Hello friends,
I am again here to present my new story, hope you like my this creation as previous once. It's a short story and I try to make it looks real, so I write this one as in biography style, but this is also a fiction one as my all stories. Please give your valuable comments here or wherever you read this story, dm's is also acceptable like before. So here's the story begin, through its main character Shashank.
शशांक :- (लैपटॉप में कुछ सर्च करते हुए, अपने मे ही बड़बड़ाते हुए) "पता नहीं पापा ये सब कैसे कर पाते, ये तो सच में बहुत ही मुश्किल है। ok!!! Now it's finally done!!! (अपने पापा को आवाज़ लगते हुए) पापा..... पापा......!!! ये id बन गयी है स्नेहा दीदी की, अब आप देख सकते हो अपनी और दीदी की पसंद का लड़का।"
स्नेहा :- (अपने कमरे से भाग कर बाहर बैठक में आते हुए) "वाह इतनी जल्दी, पापा तो हफ्ते भर से परेशान थे। और तूने तो कुछ मिनटों में ही id बना दी।"
शशांक :- (लैपटॉप स्नेहा को थामते हुए) "वैसे आप भी कर सकतीं थीं ये, इतना भी मुश्किल नहीं था।"
स्नेहा :- (शशांक की टाँग खिंचने के अंदाज़ में) "हाँ कर तो सकती थी, लेकिन जब मैंने arrange marriage करने के लिए हाँ कर दिया, तो अब कुछ काम तुम लोगों से भी तो करवाउंगी, ऐसे ही थोड़ी होती है बहन की शादी बेटा, बहुत काम करना पड़ता है उसके लिए।"
शशांक :- (मुस्कुरा कर) "लेकिन आप करना क्यों चाहती हो ये??? आपका तो अच्छा खासा affair चल रहा था आपके colleague रौनक के साथ!!! फिर ये arrange marriage क्यों?"
स्नेहा :- (मज़ाकिया अंदाज़ में) "वो इसलिए मेरे प्यारे भाई, क्योंकि मैं अपने बूढ़े बाप को भी थोड़ी ख़ुशी देना चाहती हूँ। कि वो भी अपने ज़माने की तरह अपनी बेटी.... Ohhhh sorry (शशांक की तरफ देखकर) अपने दोनों बच्चों के लिए लड़का ढूंढे और उनके हाँथ पीले कर इस घर से विदा करें।"
शशांक :- (स्नेहा को मुँह चिड़ाकर अपने कमरे में जाते हुए) "Not funny!!!!"
स्नेहा :- (जोर से हँसते हुए) "अरे मज़ाक कर रही थी, चल तू अपने लिए लड़का खुद ढूँढ लेना, लेकिन मेरे लिए तो help करा दे।"
शशांक :- (अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ा होकर) "Again it's not so funny!!!! मुझे अस्मिता के साथ जाना है तो मैं नही कर पाऊंगा आपकी मदद, आप और आपके बूढ़े बाप ही enjoy करो ये shadi.com।"
Yes!!!!! ये हूँ मैं यानी शशांक गुप्ता!! और बाहर सोफ़े पर जो मेरी टाँग खींच रहीं थीं, वो है मेरी बड़ी बहन स्नेहा गुप्ता। हम दोनों में पूरे 9 साल का अंतर है, क्योंकि मेरी प्यारी मम्मी को दूसरा बच्चा नहीं चाहिए था, लेकिन एक दिन गलती से मैं मम्मी की गोद में आ गया। जी हाँ आपने बिल्कुल ठीक पड़ा, "गलती से"। दरअसल हुआ यूँ था कि मम्मी को बहुत देर से पता चला कि वो pregnant हैं। और जब वो डॉक्टर के पास abortion कराने पहुंची तो डॉक्टर ने मना कर दिया, की अब abortion नहीं कर सकते, अगर किआ तो आपकी जान को भी खतरा हो सकता है। मम्मी तो फिर भी risk लेने को तैयार थीं लेकिन मेरे प्यारे पापा ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। लेकिन मेरी मम्मी बहुत ही ज़िद्दी थीं और उन्होंने डॉक्टर के मना करने के बाद भी, पापा से छुपकर भरपूर प्रयास किये की मैं इस दुनिया मे ना आ सकूं। जैसे breakfast, lunch और dinner में सिर्फ पपीते का सेवन, पानी से भरी भारी बाल्टी उठा कर जीनों से छत तक जाना, और भी कई ऐसे घरेलू नुस्खे जिनसे वो अपनी ज़िद्द पूरी कर सकती। लेकिन भगवान को तो कुछ और ही मंजूर था। मेरी मम्मी के कई निरर्थक प्रयासों के बाद भी 21 अप्रैल 2000 शुक्रवार को बैंगलुरू में ohhh i am sorry, बैंगलोर में हुआ, क्योंकि तब बैंगलुरू बैंगलोर हुआ करता था। और बस उसी दिन से मेरी मम्मी भगवान की बहुत बड़ी भक्त भी हो गईं थीं। वो बस मुझे अपनी बाहों में लिए रोये जा रहीं थीं और भगवान का शुक्रिया करे जा रहीं थीं कि भगवान ने मुझे उनकी गोद मे सही सलामत सौंप दिया। बस उसी दिन से मैं अपनी मम्मी का लाड़ला भी बन गया। और शायद स्नेहा दीदी को उसी बात की जलन है। हा.. हा.... हा..... मज़ाक कर रहा हूँ। मेरे घर में सभी मुझसे प्यार करते हैं। हाँ पापा जरूर 2.5 सालों तक मुझसे नाराज़ थे, या शायद मुझसे दुःखी थे, जब मैंने उन्हें और अपने घर में मेरे गे होने के बारे में बताया था। लेकिन मम्मी के गुजर जाने के बाद पापा ने अपनी नाराज़गी को कहीं छुपा सा लिया है, लेकिन उनकी नज़रों से मुझे आज भी लगता है कि वो मुझसे निराश अभी भी हैं। इसीलिए शायद उन्होंने आज तक इस बात को ग्वालियर में मेरे दादाजी और नानाजी के घरवालों से छुपाकर रखा है।
