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तो अभी तक आपने इस कहानी के आज के वक़्त के बारे में थोड़ा बहुत जाना है। तो चलिए अब आपको ले चलते हैं, उस बीते कल में, जहां रोहन की किस्मत को आज भी कई कसमों ने बाँध कर रखा हुआ है। ये बात है ग्वालियर के जवाहर कॉलोनी के परसेडिया और सारस्वत परिवार की। जो एक ही मोहल्ले में रहते हैं, घरों की दीवारें तो आपस मे नही जुड़ीं हैं। लेकिन उनके बच्चों रोहन परसेडिया और वेद सारस्वत ने दोनों परिवारों को आपस मे जोड़ कर रखा हुआ है। उम्र में यूं तो वेद रोहन से 1 साल बड़ा है, लेकिन बचपन से ही साथ मे खेल कूद, उठना बैठना, हंसना रोना दोनों का साथ ही होता है। और दोनों की इस गहरी दोस्ती के चलते, दोनों के परिवार भी आपस मे जुड़े हुए ही हैं। रोहन और वेद की दोस्ती में थोड़े बदलाव आने तब शुरू हुए, जब वेद की अच्छी पढ़ाई के लिए, सारस्वत परिवार ने उसे पुराने स्कूल से निकाल कर, शहर के अच्छे "दिल्ली पब्लिक स्कूल" में उसका दाखिला करवा दिया। रोहन ने भी वेद के साथ नए स्कूल में जाने की कई मिन्नते अपने घरवालों से की, लेकिन उनके घर से स्कूल की दूरी को देखते हुए, रोहन की उसके घरवालों के सामने एक ना चली। और ये नई दूरी, रोहन और वेद की दोस्ती के बीच भी आने लगी। धीरे धीरे दोनों का साथ मे मिलना और खेलना सिर्फ रविवार के दिन तक सिमट कर रह गया। और फिर धीरे धीरे बढ़ती कक्षाओं और बढ़ती पढ़ाई के दबाव में, वो रविवार भी अब कई हफ्तों में एक बार ही आने लगा। अब वेद के भी कई नए दोस्त बन चुके थे, जिनके लिए भी थोड़ा बहुत समय निकालना उसकी मजबूरी भी हो गया था, और उसको अच्छी लगने वाली आदत भी। वेद के नए स्कूल और उसके नए दोस्तों के बीच का माहौल, उस जवाहर कॉलोनी के मोहल्ले से बिल्कुल ही अलग था। उसके नए स्कूल में सभी सिर्फ अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग करते थे, और उसके नए दोस्तो का रहन सहन भी थोड़ा अलग और मॉडर्न ही था।
एक रोज़, वेद के जन्मदिन पर, उसके घरवालों ने एक छोटी सी बर्थडे पार्टी का आयोजन किया। जिसमें वेद के सभी नए दोस्तों को भी बुलाया गया था। और वेद का बचपन का दोस्त रोहन भी उस पार्टी में आमंत्रित था। रोहन द्वारा साथ लाये गए उसके छोटे से तोहफे, और उसके बोलने के लहज़े का, वेद के सभी दोस्तों ने बहुत मज़ाक बनाया, और रोहन को खूब चिढ़ाया भी। वेद के दोस्त की छोटी बहन, जो रोहन की हम उम्र ही थी, उसने सभी को रोहन का मजाक उड़ाने से रोका भी, लेकिन वहाँ सभी ने उसकी नाज़ुक सी आवाज़ को नज़रंदाज़ किआ। तभी वेद ने वहाँ आकर, सभी को चुप कराया, और रोहन की आँखों से बहते आँसुओ को पोंछा भी।
वेद :- "I am sorry rohan!!! इन लोगो की बातों का बुरा मत मानना, ये लोग ऐसे ही है। पता है जब मैं पहली बार स्कूल गया था, तो मेरा भी सबने ऐसे ही मज़ाक बनाया था। और देखो आज ये सभी मेरे अच्छे दोस्त भी बन गए हैं।"
वेदिका :- "रो मत रोहन! मैं घर जा कर सबकी शिकायत करूंगी, और स्कूल में भी मैडम से शिकायत करके, इन सभी की डांट भी पडवाऊंगी।"
वेद :- "और तुम बिल्कुल भी मत सोचो इन लोगों के बारे में, अबसे तुम रोज़ मेरे घर आना, और मैं तुम्हें इंग्लिश बोलना सिखा दूंगा। फिर देखना, अगली बार जब तुम मेरे इन दोस्तों से मिलोगे, तो ये तुम्हे कुछ नही कह पाएंगे।"
