Saturday, August 30, 2025

Shadi.Com Part - III

Hello friends,

                     If you directly landed on this page than I must tell you, please read it's first two parts, than you will get easily be connected with this part. 


      

        आज मैं बहुत टेंशन में हूँ, नहीं!!!! काम या घर की वज़ह से नहीं। आज संडे है और मोहित, उसका भाई और उसके मम्मी पापा आज हमारे घर आ रहे हैं। पता है,!!! टेंशन मुझे नहीं, टेंशन दीदी को लेना चाहिए, लेकिन शायद उससे ज्यादा टेंशन तो मुझे हो रहा है। और आज से ही नहीं, 2 दिन पहले जब मोहित ने मुझे मैसेज करके संडे के दिन आने का कन्फर्म किआ, मैंने तो तभी से घर को सिर पर उठा रखा है। ऐसी तैयारियां तो मैंने कभी भी किसी भी मेहमान के लिए नहीं की, जो मैं मोहित के लिए कर रहा हूँ। और हाँ, आज मैंने अपना हाँथ बटाने के लिए अस्मिता को भी बुलाया था, जिससे मेरी थोड़ी मदद हो जाती, लेकिन महारानी लगता है, मेहमानों के जाने के बाद ही आयेगीं।



अस्मिता :- (घर में अंदर आके चारों तरफ़ आश्चर्य से देखते हुए) "OMG!!!! लगता है दीदी को देखने लोग शाही राज घराने से आ रहे हैं।"


स्नेहा :- (अस्मिता की बात पर हँसते हुए) "Ofcaurse!!! बूँदी राज घराने से राजकुमार खुद तशरीफ़ ला रहे हैं आज।"


शशांक :- (किचन से बाहर आकर स्नेहा और अस्मिता को हँसते हुए देखकर) "आप दोनों का मज़ाक खत्म हो गया हो तो मेरी मदद करदो, मुझे तैयार भी होना है।"


अस्मिता :- (सोफ़े पर बैठते हुए) "चिल कर यार शशांक!!! वो लोग स्नेहा दीदी को देखने आ रहे हैं, तू कम तैयार दिखेगा तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"


शशांक :- (अस्मिता का हाँथ पकड़ कर सोफे से खींच कर किचन में ले जाते हुए) "ये बकवास वहां किचन में खड़े होकर भी कर लेना, (किचन में आकर) देख ये नाश्ता है, और ये गैस पर लंच रखा है, जब ये बाहर लाये तो मिक्स मत कर दियो। और हाँ चाय भी चढ़ा दे, वो लोग आने वाले ही होंगे, मैं तब तक कपड़े बदल लेता हूं, ok।"


अस्मिता :- (शशांक को आँखे दिखाते हुए) "तूने मुझे यहां बाई बनाने के लिए बुलाया था???"


शशांक :- (अस्मिता के गाल खींच कर) "Common यार!!! तू मेरी इकलौती फ्रेंड है, अब तू मेरी मदद नहीं करेगी तो कोन करेगा, और वैसे भी कोई भी बाई सिर्फ एक दिन के लिए आने को ही तैयार नहीं थी, so you are my last option।"



     अस्मिता मुझे मार पाती इससे पहले ही मैं किचन से जल्दी से भाग निकला। और मैं अपने कमरे में जा ही रहा था कपड़े बदलने के लिए, तब तक door bell बज गई। मुझे लगा कि मैंने जो ice creame मंगवाई है लंच के बाद खाने के लिए, उसकी डिलीवरी आयी होगी, और मैंने तुरंत जा कर दरवाजा खोल दिया। लेकिन ये कोई डिलीवरी बॉय नहीं था, ये तो मोहित राजावत था। मैंने दो दिन से इतनी मेहनत की थी कि, जब मैं पहली बार मोहित से मिलु तो सब कुछ सही रहे, और देखो!!!! मैं जब मोहित से पहली बार मिला, तो घर की पुरानी टीशर्ट और पाजामे में, गंदी सी शक्ल, और पसीने में लथ पथ!!!! मैंने ऐसा तो बिल्कुल भी नही सोचा था। लेक़िन!!!!!! जैसा मैंने मोहित के बारे में सोचा था, वो बिल्कुल वैसा ही निकला। I must tell you, मोहित अपनी फोटोज़ से भी कई ज्यादा अच्छा दिख रहा था, उसकी आँखों की वो गहराई, उसकी फोटो में तो देखी ही नही जा सकती थी। उसकी भवों की वो भंगिमाएं, किसी भी कैमरा में कैद ही नहीं कि जा सकती थीं, एक मिनट!!!!! भवों की भंगिमाएं?????? Ohhh nooo!!!! ये भवों की भंगिमाएं तो शायद मेरे ऐसे हुलिए की वजह से हैं।



शशांक :- (अपनी ख़ामोशी को तोड़ते हुए) "Ohhh I am really sorry!!! मैं बस वो किसी और को एक्सपेक्ट कर रहा था, आप आईये ना अंदर!!!"


मोहित :- (मुस्कुराते हुए) "Ice Creame????"


शशांक :- (आश्चर्य से) "What a coincidence!!!! मैंने भी यही flavour order की है dessert के लिए। मुझे लगा उसी की delivery आयी होगी।"


मोहित :- (मुस्कुराते हुए) "दरअसल ये आपकी order की हुई ice creame ही है। अभी आप इसे बस रख लो, मैं सारी बात बाद में बताता हूँ। (शौभित और उसके मम्मी पापा भी लिफ्ट से निकल कर शशांक के घर के दरवाज़े तक आ गए)"


शशांक :- (प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ ice creame मोहित के हाथों से लेते हुए) "Okk!!! आप लोग अंदर आईये ना। (सभी को बैठक में लाते हुए जहाँ प्रमोद गुप्ता जी पहले से ही सोफे पर बैठे हुए अखबार पड़ रहे थे) पापा.... शोभित जी और उनके परिवार वाले आ गए हैं।"


प्रमोद (शशांक के पापा) :- (सोफे से उठ कर आये मेहमानों का स्वागत करते हुए) "नमश्कार भाई साहब!! नमश्कार भाभी जी!!! आईये बच्चों, बैठिए। (सभी को सोफे पर बैठते हुए) घर ढूंढने में कोई परेशानी तो नहीं हुई??"


शशांक :- (मुस्कुरा कर मोहित को ही देखते हुए) "परेशानी कैसे होती, मैंने live location जो send की थी।"


प्रमोद :- (शशांक की ओर देखते हुए) "लोकेशन??? (मुस्कुरा कर मोहित के पापा की ओर देख कर) ये आज कल के बच्चे और इनकी बातें, मुझे तो जरा कम ही समझ आती हैं।"



      सभी लोग आपस में बातें कर रहे थे। शोभित जी मोहित से कुछ पूछ बता रहे थे, और उनके मम्मी पापा मेरे पापा से शायद मौसम के हाल और अपने अपने शरीर मे होने वाले दर्दो के ऊपर बात कर रहे थे। और मैं बस वहां खड़ा हल्की सी मुस्कुराहट के साथ बस मोहित को घूरे जा रहा था। वो तो अच्छा हुआ कि मोहित ने मुझे ऐसा करते नही देखा, और अस्मिता ने ठीक समय पर वहाँ आकर मुझे शर्मिंदा होने से बचा लिया।



अस्मिता :- (सबको पानी का गिलास देने के बाद मेरे पास आ कर, सबसे चुप के धीरे से मेरे पैर को अपने पैर से कुचल कर) "अंदर चल।"


      जब अस्मिता ने मुझे अपने पैर से मारा तब कहीं जाकर मुझे होश आया कि मैं वहां खड़ा होकर कर क्या रहा था। फिर मैंने अपने हाँथों को महसूस किया, जो इतनी देर से ठंडी ice creame पकड़ने की वजह से सुन्न होने की कगार पर पहुंच ही गए थे। फिर मैं भी अस्मिता के साथ वहां से किचन में आ गया।


अस्मिता :- (पानी वाली ट्रे को किचन प्लेटफार्म पर रखते हुए) "तू कर क्या रहा था वहां खड़ा होकर??? अब नहीं कपड़े बदलने थे तुझे??"


शशांक :- (मुस्कुराते हुए ice creame को फ्रीज़ में रखते हुए) "तूने देखा मोहित को, कितना cute लग रहा है ना!!! अपनी फोटोज़ से तो और ज्यादा ही अच्छा दिख रहा है ना।"


अस्मिता :- (नाक भवें सिकोड़ते हुए) "उसे बाद में देख लियो, अब जल्दी जाकर कपड़े बदलके आ, और ये नाश्ता बाहर ले जाने में मेरी हेल्प कर।"


      

      अस्मिता को और गुस्सा आये इससे पहले में वहां से निकल कर अपने कमरे में गया, और जो कपड़े मैने आज पहनने के लिए पिछली रात को ही निकाल के रख दिये थे, उन्हें जल्दी से बदलने लगा। मैंने अपने सारे कपड़े उतारे ही थे कि, एक दम से मेरे कमरे का दरवाजा खुला और मैं कुछ बोल पाऊँ उससे पहले मोहित मेरे कमरे में एंट्री ले चुका था। मोहित को देखते ही मैंने अपने अर्ध नग्न शरीर को ढंकने की कोशिश की, और मुझे ऐसी हालत में देखकर मोहित भी तुरंत पलट गया।


मोहित :- (पलटकर) "I am really sorry!!! वो मेरे हांथ उस ice creame की वजह से खराब हो गए थे, तो अंकल ने वाशरूम use करने के लिए मुझे यहां भेज दिया। मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि यहां आप हो।"


शशांक :- (जल्दबाजी में कपड़े पहनते हुए) "No its ok!!! बस एक मिनट और मत पलटना। (कपड़े बदलने के बाद, जल्दी से उस कमरे से बाहर आते हुए) now this all room is yours।"


  

       This is bad!!! पहले बाहर के दरवाज़े पर, और अब ये!!! मैंने मोहित से पहली मुलाकात ऐसे तो बिल्कुल भी नही सोची थी। आज तो सब अच्छा होना चाहिए था, पता नहीं आज सब गड़बड़ क्यों हो रहा है। यही सब सोचते हुए मैं किचन में आया, और हड़बड़ाहट में वहां सब इधर उधर करने लगा। मेरी हड़बड़ाहट को देखते हुए अस्मिता ने मुझे एक ग्लास पानी का दिया, और पूछा कि क्या हुआ? मैंने उसे सब बताया और वो!!!!


अस्मिता :- (जोर जोर से हँसते हुए) "अच्छा हुआ कम से कम तूने चड्डी तो पहनी हुई थी।"


शशांक :- (गुस्से से) "तुझे इस टाइम भी मज़ाक सूझ रहा है। मुझे ये बताने की वजाय की मैं ये सब सही कैसे करूँ, तू उल्टा हँस रही है।"


अस्मिता :- (हँसते हुए) "Chill यार!!! हो जाता है ऐसा कभी कभी, अब उसे थोड़ी देर के लिए भूल और ये नाश्ता बाहर लेकर चल मेरे साथ, अंकल 2 बार आवाज़ लगा चुके हैं। अगर हम अभी बाहर नहीं गए, तो वो अंदर आ जाएंगे।"



        अस्मिता की बात मानने के अलावा मेरे पास कोई और रास्ता भी नही था, लेकिन अब मुझे मोहित को face करने में थोड़ी awkwardness महसूस हो रही थी। लेकिन मेरे पास उसे face करने के अलावा कोई और चारा भी तो नही था। मैं और अस्मिता नाश्ता लेकर बाहर बैठक में आ गये। तब तक मोहित भी मेरे कमरे से बाहर निकल आया था। मैंने सभी को चाय के कप उनके हाँथों में दिए। और जब मैंने मोहित को चाय देने के लिए कप आगे बढ़ाया, तो उसने बड़ी ही सरलता के साथ, हल्की से मुस्कुराहट और अपनी नाक और आँखे सिकोड़ते हुए, बिना आवाज़ के मुझसे "सॉरी" कहा। और मैंने भी उसका प्रतिउत्तर देते हुए, मुस्कुरा कर हल्के से अपना सिर हां के जवाब में हिला दिया। और सच मानो, किचन से यहां बैठक तक आते समय मुझे जो भी असहजता हो रही थी, मोहित के इस जरा से छोटे से हाव भाव ने, तुरंत ही उस असहजता को सहजता में बदल दिया। वहीं पापा ने अस्मिता को दीदी को बुलाने भेज दिया, और अस्मिता तुरंत ही दीदी को लेकर वहां बैठक में आ भी गयी। 



        दीदी ने आज मम्मी की मेरी सबसे पसंदीद रॉयल ब्लू रंग की सिल्क वाली सारी पहनी थी, और साथ ही उन्होंने मम्मी की सोने की बाली और उनकी चैन भी पहनी हुई थी। और दीदी ने हमें इसके बारे में सुबह से कुछ भी नही बताया था। और शायद अच्छा ही हुआ कि नही बताया था, वरना इस वक़्त मैं और पापा दीदी को देख कर जो महसूस कर रहे थे, शायद हम वैसा तब महसूस ना कर पाते। हम दोनों की ही आँखे हल्की नम हो गयी थी। दीदी मेरे सामने से गुजरी और प्यार से मेरे गाल पर हाँथ फेरते हुए, पापा के पास जाकर सोफे पर बैठ गयी‌‌‍‍, और फिर धीरे-धीरे वही सब बातें शुरू हो गई, जो इस वक्त आमतौर पर होती हैं| मोहित की मम्मी ने दीदी से वही सब सवाल करने शुरू कर दिए, "खाने में क्या-क्या बना लेती हो" "क्या पसंद है" "खाली समय में क्या करती हो" वगैरह-वगैरह| फिर मेरे पापा ने समझदारी दिखाते हुए वही जरूरी बात कही, जो इन सब बातों के बाद कही जाती है, "हम दोनों बच्चों को अकेला छोड़ देते हैं जिससे यह दोनों आपस में खुलकर बात कर सके"...  वाह मेरे समझदार पापा!!! यह सब बातें मुझे और अस्मिता को इतनी मजाकिया लग रही थी ना, कि हम बस एक दूसरे को इशारे कर कर के, बिना दांत दिखाएं हंसे जा रहे थे| तभी पापा ने मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी, कि मैं स्नेहा दीदी और शोभित जी को अंदर कमरे में ले जाऊ, जिससे वह दोनों आपस में अकेले में बात कर सकें|


      

     जैसा पापा ने कहा ठीक वैसे ही, मैं दोनों को स्नेहा दीदी के कमरे में छोड़ आया, और अस्मिता किचन में जा कर दीदी और शोभित जी के लिए कुछ चाय नाश्ता अंदर वाले कमरे में ले जाने के लिए तैयार करने लगी| मैं वापस हॉल में आया तो पापा, मोहित के मम्मी पापा से कुछ बातचीत कर रहे थे| लेकिन मोहित कहीं नहीं दिखाई दे रहा था| तभी पापा ने मुझे इशारा करके एक चाय का कप बाहर बालकनी में ले जाने को कहा, और मैंने वैसा ही किया| मोहित को उसके ऑफिस से कोई फोन आया था, तो वह बाहर बालकनी में बात करने के लिए आ गया था|


मोहित :- (मुझे चाय लाता देख) "अरे!! मैं बस आ ही रहा था, बस ये एक मेल फॉरवर्ड करने लग गया था|"


शशांक :- (चाय का कप बालकनी की मुंडेर पर मोहित के पास रखते हुए) "कोई बात नहीं, वैसे भी अंदर कोई खास बातचीत नहीं चल रही|" 


मोहित :- (फोन को अपनी जेब में रखते हुए) "हां मैंने देखा आपको, मम्मी पापा की बात पर हंसते हुए!!" 


शशांक :- (मुस्कुराते हुए) "अरे वो तो बस यूंही!!! मैं और अस्मिता दीदी को यही सब बोल बोलकर तब से परेशान कर रहे थे, जब से आप लोगों के आने की खबर मिली थी|"


मोहित :- "Ok!!! So this is your first time!!!"


शशांक :- (आश्चर्य से) "आपको कैसे पता???" 


मोहित :- (मुस्कुराते हुए) "Hmmmm!!  आप सभी की एक्साइटमेंट और इतनी तैयारी को देख कर ही समझ आ गया था|"


शशांक :- "अच्छा!!! और आपका??"


मोहित :- (चाय का कप उठाते हुए) "इससे पहले हम दो फैमिली से और मिल चुके हैं| लेकिन वहां कुछ बात जमी नहीं|"


शशांक :- "Ohhh!!! तो बात ना जमने का कारण?? Let me guess!!!  शोभित जी को लड़कियाँ पसंद नहीं आई!! या फिर आपके मम्मी पापा को??"


मोहित :- (चाय की चुस्की लेते हुए) "नहीं!!! उन लोगों को मैं पसंद नहीं आया!!!"


शशांक :- "मतलब??"


मोहित :- (चाय के कप को मुँडेर पर रखते हुए) "As you know, I am gay!!! अब यह बात पढ़ने में और सुनने में जितनी अच्छी लगती है, सामने से शायद यह बात इतनी अच्छी नहीं रहती। शायद यही एक कारण है कि उन दो फैमिली से मिलने के बाद भी हमारी बात आगे नहीं बढ़ पाई। अब आपकी फैमिली से तो कांटेक्ट ही मेरी प्रोफाइल के थ्रू हुआ था तो इस वजह से यहां वह प्रॉब्लम नहीं है।"


शशांक :- (मुस्कुराते हुए) "हाँ!!! आपकी सेक्सुअल ओरिएंटेशन से शोभित जी के रिश्ते पर क्या फर्क पड़ेगा। शायद आप जिन फॅमिली से अभी तक मिले हो, उनकी फैमिली में कोई गे नही होगा, इस वजह से उन्होंने ऐसा सोचा हो। लेकिन यहाँ मेरे होते हुए वैसा कुछ नही होगा।"


मोहित :- (चाय का कप उठाते हुए) "आपके होते हुए!!! मतलब???"



     Ohhhh my god!!!!! मैंने अभी तक मोहित को अपने गे होने के बारे में तो कभी ज़िक्र ही नही किआ। अब मैं क्या करूँ??? अभी बोल दूँ?? लेकिन अब बोलना थोड़ा awkward तो नही लगेगा। मैं ये सब सोच ही रहा था कि पापा ने अंदर से आवाज़ लगा दी। मैं और मोहित अंदर बैठक मे आये, तो देखा दीदी और शोभित जी भी अंदर कमरे से बाहर आ चुके थे। बैठक मैं बैठे सभी के चेहरों का नज़ारा अपने आप ही सब कुछ बयाँ कर रहा था। अस्मिता किचन से प्लेट में मिठाई लेकर हॉल की तरफ आ रही थी। दीदी और शोभित जी एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे। पापा, मोहित के पापा का गले लगाने के लिए आगे बड़ रहे थे। Ofcaurse दीदी और शोभित जी ने एक दूसरे को पसंद कर लिया था। अस्मिता ने सभी का मुंह मीठा कराया, और शोभित जी की मम्मी दीदी को सोने की अँगूठी पहनाने लगीं।


प्रमोद जी ( शशांक के पापा) :- (झिझकते हुए) "अरे भाभीजी! अभी इस सब की क्या जरूरत है?"


मोहित की मम्मी :- (स्नेहा को अँगूठी पहनाते हुए) "भाईसाहब, ये तो बस मेरा आशिर्वाद है।"


प्रमोद जी :- (मोहित के पापा से) "वैसे भाईसाहब, अभी इस सब की कोई आवश्यकता नहीं है, पहले बच्चों को एक दूसरे को जानने समझने देते हैं, फिर एक अच्छा सा मुहूर्त निकालकर सगाई करा देंगे।"


मोहित के पापा :- " बिल्कुल भाईसाहब! ऐसा ही करेंगे। लेकिन यह अंगूठी तो बस निर्मला जी की खुशी के लिए है। अब हम आपको बता ही चुके हैं, कि हम लोग काफी समय से शोभित के लिए एक अच्छा रिश्ता ढूंढ रहे हैं, लेकिन जैसे ही हम अपने छोटे बेटे के बारे में बात करते हैं, तो सबको इस बात से ऐतराज हो जाता है। यह खुशी का समय हमें बड़े लंबे समय के बाद मिला है, इसलिए निर्मला जी को भी अपने मन के अरमान पूरे कर लेने दीजिए।"


प्रमोद जी :- "जैसा आप ठीक समझे भाईसाहब। आपकी बात मैं समझ सकता हूं, लेकिन जैसे धीरे-धीरे मैं बदला हूं, यह समाज भी धीरे-धीरे बदल जाएगा। जब शशांक ने अपने gay होने के बारे में बताया था, तो मुझे भी उसे समझने में वक्त लगा था। मुझे भी यही सब समाज की बातों के बारे में कई ख्याल रहते थे। लेकिन फिर बच्चों की खुशी के लिए ही तो हम सारे प्रयास करते हैं। अगर इसी में हमारे बच्चों की खुशी है, तो फिर हमें भी उनके हिसाब से बदलना पड़ता है।"



        Oh my god!!! What my father just did!!! जब पापा ने यह सब बोला, तो मोहित का चेहरा देखने लायक था। अस्मिता की खिलाई मिठाई का ठस्का लगते - लगते बचा है मोहित को, और उसकी आंखों और चेहरे पर उमडे इतने सारे सवालों के भावों को मैं अच्छे से समझ सकता हूं। लेकिन अभी यहां हॉल में सबके सामने में कुछ कर भी नहीं सकता। मैं मोहित को सब explain करना चाहता हूं, कि मैंने अभी तक उसे अपने gay होने के बारे में क्यों नहीं बताया, या यूं कहूं, कि बताना भूल गया। लेकिन अभी तो मैं कुछ भी नहीं कर सकता, और शायद अब कुछ कर भी ना पाऊं।  पापा ने मुझे सबके लिए खाना लगाने के लिए बोल दिया है, तो अब तो मुश्किल है कि मैं मोहित से अकेले में कुछ बात कर पाऊं।



      इतने दिनों से दोनों आपस मे बात कर रहे हैं, लेकिन इस बात का ज़िक्र हुआ ही नहीं कि मोहित और शशांक की saxuality एक ही है। खैर जैसा शशांक ने बताया कि उसे याद ही नही रहा इस बारे में बताने का, और सही भी तो है, हम बात इसी से थोड़ी शुरू करते हैं, की मैं gay हूँ, या मैं straight हूँ। तो इसमें शशांक की भी गलती नहीं, लेकिन अब वो ये बात मोहित को कैसे बताएगा, जानने के लिए इंतेज़ार कीजिये final part का।




Lots of love

Yuvraj ❤️


Thursday, July 8, 2021

Shadi.com Part - II

 Hello friends,

                       If you came directly on this page than I suggest to go on it's first part before reading this part. Through ur messages and comments I realized, you all are in love with shashank and eagerly waiting to read the further direction of his story. So now shashank will tell you his story without waiting further more.




