Hello friends....
I am again here to present my another story before you going to start reading it, I want to say something about this story. हर कहानी आपको कोई उद्देश्य दे या फिर कोई लक्ष्य तक ले जाये, ऐसा जरूरी नही होता। ऐसी ही है मेरी ये कहानी "दौर-ए-ज़िन्दगी"। तो आप बस पढ़िए और कहानी और उसमें प्रयोग की गई कविताओं का लुत्फ उठाइये और हाँ, कहानी में बताए गए समय पर जरूर ध्यान दीजियेगा वरना आप इस कहानी के रस को कहीं खो देंगे। ये कहानी आज से शुरू हो कर ले जाती है आपको बीते समय की गहराइयों में, यहाँ ना तो मैने किरदारों के बारे में बताया है ना ही कहानी में कोई पृष्ठभूमि है, हैं तो सिर्फ वार्तालाप उन लोगो के जो इस कहानी के मुख्य किरदार है, और जिनके इर्द गिर्द ये कहानी घूमती है। आईये आपको ले चलता हूँ समय के उन बीते पन्नो में जहां दो प्यार करने वाले आपका इंतेज़ार कर रहे हैं।......
SEPTEMBER 2018 :
अर्जुन :- "क्या यार पापा !!!! आपका हर बार का यही हाल होता है, हमे जब भी घर से बाहर जाना होता है, तो आपको घंटों लगते हैं तैयार होने में। मम्मी यार अब आप ही बोलो ना पापा को, की जल्दी करें। 6:30 का show है, और 6 तो हमें यहीं बज गए हैं।"
ममता जी :- "अरे अर्जुन बेटा, मैं तो खुद हार गयीं हूँ कह कह कर, लेकिन ये कोई आज की आदत थोड़ी है। जा पिंकी तू ही जा और खींच कर ले तो आ अपने दादू को।"
रूपेश जी :- "अरे भई, किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं, मैं तैयार हूं। चल भई अर्जुन अब तू तो अपनी खटारा start कर जाके, वरना फिर हर बार की तरह देर होने का कारण मुझे ही बताएगा, तेरी वो खटारा गाड़ी को नहीं। और छाया कहाँ है?? तुम लोग खुद तो तैयार हो नहीं और मेरे पीछे ऐसे पड़े हो, जैसे सारा programe मेरी वजह से ही खराब हो रहा हो।"
ममता जी :- "बस आपको तो मौका चाहिए, अपनी गलती ढाँकने का। छाया आ रही है, पिंकी का पानी लेने गयी है किचेन में। अर्जुन ने भी गाड़ी start करके देख ली है, बस आपकी साज सज्जा खत्म होने का इंतज़ार कर रहे थे सभी।"
अर्जुन :- "क्या यार मम्मी पापा, अब आप लोग बातें करने बैठ गए, चलो भी अब, वहां दीदी और जीजू कबसे हमारा इंतेज़ार कर रहे हैं। छाया...... छाया...... चलो यार, पानी तो वहां भी मिल जाएगा। हम लोगों को वेसे ही बहुत देरी हो रही है।"
DECEMBER 2015 : (३ साल पहले )
अंजली :- "बधाई हो मम्मी, आपके घर तो लक्ष्मी आ गयी और finally इतने इंतेज़ार के बाद अब आप दादी भी बन गयी। तुझे भी बधाई हो मेरे भाई। अब तुझे भी पता चलेगा, बाप बनने की खुशी और दर्द, जब रातों में तेरी बच्ची रोयेगी ओर तुझे सोने नहीं देगी। मुझे बड़ा छेड़ता था ना, अब सही हिसाब लेगी मेरी भतीजी।"
अर्जुन :- "अरे दीदी आप भी ना, और यहां तो धीरे बोलो यार, ये हॉस्पिटल है। और जीजू कहाँ रह गए।"
अंजली :- "पागल है क्या?? मैं बुआ बानी हूँ, इतनी खुशी तो होगी ही ना। और क्या बताऊँ अर्जुन, कल बिट्टू का exam है, और उसने अपनी notebook ही खो दी है। तो तेरे जीजू गए हैं लेके उसे,उसके दोस्त के यहां copy करने। वहां से सीधे यहीं आएंगे। और तू ये सब छोड़,बिटिया रानी कहाँ है??? और छाया!!!! वो कैसी है????"
अर्जुन :- "अभी तो अंदर ही OT में ही हैं दोनो, समय तो काफी हो गया, बस आने ही वाले होंगे बाहर। वो तो जैसे ही नर्स ने हमें बताया, तो सबसे पहले आपको ही फोन किया। अभी तक तो हमने भी नही देखा उसे।"
अंजली :- "हाँ, मैं बस हॉस्पिटल के पास ही थी जब तेरा फ़ोन आया। और मम्मी, ये पापा कहां हैं???? कुछ सामान लेने भेज दिया क्या?????"
