Tuesday, October 13, 2020

मिलन Part -I

Hello friends,

                       I am again here to present my another story "मिलन".... A log time ago I wrote this story with straight characters, but now I change its theme, with different story ending. Hope you like it as you like my previous work.       



      दोस्तों हमारा नाम रोहित है। हम आईआईएम इंदौर के आखिरी वर्ष के विद्यार्थी हैं, और कानपुर के रहने वाले हैं। दिखने में बहुत हैंडसम हैं, ऐसा सभी बोलते हैं। लेकिन स्वभाव से थोड़े शर्मीले हैं, या यूं कहिए कि बड़े छुपे रुस्तम है, बाकी के कामों में। पढ़ाई में हमेशा टॉपर रहे और थोड़ा मम्मी का बेलन हमारे पिछवाड़े में रहता था, तो अब उस सब की बदौलत यहां तक आ गए हैं। हमारी बातचीत का तरीका बड़ा ही साधारण है। एकदम अपने कनपुरिया मिजाज के हैं। और बड़ा प्रेम भी है कानपुर से, तो एकदम शान से कनपुरिया बनकर रहते हैं। हमारे कॉलेज में भी लोग हमें कनपुरिया भाई जी बुलाते हैं। ऐसा नहीं है कि हमें अंग्रेजी बोलना नहीं आता, एकदम लल्लन टॉप अंग्रेजी बोलते हैं। लेकिन जहां मौका हो वहीं, बाकी तो अपना कनपुरिया लहजा ही हमें बड़ा पसंद है। या यूं कहें शान है ।


"भैया जरा जल्दी चलाइए टैक्सी, हमाई ट्रेन नहीं छूटनी चाहिए। इकलौते मामा की शादी है, और हम कतई अफ़्फोर्ड नहीं कर सकते आज की ट्रेन मिस करना।" रोहित ने जरा चिल्लाते हुए टैक्सी वाले को बोला।


       कल मामा जी की शादी में हमें समय से पहुंचना है। सॉरी इकलौते मामा की शादी में। तो हमाई उत्सुकता आप समझ सकते हैं। पांच बहनों में एकलौते भाई हैं, गोलू मामा!!! जिनकी कल शादी है, कानपुर में। बड़ी ही मन्नतों से उनका जन्म भी हुआ, और अब शादी का रिश्ता भी तय हुआ है। तो सब बहुत खुश हैं। हमाई मम्मी सबसे बड़ी बहन है, और हम सबसे बड़े भांजे हैं, गोलू मामा के। इसलिए बड़े ही करीबी हैं मामा जी के। तो हमाए बिना मामा घोड़ी पर ही नहीं बैठेंगे।  और उतने में ही, मम्मी जी का फोन आ गया।


(रोहित की मम्मी, अलका जी फ़ोन पर) "हां रोहित!!! अरे निकले कि नहीं तुम??? तुम्हारा तो राग ही नहीं समझ आता है हमें। अगर आज पहुंच जाते तो कितना बढ़ियाँ होता, अब कल सुबेरे भी तुम टाइम से पहुंच जाओ, तो हम बाबा आनंदेश्वर का प्रसाद चढ़ाएं।


रोहित :- (झल्लाते हुए बोला) "अरे मम्मी काहे इतना फालतू परेशान हो रही हो। हम जब कह दिए कि हम सुबेरे सुबेरे पहुंच जाएंगे, आप कतई टेंशन ना लो।"


अलका जी :- "वाह बेटा!!! हम अगर टेंशनियाते नहीं, तो आज तुम्हारा एडमिशन वहां नहीं होता। यही कानपुर में ही सड़ रहे होते, कहीं सरकारी डिग्री कॉलेज में। गाड़ी में बैठ जाना, तब हमें एक बार बता देना। गाड़ी पर भरोसा है, तुम पर नहीं है। (अलका जी एकदम तंज भरे शब्दों में बोली)


रोहित :- (गुस्से में) "आप का प्रवचन हो गया हो तो फोन रखिए माता जी!!  सुबह में मिलते हैं आपसे, और हां सुनिए नाश्ते में गरम गरम आलू के पराठे बनवा देना।"


     रोहित की मम्मी ने बिना बात पूरी हुए ही फोन काट दिया। खैर जैसे-तैसे टैक्सी वाले ने ट्रैफिक को मात देकर रोहित को ट्रेन के समय से 7 मिनट पहले स्टेशन पहुंचा दिया। रोहित बड़ी खुशी से टैक्सी वाले को थैंक्स बोल कर उसे ₹100 देकर दौड़ा अपने प्लेटफार्म की ओर। बस सिग्नल होने के 2 मिनट पहले ही रोहित ट्रेन में घुस गया। ट्रेन सीधा उज्जैन से आ रही थी, तो तमाम बाबा बैरागी लोग या फिर तीर्थयात्री ही थे उस थर्ड एसी कोच में। अपनी सीट पर रोहित बाबू जा कर बैठे और चैन की सांस ले ही रहे थे, कि अलका जी को कहां चैन था। फिर फोन आ गया।


अलका जी :- "हां बेटू!!!! ट्रेन मिल गई??"


रोहित :- (थोड़ा मजाक वाले मूड में बोला) "मम्मी आप चिंता ना करो, हमाए इकलौते गोलू मामा कल ही बकरा बनेंगे। काहे से उनके सबसे प्यारे भांजे ट्रेन में बैठ चुके हैं।"


अलका जी :- "तुम बहुत मस्तियाने लगे हो, और थोड़ा हंस लो, अब बस मामा के बाद तुम्हारा नंबर है। सुन रहे हो???"


रोहित :- (थोड़ा चिड़चिड़ाते हुए बोला) "हां मम्मी!!! वैसे यह ख्याल भी बढ़िया है।"


       रोहित ने फ़ट से फोन काट दिया और उधर से अलका जी को लगा कि, हां अब रोहित बाबू शादी के लिए तैयार है। ट्रेन पूरी रफ्तार से दौड़ने लगी थी। रोहित अब आराम से अपनी खिड़की वाली सीट पर बैठकर मोबाइल हाथ में लिए चला रहे थे। बाहर लगभग अंधेरा हो चुका था। थोड़ी ही देर में ट्रेन भोपाल स्टेशन पर रुकी। और कुछ और सवारी रोहित के कोच में भी चढ़ी। रोहित अपने मोबाइल पर व्यस्त थे, तभी एक बड़ी ही तेज तर्रार आवाज उनके कान में गूंजी।


"एक्सक्यूज़ मी"


      रोहित जैसे ही मुड़ा, उसके चेहरे से सारे भाव गायब हो गए। एक टक उसे देखता ही रहा। सांवला सा, मनमोहक सूरत, दुबली पतली कद काठी, सुनहरे बाल, लेकिन आवाज ऐसी कड़क, की ना देखो तो ऐसा लगे, जैसे किसी बड़ी उम्र वाले पुलिस ऑफिसर ने आवाज लगाई हो। रोहित  अभी भी अचंभे में ही था, तब उसने दोबारा कहा।


"हेलो!!!! मैं आपसे ही बोल रहा हूं मिस्टर!!!"