    आप लोग सच में यकीन नही मानेंगे मैंने shadi.com पर एक लड़के की प्रोफाइल देखी, और मैं उसे तकरीबन आधी रात तक देखता ही रहा। उस प्रोफाइल को इतने गौर से देखने के पीछे का कारण था, क्योंकि उस प्रोफाइल को ग्रूम डिमांडिंग सेक्शन में रखा गया था। क्या कहते हैं हिंदी में??? हाँ!! वर चाहिए सेक्शन में। पहले तो मुझे भी लगा कि ये या तो टाइपिंग मिस्टेक है या फिर कोई मज़ाक कर रहा होगा। लेकिन फिर जब मैंने उस प्रोफाइल में उस लड़के के परिचय के बारे में पड़ा, तब जाके मुझे लगा कि शायद ये लड़का सच में ही शादी के लिये लड़के को ही ढूँढ़ रहा है। उस लड़के का नाम था मोहित राजावत, होम टाउन में तो राजस्थान का बूँदी जिला लिखा हुआ था, लेकिन उसका जन्म स्थान बैंगलोर ही लिखा हुआ था। उसका बर्थ ईयर 1996 लिखा था, और प्रोफाइल में लगी फोटोज़ में काफ़ी अट्रेक्टिव दिख रहा था। और बायो सेक्शन में लिखा हुआ था....


 "हाँ मैं आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ। आप इसे शर्म की नज़र से देंखे या मज़ाक की, लेकिन यही मेरी सच्चाई है। और इस वेबसाइट पर मैं एक ऐसे साथी की तलाश में आया हूँ, जो घर बसाने और जीवनसाथी बनाने के तरीके में विश्वास रखता हो। क्योंकि कुछ लम्हों का प्यार करने वाले तो कई सारी एप्प्स और वेबसाइट पर मिल ही जाते हैं, लेकिन इस वेबसाइट से मुझे उम्मीद है कि मैं किसी ऐसे व्यक्ति से मिल सकूँ जो, अग्नि के सात फेरे लेकर, जीवनभर प्यार करने का वादा कर सके, और मेरे साथ प्यार से भरा एक आशियाना सजा सके। I hope I would found him here!!!"



     ये सब पड़ कर तो मेरे मन में जिज्ञासा के बादल ही घिर आये, और उस व्यक्ति के बारे में जानने की ललक ने मुझे आधी रात तक जगाए भी रखा। और बैंगलोर के मोहित राजावत को फेसबुक पर सर्च करने में मुझे बिल्कुल भी परेशानी नहीं हुई। फेसबुक की प्रोफाइल पर भी रेनबो फ्लैग, प्राइड मार्च की तस्वीरें और भी कई चीजें देखने के बाद एक दम साफ हो चुका था, की ये बन्दा गे है, और शायद सच में ही शादी के लिये एक सही लाइफ पार्टनर की तलाश में है। लेकिन shadi.com पर वैसे भी ये मेरा पहला अनुभव था, और उसमें भी गे मैरिज का पृपोसल मुझे उस बंदे को और जानने के लिए उकसाये जा रहा था। खैर अगली सुबह आफिस भी जाना था, तो मैं अपनी सभी उमंगों को उसी लैपटॉप में बंद करके सो गया। और देर से सोने की वजह से सुबह भी देर से ही आँख खुली। भागते भागते तैयार हुआ, पापा ने ब्रेकफास्ट में सैंडविच बनाये थे, तो जल्दी से एक सैंडविच हाँथ में लेकर ही भाग पड़ा। आफिस की कैब भी आ चुकी थी लेने के लिए। आफिस पहुँच कर, काम मे व्यस्त होने की बहुत कोशिशें भी की, लेकिन रह रह कर, मोहित राजावत की तस्वीरें, मेरी आँखों के सामने ही घूम रही थीं, और मुझे बेचैन भी कर रही थी। लंच के समय मैंने सभी से नज़रें छुपाकर मोहित राजावत को एक बार फिर फेसबुक पर सर्च किया। और उसकी तस्वीरों को फिर से देखकर अनायास ही मेरे चेहरे पर भी मंद मंद मुस्कान छा गयी। अब ये मुस्कान किसी से भी छुपाई जा सकती थी, लेकिन अपनी बचपन की जासूस दोस्त की नज़रों से बचपाना थोड़ा मुश्किल ही था।



अस्मिता :- (घूरते हुए, मेरी डेस्क पर आते हुए) "कहाँ खोया हुआ है सुबह से, दीदी को बता तो नहीं दिया तूने कल के बारे में???"


शशांक :- (हड़बड़ा कर लैपटॉप बंद करते हुए) "नहीं!!! All good!!"


अस्मिता :- (आश्चर्य से) "आफिस में पोर्न देख रहा है क्या तू???"


शशांक :- (अस्मिता को घूर कर देखते हुए) "पागल है क्या तू?? और धीरे बोल, कोई सुनेगा तो सच ही मान लेगा।"


अस्मिता :- (शशांक का लैपटॉप खोलते हुए) "तो फिर दिखा क्या देख रहा था तू इतने गौर से। (शशांक के लैपटॉप में किसी लड़के का फोटो देखकर) हाँ सही तो कह रही थी मैं, तू पोर्न पिक्स ही देख रहा है।"


शशांक :- (लैपटॉप अपने हाँथ में लेकर मोहित की फेसबुक प्रोफाइल खोलते हुए) "बकवास बंद कर, ये कोई पोर्न पिक्स नहीं हैं। ये एक फेसबुक की प्रोफाइल है।"


अस्मिता :- (उस प्रोफाइल को अच्छे से देखते हुए) "हम्म्म्म!!! लड़का तो स्मार्ट दिख रहा है, लेकिन तू क्यों देख रहा है??? कहीं तू इस लड़के को स्टॉक तो नहीं कर रहा??"


शशांक :- (अपना सिर पीटते हुए) "तू सच में ही एक नंबर की गैली है। ये मुझे शादी.कॉम पर मिल था, तो मैंने इसे फेसबुक पर सर्च किया।"


अस्मिता :- (बुरा सा मुँह बना कर) "कितनी बार कहा है तुझसे ये ग्वालियर की भाषा ग्वालियर में ही बोला कर, ये गैली शब्द बिल्कुल भी अच्छा नही लगता मुझे। और ये लड़का स्नेहा दीदी से काफी छोटा नही लगा तुझे??"


शशांक :- (मुस्कुराते हुए) "ये स्नेहा दीदी के लिए नही है।"


अस्मिता :- (आँखे बड़ी करके शशांक को घूरते हुए) "तो तू क्या खुद के लिए भी लड़के शादी.कॉम पर ही ढूंढ रहा है??? कहीं तू स्नेहा दीदी के मंडप में ही शादी करने का तो नहीं सोच रहा???"


शशांक :- (धीमे धीमे हँसते हुए) "तू क्या खा कर आई है सुबह सुबह, क्यों पागलों जैसी बातें कर रही है?"


अस्मिता :- "अच्छा शादी.कॉम का लड़का फेसबुक पर तू देख रहा है, वो भी अपने लिए, और मैं पागलों जैसी बातें कर रहीं हूँ!!!"


शशांक :- (अस्मिता को मोहित की शादी.कॉम की प्रोफाइल दिखाते हुए) "अरे यार मैं बस थोड़ा क्यूरियस था इस लड़के के बारे में जानने के लिए बस इसलिए देख रहा था। तू ये देख उसकी शादी.कॉम की प्रोफाइल!!"


अस्मिता :- (मोहित की शादी.कॉम की प्रोफाइल आश्चर्य से देखते हुए) "यार सच में!!! और बता ना इस लड़के के बारे में, अगर ये गे ना होता तो मैं तो जरूर इसे पृपोसल भेज देती।"


शशांक :- "हम्ममम्म!!! बस ऐसे ही मुझे भी मन हो रहा था इसके बारे में और जानने के लिए, इसलिए देख रहा था फेसबुक पर इसकी प्रोफाइल।"


अस्मिता :- (शशांक के लैपटॉप में कुछ टाइप करते हुए) "हाँ तो यहाँ वहाँ सर्च करने की क्या जरूरत है? जब शादी.कॉम वालों ने हमे ऑप्शन दिआ है कि हम एक दूसरे से बात कर सकते हैं तो इसका उपयोग करो ना।"


शशांक :- (जल्दी से अस्मिता के हाँथ से लैपटॉप छीनते हुए) "क्या कर रही है तू???" (अस्मिता द्वारा मोहित को भेजा हुआ मैसेज पड़ते हुए) 'Hello!!!  I wanna connect with you!!' (अपना सिर पकड़ कर अस्मिता से) ये क्यों भेजा तूने???"


अस्मिता :- (मुस्कुरा कर वहां से जाते हुए) "मुझे थैंक्स बाद में बोल देना, लेकिन अगर कोई मैसेज आये, जो कि पक्का आएगा, तो मुझे जरूर बताना।"



      ये हमेशा ऐसा ही करती है, कहीं पर भी बीच मे घुस आती है और मेरा सारा काम खराब कर देती है। अब ये मैसेज भी डिलीट नहीं होगा और जब मोहित मेरा ये मैसेज पड़ेगा तो वो क्या सोचेगा??? और ये शादी.कॉम की प्रोफाइल भी दीदी के नाम से है। पता नहीं अब क्या होगा। मैं सारा दिन यही सोचता रहा और इसी उलझन में मैंने आज का सारा दिन भी बिता दिया। घर जाकर दीदी को कुछ लड़कों के फोटो दिखाए जो मैंने शादी.कॉम पर दिनभर मोहित की प्रोफाइल को बार बार देखने के बहाने देखे थे। दीदी को भी उनमें से एक दो लड़के पसंद आए और उसने पापा को भी उनके बारे में बताया और पापा को भी उन लड़कों की प्रोफाइल अच्छी लगी। रात को खाना खाने के बाद जब मैं अपने आफिस का कुछ काम कर रहा था, तो बार बार मेरा मन कर रहा था कि एक बार मोहित की फ़ोटो देख लूँ। लेकिन मैं हर बार अपने मन को समझा लेता था और वापस से अपने काम मे ध्यान लगाने लगता था। लेकिन जब मैंने सोने के लिए लैपटॉप को बंद करना चाहा, तो एक बार फिर मोहित की प्रोफाइल को देखने का मन हुआ, और अब कोई खास कारण भी नही था अपने मन की बात को टालने का, तो मैंने शादी.कॉम की वेबसाइट को जैसे ही खोला। मुझे मैसेज का एक नोटिफिकेशन मिला। इनबॉक्स को खोलते ही मेरे तो हाँथो की उंगलियां ही मानो थम गई, क्योंकि वो मैसेज मोहित राजावत का ही था। 



मोहित :- (मैसेज में) "Hey sorry for late reply!!! Busy with some work!! Hope you read my bio in profile well. I am gay and I am searching my life partner here!!"



    मोहित का मैसेज पड़ कर पहले तो मुझे समझ ही नही आ रहा था कि मैं उसे रिप्लाई क्या दूं। की मैं तुम्हारे बारे में और जानना चाहता हूँ, या ये मैसेज तो बस मेरी एक स्टुपिड फ्रेंड ने भेज दिया था, या फिर ये की मुझे तुम्हारी फ़ोटो तुम्हारी प्रोफाइल तुम्हारी बातें बहुत अच्छी लगी और मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ। मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं इतना नर्वस क्यों हो रहा था। फिर मैंने एक लंबी सी सांस ली और उसे रिप्लाई कर ही दिआ।



शशांक :- (मैसेज में) "Hey sorry to disturb you. I saw your profile here, so just curious to know about you. Hope you don't mind."


   

    ये मैसेज करके मैं लैपटॉप बन्द ही करने जा रहा था कि मुझे तभी दुबारा से मैसेज आने की नोटिफिकेशन आयी। मैंने इनबॉक्स ओपन किआ तो वो मोहित का ही मैसेज था।



मोहित :- (मैसेज में) "No problem mam!!! It's happens several time with me. I am the only gay here on this website may be."


शशांक :- (मैसेज में) "Hmmmm understand!!! And by the way I am shashank."


मोहित :- (मैसेज में) "But this profile belongs to sneha gupta no??"


शशांक :- (मैसेज में) "Yes definitely! She is my elder sister, and I am looking a good match for her only."


मोहित :- (मैसेज में) "Ok cool!! Hey I saw your sister's profile, and I liked it, here I am sending a link of another profile. He is my elder brother and we also looking a good match for him. So look at it if you guys have any interest than we go further."


शशांक :- (मैसेज में) "Fine!! I definitely going to show this profile to my sister. I will contact you after that. Nice to talk to you !"


मोहित :- (मैसेज में) "Same here dear!!"


      अभी तक तो मैंने सिर्फ मोहित की फ़ोटो देखी थी या उसके बारे में थोड़ा बहुत पड़ा था, लेकिन अभी मोहित से जो थोड़ी सी बात हुई, बस उससे ही समझ आ रहा था कि मोहित एक अच्छा लड़का है और अच्छे घर से ताल्लुक़ रखता है। क्योंकि उसके बात करने के अंदाज में ही उसकी परवरिश साफ झलक रही थी। खैर उस रात तो मैं मोहित के सपनों में ही सो गया था। और मेरे लिए भी नया था। मतलब मैं पहले भी कई लड़कों से मिल चुका था। मेरे 2 सीरियस रिलेशनशिप भी रह चुके थे कॉलेज में। लेकिन मोहित में कुछ अलग ही बात थी, जो मुझे उसकी ओर खिंचे चली जा रही थी। मोहित के सपनों से बाहर आकर, सुबह सबसे पहले मैंने दीदी को मोहित के बड़े भाई की प्रोफाइल ही दिखाई। उनका नाम शोभित राजावत था। वो दीदी से कुछ महीने ही बड़े थे, और एक mnc में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। बाकी सब तो वही था जो मोहित की प्रोफाइल में लिखा हुआ था। दीदी को शोभित जी की फोटोज भी अच्छी लगी थी, और पापा को भी उनकी प्रोफाइल पसंद आ गयी थी। और मुझसे सब्र भी नही हो रहा था ये बात मोहित को बताने के लिए। दरअसल मुझे ज्यादा उतावलापन मोहित से बात करने के लिए हो रहा था। मैंने तुरंत ही मोहित को मैसेज कर पापा और दीदी का रिएक्शन उसे बताया और उससे उसका फ़ोन नंबर भी मांग लिया, जिससे हम आगे की बात उसके मम्मी पापा से भी कर सके। उस दिन मेरा सारा ध्यान मेरे लैपटॉप पर ही था, की कब मोहित का कोई रिप्लाई आये, और उसके चलते आफिस में मुझे मैनेजर से थोड़ी बातें भी सुननी पड़ीं, क्योंकि मैंने आज का अपना काम पूरा करके उसे जो नही दे पाया था। लेकिन सुबह से अब शाम होने आ गयी थी और मोहित का कोई भी मैसेज नही मिला था। अब सुबह का उत्साह मायूसी में बदल गया था, और मेरे चेहरे से साफ साफ झलक भी रहा था।



अस्मिता :- (शशांक की डेस्क पर आते हुए) "क्या हुआ तुझे, सुबह तो बड़ा फुदक रहा था, और अब ये शक़्ल पे 12 क्यों बजे हुए हैं।"


शशांक :- (उबासी लेते हुए) "कुछ नहीं!!! आज मन नही लग रहा काम में।"


अस्मिता :- (शशांक के लैपटॉप में झांकते हुए) "सुबह से देख रही हूं तुझे, लैपटॉप में तो ऐसे घुसा है कि सारी कंपनी का काम तू ही कर रहा हो!!! और मैनेजर क्या बोल रहा था??"


शशांक :- (लैपटॉप अस्मिता से छुपाते हुए) "कुछ नहीं वो नए प्रोजेक्ट के बारे में पूछ रहा था बस।"


अस्मिता :- (लैपटॉप शशांक के हाँथ से छीनते हुए) "सब ने सुना कि मैनेजर क्या बोल रहा था, तो तू मुझसे तो झूठ बोल ही मत। (लैपटॉप में शादी.कॉम की मोहित की प्रोफाइल खुली हुई पाकर) तू क्या कर रहा है अब ये??? तू इसे स्टॉक कर रहा है क्या?"


शशांक :- (लैपटॉप अस्मिता से वापस लेते हुए) "तू अपने काम से काम क्यों नही रखती है। और मैं उसे स्टॉक नही कर रहा। वो तो बस इसके भाई की प्रोफाइल पापा और दीदी को पसंद आई थी, तो वही बताया था उसे।"


अस्मिता :- (आश्चर्य से) "क्या???? अब तू उसके भाई को भी नही छोड़ेगा??"


शशांक :- (हँसते हुए) "तुझे पता है ना कि तू पूरी की पूरी पागल है। उसके भाई की प्रोफाइल दीदी के लिए देखी थी, और वो पापा और दीदी दोनों को ही पसंद आई।"


अस्मिता :- (मुस्कुराते हुए) "अच्छा तो ऐसा बोल ना। मुझे भी दिखा उसका भाई क्या वो भी मोहित की तरह स्मार्ट दिखता है???"


शशांक :- (मुस्कुराते हुए अस्मिता को शोभित की प्रोफाइल दिखाते हुए) "हम्मममम्म स्मार्ट तो दिखता है, लेकिन मोहित से थोड़ा सा कम!!!"


अस्मिता :- (शोभित की फोटोज देखते हुए) "सही है यार, तुम दोनों भाई बहन और वो दोनों भाई भाई। (हँसते हुए) वैसे इसका एक और कोई भाई या दोस्त भी है क्या मेरे लिए???"


शशांक :- (भवों को सिकोड़ते हुए) "और तुझे इसकी क्या जरूरत, तेरा तो आलरेडी बॉयफ्रेंड है ना!!! तू मेरा दिमाग खाने के वजाए उसके पास क्यों नहीं जाती।"


अस्मिता :- (लैपटॉप के साइड से हटते हुए) "पता नहीं कहाँ है वो, लगता है वो मुझे लेके सीरियस नहीं है, तो मैं भी उससे दूरी बनाए हुए हूँ, ताकि जब ब्रेकअप हो तो मुझे ज्यादा बुरा ना लगे।"


शशांक :- (लैपटॉप बन्द करके अस्मिता के कंधों पर हाँथ रख कर) "क्या हुआ??? तूने पहले कभी क्यों नहीं बताया इसके बारे में। ज्यादा प्रोबलम है क्या तुम दोनों के बीच, जो तू ब्रेकअप के बारे में सोच रही है??"


अस्मिता :- (शशांक के पास पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए) "क्या बताऊँ यार, वो शुरू से ही ऐसा ही है, मैं ही सीरियस हो गयी थी उसके लिए, वो तो शायद आज भी वैसा ही है जैसा पहले था, बस पहले मुझे उसकी ये बाते बुरी नहीं लगती थीं। (आँखों मे आँसू लेके मुस्कुराते हुए) वो तो मुझसे मेरे बारे में कम और बाकी के लोगों के बारे में ही बातें करता है। उसने आज तक मुझसे मेरे बारे में इतना नही पूछा होगा जितना कि मैंने उसे तेरे बारे में बताया होगा। और उसने तो अभी तक मुझसे ये तक नही पूछा कि मैं रहती कहाँ हूँ, मेरे घर में कौन कौन है, मुझे कौनसी मूवी पसंद है, खाने में क्या अच्छा लगता है....."


शशांक :- (अस्मिता को बीच मे ही रोक कर उसे गले लगाते हुए) "बस बस बस!!! ठीक है, सब धीरे धीरे ठीक हो जाएगा, शायद वो स्लो हो रिलेशनशिप के मामले में, तू एक काम कर ना, उससे सीधी बात करले एक बार, हो सकता है ऐसा कुछ हो ही ना जो तू सोच रही है, और ये भी हो सकता है कि तू सही ही सोच रही हो। लेकिन कम से कम सब साफ तो हो जाएगा ना।"


अस्मिता :- (शशांक के गले से अलग होकर अपने आँसुओ को पोंछते हुए) "हम्ममम्म!!! ठीक कह रहा है, मैं कर लुंगी उससे बात। (हल्के से मुस्कुराते हुए) लेकिन तू मोहित से पूछ तो लेना ही उसके भाई या दोस्त के बारे में।"


शशांक :- (हँसते हुए) "तू नहीं सुधरेगी।"



      ऐसी ही है मेरी ये इकलौती बेस्ट फ्रेंड, थोड़ी सी झल्ली थोड़ी सी केयरिंग, और रिलेशनशिप के मामले में थोड़ी सी कमज़ोर भी। ये सब इसके साथ पहली बार नही हो रहा है। मैने इसके ब्रेकअप्स स्कूल के समय से ही देखे हैं। मुझे भी आज तक नही समझ आ पाया कि इसको अपने बॉयफ्रेंड में क्या पसंद आता है और क्या नहीं। ये वाला फिर भी अब तक का इसका सबसे ज्यादा चलने वाला रिलेशनशिप रहा है। वरना या तो ये कुछ महीनों में अपने रिलेशनशिप से ऊब जाती थी, या फिर इसे इसका बॉयफ्रेंड छोड़ जाता था। थोड़ी अनलकी है बॉयफ्रेंड के मामले में लेकिन उतनी ही ज्यादा लकी है फ्रेंड के मामले में। क्योंकि मैं हमेशा इसके साथ रहता हूँ, इसके साथ हंसने के लिए भी और इसके टूटे दिल को सहारा देने के लिए भी। लेकिन अस्मिता से बातों में ऐसा उलझा की मैं देखना ही भूल गया कि मोहित का मैसेज आ चुका था। और आफिस से घर आने का टाइम भी हो चला था तो मैंने अपना सामान उठाया और हम दोनों अपने अपने घर को निकल दिए। रात को खाने के टाइम जब पापा ने पूछा कि "शोभित से कुछ बात हुई क्या?" तब मुझे याद आया कि मैंने मोहित को जो मैसेज किआ था उसका अब तक कोई रिप्लाई नही आया है। तो मैंने पापा को भी यही बताया कि मैंने मैसेज कर दिया है, कोई रिप्लाई आएगा तो बताऊंगा।



      रात के खाने के बर्तन धोने का आज मेरा नंबर था, दरअसल मैंने और दीदी ने अपने दिन तय कर रखे हैं काम करने के। और ऐसा करने की सिर्फ एक वजह थी की मैं और दीदी झगड़ा ना करे और घर के काम भी आराम से निपट जाएं। लेकिन फिर भी दीदी कई बार कुछ ना कुछ बहाना बना कर अपने वाले काम भी मुझसे करा लिया करती थी, और मैं भी छोटा भाई होने के लिहाज़ से कभी कभी उसकी बात मान भी लिया करता था। और कभी कभी दीदी बिना कुछ कहे ही मेरे हिस्से के सारे काम खुद ही कर दिया करती थी। मम्मी के जाने के बाद हम लोगों ने धीरे धीरे ही सही लेकिन अपने को संभाल लिया था। खैर, सारे काम खत्म करके जब में सोने के लिए अपने बिस्तर पर आया, तो सबसे पहले मैंने अपना लैपटॉप खोला और मोहित का मैसेज ही चेक किया।



मोहित :- (मैसेज में) "Again sorry!!! Busy with work. +918085427××× this is my contact number, please call me whenever u got my message, so we can plan for our siblings meeting."