इस बर्थडे पार्टी ने रोहन की आँखों मे आँसू जरूर लाये थे, लेकिन उसे उसका पुराना, बचपन का दोस्त भी लौटा दिया था। अब रोज़ 1 - 2 घण्टे बाकी की पढ़ाई के साथ साथ वेद रोहन को अंग्रेजी बोलना भी सिखाया करता था। जो दोस्ती धीरे धीरे खत्म होती जा रही थी, उस एक घटना ने उस दोस्ती में फिर से जान फूंकने का काम कर दिया था। अब तो वेद के इस बर्ताव ने रोहन के मन मे एक अलग ही घर कर लिया था। अब तो हर वक़्त रोहन को बस वेद के इर्द गिर्द ही रहना अच्छा लगता था। जहाँ धीरे धीरे समय के साथ दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी, वहीं रोहन इस दोस्ती को अपनी ओर से एक कदम और आगे बड़ा चुका था। जिस कच्ची उम्र में बच्चों के दिल और दिमाग मे बस खेल कूद और मस्ती करने के ही ख्वाब छाए रहते थे। उस उम्र में रोहन के दिल मे प्यार का फूल खिलने लगा था। वो वेद को मन ही मन अपना सबकुछ मानने लगा था। अब वो बस वेद के ही ख्यालों में खोया रहता था। और वहीं वेद के लिए अभी भी इस रिश्ते का नाम बस दोस्ती ही था। रोहन के साथ किये बुरे व्यवहार के लिए वो अपने स्कूल के दोस्तों से भी अभी तक थोड़ा नाराज़ ही था। लेकिन उसके दिमाग मे अभी तक बस रोहन उसके लिए उसका सबसे अच्छा और खास दोस्त ही था। लेकिन रोहन के प्रति वेद की भावनाओं ने भी उस रात कुछ अंगड़ाइयां लीं, जब वेद रोहन को उसकी 8 वीं की बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी करवा रहा था।
वेद :- "अरे रोहू, तुम्हारा ये MP बोर्ड का सिलेबस तो बहुत ही आसान है। मैं परीक्षा से पहले ही तेरी सारी तैयारी करवा दूंगा।"
रोहन :- "इसीलिए तो आया हूँ तुम्हारे पास, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।"
वेद :- "अब अपने मम्मी पापा को बोल ना कि मेरे ही स्कूल में ट्रांसफर करवा दें तेरा, बड़ा मजा आएगा फिर, हम दोनों साथ ही स्कूल आएंगे जाएंगे।"
रोहन :- "कितनी बार तो डाँट खा चुका हूं यार इस चक्कर में, लेकिन वो लोग मानते ही नही।"
वेद :- "चल कोई नहीं। वो तो अच्छा है कि मेरी मम्मी ने तेरे साथ पढ़ाई करने के लिए हां करदिया, वरना मुझे बहुत बेकार लगता था तुझसे ना मिलने पर।"
रोहन :- (आँखों मे अलग ही चमक लिए) "तुम्हे अच्छा लगता है मेरे साथ??"
वेद :- "हाँ!!! तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त है।"
रोहन :- "मुझसे भी अच्छा कोई दोस्त है तुम्हारा स्कूल में???"
वेद :- "दिव्यांश मेरा अच्छा दोस्त बन गया था, लेकिन जब उसने तेरा मज़ाक बनाया था, तो अब वो मुझे उतना अच्छा नही लगता।"
रोहन :- "और कोई गर्लफ्रैंड??"
वेद :- (हँसते हुए) "क्या बोल रहा है रोहू, मम्मी ने अगर सुन लिया ना, तो बहुत मार पड़ेगी, और हमारा साथ मे पड़ना भी बंद हो जाएगा। (थोड़ी देर शांत रहने के बाद) वैसे तेरी कोई गर्लफ्रैंड है क्या?"
रोहन :- "नहीं!!! एक बॉयफ्रेंड है मेरा।"
वेद :- (आश्चर्य से) "बॉयफ्रेंड!!!! उसे बस दोस्त कहते हैं रोहू, बॉयफ्रेंड तो लड़कियों के होते हैं।"
रोहन :- "जरूरी नहीं है, कुछ लड़कों को भी लड़कों से प्यार होता है, जैसे मुझे है।"
वेद :- "सच में ऐसा भी होता है??? कोन है तेरा बॉयफ्रेंड??"
रोहन :- "तुम!! तुमसे प्यार करता हूँ मैं, जैसा tv में दिखाते हैं, हीरो हेरोइन वाला प्यार, वैसा ही प्यार करता हूँ मै तुमसे!!"