हाँ हम लोग बैंगलोर के नहीं हैं। मेरे दादाजी और नानाजी दोनों का ही घर ग्वालियर में ही है। पहले पापा मम्मी और दीदी ग्वालियर में दादाजी के पुश्तैनी घर मे बाकी के घरवालों के साथ ही रहते थे। पापा ने बड़ी मशक्कतों के बाद bsnl में जॉब भी पा ली थी। लेकिन मेरे पापा का स्वभाव थोड़ा अड़ियल किस्म का ही है। और दादी तो बताती हैं कि पापा बचपन से ही थोड़े ज़िद्दी भी रहे हैं। मम्मी पापा दोनों ही ज़िद्दी, hmmmmmm...... इसीलिए शायद ये ज़िद्द हम भाई बहन को विरासत में मिली है। हाँ, तो जॉब लगने के कुछ सालों के बाद ही पापा की अपने मैनेजर से किसी बात पर बहस हो गयी, और वो बहस इतनी बड़ी की उस मैनेजर ने पापा को परेशान करने के लिए उनका ट्रांसफर यहां बैंगलोर में करवा दिया। मैनेजर को लगा कि शायद प्रमोद गुप्ता जी इतनी दूर ट्रांसफर के चलते ये नौकरी ही छोड़ देंगे। लेकिन उस मैनेजर को मेरे पापा की ज़िद्द के बारे में कहाँ पता था। पापा भी ग्वालियर में सभी को अलविदा कहकर अपनी बीवी और 5 साल की बेटी को लेकर चले आये बैंगलोर। और बस तबसे यहीं के होकर रह गए। और फिर 4 साल बाद मैं भी तो आ गया था उनके परिवार को बढ़ाने को।
शुरू शुरू में तो मम्मी पापा साल में 3 4 बार ग्वालियर आ जाया करते थे। फिर कुछ समय बाद दीदी के स्कूल शुरू हो जाने के बाद वही गर्मियों की छुट्टियों में ही ग्वालियर आना हुआ करता था। और फिर मेरे हो जाने के बाद पापा का प्रमोशन हो गया था, तो उन्हें कम ही छुट्टियां मिलतीं थीं। तो मम्मी ही हम दोनों भाई बहन को अकेले ग्वालियर ले आया करती थीं, और पापा सिर्फ हमे वापस बैंगलोर लेने के लिए ही आते थे। और फिर जब दीदी कॉलेज में आ गयी तो फिर उसे भी फुर्सत नहीं होती थी, तो बस मैं और मम्मी ही ग्वालियर आया जाया करते थे। मेरे कॉलेज में आने के बाद वो सिलसिला भी बंद हो गया। तब तक दीदी ने MBA भी कम्पलीट कर लिया था, और एक नामी ग्रामी MNC में उनकी जॉब लग चुकी थी। मेरी इंजिनीरिंग की फर्स्ट ईयर कम्पलीट होने के बाद मेने भी तय कर लिया था की मैं भी अब और क्लोसेट में नही रहूंगा। और मैंने अपनी सच्चाई, अपनी सेक्सुअलिटी के बारे में अपने घर मे बता दिया। दीदी को तो इस बात को स्वीकार करने में जरा सी भी कठिनाई नही हुई, और उन्होंने मुझे गले लगाकर इस बात की पुष्टि भी की। लेकिन मम्मी पापा को देख कर साफ पता लग रहा था कि उन्हें इस बात को जानकर बहुत ही गहरा सदमा सा लगा है। लेकिन उसी रात मम्मी ने तो अपने मन की बात बता दी कि उन्हें इस बात से कोई दिक्कत नही की में गे हूँ, बल्कि उन्हें इस बात को जानकर बहुत बुरा लगा है कि मैंने इतनी बड़ी बात को इतने सालों तक छुपा कर क्यों रखा। लेकिन पापा!!!!! पापा ने तो मेरे प्रति नाराजगी को ही अपना जीवन बना लिया था। मम्मी ने भी उन्हें खूब समझाने की कोशिशें की लेकिन उन्होंने अगले 2.5 वर्षों तक मुझे अपने से दूर ही रखा।
फिर मेरी ज़िन्दगी का सबसे मनहूस दिन भी मुझे कम उम्र में ही देखने को मिला। उस दिन के बारे में बात करते हुए मेरी आँखों मे आज भी आँसू आ जाते हैं। मेरी इंजिनीरिंग के आखिरी साल में मेरी मम्मी हम सभी को छोड़ कर इस दुनिया को अलविदा बोलकर जा चुकी थीं। उनके कैंसर के बारे में हम सभी को काफ़ी देर से पता चला था, और ढेरों इलाज़ के बाद भी उन्हें कोई भी डॉक्टर कोई भी इलाज़ कुछ और साँसे नही दे पाया। और उन्होंने ही अपने आखिरी समय में पापा को मेरे प्रति अपना व्यवहार बदलने को कहा था। और शायद इसीलिए भी पापा ने उसके बाद अपनी सारी नाराज़गी को दरकिनार कर मुझे अपने गले से लगा लिया था। मम्मी के जाने के बाद बस हम तीन लोग ही एक दूसरे की दुनिया बनकर रह गए थे। अब सब ठीक है, हम तीनों भी खुश हैं, लेकिन हाँ मम्मी की कमी तो हर वक़्त खलती ही है। अब तो दीदी को भी पता नही ये क्या नया भूत चड गया है shadi.com का। जहाँ तक मुझे पता था तो उनका एक सीरियस रिलेशनशिप था। मुझे तो यही लगता था कि एक दिन दीदी रौनक को घर लेकर आएंगी पापा से मिलवाएँगी और उसी से शादी भी कर लेंगी। लेकिन पता नहीं फिर ऐसा क्या हो गया कि अब उन्हें शादी करने के लिए इस shadi.com की मदद लेनी पड़ रही है।
स्नेहा :- (बैठक में शाम की चाय पीते हुए, शशांक को उसके कमरे से बाहर आता देख) "कहाँ जा रहा है इतना सज धज के??"