ममता जी :- "अरे तू जानती तो है, अपने पापा को, दुनिया इधर की उधर हो जाये, लेकिन हर महीने की 15 तारीख को सिनेमा हॉल का 6:30 वाला show नही छोड़ सकते। अभी आये तो थे साथ मे हॉस्पिटल। फिर उनका समय हो गया तो चले गए। और कह के गए हैं, की लड़का हो तो पिंकू और लड़की हो तो पिंकी नाम से ही बुलाना उसे।"
अंजली :- "अरे वाह मम्मी पापा ने तो नाम पहले से ही सोच रखा था।"
अर्जुन :- "अरे दीदी, तू बैठ तो जा, जबसे आयी है खड़ी है। पापा को भी फ़ोन कर के बात दिया था मैंने। बस आते ही होंगे।"
नर्स :- "Excuseme!!!! छाया जी के साथ आप लोग हैं क्या?? हम उन्हें 32 रूम न. में ले जा रहे है, आप लोग भी वही इंतेज़ार कीजिये।"
JUNE 2012 : (6 साल पहले )
रूपेश जी :- "अरे चलो भई ममता जी!!! वहां पीयूष अकेला घबरा रहा होगा। आधा घंटा हो चला है उसका फ़ोन आये, और तबसे आपकी और छाया की पैकिंग नहीं हो पाई।"
ममता जी :- "आ रहीं हूँ, रुको 2 मिनिट। अगर कुछ रह गया तो इतनी दूर से वापस लेने तो आप आओगे नहीं, वो बेचारे पीयूष को ही भागना पड़ेगा।"
रूपेश जी :- "अरे भई तो ये भी कोई कहने की बात है, अब बाप बनने वाला है, थोड़ी परेशानी तो उठानी ही पड़ेगी ना। अब आप चलिये बस। एक तो हॉस्पिटल भी इतनी दूर है, पहुंचने में ही आधा घंटा लग जायेगा। पहले ही बोला था कि यहीं घर के आस पास कोई हॉस्पिटल देख लो, लेकिन ये आज कल के बच्चे सुनते ही कहाँ है।"
ममता जी :- "बस अब आपका चिल्लाना ही बाकी रह गया था। चलिये अब मैं तैयार हूं, वहां वो बच्चे भी जाने कैसे संभाले होंगे खुद को। चलिये, चलिये अब आप देर मत कीजिये।"
रूपेश जी :- "हाँ चलो भई, मैं तो कबसे तैयार हूं। चल भई अर्जुन तू घर पर ही रहना, निकल मत जाना कहीं दोस्तों के साथ। हम तुझे फ़ोन करेंगे, ठीक है!!"
अर्जुन :- "हाँ पापा, dontworry!!! मैं नही जा रहा कहीं। आप लोग निकलो तो लेकिन घर से अब। और हाँ, सबसे पहले मुझे ही फ़ोन करना कि मैं भांजे का मामा बना हूँ या भांजी का।"
रूपेश जी :- "हाँ भई, हमे जैसे ही पता चलेगा हम बताएंगे। अब पहले हमें वहां पहुंचने तो दे। और ये तेरी माँ अब फिर से क्या लेने चली गयी??? लगता है हम यही रह जाएंगे और पीयूष का दोबारा फ़ोन आएगा हमे खुशखबरी देने के लिए।"
I am again here to present my another story before you going to start reading it, I want to say something about this story. हर कहानी आपको कोई उद्देश्य दे या फिर कोई लक्ष्य तक ले जाये, ऐसा जरूरी नही होता। ऐसी ही है मेरी ये कहानी "दौर-ए-ज़िन्दगी"। तो आप बस पढ़िए और कहानी और उसमें प्रयोग की गई कविताओं का लुत्फ उठाइये और हाँ, कहानी में बताए गए समय पर जरूर ध्यान दीजियेगा वरना आप इस कहानी के रस को कहीं खो देंगे। ये कहानी आज से शुरू हो कर ले जाती है आपको बीते समय की गहराइयों में, यहाँ ना तो मैने किरदारों के बारे में बताया है ना ही कहानी में कोई पृष्ठभूमि है, हैं तो सिर्फ वार्तालाप उन लोगो के जो इस कहानी के मुख्य किरदार है, और जिनके इर्द गिर्द ये कहानी घूमती है। आईये आपको ले चलता हूँ समय के उन बीते पन्नो में जहां दो प्यार करने वाले आपका इंतेज़ार कर रहे हैं।......
शायद, शायद मैं तुझे भूला ही देता।।
अगर मेरे दिल के किसी कोने से, वो शाम बीत जाती तो,
तेरे चेहरे की वो मायूसी, मेरी आँखों से निकल जाती तो,
तेरी मुस्कुराहट में छुपा वो दर्द, मेरे दिल तक ना पहुंच पाता तो,
तेरे झुके हुए कंधों का एहसास, मेरे ज़हन में घर ना कर जाता तो,
शायद, शायद मैं तुझे भुला ही देता।।
शायद, शायद तेरी यादों को मेरे दिल से मिटा ही देता।।
शायद, शायद मेरे जीवन मे तेरे नाम का रंग इस कदर बिखरा ना होता।।
शायद, शायद मैं तुझे भूला ही देता।।
अगर मेरे दिल के किसी कोने से, वो मंज़र बीत जाता तो,
तेरी आँखों की वो नामी, मेरी आँखों से निकल जाती तो,
तेरी आवाज़ की वो खामोशी, मेरे कानों तक ना पंहुच पाती तो,
तेरे दूर जाने की चेतना, मेरे ज़हन में घर ना कर जाती तो,
शायद, शायद मैं तुझे भुला ही देता।।
शायद, शायद तेरी यादों को मेरे दिल से मिटा ही देता।।
SEPTEMBER 2018 :
अर्जुन :- "क्या यार पापा !!!! आपका हर बार का यही हाल होता है, हमे जब भी घर से बाहर जाना होता है, तो आपको घंटों लगते हैं तैयार होने में। मम्मी यार अब आप ही बोलो ना पापा को, की जल्दी करें। 6:30 का show है, और 6 तो हमें यहीं बज गए हैं।"
ममता जी :- "अरे अर्जुन बेटा, मैं तो खुद हार गयीं हूँ कह कह कर, लेकिन ये कोई आज की आदत थोड़ी है। जा पिंकी तू ही जा और खींच कर ले तो आ अपने दादू को।"
रूपेश जी :- "अरे भई, किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं, मैं तैयार हूं। चल भई अर्जुन अब तू तो अपनी खटारा start कर जाके, वरना फिर हर बार की तरह देर होने का कारण मुझे ही बताएगा, तेरी वो खटारा गाड़ी को नहीं। और छाया कहाँ है?? तुम लोग खुद तो तैयार हो नहीं और मेरे पीछे ऐसे पड़े हो, जैसे सारा programe मेरी वजह से ही खराब हो रहा हो।"
