे साथ ना होता। 
जाने कैसा होता वो आलम जो तू सच मे मेरे साथ होता।
             इस वक़्त तू मेरे ख्यालों में नहीं मैं तेरे रूबरू होता।
सजाया ना होता ये ख्वाबों का बाजार अपने दिल-ओ-दिमाग मे।
             तू यादों में ही सही, गर मेरे ख्यालों में मेरे साथ ना होता।



DECEMBER  2007 : (11 साल पहले)



ममता जी :- "अर्जुन जा तू अंदर जा। अपनी दीदी और पापा की बातें सुनेगा तो कल को तू भी यही करेगा।"


अंजली :- "मम्मी आप अर्जुन पे क्यों चिल्ला रही हो, आपको गुस्सा करना है तो मुझ पर करो। जो भी कहना है, मुझसे कहो ना।"


ममता जी :- "मेरे कुछ कहने का कोई फर्क ही कहाँ पड़ता है, होना तो वही है , जो तेरे पापा कहेंगे।"


अंजली :- "नहीं मम्मी, ऐसा बिल्कुल भी नही है। मैं आपको दुखी रख कर कुछ नही करूँगी। आपकी हाँ भी उतनी ही important है जितनी पापा की।"


ममता जी :- "बस भई बस!!! ये चिकनी चुपड़ी बातें अपने पापा से ही कर तू। इन सब बातों से मेरा फैसला नही बदलने वाला।"


रूपेश जी :- "अरे भई ममता जी!!! आप एक बार मिल तो लो उस लड़के से। बिना मिले, बिना जाने पहचाने ही आप तो अपना फैसला सुना रही हो। आप तो suprime court के जज से भी खतरनाक हो भई।"



ममता जी :- "मज़ाक चल रहा है यहां??? बस आपके लाड़ प्यार ने ही बिगाड़ रखा है दोनों को। और ये कोई छोटी बात नही है, जिसे मजाक में भूला दूँ मैं। समाज भी कुछ होता है, क्या कहेंगे बिरादरी वाले, आपने कभी सोचा है।"



रूपेश जी :- "अरे ममता जी आप भी न! 2008 आने वाला है 15 दिनों में और आप सन 1875 की बात कर रही हो। आप ये सोचो न कि आप की बिटिया पहले आप से आप की राय मांग रही है। वरना, आज कल की लड़कियां तो पहले शादी करती है, फिर माँ बाप को बताती हैं।"


ममता जी :- "टांगे न तोड़ दूँ मैं ऐसी बेटियों की। घर से ही निकलना बंद कर दूंगी मैं अब तेरा।"


रूपेश जी :- "अरे भई ममता जी आप इधर आओ!! और मेरी एक बात ठंडे दिमाग से सोचो। वो क्या बोल रही है?? वो बस इतना ही तो कह रही है, की उसका एक दोस्त है जो उसे पसंद है, अब आप मिल लो उस से, आपको भी पसंद हो तब बात आगे बढ़ाना। अब अगर हम भी अंजलि के लिए लड़का ढूढ़ने जाते तो यही करते ना, पहले लड़के से मिलते, उसे जानते पहचानते, अगर पसंद आता तो बात आगे बढ़ाते। बस फर्क इतना सा है कि लड़का हमने नही अंजलि ने ढूंडा है।"



ममता जी :- "इतना सा फर्क होता तो बात ही क्या थी। एक तो लड़का हमारे समाज का नही, ऊपर से वो अनाथ है। कैसे रहेगी ये उसके साथ, कैसे संभालेगी सब अकेले। और समाज मे हमारे लिए कितनी बातें बनाई जाएंगी की कहाँ पटक दी अपनी लड़की। और ये सब आपको इतनी सी बात लग रही है।"



रूपेश जी :- "अरे भई अनाथ कहाँ, हम सब लोग होंगे न इनके साथ। इसमे इतना क्या सोच रही हो आप??? एसे सोचो कि हम लड़के को घरजमाई भी बना सकते है, और लड़के के माँ बाप के गुस्सा होने का भी नही सोचना पड़ेगा हमे।"



ममता जी :- "आपसे तो बस मज़ाक करवा लो। और तू क्या वहां खड़ी हो कर अपने दांत दिखा रही है, रुकजा आके बताती हूँ।"


रूपेश जी :- "अरे अरे ममता जी सुनिए!! अच्छा मै मज़ाक नही करूँगा अब, बस ठीक है। सुनिए!! आप समाज के बिरादरी के बारे में क्यों सोच रही हैं, ये लोग तो तब भी बोलेंगे जब आप अपनी लड़की की शादी Mark Zukerberg से ही क्यों न कर दें। आज बोलेंगे और कल भूल जाएंगे। लेकिन ये रिश्ता तो हमारी बिटिया को निभाना है, हमे निभाना है। तो क्यों न हम सिर्फ अपने बच्चों की खुशी के बारे में सोचें बस। और ये लड़का हमारी बिटिया की पसंद है भई, क्या आपको अपनी बेटी पर भरोसा नही, या उसकी पसंद पर। आप एक बार मिल तो लीजिये लड़के से, फिर जैसा आप कहेंगी, हम सब वेसे ही करेंगे। ठीक है। अब तो मान जाइये देवी जी।"




ममता जी :- "ठीक है। कल बुला लो उसे, लेकिन दोनों बाप बेटी कान खोल के सुन लो, अगर मुझे वो लड़का पसंद नही आया तो कोई भी दोबारा नाम नही लेगा उस लड़के का इस घर मे। और आप एक बात बताओ, ये mark jukr..... jukrbr कौन है???? हमारी ही बिरादरी का है क्या??? अगर आपके पास उसके माता पिता का फोन नंबर हो तो दीदी को देदो, वो लोग बहुत परेशान है सुमन बिटिया के रिश्ते को ले कर।"


रूपेश जी :- "हाँ, हाँ क्यों नही। मैं सारि details दे दूंगा, और ये अंजलि के पास तो उसका फ़ोटो भी है। अरे अंजलि , फ़ोटो दिखा भई अपनी मम्मी को। Zukerberg की नही...... पीयूष की। और मैं आता हूं जरा कल के show के tickets लेकर। अगर सब ठीक राह तो सब साथ चलेंगे, नही तो में तो अकेले जाऊंगा ही।"


ममता जी :- "आप और आपकी सिनेमाहॉल। बाकी कोई तो है ही नही इस दुनियां में। चल अंजलि तू आ इधर, और दिखा मुझे फ़ोटो। और पीयूष का तो ठीक है, लेकिन तू ये mark jukr.... jukrbr की फ़ोटो क्यों रखे है अपने पास??? बहुत बिगड़ गए हो तुम आज कल के बच्चे।"



कहने को तो हम साथ नही, तेरे दिल के पास नही।।
मगर जब भी तेरा ख्याल आये, इस दिल ने सजाये है अरमान कई।
गहराइयों में दिल की कहीं, जगह ऐसी कोई बाकी नहीं।
अक्स तेरा ही नज़र आये, सपनो में आये बस तेरा चेहरा ये हंसी।
कहने को तो हम साथ नही, तेरे दिल के पास नहीं।। 
गुजरा वो वक़्त जब भी याद आये, प्यार का सैलाब और आंधियां लाये कई।
क्यों वो अधूरा सा सपना छोड मुझे जाता नहीं, तेरे प्यार की महक वो सादगी अब कहीं बाक़ी नहीं।
मेरे दिल को न जाने अब कैसे सुकून आये, तेरे साथ कि घड़ियां न जाने दिल के किस कोने में हैं बसीं।
कहने को तो हम साथ नही, तेरे दिल के पास नहीं।।





          शायद ये कहानी किस तरफ जा रही है आपके मन की तरंगों ने आपको बता भी दिया होगा अब तक। और अगर नही बताया है तो कुछ दिनों में पता चल ही जायेगा कि ये कहानी है किसके बारे में? इस कहानी का अंत तो आपने देख ही लिया है, शुरुआत देखने के लिए आएगा जरूर इस कहानी के अंतिम भाग को पढ़ने।



Lots of Love
Yuvraaj ❤️ 


Monday, September 17, 2018

कहानी तेरी मेरी. Final part

Hello friends....
     If you not read the first part than plz first read it. Than you will easily be connected with this part. Here the final part goes.....



