Hello friends,
I am again here to present my another story "मिलन".... A log time ago I wrote this story with straight characters, but now I change its theme, with different story ending. Hope you like it as you like my previous work.
दोस्तों हमारा नाम रोहित है। हम आईआईएम इंदौर के आखिरी वर्ष के विद्यार्थी हैं, और कानपुर के रहने वाले हैं। दिखने में बहुत हैंडसम हैं, ऐसा सभी बोलते हैं। लेकिन स्वभाव से थोड़े शर्मीले हैं, या यूं कहिए कि बड़े छुपे रुस्तम है, बाकी के कामों में। पढ़ाई में हमेशा टॉपर रहे और थोड़ा मम्मी का बेलन हमारे पिछवाड़े में रहता था, तो अब उस सब की बदौलत यहां तक आ गए हैं। हमारी बातचीत का तरीका बड़ा ही साधारण है। एकदम अपने कनपुरिया मिजाज के हैं। और बड़ा प्रेम भी है कानपुर से, तो एकदम शान से कनपुरिया बनकर रहते हैं। हमारे कॉलेज में भी लोग हमें कनपुरिया भाई जी बुलाते हैं। ऐसा नहीं है कि हमें अंग्रेजी बोलना नहीं आता, एकदम लल्लन टॉप अंग्रेजी बोलते हैं। लेकिन जहां मौका हो वहीं, बाकी तो अपना कनपुरिया लहजा ही हमें बड़ा पसंद है। या यूं कहें शान है ।
"भैया जरा जल्दी चलाइए टैक्सी, हमाई ट्रेन नहीं छूटनी चाहिए। इकलौते मामा की शादी है, और हम कतई अफ़्फोर्ड नहीं कर सकते आज की ट्रेन मिस करना।" रोहित ने जरा चिल्लाते हुए टैक्सी वाले को बोला।
कल मामा जी की शादी में हमें समय से पहुंचना है। सॉरी इकलौते मामा की शादी में। तो हमाई उत्सुकता आप समझ सकते हैं। पांच बहनों में एकलौते भाई हैं, गोलू मामा!!! जिनकी कल शादी है, कानपुर में। बड़ी ही मन्नतों से उनका जन्म भी हुआ, और अब शादी का रिश्ता भी तय हुआ है। तो सब बहुत खुश हैं। हमाई मम्मी सबसे बड़ी बहन है, और हम सबसे बड़े भांजे हैं, गोलू मामा के। इसलिए बड़े ही करीबी हैं मामा जी के। तो हमाए बिना मामा घोड़ी पर ही नहीं बैठेंगे। और उतने में ही, मम्मी जी का फोन आ गया।
(रोहित की मम्मी, अलका जी फ़ोन पर) "हां रोहित!!! अरे निकले कि नहीं तुम??? तुम्हारा तो राग ही नहीं समझ आता है हमें। अगर आज पहुंच जाते तो कितना बढ़ियाँ होता, अब कल सुबेरे भी तुम टाइम से पहुंच जाओ, तो हम बाबा आनंदेश्वर का प्रसाद चढ़ाएं।
रोहित :- (झल्लाते हुए बोला) "अरे मम्मी काहे इतना फालतू परेशान हो रही हो। हम जब कह दिए कि हम सुबेरे सुबेरे पहुंच जाएंगे, आप कतई टेंशन ना लो।"
अलका जी :- "वाह बेटा!!! हम अगर टेंशनियाते नहीं, तो आज तुम्हारा एडमिशन वहां नहीं होता। यही कानपुर में ही सड़ रहे होते, कहीं सरकारी डिग्री कॉलेज में। गाड़ी में बैठ जाना, तब हमें एक बार बता देना। गाड़ी पर भरोसा है, तुम पर नहीं है। (अलका जी एकदम तंज भरे शब्दों में बोली)
रोहित :- (गुस्से में) "आप का प्रवचन हो गया हो तो फोन रखिए माता जी!! सुबह में मिलते हैं आपसे, और हां सुनिए नाश्ते में गरम गरम आलू के पराठे बनवा देना।"
रोहित की मम्मी ने बिना बात पूरी हुए ही फोन काट दिया। खैर जैसे-तैसे टैक्सी वाले ने ट्रैफिक को मात देकर रोहित को ट्रेन के समय से 7 मिनट पहले स्टेशन पहुंचा दिया। रोहित बड़ी खुशी से टैक्सी वाले को थैंक्स बोल कर उसे ₹100 देकर दौड़ा अपने प्लेटफार्म की ओर। बस सिग्नल होने के 2 मिनट पहले ही रोहित ट्रेन में घुस गया। ट्रेन सीधा उज्जैन से आ रही थी, तो तमाम बाबा बैरागी लोग या फिर तीर्थयात्री ही थे उस थर्ड एसी कोच में। अपनी सीट पर रोहित बाबू जा कर बैठे और चैन की सांस ले ही रहे थे, कि अलका जी को कहां चैन था। फिर फोन आ गया।
अलका जी :- "हां बेटू!!!! ट्रेन मिल गई??"