       रोहित एकदम अपनी फॉर्म में वापस आते हुए बोला।


रोहित :- "हां जी बताएं???"


"यह खिड़की वाली सीट मेरी है, तो आप जरा वहां से शिफ्ट हो जाइए।"


      उस लड़के ने एकदम बुलंद और कर्कश आवाज में बोला। रोहित मन ही मन बड़बड़ा रहा था, "भगवान बेचारे के साथ बहुत ही बुरा किए, इतनी भोली सूरत और आवाज से एकदम ही लड़ाकू। लेकिन कुछ भी कहो भैया, है बड़ा भोकाल। देखो कैसे कोच में आते ही हर आदमी का ध्यान अपने पर खींच लीआ। खैर हमें क्या लेना देना।" रोहित सीट पर दूसरे कोने में जाकर दुबक कर बैठ गया। थोड़ी देर में वह लड़का भी अपनी खिड़की वाली सीट पर सेट हो गया, और वह भी अपना मोबाइल हाथ में लेकर कान में हेडफोन लगाकर कुछ सुन रहा था, और साथ में कुछ देख भी रहा था। तब तक उसका फोन बज गया। शायद उसकी मां का फोन था।


"हां मम्मा!!! हम बैठ गए हैं आराम से ट्रेन में। आप बिल्कुल भी चिंता मत करो। हम सुबह कानपुर पहुंच कर आपको फोन करेंगे। बस आप एक बार बुआ जी का एड्रेस मैसेज कर दो, तानिया दीदी को बोलना वह कर देंगी।"


उधर से मां ने शायद बोला होगा बेटा अपना ध्यान रखना। इधर से बेटे ने बोला।


"जी मम्मी!!! आपका सौम्य अब बड़ा हो गया है, इतनी चिंता मत करो।"


    उसकी बातें आसपास बैठे सब लोग सुन रहे थे। रोहित फिर से मन में बड़बड़ाया, "इनको देख लो जरा, परवाह ही नहीं है, आस पास बैठे लोगों की। अब इनका नाम सबको पता है। भैया यह है गजब भौकाल सौम्य साहब।" थोड़ा समय बीता और रोहित को आने लगी नींद। तो सोचा सौम्य जी से कहें, कि सीट खोलें क्या!!!! लेकिन हिम्मत जवाब दे गई। चेहरे पर गुस्सा,  अपनी किताब में मगन और कानों में हेडफोन भी चढ़ाए बैठा था। थोड़ी देर इंतजार के बाद, रोहित भैया वहीं सीट पर बैठे बैठे ही सो गए। जब एक आवाज, चाय गरम चाय!!! कानो में पड़ी, तो रोहित की आंख खुली। देखा गाड़ी किसी स्टेशन पर खड़ी थी। सौम्य भी जाग रहा था। किताब बंद थी और खिड़की के बाहर टुकुर टुकुर निहार रहा था। अब रोहित ने सोचा, की थोड़ी बात की जाए। क्योंकि सौम्य को देखकर लग नहीं रहा था, कि उन्हें कहीं दूर दूर तक नींद आ रही थी। 


रोहित :- (धीरे से कहा) "एक्सक्यूज मी!!!।"



      सौम्य ने रोहित को पलट कर देखा, और उसके चेहरे पर धीरे धीरे गुस्से के भाव वापस आने लगे, उसकी भवैं धीरे धीरे ऊपर चढ़ने लगीं।



 रोहित :- "दरअसल हमें नींद आ रही थी, तो क्या आप.....!!"



       इससे पहले रोहित अपनी बात पूरी कर पाता सौम्य बौखला उठा।


सौम्य :- "नींद आ रही तो सो जाईये, अब क्या मैं आपको लोरी सुनाऊं???"


रोहित :- (मुस्कुरा कर) "अरे नहीं नहीं!!! आपने हमारी पूरी बात नहीं सुनी। हमाई सीट तो यह बीच वाली है, और बिना सुने आप तो हमारी क्लास ही लगा दीए।"


      सौम्य को अपने कहे पर थोड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई, तो उसने सॉरी बोला रोहित को। फिर बोला।


सौम्य :- "जी बस अगले स्टेशन तक बैठ जाईये। हम कुछ खाना ले ले और फिर आप सो सकते हैं।"


       अभी करीब रात के 9:00 बज चुके थे, ज्यादातर लोग सो ही गए थे। बस एक आधे ही जागे बैठे थे। अब हम भी चुपचाप बैठ कर अपना मोबाइल निहारने लगे। तब तक गोलू मामा का फोन आ गया, जी हां वही मामा जिनकी कल शादी है।


रोहित के मामा :- (फ़ोन पर) "हेलो रोहित दे बेटा, तुम यार अभी तक आए नहीं। ऐसे कैसे काम चलेगा। यहां सुबह से सब गड़बड़ मची है। यार मामी तुम्हाई चार बार पूछ चुकी हैं, भांजे साहब कहां हैं??"