      मोहित का पोसिटिव रिप्लाई देख कर मुझे थोड़ी खुशी थी। मैंने बिना वक़्त गवांए  तुरंत उस नंबर पर फ़ोन लगाया। और कुछ घंटी जाने के बाद ही सामने से एक भारी लेकिन बहुत ही मधुर आवाज़ में मुझे "hello" सुनने को मिला। जिस फुर्ती से मैंने उस नंबर पर कॉल किआ था, अब उतनी ही स्थिरता से मैं ये सोच रहा था कि मैं अब क्या बोलूँ। सामने से मोहित बार बार "hello - hello" बोले जा रहा था, और इधर मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं अपनी बात शुरू कहाँ से करूँ। घबराकर मैंने पहले तो वो कॉल कट किआ, और फिर थोड़ी देर सोचने के बाद फिरसे मोहित को कॉल कनेक्ट किआ। और इस बार मोहित कुछ बोले उससे पहले ही मैंने बोलना भी शुरू कर दिया।



शशांक :- (फ़ोन कॉल कनेक्ट होते ही) "Hello mohit, shashank this side. You gave me your number on shadi.com"



    ये सब कुछ एक ही साँस में, हड़बड़ाहट में बोलने के लिए, मैंने अपनी नाक भवें सिकोड़ी, और अपने ही मोबाइल को थोड़े धीरे से अपने माथे पर दे मारा। और वापस से उस मोबाइल को अपने कानों से लगा कर मोहित का रिप्लाई सुनने लगा।



मोहित :- (थोड़ी देर सोचने के बाद फ़ोन पर) "Ohhhhk!!! Sneha Gupta's brother। So sorry, वो ये सब पहली बार सुना ना तो कुछ समझ ही नहीं आया। shadi.com से मेरे पास कोई फ़ोन आता नहीं ना।"


शशांक :- (आँखे बंद करके नाक सिकोड़ते हुए फ़ोन पर) "नहीं आपकी कोई गलती नहीं, मैंने इतनी जल्दी जल्दी बोल दिया कि किसी को भी समझ नही आता।"


मोहित :- (मुस्कुराते हुए फ़ोन पर) "It's ok!! May be this is your first time too!! So hows everyone in family?"


शशांक :- (मुस्कुराते हुए फ़ोन पर) "Thank you for asking!! सभी बढ़िया हैं। आपके वहाँ सब कैसे हैं।"


मोहित :- (फ़ोन पर) "Hmmmm!! All good. तो आप लोग ग्वालियर से हैं??"


शशांक :- "हाँ!! पापा के ट्रांसफर के बाद यहीं सेटल हो गए।"


मोहित :- (मुस्कुरा कर) "Nice place!! मैं बचपन में एक बार गया हूँ ग्वालियर, हमारे एक दूर के चाचा की बारात में गया था। काफी एन्जॉय किआ था हमने वहां।"


शशांक :- "हम्ममम्म अच्छा शहर है, मैं भी काफ़ी याद करता हूँ।"


मोहित :- (मुस्कुराकर) "हाँ अपना घर तो सभी को याद आता है। हम लोग भी बूँदी से हैं। पापा मम्मी तो अभी भी हो आते हैं कभी कभी, लेकिन मुझे और भैया को तो बिल्कुल भी मौका नही मिल पाता। खैर, आप लोगों ने क्या सोचा फिर??"


शशांक :- (मोहित की मखमली आवाज़ में खोए हुए) "सोचा ना, बहुत सोचता हूँ मैं... (अचानक से होश में आने के बाद ये सोच कर की ये क्या बोल दिया मोहित से, मोबाइल को वापस से अपने माथे पर मारते हुए, बात बदल कर) वो पापा से बात की मैंने, तो अगर आप लोग संडे को फ्री हो, तो हम आपको अपने घर बुलाने के बारे में सोच रहे थे।"


मोहित :- "हाँ क्यों नहीं। मैं पूछ लेता हूँ मम्मी पापा से, फिर इन्फॉर्म कर दूँगा। वैसे ये अच्छा भी रहेगा, भैया और आपकी दीदी भी मिल लेंगे एक दूसरे से, तब ही हम आगे की कोई बात करें तो अच्छा रहेगा।"


शशांक :- "हाँ, यही पापा भी कह रहे थे, तो आप बता दीजिएगा मुझे कॉल व्हाट्सएप्प या मैसेज या जैसे आप चाहे। (एक बार फिर ज्यादा बोलने के लिए अपने मोबाइल को अपने माथे पर मारते हुए)"


मोहित :- (मुस्कुरा कर) "Ok, मैं इन्फॉर्म कर दूँगा। बात करके अच्छा लगा।"


शशांक :- (मुस्कुरा कर) "मुझे भी। bye!!!"


मोहित :- "Bye!!!"



     वो फ़ोन रखने के बाद मैंने फिर एक बार, मोबाइल को अपने माथे पर दे मारा था, लेकिन इस बार एक मुस्कुराहट के साथ। मुझे पता नहीं क्यों आज पहली बार किसी अनजान से फ़ोन पर बात करके इतना अच्छा लग रहा था, की मैंने ऐसा सुकून सिर्फ किसी से बात करके आज तक महसूस नही किआ था। और मैं ये सोचकर भी बहुत खुश हो रहा था, की जब मोहित की आवाज़ में ही इतना अपनापन था, तो उसकी शख्सियत कितनी लाजवाब होगी। तस्वीर को तो थोड़ा बहुत एडिट किआ जा सकता है, लेकिन अपनी आवाज़ में आप वो सादगी बनावटी नही ला सकते, जो मैंने अभी अभी मोहित की आवाज़ में महसूस की थी। अभी तक तो सिर्फ उसकी तस्वीर, उसकी लिखी हुई बातें ही मुझे उसकी ओर आकर्षित किए हुए थीं, लेकिन अब उसकी आवाज़ ने तो मुझे पूरा उसका दीवाना भी बना दिया था।अब तो बस मुझे इंतेज़ार था कि कब मोहित का मैसेज आये, और वो संडे को घर आने के लिए राजी हो जाये।



        अगर अब आपको भी मोहित से मिलने का थोड़ा थोड़ा मन हो रहा है, तो बस थोड़ा सा इंतेज़ार  कीजिये, जब संडे को वो शशांक से मिलने आएगा, तब आप भी मिल लीजिएगा।




Lots of love

Yuvraj ❤️


    









Sunday, April 18, 2021

Shadi.com - Part-I

 Hello friends,

                         I am again here to present my new story, hope you like my this creation as previous once. It's a short story and I try to make it looks real, so I write this one as in biography style, but this is also a fiction one as my all stories. Please give your valuable comments here or wherever you read this story, dm's is also acceptable like before. So here's the story begin, through its main character Shashank.


शशांक :- (लैपटॉप में कुछ सर्च करते हुए, अपने मे ही बड़बड़ाते हुए) "पता नहीं पापा ये सब कैसे कर पाते, ये तो सच में बहुत ही मुश्किल है। ok!!! Now it's finally done!!! (अपने पापा को आवाज़ लगते हुए) पापा..... पापा......!!! ये id बन गयी है स्नेहा दीदी की, अब आप देख सकते हो अपनी और दीदी की पसंद का लड़का।"


स्नेहा :- (अपने कमरे से भाग कर बाहर बैठक में आते हुए) "वाह इतनी जल्दी, पापा तो हफ्ते भर से परेशान थे। और तूने तो कुछ मिनटों में ही id बना दी।"


शशांक :- (लैपटॉप स्नेहा को थामते हुए) "वैसे आप भी कर सकतीं थीं ये, इतना भी मुश्किल नहीं था।"


स्नेहा :- (शशांक की टाँग खिंचने के अंदाज़ में) "हाँ कर तो सकती थी, लेकिन जब मैंने arrange marriage करने के लिए हाँ कर दिया, तो अब कुछ काम तुम लोगों से भी तो करवाउंगी, ऐसे ही थोड़ी होती है बहन की शादी बेटा, बहुत काम करना पड़ता है उसके लिए।"


शशांक :- (मुस्कुरा कर) "लेकिन आप करना क्यों चाहती हो ये??? आपका तो अच्छा खासा affair चल रहा था आपके colleague रौनक के साथ!!! फिर ये arrange marriage क्यों?"


स्नेहा :- (मज़ाकिया अंदाज़ में) "वो इसलिए मेरे प्यारे भाई, क्योंकि मैं अपने बूढ़े बाप को भी थोड़ी ख़ुशी देना चाहती हूँ। कि वो भी अपने ज़माने की तरह अपनी बेटी.... Ohhhh sorry (शशांक की तरफ देखकर) अपने दोनों बच्चों के लिए लड़का ढूंढे और उनके हाँथ पीले कर इस घर से विदा करें।"


शशांक :- (स्नेहा को मुँह चिड़ाकर अपने कमरे में जाते हुए) "Not funny!!!!"


स्नेहा :- (जोर से हँसते हुए) "अरे मज़ाक कर रही थी, चल तू अपने लिए लड़का खुद ढूँढ लेना, लेकिन मेरे लिए तो help करा दे।"


शशांक :- (अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ा होकर) "Again it's not so funny!!!! मुझे अस्मिता के साथ जाना है तो मैं नही कर पाऊंगा आपकी मदद, आप और आपके बूढ़े बाप ही enjoy करो ये shadi.com।"



Yes!!!!! ये हूँ मैं यानी शशांक गुप्ता!! और बाहर सोफ़े पर जो मेरी टाँग खींच रहीं थीं, वो है मेरी बड़ी बहन स्नेहा गुप्ता। हम दोनों में पूरे 9 साल का अंतर है, क्योंकि मेरी प्यारी मम्मी को दूसरा बच्चा नहीं चाहिए था, लेकिन एक दिन गलती से मैं मम्मी की गोद में आ गया। जी हाँ आपने बिल्कुल ठीक पड़ा, "गलती से"। दरअसल हुआ यूँ था कि मम्मी को बहुत देर से पता चला कि वो pregnant  हैं। और जब वो डॉक्टर के पास abortion कराने पहुंची तो डॉक्टर ने मना कर दिया, की अब abortion नहीं कर सकते, अगर किआ तो आपकी जान को भी खतरा हो सकता है। मम्मी तो फिर भी risk लेने को तैयार थीं लेकिन मेरे प्यारे पापा ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। लेकिन मेरी मम्मी बहुत ही ज़िद्दी थीं और उन्होंने डॉक्टर के मना करने के बाद भी, पापा से छुपकर भरपूर प्रयास किये की मैं इस दुनिया मे ना आ सकूं। जैसे breakfast, lunch और dinner में सिर्फ पपीते का सेवन, पानी से भरी भारी बाल्टी उठा कर जीनों से छत तक जाना, और भी कई ऐसे घरेलू नुस्खे जिनसे वो अपनी ज़िद्द पूरी कर सकती। लेकिन भगवान को तो कुछ और ही मंजूर था। मेरी मम्मी के कई निरर्थक प्रयासों के बाद भी 21 अप्रैल 2000 शुक्रवार को  बैंगलुरू में ohhh i am sorry, बैंगलोर में हुआ, क्योंकि तब बैंगलुरू बैंगलोर हुआ करता था। और बस उसी दिन से मेरी मम्मी भगवान की बहुत बड़ी भक्त भी हो गईं थीं। वो बस मुझे अपनी बाहों में लिए रोये जा रहीं थीं और भगवान का शुक्रिया करे जा रहीं थीं कि भगवान ने मुझे उनकी गोद मे सही सलामत सौंप दिया। बस उसी दिन से मैं अपनी मम्मी का लाड़ला भी बन गया। और शायद स्नेहा दीदी को उसी बात की जलन है। हा.. हा.... हा..... मज़ाक कर रहा हूँ। मेरे घर में सभी मुझसे प्यार करते हैं। हाँ पापा जरूर 2.5 सालों तक मुझसे नाराज़ थे, या शायद मुझसे दुःखी थे, जब मैंने उन्हें और अपने घर में मेरे गे होने के बारे में बताया था। लेकिन मम्मी के गुजर जाने के बाद पापा ने अपनी नाराज़गी को कहीं छुपा सा लिया है, लेकिन उनकी नज़रों से मुझे आज भी लगता है कि वो मुझसे निराश अभी भी हैं। इसीलिए शायद उन्होंने आज तक इस बात को ग्वालियर में मेरे दादाजी और नानाजी के घरवालों से छुपाकर रखा है।


     हाँ हम लोग बैंगलोर के नहीं हैं। मेरे दादाजी और नानाजी दोनों का ही घर ग्वालियर में ही है। पहले पापा मम्मी और दीदी ग्वालियर में दादाजी के पुश्तैनी घर मे बाकी के घरवालों के साथ ही रहते थे। पापा ने बड़ी मशक्कतों के बाद bsnl में जॉब भी पा ली थी। लेकिन मेरे पापा का स्वभाव थोड़ा अड़ियल किस्म का ही है। और दादी तो बताती हैं कि पापा बचपन से ही थोड़े ज़िद्दी भी रहे हैं। मम्मी पापा दोनों ही ज़िद्दी, hmmmmmm...... इसीलिए शायद ये ज़िद्द हम भाई बहन को विरासत में मिली है। हाँ, तो जॉब लगने के कुछ सालों के बाद ही पापा की अपने मैनेजर से किसी बात पर बहस हो गयी, और वो बहस इतनी बड़ी की उस मैनेजर ने पापा को परेशान करने के लिए उनका ट्रांसफर यहां बैंगलोर में करवा दिया। मैनेजर को लगा कि शायद प्रमोद गुप्ता जी इतनी दूर ट्रांसफर के चलते ये नौकरी ही छोड़ देंगे। लेकिन उस मैनेजर को मेरे पापा की ज़िद्द के बारे में कहाँ पता था। पापा भी ग्वालियर में सभी को अलविदा कहकर अपनी बीवी और 5 साल की बेटी को लेकर चले आये बैंगलोर। और बस तबसे यहीं के होकर रह गए। और फिर 4 साल बाद मैं भी तो आ गया था उनके परिवार को बढ़ाने को। 



     शुरू शुरू में तो मम्मी पापा साल में 3 4 बार ग्वालियर आ जाया करते थे। फिर कुछ समय बाद दीदी के स्कूल शुरू हो जाने के बाद वही गर्मियों की छुट्टियों में ही ग्वालियर आना हुआ करता था। और फिर मेरे हो जाने के बाद पापा का प्रमोशन हो गया था, तो उन्हें कम ही छुट्टियां मिलतीं थीं। तो मम्मी ही हम दोनों भाई बहन को अकेले ग्वालियर ले आया करती थीं, और पापा सिर्फ हमे वापस बैंगलोर लेने के लिए ही आते थे। और फिर जब दीदी कॉलेज में आ गयी तो फिर उसे भी फुर्सत नहीं होती थी, तो बस मैं और मम्मी ही ग्वालियर आया जाया करते थे। मेरे कॉलेज में आने के बाद वो सिलसिला भी बंद हो गया। तब तक दीदी ने MBA भी कम्पलीट कर लिया था, और एक नामी ग्रामी MNC में उनकी जॉब लग चुकी थी। मेरी इंजिनीरिंग की फर्स्ट ईयर कम्पलीट होने के बाद मेने भी तय कर लिया था की मैं भी अब और क्लोसेट में नही रहूंगा। और मैंने अपनी सच्चाई, अपनी सेक्सुअलिटी के बारे में अपने घर मे बता दिया। दीदी को तो इस बात को स्वीकार करने में जरा सी भी कठिनाई नही हुई, और उन्होंने मुझे गले लगाकर इस बात की पुष्टि भी की। लेकिन मम्मी पापा को देख कर साफ पता लग रहा था कि उन्हें इस बात को जानकर बहुत ही गहरा सदमा सा लगा है। लेकिन उसी रात मम्मी ने तो अपने मन की बात बता दी कि उन्हें इस बात से कोई दिक्कत नही की में गे हूँ, बल्कि उन्हें इस बात को जानकर बहुत बुरा लगा है कि मैंने इतनी बड़ी बात को इतने सालों तक छुपा कर क्यों रखा। लेकिन पापा!!!!! पापा ने तो मेरे प्रति नाराजगी को ही अपना जीवन बना लिया था। मम्मी ने भी उन्हें खूब समझाने की कोशिशें की लेकिन उन्होंने अगले 2.5 वर्षों तक मुझे अपने से दूर ही रखा। 



     फिर मेरी ज़िन्दगी का सबसे मनहूस दिन भी मुझे कम उम्र में ही देखने को मिला। उस दिन के बारे में बात करते हुए मेरी आँखों मे आज भी आँसू आ जाते हैं। मेरी इंजिनीरिंग के आखिरी साल में मेरी मम्मी हम सभी को छोड़ कर इस दुनिया को अलविदा बोलकर जा चुकी थीं। उनके कैंसर के बारे में हम सभी को काफ़ी देर से पता चला था, और ढेरों इलाज़ के बाद भी उन्हें कोई भी डॉक्टर कोई भी इलाज़ कुछ और साँसे नही दे पाया। और उन्होंने ही अपने आखिरी समय में पापा को मेरे प्रति अपना व्यवहार बदलने को कहा था। और शायद इसीलिए भी पापा ने उसके बाद अपनी सारी नाराज़गी को दरकिनार कर मुझे अपने गले से लगा लिया था। मम्मी के जाने के बाद बस हम तीन लोग ही एक दूसरे की दुनिया बनकर रह गए थे। अब सब ठीक है, हम तीनों भी खुश हैं, लेकिन हाँ मम्मी की कमी तो हर वक़्त खलती ही है। अब तो दीदी को भी पता नही ये क्या नया भूत चड गया है shadi.com का। जहाँ तक मुझे पता था तो उनका एक सीरियस रिलेशनशिप था। मुझे तो यही लगता था कि एक दिन दीदी रौनक को घर लेकर आएंगी पापा से मिलवाएँगी और उसी से शादी भी कर लेंगी। लेकिन पता नहीं फिर ऐसा क्या हो गया कि अब उन्हें शादी करने के लिए इस shadi.com की मदद लेनी पड़ रही है।  



स्नेहा :- (बैठक में शाम की चाय पीते हुए, शशांक को उसके कमरे से बाहर आता देख) "कहाँ जा रहा है इतना सज धज के??"


शशांक :- (अपने हाँथ की घड़ी सही करते हुए) "बताया तो था, अस्मिता के साथ जाना है शॉपिंग के लिए। (इधर उधर देखते हुए) पापा कहाँ है???"


स्नेहा :- (चाय की चुस्की लेते हुए) "वही!!!! Shadi.com!!!!! अपने होने वाले दामाद को ढूंढ रहे हैं।"


शशांक :- (घर के बाहरी दरवाज़े की ओर जाते हुए) "Ok!!! पूंछे तो बता देना, मैं रात तक आ जाऊंगा।"


स्नेहा :- (शशांक को पीछे से टोकते हुए) "टाइम से आ जाना, आज पापा तेरा फेवरेट मलाई कोफ़्त बनाने की बोल रहे थे, तूने उनको shadi.com का तोहफ़ा दिया ना इसलिए।"


शशांक :- (भंवे चड़ाकर मुस्कुराते हुए सर हिलाकर) "Ok!!! आजाउँग।"



      मलाई कोफ़्ता!!! वैसे तो जैसा मेरी मम्मी बनाती थीं, वैसा तो कोई भी नही बना सकता। वो मलाई कोफ़्ता हम सभी का फेवरेट भी हुआ करता था, और पापा जो मलाई कोफ़्ता बनाते हैं, वो तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता, ना ही मुझे और ना ही दीदी को। लेकिन उनका मन रखने के लिए हम दोनों भाई बहन बिना जाहिर किए, पापा के खाने की खूब तारीफ़ भी करते हैं, और उनका मलाई कोफ़्ता भी बड़े चाव से खाने का नाटक भी बखूबी निभाते हैं। वैसे पापा दम आलू बहुत ही शानदार बनाते हैं, और हम उन्हें कहते भी हैं बनाने को, लेकिन पापा को शायद मलाई कोफ़्ता बनाने में ही सुकून मिलता है। तो मम्मी के जाने के बाद हमारे घर मे कुछ भी अच्छा काम होता है, या हम लोग किसी भी वजह से खुश होते हैं, तो पापा खाने में मलाई कोफ़्ता ही बनते हैं। जैसे दीदी का प्रमोशन, मेरा इंजिनीरिंग का रिजल्ट, फिर मेरा MBA का रिजल्ट, फिर दीदी का एप्रैसल, मेरी नौकरी वगैरह वगैरह।



शशांक :- (अस्मिता की बिल्डिंग के नीचे पहुँचकर उसे फ़ोन करते हुए) "जल्दी आ यार, मैं कबसे तेरा इंतेज़ार कर रहा हूँ।"


अस्मिता :- (फ़ोन पर) "अपनी खटारा का दरवाज़ा खोलके रख, जब तक तू वो दरवाज़ा खोलेगा मैं नीचे आ जाऊंगी।"


शशांक :- (अपनी कार का दरवाज़ा खोलते हुए) "अगर तूने फिरसे मेरी कार को खटारा बोला, तो अगली बार से मैं पैदल ही आऊंगा फिर धक्के खाना ऑटो टैक्सी के।"


अस्मिता :- (भागते हुए शशांक की कार का दरवाज़ा पकड़ते हुए) "अरे धीरे से कहीं इस बुज़ुर्ग को चोट ना लग जाये।"


शशांक :- (सीट बेल्ट लगाते हुए) "जितनी बुज़ुर्ग तू है उससे तो 10 साल जवान है मेरी कार। तो ये जोक तू अपने ऊपर ही मारले।"


अस्मिता :- (कार में बैठते हुए) "अब क्या हुआ है, क्यों तेरा मूड सड़ा हुआ है। इतने छोटे से जोक पर इतना बड़ा रिएक्शन..... एक मिनट.... क्या आज फिर अंकल जी मलाई कोफ़्ता बनाने वाले हैं????"