रोहित :- (थोड़ा मजाक वाले मूड में बोला) "मम्मी आप चिंता ना करो, हमाए इकलौते गोलू मामा कल ही बकरा बनेंगे। काहे से उनके सबसे प्यारे भांजे ट्रेन में बैठ चुके हैं।"
अलका जी :- "तुम बहुत मस्तियाने लगे हो, और थोड़ा हंस लो, अब बस मामा के बाद तुम्हारा नंबर है। सुन रहे हो???"
रोहित :- (थोड़ा चिड़चिड़ाते हुए बोला) "हां मम्मी!!! वैसे यह ख्याल भी बढ़िया है।"
रोहित ने फ़ट से फोन काट दिया और उधर से अलका जी को लगा कि, हां अब रोहित बाबू शादी के लिए तैयार है। ट्रेन पूरी रफ्तार से दौड़ने लगी थी। रोहित अब आराम से अपनी खिड़की वाली सीट पर बैठकर मोबाइल हाथ में लिए चला रहे थे। बाहर लगभग अंधेरा हो चुका था। थोड़ी ही देर में ट्रेन भोपाल स्टेशन पर रुकी। और कुछ और सवारी रोहित के कोच में भी चढ़ी। रोहित अपने मोबाइल पर व्यस्त थे, तभी एक बड़ी ही तेज तर्रार आवाज उनके कान में गूंजी।
"एक्सक्यूज़ मी"
रोहित जैसे ही मुड़ा, उसके चेहरे से सारे भाव गायब हो गए। एक टक उसे देखता ही रहा। सांवला सा, मनमोहक सूरत, दुबली पतली कद काठी, सुनहरे बाल, लेकिन आवाज ऐसी कड़क, की ना देखो तो ऐसा लगे, जैसे किसी बड़ी उम्र वाले पुलिस ऑफिसर ने आवाज लगाई हो। रोहित अभी भी अचंभे में ही था, तब उसने दोबारा कहा।
"हेलो!!!! मैं आपसे ही बोल रहा हूं मिस्टर!!!"
रोहित एकदम अपनी फॉर्म में वापस आते हुए बोला।
रोहित :- "हां जी बताएं???"