रोहित :- "अरे मामा बोलने तो दो यार हमें!!! बस गाड़ी में बैठ चुके हैं और कुछ ही घंटों की दूरी है कानपुर से। भला आप की शादी हमाए बिना हो सकती है क्या??  यार कैसी बात कर दिए आप!!! अच्छा और सुनो जरा वहाँ तैयारी सब है ना??? कुछ कमी बसी हो तो हमें बताओ, हम सब जुगाड़ करते हैं।"


मामा :- "यार तुम्हाई मामी कह रही हैं, कि डांस करो कल साथ में और यार हम आज तक कभी डांस नहीं किए। गुरु बताओ जरा कुछ, तुम ही हो जो कुछ कर सकते हो।"


रोहित :- "आप चिंता ना करो कतई। अब आपके परम संकट मोचन कानपुर पधार रहे हैं। डाँस वांस सब निपटा देंगे।"


      रोहित जोर जोर से हंस रहा था, और सौम्य रोहित को घूर रहा था, और मन में सोच रहा था, कि कितना जोर जोर से बात करता है। दिखने में हैंडसम है, लेकिन जुबान से तो एकदम जाहिल ही है। उधर  रोहित का फोन खत्म हुआ, फोन रखते हुए उसने सौम्य की तरफ देखा, और बोला।


रोहित :- "कल हमाए मामा की शादी है कानपुर में। बस उन्हीं का फोन आया था।"


सौम्य :- (थोड़ा हंसते और सरकास्टिक हंसी के साथ) "जी मैंने सुना सब!!! और आप उनके डांस का जुगाड़ कराने वाले हैं।"


    दोनों जोर से हंसने लगे।


रोहित :- "आपको पता है ना सौम्य जी!!! हर चीज का जुगाड़ होता है कनपुरिया के पास।"


सौम्य :- (हंसते हुए) "तो मामा के डांस का जुगाड़ कैसे कर रहे हैं आप???"


रोहित :- (सर खुजाते हुए) "अब बोले हैं तो कुछ तो करना होगा, वैसे आप बुरा ना माने तो आप कुछ सुझाव दीजिये।"


सौम्य :- (हँसते हुए) "अभी तो सब जुगाड़ था आपके पास, अब कहां गया???" (रोहित का निराश चेहरा देखकर) "अच्छा रुकिए मैं आपको कुछ वीडियो दिखाता हूं। कल हमारी भी बुआ जी की बेटी की शादी है कानपुर में। दीदी ने यह डांस तैयार किया है, तो इसमें जो लड़के के स्टेप्स हैं, हो सकता है आपके कुछ काम आए।"


      दोनों सौम्य के मोबाइल पर वीडियो देखने लगे। गाना बज रहा था।


कहते हैं खुदा ने इस जहां में सभी के लिए 

किसी ना किसी को है बनाया हर किसी के लिए 

तेरा मिलना है उस रब का इशारा मानो 

मुझको बनाया तेरे जैसे ही किसी के लिए 

कुछ तो है तुझसे राबता 

कैसे हम जाने हमें क्या पता 

कुछ तो है तुझसे राबता 


      गाना सुनते सुनते हमारे रोहित बाबू भी एकदम यही सोच रहे थे, कि शायद सौम्य का आज यू मिलना भी कोई इत्तेफाक ही नहीं बल्कि ऊपर वाले का इशारा है। उधर सौम्य पूरी तरह से डांस के स्टेप्स का मजा ले रहा था। दोनों ने शांत होकर डांस देखा। रोहित के मन में कुछ अलग ही डांस चल रहा था। खामोशी तोड़ते हुए सौम्य ने कहा।


सौम्य :- "कैसा लगा??? ज्यादा मुश्किल भी नहीं है!!! आपके मामा भी कर सकते हैं।" (रोहित को थोड़ा सा धक्का देते हुए) "कहाँ खो गए आप?? कहीं वहां खुद को तो इमेजिन नहीं कर रहे थे??"


      जोर से हंसते हुए सौम्य इतना अच्छा लग रहा था, कि रोहित से रहा नहीं गया और उसने बड़ी हिम्मत करके कहा।


रोहित :- "सौम्य आप बहुत सुंदर दिखते हैं। आप जब खिलखिला कर हंसते हैं, एकदम कल कल करते झरने की तरह लगते हैं। आपको देख कर पहली नजर में नहीं लगा था कि आप इतना हंसते भी होंगे।"


      रोहित की बात सुनकर सौम्य एकदम शांत हो गया और कुछ देर के लिए खिड़की के बाहर देखने लगा। रोहित को समझ नहीं आया क्या करें??? ऐसा क्या बोल दिया कि सौम्य इतना शांत हो गया। तभी गाड़ी एक स्टेशन पर जाकर रुक गई। रात के करीब 10:30 बज चुके थे। जल्दी से रोहित बाहर गया और दो डब्बे खाने के और एक चाय वाले को साथ लेकर आया। उसने सौम्य की ओर इशारा करते हुए चाय वाले से कहा।


रोहित :- "भैया जरा एक कड़क चाय सर जी को दीजिए तो।"


सौम्य :- "शुक्रिया रोहित जी लेकिन मैं चाय नहीं पीता।"


     रोहित ने चाय वाले से दो कुल्लड़ में चाय ली और चाय वाले को जाने दिया। ट्रेन चल दी थी। सौम्य की नजर चाय के कुल्लड़ पर पड़ी तो रोहित से बोला।


सौम्य :- "दो चाय क्यों???? मैंने तो मना किया था!!"


रोहित :- (बड़ी मासूमियत से) "एक हमाई और एक उनकी!!


      रोहित के चेहरे पर थोड़ी शर्मीली सी मुस्कान थी, सौम्य थोड़ा आश्चर्य भरे भाव से पूछता है।


सौम्य :- "उनकी किसकी??? यहां तो मेरे अलावा और कोई नहीं!! और मैंने तो मना किया था!"


रोहित :- (मुस्कुराते हुए) "यह हमारे काल्पनिक चाय पार्टनर के लिए है, जो है नहीं लेकिन हम चाय अकेले नहीं पीते, तो जब कोई चाय पर साथ नहीं देता, तो हम दूसरा कप सामने रख लेते हैं, उन्हीं से बतिया भी लेते हैं, और दोनों चाय हम खुद ही पी लेते हैं।"


       सौम्य को रोहित की मासूमियत पर हंसी भी आ रही थी और थोड़ा प्यार भी।


सौम्य :- "बड़े जज्बाती  हैं आप रोहित जी।"


रोहित :- (सौम्य की ओर आस भारी निगाहों से देखते हुए) "सौम्य आज भर के लिए हमारे चाय पार्टनर बन जाइए ना। हमें बहुत अच्छा लगेगा।"


सौम्य :- (चाय के कप की ओर हाँथ बढ़ाते हुए) "वैसे मुझे चाय से परहेज नहीं है। बस किन्ही कारणों से चाय पीना बंद कर दिया।"


रोहित :- (हँस कर) "सौम्य आप बुरा ना माने तो एक बात कहें, जैसा आप खुद को दिखाते हैं, वैसे है नहीं।"


सौम्या :- (चाय की चुस्की को बीच मे ही रोकते हुए, कई प्रश्नचिन्ह अपने चेहरे पर लिए) "क्या मतलब??? मैं बनावटी लग रहा हूँ आपको???" 