शशांक :- (गाड़ी स्टार्ट करते हुए) "hmmmmmmm!!!! और तू भी चलेगी साथ।"


अस्मिता :- "No way!!! मुझे आफिस का कुछ काम है, तो मैं थोड़ा busy हूँ आज।"


शशांक :- (अस्मिता को घूर के देखते हुए) "Seriously!!!!तुझे कोई और बहाना नहीं सूझा। हम दोनों एक ही आफिस में, एक ही टीम में काम करते हैं। तो मुझे पता है कि तुझे कोई काम नहीं है।"


अस्मिता :- "अरे यार!!!! मुझे नहीं खाना अंकल के हाथ का मलाई कोफ़्ता, और फिर झूठी तारीफ़ भी तो करनी पड़ेगी। वैसे आज क्या हुआ है??? अंकल मलाई कोफ़्ता क्यों बना रहे हैं आज???"


शशांक :- "शाम को घर चलेगी तो सब पता लग जायेगा।"




     ये है मेरी बेस्ट फ्रेंड या यूं कहूँ की इकलौती फ़्रेंड "अस्मिता"। हम दोनों बचपन के दोस्त हैं। शायद हम प्ले ग्रुप से ही साथ हैं। ऐसा मम्मी बताया करतीं थीं। जब वो मुझे स्कूल लेने आती थीं तो मैं हमेशा उन्हें अस्मिता के पास ही बैठा मिलता था। फिर हम दोनों एक ही स्कूल में भी साथ गए, और कॉलेज में भी। मम्मी तो अस्मिता को अपनी बहू बनाने के सपने संजोने लगीं थीं। लेकिन मैंने उनके सपनों पर पानी फेर दिया। लेकिन जब मैंने अस्मिता को मेरे गे होने के बारे में बताया था, तो मुझे आज भी अच्छे से याद है, उसने कोई रिएक्शन ही नहीं दिया था। जब मैंने उससे पूछा कि उसने सही से सुना भी है या नहीं, तो उसने मुझे बोला "तू मुझे ये नहीं बताता तो भी मुझे स्कूल टाइम से ही पता था।" फिर जब मैंने उससे पूछा कि उसे ये कैसे पता चला, तो उसने उन उन लड़कों के भी नाम बताए जिन्हें मैं स्कूल में छुप छुप कर देखा करता था, और ऐसी ऐसी बातें बताईं की मैं सोच रहा हूँ कि उस पार्ट को छोड़ ही देते हैं। शायद सभी बेस्ट फ़्रेंड ही थोड़े कमीने टाइप के होते हैं। उन्हें आपके serious moment पर भी बस आपकी टाँग ही खींचनी होती है। और शायद इसीलिए भी हम दोनों पक्के वाले दोस्त हैं। क्योंकि हम दोनों के बीच किसी भी तरह पर्दा नहीं है। हम दोनों एक दूसरे के साथ अपनी सारी बातें शेयर करते हैं। एक दूसरे को सब कुछ बताते हैं। अब ये हमारी किस्मत थी कि हमें एक ही कंपनी में और एक ही टीम में जॉब भी मिल गई। तो अब हम पूरे टाइम एक दूसरे के साथ ही रहते हैं। यूँ तो अस्मिता का एक बॉयफ्रेंड भी है आफिस में, लेकिन अस्मिता उसे लेकर ज्यादा सीरियस नहीं है। मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि जितना हो सके अस्मिता को उसका स्पेस दे सकूँ, ताकि वो अपने रिलेशन को भी टाइम दे। लेकिन वो अपने बॉयफ्रेंड से ज्यादा मेरे साथ ही समय बिताती है। 



     शाम को शॉपिंग के बाद जब हम दोनों घर पहुँचे, तो पापा और दीदी टेबल पर खाना ही लगा रहे थे। अस्मिता ने पापा और दीदी को ग्रीट किआ, और हम दोनों हाँथ धोने चले गए। अस्मिता को देखकर दीदी ने एक खाने की प्लेट और लगा दी। हम सभी खाना खाने के लिए बैठ गए, और फिर शुरू की हम तीनों ने पापा की मलाई कोफ़्ता की झूठी तारीफें। कभी कभी तो मुझे लगता है कि पापा को भी पता है कि हमें उनके हाँथ की ये सब्जी बिल्कुल भी पसंद नहीं है, लेकिन वो फिर भी ट्राय करते रहते हैं, की शायद कभी तो मम्मी के जैसी बना पाएं।


अस्मिता :- (खाना मुँह में रखकर) "वैसे आज क्यों बना है ये मलाई कोफ़्ता???"


स्नेहा :- (अस्मिता को पानी का ग्लास देते हुए) "कुछ खास नहीं, बस काफी दिनों से पीछे पड़ने के बाद, आज फाइनली शशांक ने Shadi.com पर प्रोफाइल बना ही दी, और अब पापा आराम से उस पर एक अच्छा सा लड़का ढूँढ सकते हैं।"


अस्मिता :- (ठसके से खाँसकर , जल्दी से पानी पीते हुए) "तुझे शादी करनी है शशांक????"


शशांक :- (अस्मिता को गुस्से से घूरते हुए) "वो अपनी शादी की बात कर रहीं हैं।"


स्नेहा :- (हँसते हुए, अस्मिता को पानी का जग देते हुए) "हाँ वैसे मैंने पापा को बोल दिया है, वो शशांक के लिए भी ढूँढ लेंगे एक अच्छा से लड़का।"


अस्मिता :- (पानी पीने के बाद) "सॉरी दीदी!! मुझे लगा कि आप शशांक के बारे में बात कर रही हो, क्योंकि मुझे तो शशांक ने आपके रिलेशन................. (अस्मिता कुछ कहती उससे पहले ही स्नेहा ने उसके मुँह में एक रोटी ठूँस दी)"


स्नेहा :- (रोटी ठूँसने के बाद ) "हाँ हाँ खाओ ना, पापा ने बहुत ही अच्छी सब्जी बनाई है आज तो।"


पापा :- (स्नेहा को टोकते हुए) "अरे बेटा ये कैसे खिला रही हो उसे, वो खुद खा लेगी।"


शशांक :- (अस्मिता को चुप रहने का इशारा करते हुए) "हाँ पापा आज सब्जी पहले से भी अच्छी बनी है, और अस्मिता शर्मा रही है रोटी लेने में, इसलिए दीदी ने बस..."


पापा :- (मुस्कुरा कर) "चलो अच्छा है तुम बच्चों को खाना अच्छा लगा। चलो मैं अब सोने जा रहा हूँ, आज शाम भर मैं वो लैपटॉप में देखता रहा, तो मेरा तो सर दुःख रहा है, पता नहीं तुम लोग कैसे सारा दिन उसमे घुसे ही रहते हो। (टेबल से उठकर अपने कमरे की ओर जाते हुए) स्नेहा बर्तन साफ करके ही रखना, वरना रात भर ऐसे ही पड़े रहेंगे।"


स्नेहा :- "हाँ पापा मैं धोकर रख दूंगी। (पापा के जाने के बाद अस्मिता को देखकर) सॉरी यार, पापा को नही पता है कुछ भी, इसलिए तेरा मुँह बंद कराने को जल्दबाजी में मुझे कुछ और सूझा ही नहीं।"


अस्मिता :- (हँसते हुए) "कोई बात नहीं दीदी। मुझे नहीं पता था ऐसा कुछ। (शशांक को हाँथ से मारते हुए) आधी बात क्यों बताता है मुझे। ये क्यों नही बताया कि अंकल को नही पता है इस बारे में।"


शशांक :- (अस्मिता के हाँथ पकड़ते हुए) "अरे तो मुझे क्या पता था कि तू ऐसे पापा के सामने बोल देगी।"


स्नेहा :- (दोनों को रोकते हुए) "चलो ठीक है अब बच्चों की तरह लड़ना बंद करो और बर्तन उठाने में मेरी हेल्प करो।"


अस्मिता :- (स्नेहा के पीछे पीछे किचन में बर्तन ले जाते हुए) "दीदी लेकिन हुआ क्या??? जहां तक मुझे शशांक ने बताया था, तो आप तो शादी के बारे में सोच रही थीं अपने बॉयफ्रेंड के साथ, फिर ये shadi.com???"


स्नेहा :- (बर्तन साफ करते हुए) "अच्छा हुआ यार की बस सोचा था शादी के बारे में उसके साथ, अगर कर लेती तो डाइवोर्स ही लेना पड़ता!!"


अस्मिता :- (आश्चर्य से) "कोई सीरियस बात है क्या दीदी, अगर आपको सही नही लगे तो हम नही बात करते इस बारे में।"


स्नेहा :- "यार सीरियस तो है ही!!! मैं पिछले 6 सालों से जानती हूँ उसे, लेकिन गे कम्युनिटी के लिए उसकी छोटी सोच के बारे में जब मुझे पता चला, तो मैंने ब्रेकअप कर लिया उसके साथ। वो इतना नैरो माइंडेड है इस विषय को लेकर, की मैं तो देख कर ही दंग रह गयी थी। फिर उसके शादी और शशांक के बारे में उसको बताने के बारे में तो मैं सोच भी नही सकती थी। वो तो आज भी मुझसे बात करना चाहता है, लेकिन मैंने तो अभी तक उसे अपने ब्रेकअप की वजह भी नही बताई है।"


अस्मिता :- (स्नेहा के कंधे पर हाँथ रखते हुए) "दीदी आप बुरा मत मानना लेकिन अभी भी ज्यादातर लोगों की सोच ऐसी ही है। आप कब तक ऐसे लोगों से दूर रहोगी? ऐसी सोच वाले लोग तो आपको हर कहीं मिलेंगे, लेकिन शशांक के लिए अच्छा वातावरण तो हमे उन लोगों के बीच ही रहकर बनाना होगा ना। आप एक बार रौनक से बात तो करके देखो शायद उसकी सोच में कुछ बदलाव आ सके। अब जैसे अंकल भी तो शशांक से पहले बात नहीं करते थे, लेकिन अब तो सब नार्मल हो गया है उनके बीच।"


स्नेहा :- "यार पापा की नाराज़गी और रौनक की घटिया सोच में ज़मीन आसमान का अंतर है। पापा नाराज़ थे और शायद अभी हैं, ये सोचकर की समाज मे उनकी मेरी और शशांक की कोई इज्जत नही करेगा, और रौनक के हमारे आफिस में आये एक नए एम्प्लोयी के प्रति व्यवहार को देखकर मैं भी उनकी बात से सहमत हूँ। रौनक जिस तरीके से उस नए लड़के को बेइज्जत करता है सबके सामने, कितना गंदा गंदा मज़ाक बनाता है उसका, सिर्फ इसलिए कि वो बाकी के लड़कों की तरह नही चलता, बाकी के लड़कों की तरह नहीं बोलता। अब मैं उससे क्या उम्मीद रखूं की वो मेरे भाई को कैसे समझेगा।"


अस्मिता :- "दीदी मैं तो फिर भी कहूँगी की आप एक बार बात करके देखलो, जितना मैंने शशांक से सुना है रौनक के बारे में, तो मुझे तो लगता है कि वो आपसे बहुत प्यार करता है। और आज के टाइम में प्यार मिलना ही कितना मुश्किल है, सबको बस one night stand ही चाहिए होता है। और आपका 6 साल का रिलेशन है। आप एक बार बात करके देखो शायद सब ठीक हो जाये।"


स्नेहा :- "यार अस्मिता बुरा तो मुझे भी लगता है लेकिन पापा और शशांक के अलावा है ही कौन जिसके बारे में सोचूँ। अब प्यार के लिए अपने भाई से समझौता तो नहीं करूंगी में। (स्नेहा बर्तन धोकर पलटती है, और किचन के दरवाज़े पर शशांक खड़ा सारी बातें सुन रहा होता है)


शशांक :- (किचन में अंदर आते हुए) "आप सिर्फ इस बात को लेकर अपने प्यार को छोड़कर, किसी भी अनजान इंसान से शादी के लिए मान गए दीदी??"


स्नेहा :- (शशांक के गाल पर हाँथ फेरकर) "ये कोई छोटी बात नहीं है शशांक, अरे यही सब तो छोटी छोटी बातें होती हैं जिनसे हम इंसान को परखते हैं। तो ये समझले की ये एक टेस्ट था, और रौनक उसमे फ़ैल हो गया। और किसने कहा तुझसे की मैं किसी भी अंजान इंसान से शादी करने जा रही हूँ। मैं तो उसे भी अच्छे से जानने परखने के बाद ही शादी के लिए हाँ बोलूँगी, तू चिंता ना कर।"


शशांक :- (स्नेहा को अपने गले से लगाते हुए) "चलो अब मैं भी आपके लिये लड़के ढूँढना शुरू करता हूँ shadi.com पर।"


अस्मिता :- (हँसते हुए) "हाँ चल पहले मुझे घर छोड़ के आ फिर ढूढ़ईयों लड़के। रात हो रही है, मेरी मम्मी चिल्लाएंगी नहीं तो।" 



     शशांक अस्मिता को उसके घर छोड़ने के लिए निकल आता है। और गाड़ी में अभी की हुई सारी बातों के बारे में ही अस्मिता भी शशांक से बात करने लग जाती है।



अस्मिता :- "तू बहुत लकी है शशांक की तेरी दीदी तेरे बारे में इतना सोचती है। और एक मेरी दीदी है, वो तो इसी फिराक में रहती है कि ऐसा क्या करे कि मेरा कुछ ना कुछ नुकसान हो जाये। सच में अगर तेरी सिचुएशन में मैं होती ना, तो मेरी दीदी तो जानबूझ के रौनक से शादी कर लेती, जिससे वो दोनों मिलके फिर मुझे परेशान कर सकते।"


शशांक :- (हँसते हुए) "क्या बोल रही है तू। पागल हो गयी है क्या??? लगता है आज पापा ने मलाई कोफ़्ते में कुछ स्पेशल मिलाया था, जिससे तेरा दिमाग खराब हो गया है।"


अस्मिता :- (हँसते हुए) "नहीं यार शशांक मैं सही कह रही हूँ। आज जैसे मैंने तुझे और स्नेहा दीदी को देखा ना, मैं तो अपनी दीदी को ऐसे इमेजिन भी नहीं कर सकती।"


शशांक :- (थोड़ा सीरियस होते हुए) "हाँ यार तू कह तो सही रही है, दीदी मुझसे बहुत प्यार करती है, और सिर्फ मेरे लिए अपने 6 साल के रिलेशन को ख़त्म करने में जरा भी नही हिचक रही। (कुछ देर सोचने के बाद) तुझे क्या लगता है!!! क्या हम लोगों को कुछ करना चाहिए इस बारे में। (गाड़ी साइड में रोक कर अस्मिता की ओर देखते हुए)"


अस्मिता :- (आश्चर्यजनक भावों से शशांक की ओर देखते हुए) "इसमें हम क्या कर सकते........ (थोड़ी देर सोचने के बाद) क्यों ना हम चलके रौनक से बात करें, और उसे सब अच्छे से समझाएं। इससे तेरे और रौनक के बीच में भी कोई प्रॉब्लम नही रहेगी, और स्नेहा दीदी भी shadi.com के बारे में नहीं सोचेंगी।"



    शशांक ने तुरंत गाड़ी की दिशा बदली और दोनों चल दिये रौनक के घर, उससे बात करने। रौनक के घर पहुंच कर शशांक ने उसे कॉल करके उसके घर से नीचे ही बुला लिया, क्योंकि जो बात वो लोग रौनक से करने वाले थे, उन सब बातों के लिए रौनक का घर बिल्कुल भी उपयुक्त जगह नही था। रौनक भी शशांक के बुलाने पर फौरन ही अपने फ्लैट से नीचे आ गया। और उसने आते ही शशांक से स्नेहा के बारे में पूछना शुरू कर दिया।


रौनक :- (गाड़ी के अंदर झांकते हुए) "स्नेहा भी है क्या अंदर??? (गाड़ी में किसी को ना पाकर, शशांक के हाँथ पकड़ कर) क्या हुआ है उसे भाई??? ना मेरे फ़ोन उठाती है ना मेरे मैसेज का रिप्लाई देती है। आफिस में भी मुझे इग्नोर कर रही है। क्या चल क्या रहा है उसके दिमाग में???"


शशांक :- (रौनक के कंधे पर हाँथ रखते हुए) "इसीलिए हम तुमसे बात करने आये हैं रौनक। दीदी बस तुम्हारी कुछ हरकतों की वजह से परेशान है। कुछ समय से उसे तुम्हारा बर्ताव बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा है। इसलिए बस वो थोड़ी सी नाराज़ है।"


रौनक :- (आश्चर्य से) "क्या???? यार कोई 6 महीने का स्टैंडबाई तो नहीं हूँ ना मैं?? 6 साल का रिलेशन है हमारा, अगर कोई बात खटक रही है तो मुझसे कह सकती है वो। और पहले भी कई बार नाराज हो चुकी है वो मुझसे, लेकिन पहले कभी उसने मुझे ब्रेकअप के लिए नहीं बोला। मुझे पता है या तो तुम लोगों ने उसकी शादी किसी अमीर लड़के से फिक्स करा दी है, या फिर उसे कोई और पसंद आ गया है। वरना स्नेहा कभी मेरे साथ ऐसा नहीं करती।"


शशांक :- "क्या?? नहीं!!! नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। वो बस तुमसे थोड़ा सा नाराज़ है, और उसकी वज़ह कहीं ना कहीं मैं भी हूँ।"


रौनक :- (अपना माथा पकड़ते हुए) "क्या बोल रहा है तू, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"


शशांक :- "अभी कुछ दिनों पहले तुम्हारे आफिस में एक नया लड़का आया है, जिसे तंग करते दीदी ने तुम्हे देख लिया है, और उसे वो बात बिल्कुल पसंद नहीं आयी। इसलिए वो तुमसे नाराज़ हैं बस।"


रौनक :- (हँसते हुए) "अबे तो उस छक्के के लिए वो मुझसे ब्रेकअप कर लेगी??"


अस्मिता :- (गुस्से से रौनक की ओर देखते हुए) "कैसे बोल रहे हो यार आप??? इसीलिए तो स्नेहा दीदी नाराज़ है आपसे, आपको तो सच में ही बात करने की तमीज़ नहीं है।"


शशांक :- (अस्मिता को चुप कराते हुए, रौनक से) "यार बस तुम्हारा यही बर्ताव तो दीदी को नहीं पसंद आया। तुम्हें किसी का भी मज़ाक नहीं बनाना चाहिए जबकि तुम उसे जानते भी नहीं।"


रौनक :- (गुस्से से) "मुझे तुम लोगों की कोई भी बात समझ नहीं आ रही है। उस मीठे की वज़ह से स्नेहा मुझसे ब्रेकअप करना चाहती है, तो बोल देना उसे, अगर इतनी ही फ़िक्र है ना उस छक्के की तो उसी से शादी करले, फिर आ जायेगा आटे दाल का भाव समझ। मैंने उस मीठे को उसकी औक़ात बताके कुछ गलत नहीं किया। गंदगी हैं ये लोग हमारे समाज की, और स्नेहा उसके लिए मुझे छोड़ रही है। तो अच्छी बात है, मुझे भी नहीं रहना उसके साथ। और जाके बोल देना अपनी बहन को, अब तो मैं उस छक्के का आफिस में रहना ही मुश्किल कर दूँगा।"


शशांक :- (रौनक के कंधे पर हाँथ रखते हुए) "देख भाई तुम अभी गुस्से में हो, थोड़ा शांति से सोचो, क्या तुम इस बर्ताव के लिए अपने 6 साल की रिश्ते हो यूहीं जाने दोगे??? और बात सिर्फ उस लड़के के साथ के बर्ताव की नहीं है, मैं भी......."


अस्मिता :- (शशांक को बोलने से रोकते हुए) "पता है स्नेहा दीदी एक दम सही कर रही हैं। तुम हो ही नही इस लायक की कोई भी लड़की तुम्हारे साथ रिलेशन में रहे। ना लोगों की इज्ज़त करनी आती है, और बात करने का तो सलीका ही नहीं है। पता नहीं स्नेहा दीदी ने 6 साल कैसे झेल लिया तुम्हें।"


रौनक :- (गुस्से में वहां से जाते हुए) "देख लूंगा तुम लोगों को मैं और बोल देना स्नेहा को, उस मीठे को पूरे आफिस के सामने नंगा करके ना भगाया ना तो मेरा नाम रौनक नहीं।"


अस्मिता :- (गुस्से में) "हाँ जा जा जो करना है करले। स्नेहा दीदी तो अब थूके भी ना तेरे ऊपर।"


शशांक :- (आश्चर्य से) "तू ये क्या कर रही है?? अभी तो घर पर दीदी को समझा रही थी कि रौनक से बात करके देखो, उसे समझाओ। तो क्यों नहीं करने दी तूने मुझे बात। वो वैसे ही गुस्से में था, तूने उसे और गुस्सा दिला दिया।"


अस्मिता :- "हाँ तो मुझे थोड़ी पता था कि ये रौनक इतना बेकार इंसान होगा, वरना कभी ना बोलती उससे बात करने के लिए। और अच्छा हुआ कि मैंने तुझे रोक दिया, वरना तू क्या बोलने जा रहा था उससे, यही ना कि तू भी गे है इसलिए दीदी को और खराब लगा उसका ये बर्ताव, (शशांक के कंधे पर हाँथ रखते हुए) तूने सुनी ना उसकी बातें। वो मिसयूज़ कर सकता था इस बात को। हो सकता है वो कल को स्नेहा दीदी को ही ब्लैकमेल करने लगता ये बात जान कर। इसलिए अच्छा ही हुआ कि मैंने तुझे नही बताने दिया उसे कुछ। अब घर चल और दीदी को मत बताना ये सब, वरना वो और परेशान हो जाएंगी।


      शशांक अस्मिता को उसके घर छोड़ कर वापस अपने घर आ जाता है। जब वो घर वापस आता है तो स्नेहा बाहर के बैठक में सोफे पर बैठी लैपटॉप में कुछ काम कर रही होती है।



स्नेहा :- (लैपटॉप को साइड में रखते हुए) "बड़ा टाइम लगा दिया तूने। आइस्क्रीम खाने तो नहीं चले गए थे तुम दोनों। मेरे लिए भी ले आता!!"