       अपना tour  खत्म कर अनुज कुछ दिनों बाद दिल्ली वापस लौट आता है। यूँ तो कभी कभी उसे आलोक का चेहरा याद आता है, लेकिन फिर मुस्कुरा कर वो उसे भूला भी देता है। अब तो अनुज अपनी कंपनी का Managing director बन कर office   जाना भी शुरू कर चुका था, और थोड़ा थोड़ा काम मे भी व्यस्त रहने लगा था, लेकिन उसका मन तो अभी भी वापस विदेश जाने के सपने को ही सजाये हुए था। उसे इंतेजार था तो बस अपने डैड की शर्त पूरे हो जाने का। लेकिन उसके डैड ऐसे ही इतने बड़े buisnessman नहीं बन गए थे, उन्हें अच्छे से पता था कि वो कैसे अनुज को यहां रोकेंगे, और ये शर्त भी बस महज़ एक रास्ता थी, उस लक्ष्य को पाने का। शुरुआत में वो उसे बहुत ही आसान काम करने दे रहे थे, जिसे पूरा करने में अनुज को कोई खासी मुश्किल भी नही हो रही थी, जैसे ही अनुज अपना काम पूरा करता तो उसकी खूब तारीफें की जातीं और अनुज के लिए एक छोटी सी succes party भी रखी जाती। इससे अनुज को भी अपनी काबलियत पर गर्व महसूस होता था। ऐसे ही धीरे धीरे कब 6 महीने बीत गए अनुज को पता ही नही चला, और जिस काम को वो बस एक बोझ समझता था, कब वो काम उसके मन मे घर कर गया, उसने ये बदलाव महसूस ही नही किआ ।  अब अनुज अपनी कंपनी के एहम फैसलों और कामों में भी अपना योगदान देने लगा था, अब पहले की तरह अनुज के हर काम पर कोई party तो नही होती थी, लेकिन उसके काम को अभी भी सराहा खूब जाता था। और अब तो वापस विदेश जाने का ख्याल अनुज के मन के किसी कोने में खो ही गया था। अब उसके मन मे भी अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने और अच्छे से काम करने का जज़्बा घर कर चुका था। इन 6 महीनों में अनुज कई लोगो से मिला, कई सारी gay dating sites पर भी गया, लेकिन उसे वो शोखियां ओर वो मासूमियत दोबारा देखने को नही मिली, जो वो वहां ओरछा के hotel room में सोता छोड़ आया था। अब धीरे धीरे अनुज अपनी ज़िंदगी के उस मुकाम पर पहुंच गया था, जहां अब उसमें ना तो पहले की तरह लड़कपन, और ना अपने शारीरिक भूक मिटाने की वो मानसिकता थी, जो पहले हुआ करती थी। अब वो किसी अपने का ऐसा साथ ढूढ़ रहा था, जिसके साथ वो प्यार से रह सके, अपने सुख, दुख बांट सके, और अपनी एक छोटी सी प्यार भरी दुनियां बसा सके। लेकिन उसकी ये खोज खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी।


         उसके मन मे जो उसके हमसफर की छवि बसी हुई थी, कोई उस छवि को पूरा ही नही कर पा रहा था। और वो जो छवि उसके मन मे बस चुकी थी, वो कंही न कंही आलोक की ही परछाई थी। वो एक ऐसा साथी ढूंढ रहा था, जिसमे आलोक की तरह मासूमियत हो, आलोक की तरह सादगी हो, और सबसे बड़ी बात, वो उस प्यार को ढूंढ रहा था, जो उसने एक दिन की मुलाकात में ही आलोक की आंखों में  देखा था। लेकिन अभी अनुज इस बात से बिल्कुल अनजान था, की जिस प्यार की मूरत को वो अपने मन मे बसाये बैठ है, वो महज़ कोई परिकल्पना नही बल्कि आलोक की ही शख्सियत है।   उसने कई बार ओरछा जा कर आलोक से मिलने का भी मन बनाया लेकिन काम के प्रति उमड़ी लगन ने उसे ऐसा करने का मौका ही नही दिया। और इसी तरह देखते देखते 2 साल भी गुजर गए।



        आज अनुज थोड़ा जल्दी में था, उसे आज office जल्दी पहुंचना था। आज उसकी नई फैक्ट्री के लिए staaf की भर्ती का दिन था। अनुज office पंहुचा तो वहां काफी भीड़ थी। अखबार में निकाले गए भर्ती के विज्ञापन ने हजारों नवयुवकों को अनुज के office का रास्ता दिखाया था। उसने भीड़ को देखते हुए, कुछ resumes अपने office में मंगवा लिए, जिनका enterveiw वो खुद ही लेने वाला था, और  उसके कहे अनुसार कुछ resumes अनुज के आफिस में भी पहुंचा दिए गए। Resumes को अनुज उनकी qualification और work experience के हिसाब से arrange कर रहा था, की वो अचानक से रुक गया। उसने अपने office के बाहर बैठी अपनी secetry को फ़ोन लगाया और बोला...


अनुज :- "आलोक रावत को अंदर भेजिए!!!"


      और वो अपने office के दरवाजे पर टकटकी लगाए देखने लगा। वो देखना चाह रहा था, की क्या जो उसका मन सोच रहा है वो सही है, क्या ये आलोक रावत, वही आलोक है जो उसे ओरछा में मिला था। इन्ही कई ख्यालों के साथ अनुज बस अपनी सांसे थामे इंतेज़ार कर रहा था, उस दरवाजे के खुलने का। दरवाजा खुला ओर एक आवाज आई...


"May I come in???"
  
अनुज :- "yes!!!! Come in!!!"


        जो अनुज सोच रहा था, वही हुआ, उसका वो सपना, उसका वो ख्वाब, हकीकत में उसके सामने खड़ा था। ये आलोक ही था जो अपने चेहरे पर कई सारे mixed imotions लिए दरवाजे पर खड़ा था। उसके चेहरे पर गुस्सा भी था, कई सारे सवाल भी, हताशा भी थी, और अनुज के लिए नफरत भी। कुछ देर वही खड़े रहने के बाद, आलोक बिना कुछ बोले वहां से जाने लगता है। तभी अनुज भागता है और आलोक का हाथ पकड़ उसे रोक कर खींच कर अपने office के अंदर ले आता है। और बिना वक़्त गवांए मुस्कुरा कर आलोक को गले लगा लेता है। इतने सालों बाद , आलोक को यूं अचानक देख कर उसे बहुत खुशी होती है, और खुशी हो भी क्यों न, जिस मूरत को अनुज ने अपने मन मे बसा रखा था, जिसकी तलाश में अनुज न जाने कितने लोगों से मिल चुका था, उसी मूरत की हूबहू शक्ल लिए आलोक जो उसके सामने खड़ा था। फिर आलोक ने धक्का दे कर खुद को अनुज से दूर किआ।


आलोक :- " Behave your self!!! ये कोई hotel room या तुम्हारा घर नही है, और अब ना ही मैं वो छोटे शहर का नासमझ लड़का।"


       और आलोक एक बार फिर वहां से जाने लगता है, और एक बार फिर अनुज उसे हाथ पकड़ कर रोकता है।


अनुज :- "क्या हुआ यार???? इतने सालों के बाद तुम्हे मुझे देख कर ज़रा सी भी खुशी नही हुई???"