ममता जी :- "बस आपको तो मौका चाहिए, अपनी गलती ढाँकने का। छाया आ रही है, पिंकी का पानी लेने गयी है किचेन में। अर्जुन ने भी गाड़ी start करके देख ली है, बस आपकी साज सज्जा खत्म होने का इंतज़ार कर रहे थे सभी।"
अर्जुन :- "क्या यार मम्मी पापा, अब आप लोग बातें करने बैठ गए, चलो भी अब, वहां दीदी और जीजू कबसे हमारा इंतेज़ार कर रहे हैं। छाया...... छाया...... चलो यार, पानी तो वहां भी मिल जाएगा। हम लोगों को वेसे ही बहुत देरी हो रही है।"
समय एक वो पहलू जो, हमारे हाथों की लकीरों में ना था।।
तूने मेरा समय ऐसा फेरा की, जैसा मैं खुद के ज़हन और नसीबों में ना था।
याद है मुझे वो समय तेरा मेरा जो, ना किसी किताबों ना ही किसी के खयालों में था।
याद जब भी आता है वो दौर-ए-ज़िन्दगी, मेरे चेहरे की चमक मेरी आँखों का नूर मेरी खुशियों का वो समय कुछ और ही था।
आज जब पाता हूँ ये साथ-ए-तन्हाई, किसे पता था कि ये समय देखना भी हमारी तकदीरों में था।
समय एक वो पहलू जो, हमारे हाथों की लकीरों में ना था।।
DECEMBER 2015 : (३ साल पहले )
अंजली :- "बधाई हो मम्मी, आपके घर तो लक्ष्मी आ गयी और finally इतने इंतेज़ार के बाद अब आप दादी भी बन गयी। तुझे भी बधाई हो मेरे भाई। अब तुझे भी पता चलेगा, बाप बनने की खुशी और दर्द, जब रातों में तेरी बच्ची रोयेगी ओर तुझे सोने नहीं देगी। मुझे बड़ा छेड़ता था ना, अब सही हिसाब लेगी मेरी भतीजी।"
अर्जुन :- "अरे दीदी आप भी ना, और यहां तो धीरे बोलो यार, ये हॉस्पिटल है। और जीजू कहाँ रह गए।"
अंजली :- "पागल है क्या?? मैं बुआ बानी हूँ, इतनी खुशी तो होगी ही ना। और क्या बताऊँ अर्जुन, कल बिट्टू का exam है, और उसने अपनी notebook ही खो दी है। तो तेरे जीजू गए हैं लेके उसे,उसके दोस्त के यहां copy करने। वहां से सीधे यहीं आएंगे। और तू ये सब छोड़,बिटिया रानी कहाँ है??? और छाया!!!! वो कैसी है????"
अर्जुन :- "अभी तो अंदर ही OT में ही हैं दोनो, समय तो काफी हो गया, बस आने ही वाले होंगे बाहर। वो तो जैसे ही नर्स ने हमें बताया, तो सबसे पहले आपको ही फोन किया। अभी तक तो हमने भी नही देखा उसे।"
अंजली :- "हाँ, मैं बस हॉस्पिटल के पास ही थी जब तेरा फ़ोन आया। और मम्मी, ये पापा कहां हैं???? कुछ सामान लेने भेज दिया क्या?????"
ममता जी :- "अरे तू जानती तो है, अपने पापा को, दुनिया इधर की उधर हो जाये, लेकिन हर महीने की 15 तारीख को सिनेमा हॉल का 6:30 वाला show नही छोड़ सकते। अभी आये तो थे साथ मे हॉस्पिटल। फिर उनका समय हो गया तो चले गए। और कह के गए हैं, की लड़का हो तो पिंकू और लड़की हो तो पिंकी नाम से ही बुलाना उसे।"
अंजली :- "अरे वाह मम्मी पापा ने तो नाम पहले से ही सोच रखा था।"
अर्जुन :- "अरे दीदी, तू बैठ तो जा, जबसे आयी है खड़ी है। पापा को भी फ़ोन कर के बात दिया था मैंने। बस आते ही होंगे।"
नर्स :- "Excuseme!!!! छाया जी के साथ आप लोग हैं क्या?? हम उन्हें 32 रूम न. में ले जा रहे है, आप लोग भी वही इंतेज़ार कीजिये।"
हंसी खुशी मेरी ज़िंदगी की, सब तेरे चेहरे में ही नज़र आती थी,
तू जब भी मुस्कुराता था, तो वो हर शाम रंगीन नज़र आती थी।
तेरे मुंह से निकले हर वो शब्द, तेरी वो मीठी सी बोली,
खुले आंगन में चहचहाती चिड़ियों सी नज़र आती थी।
शर्माकर तेरा वो पलकें झुकना, तेरी वो शोख़ी,
मेरे बेरंग जीवन मे रंग भरती नज़र आती थी।
कभी कभी तेरा बस यूँही रूठ जाना भी,
मेरे आसमान में छाई काली घटा सी नज़र आती थी।
अब ना वो नज़ारे, ना वो मुस्कुराहट, ना वो तेरा चेहरा है,
अब वो दौर-ए-ज़िन्दगी सागर में कहीं डूबी नज़र आती थी।
हंसी खुशी मेरी ज़िंदगी की, सब तेरे चेहरे में नज़र आती थी,
तू जब भी मुस्कुराता था, तो वो हर शाम रंगीन नज़र आती थी।
JUNE 2012 : (6 साल पहले )
रूपेश जी :- "अरे चलो भई ममता जी!!! वहां पीयूष अकेला घबरा रहा होगा। आधा घंटा हो चला है उसका फ़ोन आये, और तबसे आपकी और छाया की पैकिंग नहीं हो पाई।"
ममता जी :- "आ रहीं हूँ, रुको 2 मिनिट। अगर कुछ रह गया तो इतनी दूर से वापस लेने तो आप आओगे नहीं, वो बेचारे पीयूष को ही भागना पड़ेगा।"
रूपेश जी :- "अरे भई तो ये भी कोई कहने की बात है, अब बाप बनने वाला है, थोड़ी परेशानी तो उठानी ही पड़ेगी ना। अब आप चलिये बस। एक तो हॉस्पिटल भी इतनी दूर है, पहुंचने में ही आधा घंटा लग जायेगा। पहले ही बोला था कि यहीं घर के आस पास कोई हॉस्पिटल देख लो, लेकिन ये आज कल के बच्चे सुनते ही कहाँ है।"
ममता जी :- "बस अब आपका चिल्लाना ही बाकी रह गया था। चलिये अब मैं तैयार हूं, वहां वो बच्चे भी जाने कैसे संभाले होंगे खुद को। चलिये, चलिये अब आप देर मत कीजिये।"
रूपेश जी :- "हाँ चलो भई, मैं तो कबसे तैयार हूं। चल भई अर्जुन तू घर पर ही रहना, निकल मत जाना कहीं दोस्तों के साथ। हम तुझे फ़ोन करेंगे, ठीक है!!"