रोहित :- (मुस्कुरा कर) "देखो आपको चाय कितनी ज्यादा पसंद आई, आपने जैसे ही घूंट को अंदर लिया, तो वह सुकून हमने देखा। और अब आप फिर वापस अपने दिखावटी रूप में आ गए। बुरा मत मानियेगा, हमारा इरादा आपकी जासूसी करने नही था, लेकिन आपकी चोरी पकड़ी गई।"


     सौम्य एकदम निशब्द था, और फिर दोनों ने चाय की चुस्कियां लेते हुए माहौल को थोड़ा बदला। और फिर रोहित पूछने लगा सौम्य के बारे में, सौम्य को और जानने की कोशिश करता है। तो सौम्य बताने लगा, कि वह नागपुर से है, एक सरकारी बैंक में नौकरी करता है। और अभी कुछ दिन पहले ही तबादला हुआ है, यहां भोपाल में। यहां बतौर ब्रांच ऑपरेशन मैनेजर काम कर रहा है। रोहित भी उसे अपने बारे में बताता है, कि वह आई आई एम का अंतिम वर्ष का विद्यार्थि है। अभी कुछ बाहर की यूनिवर्सिटी में एग्जाम दिया है, यदि सेलेक्ट हो गया तो देखेगा। चाय खत्म होते ही सौम्य ने रोहित को थैंक्स बोला।


सौम्य :- रोहित जी दिल से शुक्रिया!!! बड़े दिनों बाद इतनी अच्छी चाय पीने को मिली। और एक अच्छा चाय पार्टनर भी।"


रोहित :- (मुस्कुरा कर) "सौम्य जी हमें भी एकदम परफेक्ट लाइफ पार्टनर सारी सॉरी हमारा मतलब है चाय पार्टनर मिला आज, तो आपका भी शुक्रिया।"


          दोनों ने साथ में खाना खाया और फिर सौम्य ने रोहित से खाने के पैसे पूछे। तो रोहित ने कहा।


रोहित :- "अरे सौम्य जी रहने दीजिएगा। हमें अच्छा नहीं लगेगा अगर आप पैसे देंगे तो।"


सौम्य :- "अच्छा तो मुझे भी नहीं लगेगा अगर आपने पैसे नहीं लिए तो।"


रोहित :- "अगर आप हमसे दोस्ती करें, और अगर आपको मंजूर है, तो फिर 1 दिन कानपुर में मिलकर हमें चाय पिला दीजिएगा।"


सौम्य :- (कुछ सेकेंड शांत रहकर) "चलो मुझ पर उधार रही चाय।"


रोहित :- "यह हुई ना दोस्तों वाली बात।"


        रात के 11:30 बज चुके थे, दोनों की आंखों में नींद नहीं थी। एक बाबा सामने वाली सीट से उठे और उन्हें बाथरूम जाना था, लेकिन पांव में दर्द के कारण ज्यादा चल नहीं पा रहे थे। रोहित ने उनकी मदद की।


रोहित :-  "अरे बाबा अब ऐसी उम्र में काहे अकेले यात्रा करते हो?? किसी को संग में रखा करो।"


        फिर रोहित उन्हें बाथरूम ले जाकर वापस आया। सौम्य रोहित को देखकर बहुत खुश था, उसका इतना हेल्पिंग नेचर उसे बहुत अच्छा लगा। सौम्य ने रोहित को पूछा यदि वह सोना चाहे तो सो सकता है, रोहित ने ना में सर हिला दिया। और फिर सौम्य को भी नींद नहीं आ रही थी। खिड़की से बाहर देखते हुए, कहीं तो किसी पुराने ख्यालों में खोया था। उधर हमारा रोहित सौम्य के ख्यालों में खोया था। कब दोनों की आंख लग गई पता ही नहीं चला।




     आगे का सफर दोनों को कहाँ तक ले जाता है, और क्या कानपुर में दोनों फिर से चाय पर मिल पाते हैं या नहीं। रोहित अपने मन की बातें सौम्य को बता पायेगा या नहीं, और सौम्य का क्या रिएक्शन होगा। ये सभी बातें जानने के लिए बने रहिये रोहित ओर सौम्य के साथ। और अब हम लोग मिलते हैं, कानपुर में।







Thursday, October 8, 2020

वो सफ़र... - लघुकथा

 Hello friends,

                          I am again here to present  a very short story. It's just a thought which came into my mind while I'll traveling. So now I present that thought in the form of a short story. Hope you like it.



       बाहर हो रही चहल कदमी और आवाज़ों से जब मेरी आंख खुली, मैंने बाहर देखा, तो ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी हुई थी। मैंने जब खिड़की से झांककर देखा, तो वह आगरा स्टेशन था। मैंने पास रखी पानी की बोतल को उठाया, तो उसमें पानी खत्म हो चुका था। पानी लेने जाने के लिए जब मैं अपनी सीट से उठने लगा, तो एक आवाज मेरे कानों में सुनाई दी।


"ट्रैन बस चलने ही वाली है!!!!!"


मैंने पलट कर देखा, तो मुझसे उम्र में कुछ ही बड़ा एक लड़का, हाँथो में मोबाइल लिए, मेरे सामने वाली सीट से, मेरी ओर ही देख रहा था। चेहरा तो कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था, और बोलने के लहजे से भी झांसी का ही लग रहा था।


"हाँ!!! मैं जल्दी से पानी लेकर आ जाऊंगा। आप please मेरा bag देखते रहिएगा।"


      मैं ट्रेन से उतरा और नल की खोज में थोड़ा आगे की ओर चला गया। नल पर ज्यादा भीड़ तो नहीं थी, लेकिन कुछ लोग हाथ मुंह धो रहे थे, और कुछ अपनी बोतल लेकर पानी भरने का इंतजार कर रहे थे। मैंने भी नल के खाली होने का इंतजार किया, और नल खाली होते ही, जैसे ही अपनी बोतल को नल के नीचे लगाया। ट्रेन ने स्टेशन छोड़ने का सिग्नल दिया। लेकिन पता नही क्यों, मेरा वापस से ट्रेन की ओर जाने का मन ही नही किआ। मैंने बड़े आराम से अपनी पानी की बोतल को भरा, और उधर ट्रैन ने धीरे धीरे स्टेशन को छोड़ते हुए, अपनी रफ्तार बढ़ानी शुरू कर दी। और मैं अपने हाँथो में पानी की बोतल लिए, वहाँ खड़ा, ट्रैन को जाते देखता रहा। कुछ देर वहीं खड़े रहने के बाद, मैंने अपना मुँह धोया, और वहीं पास पड़ी बैंच पर आकर बैठ गया। ट्रैन के जाते ही स्टेशन पर थोड़ी शान्ति सी हो गयी थी। रात के 3 बजे, और प्लेटफार्म नंबर 3 होने के कारण, वहाँ कुछ 2 3 लोग ही मौजूद थे, और वो लोग भी नवंबर की हल्की सर्दी में चादर ओढ़े सो रहे थे। मैं भी बैंच से टिक कर, अपनी आँखें बंद कर के सोच ही रहा था, की अब क्या करना चाहिए, की तभी वही आवाज़ फिर से मेरे कानों में पड़ी।


"इससे अच्छा तो ट्रैन में ही सो जाते!!!"