आलोक :- "खुशी???? किस बात की खुशी??? अगर तुम्हारा चेहरा मुझे याद न होता तो जरूर खुशी होती!!"


अनुज :- "ऐसा क्या हो गया यार??? तुम्हे याद नही, हमने कितना अच्छा समय साथ मे बिताया था, तुम्हारे गांव...... वो क्या नाम था...."


आलोक :- "ओरछा!!! काश मेरे गांव के नाम के साथ तुम मुझे भी भूल गए होते।"


अनुज :- "क्या हुआ यार आलोक??? तुम इस तरह से क्यों बात कर रहे हो??? मैने कुछ गलत बोल दिया क्या??? इतने गुस्से में क्यों हो तुम???"


आलोक :- " गलत??? मतलब जो तुमने मेरे साथ किआ वो सब सही था तुम्हारे लिए???"


अनुज :- " यार इसमे क्या गलत और क्या सही!!! हम दोनो के बीच जो कुछ भी हुआ वो हम दोनी की मर्जी से ही तो हुआ था। मैन कोई जबरदस्ती थोड़ी की थी तुम्हारे साथ। Common यार इतनी छोटी सी बात को तुम अब तक लिए बैठे हो!! This is not fair yaar!!!"
     
आलोक :- " छोटी बात तुम्हारे लिए होगी, मेरे लिए नही। और fair ओर unfair की बात तुम तो ना ही करो। सही कहा तुमने कोई जबरदस्ती नही थी, मेरी ही गलती थी, जो मैंने तुम पर भरोसा किआ। मेरी ही गलती थी, जो मैंने तुम्हें मौका दिया कि तुम मुझे धोका दे सको।"


अनुज :- " अरे हद्द है यार!! में इतने politly बात कर रहा हूँ और तुम तो चढे ही जा रहे हो। और क्या ये भरोसा, धोका??? कहा से आ गया ये सब। हम मिले, हमने साथ मे वक़्त बिताया, thats it, इतना क्या serious हो रहे हो इस बात के लिए???"


आलोक :- " मुझसे प्यारी प्यारी, मीठी मीठी बातें करना, सिर्फ अपने बिस्तर तक ले जाने के लिए, और अपना मतलब पूरा हो जाने के बाद , पैसे फेक कर मुझे वही अकेला छोड़ जाना, क्या इसे धोका देना नही कहते, क्या इसे भरोसा तोड़ना  नही कहते??? हम छोटे शहरों के लोग बिकाऊ और बाज़ारू नही होते , हम अपना काम कर के पैसा कमाना जानते हैं, इसके लिए हमे अपना जिस्म बेचने की जरूरत नही होती।"


अनुज :- "यार तुम मुझे गलत समझ रहे हो, वो पैसे तो तुम्हारी guiding job के लिए थे, और मेरा आगे का प्लान भी तो था, और तुम बहुत गहरी नींद में थे, इसलिए मैंने तुम्हें disturb करना ठीक नही समझा। और दिल्ली वापस आकर मेने तुम्हे  contact भी करना चाहा, लेकिन मेरे पास कोई phone no या कोई mail id कुछ भी नही था।"
    
आलोक :- "बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे, तुम आज भी बिल्कुल वेसे के वेसे ही हो। और मेरी contact list तो तुम्हारे पास तब होती न , जब तुम मुझसे कोई contact रखना चाहते। तुम्हे तो सिर्फ इस्तेमाल करना ही तो आता है। I am sorry, मैं भी न जाने कहा अपना सिर फोड़ रहा हु। You have many other works to do. I am sorry for waisting your time." 


       ये बोलकर आलोक तो दरवाजा अनुज के मुंह पर बंद करके चला जाता है, लेकिन कई सवाल छोड़ जाता है अनुज के दिल और दिमाग में, जिनके जवाब अनुज को उसके अंतर्मन में ही मिल सकते थे। आलोक के मुताबिक अनुज में कोई भी बदलाव नही आया था, लेकिन ऐसा नही था, कुछ बदलाव तो जरूर आये थे, और एक ये की अनुज अब proffessional हो चुका था, अपने काम की जिम्मेदारी समझने लगा था। तो अपने मन के ये कई अनसुलझे सवालों को दरकिनार कर, लग गया वापस अपने काम मे। बाहर इतने सारे लोग जो इंतेज़ार कर रहे थे।


      रात को जब अनुज अपने बिस्तर पर लेटा तो सुबह हुई घटना को याद करने लगा। आलोक के सवाल और उसका चेहरा, अनुज के दिल और दिमाग को घेरे हुए थे, और वो सोचने लगा कि उसने ऐसा किआ क्या है, जो आलोक के मन मे उसके लिए, इतनी नफरत भारी हुई है। और वो इन्ही सब सवालो के जवाब ढूंढने के लिए आंखे बंद कर उस समय के बारे में सोचने लगा जब वो ओरछा में अनुज से मिला था। उस बीते समय को याद करके अनुज के चेहरे पे एक मुस्कुराहट भी थी, और आपनी की हुई गलतियों का एहसास भी। जब अनुज ने वो समय याद किया, तब उसे समझ आया कि उसने जो आलोक के साथ किआ है, जिसे वो महज़ एक इत्तेफाक समझे बैठा था, आलोक के लिए क्यों वो इतना चुभन का कारण बन हुआ था। आज जो भी अनुज अपनी की हुई गलतियों को महसूस कर पा रहा था, ये सब उसकी बदली शख्सियत की बदौलत ही था, वरना कुछ सालों पहले के अपने उस व्यवहार को अनुज बस बेफिक्री और मनमौजी होने का नाम ही देता।


       उन भीनी यादों में कब अनुज की आंख लगी, और कैसे एक हसीन सपना और उस सपने में एक हसीन चेहरा , कैसे उसे प्यारी थपकियाँ देकर सुलाए रखा, उसे पता ही नही चला। अनुज की आंख खुली उसके सुबह के अलार्म से। रात के सपने ने अनुज के मन मे बसी तस्वीर, जिसकी तलाश में वो अब तक कई चेहरों से मिल चुका था, उसे साफ कर दी थी। अब उसे पता लग चुका था, की वो जिस हमसफ़र की तलाश में है, वो कोई और नही बल्कि आलोक ही है। अनुज तुरंत अपने बिस्तर से उठा और फ़ौरन तैयार हो कर office भी आ गया। इस नए एहसास ने तो उसकी भूख प्यास ही मिटा दी थी, और office आना भी मानो बस मजबूरी हो, क्योंकि आलोक का phone no उसका address, वो तो उसी resume में था, जो अनुज के office की टेबल पर पड़ा था। अनुज, आलोक से मिलना चाहता था, अपने गलत व्यवहार के लिए आलोक से माफी मांगना चाहता था, और आलोक को अपनी ज़िंदगी मे, एक नए रिश्ते के नाम से लाना चाहता था। और अपनी ये सारी चाहते लिए, अनुज पहुंच गया था, आलोक की चौखट पर, हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए। अनुज ने बहुत आस भारी निगाहों के साथ, आलोक के घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खोला, अनुज से कुछ 15, 16 वर्ष अधिक आयु के एक आदमी ने।


अनुज :- " आलोक..... आलोक रावत.... यही रहता है क्या??" 