शशांक :- (अपने हाँथ की घड़ी सही करते हुए) "बताया तो था, अस्मिता के साथ जाना है शॉपिंग के लिए। (इधर उधर देखते हुए) पापा कहाँ है???"
स्नेहा :- (चाय की चुस्की लेते हुए) "वही!!!! Shadi.com!!!!! अपने होने वाले दामाद को ढूंढ रहे हैं।"
शशांक :- (घर के बाहरी दरवाज़े की ओर जाते हुए) "Ok!!! पूंछे तो बता देना, मैं रात तक आ जाऊंगा।"
स्नेहा :- (शशांक को पीछे से टोकते हुए) "टाइम से आ जाना, आज पापा तेरा फेवरेट मलाई कोफ़्त बनाने की बोल रहे थे, तूने उनको shadi.com का तोहफ़ा दिया ना इसलिए।"
शशांक :- (भंवे चड़ाकर मुस्कुराते हुए सर हिलाकर) "Ok!!! आजाउँग।"
मलाई कोफ़्ता!!! वैसे तो जैसा मेरी मम्मी बनाती थीं, वैसा तो कोई भी नही बना सकता। वो मलाई कोफ़्ता हम सभी का फेवरेट भी हुआ करता था, और पापा जो मलाई कोफ़्ता बनाते हैं, वो तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता, ना ही मुझे और ना ही दीदी को। लेकिन उनका मन रखने के लिए हम दोनों भाई बहन बिना जाहिर किए, पापा के खाने की खूब तारीफ़ भी करते हैं, और उनका मलाई कोफ़्ता भी बड़े चाव से खाने का नाटक भी बखूबी निभाते हैं। वैसे पापा दम आलू बहुत ही शानदार बनाते हैं, और हम उन्हें कहते भी हैं बनाने को, लेकिन पापा को शायद मलाई कोफ़्ता बनाने में ही सुकून मिलता है। तो मम्मी के जाने के बाद हमारे घर मे कुछ भी अच्छा काम होता है, या हम लोग किसी भी वजह से खुश होते हैं, तो पापा खाने में मलाई कोफ़्ता ही बनते हैं। जैसे दीदी का प्रमोशन, मेरा इंजिनीरिंग का रिजल्ट, फिर मेरा MBA का रिजल्ट, फिर दीदी का एप्रैसल, मेरी नौकरी वगैरह वगैरह।
शशांक :- (अस्मिता की बिल्डिंग के नीचे पहुँचकर उसे फ़ोन करते हुए) "जल्दी आ यार, मैं कबसे तेरा इंतेज़ार कर रहा हूँ।"
अस्मिता :- (फ़ोन पर) "अपनी खटारा का दरवाज़ा खोलके रख, जब तक तू वो दरवाज़ा खोलेगा मैं नीचे आ जाऊंगी।"
शशांक :- (अपनी कार का दरवाज़ा खोलते हुए) "अगर तूने फिरसे मेरी कार को खटारा बोला, तो अगली बार से मैं पैदल ही आऊंगा फिर धक्के खाना ऑटो टैक्सी के।"
अस्मिता :- (भागते हुए शशांक की कार का दरवाज़ा पकड़ते हुए) "अरे धीरे से कहीं इस बुज़ुर्ग को चोट ना लग जाये।"
शशांक :- (सीट बेल्ट लगाते हुए) "जितनी बुज़ुर्ग तू है उससे तो 10 साल जवान है मेरी कार। तो ये जोक तू अपने ऊपर ही मारले।"
अस्मिता :- (कार में बैठते हुए) "अब क्या हुआ है, क्यों तेरा मूड सड़ा हुआ है। इतने छोटे से जोक पर इतना बड़ा रिएक्शन..... एक मिनट.... क्या आज फिर अंकल जी मलाई कोफ़्ता बनाने वाले हैं????"