     मैंने आँखे खोली, तो वही ट्रैन वाला लड़का मेरा bag हाथोँ में लिए, मेरे सामने खड़ा था।


"Sorry आपको मेरी वजह से ये तकलीफ उठानी पड़ी। लेकिन आपको ऐसा करने की कोई जरूरत नही थी।"


"अरे!!!! अब तुमने कहा था कि bag को देखना!!! तो ये bag को कब तक देखता रहता??? ट्रेन से बाहर तुम्हे देखा, तो तुम बुत बने खड़े थे, तुम ट्रैन में नही चढ़े तो मैं तुम्हारा bag लेकर नीचे उतर गया।"


"Thanq so much!!! लेकिन सच में, इस bag के लिए ऐसा करने की कोई भी जरूरत नही थी। इसमे मेरे कुछ कपड़ों के अलावा कुछ भी नही है। और इसकी वजह से आपकी ट्रैन भी छूट गयी।"


(उसी बैंच पर बैठते हुए अपने माथे पर हाँथ पीटते हुए) "वैसे मैं ये कहता हुआ थोड़ा पागल लगूंगा तुम्हे, लेकिन मैं ट्रैन से उतरने से अच्छा, chain pulling कर के ट्रैन रोक भी तो सकता था।"



      उसके ऐसा कहते ही, हम दोनों ही ठहाके लगा कर हँसने लगे। और हँसते हँसते ही मेरी आँखों मे आँसू आ गए, और मेरे होंठों पर बर्फ सी जम गई। और मेरी उदासी भरी शक्ल को देख कर उसने कहा।


"क्या हुआ??? मेरा यहाँ बैठना अच्छा नही लगा?? या फिर ये बैग??? कहो तो मैं और ये बैग, दोनों यहाँ से चले जायें???"


      

        मैंने मुस्कुराते हुए उसकी बातों का जवाब दिया।


"नहीं ऐसा कुछ भी नहीं!! बस मुझे मेरे पापा की याद आ गयी। आखिरी बार उनके साथ ही ऐसे खुलके हँसा था।"


"Hmmmmm और तुम्हे हँसते ही रहना चाहिए, तुम्हारे चेहरे पर हँसी ही अच्छी लगती है, ये उदासी नहीं। और तुम्हारे पापा भी यही चाहेंगे, की तुम हमेशा हँसते रहो।"


"हाँ!!! लेकिन ये कहने के लिए अब वो इस दुनिया में ही नही है।"



    वैसे तो मैं इतनी जल्दी किसी से नही घुलता मिलता हूँ, लेकिन उस अजनबी में पता नही वो कोनसा अपनापन था, जो मैं उससे अपने मन की, अपने हाल की सारी बातें बिना हिचकिचाए कर सकता था। मुझे बचपन से ही अकेले रहने की आदत भी थी, मुझे किसी का भी साथ इतनी जल्दी नही भाता था, लेकिन फिर भी, उस अजनबी से कुछ पलों की ही मुलाकात में, मुझे अपने अब तक के 18 साल के जीवन के हर लम्हों से उसे अवगत कराने में भी कोई झिझक नही थी। अब यूं तो ऐसा कुछ खास नही था मेरा जीवन, जिसके बारे में कोई किस्सा किसी को सुना सकूँ। मैं कक्षा 6 से ही, देहरादून के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई के लिए चला गया था, और अभी भी वहीं के एक कॉलेज में फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया था। पापा की तबियत खराब रहने की वजह से, पिछले 10 दिनों से झाँसी में ही था। परिवार के नाम पर मेरे पास सिर्फ मेरे पापा ही थे। वही मेरा सारा परिवार थे। मेरी मां मुझे जन्म देते वक्त ही इस दुनिया को अलविदा कह गई थी। और मेरे पापा ने ही मुझे पाल पोस कर इस लायक बनाया था, कि मैं आज उनके बिना भी, इस दुनिया में अकेले रहने की कोशिश कर पा रहा था। कहने को तो दिल्ली में मेरा ननिहाल भी था, लेकिन मेरी माँ के द्वारा, एक अनाथ लड़के के संग प्रेम विवाह करने की वजह से, उन लोगो ने मेरे माँ पापा से इन 21 सालों में कोई संबंध नही रखा था। मेरे माँ पापा ने, माँ के घरवालों के विरुद्ध जा कर, घर से भागकर, दिल्ली से दूर, यहाँ झांसी में अपनी एक छोटी सी दुनियाँ बसा ली थी। उनकी शादी के 3 सालों के बाद मेरा जन्म हुआ, और मैंने इस दुनियाँ में आते ही, अपने पापा का इकलौता परिवार, उनका प्यार ही उनसे छीन लिया। लेकिन सभी परेशानियों के बाद भी, मेरे पापा ने मुझे बड़े ही लाड़, प्यार से, पाला पोसा। मेरे अच्छे भविष्य की कामना में, उन्होंने मुझे खुद से दूर भेजने में भी, जरा सी भी झिझक नही दिखाई, और मुझे खुद से दूर भी भेज दिया था। रोज टेलीफोन पर बात हो जाया करती थी, स्कूल की छुट्टियों में मैं झांसी आ जाया करता था। या साल के बीच में कभी पापा मुझसे मिलने देहरादून आ जाया करते थे। यह सफर कुछ साल ऐसा ही चलता रहा था। लेकिन जब कुछ दिनों पहले पापा का मेरे पास फोन आया, और उन्होंने मुझे अपने पास आने को कहा। तो मुझे नहीं पता था, कि यह उनका आखिरी फोन होगा, और यह कुछ दिन मेरे पापा के साथ बिताए आखिरी दिनों में से एक हो जाएंगे।