      दरवाजे पे खड़ा आदमी कोई भी जवाब देता, उस से पहले ही पीछे से आलोक वहां आ गया।


आलोक :- " कौन है दरवाजे पर???"


      अनुज को दरवाजे पर पाकर आलोक का तो गुस्सा फिरसे सातवे आसमान पर था, और ये उसके चेहरे के बदले रंग से साफ महसूस किया जा सकता था।


आलोक :- " तुम!!!! तुम यहाँ क्या कर रहे हो??? अब और क्या बाकी रह गया है, जो मेरे घर तक चले आये???"


     अनुज कहना तो बहुत कुछ चाहता था, माफी भी मांगना चाहता था, लेकिन वो झिझक रहा था, वो झिझक आलोक के लिए नही, बल्कि उस अनजान व्यक्ति के लिए थी। अनुज को लगा कि शायद वो आलोक का land lourd हो, और भला उसके सामने वो अपने मन की बाते कैसे कर सकता था। फिर भी अब वहां चुप तो नही खड़ा हो सकता था, वो दोनों घर के अंदर से अनुज के ही कुछ बोलने का इंतज़ार कर रहे थे। अनुज ने भी थोड़ी कोशिश की।


अनुज :- " मैं अपनी गलतियों के लिए ही तुमसे माफी मांगने आया हूँ। और ये फूल भी तुम्हारे लिए लाया हूं। क्या मैं अंदर आकर , अकेले में तुमसे कुछ बात कर सकता हूँ???"


     अनुज ने अपनी बात के आखिरी शब्द उस अनजान व्यक्ति की तरफ देख कर कहे, जो अभी भी वंही खड़े होकर उन दोनों की बातें सुन रहा था। और अनुज का इशारा समझ, वहां से जाने भी लगा, तभी आलोक ने उसे रोक।


आलोक :- " अकेले में क्या बात करनी है??? तुम्हे मुझसे जो भी बात करनी है यहीं करो!!!"


      अनुज ने आगे बढ़कर, फूलों का गुलदस्ता आलोक को देने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए, और धीरे से बोला...


अनुज :- " I am really sorry for our past!!! लेकिन यूँ अजनबी के  सामने तो तमाशा मत बनाओ। मुझे तुमसे माफी मांगने का एक मौका तो दो। मैं आज यहां हमारे बारे में कुछ बात करने आया हूँ।"


        आलोक ने अनुज के हाथ से वो गुलदस्ता छीन कर वहीं जमीन पर फेंक दिया।


आलोक :- " अजनबी??? कौन अजनबी??? For your kind information, he is my husband.  अग्नि के सात फेरे लेकर हमने शादी की है। इन्हें मेने हमारे so called past के बारे में भी सब बताया हुआ है। किसी को अंधेरे में रख कर या अपने मन की बात छुपा कर, बिल्कुल तुम्हारी तरह, मुझे कोई काम करना नही आता। ये वो इंसान हैं, जिन्होंने मेरा तब साथ दिया, जब मुझे किसी अपने के साथ कि सबसे ज्यादा जरूरत थी। ये वो इंसान हैं, जिन्होंने मुझे तब अपनाया, जब मेरे पास इन्हें देने के लिए कुछ भी नही था। ये वो इंसान हैं, जिन्होंने मुझे तब प्यार करना सिखाया, जब मेरा प्यार पर से भरोसा ही उठ चुका था। और तुम बात कर रहे हो तमाशे की, तमाशा तो वो था, जब मेरे ही शहर में लोग मुझे ही गलत नजरों से देखने लगे थे, वो भी उस गलती के लिए जो मैंने कभी की ही नही थी। तमाशा तो वो था, जब  मेरी माँ ने सबके ताने सुन सुन कर अपना दम तोड़ दिया था। तमाशा तो वो था, जब मेरी माँ के अंतिम संस्कार में कोई भी आने को तैयार नही था, और जानते हो क्यों? क्योंकि वो, पैसो के लिए होटलों में रात गुजारने वाले गंदे इंसान की माँ थी। तुम तमाशे की बात करते हो, तुम्हारे उस फैसले ने तो, मेरी ज़िंदगी को ही तमाशा बना दिया था। मैं तुम्हे कभी माफ नही कर सकता, कभी नही।


       ये कहकर आलोक ने अनुज के मुंह पर ही दरवाजा बंद कर दिया, और दरवाजे पर खड़ा अनुज बस अभी भी उस बन्द दरवाजे को ही देखे जा रहा था। और सदमे में सोचे जा रहा था कि उसकी एक छोटी सी भूल का कितना गहरा असर पड़ा है आलोक की ज़िंदगी पर। वो आलोक की माँ के देहांत और आलोक की आप बीती से तो हैरान था ही , और आलोक की शादी की बात सोच कर परेशान भी था। वो वंहा से मुड़ता है, और वहां से जाने लगता है। तभी वो बंद दरवाजा फिरसे खुलता है, और एक अजनबी आवाज में अनुज अपना नाम सुनकर रुक जाता है, और मुड़ कर देखता है। दरवाजे पर वही इंसान खड़ा था, जिसे अभी - अभी आलोक ने अपना पति बताया था। वो आदमी आगे बढ़ता है, अनुज के कंधे पर हाँथ रख अपना नाम राजीव बताता है और कहता है..... 


राजीव :- " I don't know, what to say here, but don't worry.   आलोक अभी बहुत गुस्से में हैं, इसलिए वो ऐसा behave कर रहा है। उसे थोड़ा time दो वो normal हो जाएगा। I know him very well, and i think he is still loves you alot, आखिर तुम उसकी life का पहला प्यार हो। और पहला प्यार इतनी आसानी से नही भुलाया जाता, और हम उसी से नाराज होते हैं, जिस से हम प्यार करते हैं। So give him some time!!!"


 अनुज :- " What??? What are you saying?? He clearly said that you both are couple!!!! Isn't it true???"


राजीव :- " It's true!!!  We are married. लेकिन अगर आलोक के मन मे अभी भी तुम्हारे लिए  कुछ बाकी है, तो वो कभी भी इस रिश्ते को अपने मन से नही निभा पायेगा। और मैं, नही चाहता कि वो किसी भी बोझ या मजबूरी में इस रिश्ते को निभाये। जब मैं उस से मिला तब वो पूरी तरह टूटा हुआ था। मैंने उसे सहारा, उस से कुछ पाने के मकसद से नही दिया था। लेकिन मैं धीरे धीरे खुद को उस से दूर नही रख पाया, और उसके ही कहने पर हमने अभी कुछ 5 महीने पहले ही शादी की है। मैं आलोक से प्यार तो बहुत ज्यादा करता हूँ, लेकिन मैं उसे किसी भी तरह की कैद में नही रखना चाहता। मैं अगर सीधे ही तुम्हारे पास उसे भेजता, तो वो न तो आने को तैयार होता और वो मुझे भी गलत समझने लगता। इसलिए मैंने उसे ITI का diploma करवाया, ताकि मैं उसे तुम्हारे office का रास्ता दिखा सकू। मैं आलोक  से शादी तो करना चाहता था, लेकिन बिना तुम्हारे और उसके रिश्ते के बीच मे आये बिना। लेकिन मैं ज्यादा समय इस शादी को टाल न सका। तुम मुझे गलत मत समझना, मैं ये सब इस लिए नही कर रहा कि मैं तुम दोनों के बीच गलतफहमियां बडा दूँ, बल्कि ये सब तो मैंने इस लिए किआ, ताकि तुम दोनों का आमना सामना करा सकू, और शायद आलोक के मन मे तुम्हारे प्यार के लिए जो धूल जम गयी है, मैं उसे साफ कर सकूं। लेकिन शायद मैंने सब और ज्यादा खराब कर दिया है।"