वेद रोहन की यह सब बातें सुनकर बहुत ही स्तब्ध रह गया था। उसने रोहन से इस तरीके के शब्दों को सुनने की कभी भी कल्पना नहीं की थी। वह रोहन को तो सिर्फ अपना एक अच्छा दोस्त, सबसे अच्छा दोस्त ही समझता था। लेकिन रोहन के इस प्यार के इजहार ने वेद को भी, रोहन को देखने, उसे समझने का एक नया नज़रिया जरूर दे दिया था। उस रात के बाद से दोनों के ही बीच में कुछ बदलाव तो जरूर आए थे। लेकिन वेद ने अपनी तरफ से किसी भी तरीके का ऐसा इजहार या अपने व्यवहार में ऐसा कोई बदलाव नहीं लाया था, जिससे रोहन को यह समझ आ सके, कि क्या वेद भी वैसा ही रोहन के लिए महसूस करता है या नहीं। वेद पहले की तरह ही रोहन के साथ व्यवहार करने की पूरी कोशिश करता था। बिल्कुल पहले की तरह ही उसके साथ दोस्ती का रिश्ता भी निभाता था। लेकिन हां उसकी नजरों में थोड़ा सा बदलाव जरूर आया था। अब रोहन से नजरें मिलाने में वो थोड़ा सा कतराता था। रोहन को भी यह बात साफ समझ आती थी। लेकिन वह यह समझता था, कि शायद वेद उसके लिए वैसी भावनाएं नहीं रखता, जैसी रोहन उसके लिए रखता है। इसलिए शायद वह उस से नजरें नहीं मिलाता। वेद के इस बदले अंदाज को देखकर रोहन ने भी फिर कभी दोबारा अपने मन की बातों को या यूं कहें कि अपने प्यार का इजहार फिर कभी वेद से नहीं किया। धीरे-धीरे समय यूं ही बीतता गया, रोहन के आठवीं की परीक्षाएं भी खत्म हो चुकी थी और उनका परिणाम भी आ चुका था। रोहन वेद की कराई हुई मेहनत पर एकदम खरा उतरा था, और उसने फर्स्ट डिवीजन में आठवीं कक्षा को पास किया था। और साथ ही साथ अब उसे अंग्रेजी बोलना भी बहुत अच्छे से आ चुका था। यह सब वेद द्वारा दिए गए समय का ही असर था।
रोहन के घरवाले जहां रोहन की बेहतर होती पढ़ाई के लिए इतने खुश थे, वही रोहन इससे बहुत निराश। और रोहन की निराशा का कारण था, अब वेद से ना मिल पाना। क्योंकि इस साल वेद की 10वीं कक्षा शुरू होनी थी, और उसकी मम्मी ने गर्मियों की छुट्टियों से ही उसकी पढ़ाई शुरू करवा दी थी। जिसके चलते ना तो वेद अपने घर के बाहर ज्यादा खेलने आ पाता था, और ना ही अब रोहन के पास कोई ऐसा कारण था, जिससे वो वेद के घर जाकर, वेद के आस पास रह सके। रोहन ने एक बार फिर अपने घरवालों से, वेद के स्कूल में ही उसका एडमिशन कराने की जिद्द की, लेकिन इस बार भी उसके घरवालों ने इस बात को नजरअंदाज किया। रोहन अब बहुत ही चिड़चिड़ा रहने लगा था। एक तो उसके घरवाले उसकी बस एक ख्वाईश को पूरा करना तो छोड़ो, उसे ठीक से सुनते भी नहीं थे, और दूसरी ओर, वेद भी उसकी भावनाओं को नही समझता था। और वो तो वेद के साथ बस दोस्त बन कर भी अच्छा वक्त गुजरने को तैयार था, लेकिन अब उस दोस्ती का रिश्ता निभाने के लिए भी वेद बस रविवार को कुछ घंटों का ही समय रोहन को दिया करता था। वक़्त ने फिर अंगड़ाइयां लीं, और धीरे धीरे दोनों ही वापस से अपने अपने स्कूल और पढ़ाई लिखाई में व्यस्त हो गए। और फिर आया प्यार का महीना यानी फरवरी!! ये फ़रवरी रोहन के लिए कुछ खास तोहफे भी साथ ले कर आई थी। फरवरी की 14 तारीख को, वैलेंटाइन्स डे के दिन, रोहन के साथ वो हुआ, जिसकी उसने कभी कल्पना ही नही की थी, और वेद के बदले व्यवहार के बाद तो उसने ऐसा सपनों में भी सोचना छोड़ दिया था। जी!!! आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। इस बार अपने प्यार का इज़हार करने की बरी वेद की थी। 14 की शाम को, वेद रोहन को उसके घर मिलने गया, और रोहन को अपने साथ, रोहन के घर की छत पर ले आया। फरवरी की हल्की हल्की सर्दी थी, अंधेरा भी हो ही चला था, वेद ने अपनी जैकेट की जेब से अपने घर से तोड़ कर लाये एक छोटे से गुलाब के फूल को निकाला, और रोहन के हाँथों में पकड़ाते हुए कहा।
वेद :- "मैं तुम्हारी तरह बेबाक़ नहीं हूं रोहन। और ना ही मैं कभी अपनी दोस्ती की सच्चाई को पहचान पाता, अगर उस दिन तुम मुझसे अपने दिल की बात ना करते। (मुस्कुराते हुए) और मैं थोड़ा स्लो भी हूँ! मुझे अपने ही दिल की बात समझने में थोड़ा ज्यादा समय भी लगा। लेकिन आज के दिन से अच्छा कौन सा दिन होगा, अपने प्यार का इज़हार करने के लिए। I Love You रोहन! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। क्या तुम अभी भी मुझसे प्यार करते..........."