अर्जुन :- "हाँ पापा, dontworry!!! मैं नही जा रहा कहीं। आप लोग निकलो तो लेकिन घर से अब। और हाँ, सबसे पहले मुझे ही फ़ोन करना कि मैं भांजे का मामा बना हूँ या भांजी का।"
रूपेश जी :- "हाँ भई, हमे जैसे ही पता चलेगा हम बताएंगे। अब पहले हमें वहां पहुंचने तो दे। और ये तेरी माँ अब फिर से क्या लेने चली गयी??? लगता है हम यही रह जाएंगे और पीयूष का दोबारा फ़ोन आएगा हमे खुशखबरी देने के लिए।"
छाया :- "अरे पापाजी, मम्मीजी थोड़ी परेशान हो रहीं हैं। और आप जो बार बार आवाज़ लगा रहे हो, तो वो और घबरा रहीं हैं।"
ममता जी :- "आ गयी भई!!! अब इतना समय हो चुका है इन सब को, कुछ समझ ही नही आ रहा कि क्या रख लूं और क्या नहीं। अब वहां नन्हे से बच्चे को किस चीज़ की जरूरत पड़ जाए, मेरा तो दिमाग ही नही काम कर रहा भई। और आप क्या तबसे चिल्ला रहे, आज अगर 15 तारीख होती तो सब छोड़ छाड़ के भाग जाते अपने सिनेमाहॉल, तब नही होती इतनी जल्दी जाने की। लेकिन जरा सी देर मेरी वजह से क्या हो गयी, तो पूरा घर सर पर उठा लिया है।"
रूपेश जी :- "हाँ, हाँ अब चलो। रास्ते मे लड़ लेना। वेसे ही बहुत देर हो गयी है। चल भई अर्जुन, संभालना हाँ घर को, हम पहुंच कर फोन करेंगे।"
NOVEMBER 2011 : ( 7 साल पहले )
रूपेश जी :- "चलिए ममता जी, ये काम और निपट जाये तो हम अपनी जिम्मेदारियों से आज़ाद हो जाएंगे।"
ममता जी :- "क्या आप भी, अर्जुन की शादी है, कोई काम थोड़ी। और आप कहाँ अभी से आज़ाद होने की बात कर रहे?? अभी तो अंजलि के बच्चे फिर अर्जुन के बच्चे, अभी तो आपकी दादा और नाना की सारी ज़िम्मेदारियाँ बाक़ी है।"
रूपेश जी :- "अरे ये सब तो जीवन चक्र है ममता जी, ये सब तो ऐसे ही चलता रहेगा। हमारे बच्चे अच्छे से अपने अपने जीवन मे आगे बढ़ रहे हैं, बस यही सबसे अच्छी बात है। और आप तो कितना नाराज़ थी अंजलि की शादी के वक़्त, वो तो मैं था, जो सब अच्छे से निपट गया, और देखो क्या पीयूष से ज्यादा खुश कोई और रख पाता हमारी अंजलि को??"
ममता जी :- "तो मैंने कब बोला की आपने कुछ गलत किआ, मैं तो बस समाज वालो की, नाते रिश्तेदारों की बातों से परेशान थी। लेकिन जब आज सोचती हूँ तो लगता है कि आप ही सही थे। चाहे भले ही पीयूष हमारी बिरादरी का नही, लेकिन बड़े अच्छे से रखता है भई, हमारी अंजलि को।"
रूपेश जी :- "हाँ तो, हमारी अंजलि की पसंद है, गलत कैसे हो सकती है। अब बस कुछ समय बाद एक प्यारा सा नाती भी शामिल हो जाएगा हमारे परिवार में"
ममता जी :- "अच्छा!!! आपको कैसे पता कि लड़का ही होगा??? मैं तो कहती हूँ, जो भी हो बस सब अच्छे से हो जाये।"
रूपेश जी :- "अरे लड़की होने से भी मुझे कोई दिक्कत नही भई, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि अंजलि के तो बिट्टू ही होगा।"
ममता जी :- "वाह भई!!! आपने तो नाम भी रख लिया?? और लड़की हो गयी तो??"
रूपेश जी :- "तो क्या उसका नाम बिट्टी रख देंगे। लेकिन मुझे लगता नही की लड़की होगी।"
ममता जी :- "आप और आपकी बातें, चलिये अब ये सब छोड़िये और उठिए, बहुत सारा काम है, कल ही सगाई है और 10 दिनों में ही शादी। ये पंडित जी को भी कोई और मुहूर्त नही मिला, अब सब जल्दी जल्दी में करना पड़ेगा। एक तो एक ही बेटा है मेरा, और उसकी भी शादी इतनी भड़बड़ी में। कहीं कुछ रह गया तो लड़कीवाले क्या सोचेंगे??"