अनुज :- " I am really surprised now!!! You are really a great person, and you only you truely deserve the aalok. उसे तुम्हारे जैसे प्यार करने वाले इंसान की ही जरूरत है। मैं जानता हूँ, मैने उसके साथ बहुत गलत किया है, और मुझे पता भी नही था, की उसे मेरी वजह से क्या क्या सहना पड़ा है। और  वो क्या, मैं खुद कभी अपने आप को इसके लिए  माफ नही कर पाऊंगा। मैं कभी आलोक को तो नही भूल पाऊंगा, और शायद यही मेरी सजा है, यही सही है, मेरे लिए की आलोक हमेशा मुझसे नफरत करता रहे। अब तुम ही उसकी जिंदगी हो, और हमेशा उसका ख्याल रखना, उसे बेहद प्यार देना।"


      और अनुज रोते हुए वहां से और हमेशा के लिए आलोक की ज़िंदगी से चला जाता है।






      ये कहानी तेरी मेरी अधूरी जरूर है, लेकिन ये हमे पूरा करने की प्रेरना देती है। पूरा करने की वो उम्मीद, वो भरोसा, जो कोई हम पर करता है। अगर आलोक और अनुज की विचारधाराओ में इतना अंतर ना होता तो शायद आज इस कहानी का अंत कुछ और ही होता। अगर अनुज की विचारधारा कुछ अलग होती, तो जो वो आज आलोक के लिए महसूस कर रहा था, जो एहसास उसने पहली बार आलोक को देख कर महसूस किए थे, लेकिन अपनी विचारधारा के चलते उन्हें नजरअंदाज कर दिया था, वो दोनों एहसास एक ही थे। आज अंतर था, तो बस उसकी विचारधारा का। और अगर उस समय आलोक की विचारधारा भी इतनी संकीर्ण ना होती तो वो ना तो अनुज की बातों में आता और ना उसे वो सब सहना पड़ता, जिस दर्द के साथ वो जी रहा था। राजीव जी के बारे में ज्यादा जानने को तो नही मिला, लेकिन उनकी सोच और विचारधारा से वो समझदार, खुले विचारों के और एक सरल स्वभाव के व्यक्ति नजर आते हैं। उनकी बातों से ये भी पता चलता है, की वे आलोक से बिना किसी शर्त के प्यार करते हैं, शायद प्यार को इस तरह ही होना चाहिए। हाँ, उनकी उम्र आलोक से बहुत ज्यादा तो है, लेकिन जहां सच्चा प्यार होता है, वहां उम्र, रंग रूप, कद काठी और लिंग कोई मायने नही रखते। आज लड़का हो या लड़की, व्रद्ध हो या जवान, अगर सबकी विचारधारा पर राजीव जी की छाप पड़े तो, हमारे आज के समाज मे, प्यार के मायने कुछ अलग होगे, कुछ अच्छे होगे। जहां आज अधिकतर मुलाकातें सिर्फ शारीरिक संबंध बनाने के मकसद से ही होती हैं, चाहे वो हम किसी से social networking site पर मीले या किसी club में, शायद इस विचारधारा की वजह से हमारा, लोगों से मिलने और बात करने का नजरिया बदल जाये। ये कहानी चाहे भले ही अधूरी या छोटी हो, लेकिन आपको एक सरल और सही विचारधारा की ओर जरूर ले जाती है। अब ये आप पर निर्भर है, की आलोक, अनुज और राजीव जी की विचारधाराओं के द्वंद में आप किसकी विचारधारा को सही मानेंगे।
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Lots of Love
Yuvraaj ❤️ 
  

Wednesday, September 12, 2018

कहानी तेरी मेरी Part - I

Hello friends.....
       Here my another narration  "कहानी तेरी मेरी" hope you like it as my previous once.


           ये कहानी है , दिल्ली के अनुज और ओरछा के आलोक की। ये कहानी है , छोटे और बड़े शहर की मानसिकताओं की। आलोक जहाँ एक बहुत ही छोटी जगह से है, जो सिर्फ अपनी ऐतीहासिक धरोहर और "राजा राम" की वजह से थोड़ा सा मशहूर है, और वंही अनुज का शहर किसी भी परिचय का मोहताज नही। छोटे शहरों के लोगों की सोच छोटी तो नहीं , लेकिन हाँ, संकुचित जरूर होती है। वे लोग बहुत दूर की तो नहीं सोचते, लेकिन हाँ, उनकी सोच में एक निर्मलता और शालीनता का भाव जरूर होता है। वहीँ बड़े शहरों के लोगो की सोच, चाहे भले ही दूर गामी क्यों न हो, लेकिन उसमें अपने पन की भावना थोड़ी कम होती है। छोटे शहरों में, लीग से हटकर, कुछ अलग भावों को जहाँ गलत समझ जाता है, वंही बड़े शहरों में किसी के अलग होने का , किसी को कोई फर्क भी नही पड़ता। लेकिन शहर छोटा हो या बड़ा , संलेंगिगक्त को सभी जगह एक ही नजर से देखा जाता है। इन्ही विचारधाराओं की खूबियों और कमियों को दर्शाती है ये "कहानी तेरी मेरी"।


         बेतवा नदी के किनारे बसा एक बहुत ही छोटा और सुन्दर नगर "ओरछा"। अगर आपको मौका मिले तो ओरछा का इतिहास जरूर पडियेगा, आपको एक अलग ही रोमांच का अनुभव जरूर होगा। ओरछा के एक बहुत ही छोटे से घर में रहता है आलोक, अपनी विधवा माँ सुशीला देवी के साथ। आलोक के पिता मनोहर रावत जी का निधन कुछ वर्षों पहले ही बीमारी के चलते हो गया था, तब से घर की और माँ की जिम्मेदारी आलोक के कंधों पर ही थी। पडाई की कोई अच्छी व्यवस्था और घर की माली हालत ठीक न हो पाने के कारण आलोक को ज्यादा पड़ने का अवसर नही मिला था। ओरछा के सरकारी विद्यालय से ही आलोक ने 12वीं कक्षा तक पड़ाई की हुई थी। यूँ तो आलोक अपने माँ बाप की इकलौती संतान था, लेकिन गरीबी के हालात में आलोक ने इकलौते होने का कोई भी हठ नही किआ था। मनोहर जी ओरछा में गाईड का काम किया करते थे, और उनके साथ रह कर आलोक भी सब कुछ सीख गया था। उसे अँग्रेजी, फ़्रांसिसी, जर्मनी तथा अन्य विदेशी भाषाओं के साथ साथ भारत की भी कई भाषाओँ का अच्छा खासा ज्ञान था। पिता जी के बाद अब आलोक भी ओरछा में आये सैलानिओं को ओरछा का भ्रमण कराया करता था। वंही सुशीला देवी जी भी राम मंदिर के पास अपनी एक छोटी सी फूलों की दुकान लगाया करती थीं। बस यही उन लोगों के जीविका का साधन था। आलोक को भी अब अपने पिता का स्थान लिए 2 वर्ष हो चुके थे, और अब वो अपने कार्य में एक दम निपूर्ण हो चूका था। यूँ तो आलोक के हमउम्र सहपाठी, झाँसी, ग्वालियर व अन्य शहरों में रह कर अपने आगे की पड़ाई पूरी कर रहे थे, लेकिन आलोक की प्राथमिकताएं कुछ और ही थीं। दिखने में ज्यादा ख़ास तो नही, लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व का धनि था। सुविधाओं के अभाव में भी , अच्छे साफ़ - सुथरे कपडे पहनना , सुगन्धित इत्र सा महकना , सलीके से बाल बनाना , उसे पसंद भी था, और उसके पेशे के लिए जरूरी भी। 