शशांक :- (सोफे पर बैठकर स्नेहा को गले लगाते हुए) "नहीं बस हम बात कर रहे थे कि आप मेरे लिए इतना कुछ करती हो और मैने कभी भी आपको थैंक्यू तक नहीं बोला।"


स्नेहा :- (शशांक के सर पर हाँथ फेरते हुए मजाकिया अंदाज में) "खुद को इतनी भी इम्पोर्टेंस मत दे, मैं सब कुछ अपने लिए ही कर रही हूँ।"


शशांक :- (हँसते हुए स्नेहा से अलग होते हुए) "वैसे आप मेरे लैपटॉप में क्या कर रही हो???"


स्नेहा :- (लैपटॉप उठा कर शशांक को पकड़ाते हुए) "shadi.com!!! चल मैं सोने जा रही तू भी सोजा कल दोनों को ही आफिस जाना है।"



      स्नेहा के जाने के बाद शशांक वो लैपटॉप उठता है और shadi.com में लड़कों की प्रोफाइल देखने लगता है। कुछ प्रोफाइल देखने के बाद उसके हाँथ अचानक रुक जाते हैं, जब वो एक अनोखी प्रोफाइल उस shadi.com पर देखता है। पहले तो उसको भी लगता है कि ये कुछ गलत टाइपिंग है, या किसी ने बस मज़ाक के लिए ऐसा किआ है। लेकिन जब वो उस प्रोफाइल को ओपन करके उसके अंदर लिखा परिचय पड़ता है, तब शशांक को यकीन आता है कि ये ना तो कोई मज़ाक है, ना ही कोई गलती। और फिर शशांक हल्की सी मुस्कान से साथ shadi.com की उस प्रोफाइल के साथ कुछ वक्त बिताता है, और फिर जा कर अपने कमरे में सोने चला जाता है।




    इस दुनिया मे कितना कुछ बदलते हमने आपने सभी ने देखा हुआ है। चाहे वो जातिवाद, वंशवाद या फिर महिलाओं का समाज मे बदलता स्तर, लेकिन एक मुद्दा आज भी ज्यों का त्यों सा ही है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ, समलैंगिगकता की। भले ही  आज भारत सरकार ने इसे आपराधिक प्रकरणों से दूर कर दिया हो, लेकिन समानता का अधिकार देने में वो आज भी सक्षम नहीं है। और फिर कल को हमे कागज पर मोहर मिल भी जाये, तो क्या वो मोहर समाज मे हमारी छवि सुधारने में कारगर साबित हो पाएगी। आज भी हर नुक्कड़ पर रौनक जैसी सोच रखने वाले लोग, अपनी घटिया नजरों से जब हमें देखते हैं, क्या कोई सरकारी फैसला या कोई अलौकिक ताकत उस सोच को बदल पाएगी। ये तो अच्छा है कि शशांक ने हिम्मत करके अपने घरवालों को तो अपनी सच्चाई से रूबरू करवाया, वरना ना जाने कितने लोग तो बस समाज के डर से ही अपनी भावनाओं को अलमारियों में जीवन भर बंद करे बैठे रहते हैं। इन सीरियस मुद्दों को कुछ समय के लिए दरकिनार कर shadi.com के बारे में सोचिएगा जरूर। ऐसा शशांक को क्या मिला जो उसे भी अचंभित कर गया। और आगे की कहानी जानने के लिए बस थोड़ा सा इंतेज़ार कीजिएगा। जल्द ही शशांक आकर आपको सबकुछ बताने वाला है।



Lots of love

Yuvraj ❤️








Sunday, February 7, 2021

क़सम - Final Part

Hello friends,

                       If you doesn't read the first and second part of this story than please read it first, than you will get easily be connected with this final part.



      समय पंछी के टूटे पंख सा धीरे धीरे हवा में बहता रहा, और साथ साथ ही रोहन और वेद का प्यार गहरा होता चला गया। इस कहानी में अब केवल रोहन और वेद ही अकेले नही थे, जिनका प्यार परवान चड़ रहा था, वेदिका भी अपने एकतरफा प्यार को अपने दिल की गहराइयों तक महसूस करने लगी थी। अब वो कई ऐसे काम भी करने लगी थी, जिससे वो वेद का ध्यान अपनी और खींच सके। अब वो रोज़ाना ही कुछ ना कुछ स्वादिस्ट खाना, कभी खुद या कभी अपनी माँ से बनवा कर सिर्फ वेद के लिए ही लाने लगी थी। कभी कभी कोई छोटा सा उपहार या फूलों का गुलदस्ता वेद को थमा दिया करती थी। जहां रोहन ये सब देख कर जल भुनता था, वहीं वेद पर इन सब का कोई असर नही था, लेकिन वो रोहन के चेहरे पर आने वाले भावों को देख कर हंसता जरूर था। धीरे धीरे यूँही समय बीता, और वेद ने 12वीं तो अच्छे अंकों से पास की ही, साथ ही साथ उसने AIPMT में भी अच्छी रैंक ला कर, ग्वालियर के ही GRMC में MBBS करने के लिए दाखिला भी ले लिया था। वेद के इतने अच्छे परिणाम के जश्न में उसके घरवालों ने एक छोटे से कार्यक्रम का आयोजन भी किआ।



वेदिका :- (रोहन से खुश होकर) "रोहन यार आज तू बस मुझे 5 मिनट वेद के साथ अकेले में दिलवा दे, मैं आज उसे पृपोज़ करना चाहती हूँ।"


रोहन :- (आँखे बड़ी करके) "तू पागल हो गयी है क्या??? मैंने कितनी बार कहा है तुझसे, की वो नही है तुझमे इंटरेस्टेड, तुझे समझ नही आता क्या??"


वेदिका :- "यार तुझसे जितना कह रही हूँ ना, तू बस उतना ही कर, मैं वेदिका हूँ, वेद की वेदिका, वो मुझे कभी मना नहीं कर पायेगा।"


रोहन :- (वहाँ से जाते हुए) "कोशिश करूंगा!!"


वेद :- (रोहन को उदास जाता देखकर, उसके पास आकर) "क्या हुआ???? अब तो मैंने जो वादा किया था, की नही जाऊंगा ग्वालियर से, वो भी पूरा किया, फिर भी उदास हो???"


रोहन :- "यार वेदिका ने मेरा दिमाग खराब किआ हुआ है।"


      वेद कुछ कह पाता इससे पहले ही उसे उसकी मम्मी ने आवाज़ लगाई। और वेद रोहन को 10 मिनट बाद ऊपर छत पर आने का बोलकर वहां से चला गया। 


वेदिका :- (रोहन के पास वापस आते हुए) "क्या बात हुई वेद से, मिलेगा वो मुझसे??"


रोहन :- "नहीं यार वेदिका!!! मैंने अभी उससे कोई बात नहीं कि है।" (वेदिका से तंग आकर रोहन वहां से जाने लगा)


वेदिका :- "अरे तो जा कहाँ रहा है??? वेद से बात कर पहले जाकर, फिर कहीं जाना।"


रोहन :- (खिसियाते हुए) "यार ऊपर बाथरूम जा रहा हूँ, जाऊं या नहीं???"


वेदिका :- "चल मैं भी चलती हूँ तेरे साथ, मैं वेद के रूम में चली जाऊंगी और तू वेद को वहीं भेज देना।"



      दोनों वेद के घर मे अंदर चले गए, वेदिका वेद के रूम में गयी और रोहन बाथरूम में। कुछ देर बाद वेद भी अपने घर की छत पर रोहन से मिलने के लिए गया। वेदिका ने वेद को ऊपर छत पर जाते हुए देखा, और वो भी उसके पीछे पीछे चली गयी। वेद ने जब छत पर अपने ठीक पीछे किसी की आहट सुनी, तो उसने सोचा कि ये रोहन ही होगा, और उसने I Love You कहते हुए पलट कर उसे गले लगा लिया। जैसे ही वेद ने उसे गले लगाया, उसे फौरन इल्म हुआ कि ये रोहन नही है और वो तुरंत ही पीछे हट गया। वेद ने जिसे I Love You कहकर गले लगाया था, वो कोई और नही वेदिका ही थी। वेदिका के वेद के मुँह से खुद के लिए I Love You सुनना तो जैसे सातवे आसमान पर पहुंचने के बराबर था। वेदिका की तो अब खुशी का कोई ठिकाना ही नही था। और वेदिका ने भी वक़्त ना गंवाते हुए फौरन ही वेद को I Love You Too कहते हुए उसके होंठों पर किस कर दिया और वेद को अपने गले से भी लगा लिया। और ये सब होते हुए, रोहन ने अपनी आँखों से देख भी लिया। रोहन को वहां देख कर वेद ने तुरंत ही खुद को वेदिका से दूर किया और रोहन के पास उसे समझाने के लिए पहुंचा।


वेद :- "रोहन ऐसा कुछ भी नही है जैसा यहाँ दिख रहा है।"


वेदिका :- (वेद और रोहन के पास आते हुए) "रोहन से डरने की कोई जरूरत नही वेद, इसे तो पहले से पता है कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। और ये हर बार यही कहता था कि तुम मुझसे प्यार नही करते, अब अच्छा हुआ कि इसने अपनी आँखों से देख लिया।"


वेद :- "ऐसा नहीं है वेदिका, मुझे लगा कि वहां......"



        लेकिन वेद कुछ कहने की वजाय खामोश हो गया। और वेद की उस खामोशी ने जहां रोहन के दिल को एक गहरा दर्द तो दिया ही, साथ ही साथ वेदिका के दिल मे वेद के लिए प्यार को गहरा भी कर दिया। रोहन वहां से बिना कुछ कहे, अपनी आँखों से निकलते आँसुओ को थामे अपने घर वापस लौट आया। और कुछ ही देर बाद वेद भी उसे मनाने उसके घर आ पहुंचा।



वेद :- "यार प्लीज रोहू, मुझे गलत मत समझ, मैं सिर्फ तुझसे ही प्यार करता हूँ, और वहां भी मुझे लगा कि तू ही है मेरे पीछे इसलिए मैंने I Love You बोला था। मैंने वेदिका के लिए नही कहा था।"


रोहन :- (आँखों मे आँसू लिए) "बात वेदिका की या मुझे तुम पर भरोसे की है ही नही वेद।"


वेद :- "तो फिर तू क्यों यहां आ गया और यहां बैठ कर आँसू बहा रहा है??"


रोहन :- "तुमने वेदिका को क्यों नही बोला कि तुम मुझे I Love You कहना चाहते थे???  क्या तुम्हें मुझसे शर्मिंदगी होती है??"


वेद :- "नहीं यार ऐसा कुछ भी नही है, वो तो मैं बस इसलिए चुप हो गया था, की अगर मैं वेदिका को अपने बारे में बता देता तो वो सब जगह ढिंढोरा पीट देती, और फिर उसके बाद कि सिचुएशन हम दोनों के लिए बिल्कुल भी अच्छी नही होती। तू जनता है रोहू, हमें अभी कुछ और समय सबसे छुप कर ही रहना होगा, वही हमारे लिए सही रहेगा। समय आनेपर मैं खुद सबको हमारे बारे में बताऊंगा।"


रोहन :- "मैं जानता हूँ तुम्हे वेद, वो समय तुम्हारे हिसाब से कभी नही आएगा। तुम आज की तरह ही हर वक़्त खामोश रहोगे। और ये दर्द मेरा दिल बार बार नही सह पायेगा।"


वेद :- "ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा रोहू। (रोहन के सर पर हाथ रखकर) मैं तेरी क़सम खाता हूं रोहू,मैं समय आने पर सबको हमारे बारे में बताने से बिल्कुल पीछे नही हटूंगा।"



    ये दूसरी क़सम थी जो वेद ने खाई थी। अब उसने अपनी इस क़सम को पूरा किया या नही, ये तो आपको आगे की कहानी में पता लग ही जायेगा। लेकिन उस दिन के बाद से रोहन और वेद के बीच मे थोड़ी सी दूरियां आ गयी थी, जो दोनों कबूलना नही चाहते थे। एक तो अब वेद कॉलेज में आ चुका था, तो उसकी समय सारणी बिल्कुल बदल चुकी थी, और उस नए बदलाव का असर उन दोनों के रिश्ते पर भी पड़ रहा था। वहीं दूसरी ओर, वेदिका ने भी अब वेद के बारे में बाते कर कर के रोहन को परेशान कर रखा था। जिसकी वजह से रोहन भी अब वेद के बारे में कम ही सोचना पसंद करता था। और अपने आप को अपनी पढ़ाई में ही उलझाए रखता था। 12वीं के साथ साथ वो AIPMT की तैयारी भी कर रहा था, आखिर उसे भी तो वेद के साथ GRMC में अपना दाखिला करवाना था। इन सब के बीच मे, रोहन और वेद प्रत्येक रविवार को, सारा दिन साथ ही बिताया करते थे। कभी शहर में, कभी शहर के आस पास घूम फिर आया करते थे। दोनों का रिश्ता छोटे मोटे मनमुटावों के साथ अच्छे से फलफूल भी रहा था। लेकिन दोनों के रिश्ते में एक बड़ी उथल पुथल तब आयी, जब वेद की दादी की तबियत अचानक खराब हो गयी। और उन्होंने ज़िद पकड़ ली कि अब तो वो अपने पोते की बहू की शक्ल देखेंगी तभी इस दुनिया से मुक्ति लेंगी।



      वेद के लाख समझाने के बाद भी उसके घरवालों ने उसकी एक बात ना सुनी, बल्कि वेद को ही इस बात पर राज़ी करवालिया की अभी बस इंगेजमेंट कर लेते हैं, और शादी जब उसकी पढ़ाई और नौकरी हो जाएगी, उसके बाद ही करवाएंगे। जब रोहन तक ये बात पहुंची, तो उसके लिए तो ये सब किसी बड़े सदमे से कम नही था।



वेद :- "रोहू प्लीज मेरी बात समझने की कोशिश कर यार!!! मेरे पास कोई और रास्ता ही नही बचा था, मैं आखिर क्या करता?"


रोहन :- "तुम उन्हें हमारे बारे में बता सकते थे, तुम अपने बारे में बता सकते थे, लेकिन तुम किसी लड़की से शादी करने के लिए तैयार कैसे हो गए वेद???"


वेद :- "यार बात शादी तक नही पहुँचेगी प्लीज् मेरा भरोसा करो!!'


रोहन :- "कैसे करूँ तुम्हारा भरोसा??? कोई वजह तो हो तुम पर भरोसा करने की???"


वेद :- "रोहू मैं जानता हूँ कि इस वक़्त मैंने ही तेरा दिल दुखाया है, और मैं ही तुझे ख़ुद पर भरोसा करने के लिए भी बोल रहा हूँ। लेकिन तू बस अभी मेरे प्यार पर भरोसा करले और कुछ समय के लिए अपनी आँखें बंद करले। जैसे ही मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा, फिर तू जैसा कहेगा, मैं वैसा ही करूँगा। लेकिन अभी हम इस लायक नहीं है, की हम अपने घरवालों को अपने मन की बात बता सके। अभी के लिए जो मैं कर रहा हूँ, वही सही है।"


रोहन :- "और तुमने जो मुझे कसमें दीं थीं उनका क्या??"


वेद :- "मैं अपनी कोई क़सम नहीं तोड़ रहा हूँ रोहू, मैं तुझसे ही प्यार करता हूँ और हमेशा तुझसे ही करता रहूंगा। और मैं समय आने पर अपने रिश्ते के बारे में सबको खुद ही बता भी दूंगा। और ये इंगेजमेंट तो बस एक दिखावे के लिए है, इससे ज्यादा कुछ नही।"



      वेद ने अभी तो रोहन को समझा दिया था, और वेद से बात करके रोहन का भी कुछ मन हल्का हो गया था। लेकिन शायद ये तूफान के आने से पहले वाली शांति महज़ थी। समय दोनों के ही जीवन मे जो बदलाव लाने वाला था, इसका अंदाजा दोनों को ही नही था। जिस बदलाव की नींव, वेद की दादी की ज़िद से पड़ चुकी थी, उस नींव को मजबूत किआ, इंगेजमेंट रिंग की खरीददारी ने। रोहन के बार बार मना करने के बाद भी वेद उसे अपने साथ जबरदस्ती सराफा बाज़ार ले ही आया, इंगेजमेंट रिंग खरीदने के लिए। वहां पहले से ही वेद की मम्मी और वेदिका मौजूद थी। जब रोहन ने वेदिका के वहां उपस्थित होने का कारण वेद से पूछा। तब उसे मालूम हुआ कि वेदिका  ही वो लड़की है जिससे वेद की इंगेजमेंट तय की गई है। और वेद की मम्मी की बाते सुनकर तो जैसे रोहन के तन बदन में आग ही लग गयी थी।


वेद की मम्मी :- "हमे तो अपने वेद की पसंद पर बहुत नाज़ है, वरना इतनी जल्दबाज़ी में हम पता नही वेद के लिए कोई अच्छी लड़की ढूंड भी पाते या नही। वो तो अच्छा हुआ कि वेद ने अपने मन की बात हमें बताई, और फिर वेद की पसंद हमें कैसे पसंद ना आती।"



      ये सब सुनकर जहां वेदिका शर्म से लाल हुई जा रही थी, और वेद रोहन को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहा था, और वहीं रोहन का ये सब सुनकर इतना बुरा हाल था, की उसका मन तो कर रहा था कि वो वेद और वेदिका दोनों के बाल ही नोच डाले। खैर  फिर सभी ने अँगूठी देखना शुरू किया। और वहीं वेद ने धीरे से एक पतली सी अँगूठी उठाई, और चुपके से रोहन की और बड़ाई। लेकिन रोहन तो अभी भी वेद की मम्मी की बातों से आग बबूला हुआ बैठा था, तो उसने वेद का हाँथ झटक दिया। वेद समझ गया था कि रोहन फिरसे थोड़ा सा गुस्सा है। इस बार उसने रोहन का हाँथ का पकड़ा और उसकी बाएं हाँथ की अनामिका में वह अँगूठी पहना दी और धीरे से उसके कान में कहा।


वेद :- "मम्मी की बात को ज्यादा दिल पर मत लो, अगर मैं इन लोगों को वेदिका के बारे में नही बताता तो ये लोग पता नहीं किसे ढूढ़ कर ले आते। और वेदिका को तो मैं बचपन से जनता हूँ, तो उसे समझाना मेरे लिए ज्यादा आसान होगा, बस इसलिए मैंने उसका नाम इन लोगों को बता दिया। अब करने दो इन लोगों को अपने मन का, मुझे तो जिसे अँगूठी पहनानी थी, उसे पहना दी।"


    अपनी बात पूरी करके वेद ने चुपके से ही रोहन के अँगूठी पहनाए वाले हाँथ को चूम भी लिया। वेद की इस हरकत ने जहां रोहन के चेहरे पर एक मुस्कान ला दी थी, वहीं वेद की मम्मी ने भी ये सब होते देख लिया था। और बस यही वो अंश था, जो रोहन और वेद के जीवन के बदलते समय रूपी हवन में आखिरी आहुति का काम करने वाला था। कुछ देर बाद ही अँगूठी की खरीददारी के बाद, वेद की मम्मी ने वेद और वेदिका को इंगेजमेंट के कपड़े खरीदने के लिए साथ मे भेज दिया, और ख़ुद रोहन को लेकर वापस घर लौट आईं। उन्होंने घर वापस आकर, रोहन के मम्मी पापा को घर के बाहर बुलाया, और भरे मोहल्ले में उनको खरी खोटी सुनाना शुरू कर दिया। जब रोहन के घरवालों ने उनसे इस बदतमीज़ी का कारण जानने की कोशिश की तो उन्होंने उनलोगों की और बेज्जती करना शुरू कर दी।


वेद की मम्मी :- "अरे तुम छोटी जाती वालों की आदत को अच्छे से जानती हूँ मैं, पहले तो ये सब काम अपने घर की लड़कियों से करवाते थे तुम लोग, अब लड़कों से भी करवाने शुरू कर दिए। तुमने अपने लड़के को यही सीखा पड़ा कर भेजा था मेरे घर, की मेरे घर के इकलौते बेटे को फंसा सको। उसे लूट सको। तो देखो शुरुआत करदी है तुम्हारे लड़के ने। आज ये अँगूठी लूटी है मेरे बेटे से कल को ना जाने क्या क्या लूटोगे।"


रोहन की मम्मी :- "बहनजी आपसे कोई गलतफहमी हो गयी होगी, दोनों बच्चे बचपन से साथ खेलते आये हैं, हम वेद को अपने बच्चे जैसा ही मानते है।"


वेद की मम्मी :- (रोहन का हाँथ पकड़ के खिंचते हुए) "तू बताएगा या मैं बताऊं तेरी माँ को तेरी करतूतें। जितना तुम लोग दिखावा कर रहे हो ना, इतने शरीफ़ हो नहीं तुम लोग। घिन आ रही मुझे तो ये सोचते हुए भी की ये सब काम तुम अपने लड़के से करवा रही हो।"


रोहन :- (आँखों मे आँसू लिए) "आँटी आप गलत समझ रही हैं। ये अँगूठी वेद ने खुद पहनाई है मुझे।"


वेद की मम्मी :- (रोहन के गाल पर तमाचा मारते हुए) "मुझे तो सब पता है, अपने माँ बाप को बता की क्यों पहनाई है उसने तुझे ये अँगूठी।"


रोहन :- (रोते हुए) "मैं और वेद प्यार करते हैं एक दूसरे से।"


वेद की मम्मी :- (रोहन को मारते हुए) "सुन लिया अपने लाडले के मुँह से, अब ये नया तरीका निकाला है अमीर घर के लड़कों को फसाने का तुम लोगों ने। (रोहन के मम्मी पापा को उंगली दिखाते हुए) अगर मेरे बेटे की शादी में या उसकी इंगेजमेंट या उसके जीवन मे तुम्हारे इस लड़के का साया भी पड़ा ना, तो कहां गायब करवाउंगी इसे, सारी उम्र नहीं खोज पाओगे। इसलिए अच्छा होगा कि इसे लेके खुद ही यहां से चले जाओ। तुम जैसे नीच लोगों की इस शरीफ़ मोहल्ले में रहने की जगह भी नही है। (उन्होंने रोहन के हाँथ से वो अँगूठी उतारी और उसे धक्का देकर वहां से चली गईं।)"



    वेद की मम्मी द्वारा की गई इस बेज्जती का रोहन के मम्मी पापा पर बहुत ही गहरा असर पड़ा था। वो लोग ज्यादा पैसे वाले तो नही थे, लेकिन अपनी मेहनत के बल पर पुरानी बस्ती के छोटे से घर को छोड़कर, इस कॉलोनी में घर खरीदा था। चैन और इज्जत के साथ अपनी बसर कर रहे थे, और बस अपने बेटे को शान से शहर का एक अच्छा डॉक्टर बनता देखना उनका एक सपना मात्र था। लेकिन आज की इस घटना ने उस सपने तक चलने को तो छोड़ो, सहारे की इज्ज़त की बैसाखी को भी तोड़ दिया था। रोहन की मम्मी रोहन को घर के अंदर लेकर गईं और उससे पूछा।


रोहन की मम्मी :- "ये सब क्या सुनने को मिला हमे रोहन??"