रूपेश जी :- "आप भी बेवजह चिंता करती हैं, ममता जी! बहुत समय है, सब आराम से हो जाएगा। और कुछ रह भी गया तो भार्गव जी संभाल लेंगे, बहुत ही सुलझे हुए लोग हैं, और छाया भी बड़ी ही प्यारी बच्ची है।"
ममता जी :- "हाँ वो तो है, लेकिन इस बार भी तैयार हो जाइए, वही सब बातें सुनने के लिए, लोगों को तो एक बार फिर मौका मिल गया हमे सुनाने का।"
रूपेश जी :- "अरे भई फिर से वही सब बात!!! जो अंजलि की शादी के वक़्त समझाया था, मैं फिर से वही सब समझता हूं, बच्चो की खुशी से बड़ कर कुछ नहीं होता ममता जी!!! और लोगों का क्या है, आज बोलेंगे कल को भूल जाएंगे, लेकिन वो रिश्ता तो हमारे बच्चों को निभाना है ना। और अर्जुन की पसंद है, गलत कैसे हो सकती है। चलिये अब आप ये सब बातें निकालिये अपने दिमाग से, और तैयार हो जाइए। बाजार नही चलना खरीददारी के लिए??"
ममता जी :- "ना भई!!! आपके साथ नही जाना मुझे!!! मेने अर्जुन को बोल दिया है, साथ चलने को। बोलोगे एक जगह का और लेके जाओगे दूसरी जगह। और वेसे भी आज 15 तारीख है, आपको तो सिनेमाहॉल जाना होगा शाम को। अब वो काम तो नही रुक सकता चाहे भले ही इकलौते बेटे की शादी में ही कुछ रह जाये। आप अपना काम देखो, मैं तो अर्जुन के साथ चली जाउंगी।"
DECEMBER 2007 : (11 साल पहले)
ममता जी :- "अर्जुन जा तू अंदर जा। अपनी दीदी और पापा की बातें सुनेगा तो कल को तू भी यही करेगा।"
अंजली :- "मम्मी आप अर्जुन पे क्यों चिल्ला रही हो, आपको गुस्सा करना है तो मुझ पर करो। जो भी कहना है, मुझसे कहो ना।"
ममता जी :- "मेरे कुछ कहने का कोई फर्क ही कहाँ पड़ता है, होना तो वही है , जो तेरे पापा कहेंगे।"
अंजली :- "नहीं मम्मी, ऐसा बिल्कुल भी नही है। मैं आपको दुखी रख कर कुछ नही करूँगी। आपकी हाँ भी उतनी ही important है जितनी पापा की।"
ममता जी :- "बस भई बस!!! ये चिकनी चुपड़ी बातें अपने पापा से ही कर तू। इन सब बातों से मेरा फैसला नही बदलने वाला।"
रूपेश जी :- "अरे भई ममता जी!!! आप एक बार मिल तो लो उस लड़के से। बिना मिले, बिना जाने पहचाने ही आप तो अपना फैसला सुना रही हो। आप तो suprime court के जज से भी खतरनाक हो भई।"
ममता जी :- "मज़ाक चल रहा है यहां??? बस आपके लाड़ प्यार ने ही बिगाड़ रखा है दोनों को। और ये कोई छोटी बात नही है, जिसे मजाक में भूला दूँ मैं। समाज भी कुछ होता है, क्या कहेंगे बिरादरी वाले, आपने कभी सोचा है।"
रूपेश जी :- "अरे ममता जी आप भी न! 2008 आने वाला है 15 दिनों में और आप सन 1875 की बात कर रही हो। आप ये सोचो न कि आप की बिटिया पहले आप से आप की राय मांग रही है। वरना, आज कल की लड़कियां तो पहले शादी करती है, फिर माँ बाप को बताती हैं।"
ममता जी :- "टांगे न तोड़ दूँ मैं ऐसी बेटियों की। घर से ही निकलना बंद कर दूंगी मैं अब तेरा।"
रूपेश जी :- "अरे भई ममता जी आप इधर आओ!! और मेरी एक बात ठंडे दिमाग से सोचो। वो क्या बोल रही है?? वो बस इतना ही तो कह रही है, की उसका एक दोस्त है जो उसे पसंद है, अब आप मिल लो उस से, आपको भी पसंद हो तब बात आगे बढ़ाना। अब अगर हम भी अंजलि के लिए लड़का ढूढ़ने जाते तो यही करते ना, पहले लड़के से मिलते, उसे जानते पहचानते, अगर पसंद आता तो बात आगे बढ़ाते। बस फर्क इतना सा है कि लड़का हमने नही अंजलि ने ढूंडा है।"
ममता जी :- "इतना सा फर्क होता तो बात ही क्या थी। एक तो लड़का हमारे समाज का नही, ऊपर से वो अनाथ है। कैसे रहेगी ये उसके साथ, कैसे संभालेगी सब अकेले। और समाज मे हमारे लिए कितनी बातें बनाई जाएंगी की कहाँ पटक दी अपनी लड़की। और ये सब आपको इतनी सी बात लग रही है।"
रूपेश जी :- "अरे भई अनाथ कहाँ, हम सब लोग होंगे न इनके साथ। इसमे इतना क्या सोच रही हो आप??? एसे सोचो कि हम लड़के को घरजमाई भी बना सकते है, और लड़के के माँ बाप के गुस्सा होने का भी नही सोचना पड़ेगा हमे।"
ममता जी :- "आपसे तो बस मज़ाक करवा लो। और तू क्या वहां खड़ी हो कर अपने दांत दिखा रही है, रुकजा आके बताती हूँ।"