        कम उम्र में ही आलोक को ये एहसास भी हो गया था कि उसे लड़कों में ही दिलचस्पी है। जैसे - जैसे बड़ा होता गया, तो इस साधारण से एहसास के कई अजीब और निंदनीय नाम सुनने को मिले। तब उसे समझ आया, की अब तक वो जिस भाव को सामान्य समझ रहा था, इस समाज के लिए  वो असामान्य और घ्रणित भाव है। बस तभी से वो एक दोहरी ज़िन्दगी जीने को विवश था। आलोक ने अपनी भावनाओं को, मन के किसी कोने में दबा लिया था और अभी तक उसे ऐसा कोई मिला भी नही था, जो उन भावनाओ को पुनः जाग्रत कर सके। वो आने वाले एक तूफ़ान से बिलकुल अंजान था, जो तूफ़ान दिल्ली से उठ कर कुछ ही समय में , बेतवा के किनारे टकराने वाला था। एक ऐसी आंधी जो उसके जीवन को पलट कर रख देने वाली थी। आगे होने वाली हलचलों से अंजान, सुबह तैयार होकर, आलोक निकल पड़ा था अपने घर से, सैलानिओं की खोज में।



          वंही गोल्फ लिंक्स जैसे दिल्ली के मंहंगे इलाकों में से एक में, महल जैसे घर में, सभी सुख - सुविधाओं के बीच पले बड़े अनुज ने, अभाव क्या होता है , ये शब्द भी शायद ही कभी सुना हो। दिल्ली की बाजवा इंडस्ट्री को कौन नही जानता। अनुज उसी बाजवा परिवार का इकलौता वारिस है। दादू, दादी, माँ, डैड की आँखों का तारा, सबका दुलारा। अनुज ने अपना बचपन एक राजसी ठाट - बाट में गुजारा है, और अभी भी राजकुमार की तरह ही अपनी ज़िन्दगी जी रहा है। विदेश में अपनी पड़ाई पूरी कर, भारत लौट कर भी, अनुसरण अभी भी उसी पाश्चात्य सभ्यता का ही करता है। विदेशों में और हमारे देश में कई अंतर हैं, और इसका साफ़ असर अनुज की सोच में दिखाई देता है।अनुज स्कूली समय से ही , अपनी sex life में active है, और उभयलिंगी (bisexual) है। स्कूल से ही कई girlfriends और boyfriends के साथ उसके शारिरिक संबंध रह चुके हैं, जो उसके लिए एक बहुत ही आम बात है। और लड़कियो से ज्यादा उसे लड़कों का ही साथ भाता है।



             भारत वापस आये अनुज को अभी ज्यादा समय नही हुआ था, और वो जल्द ही अपना family buisness भी join करने वाला था। वैसे तो उसका भारत वापस आने का कोई भी मन नही था, क्योंकि जो आजादी भरी ज़िन्दगी, वो वाहाँ विदेश में जी रहा था, ऐसा यहाँ कुछ नही होने वाला था। लेकिन फिर भी अपने डैड की शर्त को मान कर वो अपना मन मार यहाँ भारत वापस लौट आया था, लेकिन उसका मन अभी भी विदेश में ही था। अनुज के डैड की शर्त ये थी की उसे अब कुछ समय अपने परिवार के साथ रहना होगा और अपना faimily buisness भी संभालना होगा। अगर वो सफल नही होता, तो वो वापस विदेश जा सकता है, लेकिन उसे एक कोशिश पूरी ईमानदारी के साथ तो करनी ही होगी, और अगर वो ऐसा नही करता, तो घर से मिलने वाले पैसों पर लगाम लगा दी जायेगी।  अब ऐसी शर्त को हर हाल में मनना अनुज के लिए एक मजबूरी बन गयी थी। वो भारत वापस आ तो गया था, लेकिन यहाँ न तो उसका कोई दोस्त था, न साथी, तो बहुत अकेला पड़ गया था। Office जाना शुरू करने में भी अभी कुछ वक़्त था, तो घर में ही अकेले रह कर ऊब गया था। दादू की सलाह मानते हुए, अकेले ही भारत भ्रमण पर निकलने की तैयारी भी चल रही थी।


डैड :- "अरे तो मैं कहा मना कर रहा हूँ, तुझे जाने से। ये तो बहुत            अच्छी बात है, इससे तू अपना देश तो देख ही लेगा।                    लेकिन बेटा तू यहाँ कुछ भी तो नही जानता है, अकेला                कहाँ भटकेगा। ड्राइवर को तो साथ लेजा, सहूलियत भी              रहेगी और वो तुझे अच्छे से घूम भी देगा।"


अनुज :- "नही डैड!!! I am not a kid now. I can                         manage and handle everything pretty                 well.  अब यहाँ भी कोई शर्त मत लगा दीजियेगा...                   Please!!!!"


           और आख़िरकार बाजवा जी को अनुज के सामने झुकना ही पड़ा। और अनुज अकेले ही निकल पड़ा अपने देश को देखने और समझने। घूमना फिरना तो बस एक बहाना ही समझिये, असल में अनुज घर में रह कर बुरी तरह से ऊब चूका था, और घरवालों के साथ वक़्त बिताना उसे खासा पसंद भी नही था। घरवालों की बातें अनुज को सदियों पुराने ज़माने की लगती थी। वो तो बस अपने डैड की शर्त पूरी होने का इंतेज़ार कर रहा था। दादू का ये भारत भ्रमण का idea भी उसे इसलिए पसंद आ गया, क्योंकि उसे पता था, office शुरू हो जाने के बाद तो उसे और भी बुरे दिन देखने को मिल सकते हैं , इसलिए वो जो ये 10, 12 आज़ादी के दिन मिल रहे थे, उन्हें नही खोना चाहता था। तो बस एक backpack में अपने कुछ कपडे और जरूरत का कुछ सामान, कुछ credit cards और ढेर सारे पैसे लिए, अकेले ही निकल पड़ा था घर से।