वेद अपनी बात पूरी कर पाता, रोहन ने उससे पहले ही अपने प्यार का इज़हार वेद के होंठों पर अपने होंठों से कर दिया। वो 14 फरवरी की शाम, दोनों के लिए ही बहुत ही यादगार शाम थी। कहने को तो अभी दोनों बच्चे ही थे, लेकिन आज के समय मे इस उम्र के बच्चे भी वयस्कों से कम नही हैं। अपनी पसंद नापसंद का चुनाव वे बख़ूबी कर सकते हैं। जैसे कि वेद और रोहन ने इतनी कम उम्र में ही अपने अपने जीवन के पहले प्यार को इतनी आसानी से पा लिया था। और पहला प्यार किसी भी उम्र में आपके जीवन में आये, लेकिन वो बाकी के जीवन भर के लिए, अपनी एक खास छाप ठीक वैसे ही छोड़ जाता है, जैसे कि आपके शरीर पर पड़ी कोई बचपन की गहरी चोट।
उस 14 फरवरी के बाद से, रोहन और वेद के लिए मानो दुनिया जैसे बदल ही गयी थी। एक तो कच्ची उम्र, और उस पर पहले प्यार का नशा, दोनों के सर चड़ चुका था। अब तो बस दोनों ही किसी ना किसी बहाने से एक दूसरे के आस पास बने ही रहते थे। लेकिन रोहन जितना बेफिक्र और बेरोकटोक वेद को बस प्यार करना चाहता था, प्यार की सारी हदें छू लेना चाहता था, वहीं वेद इस मामले में बहुत ही संजीदगी से बर्ताव करता था। जहां रोहन को बाकी के लोगों की कोई परवाह ही नही थी, वही वेद इस रिश्ते को, सबकी नजरों से छुपा कर ही रखना चाहता था। क्योंकि वेद को अपने स्कूल में इस तरह के प्यार के ना जाने कितने गंदे और बुरे नाम सुनने को मिलने लगे थे। इसलिए वेद नहीं चाहता था, की कोई उसपर भी उंगली उठाए। शायद रोहन के प्रति अपने प्यार को क़ुबूल करने में जो वेद ने इतना समय लिया, उसके पीछे भी यही एकमात्र कारण था। वेद जब अकेले में रोहन के साथ होता था, तो उसका एक अलग ही रूप देखने को मिलता था, और वहीं सबके सामने, वो रोहन की ओर देखता भी नही था। वेद की यह बात रोहन को कुछ खास पसंद भी नहीं थी। लेकिन जब भी रोहन वेद से ऐसे बर्ताव का कारण पूछता था, तो वेद उसे यही बात हर बार कहता था कि, "मैं नहीं चाहता कि कोई हमारा मज़ाक बनाये, इसलिए हमें सबसे छुप कर ही रहना होगा।" अब रोहन को वेद की यह बात पसंद तो नही थी, लेकिन अकेले में ही सही वेद रोहन से अपने प्यार का इज़हार तो करता था, रोहन के लिए खुश रहने की यही एक वजह काफी थी।
कुछ ही समय बाद वेद के 10वीं के एग्जाम भी खत्म हुए और वेद के पढ़ाई में अच्छे से ध्यान देने की वज़ह से, वह अच्छे नंबरों से पास भी हुआ। अब बारी थी उसकी अपने विषयों को चुनने की, और गणित में कम रुचि होने की वजह से वेद ने विज्ञान को चुना, और 11वीं कक्षा में दाखिला लिया। वहीं रोहन के सर इस साल पढ़ाई का अधिक बोझ आया, क्योंकि ये उसका 10वीं बोर्ड का एग्जाम था। एक बार फिर रोहन को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी वेद ने उठाई। और स्कूल के बाद का सारा समय अब दोनों साथ ही अपनी अपनी किताबों के साथ, एक साथ ही बिताने लगे। कभी रोहन के कमरे में, कभी वेद के कमरे में, कभी रोहन के घर की छत, तो कभी कॉलोनी का पार्क ही, दोनों की पढ़ाई करने की जगह बन जाया करता था। जब दोनों के आस पास कोई होता था, तब तो सारा ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर ही लगाया जाता था, लेकिन जैसे ही दोनों को कुछ समय अकेले में बिताने का मौका मिलता था, तो वो समय किताबों से ज्यादा गौर एक दूसरे के शरीरों पर दिया करते थे। ये पूरा साल दोनों ने पढ़ाई भी की थी, लेकिन साथ साथ, दोनों के बीच का प्यार, शारीरिक रिश्तों के साथ ही, गहरा भी हो चला था। दोनों ने ही इस बार भी, अच्छे अंको के साथ अपनी अपनी परीक्षाएं उत्तरीण की थीं। लेकिन रोहन के इतने अच्छे परिणाम के लिए, सभी ने वेद को ही शाबाशी दी। और रोहन के घरवाले, वेद के इतने अच्छे साथ को देखते हुए, इस साल रोहन का एडमिशन, वेद के ही स्कूल में कराने के लिए भी तैयार हो गए थे। इस बात से रोहन की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नही था, लेकिन वेद इस बात को सुन कर ज्यादा प्रफुल्लित नही नजर आ रहा था।
रोहन :- (अपने घर की छत पर) "क्या हुआ तुम्हे??? खुश नही लग रहे?"
वेद :- "नहीं ऐसी कोई बात नहीं। बस थोड़ा परेशान हूँ।"
रोहन :- "वही तो पूछ रहा हूँ, किसलिए??"
वेद :- "यार जब तुम मेरे सामने होते हो, तो मैं खुद को नही रोक पाता, और अब स्कूल में भी जब तुमसे मिलूंगा, तो पता नही कैसे खुद पर काबू कर पाऊंगा।"
रोहन :- "लेकिन खुद को रोकना ही क्यों है, मुझे आज तक तुम्हारी ये बात समझ ही नही आई। हम कुछ गलत थोड़ी कर रहे हैं।"
वेद :- "ऐसा बस तुम्हे लगता है। बकी सभी के लिए ये गलत ही है। और मैं नही चाहता यार की हमारा मज़ाक बनाये सभी। और फिर बात सिर्फ हमारी होती तो कोई बड़ी बात भी नही थी, हमारे बाद ये बात यहीं नही रुकेगी, हमारे घर तक भी आएगी, और मैं अपने घरवालों की बेज्जती होते नही देख सकता।"
रोहन :- (मायूस होकर) "तुम कुछ ज्यादा ही सोचते हो। चलो ठीक है, मैं मम्मी पापा को मना कर दूंगा तुम्हारे स्कूल में एडमिशन करने के लिए, ठीक है??"
वेद :- (रोहन का चेहरा अपने हाथों में भरते हुए) "नहीं ऐसा कुछ नही करना है। वहां तुम्हे ज्यादा अच्छा सीखने को मिलेगा, वो जरूरी भी है। बस स्कूल में हमें दोस्तों की तरह ही रहना होगा। मुझे भी खुद पर काबू रखना होगा, और तुम्हे भी।"
रोहन :- "ठीक है। लेकिन कम से कम लंच में तो मुझसे मिल लिया करना, वरना नए स्कूल में अकेले मैं कैसे एडजस्ट कर पाऊंगा।"
वेद :- "अरे उसकी बिल्कुल भी चिंता मत करो, वेदिका है ना, वो तुम्हारे ही क्लास में है। वो मेरे दोस्त दिव्यांश की छोटी बहन है, एक बार तुम मिले भी हो उससे मेरी बर्थडे पार्टी में, अगर तुम्हें याद हो तो। मैंने उसे बोल दिया है तुम्हारे बारे में, वो तुम्हारा ख्याल रखेगी वहां।"
अबसे दोनों के लिए ही एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा था। जवाहर कॉलोनी से dps तक कि दूरी अब दोनों साथ ही एक ही bike पर तय करने लगे थे। सुबह का वो समय, चड़ते सूरज की चमक, वेद को पीछे से अपनी बाहों में पकड़ने का एहसास, वेद के कांधे का वो सहारा, रोहन के लिए अपनी अलग ही ख्वाबों की दुनिया को बसाने में भरपूर मदद कर रहे थे। जहाँ रोहन अपने बेपनाह प्यार का एहसास हर रोज़ वेद को कराने से नही हिचकता