      मैं अपनी सोच में कुछ यूं डूब गया था, जैसे मानो मैं भूल ही गया था, कि मैं आगरा रेल्वे स्टेशन के, प्लेटफार्म नंबर 3 पर पड़ी उस बैंच पर, किसी अजनबी के साथ बैठा हूँ। मेरी आँखों के सामने, पापा के साथ बिताए प्यारे लम्हों का सफर, किसी तेज रफ्तार से दौड़ती ट्रैन की तरह गुजर रहा था। मेरी पलकें फिर उसी आवाज के साथ झपकी।


"कहाँ जा रहे थे तुम??? वैसे मैंने अपना नाम नही बताया, मैं मानव हूँ।"


"मानव!!!!! मैं विनय।"


मानव :- "hmmmmm.... मानव याने इंसान का बच्चा!!!! पुजारी बाबा ने मेरा नाम मानव ही रख दिया, जब मैं उन्हें मंदिर की सीढ़ियों पर मिला।"


विनय :- (मुस्कुरा कर) "आप भी अनाथ, और मैं भी!!!"


मानव :- "जिसका कोई नही होता उसका भगवान होता है। या वो किसी ना किसी को आपके लिए भेज ही देता है। जैसे मुझे भेज दिया, ये bag लेकर, तुम्हारे पास!!!"


विनय :- (हँसते हुए) "आप बातें बड़ी अच्छी बना लेते हो।"


मानव :- "hmmmmm मार्केटिंग जॉब में हूँ, बातें बनाने के ही पैसे मिलते हैं। वैसे बताया नही तुमने??? कहाँ जा रहे थे??"


विनय :- "दिल्ली!!!! लेकिन जाऊं या नहीं, समझ नही पा रहा।"


मानव :- "मतलब???"


विनय :- "दरअसल मेरे पापा की यही आखिरी इक्छा थी!!! कि अगर उन्हें कुछ हो जाता है, तो मैं दिल्ली अपने ननिहाल चला जाऊं।"


मानव :- "तो फिर??? अपने ननिहाल जाने के लिए इतना क्या सोचना???"


विनय :- "इतना आसान नही है सबकुछ!!!"


मानव :- "मैं भी दिल्ली ही जा रहा हूँ। मेरे साथ चलो, मैं छोड़ दूंगा तुम्हें वहाँ!"


विनय :- "नहीं!!! नहीं!!!! वैसे ही मेरी वजह से आपको बहुत परेशानी हुई है, अब और ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है।"


मानव :- "मैंने कहा ना, शायद भगवान ने ही मुझे तुम्हारे लिए यहाँ भेजा हो। चलो!!! Main station पर चल कर पता करते हैं, अगली ट्रैन कब है!!!"



       मैं उसकी कोई मदद लेना तो नहीं चाहता था, लेकिन उसके व्यवहार से, उसकी बातों से मुझे अपनेपन का वो एहसास हो रहा था, जो मैंने अपने पापा के अलावा किसी और से कभी महसूस ही नही किआ था। और उसी भाव के प्रति विवष होकर, मैं भी बिना कुछ बोले, चुप चाप उसके पीछे पीछे चलता हुआ, अगरा के 1 नंबर प्लेटफार्म से बाहर निकर कर, पूछताछ खिड़की पर जा पहुंचा। वहाँ जा कर पता चला कि कुछ ही देर में एक ट्रेन आएगी, जो नई दिल्ली की ओर जाएगी। पर मुझे तो दिल्ली सराय रोहिल्ला स्टेशन पर जाना था, और दिल्ली शहर मेरे लिए बिल्कुल अनजान था। इससे पहले, मैंने झांसी और देहरादून के अलावा कोई और शहर देखा तक नही था, यहां तक कि, इन दोनों शहरों से भी मैं अभी तक लगभग अनजान ही था। तो दिल्ली जैसे महानगर में जाकर, उस घर का पता खोजना, जहाँ शायद मेरा इंतज़ार भी नही हो रहा हो, मेरे लिए बहुत ही मुश्किल होने वाला था। इसके बारे में सोचकर ही, मेरे चेहरे पर आई शिकन को भांपते हुए, मानव ने कहा।



मानव :- "ऐसा करते हैं, पीछे आने वाली ट्रेन से ही निकल चलते है। नही तो सुबह तक का इंतज़ार करना पड़ेगा। मैं नई दिल्ली से तुम्हे तुम्हारे ननिहाल भी छोड़ दूंगा, उसकी चिंता मत करना तुम।"



      मानव के कहे शब्दों का असली भाव, मैं अच्छे से समझ सकता था। एक अनाथ के लिए इतना कह भर देना ही, बहुत मददगार होता है, की "मैं हूं तुम्हारे साथ"!!!!! लेकिन मानव भी तो इस परेशानी में मेरी वजह से ही फसा था। अब उसकी और मदद लेने के बारे में सोचने से ही, मुझे उसके लिए बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था।


विनय :- "नहीं मानव!!! मेरी वजह से ही तो आपको इतनी परेशानी हुई है, अब और परेशानी उठाओगे, तो मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगेगा। हम चलते हैं नई दिल्ली, मैं चला जाऊंगा वहां से।"