शशांक :- (गाड़ी स्टार्ट करते हुए) "hmmmmmmm!!!! और तू भी चलेगी साथ।"
अस्मिता :- "No way!!! मुझे आफिस का कुछ काम है, तो मैं थोड़ा busy हूँ आज।"
शशांक :- (अस्मिता को घूर के देखते हुए) "Seriously!!!!तुझे कोई और बहाना नहीं सूझा। हम दोनों एक ही आफिस में, एक ही टीम में काम करते हैं। तो मुझे पता है कि तुझे कोई काम नहीं है।"
अस्मिता :- "अरे यार!!!! मुझे नहीं खाना अंकल के हाथ का मलाई कोफ़्ता, और फिर झूठी तारीफ़ भी तो करनी पड़ेगी। वैसे आज क्या हुआ है??? अंकल मलाई कोफ़्ता क्यों बना रहे हैं आज???"
शशांक :- "शाम को घर चलेगी तो सब पता लग जायेगा।"
ये है मेरी बेस्ट फ्रेंड या यूं कहूँ की इकलौती फ़्रेंड "अस्मिता"। हम दोनों बचपन के दोस्त हैं। शायद हम प्ले ग्रुप से ही साथ हैं। ऐसा मम्मी बताया करतीं थीं। जब वो मुझे स्कूल लेने आती थीं तो मैं हमेशा उन्हें अस्मिता के पास ही बैठा मिलता था। फिर हम दोनों एक ही स्कूल में भी साथ गए, और कॉलेज में भी। मम्मी तो अस्मिता को अपनी बहू बनाने के सपने संजोने लगीं थीं। लेकिन मैंने उनके सपनों पर पानी फेर दिया। लेकिन जब मैंने अस्मिता को मेरे गे होने के बारे में बताया था, तो मुझे आज भी अच्छे से याद है, उसने कोई रिएक्शन ही नहीं दिया था। जब मैंने उससे पूछा कि उसने सही से सुना भी है या नहीं, तो उसने मुझे बोला "तू मुझे ये नहीं बताता तो भी मुझे स्कूल टाइम से ही पता था।" फिर जब मैंने उससे पूछा कि उसे ये कैसे पता चला, तो उसने उन उन लड़कों के भी नाम बताए जिन्हें मैं स्कूल में छुप छुप कर देखा करता था, और ऐसी ऐसी बातें बताईं की मैं सोच रहा हूँ कि उस पार्ट को छोड़ ही देते हैं। शायद सभी बेस्ट फ़्रेंड ही थोड़े कमीने टाइप के होते हैं। उन्हें आपके serious moment पर भी बस आपकी टाँग ही खींचनी होती है। और शायद इसीलिए भी हम दोनों पक्के वाले दोस्त हैं। क्योंकि हम दोनों के बीच किसी भी तरह पर्दा नहीं है। हम दोनों एक दूसरे के साथ अपनी सारी बातें शेयर करते हैं। एक दूसरे को सब कुछ बताते हैं। अब ये हमारी किस्मत थी कि हमें एक ही कंपनी में और एक ही टीम में जॉब भी मिल गई। तो अब हम पूरे टाइम एक दूसरे के साथ ही रहते हैं। यूँ तो अस्मिता का एक बॉयफ्रेंड भी है आफिस में, लेकिन अस्मिता उसे लेकर ज्यादा सीरियस नहीं है। मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि जितना हो सके अस्मिता को उसका स्पेस दे सकूँ, ताकि वो अपने रिलेशन को भी टाइम दे। लेकिन वो अपने बॉयफ्रेंड से ज्यादा मेरे साथ ही समय बिताती है।
शाम को शॉपिंग के बाद जब हम दोनों घर पहुँचे, तो पापा और दीदी टेबल पर खाना ही लगा रहे थे। अस्मिता ने पापा और दीदी को ग्रीट किआ, और हम दोनों हाँथ धोने चले गए। अस्मिता को देखकर दीदी ने एक खाने की प्लेट और लगा दी। हम सभी खाना खाने के लिए बैठ गए, और फिर शुरू की हम तीनों ने पापा की मलाई कोफ़्ता की झूठी तारीफें। कभी कभी तो मुझे लगता है कि पापा को भी पता है कि हमें उनके हाँथ की ये सब्जी बिल्कुल भी पसंद नहीं है, लेकिन वो फिर भी ट्राय करते रहते हैं, की शायद कभी तो मम्मी के जैसी बना पाएं।
अस्मिता :- (खाना मुँह में रखकर) "वैसे आज क्यों बना है ये मलाई कोफ़्ता???"
स्नेहा :- (अस्मिता को पानी का ग्लास देते हुए) "कुछ खास नहीं, बस काफी दिनों से पीछे पड़ने के बाद, आज फाइनली शशांक ने Shadi.com पर प्रोफाइल बना ही दी, और अब पापा आराम से उस पर एक अच्छा सा लड़का ढूँढ सकते हैं।"
अस्मिता :- (ठसके से खाँसकर , जल्दी से पानी पीते हुए) "तुझे शादी करनी है शशांक????"