था, वहीं वेद, अपनी बनाई एक भी सीमा को रोहन को लांघने नही देता था। वो स्कूल पहुँचने से थोड़ी दूरी पर ही, रोहन से एक दूरी बना लेता था, और ये दूरी दोपहर में स्कूल से निकलने के बाद ही वापस उसी bike पर ही आकर खत्म होती थी। स्कूल में वेद रोहन के साथ बस एक अच्छे दोस्त की तरह ही बर्ताव किया करता था। केवल लंच के समय ही रोहन के साथ समय बिताया करता था, और वो भी अकेले में नही। दिव्यांश और वेदिका की मौजूदगी में ही। हाँ कभी कभी, लाइब्रेरी में अगर उसे रोहन अकेले में मिल जाया करता था, तो वेद उसे जोर से गले लगा कर उसके होंठो पर अपनी एक छाप छोड़ने से पीछे भी नही हटता था। रोहन को भी अब धीरे धीरे, वेद के इस चोरी छुपे प्यार से एतराज़ खत्म हो चला था। अब रोहन भी इस आँख मिचौली में वेद का भरपूर साथ निभाने लगा था। शाम को भी वेद के साथ समय बिताने को मिले, इसलिए उसने भी वेद की ही तरह विज्ञान को भी चुन लिया था। और अब दोनों सुबह से लेकर रात तक एक दूसरे के साथ ही समय बिताया करते थे। यूँही धीरे धीरे दोनों का प्यार भी परवान चड़ने लगा था, और दोनों एक दूसरे के बेहद करीब आते जा रहे थे।
वेदिका :- (स्कूल का एक दिन) "यार लंच हुए बहुत टाइम हो गया, वेद आया नही अभी तक??"
रोहन :- "आजायेग, कुछ काम मे लग गया होगा।"
वेदिका :- "यार तुम दोनों शाम को भी साथ मे पढ़ते हो ना??"
रोहन :- "हाँ!!! वेद मेरी हेल्प कर देता है।"
वेदिका :- "मैं भी आ जाया करूँ क्या?? भाई को भी ले आऊंगी, वो भी आज कल पढ़ाई में बहुत लापरवाही देता है, और इस साल 12 है उसका।"
रोहन :- "मैं क्या बोल सकता हूँ यार, तुझे वेद से ही पूछना पड़ेगा। शायद उसकी मम्मी परमिशन ना दें।"
वेदिका :- "यार सच बताऊँ!!! मुझे वेद बहुत अच्छा लगता है। लेकिन मेरी हिम्मत नही होती उससे कुछ कहने की। तू तो हम दोनों का ही अच्छा दोस्त है, तू कुछ मदद कर ना मेरी।"
रोहन :- (आश्चर्य से) "लेकिन वेद तुझे पसंद नही करता।"
वेदिका :- "उसने कभी बात की मेरी तुझसे??? तुझे कैसे पता??"
रोहन :- "नहीं!!! हम लोग ऐसी बातें नहीं करते, लेकिन मुझे पता है कि वो तुझे पसंद नही करता।"
वेदिका :- "तू ना ज़्यादा अपना दिमाग मत चला और मेरी मदद करदे बस, बाकी सब मैं देख लुंगी।"
वेदिका के मन की बात जानकर रोहन थोड़ा हैरान भी था और परेशान भी। उसे अपने प्यार पर पूरा भरोसा तो था, लेकिन वेदिका के बस इस छोटे से एकतरफा प्यार के इज़हार ने, रोहन के सामने उसके और वेद के प्यार के भविष्य के कई सवाल खड़े कर दिए थे। और अगले ही दिन से दिव्यांश और वेदिका ने भी शाम के समय वेद के घर पर आकर पढ़ाई करना शुरू कर दिया था। जिससे रोहन को अपने मन मे उठते सवालों को वेद के सामने रखने का मौका भी नही मिल पा रहा था। और उसके और रोहन के प्यार के आसमान में छाए इन वेदिका और दिव्यांश नाम के बादलों की वजह से, रोहन अब सभी पर खिसियाने भी लगा था।
वेद :- (bike पर स्कूल जाते समय) "क्या हो गया है आज कल तुझे, इतना चिड़चिड़ा क्यों रहा है सभी से?? उस दिन आँटी भी बोल रही थी, की घर मे भी सबसे ढँग से बात नही कर रहा आज कल?"