"यह खिड़की वाली सीट मेरी है, तो आप जरा वहां से शिफ्ट हो जाइए।"
उस लड़के ने एकदम बुलंद और कर्कश आवाज में बोला। रोहित मन ही मन बड़बड़ा रहा था, "भगवान बेचारे के साथ बहुत ही बुरा किए, इतनी भोली सूरत और आवाज से एकदम ही लड़ाकू। लेकिन कुछ भी कहो भैया, है बड़ा भोकाल। देखो कैसे कोच में आते ही हर आदमी का ध्यान अपने पर खींच लीआ। खैर हमें क्या लेना देना।" रोहित सीट पर दूसरे कोने में जाकर दुबक कर बैठ गया। थोड़ी देर में वह लड़का भी अपनी खिड़की वाली सीट पर सेट हो गया, और वह भी अपना मोबाइल हाथ में लेकर कान में हेडफोन लगाकर कुछ सुन रहा था, और साथ में कुछ देख भी रहा था। तब तक उसका फोन बज गया। शायद उसकी मां का फोन था।
"हां मम्मा!!! हम बैठ गए हैं आराम से ट्रेन में। आप बिल्कुल भी चिंता मत करो। हम सुबह कानपुर पहुंच कर आपको फोन करेंगे। बस आप एक बार बुआ जी का एड्रेस मैसेज कर दो, तानिया दीदी को बोलना वह कर देंगी।"
उधर से मां ने शायद बोला होगा बेटा अपना ध्यान रखना। इधर से बेटे ने बोला।
"जी मम्मी!!! आपका सौम्य अब बड़ा हो गया है, इतनी चिंता मत करो।"
उसकी बातें आसपास बैठे सब लोग सुन रहे थे। रोहित फिर से मन में बड़बड़ाया, "इनको देख लो जरा, परवाह ही नहीं है, आस पास बैठे लोगों की। अब इनका नाम सबको पता है। भैया यह है गजब भौकाल सौम्य साहब।" थोड़ा समय बीता और रोहित को आने लगी नींद। तो सोचा सौम्य जी से कहें, कि सीट खोलें क्या!!!! लेकिन हिम्मत जवाब दे गई। चेहरे पर गुस्सा, अपनी किताब में मगन और कानों में हेडफोन भी चढ़ाए बैठा था। थोड़ी देर इंतजार के बाद, रोहित भैया वहीं सीट पर बैठे बैठे ही सो गए। जब एक आवाज, चाय गरम चाय!!! कानो में पड़ी, तो रोहित की आंख खुली। देखा गाड़ी किसी स्टेशन पर खड़ी थी। सौम्य भी जाग रहा था। किताब बंद थी और खिड़की के बाहर टुकुर टुकुर निहार रहा था। अब रोहित ने सोचा, की थोड़ी बात की जाए। क्योंकि सौम्य को देखकर लग नहीं रहा था, कि उन्हें कहीं दूर दूर तक नींद आ रही थी।
रोहित :- (धीरे से कहा) "एक्सक्यूज मी!!!।"
सौम्य ने रोहित को पलट कर देखा, और उसके चेहरे पर धीरे धीरे गुस्से के भाव वापस आने लगे, उसकी भवैं धीरे धीरे ऊपर चढ़ने लगीं।
रोहित :- "दरअसल हमें नींद आ रही थी, तो क्या आप.....!!"
इससे पहले रोहित अपनी बात पूरी कर पाता सौम्य बौखला उठा।
सौम्य :- "नींद आ रही तो सो जाईये, अब क्या मैं आपको लोरी सुनाऊं???"
रोहित :- (मुस्कुरा कर) "अरे नहीं नहीं!!! आपने हमारी पूरी बात नहीं सुनी। हमाई सीट तो यह बीच वाली है, और बिना सुने आप तो हमारी क्लास ही लगा दीए।"
सौम्य को अपने कहे पर थोड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई, तो उसने सॉरी बोला रोहित को। फिर बोला।
सौम्य :- "जी बस अगले स्टेशन तक बैठ जाईये। हम कुछ खाना ले ले और फिर आप सो सकते हैं।"
अभी करीब रात के 9:00 बज चुके थे, ज्यादातर लोग सो ही गए थे। बस एक आधे ही जागे बैठे थे। अब हम भी चुपचाप बैठ कर अपना मोबाइल निहारने लगे। तब तक गोलू मामा का फोन आ गया, जी हां वही मामा जिनकी कल शादी है।
रोहित के मामा :- (फ़ोन पर) "हेलो रोहित दे बेटा, तुम यार अभी तक आए नहीं। ऐसे कैसे काम चलेगा। यहां सुबह से सब गड़बड़ मची है। यार मामी तुम्हाई चार बार पूछ चुकी हैं, भांजे साहब कहां हैं??"