रूपेश जी :- "अरे अरे ममता जी सुनिए!! अच्छा मै मज़ाक नही करूँगा अब, बस ठीक है। सुनिए!! आप समाज के बिरादरी के बारे में क्यों सोच रही हैं, ये लोग तो तब भी बोलेंगे जब आप अपनी लड़की की शादी Mark Zukerberg से ही क्यों न कर दें। आज बोलेंगे और कल भूल जाएंगे। लेकिन ये रिश्ता तो हमारी बिटिया को निभाना है, हमे निभाना है। तो क्यों न हम सिर्फ अपने बच्चों की खुशी के बारे में सोचें बस। और ये लड़का हमारी बिटिया की पसंद है भई, क्या आपको अपनी बेटी पर भरोसा नही, या उसकी पसंद पर। आप एक बार मिल तो लीजिये लड़के से, फिर जैसा आप कहेंगी, हम सब वेसे ही करेंगे। ठीक है। अब तो मान जाइये देवी जी।"
ममता जी :- "ठीक है। कल बुला लो उसे, लेकिन दोनों बाप बेटी कान खोल के सुन लो, अगर मुझे वो लड़का पसंद नही आया तो कोई भी दोबारा नाम नही लेगा उस लड़के का इस घर मे। और आप एक बात बताओ, ये mark jukr..... jukrbr कौन है???? हमारी ही बिरादरी का है क्या??? अगर आपके पास उसके माता पिता का फोन नंबर हो तो दीदी को देदो, वो लोग बहुत परेशान है सुमन बिटिया के रिश्ते को ले कर।"
रूपेश जी :- "हाँ, हाँ क्यों नही। मैं सारि details दे दूंगा, और ये अंजलि के पास तो उसका फ़ोटो भी है। अरे अंजलि , फ़ोटो दिखा भई अपनी मम्मी को। Zukerberg की नही...... पीयूष की। और मैं आता हूं जरा कल के show के tickets लेकर। अगर सब ठीक राह तो सब साथ चलेंगे, नही तो में तो अकेले जाऊंगा ही।"
ममता जी :- "आप और आपकी सिनेमाहॉल। बाकी कोई तो है ही नही इस दुनियां में। चल अंजलि तू आ इधर, और दिखा मुझे फ़ोटो। और पीयूष का तो ठीक है, लेकिन तू ये mark jukr.... jukrbr की फ़ोटो क्यों रखे है अपने पास??? बहुत बिगड़ गए हो तुम आज कल के बच्चे।"
शायद ये कहानी किस तरफ जा रही है आपके मन की तरंगों ने आपको बता भी दिया होगा अब तक। और अगर नही बताया है तो कुछ दिनों में पता चल ही जायेगा कि ये कहानी है किसके बारे में? इस कहानी का अंत तो आपने देख ही लिया है, शुरुआत देखने के लिए आएगा जरूर इस कहानी के अंतिम भाग को पढ़ने।
ममता जी :- "आ गयी भई!!! अब इतना समय हो चुका है इन सब को, कुछ समझ ही नही आ रहा कि क्या रख लूं और क्या नहीं। अब वहां नन्हे से बच्चे को किस चीज़ की जरूरत पड़ जाए, मेरा तो दिमाग ही नही काम कर रहा भई। और आप क्या तबसे चिल्ला रहे, आज अगर 15 तारीख होती तो सब छोड़ छाड़ के भाग जाते अपने सिनेमाहॉल, तब नही होती इतनी जल्दी जाने की। लेकिन जरा सी देर मेरी वजह से क्या हो गयी, तो पूरा घर सर पर उठा लिया है।"
रूपेश जी :- "हाँ, हाँ अब चलो। रास्ते मे लड़ लेना। वेसे ही बहुत देर हो गयी है। चल भई अर्जुन, संभालना हाँ घर को, हम पहुंच कर फोन करेंगे।"
तेरे साथ होने का एहसास, अभी भी मेरे ख्यालों में जिंदा है।।
तू जब साथ होता था, तो वक़्त ना जाने कहाँ खो जाया करता था,
तू जब पास होता था, तो हर वक़्त बस मेरा हो जाया करता था,
लेकिन अब तू, तेरा साथ और वो वक़्त, अब भी मुझे याद आता है,
तेरे साथ होने का एहसास, अभी भी मेरे ख्यालों में जिंदा है।।
तेरे चेहरे के वो हसीन रंग, जो तू मेरे जीवन मे भरा करता था,
तेरे व्यक्तित्व की वो सुंगंध, जिससे मेरा हर दिन फूलों सा महका करता था,
लेकिन अब तू, तेरे रंग और वो महक, अब भी मुझे याद आता है,
तेरे साथ होने का एहसास, अब भी मेरे ख्यालों में जिंदा है।।
तू जब मज़ाक में भी मुझसे दूर जाने की बात किया करता था,
तो मेरा दिल ही बैठ जाया करता था,
तू जब मज़ाक में भी साथ ना निभाने की बात किया करता था,
तो मायूसी का आलम मेरे मन मे घर कर जय करता था,
लेकिन अब तू, और तेरा वो मज़ाक, मुझे अब भी याद आता है,
तेरे साथ होने का एहसास, अब भी मेरे ख्यालों में जिंदा है।।
NOVEMBER 2011 : ( 7 साल पहले )
रूपेश जी :- "चलिए ममता जी, ये काम और निपट जाये तो हम अपनी जिम्मेदारियों से आज़ाद हो जाएंगे।"
ममता जी :- "क्या आप भी, अर्जुन की शादी है, कोई काम थोड़ी। और आप कहाँ अभी से आज़ाद होने की बात कर रहे?? अभी तो अंजलि के बच्चे फिर अर्जुन के बच्चे, अभी तो आपकी दादा और नाना की सारी ज़िम्मेदारियाँ बाक़ी है।"
रूपेश जी :- "अरे ये सब तो जीवन चक्र है ममता जी, ये सब तो ऐसे ही चलता रहेगा। हमारे बच्चे अच्छे से अपने अपने जीवन मे आगे बढ़ रहे हैं, बस यही सबसे अच्छी बात है। और आप तो कितना नाराज़ थी अंजलि की शादी के वक़्त, वो तो मैं था, जो सब अच्छे से निपट गया, और देखो क्या पीयूष से ज्यादा खुश कोई और रख पाता हमारी अंजलि को??"