रोहन :- (रोते हुए) "I am sorry मम्मी, लेकिन मैं और वेद सच मे एक दूसरे से प्यार करते हैं।"


रोहन की मम्मी :- "कैसा प्यार रोहन??? तुम दोनों लड़के हो??"


रोहन :- "मम्मी हम दोनों गे हैं। और काफी समय पहले से एक दूसरे को चाहते हैं।"


रोहन की मम्मी :- "वो अपनी पसंद की लड़की से शादी करने जा रहा है। और तुम उसे गे कह रहे हो?"


रोहन :- "नहीं मम्मी वो तो बस दिखावा कर रहा है, वो मुझसे ही प्यार करता है।"


रोहन की मम्मी :- (अपने माथे पर हाथ पीटते हुए) "उसकी शादी दिखावा है, और उसकी मम्मी ने जो अभी सारे मोहल्ले के सामने हमारी नाक काट दी वो क्या है फिर???"


रोहन :- "मम्मी मुझे एक मौका दो, मैं अभी वेद से बात करके सब सही करने की कोशिश करता हूँ।"


रोहन की मम्मी :- (रोहन को रोकते हुए) "कहीं जाने की जरूरत नहीं है अब तुम्हें। जितनी हमारी शान बढ़ानी थी तुम बड़ा चुके हो। अब उस वेद के पीछे जाकर उसकी माँ को फिरसे मौका देने की कोई जरूरत नही, की वो फिरसे सबके सामने हमे जलील करे। (रोहन के पापा से बोलते हुए) आप आज ही इंतेज़ाम कीजिये की हम अपने पुराने घर जा सके, अब इन मोहल्ले वालों से नज़रें ना मिलाई जाएंगी हमसे।"


रोहन :- "मम्मी प्लीज् मेरा विश्वास करो, वेद आँटी को समझाएगा, वो खुद आकर आपसे माफ़ी मांगेगी।"


रोहन के पापा :- (रोहन के आँसू पोंछते हुए) "बेटा जो लड़का अपने घरवालों को अपने प्यार के बारे में नही बता सकता, गे होकर भी एक लड़की से शादी करने को तैयार हो गया, तुझे लगता है कि वो अपने घरवालों से तेरे लिए लड़ेगा???"


रोहन :- "नहीं पापा, मुझे वेद पर भरोसा है, वो मेरा साथ कभी नही छोड़ेगा। (अपनी मम्मी के हाँथों को पकड़ते हुए) मम्मी उसने भगवान के सामने मेरे सर पर हाँथ रख कर क़सम खाई की वो हमेशा मुझसे प्यार करेगा।"


रोहन की मम्मी :- "तुम लोग अभी बच्चे हो रोहन, और ये सब तुम लोगों का बचपना। लेकिन जो आज हमारे साथ हुआ है, वो कोई बचपना नही है जिसे हम भुला दें। इस अपमान के साथ जीने से अच्छा तो हम मर जाए।"


रोहन :- (अपनी मम्मी के आँसू पोंछते हुए) "नहीं मम्मी ऐसी बातें मत कीजिये। देखिएगा जब वेद को ये सब पता चलेगा तो वो सब ठीक कर देगा।"


रोहन की मम्मी :- "रोहन क्या तू बस मेरी एक बात मानेगा??? उस वेद से दूर रह बस।"


रोहन :- "मम्मी मैं उससे प्यार करता हूँ, और आज से नहीं, जबसे मैंने होश संभाला है बस उसी को चाहता हूँ, मैं उसके बगैर नही रह सकता। आप मेरा विश्वास करो, मैं एक बार वेद से बात करलूँ, फिर वो खुद ये सब सही कर देगा।"


रोहन की मम्मी :- "तू कब समझेगा, अगर वो तुझसे प्यार करता, तो जैसे तू बिना हिचके अपने प्यार के बारे में बता रहा है, वो भी बताता। लेकिन उसने एक लड़की से शादी करना चुना है तुझे नही।"


रोहन :- "मम्मी वो तो बस उसका दिखावा है, इसीलिए तो उसने मुझे आज ही वो अँगूठी पहनाई थी....."


रोहन की मम्मी :- (रोहन को बीच मे रोकते हुए) "बस..... मुझे कुछ और नही सुनना। तुझे मेरी क़सम है जो तूने आजके बाद वेद के पास जाने के बारे में सोचा भी। अगर मैंने तुझे उसके साथ देख लिया ना, तो तू मेरा मरा मुँह देखेगा।"



      अब किसी के लिए भी प्यार की क़सम के आगे उसकी माँ की दी क़सम की ही जगह होगी। और वही हमारे रोहन के साथ भी हुआ। उसने भी अपनी माँ की दी क़सम को ही मानना जरूरी समझा। और बिना वेद से मिले वो मोहल्ला और फिर कुछ दिनों बाद वो शहर भी छोड़ दिया। और फिर कभी उसने ग्वालियर शहर की ओर पलट कर नही देखा। ना ही कभी वेद के बारे में जानने की कोशिश की। वेद को जब इस सब के बारे में पता चला तो पहले तो उसे अपनी मम्मी पर ही गुस्सा आता रहा, और वो अपनी मम्मी को ही रोहन से दूर होने का कसूरवार मानता रहा। और बहुत कोशिशों के बाद, रोहन और उसके परिवार का पुराना पता खोज निकाला, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रोहन अब वो पुराना घर भी छोड़ कर जा चुका था, और वेद की कई मिन्नतों का असर, रोहन के मम्मी पापा पर बिल्कुल भी नहीं पड़ा, और उनलोगों ने रोहन की जानकारी कभी भी वेद को नही लगने दी। धीरे धीरे समय गुजरने के साथ अब वेद रोहन से जुदा होने की वज़ह को अपनी मम्मी के साथ साथ, रोहन को भी मानने लगा, की रोहन ने उसके प्यार पर भरोसे की वजह उससे दूर हो जाने को ही सही माना। यही वो महज़ एक क़सम थी जिसने दो प्यार करने वालों को एक दूसरे से दूर तो किआ था, लेकिन कोई भी क़सम किसी के लिए पनपे प्यार को कैसे खत्म कर सकती है। जैसा कि वेद के पास से मिले, रोहन के द्वारा दिये गए पर्स, और उस अँगूठी ने साफ साफ दिखा दिया था, की भले ही अब वेद रोहन से दूर है, भले ही वो रोहन को भी इस जुदाई के लिए कसूरवार मानता है, लेकिन उसका रोहन के लिए प्यार इन सब से कहीं ऊपर भी है, और किसी क़सम का मौहताज भी नहीं है।



     अब उधर मुम्बई में वेद के मम्मी पापा, वेदिका और दिव्यांश उस हॉस्पिटल में पहुंच चुके थे, जहाँ सभी वेद के ऑपरेशन के बाद होश में आने का इंतज़ार कर रहे थे। वेद अभी भी ICU में ही डॉक्टरों की निगरानी में था, और कुछ ही समय बाद उसे होश भी आने लगा।



ICU नर्स :- "वेद सारस्वत को होश आया गया है, आप में से कोई एक अभी मेरे साथ चल कर उनसे मिल सकता है।"


वेदिका :- "माँ आप जाइए, पहले आप मिल आइए, फिर हम लोग चले जायेंगे।"


ICU नर्स :- "वो किसी रोहू का नाम ले रहे थे नींद में, तो अगर पहले रोहू उनसे मिलले तो ज्यादा अच्छा रहेगा, बाकी आपकी मर्जी।"


वेदिका :- "आपने कुछ गलत सुना होगा, रोहू तो उनके परिवार में किसी का भी नाम नहीं है। माँ आप ही जाइए।"



      वेद की माँ जब वेद को देखने पहुँची, तो अपने इकलौते बेटे को यूँ पट्टियों में, इतनी सारी मशीनों के साथ लेटा हुआ देख पाना, उनके लिए बहुत ही कठिन था। और वो भी तब, जब 2 सालों से उनका वही बेटा, ना जाने किस बात पर नाराज़ होकर उनकी आँखों से दूर चला गया था। जिसके वापस लौट आने की उन्होंने कई मन्नतें भी मानी थी, और कई देवी देवताओं की भी पूजा अर्चना की थी, लेकिन उसी बेटे को इस तरह से वापस पाने पर उन्हें खुशी भी थी, और दुख भी। जब वे वेद के नज़दीक पहुँची तो उन्होंने ने भी वेद की मुँह से बार बार आती एक आवाज़ को गौर से सुना.... "रोहू...." "रोहू...." "रोहू..." उनके लिए ये अंदाजा लगाना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि कहीं ये रोहू वही रोहन तो नहीं। जिसको सालों पहले उन्होंने वेद की ज़िंदगी से बाहर निकाल फेंका था, और कहीं यही तो वो कारण नहीं, जिसकी वजह से उनका अपना बेटा 2 सालों से अपने ही घर से गायब था। इन्हीं सब अंदाजों के बीच वेद की मम्मी के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी, जब वेद ने अपनी आँखें खोली। वेद ने इधर उधर देखा और बोलने लगा।


वेद :- (बिस्तर से उठने की नाकाम कोशिश करते हुए) "रोहू..... रोहू..... रोहू....."


वेद की मम्मी :- (वेद को बिस्तर पर लिटाते हुए) "नहीं है रोहन यहां बेटा, देख मैं हूँ, तेरी मम्मी!!"


वेद :- "नहीं मम्मी मैने देखा है उसे, वही था। आखिरकार मुझे मिल गया वो। (अपनी मम्मी को देखते हुए, फिर अपने आस पास, अपने हाँथ, पैरों, और सर पर बंधी पट्टी को छूते हुए) आप यहां कैसे आयी, और ये सब क्या है???"


वेद की मम्मी :- "तेरा एक्सीडेंट हुआ था बेटा, और तेरा एक छोटा सा ओपरेशन भी हुआ है। तुझे अभी आराम करना चाहिए, हम बाद में करेंगे ये सब बातें। सबसे पहले तेरा ठीक होना जरूरी है ना।"


वेद :- (कुछ सोचते हुए) "एक्सीडेंट!!!! हाँ मुझे याद है, रोहू ने ही मुझे गाड़ी से निकाला था। कहाँ है वो!!! रोहू..... रोहू..... रोहू.... (चिल्लाते हुए)"


ICU नर्स :- (वेद को चिल्लाता देख वहां आते हुए) "मैंने आपसे कहा था ना कि पहले रोहू को ही भेजिए इनके पास। (वेद को संभालते हुए) सर आप लेट जाइए और चिल्लाईये नहीं, आपको अभी आराम की जरूरत है।"


वेद :- (नर्स की बात सुनकर) "रोहू बाहर है क्या नर्स??? आप उसे भेजिए ना मेरे पास!! मुझे पता है वो बाहर ही होगा, उसने ही तो मुझे एक्सीडेंट के बाद गाड़ी से निकाला था। आप भेजिए ना उसे।"


ICU नर्स :- "सर अभी तो ऐसा कोई व्यक्ति बाहर नहीं है, मैं कोशिश करती हूं उन्हें ढूढने की, तब तक आप आराम कीजिये। माताजी अब आप भी बाहर आ जाइये, इन्हें आराम करने दीजिए। 



     नर्स वेद की मम्मी को वहां से बाहर ले जाती है। और वेद की मम्मी की आँखों मे आँसू के साथ साथ चेहरे पर एक मायूसी भी होती है। वो वेद की रोहन के लिए ऐसी तड़प को देखकर अचंभित भी थीं, और खुद पर खुद ही के द्वारा लिए गए फैसले के लिए आक्रोशित भी। वेद की रोहन को देखने की ये ललक उन्हें ये जताने के लिए काफी थी, की उन्होंने जो रोहन और उसके परिवार के साथ इतने सालों पहले किआ, वही फैसला उनके बेटे की 2 सालों से घर से गायब होने की वजह बना था। अब उनके सामने वेद के पिछले कुछ सालों के रूखे व्यहवार का कारण एक दम साफ था। क्यों वेद कुछ सालोँ से इतना उखड़ा हुआ, इतना बेचैन, इतना परेशान रहता था। इसकी वजह बस रोहन का उससे दूर होना ही था। और उसी दूरी से व्यथित होकर, 2 सालों से वेद ने ग्वालियर शहर भी छोड़ दिया था। अब वेद की मम्मी को रोहन की उस दिन की कही बात साफ साफ सुनाई दे रही थी, "हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। हम एक दूसरे के बिना नहीं रह पाएंगे।" अब वेद की हालत देख कर उन्हें खुद पर शर्म भी आ रही थी और गुस्सा भी। एक माँ होते हुए, अपने इकलौते बेटे को खुशियों से भरा संसार देने के वजह, उन्होंने अपने ही बेटे के जीवन मे ये वियोग लिख दिया था। जब वे ICU के बाहर आई, तो वेद के पापा ने उनसे पूछा कि "वेद ठीक तो है ना??" तो वे उनके गले लगकर फुट फुट कर रोने लगीं।


वेद की मम्मी :- "इस सब की वजह मैं हूँ सारस्वत जी! मैंने ही सब जानते बूझते हुए उन दोनों को अलग कर दिया था। मैंने ही सब देखते हुए अपनी आँखें बंद करलीं थीं। और अपने बेटे को ना समझने की गलती मैंने कि, और इसका दोष मैने रोहन पर लगा कर, उन दोनों को अलग कर दिया। दोनों को जुदा करने का पाप मैंने ही किआ है सारस्वत जी!!! उसकी सज़ा भी मुझे मिल रही है। 2 सालों से मेरा बेटा मुझसे दूर है, और जब आज वो मुझसे मिला है, तो वो मेरी शक्ल तक नही देखना चाहता। मैं एक बुरी माँ साबित हो गयी आज सारस्वत जी!! मुझसे गलती हो गयी।"



     वेद की मम्मी को रोता देख, और उनकी बातें सुन, वेदिका को भी अब कुछ कुछ पुरानी यादें आने लगीं थीं। की क्यों रोहन और वेद हमेशा साथ ही रहा करते थे, क्यों रोहन हमेशा यही कहा करता था कि वेद उससे प्यार नही करता, क्यों वेद ने बस एक बार I Love You कहने के बाद दोबारा कभी भी अपने प्यार का इज़हार नहीं किया, क्यों वेद रोहन के चले जाने के बाद से ही उदास और मायूस सा रहता था, और क्यों वेद पिछले 2 सालों से ग्वालियर शहर से दूर था। अब वेदिका को भी अपने कई सवालों के जवाब मिल चुके थे। तभी वहां हॉस्पिटल स्टाफ़ का एक आदमी आया, और उनमें से किसी एक को कैश काउंटर पर जाकर कुछ जरूरी कागज पर दस्तखत करने और कुछ जरूरी पैसे जमा करने को बोलकर चला गया। वेद के मम्मी पापा की हालत को देखते हुए, वेदिका और दिव्यांश कैश काउंटर की ओर चले गए। वहां जाकर, वेदिका ने बतौर वेद की मँगेतर, सभी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए, और हॉस्पिटल स्टाफ़ द्वारा बताए गए रुपये भी वहां जमा किये। जब वे लोग वहां से वापस जाने लगे, तो वहां के स्टाफ़ ने वेदिका को वो सभी सामान लौटाया जो वेद के साथ ही इस हॉस्पिटल में आया था। वेदिका ने सभी सामान को देखा, और वो पर्स और एक अँगूठी जो हमेशा वेद अपने पास ही रखता था, वेदिका वो देखकर पहचान गयी कि ये सब वेद का ही सामान है। वेदिका ने लेकिन जब उस पर्स को खोला तो उसमें हमेशा से लगी एक तस्वीर ग़ायब थी। और जितना वेदिका वेद को समझ पाई थी, तो उसके लिए वो तस्वीर बहुत ही ज्यादा ख़ास थी, और अब वो उस तस्वीर के इतने ख़ास होने की वजह भी जान चुकी थी। उसने तुरंत ही उस स्टाफ़ से उस गायब तस्वीर के बारे में पूछा, तो स्टाफ़ की तरफ से उसे यही जवाब मिला कि मरीज के साथ उन्हें बस यही सामान मिला था। तभी वेदिका की नज़र वहां लगे स्टाफ ड्यूटी बोर्ड पर गयी, और वो समझ चुकी थी कि अब उसे क्या करना है। उसने वो सभी सामान दिव्यांश को थमाया, और उसे वेद के मम्मी पापा के पास जाने को कहा। और खुद चल दी जनरल वार्ड 5 की ओर, जहां आज इंचार्ज डॉक्टर रोहन परसेडिया था, जैसा कि उसने स्टाफ़ ड्यूटी बोर्ड पर पड़ा था। जब वो उस जनरल वार्ड में पहुँची तो उसका अंदाजा एक दम सही निकला,  ये वही रोहन, वेद का रोहू ही था, जिसकी वजह से ये सब वेदिका को सहना पड़ रहा था। रोहन ने जब वेदिका को अपने सामने देखा, तो उसे समझ ही नही आ रहा था कि वह कैसी प्रतिक्रिया दे, लेकिन रोहन को कुछ कहने की जरूरत ही नही पड़ी, और वेदिका ने आगे बड़ कर, रोहन को एक जोर से थप्पड़ उसके गाल पर दे मारा।



वेदिका :- (गुस्से में) "वेद से पहले तू मेरा दोस्त था रोहन, मैने तुझे अपना सबसे अच्छा दोस्त माना था, मैंने तुझे अपने मन की हर वो बात बताई थी, जो मैंने अपने मम्मी पापा भाई तक को नही बताई कभी। और तूने ऐसा किआ मेरे साथ।"


रोहन :- (आँखों में आँसू लिए, और अपने गाल पर हाँथ रखे हुए) "मैं क्या बोलता तुझे वेदिका???"


वेदिका :- "यही की तुम और वेद प्यार करते हो एक दूसरे से, और मैं तुम दोनों के बीच आ रही हूँ। तूने मुझे कुछ कहे बिना ही ग्वालियर और वेद को भी छोड़ दिया। तुझे कम से कम एक बार वेद के बारे में तो सोचना चाहिए था ना, वो कैसे रहा है इतने सालों तेरे बिना रोहन। तूने किसी का नहीं, लेकिन वेद का ही दिल तोड़ दिया है। देख उसकी हालत चल कर वो आज भी बस तेरा ही नाम पुकार रहा है, उसे बस तुझसे ही मिलना है। (रोहन का हाँथ पकड़ कर खिंचते हुए) तू चल मेरे साथ अभी बस।"


रोहन :- (वेदिका को रोकते हुए) "मैं नहीं जा सकता वेदिका उसके पास।"


वेदिका :- (रोहन की ओर देखते हुए) "क्यों???? क्यों नहीं जा सकता तू??? क्या हुआ है ऐसा तुम दोनों के बीच जो सालों से तू घर वापस नहीं आया, और पिछले 2 सालों से वेद भी ग्वालियर से दूर है। आखिर क्या चल रहा है तुम दोनों के बीच ये सब??"


रोहन :- (आँखों में आँसू लिए) "क्या बताऊँ मैं तुझे वेदिका, जब वेद की मम्मी ने सभी के सामने मेरे और वेद के रिश्ते पर सवाल उठाए, और मेरे मम्मी पापा की बेज्जती की, तो मेरी मम्मी ने मुझे वेद से दूर रहने की क़सम दी थी, अब मैं अपनी मम्मी की क़सम कैसे तोड़ू।"


वेदिका :- "क़सम!!! बस एक क़सम के लिए तूने वेद को छोड़ दिया?? अपने प्यार को छोड़ दिया?? अपना शहर, अपनी सारी खुशियां छोड़ दीं??? तू ये कैसे कर सकता है रोहन? वेद वहां तड़प रहा है तेरे लिए।"


रोहन :- "मैं नहीं जा सकता वेदिका!!!"