रोहित :- "अरे मामा बोलने तो दो यार हमें!!! बस गाड़ी में बैठ चुके हैं और कुछ ही घंटों की दूरी है कानपुर से। भला आप की शादी हमाए बिना हो सकती है क्या?? यार कैसी बात कर दिए आप!!! अच्छा और सुनो जरा वहाँ तैयारी सब है ना??? कुछ कमी बसी हो तो हमें बताओ, हम सब जुगाड़ करते हैं।"
मामा :- "यार तुम्हाई मामी कह रही हैं, कि डांस करो कल साथ में और यार हम आज तक कभी डांस नहीं किए। गुरु बताओ जरा कुछ, तुम ही हो जो कुछ कर सकते हो।"
रोहित :- "आप चिंता ना करो कतई। अब आपके परम संकट मोचन कानपुर पधार रहे हैं। डाँस वांस सब निपटा देंगे।"
रोहित जोर जोर से हंस रहा था, और सौम्य रोहित को घूर रहा था, और मन में सोच रहा था, कि कितना जोर जोर से बात करता है। दिखने में हैंडसम है, लेकिन जुबान से तो एकदम जाहिल ही है। उधर रोहित का फोन खत्म हुआ, फोन रखते हुए उसने सौम्य की तरफ देखा, और बोला।
रोहित :- "कल हमाए मामा की शादी है कानपुर में। बस उन्हीं का फोन आया था।"
सौम्य :- (थोड़ा हंसते और सरकास्टिक हंसी के साथ) "जी मैंने सुना सब!!! और आप उनके डांस का जुगाड़ कराने वाले हैं।"
दोनों जोर से हंसने लगे।
रोहित :- "आपको पता है ना सौम्य जी!!! हर चीज का जुगाड़ होता है कनपुरिया के पास।"
सौम्य :- (हंसते हुए) "तो मामा के डांस का जुगाड़ कैसे कर रहे हैं आप???"
रोहित :- (सर खुजाते हुए) "अब बोले हैं तो कुछ तो करना होगा, वैसे आप बुरा ना माने तो आप कुछ सुझाव दीजिये।"
सौम्य :- (हँसते हुए) "अभी तो सब जुगाड़ था आपके पास, अब कहां गया???" (रोहित का निराश चेहरा देखकर) "अच्छा रुकिए मैं आपको कुछ वीडियो दिखाता हूं। कल हमारी भी बुआ जी की बेटी की शादी है कानपुर में। दीदी ने यह डांस तैयार किया है, तो इसमें जो लड़के के स्टेप्स हैं, हो सकता है आपके कुछ काम आए।"
दोनों सौम्य के मोबाइल पर वीडियो देखने लगे। गाना बज रहा था।
कहते हैं खुदा ने इस जहां में सभी के लिए
किसी ना किसी को है बनाया हर किसी के लिए
तेरा मिलना है उस रब का इशारा मानो
मुझको बनाया तेरे जैसे ही किसी के लिए
कुछ तो है तुझसे राबता
कैसे हम जाने हमें क्या पता
कुछ तो है तुझसे राबता
गाना सुनते सुनते हमारे रोहित बाबू भी एकदम यही सोच रहे थे, कि शायद सौम्य का आज यू मिलना भी कोई इत्तेफाक ही नहीं बल्कि ऊपर वाले का इशारा है। उधर सौम्य पूरी तरह से डांस के स्टेप्स का मजा ले रहा था। दोनों ने शांत होकर डांस देखा। रोहित के मन में कुछ अलग ही डांस चल रहा था। खामोशी तोड़ते हुए सौम्य ने कहा।
सौम्य :- "कैसा लगा??? ज्यादा मुश्किल भी नहीं है!!! आपके मामा भी कर सकते हैं।" (रोहित को थोड़ा सा धक्का देते हुए) "कहाँ खो गए आप?? कहीं वहां खुद को तो इमेजिन नहीं कर रहे थे??"