शशांक :- (अस्मिता को गुस्से से घूरते हुए) "वो अपनी शादी की बात कर रहीं हैं।"
स्नेहा :- (हँसते हुए, अस्मिता को पानी का जग देते हुए) "हाँ वैसे मैंने पापा को बोल दिया है, वो शशांक के लिए भी ढूँढ लेंगे एक अच्छा से लड़का।"
अस्मिता :- (पानी पीने के बाद) "सॉरी दीदी!! मुझे लगा कि आप शशांक के बारे में बात कर रही हो, क्योंकि मुझे तो शशांक ने आपके रिलेशन................. (अस्मिता कुछ कहती उससे पहले ही स्नेहा ने उसके मुँह में एक रोटी ठूँस दी)"
स्नेहा :- (रोटी ठूँसने के बाद ) "हाँ हाँ खाओ ना, पापा ने बहुत ही अच्छी सब्जी बनाई है आज तो।"
पापा :- (स्नेहा को टोकते हुए) "अरे बेटा ये कैसे खिला रही हो उसे, वो खुद खा लेगी।"
शशांक :- (अस्मिता को चुप रहने का इशारा करते हुए) "हाँ पापा आज सब्जी पहले से भी अच्छी बनी है, और अस्मिता शर्मा रही है रोटी लेने में, इसलिए दीदी ने बस..."
पापा :- (मुस्कुरा कर) "चलो अच्छा है तुम बच्चों को खाना अच्छा लगा। चलो मैं अब सोने जा रहा हूँ, आज शाम भर मैं वो लैपटॉप में देखता रहा, तो मेरा तो सर दुःख रहा है, पता नहीं तुम लोग कैसे सारा दिन उसमे घुसे ही रहते हो। (टेबल से उठकर अपने कमरे की ओर जाते हुए) स्नेहा बर्तन साफ करके ही रखना, वरना रात भर ऐसे ही पड़े रहेंगे।"
स्नेहा :- "हाँ पापा मैं धोकर रख दूंगी। (पापा के जाने के बाद अस्मिता को देखकर) सॉरी यार, पापा को नही पता है कुछ भी, इसलिए तेरा मुँह बंद कराने को जल्दबाजी में मुझे कुछ और सूझा ही नहीं।"
अस्मिता :- (हँसते हुए) "कोई बात नहीं दीदी। मुझे नहीं पता था ऐसा कुछ। (शशांक को हाँथ से मारते हुए) आधी बात क्यों बताता है मुझे। ये क्यों नही बताया कि अंकल को नही पता है इस बारे में।"
शशांक :- (अस्मिता के हाँथ पकड़ते हुए) "अरे तो मुझे क्या पता था कि तू ऐसे पापा के सामने बोल देगी।"
स्नेहा :- (दोनों को रोकते हुए) "चलो ठीक है अब बच्चों की तरह लड़ना बंद करो और बर्तन उठाने में मेरी हेल्प करो।"
अस्मिता :- (स्नेहा के पीछे पीछे किचन में बर्तन ले जाते हुए) "दीदी लेकिन हुआ क्या??? जहां तक मुझे शशांक ने बताया था, तो आप तो शादी के बारे में सोच रही थीं अपने बॉयफ्रेंड के साथ, फिर ये shadi.com???"
स्नेहा :- (बर्तन साफ करते हुए) "अच्छा हुआ यार की बस सोचा था शादी के बारे में उसके साथ, अगर कर लेती तो डाइवोर्स ही लेना पड़ता!!"
अस्मिता :- (आश्चर्य से) "कोई सीरियस बात है क्या दीदी, अगर आपको सही नही लगे तो हम नही बात करते इस बारे में।"
स्नेहा :- "यार सीरियस तो है ही!!! मैं पिछले 6 सालों से जानती हूँ उसे, लेकिन गे कम्युनिटी के लिए उसकी छोटी सोच के बारे में जब मुझे पता चला, तो मैंने ब्रेकअप कर लिया उसके साथ। वो इतना नैरो माइंडेड है इस विषय को लेकर, की मैं तो देख कर ही दंग रह गयी थी। फिर उसके शादी और शशांक के बारे में उसको बताने के बारे में तो मैं सोच भी नही सकती थी। वो तो आज भी मुझसे बात करना चाहता है, लेकिन मैंने तो अभी तक उसे अपने ब्रेकअप की वजह भी नही बताई है।"
अस्मिता :- (स्नेहा के कंधे पर हाँथ रखते हुए) "दीदी आप बुरा मत मानना लेकिन अभी भी ज्यादातर लोगों की सोच ऐसी ही है। आप कब तक ऐसे लोगों से दूर रहोगी? ऐसी सोच वाले लोग तो आपको हर कहीं मिलेंगे, लेकिन शशांक के लिए अच्छा वातावरण तो हमे उन लोगों के बीच ही रहकर बनाना होगा ना। आप एक बार रौनक से बात तो करके देखो शायद उसकी सोच में कुछ बदलाव आ सके। अब जैसे अंकल भी तो शशांक से पहले बात नहीं करते थे, लेकिन अब तो सब नार्मल हो गया है उनके बीच।"
स्नेहा :- "यार पापा की नाराज़गी और रौनक की घटिया सोच में ज़मीन आसमान का अंतर है। पापा नाराज़ थे और शायद अभी हैं, ये सोचकर की समाज मे उनकी मेरी और शशांक की कोई इज्जत नही करेगा, और रौनक के हमारे आफिस में आये एक नए एम्प्लोयी के प्रति व्यवहार को देखकर मैं भी उनकी बात से सहमत हूँ। रौनक जिस तरीके से उस नए लड़के को बेइज्जत करता है सबके सामने, कितना गंदा गंदा मज़ाक बनाता है उसका, सिर्फ इसलिए कि वो बाकी के लड़कों की तरह नही चलता, बाकी के लड़कों की तरह नहीं बोलता। अब मैं उससे क्या उम्मीद रखूं की वो मेरे भाई को कैसे समझेगा।"