वेदिका :- (गुस्से से) "ठीक है, तू अपनी क़सम निभा, मैं वेद को संभालती हूँ।"



     इतना कह कर वेदिका गुस्से से वहां से चली जाती है। और रोहन बस रोते हुए, अपनी माँ के द्वारा दी गयी क़सम को याद करके, रोते बिलखते वेदिका को वहां से जाते हुए देखता रह जाता है। कुछ देर बाद उससे रहा नहीं जाता, और वो वेद के ICU इंचार्ज को फ़ोन करके वेद का हाल जनता है। तो ICU इंचार्ज उसे बताता है कि, वेद बहुत बेचैन है, और बार बार किसी रोहू को बुला रहा है, अगर वो शांत नहीं हुआ तो उन्हें उसे नींद का इंजेक्शन देना ही होगा, नहीं तो वेद अपनी तबियत और ख़राब कर लेगा। रोहन फ़ोन पर ये सब सुनकर फिरसे रोने लगता है, और तभी वेदिका फिरसे उसके पास आती है, और उसे अपना फ़ोन पकड़ा कर, फ़ोन पर किसी से बात करने को कहती है। रोहन अपने आँसू पोंछ कर फोन को अपने कान से लगाकर हेलो बोलता है, और सामने से उसे अपनी ही मम्मी की आवाज सुनाई देती है।



रोहन की मम्मी :- (बुझी आवाज़ में) "बेटा मैंने अभी वेद की मम्मी से बात की, कैसी तबियत है अब उसकी??? और मुझे वेदिका ने भी बताया कि तू वेद से मिलने भी नही जा रहा है???"


रोहन :- (अपनी आवाज को संभालते हुए) "हाँ मम्मी वो मुझे थोड़ा काम ज्यादा है ना तो समय नहीं मिल पा रहा।"


रोहन की मम्मी :- "बेटा मैं तुझे अच्छे से जानती हूँ, तू ऐसा सिर्फ मेरी वजह से नही कर पा रहा है, वरना तू अंदर से इस समय कितना बिखरा हुआ है, ये मैं तेरी नक़ली आवाज से ही भांम्प गई हूँ। मैं जानती हूँ कि इन सब मे तुम दोनों बच्चों की कोई गलती नहीं थी। लेकिन हमारे लिए फैसलों का सबसे ज्यादा बुरा असर तुम दोनों पर ही पड़ा है। आज मुझे जब वेदिका ने समझाया और जब मैंने वेद की मम्मी से बात की, तब मुझे इस बात का एहसास हुआ, की हम दोनों माँओ की गलती की सज़ा तुम दोनों बच्चे भुगत रहे हो....."


रोहन :- (रूआंसी आवाज़ में) "नहीं मम्मी, इसमें आपकी कोई गलती नहीं।"


रोहन की मम्मी :- "मुझे मत टोक बेटा आज बोलने से, ये हमारी ही गलती है, जो तुम दोनों बच्चे आज दुखी हो। बेटा!!! आज मैं तुझे अपनी दी हर क़सम से मुक्त करती हूँ। तू जा अपने वेद के पास, और सम्भालले अपने प्यार को। और मेरा आशीर्वाद तुम दोनों बच्चों के साथ है। तुम दोनों हमेशा खुश रहो, और जल्द ही अपने घर वापस आ जाओ।"



     अपनी मम्मी की बात सुनते ही रोहन तुरंत भाग पड़ा ICU की ओर, जहां उसका वेद उसका इंतेज़ार कर रहा था। और ICU के बाहर उसे पहले मिले वेद के मम्मी पापा। उन्हें देखकर रोहन के पैर खुदबखुद ही रुक गए।



वेद की मम्मी :- (भागकर रोहन को गले से लगाकर) "रोहन!!! वेद तेरा ही इंतेज़ार कर रहा है बेटा। मुझे माफ़ करदे बेटा, मैंने तेरी एक ना सुनी, और तुम दोनों को अलग कर दिया। मुझे माफ़ कर दे बेटा।"



     रोहन ने वेद की मम्मी की आँखों से बहते आँसुओ को पोंछा और आगे बड़ते हुए ICU में दाख़िल हुआ। वेद ने जैसे ही रोहन को अपने सामने देखा तो वो अपने बिस्तर से उठने लगा। रोहन आगे बड़ कर उसे बिस्तर से उठने से रोका और वेद को अपने गले से लगा लिया। वेद ने भी रोहन को अपनी बाहों में भर लिया। आँखों से आँसू और चेहरे पर मुस्कान लिए दोनों ही बहुत देर तक बिना कुछ बोले बस एक दूसरे के गले से लगे रहे। 


रोहन :- (वेद के गले लगे हुए ही) "अब तो वो पर्स बदल लो, फट गया है अब तो वो।"


वेद :- (मुस्कुराकर और जोर से रोहन को अपनी बाहों में जकड़ते हुए) "तो ला देना नया।"


रोहन :- (वेद की बाहों से अलग होते हुए) "वैसे एक बात बताओ, वहां उस दिन रोड पर तो ऐसा कुछ नहीं था कि तुम्हारा एक्सीडेंट हो जाये, तो क्या गाड़ी के ब्रेक फैल हो गए थे???"


वेद :- "जिसे ढूढना ही मैंने पिछले 2 सालों से अपना लक्ष्य बना लिया था, मुझे वो दिख गया था। इसलिए मेरा खुदपर काबू ही नही रहा, और मेरी गाड़ी ने भी अपना आपा खो दिया, और ये एक्सीडेंट हो गया। लेकिन जो भी हो अच्छा हुआ, कम से कम इस एक्सीडेंट की वजह से ही तो तू मेरे पास तो आया।"


रोहन :- "वैसे मैं नहीं आता यहां, लेकिन तुम्हारी मँगेतर ने मुझे मजबूर कर दिया तुम्हारे पास आने पर!!"


वेद :- "मँगेतर!!! वेदिका भी आई है क्या???? यार वो अभी भी खुद को मेरी मँगेतर कहती है क्या??? पता है तेरे जाने के कुछ दिनों बाद ही दादी का देहांत हो गया था, और हमारी इंगेजमेंट फिर हो ही नही पाई। और उसके बाद मम्मी पापा ने कोशिश तो बहुत की मुझे मनाने की लेकिन मैंने फिर शादी करने के लिए साफ मना कर दिया था। और जब उनका शादी के लिए जोर देना ज्यादा ही शुरू हुआ, तो मैंने एक बार सोचा कि मैं उन्हें सब सच बता दूंगा, लेकिन तभी मुझे कहीं से तेरे बारे में पता चला कि तू अपना MBBS पूरा करने वाला है, तो बस मैं सभी MBBS कॉलेजेस में तुझे ढूढने निकल पड़ा, हाँ मुझे इसमें 2 सालों के समय जरूर लगा लेकिन मैंने तुझे ढूंड ही लिया। (रोहन का हाँथ पकड़ते हुए) अब एक काम कर, सभी को मेरे पास भेज, मुझे अपनी एक क़सम पूरी करनी है, और सभी को अपने रिश्ते की सच्चाई के बारे में बताना है।"


रोहन :- "नहीं!!! अब किसी को कुछ समझाने की जरूरत नही पड़ेगी, सबको सब कुछ समझ आ गया है अब।"



    दोनों के बीच मे कुछ सालों की दूरियां जरूर आई थीं, लेकिन तब ना तो उनका प्यार अधूरा रह गया था, और ना ही अब उनके दोबारा मिल जाने पर उनका प्यार पूरा हो जाएगा। प्यार तो बस प्यार होता है, जो हमेशा दो लोगों को बांधे रखता है, एक दूसरे का बनाये रखता है। चाहे जितने भी उतार चढ़ाव, कितनी भी क़समें आपके प्यार के रास्ते मे बाधा बनने की कोशिश करें, लेकिन अगर आपका प्यार सच्चा है, तो वेद और रोहन की तरह, वो प्यार की ताकत ही होगी जो आपको फिरसे एक दूसरे से मिलवा ही देगी। तो अगर आपकी ज़िंदगी मे भी कभी सच्चा प्यार दस्तक़ दे, तो आप ये सभी सोच के बारे में ध्यान ना दें, की आपका प्यार पूरा होगा या अधूरा रह जायेगा। आप बस सच्चे दिल से उस प्यार की इबादत करें, वो प्यार सभी परिस्थितियों को पार कर अपनी मंज़िल पा ही लेगा। 



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Lots of Love

Yuvraj ❤️


      



       


     










Saturday, January 23, 2021

क़सम - Part - II

 Thank-you friends for your appreciations. It realy feel good, when your work gets such applauds. Now here the second part of this story, hope you all like this as well.



       तो अभी तक आपने इस कहानी के आज के वक़्त के बारे में थोड़ा बहुत जाना है। तो चलिए अब आपको ले चलते हैं, उस बीते कल में, जहां रोहन की किस्मत को आज भी कई कसमों ने बाँध कर रखा हुआ है। ये बात है ग्वालियर के जवाहर कॉलोनी के परसेडिया और सारस्वत परिवार की। जो एक ही मोहल्ले में रहते हैं, घरों की दीवारें तो आपस मे नही जुड़ीं हैं। लेकिन उनके बच्चों रोहन परसेडिया और वेद सारस्वत ने दोनों परिवारों को आपस मे जोड़ कर रखा हुआ है। उम्र में यूं तो वेद रोहन से 1 साल बड़ा है, लेकिन बचपन से ही साथ मे खेल कूद, उठना बैठना, हंसना रोना दोनों का साथ ही होता है। और दोनों की इस गहरी दोस्ती के चलते, दोनों के परिवार भी आपस मे जुड़े हुए ही हैं। रोहन और वेद की दोस्ती में थोड़े बदलाव आने तब शुरू हुए, जब वेद की अच्छी पढ़ाई के लिए, सारस्वत परिवार ने उसे पुराने स्कूल से निकाल कर, शहर के अच्छे "दिल्ली पब्लिक स्कूल" में उसका दाखिला करवा दिया। रोहन ने भी वेद के साथ नए स्कूल में जाने की कई मिन्नते अपने घरवालों से की, लेकिन उनके घर से स्कूल की दूरी को देखते हुए, रोहन की उसके घरवालों के सामने एक ना चली। और ये नई दूरी, रोहन और वेद की दोस्ती के बीच भी आने लगी। धीरे धीरे दोनों का साथ मे मिलना और खेलना सिर्फ रविवार के दिन तक सिमट कर रह गया। और फिर धीरे धीरे बढ़ती कक्षाओं और बढ़ती पढ़ाई के दबाव में, वो रविवार भी अब कई हफ्तों में एक बार ही आने लगा। अब वेद के भी कई नए दोस्त बन चुके थे, जिनके लिए भी थोड़ा बहुत समय निकालना उसकी मजबूरी भी हो गया था, और उसको अच्छी लगने वाली आदत भी। वेद के नए स्कूल और उसके नए दोस्तों के बीच का माहौल, उस जवाहर कॉलोनी के मोहल्ले से बिल्कुल ही अलग था। उसके नए स्कूल में सभी सिर्फ अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग करते थे, और उसके नए दोस्तो का रहन सहन भी थोड़ा अलग और मॉडर्न ही था। 


      एक रोज़, वेद के जन्मदिन पर, उसके घरवालों ने एक छोटी सी बर्थडे पार्टी का आयोजन किया। जिसमें वेद के सभी नए दोस्तों को भी बुलाया गया था। और वेद का बचपन का दोस्त रोहन भी उस पार्टी में आमंत्रित था। रोहन द्वारा साथ लाये गए उसके छोटे से तोहफे, और उसके बोलने के लहज़े का, वेद के सभी दोस्तों ने बहुत मज़ाक बनाया, और रोहन को खूब चिढ़ाया भी। वेद के दोस्त की छोटी बहन, जो रोहन की हम उम्र ही थी, उसने सभी को रोहन का मजाक उड़ाने से रोका भी, लेकिन वहाँ सभी ने उसकी नाज़ुक सी आवाज़ को नज़रंदाज़ किआ। तभी वेद ने वहाँ आकर, सभी को चुप कराया, और रोहन की आँखों से बहते आँसुओ को पोंछा भी। 



वेद :- "I am sorry rohan!!! इन लोगो की बातों का बुरा मत मानना, ये लोग ऐसे ही है। पता है जब मैं पहली बार स्कूल गया था, तो मेरा भी सबने ऐसे ही मज़ाक बनाया था। और देखो आज ये सभी मेरे अच्छे दोस्त भी बन गए हैं।"


वेदिका :- "रो मत रोहन! मैं घर जा कर सबकी शिकायत करूंगी, और स्कूल में भी मैडम से शिकायत करके, इन सभी की डांट भी पडवाऊंगी।"


वेद :- "और तुम बिल्कुल भी मत सोचो इन लोगों के बारे में, अबसे तुम रोज़ मेरे घर आना, और मैं तुम्हें इंग्लिश बोलना सिखा दूंगा। फिर देखना, अगली बार जब तुम मेरे इन दोस्तों से मिलोगे, तो ये तुम्हे कुछ नही कह पाएंगे।"



      इस बर्थडे पार्टी ने रोहन की आँखों मे आँसू जरूर लाये थे, लेकिन उसे उसका पुराना, बचपन का दोस्त भी लौटा दिया था। अब रोज़ 1 - 2 घण्टे बाकी की पढ़ाई के साथ साथ वेद रोहन को अंग्रेजी बोलना भी सिखाया करता था। जो दोस्ती धीरे धीरे खत्म होती जा रही थी, उस एक घटना ने उस दोस्ती में फिर से जान फूंकने का काम कर दिया था। अब तो वेद के इस बर्ताव ने रोहन के मन मे एक अलग ही घर कर लिया था। अब तो हर वक़्त रोहन को बस वेद के इर्द गिर्द ही रहना अच्छा लगता था। जहाँ धीरे धीरे समय के साथ दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी, वहीं रोहन इस दोस्ती को अपनी ओर से एक कदम और आगे बड़ा चुका था। जिस कच्ची उम्र में बच्चों के दिल और दिमाग मे बस खेल कूद और मस्ती करने के ही ख्वाब छाए रहते थे। उस उम्र में रोहन के दिल मे प्यार का फूल खिलने लगा था। वो वेद को मन ही मन अपना सबकुछ मानने लगा था। अब वो बस वेद के ही ख्यालों में खोया रहता था। और वहीं वेद के लिए अभी भी इस रिश्ते का नाम बस दोस्ती ही था। रोहन के साथ किये बुरे व्यवहार के लिए वो अपने स्कूल के दोस्तों से भी अभी तक थोड़ा नाराज़ ही था। लेकिन उसके दिमाग मे अभी तक बस रोहन उसके लिए उसका सबसे अच्छा और खास दोस्त ही था। लेकिन रोहन के प्रति वेद की भावनाओं ने भी उस रात कुछ अंगड़ाइयां लीं, जब वेद रोहन को उसकी 8 वीं की बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी करवा रहा था।


वेद :- "अरे रोहू, तुम्हारा ये MP बोर्ड का सिलेबस तो बहुत ही आसान है। मैं परीक्षा से पहले ही तेरी सारी तैयारी करवा दूंगा।"


रोहन :- "इसीलिए तो आया हूँ तुम्हारे पास, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।"


वेद :- "अब अपने मम्मी पापा को बोल ना कि मेरे ही स्कूल में ट्रांसफर करवा दें तेरा, बड़ा मजा आएगा फिर, हम दोनों साथ ही स्कूल आएंगे जाएंगे।"


रोहन :- "कितनी बार तो डाँट खा चुका हूं यार इस चक्कर में, लेकिन वो लोग मानते ही नही।"


वेद :- "चल कोई नहीं। वो तो अच्छा है कि मेरी मम्मी ने तेरे साथ पढ़ाई करने के लिए हां करदिया, वरना मुझे बहुत बेकार लगता था तुझसे ना मिलने पर।"


रोहन :- (आँखों मे अलग ही चमक लिए) "तुम्हे अच्छा लगता है मेरे साथ??"


वेद :- "हाँ!!! तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त है।"


रोहन :- "मुझसे भी अच्छा कोई दोस्त है तुम्हारा स्कूल में???"


वेद :- "दिव्यांश मेरा अच्छा दोस्त बन गया था, लेकिन जब उसने तेरा मज़ाक बनाया था, तो अब वो मुझे उतना अच्छा नही लगता।"


रोहन :- "और कोई गर्लफ्रैंड??"


वेद :- (हँसते हुए) "क्या बोल रहा है रोहू, मम्मी ने अगर सुन लिया ना, तो बहुत मार पड़ेगी, और हमारा साथ मे पड़ना भी बंद हो जाएगा। (थोड़ी देर शांत रहने के बाद) वैसे तेरी कोई गर्लफ्रैंड है क्या?"


रोहन :- "नहीं!!! एक बॉयफ्रेंड है मेरा।"


वेद :- (आश्चर्य से) "बॉयफ्रेंड!!!! उसे बस दोस्त कहते हैं रोहू, बॉयफ्रेंड तो लड़कियों के होते हैं।"


रोहन :- "जरूरी नहीं है, कुछ लड़कों को भी लड़कों से प्यार होता है, जैसे मुझे है।"


वेद :- "सच में ऐसा भी होता है??? कोन है तेरा बॉयफ्रेंड??"


रोहन :- "तुम!! तुमसे प्यार करता हूँ मैं, जैसा tv में दिखाते हैं, हीरो हेरोइन वाला प्यार, वैसा ही प्यार करता हूँ मै तुमसे!!"



       वेद रोहन की यह सब बातें सुनकर बहुत ही स्तब्ध रह गया था। उसने रोहन से इस तरीके के शब्दों को सुनने की कभी भी कल्पना नहीं की थी। वह रोहन को तो सिर्फ अपना एक अच्छा दोस्त, सबसे अच्छा दोस्त ही समझता था। लेकिन रोहन के इस प्यार के इजहार ने वेद को भी, रोहन को देखने, उसे समझने का एक नया नज़रिया जरूर दे दिया था। उस रात के बाद से दोनों के ही बीच में कुछ बदलाव तो जरूर आए थे। लेकिन वेद ने अपनी तरफ से किसी भी तरीके का ऐसा इजहार या अपने व्यवहार में ऐसा कोई बदलाव नहीं लाया था, जिससे रोहन को यह समझ आ सके, कि क्या वेद भी वैसा ही रोहन के लिए महसूस करता है या नहीं। वेद पहले की तरह ही रोहन के साथ व्यवहार करने की पूरी कोशिश करता था। बिल्कुल पहले की तरह ही उसके साथ दोस्ती का रिश्ता भी निभाता था। लेकिन हां उसकी नजरों में थोड़ा सा बदलाव जरूर आया था। अब रोहन से नजरें मिलाने में वो थोड़ा सा कतराता था। रोहन को भी यह बात साफ समझ आती थी। लेकिन वह यह समझता था, कि शायद वेद उसके लिए वैसी भावनाएं नहीं रखता, जैसी रोहन उसके लिए रखता है। इसलिए शायद वह उस से नजरें नहीं मिलाता। वेद के इस बदले अंदाज को देखकर रोहन ने भी फिर कभी दोबारा अपने मन की बातों को या यूं कहें कि अपने प्यार का इजहार फिर कभी वेद से नहीं किया। धीरे-धीरे समय यूं ही बीतता गया, रोहन के आठवीं की परीक्षाएं भी खत्म हो चुकी थी और उनका परिणाम भी आ चुका था। रोहन वेद की कराई हुई मेहनत पर एकदम खरा उतरा था, और उसने फर्स्ट डिवीजन में आठवीं कक्षा को पास किया था। और साथ ही साथ अब उसे अंग्रेजी बोलना भी बहुत अच्छे से आ चुका था। यह सब वेद द्वारा दिए गए समय का ही असर था। 



     रोहन के घरवाले जहां रोहन की बेहतर होती पढ़ाई के लिए इतने खुश थे, वही रोहन इससे बहुत निराश। और रोहन की निराशा का कारण था, अब वेद से ना मिल पाना। क्योंकि इस साल वेद की 10वीं कक्षा शुरू होनी थी, और उसकी मम्मी ने गर्मियों की छुट्टियों से ही उसकी पढ़ाई शुरू करवा दी थी। जिसके चलते ना तो वेद अपने घर के बाहर ज्यादा खेलने आ पाता था, और ना ही अब रोहन के पास कोई ऐसा कारण था, जिससे वो वेद के घर जाकर, वेद के आस पास रह सके। रोहन ने एक बार फिर अपने घरवालों से, वेद के स्कूल में ही उसका एडमिशन कराने की जिद्द की, लेकिन इस बार भी उसके घरवालों ने इस बात को नजरअंदाज किया। रोहन अब बहुत ही चिड़चिड़ा रहने लगा था। एक तो उसके घरवाले उसकी बस एक ख्वाईश को पूरा करना तो छोड़ो, उसे ठीक से सुनते भी नहीं थे, और दूसरी ओर, वेद भी उसकी भावनाओं को नही समझता था। और वो तो वेद के साथ बस दोस्त बन कर भी अच्छा वक्त गुजरने को तैयार था, लेकिन अब उस दोस्ती का रिश्ता निभाने के लिए भी वेद बस रविवार को कुछ घंटों का ही समय रोहन को दिया करता था। वक़्त ने फिर अंगड़ाइयां लीं, और धीरे धीरे दोनों ही वापस से अपने अपने स्कूल और पढ़ाई लिखाई में व्यस्त हो गए। और फिर आया प्यार का महीना यानी फरवरी!! ये फ़रवरी रोहन के लिए कुछ खास तोहफे भी साथ ले कर आई थी। फरवरी की 14 तारीख को, वैलेंटाइन्स डे के दिन, रोहन के साथ वो हुआ, जिसकी उसने कभी कल्पना ही नही की थी, और वेद के बदले व्यवहार के बाद तो उसने ऐसा सपनों में भी सोचना छोड़ दिया था। जी!!! आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। इस बार अपने प्यार का इज़हार करने की बरी वेद की थी। 14 की शाम को, वेद रोहन को उसके घर मिलने गया, और रोहन को अपने साथ, रोहन के घर की छत पर ले आया। फरवरी की हल्की हल्की सर्दी थी, अंधेरा भी हो ही चला था, वेद ने अपनी जैकेट की जेब से अपने घर से तोड़ कर लाये एक छोटे से गुलाब के फूल को निकाला, और रोहन के हाँथों में पकड़ाते हुए कहा।


वेद :- "मैं तुम्हारी तरह बेबाक़ नहीं हूं रोहन। और ना ही मैं कभी अपनी दोस्ती की सच्चाई को पहचान पाता, अगर उस दिन तुम मुझसे अपने दिल की बात ना करते। (मुस्कुराते हुए) और मैं थोड़ा स्लो भी हूँ! मुझे अपने ही दिल की बात समझने में थोड़ा ज्यादा समय भी लगा। लेकिन आज के दिन से अच्छा कौन सा दिन होगा, अपने प्यार का इज़हार करने के लिए। I Love You रोहन! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। क्या तुम अभी भी मुझसे प्यार करते..........."