रोहन :- "मैं वैसे ही बहुत परेशान हूँ यार, मुझे और मत परेशान करो।"
वेद :- (bike को स्कूल के रास्ते की वजाय मोरैना कि तरफ ले जाते हुए) "जब तक तेरा मूड ठीक नही हो जाता, आज हम घर नही जाएंगे।"
रोहन :- "कहाँ ले जा रहे हो ये??? Half yearly exam आने वाले हैं यार, काम है स्कूल में बहुत।"
वेद :- "मैं करवा दूँगा तेरी सारी तैयारी, लेकिन आज तो स्कूल नहीं जा रहे हैं हम।"
रोहन :- "हाँ ठीक है, लेकिन अगर किसी को पता चला ना कि स्कूल का बोल कर कही और घूम रहे थे, तो ऐसे साथ मे स्कूल आना भी बंद हो जाएगा। अब बस यही टाइम तो बचा है तुम्हारे साथ बिताने का, बाकी पर तो वो दोनों भाई बहन राहू केतु की तरह मँडराते ही रहते हैं।"
वेद :- (खिलखिलाकर हँसते हुए) "अच्छा तो चिड़ने की वज़ह ये है। अब समझ आया मुझे, तो क्या हुआ, मैं मम्मी को बोल कर उनका घर आना बंद करवा दूंगा। फिर तो ठीक है?"
रोहन :- "नहीं यार बात वो भी नहीं है, ये तुम्हारा आखिरी साल है स्कूल में, फिर तुम पता नही कहाँ जाओगे, क्या करोगे, मुझे याद भी रखोगे या नहीं।"
वेद :- (रोहन के हाँथ को खींचकर, उसे अपनी पीठ के करीब खिंचते हुए) "बस इतनी सी बात रोहू??? इतनी छोटी सी बात से तूने इतने दिनों से अपना मुँह सड़ाया हुआ है। मुझे तो छोड़, तेरी अपनी मम्मी को भी तेरा ये बुरा से चेहरा नही पसंद आ रहा। वो मुझे बोल रही थीं कि रोहन को समझा उससे बात कर, कुछ परेशान है आज कल??? (Bike को सड़क के एक किनारे पर रोकते हुए, और रोहन के दोनों हाँथों को अपने सीने के इर्द गिर्द जकड़ते हुए) रोहू, मैं कहीं भी चला जाऊं, कुछ भी करूँ, लेकिन मैं कभी भी तुझे अपने दिल से नही निकाल पाउँगा। तू जान है मेरी। हाँ मैं बार बार तुझे थोड़ा कंट्रोल करने को कहता हूँ, मुझसे थोड़ी दूरी बनाए रखने को कहता हूँ, लेकिन मेरा यकीन मान, मैं इन सब से कहीं ज्यादा तुझसे प्यार भी करता हूँ। और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि मुझे GRMC में ही दाखिल मिल जाये MBBS के लिए, लेकिन अगर मुझे कहीं बाहर भी जाना पड़ा, तो अगले साल मैं तुझे अपने साथ ही ले जाऊंगा। फिर तो कोई दिक्कत नही है ना?"
रोहन :- (वेद की बातें सुनकर उसे जोर बाहों में भरते हुए) "मुझे पता है कि तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, मुझे तुम पर खुद से भी ज्यादा यक़ीन है, लेकिन बाकी लोगों पर तो मुझे रत्तीभर भी भरोसा नही है ना!!"
वेद :- "कौन बाकी के लोग रोहू??? तू क्या बोल रहा है??"
रोहन :- "कुछ नहीं!!! अब मेरा मूड बिल्कुल ठीक है, अब हम स्कूल वापस चले क्या??"
वेद :- (बाइक को स्टार्ट कर आगे बड़ाते हुए) "नहीं!!! आज का पूरा दिन बस तू और मैं!!! No school, no tenssion, only you and me।"
रोहन :- "ठीक है, लेकिन जा कहाँ रहे हैं हम???"
वेद :- "मितावली!!!! बहुत अच्छी जगह है, कल ही एक दोस्त होकर आया था, तो बस सोचा कि तुझे भी ले चलू। थोड़ा घूमना फिरना भी हो जाएगा। तेरा मूड भी ठीक हो जाएगा। और काफी दिनों से साथ मे वक़्त नही मिल पाया, तो वो कमी भी दूर हो जाएगी।"
सारे रास्ते भर रोहन बिना कुछ बोले बस वेद के कंधे पर सर रखकर, उसे अपनी बाहों में भरकर गुमसुम सा बैठा रहा। मितावली पहुंचकर जब वेद और रोहन ऊपर पहाड़ी पर पहुंचे, वहाँ पूरे प्रांगण में उन दोनों के सिवा कोई और नहीं था। दोनों ने अंदर जाकर शिव जी के दर्शन किये, और आस पास बने बरामदे में घूमने लगे। लेकिन रोहन अभी भी चुप ही था। वेद को देखकर मुस्करा जरूर रहा था, लेकिन अभी भी उसके मन मे कुछ ऐसा था, जो उसने वेद से छुपा कर रखा था।
वेद :- "क्या हुआ है तुझे रोहू??? क्या बात है??? तू अभी भी मुझे परेशान ही लग रहा है।"
रोहन :- "नहीं कुछ खास नही।"
वेद :- (रोहन का हाँथ पकड़ते हुए) "अब बताएगा भी??"