        मथुरा, आगरा, ग्वालियर घूमने के बाद आज चौथे दिन अनुज झाँसी पहुंचा। झाँसी से उसका अगला point खजुराहो होने वाला था, लेकिन taxy वाले के कहने पर 1, 2 घंटे ओरछा में बिताना तय हुआ, और अनुज सुबह 10:30 बजे ओरछा पहुँच भी गया। Taxy  को देख कई सारे guides ने अनुज को घेर लिया, लेकिन अनुज ने चुना आलोक को, क्योंकि वो ही उन सभी में अच्छा दिख रहा था, और अनुज का हमउम्र भी था। आलोक ने शुरुआत की ओरछा fort से, और धीरे धीरे आलोक, अनुज को ओरछा के इतिहास और किले की बनावट के बारे में बताता गया और साथ ही साथ अनुज का मन भी मोहता गया। इस तरह का आकर्षण अनुज के लिए कोई खास बात नही थी, अनुज की नजरें ओरछा किले की बनावट और संरचना से ज्यादा आलोक के शरीर को निहार रहीं थीं। वैसे तो इन 4, 5 दिनों में अनुज, आलोक जैसे कई सारे guides से मिल चुका था, लेकिन आलोक की कशिश, उसका कोमल स्वभाव , उसकी महक, अनुज को अपनी और खींचे ही जा रही थीं। अनुज की बदली हुई नज़रें, आलोक को समझ भी आ रहीं थीं, और अनुज का बदला हुआ बर्ताव, आलोक को थोड़ी परेशानी भी दे रहा था। जहाँ अनुज टकटकी लगाए आलोक को घूरे जा रहा था, वंही अनुज से नज़रें चुराये आलोक अपना काम किये जा रहा था। किला घुमाने के बाद , बारी थी राम मंदिर की। आलोक ने अपनी माँ की दुकान से फूल माला दिला कर अनुज को मंदिर में दर्शन करने का रास्ता दिखा दिया, पर अनुज ने अकेले जाने को मना कर दिया, और आलोक को भी साथ चलने को कहा। जिसे आलोक टाल न सका और दोनों ने साथ में राजा राम के दर्शन किये। अब तक दोपहर के खाने का समय हो चला था, आलोक ने भी अनुज को खाना खाने के लिए, वंही बाजार के सबसे अच्छे रेस्टोरेन्ट का पता दिया, और 1 घंटे बाद वही मिलने को बोला। लेकिन अनुज तो आलोक का साथ छोड़ने को ही तैयार नही था, और इसबार भी अपनी जिद मनवाते हुए, वो आलोक को भी अपने साथ ही ले आया। दोनों ने साथ में ही खाना खाया, और फिर आलोक अनुज को बेतवा किनारे ले गया, थोड़ा सा sight seeing अभी बाकी जो था। 


        नदी किनारे का वातावरण अनुज को बहुत भा गया।  River rafting, सैलानिओं की मौज मस्ती, ठंडी हवा और शांत वातावरण उसे इतना पसंद आया की उसने कहीं और जाने से ही इंकार कर दिया और आलोक के साथ वहीँ बेतवा के घाट पर बैठ गया। उसके ऐसा करने की जितनी वजह वहां का वातावरण था, उतना ही आलोक के मन को टटोलना भी। वैसे तो अनुज का आज का सफर खजुराहो तक का था, लेकिन उसने अपने taxy draiver को आज के लिए वहीँ ओरछा में रुकने को कहा। वो आलोक के लिए जो खिंचाव महसूस कर रहा था, ये उसी का कारन था, और अनुज का ये भाव , शारीरक सम्बन्ध बनाने से आगे का भी नही था। ऐसा भी नही था, की अनुज को शारीरक सम्बन्ध बनाने के लिए कोई मिल नही रहा था, अभी आगरा में ही एक esscort service से उसे एक बहुत ही सुन्दर और आकर्षक लड़के के साथ वो सब करने का अवसर मिला था, जिसके लिए वो भारत वापस आने के बाद बहुत तड़प भी रहा था। लेकिन आलोक की शोखी और उसकी कशिश अनुज ने आज तक कहीं और महसूस ही नही की थी। यही एक अहम् कारण था , की अनुज, आलोक से अलग ही नही हो पा रहा था। ये उसके मन की, उसके दिल की भावना थी जो उसे आलोक से बंधे हुए थी, और वंही उसके दिमाग में आलोक के साथ हमबिस्तर होने के ख्याल चल रहे थे। और उन्हीं ख्यालों को ज़मी देने के इरादे से अनुज ने अपने आगे के सफर को वहीँ ओरछा में रोकने का निर्णय भी ले लिया था। वहीँ घाट पर बैठ कर अनुज ने आलोक का मन टटोलना शुरू किया ....


अनुज :- "So!!! Tell me, कभी यहाँ से बहार जाना नहीं                       हुआ??" 


आलोक :- "नहीं कभी जरूरत नहीं पड़ी।"


अनुज :- "So why you doing this job?? You can go               outside and find something good!!!" 


आलोक :- "मुझे कुछ आता भी तो नही न इसके अलावा।  और                   12 वीं पास को कोई क्या नौकरी देगा। जैसा भी है, है                 तो मेरा काम ही ना।"


अनुज :- "So why don't you go for further                             studies?? I am sure you can do batter                   than this!!" 


आलोक :- "जाने दीजिये साहब!! आप बताइए आगे का क्या                       plan है?? आप river rafting भी कर सकते हैं,                   It's good and safe too."       


 अनुज :- "No!!! I feel good here. I don't wanna go                 anywhere. Actualy , I feel good here                     because of you!!! " 


          ये कहते हुए अनुज आलोक की आँखों में देखता है, वो आलोक के मन को पड़ने की भी कोशिश करता है।


आलोक :- "हाँ, यहाँ का माहौल ही ऐसा है, सब को मोह लेता है।"


अनुज :- "माहौल का तो पता नही लेकिन मुझे तुम्हारा साथ बहुत               अच्छा लग रहा है, तुम्हे छोड़ कर जाने का मन ही नही                 हो रहा।" 


         आलोक अनुज की और देखता है, तो अनुज की आँखे सब बयां कर देती हैं, की उसके मन में क्या चल रहा है। आलोक ने भी तो कई सालों इन नज़रो का इंतेज़ार किआ था, लेकिन समाज के और हालातों के कारण अपने इन एहसासों को दबा भी लिया था।और आज जब वो, वो सारी भावनाओ को अनुज की आँखों में देख पा रहा था, तो उन्हें स्वीकार करने से भी डर रहा था, और उन भावनाओ से दूर भाग जाना चाहता था। 


आलोक :- "चलिये sir!! आप इस जगह का आनंद लीजिये, मैं                   थोड़ी देर से आता हूँ, फिर हम बाकी के जो दो spot                   हैं , उन्हें भी देखने चलेंगे।" 


           ये कहकर आलोक वहां से उठ कर जाने लगता है। असल में तो वो बस उन एहसासों से दूर जाना चाह रहा था, जो उसकी दबी भावनाओं को जगा रहे थे। लेकिन अनुज उसे ऐसा करने नही देता, और उसका हाँथ पकड़ कर वंही रोक लेता है।


अनुज :- "Don't go!!! Please!!! Stay here with me.                 I don't know for what, I am attracted                   towards you. I just wanna spent some                 time with you." 


        आलोक अनुज की आँखों में देखता है, और उसे भी वही भावनाएं घेर लेती हैं, जिनकी बात अनुज कर रहा था। और वो वहीँ रुक जाता है।


अनुज :- "Thanks for stay!!! I wanna say                               something to you. I don't know how                     you gonna react on this...... I am gay......                 And I like you. I am being still attracted               towards you, when the first time I saw                 you." 