अस्मिता :- "दीदी मैं तो फिर भी कहूँगी की आप एक बार बात करके देखलो, जितना मैंने शशांक से सुना है रौनक के बारे में, तो मुझे तो लगता है कि वो आपसे बहुत प्यार करता है। और आज के टाइम में प्यार मिलना ही कितना मुश्किल है, सबको बस one night stand ही चाहिए होता है। और आपका 6 साल का रिलेशन है। आप एक बार बात करके देखो शायद सब ठीक हो जाये।"
स्नेहा :- "यार अस्मिता बुरा तो मुझे भी लगता है लेकिन पापा और शशांक के अलावा है ही कौन जिसके बारे में सोचूँ। अब प्यार के लिए अपने भाई से समझौता तो नहीं करूंगी में। (स्नेहा बर्तन धोकर पलटती है, और किचन के दरवाज़े पर शशांक खड़ा सारी बातें सुन रहा होता है)
शशांक :- (किचन में अंदर आते हुए) "आप सिर्फ इस बात को लेकर अपने प्यार को छोड़कर, किसी भी अनजान इंसान से शादी के लिए मान गए दीदी??"
स्नेहा :- (शशांक के गाल पर हाँथ फेरकर) "ये कोई छोटी बात नहीं है शशांक, अरे यही सब तो छोटी छोटी बातें होती हैं जिनसे हम इंसान को परखते हैं। तो ये समझले की ये एक टेस्ट था, और रौनक उसमे फ़ैल हो गया। और किसने कहा तुझसे की मैं किसी भी अंजान इंसान से शादी करने जा रही हूँ। मैं तो उसे भी अच्छे से जानने परखने के बाद ही शादी के लिए हाँ बोलूँगी, तू चिंता ना कर।"
शशांक :- (स्नेहा को अपने गले से लगाते हुए) "चलो अब मैं भी आपके लिये लड़के ढूँढना शुरू करता हूँ shadi.com पर।"
अस्मिता :- (हँसते हुए) "हाँ चल पहले मुझे घर छोड़ के आ फिर ढूढ़ईयों लड़के। रात हो रही है, मेरी मम्मी चिल्लाएंगी नहीं तो।"
शशांक अस्मिता को उसके घर छोड़ने के लिए निकल आता है। और गाड़ी में अभी की हुई सारी बातों के बारे में ही अस्मिता भी शशांक से बात करने लग जाती है।
अस्मिता :- "तू बहुत लकी है शशांक की तेरी दीदी तेरे बारे में इतना सोचती है। और एक मेरी दीदी है, वो तो इसी फिराक में रहती है कि ऐसा क्या करे कि मेरा कुछ ना कुछ नुकसान हो जाये। सच में अगर तेरी सिचुएशन में मैं होती ना, तो मेरी दीदी तो जानबूझ के रौनक से शादी कर लेती, जिससे वो दोनों मिलके फिर मुझे परेशान कर सकते।"
शशांक :- (हँसते हुए) "क्या बोल रही है तू। पागल हो गयी है क्या??? लगता है आज पापा ने मलाई कोफ़्ते में कुछ स्पेशल मिलाया था, जिससे तेरा दिमाग खराब हो गया है।"
अस्मिता :- (हँसते हुए) "नहीं यार शशांक मैं सही कह रही हूँ। आज जैसे मैंने तुझे और स्नेहा दीदी को देखा ना, मैं तो अपनी दीदी को ऐसे इमेजिन भी नहीं कर सकती।"
शशांक :- (थोड़ा सीरियस होते हुए) "हाँ यार तू कह तो सही रही है, दीदी मुझसे बहुत प्यार करती है, और सिर्फ मेरे लिए अपने 6 साल के रिलेशन को ख़त्म करने में जरा भी नही हिचक रही। (कुछ देर सोचने के बाद) तुझे क्या लगता है!!! क्या हम लोगों को कुछ करना चाहिए इस बारे में। (गाड़ी साइड में रोक कर अस्मिता की ओर देखते हुए)"
अस्मिता :- (आश्चर्यजनक भावों से शशांक की ओर देखते हुए) "इसमें हम क्या कर सकते........ (थोड़ी देर सोचने के बाद) क्यों ना हम चलके रौनक से बात करें, और उसे सब अच्छे से समझाएं। इससे तेरे और रौनक के बीच में भी कोई प्रॉब्लम नही रहेगी, और स्नेहा दीदी भी shadi.com के बारे में नहीं सोचेंगी।"
शशांक ने तुरंत गाड़ी की दिशा बदली और दोनों चल दिये रौनक के घर, उससे बात करने। रौनक के घर पहुंच कर शशांक ने उसे कॉल करके उसके घर से नीचे ही बुला लिया, क्योंकि जो बात वो लोग रौनक से करने वाले थे, उन सब बातों के लिए रौनक का घर बिल्कुल भी उपयुक्त जगह नही था। रौनक भी शशांक के बुलाने पर फौरन ही अपने फ्लैट से नीचे आ गया। और उसने आते ही शशांक से स्नेहा के बारे में पूछना शुरू कर दिया।
रौनक :- (गाड़ी के अंदर झांकते हुए) "स्नेहा भी है क्या अंदर??? (गाड़ी में किसी को ना पाकर, शशांक के हाँथ पकड़ कर) क्या हुआ है उसे भाई??? ना मेरे फ़ोन उठाती है ना मेरे मैसेज का रिप्लाई देती है। आफिस में भी मुझे इग्नोर कर रही है। क्या चल क्या रहा है उसके दिमाग में???"