ममता जी :- "तो मैंने कब बोला की आपने कुछ गलत किआ, मैं तो बस समाज वालो की, नाते रिश्तेदारों की बातों से परेशान थी। लेकिन जब आज सोचती हूँ तो लगता है कि आप ही सही थे। चाहे भले ही पीयूष हमारी बिरादरी का नही, लेकिन बड़े अच्छे से रखता है भई, हमारी अंजलि को।"
रूपेश जी :- "हाँ तो, हमारी अंजलि की पसंद है, गलत कैसे हो सकती है। अब बस कुछ समय बाद एक प्यारा सा नाती भी शामिल हो जाएगा हमारे परिवार में"
ममता जी :- "अच्छा!!! आपको कैसे पता कि लड़का ही होगा??? मैं तो कहती हूँ, जो भी हो बस सब अच्छे से हो जाये।"
रूपेश जी :- "अरे लड़की होने से भी मुझे कोई दिक्कत नही भई, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि अंजलि के तो बिट्टू ही होगा।"
ममता जी :- "वाह भई!!! आपने तो नाम भी रख लिया?? और लड़की हो गयी तो??"
रूपेश जी :- "तो क्या उसका नाम बिट्टी रख देंगे। लेकिन मुझे लगता नही की लड़की होगी।"
ममता जी :- "आप और आपकी बातें, चलिये अब ये सब छोड़िये और उठिए, बहुत सारा काम है, कल ही सगाई है और 10 दिनों में ही शादी। ये पंडित जी को भी कोई और मुहूर्त नही मिला, अब सब जल्दी जल्दी में करना पड़ेगा। एक तो एक ही बेटा है मेरा, और उसकी भी शादी इतनी भड़बड़ी में। कहीं कुछ रह गया तो लड़कीवाले क्या सोचेंगे??"
रूपेश जी :- "आप भी बेवजह चिंता करती हैं, ममता जी! बहुत समय है, सब आराम से हो जाएगा। और कुछ रह भी गया तो भार्गव जी संभाल लेंगे, बहुत ही सुलझे हुए लोग हैं, और छाया भी बड़ी ही प्यारी बच्ची है।"
ममता जी :- "हाँ वो तो है, लेकिन इस बार भी तैयार हो जाइए, वही सब बातें सुनने के लिए, लोगों को तो एक बार फिर मौका मिल गया हमे सुनाने का।"
रूपेश जी :- "अरे भई फिर से वही सब बात!!! जो अंजलि की शादी के वक़्त समझाया था, मैं फिर से वही सब समझता हूं, बच्चो की खुशी से बड़ कर कुछ नहीं होता ममता जी!!! और लोगों का क्या है, आज बोलेंगे कल को भूल जाएंगे, लेकिन वो रिश्ता तो हमारे बच्चों को निभाना है ना। और अर्जुन की पसंद है, गलत कैसे हो सकती है। चलिये अब आप ये सब बातें निकालिये अपने दिमाग से, और तैयार हो जाइए। बाजार नही चलना खरीददारी के लिए??"
ममता जी :- "ना भई!!! आपके साथ नही जाना मुझे!!! मेने अर्जुन को बोल दिया है, साथ चलने को। बोलोगे एक जगह का और लेके जाओगे दूसरी जगह। और वेसे भी आज 15 तारीख है, आपको तो सिनेमाहॉल जाना होगा शाम को। अब वो काम तो नही रुक सकता चाहे भले ही इकलौते बेटे की शादी में ही कुछ रह जाये। आप अपना काम देखो, मैं तो अर्जुन के साथ चली जाउंगी।"
तू जो हर दम सांसो सा मेरे साथ होता।
तेरा हर दम दिल से धड़कन सा साथ होता।
चलने न पति मेरी नब्ज एक पल भी।
तू यादों में ही सही, गर मेरे ख्यालों में मेरे साथ न होता।
तूने मुझसे ही जो मेरा मेल ना कराया होता।
मेरे बिखरे सपनो को नया जहां ना दिखाया होता।
उलझी ही रहती मेरी दुनियां तेरे साथ के बिना।
तू यादों में ही सही, गर मेरे ख्यालों में मेरे साथ ना होता।
जाने कैसा होता वो आलम जो तू सच मे मेरे साथ होता।
इस वक़्त तू मेरे ख्यालों में नहीं मैं तेरे रूबरू होता।
सजाया ना होता ये ख्वाबों का बाजार अपने दिल-ओ-दिमाग मे।
तू यादों में ही सही, गर मेरे ख्यालों में मेरे साथ ना होता।
DECEMBER 2007 : (11 साल पहले)
ममता जी :- "अर्जुन जा तू अंदर जा। अपनी दीदी और पापा की बातें सुनेगा तो कल को तू भी यही करेगा।"
अंजली :- "मम्मी आप अर्जुन पे क्यों चिल्ला रही हो, आपको गुस्सा करना है तो मुझ पर करो। जो भी कहना है, मुझसे कहो ना।"
ममता जी :- "मेरे कुछ कहने का कोई फर्क ही कहाँ पड़ता है, होना तो वही है , जो तेरे पापा कहेंगे।"
अंजली :- "नहीं मम्मी, ऐसा बिल्कुल भी नही है। मैं आपको दुखी रख कर कुछ नही करूँगी। आपकी हाँ भी उतनी ही important है जितनी पापा की।"
ममता जी :- "बस भई बस!!! ये चिकनी चुपड़ी बातें अपने पापा से ही कर तू। इन सब बातों से मेरा फैसला नही बदलने वाला।"
रूपेश जी :- "अरे भई ममता जी!!! आप एक बार मिल तो लो उस लड़के से। बिना मिले, बिना जाने पहचाने ही आप तो अपना फैसला सुना रही हो। आप तो suprime court के जज से भी खतरनाक हो भई।"
ममता जी :- "मज़ाक चल रहा है यहां??? बस आपके लाड़ प्यार ने ही बिगाड़ रखा है दोनों को। और ये कोई छोटी बात नही है, जिसे मजाक में भूला दूँ मैं। समाज भी कुछ होता है, क्या कहेंगे बिरादरी वाले, आपने कभी सोचा है।"