        आलोक बस अनुज को देखता ही रह जाता है, उसके पास ऐसा कोई जवाब नही जो वो अनुज को दे सके। एहसास तो आलोक के भी सुलग रहे थे, लेकिन जिन भावनाओं को वो बरसों पहले दबा चूका है, उन्हें वापस से एक शक्ल देना, उसके लिए इतना आसान भी नही था। यूँ तो, जब भी अनुज उसे देखता था, एक नए एहसास की आहट आलोक के मन में भी होती थी। और अब जब अनुज ने अपने मन की बात साफ़ लफ्जों में बयां कर दी थी, तो आलोक भी उसे बताना चाह रहा था, की उसपर यु ध्यान दिए जाना, उसे भी अच्छा लग रहा है। अनुज की वो नजरे उसे भी एक नयी दुनियां दिखा रहीं हैं, अनुज के हांथों की छुअन की गर्मी का वो एक नया एहसास, जो आज तक उसने किसी के लिए महसूस नही किआ था। आलोक, अनुज को ये सब बता देना चाहता था, अपनी भावनाएं, अपने एहसास, अपनी चाहत, लेकिन वो सब कुछ अपने मन में दबाये वहां चुप चाप ही बैठा रहा।



 अनुज :- "I know  तुम्हे ये सब अजीब लग रहा होगा। But                    these are my true feelings. I really like                you."


       अनुज ये कह कर आलोक की तरफ देखने लगा, मनो वो आलोक की हाँ का इंतज़ार कर रहा हो। लेकिन आलोक तो अभी भी चुप ही था। और अब आलोक की ये चुप्पी अनुज को बिलकुल नही भा रही थी।


अनुज :- "Please don't sit like that!!! Say                                 whatever  you wanna say, either yes or               no. But say it clearly." 


 आलोक :- "मुझे नही पता ये सही है या गलत, लेकिन मुझे भी                      तुम्हारा इस तरह से देखना, इस तरह से मुझे छूना,                      मुझे अच्छा लग रहा है। मैं बहुत समय से इसी तरह                      का  एक साथी चाह रहा था, जो मुझे अपने मन की                    सारी बातें बताये, मुझे जब भी देखे , तो प्यार भरी                      नजरों से देखे, मेरा हमेशा साथ निभाए। लेकिन ऐसा                   कोई मिलना तो दूर, अगर मैं अपनी ये चाहत किसी                     को बताता भी , तो वो लोग मुझे ही गलत समझते।                     लेकिन जबसे तुम मुझे मिले हो, मुझे सब सही लग रहा                 है। और मुझे भी तुम्हारा साथ अच्छा लग रहा है।


      आलोक कुछ और कहता, इससे  पहले ही अनुज ने उसके माथे पर चूम लिया और उसे अपनी बाहों में भर लिया। दोनों सूरज ढलने तक वहीँ बेतवा के किनारे बैठे रहे और अब तक दोनों ने ढेर सारी बातें भी कर ली थीं। अपने अपने घर परिवारों के बारे में भी एक दूसरे को बता चुके थे और अब तक दोनों के बीच कई आचार विचारों का आदान प्रदान भी हो चूका था। लेकिन वहां कुछ था, जो इस अच्छे दृश्य को पूर्णतः अच्छा नही होने दे रहा था। वो थी अनुज की सोच, ये जो भी बातें अनुज वहां आलोक से कर रहा था, वो सब बस आलोक को रिझाने के लिए कर रहा था। अनुज ने आलोक की तरह अपने परिवार के बारे में आलोक को बताया तो था, लेकिन सिर्फ उतना, जितना आलोक को उसके बिस्तर तक लाने के लिए जरूरी था। अनुज का दिल तो आलोक की सादगी और निर्मलता को देख पा रहा था, लेकिन उसकी दिमाग की दृष्टी ने सब ओझल कर दिया था। और इधर - उधर की तमाम बातें करके अनुज ने आलोक को अपने साथ रात बिताने के लिए भी राज़ी कर लिया था। और वहीँ आलोक इस आधे दिन की मुलाकात को ही प्यार समझ कर , पहली बार अपनी माँ से झूठ बोल कर आ भी गया था अनुज के साथ। दोनों ने रात का खाना भी साथ में ही खाया और रात को होटल के कमरे में दोनों ने काम रास के सभी क्रियाकलापों को अंजाम भी दिया। ये रात जहाँ आलोक के लिए सुखद एहसास लेकर आई थी, उसके इतने वर्षों से दबी भावनाओं को अंगड़ाइयां मिली थीं, वहीँ अनुज के लिए ये बाकि की रातों की तरह ही थी, ज्यादा कुछ खास तो नही था, लेकिन आलोक की शोखी और भोलेपन ने अनुज को मजबूर कर दिया था कि वो आलोक को अपने बिस्तर तक ले आये। और इसमें वो सफल भी हो गया था। अगली सुबह अनुज , आलोक को होटल के कमरे में अकेला सोता छोड़ चल दिया था अपने आगे के सफर पे और आलोक के लिए छोड़ गया था, कमरे की मेज पे कुछ पैसे और ख़ामोशी और कई सवाल, जो सिर्फ आलोक के जागने का इंतज़ार कर रहे थे।


     थोड़े से समय के सुख के लिए, किसी के जीवन के अस्तित्व पर ही सवाल उठा देना क्यों इतना जरूरी हो गया था अनुज के लिए। ये उसका दोष था या उसकी मानसिकता का। अनुज को आलोक को पाने की हसरत क्यों सिर्फ उस बिस्तर तक ही सिमित थी। ये उसका दोष था या उसकी विचारधारा का। जब आलोक उसे इतना पसंद ही आ गया था, की उसके लिए अपने सारे plans को अनदेखा किया जा सके, तो क्यों फिर इस मुलाकात का लक्ष्य बस वो बिस्तर भर मात्र था। ये उसका दोष था, या उसकी संकीर्ण सोच का। 


       इस कहानी के माध्यम से मैं उन दो विचारधाराओं को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ,  जो आज शायद पूरी तरह से हमें घेरे बैठीं हैं, और कोई भी शायद इन विचारधाराओं के आगे बढ़ कर देखना ही नही चाह रहा है। इस कहानी के माध्यम से मैं ये सन्देश कतई नही देना चाहता की, केवल बड़े शहरों की सोच बुरी होती है, या छोटे शहरों की। दोनों विचारधाराओं के लोग कहीं भी हो सकते हैं। Gay Community के लोग कहीं भी हो, हमें देखने का नजरिया, और हमारे बारे में बनाई गयी सोच, सभी जगह एक जैसी ही होती है। और इसके लिए कहीं ना कहीं हम खुद भी जिम्मेदार हैं, और जिम्मेदार हैं वो दोनों विचारधाराएं जो मैंने इस कहानी में दर्शाने की कोशिश की है। मेरे हिसाब से ये दोनों विचारधाराएं ही गलत हैं, ना तो किसी को अनुज की विचारधारा का अनुसरण करना चाहिए और ना ही आलोक की विचारधारा का। ये दोनों विचारधाराएं ही वो मुख्य कारण हैं, जिनकी वजह से पूरी gay community को गलत नजर से देखा जाता है। हो सकता है कि मेरी ही विचारधारा सम्पूर्ण सही ना हो, लेकिन मैं ये दावे के साथ कह सकता हु की मैं पूर्णतः गलत भी नही। 



     आगे की कहानी क्या मोड़ लेती है, और मैं आपको किस विचारधारा की और ले जाता हूँ, जानने के लिए बने रहिये अनुज और आलोक के साथ।  




Lots of love
Yuvraaj ❤️ 

Shadi.Com Part - III

Hello friends,                      If you directly landed on this page than I must tell you, please read it's first two parts, than you...