रोहन :- "वेदिका तुमसे प्यार करती है!!!!।"
वेद :- (हँस कर) "तो??? तो तू क्यों परेशान है??? तुझे उससे जलन हो रही है क्या??"
रोहन :- (वेद के हाँथ को झटकते हुए) "तुम्हे बस सब मज़ाक ही लगता है।"
वेद :- (वापस से रोहन के हाँथों को पकड़ते हुए) "अरे मज़ाक नहीं कर रहा यार मैं। अब ये उसकी फीलिंग्स है, तो मैं उसे तो कंट्रोल नही कर सकता ना। लेकिन मेरी फीलिंग्स को तो तू जानता है ना??"
रोहन :- "यार बात वेदिका की भी नही है।"
वेद :- "रोहू तो बात है क्या?? कभी बोल रहा है कि मैं अगले साल दूर ना चला जाऊं, फिर वेदिका, और अब वेदिका की भी बात नही है!!! तो आखिर बात क्या है?"
रोहन :- "वेद बात हमारी है!! हमारे रिश्ते की है!! हमारे भविष्य की है!"
वेद :- "क्या बोल रहा है रोहू यार, मुझे कुछ नही समझ आ रहा है??"
रोहन :- "यार जब वेदिका ने मुझे अपनी फीलिंग्स बताई, तब मुझे समझ आया, की वेदिका ना ही सही, लेकिन एक टाइम तो ऐसा आएगा ना, जब तुम शादी कर लोगे। तब हमारा, हमारे इस रिश्ते का क्या होगा?"
वेद :- (हँसते हुए) "यार रोहू तू कितनी दूर की सोच रहा है, अभी हम केवल स्कूल में हैं। उसके बाद कॉलेज फिर नौकरी, तब जाकर ये बात सामने आएगी हमारे, और तू उस बारे में अभी से ही सोच रहा है??"
रोहन :- "तुम्हें हँसी आ रही है इस बात पर, मुझे पता है, आज से 6 7 साल बाद ही सही, लेकिन तुम तो सबके डर के कारण कर लोगे शादी, फिर मेरा क्या होगा? मैं कैसे रहूंगा तुम्हारे बिना।"
वेद :- (रोहन के चेहरे को अपने हाँथों में भरते हुए) "सॉरी रोहू, मैं बस तू जो इतनी दूर की सोच कर अभी से परेशान है, उस बात पर हंस रहा था। ना कि तेरे और मेरे रिश्ते पर। अभी इन सब बातों में बहुत समय है, हम अभी से उस वक़्त के बारे में क्यों सोचें जो शायद कभी आए ही ना।"
रोहन :- (वेद के हाँथों पर अपने हाँथ रखते हुए) "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ वेद, मैं इस ख्याल से भी डर जाता हूँ कि तुम मुझसे कभी दूर भी हो सकते हो।"
वेद :- (रोहन के माथे को चूमते हुए) "तुझे बिल्कुल भी डरने की जरूरत नही है रोहू। मैं कभी तुझे छोड़ कर नही जाऊंगा।"
रोहन :- "मुझे तुम्हारे प्यार पर बिल्कुल भी शक नही है वेद, लेकिन मैं तुम्हे अच्छे से जानता हूँ। जब तुम्हारे घरवाले तुम पर शादी के लिए प्रेशर डालेंगे, तो तुम चुप चाप उनकी बात मान लोगे, और मुझसे दूर हो जाओगे।"
वेद :- (रोहन को शिव मंदिर की ओर ले जाते हुए) "अगर तुझे इस बात का डर है, तो मैं आज शिव जी के सामने, तेरे सर पर हाँथ रख कर कसम खाता हूँ, की मैं कभी तेरा साथ नही छोडूंगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े। मैं हमेशा तुझसे, और केवल तुझसे ही प्यार करता रहूंगा।"
ये तो बस एक क़सम थी, जो वेद ने खाई थी। लेकिन क्या वो अपनी इस कसम को निभा पाया था?? क्यों वेदिका 2 सालों से वेद का इंतेज़ार कर रही थी? क्यों रोहन 6 सालों से अपने घर, अपने शहर ग्वालियर वापस नही लौटा था? ऐसे कई सवालों, और बाकी की कसमो को जानने के लिए, इंतेज़ार कीजिये इस कहानी के अंतिम भाग का, जो मैं जल्द ही आप सबके सामने प्रस्तुत करूँगा।