     वेद अपनी बात पूरी कर पाता, रोहन ने उससे पहले ही अपने प्यार का इज़हार वेद के होंठों पर अपने होंठों से कर दिया। वो 14 फरवरी की शाम, दोनों के लिए ही बहुत ही यादगार शाम थी। कहने को तो अभी दोनों बच्चे ही थे, लेकिन आज के समय मे इस उम्र के बच्चे भी वयस्कों से कम नही हैं। अपनी पसंद नापसंद का चुनाव वे बख़ूबी कर सकते हैं। जैसे कि वेद और रोहन ने इतनी कम उम्र में ही अपने अपने जीवन के पहले प्यार को इतनी आसानी से पा लिया था। और पहला प्यार किसी भी उम्र में आपके जीवन में आये, लेकिन वो बाकी के जीवन भर के लिए, अपनी एक खास छाप ठीक वैसे ही छोड़ जाता है, जैसे कि आपके शरीर पर पड़ी कोई बचपन की गहरी चोट।



       उस 14 फरवरी के बाद से, रोहन और वेद के लिए मानो दुनिया जैसे बदल ही गयी थी। एक तो कच्ची उम्र, और उस पर पहले प्यार का नशा, दोनों के सर चड़ चुका था। अब तो बस दोनों ही किसी ना किसी बहाने से एक दूसरे के आस पास बने ही रहते थे। लेकिन रोहन जितना बेफिक्र और बेरोकटोक वेद को बस प्यार करना चाहता था, प्यार की सारी हदें छू लेना चाहता था, वहीं वेद इस मामले में बहुत ही संजीदगी से बर्ताव करता था। जहां रोहन को बाकी के लोगों की कोई परवाह ही नही थी, वही वेद इस रिश्ते को, सबकी नजरों से छुपा कर ही रखना चाहता था। क्योंकि वेद को अपने स्कूल में इस तरह के प्यार के ना जाने कितने गंदे और बुरे नाम सुनने को मिलने लगे थे। इसलिए वेद नहीं चाहता था, की कोई उसपर भी उंगली उठाए। शायद रोहन के प्रति अपने प्यार को क़ुबूल करने में जो वेद ने इतना समय लिया, उसके पीछे भी यही एकमात्र कारण था। वेद जब अकेले में रोहन के साथ होता था, तो उसका एक अलग ही रूप देखने को मिलता था, और वहीं सबके सामने, वो रोहन की ओर देखता भी नही था। वेद की यह बात रोहन को कुछ खास पसंद भी नहीं थी। लेकिन जब भी रोहन वेद से ऐसे बर्ताव का कारण पूछता था, तो वेद उसे यही बात हर बार कहता था कि, "मैं नहीं चाहता कि कोई हमारा मज़ाक बनाये, इसलिए हमें सबसे छुप कर ही रहना होगा।" अब रोहन को वेद की यह बात पसंद तो नही थी, लेकिन अकेले में ही सही वेद रोहन से अपने प्यार का इज़हार तो करता था, रोहन के लिए खुश रहने की यही एक वजह काफी थी। 



    कुछ ही समय बाद वेद के 10वीं के एग्जाम भी खत्म हुए और वेद के पढ़ाई में अच्छे से ध्यान देने की वज़ह से, वह अच्छे नंबरों से पास भी हुआ। अब बारी थी उसकी अपने विषयों को चुनने की, और गणित में कम रुचि होने की वजह से वेद ने विज्ञान को चुना, और 11वीं कक्षा में दाखिला लिया। वहीं रोहन के सर इस साल पढ़ाई का अधिक बोझ आया, क्योंकि ये उसका 10वीं बोर्ड का एग्जाम था। एक बार फिर रोहन को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी वेद ने उठाई। और स्कूल के बाद का सारा समय अब दोनों साथ ही अपनी अपनी किताबों के साथ, एक साथ ही बिताने लगे। कभी रोहन के कमरे में, कभी वेद के कमरे में, कभी रोहन के घर की छत, तो कभी कॉलोनी का पार्क ही, दोनों की पढ़ाई करने की जगह बन जाया करता था। जब दोनों के आस पास कोई होता था, तब तो सारा ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर ही लगाया जाता था, लेकिन जैसे ही दोनों को कुछ समय अकेले में बिताने का मौका मिलता था, तो वो समय किताबों से ज्यादा गौर एक दूसरे के शरीरों पर दिया करते थे। ये पूरा साल दोनों ने पढ़ाई भी की थी, लेकिन साथ साथ, दोनों के बीच का प्यार, शारीरिक रिश्तों के साथ ही, गहरा भी हो चला था। दोनों ने ही इस बार भी, अच्छे अंको के साथ अपनी अपनी परीक्षाएं उत्तरीण की थीं। लेकिन रोहन के इतने अच्छे परिणाम के लिए, सभी ने वेद को ही शाबाशी दी। और रोहन के घरवाले, वेद के इतने अच्छे साथ को देखते हुए, इस साल रोहन का एडमिशन, वेद के ही स्कूल में कराने के लिए भी तैयार हो गए थे। इस बात से रोहन की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नही था, लेकिन वेद इस बात को सुन कर ज्यादा प्रफुल्लित नही नजर आ रहा था।



रोहन :- (अपने घर की छत पर) "क्या हुआ तुम्हे??? खुश नही लग रहे?"


वेद :- "नहीं ऐसी कोई बात नहीं। बस थोड़ा परेशान हूँ।"


रोहन :- "वही तो पूछ रहा हूँ, किसलिए??"


वेद :- "यार जब तुम मेरे सामने होते हो, तो मैं खुद को नही रोक पाता, और अब स्कूल में भी जब तुमसे मिलूंगा, तो पता नही कैसे खुद पर काबू कर पाऊंगा।"


रोहन :- "लेकिन खुद को रोकना ही क्यों है, मुझे आज तक तुम्हारी ये बात समझ ही नही आई। हम कुछ गलत थोड़ी कर रहे हैं।"


वेद :- "ऐसा बस तुम्हे लगता है। बकी सभी के लिए ये गलत ही है। और मैं नही चाहता यार की हमारा मज़ाक बनाये सभी। और फिर बात सिर्फ हमारी होती तो कोई बड़ी बात भी नही थी, हमारे बाद ये बात यहीं नही रुकेगी, हमारे घर तक भी आएगी, और मैं अपने घरवालों की बेज्जती होते नही देख सकता।"


रोहन :- (मायूस होकर) "तुम कुछ ज्यादा ही सोचते हो। चलो ठीक है, मैं मम्मी पापा को मना कर दूंगा तुम्हारे स्कूल में एडमिशन करने के लिए, ठीक है??"


वेद :- (रोहन का चेहरा अपने हाथों में भरते हुए) "नहीं ऐसा कुछ नही करना है। वहां तुम्हे ज्यादा अच्छा सीखने को मिलेगा, वो जरूरी भी है। बस स्कूल में हमें दोस्तों की तरह ही रहना होगा। मुझे भी खुद पर काबू रखना होगा, और तुम्हे भी।"


रोहन :- "ठीक है। लेकिन कम से कम लंच में तो मुझसे मिल लिया करना, वरना नए स्कूल में अकेले मैं कैसे एडजस्ट कर पाऊंगा।"


वेद :- "अरे उसकी बिल्कुल भी चिंता मत करो, वेदिका है ना, वो तुम्हारे ही क्लास में है। वो मेरे दोस्त दिव्यांश की छोटी बहन है, एक बार तुम मिले भी हो उससे मेरी बर्थडे पार्टी में, अगर तुम्हें याद हो तो। मैंने उसे बोल दिया है तुम्हारे बारे में, वो तुम्हारा ख्याल रखेगी वहां।"



      अबसे दोनों के लिए ही एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा था। जवाहर कॉलोनी से dps तक कि दूरी अब दोनों साथ ही एक ही bike पर तय करने लगे थे। सुबह का वो समय, चड़ते सूरज की चमक, वेद को पीछे से अपनी बाहों में पकड़ने का एहसास, वेद के कांधे का वो सहारा, रोहन के लिए अपनी अलग ही ख्वाबों की दुनिया को बसाने में भरपूर मदद कर रहे थे। जहाँ रोहन अपने बेपनाह प्यार का एहसास हर रोज़ वेद को कराने से नही हिचकता था, वहीं वेद, अपनी बनाई एक भी सीमा को रोहन को लांघने नही देता था। वो स्कूल पहुँचने से थोड़ी दूरी पर ही, रोहन से एक दूरी बना लेता था, और ये दूरी दोपहर में स्कूल से निकलने के बाद ही वापस उसी bike पर ही आकर खत्म होती थी। स्कूल में वेद रोहन के साथ बस एक अच्छे दोस्त की तरह ही बर्ताव किया करता था। केवल लंच के समय ही रोहन के साथ समय बिताया करता था, और वो भी अकेले में नही। दिव्यांश और वेदिका की मौजूदगी में ही। हाँ कभी कभी, लाइब्रेरी में अगर उसे रोहन अकेले में मिल जाया करता था, तो वेद उसे जोर से गले लगा कर उसके होंठो पर अपनी एक छाप छोड़ने से पीछे भी नही हटता था। रोहन को भी अब धीरे धीरे, वेद के इस चोरी छुपे प्यार से एतराज़ खत्म हो चला था। अब रोहन भी इस आँख मिचौली में वेद का भरपूर साथ निभाने लगा था। शाम को भी वेद के साथ समय बिताने को मिले, इसलिए उसने भी वेद की ही तरह विज्ञान को भी चुन लिया था। और अब दोनों सुबह से लेकर रात तक एक दूसरे के साथ ही समय बिताया करते थे। यूँही धीरे धीरे दोनों का प्यार भी परवान चड़ने लगा था, और दोनों एक दूसरे के बेहद करीब आते जा रहे थे।



वेदिका :- (स्कूल का एक दिन) "यार लंच हुए बहुत टाइम हो गया, वेद आया नही अभी तक??"


रोहन :- "आजायेग, कुछ काम मे लग गया होगा।"


वेदिका :- "यार तुम दोनों शाम को भी साथ मे पढ़ते हो ना??"


रोहन :- "हाँ!!! वेद मेरी हेल्प कर देता है।"


वेदिका :- "मैं भी आ जाया करूँ क्या?? भाई को भी ले आऊंगी, वो भी आज कल पढ़ाई में बहुत लापरवाही देता है, और इस साल 12 है उसका।"


रोहन :- "मैं क्या बोल सकता हूँ यार, तुझे वेद से ही पूछना पड़ेगा। शायद उसकी मम्मी परमिशन ना दें।"


वेदिका :- "यार सच बताऊँ!!! मुझे वेद बहुत अच्छा लगता है। लेकिन मेरी हिम्मत नही होती उससे कुछ कहने की। तू तो हम दोनों का ही अच्छा दोस्त है, तू कुछ मदद कर ना मेरी।"


रोहन :- (आश्चर्य से) "लेकिन वेद तुझे पसंद नही करता।"


वेदिका :- "उसने कभी बात की मेरी तुझसे??? तुझे कैसे पता??"


रोहन :- "नहीं!!! हम लोग ऐसी बातें नहीं करते, लेकिन मुझे पता है कि वो तुझे पसंद नही करता।"


वेदिका :- "तू ना ज़्यादा अपना दिमाग मत चला और मेरी मदद करदे बस, बाकी सब मैं देख लुंगी।"



    वेदिका के मन की बात जानकर रोहन थोड़ा हैरान भी था और परेशान भी। उसे अपने प्यार पर पूरा भरोसा तो था, लेकिन वेदिका के बस इस छोटे से एकतरफा प्यार के इज़हार ने, रोहन के सामने उसके और वेद के प्यार के भविष्य के कई सवाल खड़े कर दिए थे। और अगले ही दिन से दिव्यांश और वेदिका ने भी शाम के समय वेद के घर पर आकर पढ़ाई करना शुरू कर दिया था। जिससे रोहन को अपने मन मे उठते सवालों को वेद के सामने रखने का मौका भी नही मिल पा रहा था। और उसके और रोहन के प्यार के आसमान में छाए इन वेदिका और दिव्यांश नाम के बादलों की वजह से, रोहन अब सभी पर खिसियाने भी लगा था। 



वेद :- (bike पर स्कूल जाते समय) "क्या हो गया है आज कल तुझे, इतना चिड़चिड़ा क्यों रहा है सभी से?? उस दिन आँटी भी बोल रही थी, की घर मे भी सबसे ढँग से बात नही कर रहा आज कल?"


रोहन :- "मैं वैसे ही बहुत परेशान हूँ यार, मुझे और मत परेशान करो।"


वेद :- (bike को स्कूल के रास्ते की वजाय मोरैना कि तरफ ले जाते हुए) "जब तक तेरा मूड ठीक नही हो जाता, आज हम घर नही जाएंगे।"


रोहन :- "कहाँ ले जा रहे हो ये??? Half yearly exam आने वाले हैं यार, काम है स्कूल में बहुत।"


वेद :- "मैं करवा दूँगा तेरी सारी तैयारी, लेकिन आज तो स्कूल नहीं जा रहे हैं हम।"


रोहन :- "हाँ ठीक है, लेकिन अगर किसी को पता चला ना कि स्कूल का बोल कर कही और घूम रहे थे, तो ऐसे साथ मे स्कूल आना भी बंद हो जाएगा। अब बस यही टाइम तो बचा है तुम्हारे साथ बिताने का, बाकी पर तो वो दोनों भाई बहन राहू केतु की तरह मँडराते ही रहते हैं।"


वेद :- (खिलखिलाकर हँसते हुए) "अच्छा तो चिड़ने की वज़ह ये है। अब समझ आया मुझे, तो क्या हुआ, मैं मम्मी को बोल कर उनका घर आना बंद करवा दूंगा। फिर तो ठीक है?"


रोहन :- "नहीं यार बात वो भी नहीं है, ये तुम्हारा आखिरी साल है स्कूल में, फिर तुम पता नही कहाँ जाओगे, क्या करोगे, मुझे याद भी रखोगे या नहीं।"


वेद :- (रोहन के हाँथ को खींचकर, उसे अपनी पीठ के करीब खिंचते हुए) "बस इतनी सी बात रोहू??? इतनी छोटी सी बात से तूने इतने दिनों से अपना मुँह सड़ाया हुआ है। मुझे तो छोड़, तेरी अपनी मम्मी को भी तेरा ये बुरा से चेहरा नही पसंद आ रहा। वो मुझे बोल रही थीं कि रोहन को समझा उससे बात कर, कुछ परेशान है आज कल??? (Bike को सड़क के एक किनारे पर रोकते हुए, और रोहन के दोनों हाँथों को अपने सीने के इर्द गिर्द जकड़ते हुए) रोहू, मैं कहीं भी चला जाऊं, कुछ भी करूँ, लेकिन मैं कभी भी तुझे अपने दिल से नही निकाल पाउँगा। तू जान है मेरी। हाँ मैं बार बार तुझे थोड़ा कंट्रोल करने को कहता हूँ, मुझसे थोड़ी दूरी बनाए रखने को कहता हूँ, लेकिन मेरा यकीन मान, मैं इन सब से कहीं ज्यादा तुझसे प्यार भी करता हूँ। और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि मुझे GRMC में ही दाखिल मिल जाये MBBS के लिए, लेकिन अगर मुझे कहीं बाहर भी जाना पड़ा, तो अगले साल मैं तुझे अपने साथ ही ले जाऊंगा। फिर तो कोई दिक्कत नही है ना?"


रोहन :- (वेद की बातें सुनकर उसे जोर बाहों में भरते हुए) "मुझे पता है कि तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, मुझे तुम पर खुद से भी ज्यादा यक़ीन है, लेकिन बाकी लोगों पर तो मुझे रत्तीभर भी भरोसा नही है ना!!"


वेद :- "कौन बाकी के लोग रोहू??? तू क्या बोल रहा है??"


रोहन :- "कुछ नहीं!!! अब मेरा मूड बिल्कुल ठीक है, अब हम स्कूल वापस चले क्या??"


वेद :- (बाइक को स्टार्ट कर आगे बड़ाते हुए) "नहीं!!! आज का पूरा दिन बस तू और मैं!!! No school, no tenssion, only you and me।"


रोहन :- "ठीक है, लेकिन जा कहाँ रहे हैं हम???"


वेद :- "मितावली!!!! बहुत अच्छी जगह है, कल ही एक दोस्त होकर आया था, तो बस सोचा कि तुझे भी ले चलू। थोड़ा घूमना फिरना भी हो जाएगा। तेरा मूड भी ठीक हो जाएगा। और काफी दिनों से साथ मे वक़्त नही मिल पाया, तो वो कमी भी दूर हो जाएगी।"


       

      सारे रास्ते भर रोहन बिना कुछ बोले बस वेद के कंधे पर सर रखकर, उसे अपनी बाहों में भरकर गुमसुम सा बैठा रहा। मितावली पहुंचकर जब वेद और रोहन ऊपर पहाड़ी पर पहुंचे, वहाँ पूरे प्रांगण में उन दोनों के सिवा कोई और नहीं था। दोनों ने अंदर जाकर शिव जी के दर्शन किये, और आस पास बने बरामदे में घूमने लगे। लेकिन रोहन अभी भी चुप ही था। वेद को देखकर मुस्करा जरूर रहा था, लेकिन अभी भी उसके मन मे कुछ ऐसा था, जो उसने वेद से छुपा कर रखा था।



वेद :- "क्या हुआ है तुझे रोहू??? क्या बात है??? तू अभी भी मुझे परेशान ही लग रहा है।"


रोहन :- "नहीं कुछ खास नही।"


वेद :- (रोहन का हाँथ पकड़ते हुए) "अब बताएगा भी??"


रोहन :- "वेदिका तुमसे प्यार करती है!!!!।"


वेद :- (हँस कर) "तो??? तो तू क्यों परेशान है??? तुझे उससे जलन हो रही है क्या??"


रोहन :- (वेद के हाँथ को झटकते हुए) "तुम्हे बस सब मज़ाक ही लगता है।"


वेद :- (वापस से रोहन के हाँथों को पकड़ते हुए) "अरे मज़ाक नहीं कर रहा यार मैं। अब ये उसकी फीलिंग्स है, तो मैं उसे तो कंट्रोल नही कर सकता ना। लेकिन मेरी फीलिंग्स को तो तू जानता है ना??"


रोहन :- "यार बात वेदिका की भी नही है।"


वेद :- "रोहू तो बात है क्या?? कभी बोल रहा है कि मैं अगले साल दूर ना चला जाऊं, फिर वेदिका, और अब वेदिका की भी बात नही है!!! तो आखिर बात क्या है?"


रोहन :- "वेद बात हमारी है!! हमारे रिश्ते की है!! हमारे भविष्य की है!"


वेद :- "क्या बोल रहा है रोहू यार, मुझे कुछ नही समझ आ रहा है??"


रोहन :- "यार जब वेदिका ने मुझे अपनी फीलिंग्स बताई, तब मुझे समझ आया, की वेदिका ना ही सही, लेकिन एक टाइम तो ऐसा आएगा ना, जब तुम शादी कर लोगे। तब हमारा, हमारे इस रिश्ते का क्या होगा?"


वेद :- (हँसते हुए) "यार रोहू तू कितनी दूर की सोच रहा है, अभी हम केवल स्कूल में हैं। उसके बाद कॉलेज फिर नौकरी, तब जाकर ये बात सामने आएगी हमारे, और तू उस बारे में अभी से ही सोच रहा है??"


रोहन :- "तुम्हें हँसी आ रही है इस बात पर, मुझे पता है, आज से 6 7 साल बाद ही सही, लेकिन तुम तो सबके डर के कारण कर लोगे शादी, फिर मेरा क्या होगा? मैं कैसे रहूंगा तुम्हारे बिना।"


वेद :- (रोहन के चेहरे को अपने हाँथों में भरते हुए) "सॉरी रोहू, मैं बस तू जो इतनी दूर की सोच कर अभी से परेशान है, उस बात पर हंस रहा था। ना कि तेरे और मेरे रिश्ते पर। अभी इन सब बातों में बहुत समय है, हम अभी से उस वक़्त के बारे में क्यों सोचें जो शायद कभी आए ही ना।"


रोहन :- (वेद के हाँथों पर अपने हाँथ रखते हुए) "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ वेद, मैं इस ख्याल से भी डर जाता हूँ कि तुम मुझसे कभी दूर भी हो सकते हो।"


वेद :- (रोहन के माथे को चूमते हुए) "तुझे बिल्कुल भी डरने की जरूरत नही है रोहू। मैं कभी तुझे छोड़ कर नही जाऊंगा।"


रोहन :- "मुझे तुम्हारे प्यार पर बिल्कुल भी शक नही है वेद, लेकिन मैं तुम्हे अच्छे से जानता हूँ। जब तुम्हारे घरवाले तुम पर शादी के लिए प्रेशर डालेंगे, तो तुम चुप चाप उनकी बात मान लोगे, और मुझसे दूर हो जाओगे।"


वेद :- (रोहन को शिव मंदिर की ओर ले जाते हुए) "अगर तुझे इस बात का डर है, तो मैं आज शिव जी के सामने, तेरे सर पर हाँथ रख कर कसम खाता हूँ, की मैं कभी तेरा साथ नही छोडूंगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े। मैं हमेशा तुझसे, और केवल तुझसे ही प्यार करता रहूंगा।"




    ये तो बस एक क़सम थी, जो वेद ने खाई थी। लेकिन क्या वो अपनी इस कसम को निभा पाया था?? क्यों वेदिका 2 सालों से वेद का इंतेज़ार कर रही थी? क्यों रोहन 6 सालों से अपने घर, अपने शहर ग्वालियर वापस नही लौटा था? ऐसे कई सवालों, और बाकी की कसमो को जानने के लिए, इंतेज़ार कीजिये इस कहानी के अंतिम भाग का, जो मैं जल्द ही आप सबके सामने प्रस्तुत करूँगा।





Shadi.Com Part - III

Hello friends,                      If you directly landed on this page than I must tell you, please read it's first two parts, than you...