जोर से हंसते हुए सौम्य इतना अच्छा लग रहा था, कि रोहित से रहा नहीं गया और उसने बड़ी हिम्मत करके कहा।
रोहित :- "सौम्य आप बहुत सुंदर दिखते हैं। आप जब खिलखिला कर हंसते हैं, एकदम कल कल करते झरने की तरह लगते हैं। आपको देख कर पहली नजर में नहीं लगा था कि आप इतना हंसते भी होंगे।"
रोहित की बात सुनकर सौम्य एकदम शांत हो गया और कुछ देर के लिए खिड़की के बाहर देखने लगा। रोहित को समझ नहीं आया क्या करें??? ऐसा क्या बोल दिया कि सौम्य इतना शांत हो गया। तभी गाड़ी एक स्टेशन पर जाकर रुक गई। रात के करीब 10:30 बज चुके थे। जल्दी से रोहित बाहर गया और दो डब्बे खाने के और एक चाय वाले को साथ लेकर आया। उसने सौम्य की ओर इशारा करते हुए चाय वाले से कहा।
रोहित :- "भैया जरा एक कड़क चाय सर जी को दीजिए तो।"
सौम्य :- "शुक्रिया रोहित जी लेकिन मैं चाय नहीं पीता।"
रोहित ने चाय वाले से दो कुल्लड़ में चाय ली और चाय वाले को जाने दिया। ट्रेन चल दी थी। सौम्य की नजर चाय के कुल्लड़ पर पड़ी तो रोहित से बोला।
सौम्य :- "दो चाय क्यों???? मैंने तो मना किया था!!"
रोहित :- (बड़ी मासूमियत से) "एक हमाई और एक उनकी!!
रोहित के चेहरे पर थोड़ी शर्मीली सी मुस्कान थी, सौम्य थोड़ा आश्चर्य भरे भाव से पूछता है।
सौम्य :- "उनकी किसकी??? यहां तो मेरे अलावा और कोई नहीं!! और मैंने तो मना किया था!"
रोहित :- (मुस्कुराते हुए) "यह हमारे काल्पनिक चाय पार्टनर के लिए है, जो है नहीं लेकिन हम चाय अकेले नहीं पीते, तो जब कोई चाय पर साथ नहीं देता, तो हम दूसरा कप सामने रख लेते हैं, उन्हीं से बतिया भी लेते हैं, और दोनों चाय हम खुद ही पी लेते हैं।"
सौम्य को रोहित की मासूमियत पर हंसी भी आ रही थी और थोड़ा प्यार भी।
सौम्य :- "बड़े जज्बाती हैं आप रोहित जी।"
रोहित :- (सौम्य की ओर आस भारी निगाहों से देखते हुए) "सौम्य आज भर के लिए हमारे चाय पार्टनर बन जाइए ना। हमें बहुत अच्छा लगेगा।"
सौम्य :- (चाय के कप की ओर हाँथ बढ़ाते हुए) "वैसे मुझे चाय से परहेज नहीं है। बस किन्ही कारणों से चाय पीना बंद कर दिया।"
रोहित :- (हँस कर) "सौम्य आप बुरा ना माने तो एक बात कहें, जैसा आप खुद को दिखाते हैं, वैसे है नहीं।"
सौम्या :- (चाय की चुस्की को बीच मे ही रोकते हुए, कई प्रश्नचिन्ह अपने चेहरे पर लिए) "क्या मतलब??? मैं बनावटी लग रहा हूँ आपको???"