       हम दोनों अगली ट्रैन से दिल्ली के लिए निकल गए। सुबह के 4 बज गए थे। ट्रैन के अंदर सभी लोग सो रहे थे, और कुछ लोग मथुरा आने का इंतेज़ार कर रहे थे। हम लोगों को बड़ी मुश्किल से, बैठने को जगह मिल तो गयी थी, लेकिन उतनी सी जगह में, एक ही व्यक्ति अच्छे से बैठ सकता था। मानव ने मुझे वहां बिठाया और खुद मेरे पास ही खड़ा हो गया। मैं मानव जैसे व्यक्ति को देख कर बहुत स्तब्ध था। आज के ज़माने में जहां सब पहले अपने बारे में सोचते है, और अपनी सुख सुविधाओं को प्राथमिकता देते हैं। उस समय मे, मैं जबसे मानव से मिला था, तबसे ही वो, मेरे लिए हर वो प्रयत्न कर रहा था, जैसे, मैं उसका कोई अपना ही हूँ। कुछ ही देर में, मैंने वहां थोड़ी सी जगह और बनाई, और मानव को भी साथ बैठने का इशारा किया। लेकिन उसने ना में सर हिलाया, और अपनी ही जगह पर खड़ा रहा। लेकिन मैंने उसका हाँथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा, और उसे अपने पास ही बैठा लिया। मानव भी मेरी ओर देखकर मुस्कुराया और ठीक से व्यवस्थित होकर बैठ गया। कुछ देर में मथुरा स्टेशन भी आ गया, और हमे थोड़ा अच्छे से बैठने की जगह भी मिल गयी। रात भर जागने की वजह से हम दोनों को ही पलकें नींद से भरी होने लगी थी। और ही कुछ ही देर में, मानव नींद में झोंके लेने लगा और उसका सर इधर उधर गिरने लगा। मैंने मानव का सर सम्भालते हुए अपने कंधे पर रखा, और मानव मेरे कंधे के सहारे, गहरी झपकी लेने लगा। उस वक़्त पहली बार, मैंने मानव के चेहरे को इतने गौर से देखा था। वो सोते हुए बहुत ही मासूम लग रहा था। ट्रैन की खिड़की से आते हवा के झोंको में, उसके माथे पर थपकियाँ देते उसके बाल, उसकी आँखों पर चादर सी बिछी घनी पलकें, और उन पलकों पर पहरा देती, उसकी काली घनी भावैं। उसके चेहरे पर, उसकी वयस्कता की पहचान देती हल्की हल्की दाड़ी मूंछे, और उनमे घिरे, गुलाब सी पंखुड़ियों से उसके होंठ। और उसके चेहरे की शोभा बढ़ाती उसकी वो नुकीली नाक। उसके चेहरे को निहारते हुए, मैं एक पल को तो भूल ही गया था, की मैं कहाँ हूँ, और कहाँ जा रहा हूँ। लेकिन इस शारीरक सुंदरता से कहीं ज्यादा मोहक था, मानव का व्यक्तित्व, उसके सहयोग करने का व्यवहार। मानव का आंकलन करने मे कब समय बिता, मुझे पता ही नही चला, और मानो पलक झपकते ही नई दिल्ली रेलवे स्टेशन भी आ गया। मैने मानव को उठाया, और हम दोनों स्टेशन से बाहर आ कर, टमटम में बैठ, दिल्ली सराय रोहिल्ला के लिए निकल गए। 



      कुछ ही देर में हम पापा द्वारा बताए गए पते पर पहुँच गए थे। लेकिन उस घर के दरवाजे को खटखटाने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मानव के बहुत समझाने के बाद मैंने उस घर की डोर बेल बजाई, और कुछ ही देर में लगभग मेरे पापा की उम्र का ही एक व्यक्ति दरवाजे के उस पार खड़ा हुआ था।


"जी कहिये!!!"


विनय :- (हिचकिचाते हुए) "जी मैं विनय!! मीरा और रकेश का बेटा!!!"


"कौन???"


विनय :- "मीरा शुक्ला और राकेश कुमार....!!!"


     मेरे द्वारा लिए गए नामों को सुनकर, सामने खड़ा वह इंसान कुछ देर तो चुपचाप मुझे टकटकी लगाए देखता रहा। और फिर उसने मुझसे कहा।


"तुम किसी गलत पते पर आ गए हो, यहाँ इन नामों को कोई नही जानता।"


     इतना कहकर, वो दरवाजा बंद ही करने वाले थे, की मानव ने दरवाजे को पकड़ते हुए, उनसे कहा।


मानव :- "कम से कम एक बार उसकी पूरी बात तो सुन लीजिए।"


"उन गिरे हुए लोगों के नाम सुनकर ही मैं ये दरवाजा बंद कर रहा हूँ।"


विनय :- "आपको नही मुझसे बात करनी है तो मत कीजिये, लेकिन मेरे माँ पापा के लिए बुरा बोलने की कोई जरूरत नही है।"


"बुरा???? जो मीरा ने हम लोगों के साथ किआ है, उसके हिसाब से तो मैंने अभी तक कुछ कहना शुरू भी नही किआ है। तुम्हे यहाँ भेज कर अगर वो लोग ये सोच रहे हैं, की हम लोग उन्हें माफ कर देंगे तो जाकर कह देना उन दोनों से, ये दरवाजे वो खुद हमेशा के लिए, खुद के लिए, बन्द करके गयी थी, और ये हमेशा उसके लिए बंद ही रहेंगे।"


विनय :- "वो दोनों ही अब इस दुनिया मे नही हैं। माँ तो मेरे जन्म के वक़्त ही हमे अलविदा कह गईं थीं, और पापा ने भी कुछ दिनों पहले हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं।"


"हमारे लिए तो वो उस दिन ही मर गयी थी, जिस दिन उसने हमारी खुशियों में आग लगा कर, तुम्हारे बाप की दुनिया सजाने के फैसला लिया था। अब हमें ना उनसे कोई मतलब है, और ना ही तुमसे।"



     इन जली कटी बातों के साथ ही, उन्होंने दरवाज़ा बन्द कर लिया। पारिवारिक सहारे के नाम पर, वो घर ही मेरा आखिरी सहारा था। पापा ने सिर्फ इस उम्मीद से मुझे यहाँ आने को कहा था, की शायद ये लोग इतने सालों की नाराज़गी भुला कर, मुझे अपना लेंगे, और मेरे अकेलेपन को बाँट लेंगे। आर्थिक दृष्टि से ना सही, लेकिन मानसिक तौर पर, इस कच्ची उम्र में, मुझे सहारे की अत्यंत आवश्यकता थी। उसी को भांपते हुए, पापा ने मुझे यहाँ दिल्ली आने को भी कहा था। लेकिन शायद नियति को मेरा अकेला ही इस दुनिया मे जीना कुबूल था। आँखों मे आँसू, और चेहरे पर उदासी लिए मैं वहाँ से चलने लगा। कहाँ जाना है, क्या करना है, इस बात का तो कोई इल्म ही था, लेकिन उस बन्द दरवाजे के सामने नही खड़ा रहना चाहता था। इन सब में, मैं एक बार फ़िर मानव के बारे में भूल चुका था। और उसने फिर मेरा हाँथ पकड़ कर, खुद की मौजूदगी का एहसास करवाया।



मानव :- "कहाँ जा रहे हो अब???"