शशांक :- (रौनक के कंधे पर हाँथ रखते हुए) "इसीलिए हम तुमसे बात करने आये हैं रौनक। दीदी बस तुम्हारी कुछ हरकतों की वजह से परेशान है। कुछ समय से उसे तुम्हारा बर्ताव बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा है। इसलिए बस वो थोड़ी सी नाराज़ है।"
रौनक :- (आश्चर्य से) "क्या???? यार कोई 6 महीने का स्टैंडबाई तो नहीं हूँ ना मैं?? 6 साल का रिलेशन है हमारा, अगर कोई बात खटक रही है तो मुझसे कह सकती है वो। और पहले भी कई बार नाराज हो चुकी है वो मुझसे, लेकिन पहले कभी उसने मुझे ब्रेकअप के लिए नहीं बोला। मुझे पता है या तो तुम लोगों ने उसकी शादी किसी अमीर लड़के से फिक्स करा दी है, या फिर उसे कोई और पसंद आ गया है। वरना स्नेहा कभी मेरे साथ ऐसा नहीं करती।"
शशांक :- "क्या?? नहीं!!! नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। वो बस तुमसे थोड़ा सा नाराज़ है, और उसकी वज़ह कहीं ना कहीं मैं भी हूँ।"
रौनक :- (अपना माथा पकड़ते हुए) "क्या बोल रहा है तू, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"
शशांक :- "अभी कुछ दिनों पहले तुम्हारे आफिस में एक नया लड़का आया है, जिसे तंग करते दीदी ने तुम्हे देख लिया है, और उसे वो बात बिल्कुल पसंद नहीं आयी। इसलिए वो तुमसे नाराज़ हैं बस।"
रौनक :- (हँसते हुए) "अबे तो उस छक्के के लिए वो मुझसे ब्रेकअप कर लेगी??"
अस्मिता :- (गुस्से से रौनक की ओर देखते हुए) "कैसे बोल रहे हो यार आप??? इसीलिए तो स्नेहा दीदी नाराज़ है आपसे, आपको तो सच में ही बात करने की तमीज़ नहीं है।"
शशांक :- (अस्मिता को चुप कराते हुए, रौनक से) "यार बस तुम्हारा यही बर्ताव तो दीदी को नहीं पसंद आया। तुम्हें किसी का भी मज़ाक नहीं बनाना चाहिए जबकि तुम उसे जानते भी नहीं।"
रौनक :- (गुस्से से) "मुझे तुम लोगों की कोई भी बात समझ नहीं आ रही है। उस मीठे की वज़ह से स्नेहा मुझसे ब्रेकअप करना चाहती है, तो बोल देना उसे, अगर इतनी ही फ़िक्र है ना उस छक्के की तो उसी से शादी करले, फिर आ जायेगा आटे दाल का भाव समझ। मैंने उस मीठे को उसकी औक़ात बताके कुछ गलत नहीं किया। गंदगी हैं ये लोग हमारे समाज की, और स्नेहा उसके लिए मुझे छोड़ रही है। तो अच्छी बात है, मुझे भी नहीं रहना उसके साथ। और जाके बोल देना अपनी बहन को, अब तो मैं उस छक्के का आफिस में रहना ही मुश्किल कर दूँगा।"
शशांक :- (रौनक के कंधे पर हाँथ रखते हुए) "देख भाई तुम अभी गुस्से में हो, थोड़ा शांति से सोचो, क्या तुम इस बर्ताव के लिए अपने 6 साल की रिश्ते हो यूहीं जाने दोगे??? और बात सिर्फ उस लड़के के साथ के बर्ताव की नहीं है, मैं भी......."