रोहित :- (मुस्कुरा कर) "देखो आपको चाय कितनी ज्यादा पसंद आई, आपने जैसे ही घूंट को अंदर लिया, तो वह सुकून हमने देखा। और अब आप फिर वापस अपने दिखावटी रूप में आ गए। बुरा मत मानियेगा, हमारा इरादा आपकी जासूसी करने नही था, लेकिन आपकी चोरी पकड़ी गई।"
सौम्य एकदम निशब्द था, और फिर दोनों ने चाय की चुस्कियां लेते हुए माहौल को थोड़ा बदला। और फिर रोहित पूछने लगा सौम्य के बारे में, सौम्य को और जानने की कोशिश करता है। तो सौम्य बताने लगा, कि वह नागपुर से है, एक सरकारी बैंक में नौकरी करता है। और अभी कुछ दिन पहले ही तबादला हुआ है, यहां भोपाल में। यहां बतौर ब्रांच ऑपरेशन मैनेजर काम कर रहा है। रोहित भी उसे अपने बारे में बताता है, कि वह आई आई एम का अंतिम वर्ष का विद्यार्थि है। अभी कुछ बाहर की यूनिवर्सिटी में एग्जाम दिया है, यदि सेलेक्ट हो गया तो देखेगा। चाय खत्म होते ही सौम्य ने रोहित को थैंक्स बोला।
सौम्य :- रोहित जी दिल से शुक्रिया!!! बड़े दिनों बाद इतनी अच्छी चाय पीने को मिली। और एक अच्छा चाय पार्टनर भी।"
रोहित :- (मुस्कुरा कर) "सौम्य जी हमें भी एकदम परफेक्ट लाइफ पार्टनर सारी सॉरी हमारा मतलब है चाय पार्टनर मिला आज, तो आपका भी शुक्रिया।"
दोनों ने साथ में खाना खाया और फिर सौम्य ने रोहित से खाने के पैसे पूछे। तो रोहित ने कहा।
रोहित :- "अरे सौम्य जी रहने दीजिएगा। हमें अच्छा नहीं लगेगा अगर आप पैसे देंगे तो।"
सौम्य :- "अच्छा तो मुझे भी नहीं लगेगा अगर आपने पैसे नहीं लिए तो।"
रोहित :- "अगर आप हमसे दोस्ती करें, और अगर आपको मंजूर है, तो फिर 1 दिन कानपुर में मिलकर हमें चाय पिला दीजिएगा।"
सौम्य :- (कुछ सेकेंड शांत रहकर) "चलो मुझ पर उधार रही चाय।"
रोहित :- "यह हुई ना दोस्तों वाली बात।"
रात के 11:30 बज चुके थे, दोनों की आंखों में नींद नहीं थी। एक बाबा सामने वाली सीट से उठे और उन्हें बाथरूम जाना था, लेकिन पांव में दर्द के कारण ज्यादा चल नहीं पा रहे थे। रोहित ने उनकी मदद की।
रोहित :- "अरे बाबा अब ऐसी उम्र में काहे अकेले यात्रा करते हो?? किसी को संग में रखा करो।"
फिर रोहित उन्हें बाथरूम ले जाकर वापस आया। सौम्य रोहित को देखकर बहुत खुश था, उसका इतना हेल्पिंग नेचर उसे बहुत अच्छा लगा। सौम्य ने रोहित को पूछा यदि वह सोना चाहे तो सो सकता है, रोहित ने ना में सर हिला दिया। और फिर सौम्य को भी नींद नहीं आ रही थी। खिड़की से बाहर देखते हुए, कहीं तो किसी पुराने ख्यालों में खोया था। उधर हमारा रोहित सौम्य के ख्यालों में खोया था। कब दोनों की आंख लग गई पता ही नहीं चला।
आगे का सफर दोनों को कहाँ तक ले जाता है, और क्या कानपुर में दोनों फिर से चाय पर मिल पाते हैं या नहीं। रोहित अपने मन की बातें सौम्य को बता पायेगा या नहीं, और सौम्य का क्या रिएक्शन होगा। ये सभी बातें जानने के लिए बने रहिये रोहित ओर सौम्य के साथ। और अब हम लोग मिलते हैं, कानपुर में।