विनय :- "नहीं पता, शायद वापस अपने घर झाँसी चला जाऊं।"


मानव :- "चलो मैं साथ चलता हूँ।"


विनय :- "नहीं मानव!!!! आपका और मेरा साथ बस यहीं तक का था। मेरा इतना साथ देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। अब आगे का सफर मुझे अकेले ही तय करना है।"


मानव :- "मैं तुम्हे कुछ बताना, चाहता हूँ। मैं ये सब पहले ही बता देना चाहता था, लेकिन नही समझ पा रहा था कि तुमसे ये बात कैसे करूँ। मुझे पाला पोसा जरूर पुजारी बाबा ने है, लेकिन जीवन जीने के लायक तुम्हारे पिता, राकेश चाचा ने ही बनाया है। वे ही पुजारी बाबा को मेरी पढ़ाई लिखाई के लिए पैसे दिया करते थे। और वे तो मुझे भी देहरादून भेजना चाहते थे, तुम्हारे साथ, लेकिन पुजारी बाबा ने मुझे नही जाने दिया। राकेश चाचा मेरे लिए भगवान स्वरूप थे। शायद वे खुद अनाथ थे, इसलिए मेरे जीवन की कठिनाइयों को अच्छे से समझते थे, और हर पल मेरा साथ देते थे। सिर्फ उन्हीं की वजह से मैं आज अच्छे से अपना जीवन यापन कर पा रहा हूँ। नहीं तो पता नही कहां ,क्या, संघर्ष कर रहा होता।"


विनय :- (आश्चर्य से) "तो ये सब बातें आपने मुझे पहले क्यों नही बताई???"


मानव :- "क्या बताता?? जिस देवता ने मेरी ज़िंदगी सँवारी, उसके अंतिम समय मे मैं वहां नही था, और जब तुम अकेले हो, तब मैं तुम्हारा साथ देने के लिए आ गया हूँ!!! लोग और शायद तुम भी, मेरी नियत पर शक करने लगते!!!"


विनय :- "आप साफ और नेक दिल इंसान हो मानव!!! आपको ऐसा सोचने की कोई जरूरत नही है।"


मानव :- "मैं अपनी नौकरी के काम से बंगलोर गया हुआ था, और पुजारी बाबा ने भी राकेश चाचा की खबर मुझे नही दी, की कही मैं नौकरी छोड़ कर ही ना भाग आऊं। वो तो जब मैं अपने एक दोस्त से फ़ोन पर बात कर रहा था, तब उसने मुझे बताया कि, राकेश चाचा का कुछ दिनों पहले स्वर्गवास हो गया। ये सुनते ही मैं फ़ौरन वह से झांसी के लिए निकल दिया। और जब मैं झांसी स्टेशन पर उतरा, तो मैंने तुम्हें वहां देखा। और फिर तुम्हे देखकर मुझे तुम्हे अकेले जाने देने का मन ही नही हुआ, तो मैं तुम्हारे साथ ही चल दिया।"



     मानव की आंखों की नमी और उसके चेहरे के भाव, उसके द्वारा कहे गए एक-एक शब्द की सत्यता का प्रमाण स्वयं दे रहे थे। मैंने उसके द्वारा कही गई सभी बातों को स्वीकार कर, उसे अपने गले से लगा लिया।



मानव :- "मैं सच मे ये सब बात तुमसे छुपना नही चाहता था, लेकिन जब ट्रेन में तुमने मुझे पहचाना ही नहीं, तो मुझे समझ ही नही आया कि मैं ये सब कैसे बताऊ तुम्हे!!!"


विनय :- (मानव को गले से लगाये हुए ही) "कैसे पहचानता??? मैन आपको कभी देखा ही नहीं!!!"


मानव :- "तुम्हें याद नही है, हम बचपन मे साथ खेला करते थे। वो तो जबसे तुम देहरादून गए हो, तबसे ही नही मिले हम। और जब तुम गर्मियों की छुट्टियों में झांसी आते थे, तो पुजारी बाबा मुझे गर्मियों की छुट्टियों में मथुरा भेज दिया करते थे। पंडिताई सीखने के लिए।"


विनय :- (मानव से दूर हटकर, विनय को मुस्कुरा कर देखते हुए) "अच्छा तो आप पार्ट टाइम पंडित भी हो!!!"


मानव :- (मुस्कुराकर) "हाँ थोड़ा बहुत!!! (विनय का हाँथ पकड़ते हुए) "विनय मैं एक बात तुम्हे सच्चे दिल से कहना चाहता हूं, तुम्हे कभी भी खुद को अकेला समझने की कोई जरूरत नही है। मैं साये की तरह हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा। हाँ, मैं राकेश चाचा की कमी कभी दूर नही कर सकता, और ना ही मैं कभी उनकी जगह लेने की कोशिश करूंगा, लेकिन मैं अपने साथ से, अपनी एक अलग जगह तुम्हारे जीवन मे जरूर बनाये रखूंगा, और हमेशा तुम्हारा साथ निभाउंगा। और मैं ऐसा, राकेश चाचा के एहसानों के दबाव में नही कह रहा हूँ, और ना ही मैं राकेश चाचा के साथ को एहसान मानता हूं। मैं तुम्हारा साथ सिर्फ इसलिए दूंगा, क्योंकि बचपन से ही मेरे दिल मे तुम्हारे लिए एक खास जगह है, और उस जगह में, तुम्हारे देहरादून जाने के बाद भी सिर्फ इजाफा ही हुआ है।"



     इस वक़्त मैं मानव की आँखों मे एक अटूट विश्वास की चमक को साफ साफ देख सकता था। मानव के चेहरे का वो तेज, अग्नि को साक्षी मान कर ली जा रही शपथ के सापेक्ष ही था। और मैं वहाँ खड़ा खड़ा, मानव की आँखों की गहराईयों में डूबता ही जा रहा था। मेरे इस सम्मोहन को मानव की आवाज ने ही भंग किआ।


मानव :- "चले घर!!!! अभी वो सफ़र भी बाक़ी है।"



      ये है मेरे वो सफ़र की कहानी, जिसकी शुरुआत तो परिवार की तलाश में हुई थी, लेकिन अंत एक हमसफ़र के मिलने के साथ ही हुआ। एक ऐसा हमसफ़र जो कि सफ़र में, मेरी छोटी से छोटी सुख सुविधाओं का ख़्याल, खुद से भी ज्यादा रखता था। आगे इस हमसफ़र का मेरे जीवन मे कितना और क्या सहयोग रहता है, फिर कभी किसी कहानी के जरिये जरूर आपसे सांझा करूँगा।

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Lots of Love 

Yuvraaj ❤️




















    

Shadi.Com Part - III

Hello friends,                      If you directly landed on this page than I must tell you, please read it's first two parts, than you...