अस्मिता :- (शशांक को बोलने से रोकते हुए) "पता है स्नेहा दीदी एक दम सही कर रही हैं। तुम हो ही नही इस लायक की कोई भी लड़की तुम्हारे साथ रिलेशन में रहे। ना लोगों की इज्ज़त करनी आती है, और बात करने का तो सलीका ही नहीं है। पता नहीं स्नेहा दीदी ने 6 साल कैसे झेल लिया तुम्हें।"
रौनक :- (गुस्से में वहां से जाते हुए) "देख लूंगा तुम लोगों को मैं और बोल देना स्नेहा को, उस मीठे को पूरे आफिस के सामने नंगा करके ना भगाया ना तो मेरा नाम रौनक नहीं।"
अस्मिता :- (गुस्से में) "हाँ जा जा जो करना है करले। स्नेहा दीदी तो अब थूके भी ना तेरे ऊपर।"
शशांक :- (आश्चर्य से) "तू ये क्या कर रही है?? अभी तो घर पर दीदी को समझा रही थी कि रौनक से बात करके देखो, उसे समझाओ। तो क्यों नहीं करने दी तूने मुझे बात। वो वैसे ही गुस्से में था, तूने उसे और गुस्सा दिला दिया।"
अस्मिता :- "हाँ तो मुझे थोड़ी पता था कि ये रौनक इतना बेकार इंसान होगा, वरना कभी ना बोलती उससे बात करने के लिए। और अच्छा हुआ कि मैंने तुझे रोक दिया, वरना तू क्या बोलने जा रहा था उससे, यही ना कि तू भी गे है इसलिए दीदी को और खराब लगा उसका ये बर्ताव, (शशांक के कंधे पर हाँथ रखते हुए) तूने सुनी ना उसकी बातें। वो मिसयूज़ कर सकता था इस बात को। हो सकता है वो कल को स्नेहा दीदी को ही ब्लैकमेल करने लगता ये बात जान कर। इसलिए अच्छा ही हुआ कि मैंने तुझे नही बताने दिया उसे कुछ। अब घर चल और दीदी को मत बताना ये सब, वरना वो और परेशान हो जाएंगी।
शशांक अस्मिता को उसके घर छोड़ कर वापस अपने घर आ जाता है। जब वो घर वापस आता है तो स्नेहा बाहर के बैठक में सोफे पर बैठी लैपटॉप में कुछ काम कर रही होती है।
स्नेहा :- (लैपटॉप को साइड में रखते हुए) "बड़ा टाइम लगा दिया तूने। आइस्क्रीम खाने तो नहीं चले गए थे तुम दोनों। मेरे लिए भी ले आता!!"
शशांक :- (सोफे पर बैठकर स्नेहा को गले लगाते हुए) "नहीं बस हम बात कर रहे थे कि आप मेरे लिए इतना कुछ करती हो और मैने कभी भी आपको थैंक्यू तक नहीं बोला।"
स्नेहा :- (शशांक के सर पर हाँथ फेरते हुए मजाकिया अंदाज में) "खुद को इतनी भी इम्पोर्टेंस मत दे, मैं सब कुछ अपने लिए ही कर रही हूँ।"
शशांक :- (हँसते हुए स्नेहा से अलग होते हुए) "वैसे आप मेरे लैपटॉप में क्या कर रही हो???"
स्नेहा :- (लैपटॉप उठा कर शशांक को पकड़ाते हुए) "shadi.com!!! चल मैं सोने जा रही तू भी सोजा कल दोनों को ही आफिस जाना है।"
स्नेहा के जाने के बाद शशांक वो लैपटॉप उठता है और shadi.com में लड़कों की प्रोफाइल देखने लगता है। कुछ प्रोफाइल देखने के बाद उसके हाँथ अचानक रुक जाते हैं, जब वो एक अनोखी प्रोफाइल उस shadi.com पर देखता है। पहले तो उसको भी लगता है कि ये कुछ गलत टाइपिंग है, या किसी ने बस मज़ाक के लिए ऐसा किआ है। लेकिन जब वो उस प्रोफाइल को ओपन करके उसके अंदर लिखा परिचय पड़ता है, तब शशांक को यकीन आता है कि ये ना तो कोई मज़ाक है, ना ही कोई गलती। और फिर शशांक हल्की सी मुस्कान से साथ shadi.com की उस प्रोफाइल के साथ कुछ वक्त बिताता है, और फिर जा कर अपने कमरे में सोने चला जाता है।
इस दुनिया मे कितना कुछ बदलते हमने आपने सभी ने देखा हुआ है। चाहे वो जातिवाद, वंशवाद या फिर महिलाओं का समाज मे बदलता स्तर, लेकिन एक मुद्दा आज भी ज्यों का त्यों सा ही है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ, समलैंगिगकता की। भले ही आज भारत सरकार ने इसे आपराधिक प्रकरणों से दूर कर दिया हो, लेकिन समानता का अधिकार देने में वो आज भी सक्षम नहीं है। और फिर कल को हमे कागज पर मोहर मिल भी जाये, तो क्या वो मोहर समाज मे हमारी छवि सुधारने में कारगर साबित हो पाएगी। आज भी हर नुक्कड़ पर रौनक जैसी सोच रखने वाले लोग, अपनी घटिया नजरों से जब हमें देखते हैं, क्या कोई सरकारी फैसला या कोई अलौकिक ताकत उस सोच को बदल पाएगी। ये तो अच्छा है कि शशांक ने हिम्मत करके अपने घरवालों को तो अपनी सच्चाई से रूबरू करवाया, वरना ना जाने कितने लोग तो बस समाज के डर से ही अपनी भावनाओं को अलमारियों में जीवन भर बंद करे बैठे रहते हैं। इन सीरियस मुद्दों को कुछ समय के लिए दरकिनार कर shadi.com के बारे में सोचिएगा जरूर। ऐसा शशांक को क्या मिला जो उसे भी अचंभित कर गया। और आगे की कहानी जानने के लिए बस थोड़ा सा इंतेज़ार कीजिएगा। जल्द ही शशांक आकर आपको सबकुछ बताने वाला है।
Lots of love
Yuvraj ❤️