रूपेश जी :- "अरे ममता जी आप भी न! 2008 आने वाला है 15 दिनों में और आप सन 1875 की बात कर रही हो। आप ये सोचो न कि आप की बिटिया पहले आप से आप की राय मांग रही है। वरना, आज कल की लड़कियां तो पहले शादी करती है, फिर माँ बाप को बताती हैं।"
ममता जी :- "टांगे न तोड़ दूँ मैं ऐसी बेटियों की। घर से ही निकलना बंद कर दूंगी मैं अब तेरा।"
रूपेश जी :- "अरे भई ममता जी आप इधर आओ!! और मेरी एक बात ठंडे दिमाग से सोचो। वो क्या बोल रही है?? वो बस इतना ही तो कह रही है, की उसका एक दोस्त है जो उसे पसंद है, अब आप मिल लो उस से, आपको भी पसंद हो तब बात आगे बढ़ाना। अब अगर हम भी अंजलि के लिए लड़का ढूढ़ने जाते तो यही करते ना, पहले लड़के से मिलते, उसे जानते पहचानते, अगर पसंद आता तो बात आगे बढ़ाते। बस फर्क इतना सा है कि लड़का हमने नही अंजलि ने ढूंडा है।"
ममता जी :- "इतना सा फर्क होता तो बात ही क्या थी। एक तो लड़का हमारे समाज का नही, ऊपर से वो अनाथ है। कैसे रहेगी ये उसके साथ, कैसे संभालेगी सब अकेले। और समाज मे हमारे लिए कितनी बातें बनाई जाएंगी की कहाँ पटक दी अपनी लड़की। और ये सब आपको इतनी सी बात लग रही है।"
रूपेश जी :- "अरे भई अनाथ कहाँ, हम सब लोग होंगे न इनके साथ। इसमे इतना क्या सोच रही हो आप??? एसे सोचो कि हम लड़के को घरजमाई भी बना सकते है, और लड़के के माँ बाप के गुस्सा होने का भी नही सोचना पड़ेगा हमे।"
ममता जी :- "आपसे तो बस मज़ाक करवा लो। और तू क्या वहां खड़ी हो कर अपने दांत दिखा रही है, रुकजा आके बताती हूँ।"
रूपेश जी :- "अरे अरे ममता जी सुनिए!! अच्छा मै मज़ाक नही करूँगा अब, बस ठीक है। सुनिए!! आप समाज के बिरादरी के बारे में क्यों सोच रही हैं, ये लोग तो तब भी बोलेंगे जब आप अपनी लड़की की शादी Mark Zukerberg से ही क्यों न कर दें। आज बोलेंगे और कल भूल जाएंगे। लेकिन ये रिश्ता तो हमारी बिटिया को निभाना है, हमे निभाना है। तो क्यों न हम सिर्फ अपने बच्चों की खुशी के बारे में सोचें बस। और ये लड़का हमारी बिटिया की पसंद है भई, क्या आपको अपनी बेटी पर भरोसा नही, या उसकी पसंद पर। आप एक बार मिल तो लीजिये लड़के से, फिर जैसा आप कहेंगी, हम सब वेसे ही करेंगे। ठीक है। अब तो मान जाइये देवी जी।"
ममता जी :- "ठीक है। कल बुला लो उसे, लेकिन दोनों बाप बेटी कान खोल के सुन लो, अगर मुझे वो लड़का पसंद नही आया तो कोई भी दोबारा नाम नही लेगा उस लड़के का इस घर मे। और आप एक बात बताओ, ये mark jukr..... jukrbr कौन है???? हमारी ही बिरादरी का है क्या??? अगर आपके पास उसके माता पिता का फोन नंबर हो तो दीदी को देदो, वो लोग बहुत परेशान है सुमन बिटिया के रिश्ते को ले कर।"
रूपेश जी :- "हाँ, हाँ क्यों नही। मैं सारि details दे दूंगा, और ये अंजलि के पास तो उसका फ़ोटो भी है। अरे अंजलि , फ़ोटो दिखा भई अपनी मम्मी को। Zukerberg की नही...... पीयूष की। और मैं आता हूं जरा कल के show के tickets लेकर। अगर सब ठीक राह तो सब साथ चलेंगे, नही तो में तो अकेले जाऊंगा ही।"
ममता जी :- "आप और आपकी सिनेमाहॉल। बाकी कोई तो है ही नही इस दुनियां में। चल अंजलि तू आ इधर, और दिखा मुझे फ़ोटो। और पीयूष का तो ठीक है, लेकिन तू ये mark jukr.... jukrbr की फ़ोटो क्यों रखे है अपने पास??? बहुत बिगड़ गए हो तुम आज कल के बच्चे।"
कहने को तो हम साथ नही, तेरे दिल के पास नही।।
मगर जब भी तेरा ख्याल आये, इस दिल ने सजाये है अरमान कई।
गहराइयों में दिल की कहीं, जगह ऐसी कोई बाकी नहीं।
अक्स तेरा ही नज़र आये, सपनो में आये बस तेरा चेहरा ये हंसी।
कहने को तो हम साथ नही, तेरे दिल के पास नहीं।।
गुजरा वो वक़्त जब भी याद आये, प्यार का सैलाब और आंधियां लाये कई।
क्यों वो अधूरा सा सपना छोड मुझे जाता नहीं, तेरे प्यार की महक वो सादगी अब कहीं बाक़ी नहीं।
मेरे दिल को न जाने अब कैसे सुकून आये, तेरे साथ कि घड़ियां न जाने दिल के किस कोने में हैं बसीं।
कहने को तो हम साथ नही, तेरे दिल के पास नहीं।।
शायद ये कहानी किस तरफ जा रही है आपके मन की तरंगों ने आपको बता भी दिया होगा अब तक। और अगर नही बताया है तो कुछ दिनों में पता चल ही जायेगा कि ये कहानी है किसके बारे में? इस कहानी का अंत तो आपने देख ही लिया है, शुरुआत देखने के लिए आएगा जरूर इस कहानी के अंतिम भाग को पढ़ने।
Lots of Love
Yuvraaj ❤️